8. भू-विभागाः
अधिगम प्रतिफलानि -
1. संस्कृतश्लोकान् उचितबलाघातपूर्वकं छन्दोऽनुगुणम् उच्चारयति।
(श्लोकों का छन्दानुसार उचित लय के साथ सस्वर वाचन करते हैं।)
2. श्लोके प्रयुक्तानां सन्धियुक्तपदानां विच्छेदं करोति।
(श्लोक में प्रयुक्त संधियुक्त पदों का विच्छेद करते हैं।)
3. श्लोकान्वयं कर्तुं समर्थः अस्ति ।
(श्लोक का अन्वय करने में समर्थ होते हैं।)
पाठपरिचयः -
प्रस्तुत पाठ मुगलसम्राट् शाहजहाँ के विद्वान पुत्र दाराशिकोह
द्वारा विरचित ग्रन्थ 'समुद्रसङ्गमः' से संकलित किया गया है। दाराशिकोह संस्कृत तथा
अरबी भाषा के तत्कालीन विद्वानों में अग्रगण्य थे। 'समुद्रसङ्गमः' ग्रन्थ में 'पृथिवी
निरूपण' के अन्तर्गत उन्होंने पर्वतों, द्वीपों, समुद्रों आदि का विशिष्ट शैली में
वर्णन किया है। उसी वर्णन के अंश यहाँ "भू-विभागाः" शीर्षक के
अन्तर्गत प्रस्तुत किये गये हैं।
दाराशिकोह मुगलसम्राट् शाहजहाँ के सबसे बड़े पुत्र थे। उनका
जीवनकाल 1615 ई० से 1659 ई० तक है। शाहजहाँ उनको राजपद देना चाहते थे पर उत्तराधिकार
के संघर्ष में उनके भाई औरंगजेब ने निर्ममता से उनकी हत्या कर दी। दाराशिकोह ने अपने
समय के श्रेष्ठ संस्कृत पण्डितों, ज्ञानियों और सूफी सन्तों की सत्संगति में वेदान्त
और इस्लाम के दर्शन का गहन अध्ययन किया और उन्होंने फारसी और संस्कृत में इन दोनों
दर्शनों की समान विचारधारा को लेकर विपुल साहित्य लिखा। फारसी में उनके ग्रन्थ हैं-
सारीनतुल औलिया, सकीनतुल् औलिया, हसनातुल् आरफीन (सूफी सन्तों की जीवनियाँ) तरीकतुल्
हकीकत, रिसाल-ए-हकनुमा, आलमे नासूत, आलमे मलकूत (सूफी दर्शन के प्रतिपादक ग्रन्थ),
सिर्र-ए-अकबर (उपनिषदों का अनुवाद) उनके फारसी ग्रन्थ हैं। श्रीमद्भगवद्गीता और योगवासिष्ठ
के भी फारसी भाषा में उन्होंने अनुवाद किये। 'मज्म-उल्-बहरैन्' फारसी में उनकी अमर
कृति है, जिसमें उन्होंने इस्लाम और वेदान्त की अवधारणाओं में मूलभूत समानताएँ बतलायी
हैं। इसी ग्रन्थ को दाराशिकोह ने 'समुद्रसङ्गमः' नाम से संस्कृत में लिखा।
पाठांशः
अथ पृथिवीनिरूपणम्-पृथिव्याः सप्तभेदाः। ते च भेदाः सप्तपुटान्युच्यन्ते।
तानि च पुटानि-अतल वितल-सुतल-प्रतल-तलातल-रसातल-पातालाख्यानि। अस्मन्मतेऽपि सप्तभेदाः।
यथाऽस्मद्वेदे श्रूयते परमेश्वरो यथा सप्तगगनानि तद्वत् पृथिव्याः सप्तविभागान् कृतवान्।
यत्र अथ पृथिव्याः विभागनिरूपणं लोकास्तिष्ठन्ति । तस्याः
दार्शनिकैः सप्तधा विभागः कृतस्तान् विभागान् सप्त अअक्लिम इति वदन्ति। पौराणिकास्तु
सप्तद्वीपानि वदन्ति। एतान् खण्डान् पलाण्डुत्वग्वदुपर्यधो भावेन न ज्ञायन्ते, 'किन्तु'
निःश्रेणी सोपानवजानन्ति।
पदार्थाः
पुटानि = भेद या पुट।
अअक्लिम = अकूलीन खण्ड अथवा टुकड़ा।
पलाण्डुत्वक् = प्याज का छिलका।
उपर्यधः = ऊपर-नीचे।
कुलाचलाः = कुलपर्वत अथवा सात पर्वतों की माला।
निःश्रेणी = निसेनी अथवा सीढ़ी।
सोपानम् = निसेनी में एक समान दूरी पर लगने वाले छोटे-छोटे काष्ठ-खण्ड।
व्याकरणकार्यम् -
निरूपणम् = नि + रूप + ल्युट् ।
अस्मन्मते = अस्मत् + मते (अनुनासिक)।
अस्माद्वेदे = अस्माकं वेदे (षष्ठी तत्पुरुष समास)
कृत वान = कृ + क्तवतु (पुलिङ्ग)।
कृतस्तान् = कृतः + तान् (वि. सत्व)।
पौराणिक = पुराण + ठक् ।
सरलार्थः -
अब पृथ्वी का निरूपण किया जाता है- पृथ्वी के सात भेद है
और वे भेद सात पुट कहे जाते हैं। और वे हैं- अतल वितल - सुतल तलातल - रसातल महातल पाताल
ये नाम हैं। हमारे मतानुसार भी पृथ्वी के सात भेद हैं। जैसे हमारे वेद में सुना जाता
है कि परमेश्वर ने जिस प्रकार सात आकाश बनाये, उसी प्रकार पृथ्वी के सात विभाग किये।
अब पृथ्वी के उस विभाग का निरुपण किया जाता है जिसमें लोग रहते हैं। उस पृथ्वी का दार्शनिकों
ने सात भागों में विभाजन किया है। उन खण्डों को सात अअक्लिम ऐसा कहते हैं। पौराणिक
तो इन्हें सात द्वीप कहते हैं। इन भागों को प्याज के छिलकों की तरह ऊपर नीचे भाग से
नहीं जाना जाता है लेकिन इन्हें नसेनी या सीढ़ी की तरह जानते हैं।
भावार्थः
भाव इस प्रकार है भूमि के सात भाग हैं। ये सात भेद सात पुट
कहे जाते हैं। अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल और पाताल ये उनके नाम हैं। हमारे मत के
अनुसार भी सात भेद हैं। हमारे वेद में सुना जाता है कि जिस प्रकार परमेश्वर ने सात
आकाशों को बनाया उसी तरह भूमि के भी सात भेद किये गये। मनुष्य जहां निवास करते हैं।
दार्शनिकों ने पृथ्वी के सात विभाग किये। ये विभाग सात अअक्लिम कहलाते हैं।
पाठांशाधारिताः प्रश्नाः -
1. एकपदेन उत्तरत -
(i) पृथिव्याः उपरी कति लोकाः सन्ति?
उत्तर-
सप्त
(ii) 'पृथिव्याः सप्तविभागान् कृतवान्' इत्यत्र
क्रियापदं किम्?
उत्तर-
कृतवान्
(iii) 'पाताल' इति पदस्य विलोमपदं किम्?
उत्तर-
आकाशः
(iv) मुगलसम्राट् शाहजहानस्य पुत्रः कः आसीत्
?
उत्तर-
दाराशिकोहः
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत -
(i) पृथिव्याः भेदाः किम् उच्यन्ते ?
उत्तर-
पृथिव्याः भेदाः सप्तपुटानि उच्यन्ते।
(ii) एते खण्डाः कथं न ज्ञायन्ते?
उत्तर-
एते खण्डा पलाण्डुत्वगवदुपर्यधो भावेन न ज्ञायन्ते।
3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः -
(i) 'समुद्रसषङ्गमः' इति ग्रन्थस्य रचयिता
कः।?
(क) कालिदासः
(ख) अश्वघोषः
(ग) दाराशिकोहः
(घ) श्रीहर्षः।
(ii) 'भू-विभागाः' इति पाठः कस्मात् ग्रन्थात् सङ्कलितः ?
(क) समुद्रसङ्गमात्
(ख)
रघुवंशात्
(ग)
शिवराजविजयात्
(घ)
मेघदूतात्।
(iii) दाराशिकोहं कः हतवान् ?
(क)
अकबर:
(ख) औरंगजेबः
(ग)
हुमायूं:
(घ)
शाहजहां।
(iv) 'मज्म उल्- बहरैन्' इति कस्मिन् भाषायां रचितम् ?
(क)
आङ्ङ्गल भाषायां
(ख)
उर्दू: भाषायां
(ग)
संस्कृत भाषायां
(घ) फारसी भाषायां।
पाठांशः -
शब्द पर्वतान् सप्त कुलाचलान् वदन्ति तेषां पर्वतानां नामान्येतानि
प्रथमः सुमेरुमध्ये, द्वितीयो हिमवान्, तृतीयो हेमकूटः, चतुर्थो निषधः एते सुमेरोरुत्तरतः।
माल्यवान् पूर्वस्यां, गन्धमादनः पश्चिमायां कैलासश्च मर्यादापर्वतेभ्योऽतिरिक्तः।
यथाऽस्मद्वेदे श्रूयते - "अस्माभिः पर्वताः शकवः कृताः।"
एतेषां सप्तद्वीपानां प्रत्येकमावेष्टनरूपाः सप्तसमुद्राः।
लवणो जम्बुद्वीपस्यावरकः। इक्षुरसः प्लक्षद्वीपस्य, दधिसमुद्रः क्रौञ्चद्वीपस्य, क्षीरसमुद्रः
शीकद्वीपस्य, स्वादुजलसमुद्रः पुष्करद्वीपस्यावरकः इति। समुद्राः सप्त अस्मद्वेदेऽपि
प्रकटाः भवन्ति।
पदार्थाः
शडकवः = कीलें।
आवेष्टनरूपा = आवरण करने वाले।
इक्षरसः = गन्ने का रस, सुरा अथवा मदिरा।
आवरकः = ढकने वाला।
श्रूयते = सुना जाता है।
व्याकरणकार्यम् -
हिमवान् = हिम + मतुप्।
सुमेरोरुत्तरम् = समेरोः + उत्तरम्।
अस्मद्वेदेऽपि = अस्मत् + वेद + अपि ।
सरलार्थः -
सात पर्वतों को सात कुलाचलन कहते हैं। उन पर्वतों के नाम
ये हैं- पहला सुमेरु पर्वत जो मध्य में है। दूसरा हिमालय, तीसरा हेमकूट, चौथा निषध-ये
सुमेरु पर्वत की उत्तर दिशा में हैं। पाँचवाँ मूल्यवान् पूर्व दिशा में छठा गन्धमादन
पश्चिम दिशा में और सातवाँ कैलास पर्वत मर्यादा पर्वतों से अलग है। जैसा हमारे वेद
कुरान शरीफ में सुना जाता है- "हमने पर्वतों को शकु कीलें बना दिया।"
इन सात द्वीपों में प्रत्येक द्वीप के आवरण रूप सात समुद्र
हैं। लवण समुद्र जम्बुद्वीप का आवरण है। इक्षुरस सुरा प्लक्षद्वीप का, दधिसमुद्र क्रौञ्चद्वीप
का, क्षीर सागर शाकद्वीप का और स्वादु जल समुद्र पुष्कर द्वीप का आवरक है। हमारे वेद
कुरान शरीफ़ में भी सात समुद्र प्रकट होते हैं।
भावार्थ: -
भाव इस प्रकार से है कि सात पर्वत सात कुलाचल कहलाते हैं।
उन पर्वतों के नाम हैं- पहला सुमेरू जो मध्य में स्थित है दूसरा हिमालय तीसरा हेमुकुट
चौथा निषध। यह पर्वत सुमेरू के उत्तर में है। माल्यवान पर्वत पूर्व में और गंधमादन
पश्चिम में है। कैलाश पर्वत सीमावर्ती पर्वतों से भिन्न है। जिस प्रकार से हमारे वेदों
में माना जाता है "हमारे पहाड़ी कील हुए थे। इन सब विभागों के प्रत्येक के आवरण
सात सागर हैं। जम्बुद्वीप का प्रवारक लवण है। ईख का रस पर्कटी द्वीप का और क्रौंच द्वीप
का प्रवारक दही का सागर है।
पाठांशाधारिताः प्रश्नाः -
1. एकपदेन उत्तरत -
(i) पौराणिकाः कति द्वीपानि वदन्ति ?
उतर- सप्त
(ii) 'सप्त' इत्यस्य पदस्य विशेष्यपदेन अन्वितिः
कुरुत।
उतर- सप्तद्वीपानि
(iii) जम्बुद्वीपस्य आवश्यकः कः ?
उतर- लवण
(iv) 'नरक' इत्यस्य पदस्य विलोमपदं किं प्रयुक्तम्
?
उतर- स्वर्ग
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत -
(i) कानि समाप्तानि न भवन्ति ?
उतर- भगवद्वाक्यानि समाप्तानि न भवन्ति।
(ii) स्वादुजलसमुद्रस्य आवरकः कः ?
उतर- स्वादुजलसमुद्रः आवरकः अस्ति।
3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः -
(i) 'सुमेरोरुत्तरम्' इति पदस्य सन्धिविच्छेदं
किम्?
(क) सुमेरोरु + त्तरम्
(ख) सुमेरो + उत्तरम्
(ग) सुमेरोः + उत्तरम्
(घ) सुमरोः + उत्तरम्।
(ii) 'पौराणिक' इति पदे कः प्रत्यय ?
(क) शतृ
(ख) ठक्
(ग) मतुप्
(घ) तल्।
(iii) 'स्वर्गस्योपरि' इति पदस्य सन्धिविच्छेदं
किम् ?
(क) स्वर्गस्य + उपरि
(ख) स्वर्गयो + उपरि
(ग) स्वर्गस्य + उपरी
(घ) स्वर्गस्यः + उपरि।
(iv) 'अर्श' इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(क) आकाशाय
(ख) द्वीपाय,
(ग) समुद्राय
(घ) पर्वताय।
पाठांशः
वृक्षाः लेखनी भवेयुः समुद्रोऽपि मसी भवेत्, परं भगवद्वाक्यानि
समाप्तानि न भवन्ति। प्रतिद्वीपं प्रतिपर्वतं प्रतिसमुद्रं नानाजातयोऽनन्ता जन्तवस्तिष्ठन्ति।
या पृथिवी ये पर्वताः ये समुद्राः सर्वाभ्यः पृथिवीभ्यः सर्वेभ्यः पर्वतेभ्यः समुद्रेभ्यः
सर्वेभ्यः पर्वतेभ्यः सर्वेभ्यः समुद्रेभ्योऽधो भागे तिष्ठन्ति स'नरक' इति वदन्ति।
निश्चितं किल सिधैः स्वर्गनरकादिकं सर्व ब्रह्माण्डान्न किञ्चिद्वहिरस्तीति। ते सप्तगगनाश्रिताः
सप्त ग्रहाः स्वर्ग परितो मेखलावत् परिभ्रमन्तीति वदन्ति, न स्वर्गस्योपरि। अथ स्वर्गस्य
यदि मन आकाशं जानन्ति अस्मदीयास्तमर्श इति वदन्ति। स्वर्गभूमिं कुर्शीति वदन्ति ।
पदार्थाः -
मसी = स्याही।
मेखलावत = मेखला अथवा शुइखला के समान।
तिष्ठन्ति = ठहरते हैं।
अधो भागे = नीचे वाले भाग में।
किञ्चित = कुछ भी।
मेखलावत् = श्रृंखला के समान।
'अर्श' = आकाश अथवा गगन, स्वर्ग (फारसी शब्द)।
'कुर्शी' = परमेश्वर का सिंहासन अथवा स्वर्गभूमि, 'कुर्शी' को आठवां
आसमान भी कहा गया है। (फारसी शब्द)।
व्याकरणकार्यम् -
भगवद्वाक्यानि = भगवतः वाक्यानि (षष्ठी तत्पुरुष समास)।
स्वर्गस्योपरि = स्वर्गस्य + उपरि (गुण)
ब्रह्माण्डान्न = ब्रह्माण्डात् + न।
स्वर्गभूमिः = स्वर्गस्य भूमिः।
सरलार्थः -
सभी वृक्ष लेखनी बन जाएँ, समुद्र स्याही बन जाए, परन्तु भगवद्
वचन समाप्त नहीं होते अर्थात् भगवान् की महिमा लिखने के लिए ये सब अपर्याप्त ही होते
हैं। प्रत्येक द्वीप में प्रत्येक पर्वत पर, प्रत्येक समुद्र में विविध जाति वाले अनन्त
प्राणी रहते हैं। जो पृथिवी, जो पर्वत, जो समुद्र सभी पृथिवियों से, सभी पर्वतों से,
सभी समुद्रों से ऊपर विद्यमान हैं उन्हें 'स्वर्ग' कहते हैं। जो पृथिवी, जो पर्वत,
जो समुद्र सभी पृथिवियों से, सभी पर्वतों से तथा समुद्रों से निचले भाग में स्थित हैं
उन्हें 'नरक' कहते हैं। सिद्ध पुरुषों ने निश्चित मत बनाया है कि स्वर्ग-नरक आदि सब
यहाँ पर ही हैं ब्रहमाण्ड से कछ भी बाहर नहीं है। सात आकाशों के आश्रित रहने वाले जो
सात ग्रह हैं, वे स्वर्ग के चारों ओर मेखला की भाँति भ्रमण करते हैं, स्वर्ग के ऊपर
नहीं। अब यदि स्वर्ग का मन आकाश को समझते हैं तो हमारे लोग उसे 'अर्श' कहते हैं। स्वर्गभूमि
को 'कुर्शी' कहते हैं।
भावार्थ: -
भाव इस प्रकार से है कि जो पृथ्वी, जो पर्वत, जो सागर, सभी
भूमियों सभी पहाड़ों सभी समुद्रों से सबसे नीचे जो स्थान है उसे नरक मानते हैं। विद्वान
लोग दृढ़तापूर्वक कहते हैं कि स्वर्ग और नरक सभी ब्रह्मांड से ही हैं। ब्रह्मांड से
बाहर कुछ भी नहीं है। स्वर्ग सात अकाशों का आश्रय लेकर सात ग्रह, स्वर्ग के चारों ओर
करधनी की तरह चारों ओर भ्रमण करते हैं। ऐसा कहते हैं परंतु वे स्वर्ग से ऊपर नहीं है।
यदि स्वर्ग का मन आकाश माना जाये तो हम उसे अर्श कहते हैं और स्वर्ग लोक को कुर्सी
कहते हैं।
पाठांशाधारिताः प्रश्नाः
1. एकपदेन उत्तरत -
(i) स्वर्गभूमिं किं वदन्ति ?
उतर-
कुर्शी
(ii) 'श्रृंखलावत्' कुरुत। पदस्य पर्यायपदचयनं
उतर-
मेखलावत्
(iii) प्लक्षद्वीपस्य आवरकः कः ?
उतर-
इक्षुरसः
(iv) शाकद्वीपस्य आवरकः कः ?
उतर-
क्षीरसमुद्रः
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत -
(i) स्वर्गस्य मनः कं जानन्ति ?
उतर-
स्वर्गस्य मनः आकाशं जानन्ति।
(ii) 'कीला:' इत्यस्य पदस्य प्रयुक्तं समानार्थकपदं
किम ?
उतर-
'शंकवः' इति पदस्य समानार्थकं पदम्।
3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः
(i) पृथिव्याः कति भेदाः ?
(क) अष्ट
(ख) सप्त
(ग) षड्
(घ) नव।
(ii) पर्वताः कति सन्ति ?
(क) नव
(ख) सहस्रम्
(ग) अष्ट
(घ) सप्त।
(iii) समुद्राः कति सन्ति ?
(क) सप्त
(ख) अष्ट
(ग)
नव
(घ)
चत्वारः।
(iv) दधिसमुद्रः कस्य द्वीपस्यावरकः ?
(क)
सुमेरुद्वीपस्य
(ख)
मालद्वीपस्
(ग)
सिंहद्वीपस्य
(घ) क्रौञ्चद्वीपस्य ।
अभ्यासः
1 . संस्कृतेन उत्तरं दीयताम्
क . पृथिव्याः कति भेदाः ?
उत्तर
- पृथिव्या: सप्तः भेदाः ।
ख . पृथिव्याः सप्तपुटानां नामानि कानि सन्ति ?
उत्तर
- पृथिव्याः सप्तपुटानां नामानि सन्ति
1.
अतलः
2.
वितलः,
3.
सुतलः,
4.
प्रतलः,
5.
तलातलः,
6.
रसातल,
7.
पातालः।
ग . पर्वता: कति सन्ति ?
उत्तर
- पर्वता: सप्तः सन्ति ।
घ . समुद्रा: कति सन्ति ?
उत्तर
- समुद्राः सप्तः सन्ति ।
ङ . दधिसमुद्रः कस्य द्वीपस्यावरक ?
उत्तर
- दधिसमुद्रः कौञ्च द्वीपस्यावरकः ।
च . ' अर्श ' इति पदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
उत्तर
- अर्श इति पदं आकाशाय प्रयुक्तम् ।
छ .' कुर्शी ' इति पदं कस्मिन्नर्थे प्रयुक्तम् ?
उत्तर
- 'कुर्शी' इति पदं परमेश्वस्य सिंहासने अर्थे प्रयुक्तम्?
ज .' अस्मद्वेद ' इति शब्दः दाराशिकोहेन कस्य ग्रन्थस्य कृते
प्रयुक्तः ?
उत्तर
- 'अस्मद्वेद' इति शब्दः दाराशिकोहेन 'कुरानशरीफ़' ग्रन्थस्य
कृते प्रयुक्तः?
2 . हिन्दीभाषाया आशयं लिखत ।
एतान् खण्डान् पलाण्डुत्वग्वदुपर्यधोभावेन न ज्ञायन्ते, किन्तु
निःश्रेणी - सोपानवज्जानन्ति । सप्तपर्वतान् सप्रकुलाचलान् वदन्ति, तेषां
पर्वतानां नामान्येतानि - प्रथमः सुमेरुर्मध्ये, द्वितीयो हिमवान्, तृतीयो
हेमकूटः, चतुर्थो निषधः एते सुमेरोरुत्तरतः ।
प्रसंगः - प्रस्तुत गद्यांश 'शाश्वती-
द्वितीयो भागः' के 'भू-विभागाः' नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ दाराशिकोह रा रचित
'समुद्रसङ्गमः' नामक ग्रन्थ से लिया गया है। प्रस्तुत गद्यांश में भूलोक के सात विभागों
तथा सप्त पर्वतों की चर्चा की है।
व्याख्या - पृथिवी जिस पर सब लोगों का
निवास है, दार्शनिकों ने उसके सात खण्ड माने हैं, इन्हें सप्तद्वीप भी कहा जाता है।
ये खण्ड प्याज के छिलकों की तरह एक के नीचे एक-एक के नीचे एक नहीं होते, अपितु जैसे
सीढ़ी में अलग-अलग समान दूरी पर लकड़ी/बाँस में डण्डे लगे होते हैं उसी प्रकार इन सप्तद्वीपों
की स्थिति भी समझनी चाहिए। सप्तपर्वतों को 'सप्तकुलाचल' नाम से भी जाना जाता है।
इन सात पर्वतों के नाम और उनकी स्थिति इस प्रकार है। पृथिवी
के मध्य में सुमेरु नामक पहला पर्वत है। दूसरा हिमालय, तीसरा हेमकूट और चौथा निषध नामक
पर्वत है ये तीनों सुमेरु पर्वत की उत्तर दिशा में स्थित हैं। इन सबके अतिरिक्त माल्यवान्,
गन्धमादन तथा कैलास पर्वत हैं। इन्हें जोड़कर ही सात समुद्रों की संख्या पूर्ण होती
है। प्रस्तुत गद्यांश में इन तीनों का उल्लेख नहीं है।
3 . अधोलिखितानां पदानां स्वसंस्कृतवाक्येषु प्रयोगं कुरुत ।
पुटानि - पृथिव्याः सप्त विभागाः 'सप्तपुटानि' अपि कथ्यन्ते।
कृतवान् - दा राशि को ह : श्रीमद्भगवद्गीतायाः अनुवादं फारसीभाषायां
कृतवान्।
आवेसनरूपा - सप्तद्वी पा सप्तसमुद्राणाम् आवेष्टनरूपाः सन्ति।
सर्वेभ्यः - सर्वेभ्यः शिक्षकेभ्यः नमः।
ब्रहमण्डात्
- स्वर्ग नरकादि कं ब्रहमाण्डात बहिः
नास्ति।
परिभ्रमन्ति - सप्त ग्रहाः गगने परिभ्रमन्ति ।
4 . अधोलिखितानां पदानां संन्धिविच्छेदं कुरुत ।
पुटान्युच्यन्ते - पुटानि + उच्यन्ते
अस्मन्मते - अस्मत् + मते
पलाण्डुत्वग्वदुपर्यघोभावेन
- पलाण्डुत्वगवत् + उपरि + अध: + भावेन ।
सोपानवन्जानन्ति - सोपानवत् + जानन्ति
सुमेरोरुतरतः - सुमेरोः
+ उत् + तरतः
समुद्रोऽपि - समुद्रः + अपि
किञ्चिद्वहिरस्तीति - किञ्चित + बहि + अस्ति
+ इति
5 . अधोलिखितानां पदानां पर्यायवाचिपदानि लिखत ।
पृथिवी - भूमिः,
भू, पृथ्वी, धरणी, धरा।
पर्वतः - गिरिः,
अचलः, भूधरः, धरणीधरः।
समुद्रः - सागरः,
जलधिः, वारिधिः, रत्नाकरः।
गगनम् - आकाशः,
खः, क्षितिजः, नभः।
स्वर्गः - दिवम्,
'अर्श' इति फारसीभाषायाम्।
6 . रिक्तस्थानानाम् पूर्तिः विधेया ।
क
. पौराणिकास्तु सप्त द्वीपानि वदन्ति ।
ख
. सप्त पर्वतान् सप्त कुलाचलान् वदन्ति '
ग
. लवणो जम्बुद्वीपस्यावरकः ।
घ
. स्वर्गभूमिं कुर्शी इति वदन्ति।
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
विषय सूची
अध्याय-1 विद्ययामृतमश्नुते (विद्या से अमृतत्व की प्राप्ति होती है)
अध्याय-5 शुकनासोपदेशः (शुकनास का उपदेश)
अध्याय-7 विक्रमस्यौदार्यम् (विक्रम की उदारता)
अध्याय-9 कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम् (कार्य सिद्धकरूँगा या देह त्याग दूँगा)
अध्याय-11 उद्भिज्ज परिषद् (वृक्षों की सभा)
अध्याय-12 किन्तोः कुटिलता (किन्तु शब्द की कुटिलता)
अध्याय-13 योगस्य वैशिष्ट्यम् (योग की विशेषता)
अध्याय-14 कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् (शब्दों का अनुशासन(प्रयोग) कैसे करना चाहिए)
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषयानुक्रमणिका
क्रम. | पाठ का नाम |
प्रथमः पाठः | |
द्वितीयः पाठः | |
तृतीयः पाठः | |
चतुर्थः पाठः | |
पंचमः पाठः | |
षष्ठः पाठः | |
सप्तमः पाठः | |
अष्टमः पाठः | |
नवमः पाठः | |
दशमः पाठः | |
एकादशः पाठः | |
द्वादशः पाठः | |
त्रयोदशः पाठः | |
चतुर्दशः पाठः | |