12th Sanskrit 10. दीनबन्धु श्रीनायारः JCERT/JAC Reference Book

12th Sanskrit 10. दीनबन्धु श्रीनायारः JCERT/JAC Reference Book

12th Sanskrit 10. दीनबन्धु श्रीनायारः JCERT/JAC Reference Book

10. दीनबन्धु श्रीनायारः

अधिगम-प्रतिफलानि

  • पाठ्यपुस्तकागतान् गद्यपाठान् अवबुध्य तेषां सारांशं वक्तुं लेखितुं च समर्थः अस्ति।

(पुस्तक में आए हुए गद्य पाठों को समझकर उनका सारांश बोलने और लिखने में समर्थ होते हैं।)

  • तदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतेन वदति लिखति च ।

(उनपर आधारित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में बोलते और लिखते हैं।)

  • अपठितगद्यांशं तदाधारितप्रश्नानामुत्तरप्रदाने अस्ति सक्षमः पठित्वा

(अपठित गद्यांश को पढ़कर उसपर आधारित प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम होते हैं।)

पाठपरिचयः -

प्रस्तुत पाठ उड़िया भाषा के प्रख्यात साहित्यकार श्री चन्द्रशेखरदासवर्मा द्वारा विरचित 'पाषाणीकन्या' कथासंग्रह के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। इसके अनुवादक डॉ० नारायण दास हैं। यह एक ऐसे अनाथ बालक की कथा है जो परिश्रम से जीवन में सफलता प्राप्त करता है और फिर प्रतिमाह अपनी आय का आधा से अधिक भाग अनाथालय के विकास के लिए दान करता है। श्रीनायार ने अपनी कर्मदक्षता, दाक्षिण्य और सेवा मनोवृत्ति से समाज में आदर्श स्थापित किया है। प्रस्तुत कथा में श्रीनायार का लोककल्याणकारी आदर्श चरित्र वर्णित है।

कथासारांशः -

श्रीनायार केन्द्र सरकार से स्थानान्तरित होकर उड़ीसा सरकार के अधीन कार्यरत हैं। श्रीनायार को कार्य करते हुए तीन वर्ष हो चुके हैं परन्तु इस बीच उन्होंने कभी भी अपने राज्य केरल जाने की इच्छा प्रकट नहीं की। वे उड़ीसा सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग में सचिव पद पर नियुक्त हैं। श्रीनायार की ईमानदारी और कर्मनिष्ठा से इस विभाग की कार्यनिपुणता दस गुणा बढ़ गई है। खाद्य सामग्री में मिलावट नाम मात्र रह गई है। उपभोक्ता पूरी तरह सन्तुष्ट हैं इसीलिए न्यायालय में विभाग के विरुद्ध कोई मुकदमा भी नहीं है।

श्रीनायार अपने अधीन कार्य करने वाले कर्मचारियों के साथ बड़े प्रेमपूर्वक व्यवहार करते हैं। वे थोड़ा बोलते हैं और अपने कार्य में लगे रहते हैं। हर महीने के पहले दिन वे अपने वेतन का आधे से अधिक भाग मनीआर्डर द्वारा भेज देते हैं। जिससे अनुमान होता है कि केरल के साथ इनका कोई संबंध है। कभी-कभी मलयालम भाषा में कोई पत्र आ जाता है। इस पत्र के अतिरिक्त कभी अन्य कोई पत्र श्रीनायार के पास नहीं आता। अचानक एक दिन विचित्र घटना घटती है कि श्रीनायार के हाथ में एक पत्र है। वे उसे पढ़ रहे हैं और उनकी आँखों से टपकते आँसुओं से पत्र भीगा जा रहा है। तभी एक क्लर्क श्रीदास का प्रवेश होता है। श्रीनायार उसे 'दायित्व हस्तांतरण पत्र' तैयार करने के लिए कहते हैं और उसे यह भी बताते हैं कि मेरे वापस लौट जाने का समय आ गया है। यदि किसी के साथ अनजाने में कोई दुर्व्यवहार हुआ हो तो मेरी ओर से क्षमायाचना कर लेना। इसके बाद विभाग के सभी कर्मचारियों ने श्रीनायार को भावभीनी विदाई दी। श्रीनायार को केरल गए हुए तीन दिन बीत गए हैं। कार्यालय में एक पत्र आता है क्लर्क श्रीदास उत्सुकतावश पत्र खोलता है, जिसकी लेखिका सुश्री मेरी हैं। जिनके पास श्रीनायार प्रतिमास धनादेश भेजते थे। सुश्री मेरी ने पत्र में श्रीनायार को संबोधित करते हुए लिखा था कि उसका जीवनदीप बुझने वाला है। तुम्हारे द्वारा स्थापित अनाथ आश्रम अब बहुत बड़ा वृक्ष बन गया है, जिसमें सौ से अधिक अनाथ बच्चे पल रहे हैं। यह तुम्हारा आश्रम तुम्हारे हाथों में सौंप कर वह भगवान् यीशू की शरण में जाना चाहती है। इस कथा में श्रीनायार के सेवा भाव उदारता तथा कर्मनिष्ठा को बहुत ही सुन्दर शैली में चित्रित किया गया है।

पाठसन्देशः -

इस पाठ के माध्यम से कर्मदक्षता, दाक्षिण्य और सेवाभाव आदि गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया है। साथ ही अपने कार्य स्थल में सभी के साथ मिलजुलकर रहने, अच्छा व्यवहार करने और व्यर्थ की बातों में अपना समय व्यतीत न करने की भी सीख दी गई है।

गद्यांशः

श्रीनायारः केन्द्रसर्वकारतः स्थानान्तरणेन आगत्य ओडिशासर्वकारस्य अधीने प्रायः वर्षत्रयेभ्यः कार्य करोति। तथाप्यस्मिन् वर्षत्रयात्मके कालखण्डे एकवारमपि स्वराज्यं केरलं प्रति गमनाय इच्छां न प्रकटितवान्। स स्वल्पभाषी, अतस्तस्य मनःकथा मनोव्यथा वा बोधगम्या नास्ति। सन्तुलितो वार्तालापः, साक्षात्समये आगमनम्, ततः सञ्चिकासु मनोनिवेशः, कार्य समाप्य स्वगृहं प्रत्यागमनञ्च तस्य वैशिष्ट्यमासीत्। तस्य कर्मनैपुण्यं दृष्ट्वा एव ओडिशासर्वकारस्तं स्थानान्तरणेन स्वीकृत्य खाद्यापूर्तिविभागे सचिवपदे नियुक्तवान्। गतस्य वर्षत्रयस्य आकलनात् ज्ञायते यद् विभागस्य कार्यनैपुण्यं दशगुणैः वर्धितम्। खाद्ये अपमिश्रणं न्यूनीभूतम्। अत उपभोक्तृणामपि अभियोगो नास्ति विभागस्य विपक्षे। मन्त्रिणां मध्येऽपि तस्य सुख्यातिः वर्तते। श्रीनायारस्य दायित्वग्रहणस्य एकमासाभ्यन्तरे बहुदिनेभ्यः स्थगितानां विविध समस्यानामपि समाधानं जातम्। स्वकार्यं त्यक्त्वा अपरस्य सहकारस्तस्य परमधर्मः। सः प्रतिमासं प्रथमदिवसे स्ववेतनस्य अर्धाधिकं भागं केरलं प्रेषयति स्म कश्चित् सम्पर्कः। तेनानुमीयते तस्य राज्येन सह अस्ति कश्चित् सम्पर्कः। कानिचन मलयालमभाषायाः संवादपत्राणि अतिरिच्य कदापि तस्य नाम्ना किमपि पत्रमागतमिति कोऽपि कदापि न जानाति।

पदार्थाः/व्याकरणकार्यम्

तथाप्यस्मिन् = तब भी इसमें। (तथापि + अस्मिन्)

बोधगम्या = बोध (ज्ञान) के द्वारा गम्य, जानने योग्य; बोधेन गम्या।

मनोनिवेशः = दत्तचित्त होना; मनसः निवेशः, षष्ठी तत्पुरुष समास।

प्रत्यागमनम् = वापिस लौटना; प्रति + आङ् + गम् + ल्युट् ।

कर्मनैपुण्यम् = कर्मों में निपुणता; कर्मसु नैपुण्यम्, सप्तमी तत्पुरुष।

स्वीकृत्य = स्वीकार करके; स्वी + कृ + ल्यप्।

अपमिश्रणम् = मिलावट; अप + मिश् + ल्युट > अन।

अनुमीयते = अनुमान किया जाता है; अनु + मा + लट् प्रथम पुरुष एकवचन।

न्यूनीभूतम् = कम हो गया; न्यून च्ची भू + क्त।

अभियोगः = मुकद्दमा।

सहकारः = सहायता।

अर्घाधिकम् = आधे से अधिक।

प्रतिमासम् = हर महीने; मासे मासे प्रतिमासम् (अव्ययीभाव समास)।

अतिरिच्य = अतिरिक्त; अति रिच् + ल्यप्।

अनुवादः/भावार्थः-

श्रीनायार केन्द्र सरकार से स्थानान्तरित होकर उड़ीसा सरकार के अधीन प्रायः तीन वर्ष तक कार्य करते हैं। तो भी (उसने) इस तीन वर्ष के कालखण्ड में एक बार भी अपने राज्य केरल की ओर जाने की इच्छा प्रकट नहीं की। वे बहुत कम बोलने वाले हैं, इसीलिए उनके मन की बात या मन की पीड़ा नहीं जानी जा सकती है। सन्तुलित वार्तालाप, ठीक समय पर पहुँचना, फिर रजिस्टरों में मन लगाए रखना और कार्य समाप्त कर अपने घर वापिस लौटना उनकी विशेषता थी। उनकी कार्यनिपुणता देखकर ही उड़ीसा सरकार ने उनका स्थानान्तरण स्वीकार कर उन्हें खाद्य आपूर्ति विभाग में सचिव पद पर नियुक्त कर दिया था। पिछले तीन वर्ष के आकलन से पता चलता है कि विभाग की कार्यनिपुणता दस गुणा बढ़ गई है। खाद्य सामग्री में मिलावट कम हो गई है। अतः उपभोक्ताओं का भी विभाग के विरोध में (कोई) अभियोग (मुकदमा) नहीं है।

मन्त्रियों के बीच में भी उनकी अच्छी ख्याति है। श्रीनायार के दायित्व (पदभार ग्रहण करने के एक महीने के अन्दर बहुत दिनों से स्थगित अनेक समस्याओं का भी समाधान हो गया। अपना कार्य छोड़कर दूसरों का सहयोग करना उनका परम धर्म है। वे प्रतिमास के पहले दिन अपने वेतन का आधे से अधिक भाग केरल भेज देते थे। इसी से पता चलता है कि उनका राज्य के साथ कोई सम्पर्क है। कुछ मलियालम भाषा के संवाद पत्रों को छोड़कर कभी उनके नाम से कोई पत्र आया है, इसे कभी कोई नहीं जानता।

पाठांशाधारिताः प्रश्नाः-

1. एकपदेन उत्तरत-

क. श्रीनायारः कुतः स्थानान्तरणेन आगत्य ओडिशासर्वकारस्य अधीने प्रायः वर्षत्रयेभ्यः कार्यं करोति ?

उत्तर- केन्द्रसर्वकारतः

ख. कः वर्षत्रयात्मके कालखण्डे एकवारमपि स्वराज्यं केरलं प्रति गमनाय इच्छां न प्रकटितवान् ?

उत्तर- श्रीनायारः

ग. कार्य समाप्य स्वगृहं प्रत्यागमनञ्च कस्य वैशिष्ट्यमासीत् ?

उत्तर- श्रीनायारस्य

घ. श्रीनायारस्य कर्मनैपुण्यं दृष्ट्वा एव कः तं स्थानान्तरणेन स्वीकृत्य खाद्यापूर्तिविभागे सचिवपदे नियुक्तवान्?

उत्तर- ओडिशासर्वकारः

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-

क. श्रीनायारस्य दायित्वग्रहणस्य एकमासाभ्यन्तरे किं जातम् ?

उत्तर- श्रीनायारस्य दायित्वग्रहणस्य एकमासाभ्यन्तरे बहुदिनेभ्यः स्थगितानां विविध समस्यानामपि

समाधानं जातम् ।

ख. स्वकार्यं त्यक्त्वा अपरस्य सहकारः कस्य परमधर्मः ?

उत्तर- स्वकार्यं त्यक्त्वा अपरस्य सहकारः श्रीनायारस्य परमधर्मः ।

3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः-

उचितविकल्पं चिनुत-

1. श्रीनायारः स्ववेतनस्य अर्धाधिकं भागं कुत्र प्रेषयति स्म ?

क. कानपुरम्

ख. मद्रासम्

ग. केरलम्

घ. पूनानगरम्

ii. कस्मिन् अपमिश्रणं न्यूनीभूतम् ?

क. खाद्ये

ख. पदार्थे

ग. जले

घ. सर्वे

iii. श्रीनायारः कुत्र गमनाय इच्छां न प्रकटितवान् ?

क. दिल्लीम्

ख. केरलम्

ग. कोलकातानगरम्

घ. महाराष्ट्रम्।

iv. विभागस्य विपक्षे केषाम् अभियोगो नास्ति?

क. उपभोक्तृणाम्

ख. अधिकारिणाम्

ग. कर्मचारिणाम्

घ. मन्त्रिणाम्

गद्यांशः -

एकस्मिन् दिने श्रीनायारः पत्रमेकं धृत्वा मस्तकमवनमय्य पठन् आसीत्। नेत्रतीराद् विगलिता अश्रुधारा आर्दीकरोति स्म पत्रस्य अर्घाधिकं भागम्। तदानीमेव तस्य कार्यालय लिपिकः श्रीदासः प्रविशति । श्रीनायारः तमुक्तवान्- अधुना मम गमनसमयः समुपागत एव। मम दायित्वहस्तान्तरणपत्रकं सज्जीकुरु। अहमधुना द्वित्राणां दिवसानां सकारणावकाशं स्वीकरिष्यामि। पुनः तदनु स्वीकरिष्यामि दीर्घावकाशम्। यदि कस्मैचिद् अज्ञातेन मया रूक्षो व्यवहारः प्रदर्शितः स्यात्, तदर्थ ते मह्यमुदारचित्तेन क्षमां प्रदास्यन्ति इति सर्वेभ्यो निवेदयतु। अनन्तरं सर्वे अश्रुलहृदयैः सौप्रस्थानिक ज्ञापितवन्तः। तस्य गमनस्य दिवसत्रयात्परं कार्यालये पत्रमेकमागतम्। कौतूहलवशात् श्रीदासः तत्पत्रमुद्घाटितवान्। लेखिका आसीत् सुश्री मेरी यस्याः पार्श्वे सः प्रतिमासमर्धाधिकं धनं धनादेशेन प्रेषयति स्म। पत्रे एवं लिखितमासीत्.....

श्रीनायार !

भगवान् यीशुस्तव मंङ्ङ्गलं वितनोतु। मम पूर्वतनं पत्रं त्वया प्राप्तं स्यात्। तव समीपे इदं मम शेषपत्रम्। यतो हि मम जीवनप्रदीपो निर्वापितोभवितुमिच्छति। प्रायस्तवागमनसमये अहं न स्थास्यामि। पूर्वपत्रे अहमाश्रमस्य सर्वविधमायव्ययाकलनं प्रेषितवती । केवलं यीशोः समीपे गमनात्पूर्वं तव दर्शनमिच्छामि। प्रथमं त्वया निर्मितोऽनाथाश्रमोऽधुना महाद्रुमेण परिणतः। अधुनात्र शताधिका अनाथशिशवो लालिताः पालिताश्च भवन्ति। तव हस्तयोस्तव अनाथाश्रमं समर्प्य अहं सौप्रस्थानिकीमिच्छामि। अद्य समाजस्त्वत्तो बहु किमपि इच्छति। यौ कौ वां तव पितरौ भवतां नाम, तौ धन्यवादाह। कदाचित्ताभ्यां त्वं विस्मृतः स्यात् त्वमवश्यमेतान् शिशून् संपोष्य उत्तममनुष्यान् कारयिष्यसीति मम कामना वर्तते। प्रभुः त्वत्त इमामेवाशां पोषयति। यो जन्म दत्तवान्, स जीवितुमधिकारमपि दत्तवान्। भगवान् त्वां दीर्घजीवनं कारयतु। इति ॥

तव शुभाकांक्षिणी

सुश्रीः मेरी

शब्दार्थाः/व्याकरणकार्यम्-

विगलिता = निकली हुई; वि + गल् + क्त + टाप् ।

अवनमय्य = झुकाकर अव नम् + ल्यप्।

दायित्वहस्तान्तरणम् = दूसरे को प्रभार हस्तगत कराना।

सज्जीकुरु = तैयार करो; सज्ज् + च्वि + कृ + लोट् + मध्यम पुरुष एकवचन।

सौप्रस्थानिकी = विदाई।

धनादेशेन = मनिआर्डर से; धनाय आदेशः तेन (चतुर्थी-तत्पुरुष)

वितनोतु = करे, विस्तार करे; वि + तन् + लोट्, प्रथम पुरुष, एकवचन।

पूर्वतनम् = पहला

निर्वापितः = शान्त, बुझा हुआ; निर् + वप् (णिच्) + क्त।

परिणतः = परिवर्तित हो गया, बदल गया; परि निम् + क्त।

आयव्ययाकलनम् = आय व्यय का विवरण।

पितरौ = माता-पिता; माता च पिता च (द्वन्द्व समास)

अनुवादः/भावार्थः-

एक दिन श्रीनायार एक पत्र (हाथ में) पकड़कर मस्तक झुकाकर पढ़ रहे थे। आँख के किनारे से गिरी हुई अश्रुधारा ने पत्र का आधे से भी अधिक भाग गीला कर दिया था। तभी उनके कार्यालय का लिपिक (क्लर्क) श्रीदास प्रवेश करता है। श्रीनायार ने उससे कहा-"अब मेरे जाने का समय समीप आ गया है। मेरा दायित्व हस्तान्तरण पत्र (किसी दूसरे को पदभार सौंपने का पत्र) तैयार करो। अब मैं दो-तीन दिन का सकारण अवकाश लूँगा (स्वीकार करूँगा। फिर उसके बाद लम्बी छुट्टी लूँगा। यदि किसी के लिए अनजाने में मुझसे रूखा व्यवहार किया गया हो, तो उसके लिए वे मुझे उदारभाव से क्षमा देंगे-ऐसा सबसे निवेदन करो।" इसके बाद सभी ने आँसू भरे हृदय से विदाई दी। उनके जाने के तीन दिन के पश्चात् कार्यालय में एक पत्र आया। जिज्ञासावश श्रीदास ने वह पत्र खोला। लेखिका थी सुश्री मेरी, जिसके पास वह प्रतिमास आधे से अधिक धन मनीआर्डर द्वारा भेजते थे।

पत्र में लिखा था

श्रीनायार!

भगवान् यीशु तुम्हारा मंगल करें। मेरा पहला पत्र तुम्हें मिला होगा। तुम्हारे पास यह मेरा शेष पत्र है। क्योंकि मेरा जीवन-दीप बुझ जाना चाहता है। शायद तुम्हारे आने तक मैं न रहूँ। पिछले पत्र में मैंने आश्रम का सारा आय-व्यय चिट्ठा भेज दिया था। केवल यीशु के पास जाने से पहले तुम्हारा दर्शन करना चाहती हूँ। पहले तुम्हारे द्वारा निर्मित अनाथ आश्रम अब बड़े भारी वृक्ष में बदल गया है। अब यहाँ सौ से भी अधिक अनाथ शिशु लालित और पालित हो रहे हैं। तुम्हारे हाथों में तुम्हारा अनाथ आश्रम सौंपकर अब विदाई चाहती हूँ। आज समाज तुम से बहुत कुछ चाहता है। जो कोई भी तुम्हारे हारे माता-पिता हैं, वे धन्यवाद के पात्र हैं। किसी कारणवश उन्होंने तुम्हें भुला दिया होगा, तुम अवश्य ही इन शिशुओं को पाल-पोसकर उत्तम मनुष्य बनाओगे, यह मेरी कामना है। प्रभु तुमसे यही आशा रखते हैं। जिसने जन्म दिया है, उसी ने जीने का अधिकार भी दिया है। भगवान् तुम्हें दीर्घजीवी करें।

तुम्हारी शुभेच्छु,

सुश्री मेरी

पाठांशाधारिताः प्रश्नाः-

1. एकपदेन उत्तरत-

क. लिपिकस्य नाम किम् आसीत् ?

उत्तर- श्रीदासः

ख. 'अहमधुना द्वित्राणां दिवसानां सकारणावकाशं स्वीकरिष्यामि ।' इति वाक्यं कः कथयति ?

उत्तर- श्रीनायारः

ग. 'प्रायस्तवागमनसमये अहं न स्थास्यामि।' अस्मिन् वाक्ये 'तव' इति पदं कस्मै प्रयुक्तम् ?

उत्तर- श्रीनायाराय

घ. एकस्मिन् दिने श्रीनायारः किं पठन् आसीत् ?

उत्तर- पत्रमेकं

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-

क. अश्रुधारा किं करोति स्म ?

उत्तर- अश्रुधारा पत्रस्य अर्धाधिकं भागं आर्दीकरोति स्म ।

ख. 'यतो हि मम जीवनप्रदीपो निर्वापितो भवितुमिच्छति।' इति कथनं का कथयति?

उत्तर- 'यतो हि मम जीवनप्रदीपो निर्वापितो भवितुमिच्छति।' इति कथनं सुश्री मेरी कथयति ।

3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः-

उचितविकल्पं चिनुत-

1. आश्रमे के लालिताः पालिताश्च भवन्ति?

क. वृद्धाः

ख. स्त्रियः

ग. शिशवः

घ. अनाथशिशवः।

ii. पत्रलेखिका कस्य हस्तयोः अनाथाश्रमं समर्थ्य सौप्रास्थानिकीमिच्छति ?

क. पुत्रस्य

ख. श्रीदासस्य

ग. श्रीनायारस्य

घ. सर्वकारस्य

iii. एकस्मिन् दिने श्रीनायारः पत्रमेकं धृत्वा मस्तकमवनमय्य किं कुर्वन् आसीत् ?

क. लिखन्

ख. पठन्

ग. हसन्

घ. खादन्

iv. माता च पिता च = ------------

क. मातरौ

ख. माता-पिता

ग. पितरौ

घ. मातरम्

अभ्यासः

(1) संस्कृतभाषाया उत्तराणि लिखत ।

प्रश्न क- श्रीनायार : कुत्र गमनाय इच्छां न प्रकटितवान्?

उत्तर- श्रीनायारः स्वराज्यं केरलं प्रति गमनाय इच्छां न प्रकटितवान्!

प्रश्न ख- विभागस्य विपक्षे केषाम् अभियोगो नास्ति?

उत्तर- विभागस्य विपक्षे उपभोक्तृनाम् अभियोगो नास्ति!

प्रश्न ग- श्रीनायार : स्ववेतनस्य अर्थाधिकं भागं कुत्र प्रेषयति सम ?

उत्तर - श्रीनायारः स्ववेतनस्य अर्थाधिकं भागं केरलं प्रेषयति स्म।

प्रश्न घ- श्रीनायारस्य नेत्रतीराद् विगलिता अश्रुधारा किम् अकरोत् ?

उत्तर - श्रीनायारस्य नेत्रतीराद् विगलिता अश्रुधारा पत्रस्य अर्धाधिकं भागम् आर्द्रम् अकरोत् ।

प्रश्न ङ- बहुदिनेभ्य: स्थगितानां समस्यानां समाधानं कदा जातम् ?

उत्तर - श्रीनायारस्य दायित्वग्रहणस्य एकमासाभ्यन्तरे बहुदिनेभ्यः स्थगितानां समस्यानां समाधानं जातम् ।

प्रश्न च - श्रीनायारस्य पार्श्वे पत्रं कया प्रेषितम्?

उत्तर - श्रीनायारस्य पार्श्वे पत्रं सुश्री मेरी महोदया प्रेषितम्!

प्रश्न छ - आश्रमे के लालितः पालिताश्च भवन्ति?

उत्तर - आश्रमे अनाथाः शिशवः लालिताः पालिताश्च भवन्ति ।

प्रश्न ज - पत्रलेखिका कस्य हस्तयोः अनाथाश्रमं समर्प्य सौ सौप्रस्थानिकीमिच्छति ?

उत्तर - पत्रलेखिका श्रीनायारस्य हस्तयोः अनाथश्रमं समर्प्य सौप्रस्थानिकीमिच्छति ।

प्रश्न 2. सप्रसङ्गं हिन्दीभाषया व्याख्यां कुरुत -

(क) उपभोक्तणामपि अभियोगो नास्ति विभागस्य विपक्षे

उत्तर - प्रसंग: - प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक 'शाश्वती-द्वितीयो भागः' के 'दीनबन्धुःश्रीनायारः' नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ उड़िया के प्रख्यात साहित्यकार श्री चन्द्रशेखरदास वर्मा द्वारा रचित 'पाषाणीकन्या' नामक कथासंग्रह के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। यह संस्कृत अनुवाद डॉ० नारायण दाश ने किया है।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्ति में दीनबन्धु श्रीनायार की सत्यनिष्ठा एवं कर्तव्यनिष्ठा के फलस्वरूप खाद्य-आपूर्ति विभाग के विरोध में उपभोक्ताओं की ओर से किसी प्रकार के अभियोग न होने का उल्लेख किया गया है।

श्रीनायार एक सत्यनिष्ठ तथा मानवीय संवेदना से ओत-प्रोत कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी थे। उड़ीसा सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग के सचिव पद को सम्भालते ही इस विभाग का कायाकल्प हो गया। खाद्यान्न में मिलावट या हेरा-फेरी नाममात्र रह गई, अतः श्रीनायार के कार्यकाल में उपभोक्ताओं को विभाग पर किसी प्रकार का अभियोग चलाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। श्रीनायार के आने से विभाग की न केवल सक्रियता बढ़ी अपितु ईमानदारी से काम करने का भी वातावरण बना। परिणामतः उपभोक्ता विभाग की कार्यप्रणाली से सन्तुष्ट हुए और कोर्ट-कचहरी के विवादों से विभाग मुक्त हो गया। इस पंक्ति से श्रीनायार की कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदारी का संकेत मिलता है।

(ख) सर्वे अश्रुलहृदयैः सौप्रस्थानिकों ज्ञापितवन्तः

उत्तर - प्रसंग - प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक 'शाश्वती द्वितीयो भागः' के 'दीनबन्धुःश्रीनायार:' नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ उडिया के प्रख्यात साहित्यकार श्री चन्द्रशेखरदास वर्मा द्वारा रचित 'पाषाणीकन्या' नामक कथासंग्रह के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। यह संस्कृत अनुवाद डॉ० नारायण दाश ने किया है।

व्याख्या - 'सभी ने आँसु भरे हृदय से श्रीनायार को विदाई दी' प्रस्तुतपंक्ति का सम्बन्ध श्रीनायार के जीवन के उस क्षण से है, जब केरल राज्य में श्रीनायार द्वारा स्थापित अनाथ आश्रम की संचालिका सुश्री मेरी ने श्रीनायार को एक पत्र लिखा कि अब उनका अन्तिम समय आ चुका है और उन्हें स्वयं यह आश्रम सँभाल लेना चाहिए।

एक दिन श्रीनायार अपने कार्यालय में बैठे एक पत्र पढ़ रहे थे, उनकी आँखों से अश्रुधारा बह रह थी, जिससे पत्र भी भीग चुका था। उसी क्षण श्रीनायार के क्लर्क श्रीदास का प्रवेश हुआ और उन्होंने श्रीदास को कहा कि अब उनका छुट्टी लेकर चले जाने का समय आ गया है। यदि मुझसे कोई रूखा व्यवहार किसी के साथ अनजाने में हुआ हो तो उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ। श्रीनायार का व्यवहार विभाग के सभी सहकर्मियों के साथ पूर्णतया मानवीय, मित्रतापूर्ण तथा अत्यन्त मधुर था।

विभाग के सभी लोग श्रीनायार के स्वभाव और व्यवहार से सन्तुष्ट थे। आज जब श्रीनायार केरल वापस जाने लगे,तो सहकर्मियों के हृदय को चोट पहुँची और न चाहते हुए भी उन्हें भीगी पलकों से विदाई की। इस पंक्ति से विभाग के लोगों का श्रीनायार के प्रति सच्चा आदर-भाव तथा श्रीनायार की सद्-व्यवहारशीलता प्रकट होती है।

(ग) त्वया निर्मितोऽयं क्षुद्रोऽनाथाश्रमोऽधुना महाद्रुमेण परिणतः ।

उत्तर - प्रसंग - प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक 'शाश्वती द्वितीयो भागः' के 'दीनबन्धुःश्रीनायार:' नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ उड़िया के प्रख्यात साहित्यकार श्री चन्द्रशेखरदास वर्मा द्वारा रचित 'पाषाणीकन्या' नामक कथासंग्रह के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। यह संस्कृत अनुवाद डॉ० नारायण दाश ने किया है।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्ति सुश्री मेरी के उस पत्र की है, जो श्रीनायार के केरल वापस चले जाने के बाद उनके क्लर्क श्रीदास ने खोलकर पढ़ा था। श्रीनायार ने एक अनाथ आश्रम की स्थापना केरल राज्य में की थी। जिसका संचालन सुश्री मेरी किया करती थी। मेरी अब मृत्यु के निकट थी, अतः उसने श्रीनायार को स्वयं यह अनाथ आश्रम सँभालने तथा अन्तिम क्षणों में श्रीनायार के दर्शन करने की इच्छा प्रकट की थी।

मेरी ने इस पत्र में यह भी बताया था कि यह आश्रम कभी बहुत छोटे रूप में था परन्तु आज यह बहुत बड़े वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। अब इसमें सौ से भी अधिक अनाथ शिशु पल रहे हैं। श्रीनायार इसी आश्रम के संचालन के लिए अपने वेतन का आधे से भी अधिक भाग प्रतिमास की एक तारीख को ही मनीआर्डर द्वारा सुश्री मेरी के पास भेज दिया करते थे। इस घटना से श्रीनायार का दीनों के प्रति सच्चा दया-भाव प्रकट होता है। इसीलिए पाठ का नाम भी 'दीनबन्धु श्रीनायार' उचित ही दिया गया है।

3. अधः समस्तपदानां विग्रहाः दत्ताः तानाश्रित्य समस्तपदानि रचयत समासनामापि लिखत।

(क) कालस्य खण्डः तस्मिन्--- कालखण्डे ( षष्ठी तत्पुरुष समास)

(ख) कर्मसु नैपुण्यम् --- कर्मनैपुण्यम्( सप्तमी तत्पुरुष समास)

(ग) द्वि च त्रि च अनयोः तेषाम्--- द्वित्राणाम्( द्वन्द्व समास)

(घ) दीर्घ : अवकाशः तम्--- दीर्घावकाशम( कर्मधारय समास)

(ङ) धनाय आदेशः तेन--- धनादेशेन( चतुर्थी तत्पुरुष समास)

(च) जीवनस्य प्रदीपः--- जीवनप्रदीप:( षष्ठी तत्पुरुष समास)

(4) रेखांकित पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत ।

(क) श्रीनायार : स्वल्पभाषी आसीत् ।

उत्तरः श्रीनायारः कीदृग्भाषी आसीत् ?

(ख) वर्षत्रयस्य आकलनात् ज्ञायते यत् विभागस्य कार्यनैपुण्यं दशगुणै : वर्धितम् ?

उत्तर - कस्य आकलनात् ज्ञायते यत् विभागस्य कार्यनैपुण्यं दशगुणैः वर्धितम् ?

(ग) तस्य राज्येन सह कश्चित् सम्पर्कः नास्ति ?

उत्तर - तस्य केन सह कश्चित् सम्पर्कः नास्ति?

(घ) पत्रस्य अर्धाधिकं भागं अश्रुधारा आर्दीकरोति स्म?

उत्तरः पत्रस्य अर्धाधिकं भागं का आर्दीकरोति स्म ?

(ङ) श्रीदासः तत्पत्रमुद्‌घाटितवान्?

उत्तर - कः तत्पत्रमुद्घाटितवान् ?

(च) भगवान् त्वां दीर्घजीवनं कारयतु?

उत्तर - भगवान् कं दीर्घजीवनं कारयतु ?

(5) विपरीतार्थक पदानि मेलयत ।

क. आगत्य ---- ख. गत्वा

ख. इच्छाम्---- ज. अनिच्छाम्

ग. स्वल्पभाषी---- ङ बहुभाषी

घ. प्रारभ्य---- च. समाप्य

ङ. अधिकीभूतम्---- ग. न्यूनीभूतम्

च. विपक्षे---- घ. पक्षे

छ. स्मृतः---- क. विस्मृतः

ज. दीर्घजीवनम्---- छ. लघुजीवनम्

6. अधोलिखिताना विशेष्यपदानां विशेषपदानि पाठात् चित्वा लिखत ।

विशेष्यपद ----विशेषणपद

विशेषणपदम् - विशेष्यपदम्

सन्तुलितः - वार्तालापः

गतस्य - वर्षत्रयस्य

विगलिता - अश्रुधारा

स्थगितानाम् - समस्यानाम्

रुक्षः - व्यवहारः

पूर्वतनम् - पत्रम्

शताधिकाः - शिशवः

(7)अधोलिखितेषु पदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत ।

समाप्य---- सम्( उपसर्ग) आप् ( धातु ) ल्यप् ( प्रत्यय)

जातम्----- जन् (धातु) क्त (प्रत्यय )

व्यक्त्वा----- त्यज ( धातु ) कत्वा (प्रत्यय )

धृत्वा------- धृ (धातु) कत्वा ( प्रत्यय )

पठन्------ पठ् ( धातु ) शतृ ( प्रत्यय )

संपोष्य----- सम् ( उपसर्ग ) पुष ( धातु ) ल्यप ( प्रत्यय )

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

विषय सूची

अध्याय-1 विद्ययामृतमश्नुते (विद्या से अमृतत्व की प्राप्ति होती है)

अध्याय-2 रघुकौत्ससंवादः

अध्याय-3 बालकौतुकम्

अध्याय-4 कर्मगौरवम्

अध्याय-5 शुकनासोपदेशः (शुकनास का उपदेश)

अध्याय-6 सूक्तिसुधा

अध्याय-7 विक्रमस्यौदार्यम् (विक्रम की उदारता)

अध्याय-8 भू-विभागाः

अध्याय-9 कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम् (कार्य सिद्धकरूँगा या देह त्याग दूँगा)

अध्याय-10 दीनबन्धु श्रीनायारः

अध्याय-11 उद्भिज्ज परिषद् (वृक्षों की सभा)

अध्याय-12 किन्तोः कुटिलता (किन्तु शब्द की कुटिलता)

अध्याय-13 योगस्य वैशिष्ट्यम् (योग की विशेषता)

अध्याय-14 कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् (शब्दों का अनुशासन(प्रयोग) कैसे करना चाहिए)

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषयानुक्रमणिका

क्रम.

पाठ का नाम

प्रथमः पाठः

विद्ययाऽमृतमश्नुते

द्वितीयः पाठः

रधुकौत्ससंवादः

तृतीयः पाठः

बालकौतुकम्

चतुर्थः पाठः

कर्मगौरवम्

पंचमः पाठः

शुकनासोपदेशः

षष्ठः पाठः

सूक्तिसुधा

सप्तमः पाठः

विक्रमस्यौदार्यम्

अष्टमः पाठः

भू-विभागाः

नवमः पाठः

कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम्

दशमः पाठः

दीनबन्धुः श्रीनायारः

एकादशः पाठः

उद्भिज्ज -परिषद्

द्वादशः पाठः

किन्तोः कुटिलता

त्रयोदशः पाठः

योगस्य वैशिष्टयम्

चतुर्दशः पाठः

कथं शब्दानुशासनं कर्तव्यम्

JAC वार्षिक माध्यमिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर

Sanskrit Solutions शाश्वती भाग 2













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