12th Sanskrit 9. कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम् JCERT/JAC Reference Book

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12th Sanskrit 9. कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम् JCERT/JAC Reference Book

9. कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम्

(कार्य सिद्ध करूंगा या देह त्याग दूंगा)

अधिगमप्रतिफलानि

1. पाठ्यपुस्तकागतान् गद्यपाठान् अवबुध्य तेषां सारांशं वक्तुं लेखितुं च समर्थः अस्ति।

(पुस्तक में आए हुए गद्य पाठों को समझकर उनका सारांश बोलने और लिखने में समर्थ होते हैं।)

2. प्रश्नानाम् उत्तराणि तदाधारितानां संस्कृतेन वदति लिखति च।

(उनपर आधारित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में बोलते और लिखते हैं।

3. तेषां भावार्थं प्रकटयति।

(उनके भावार्थ प्रकट करते हैं।)

पाठपरिचयः

प्रस्तुत पाठ अम्बिकादत्तव्यास द्वारा रचित 'शिवराजविजय' नामक ऐतिहासिक उपन्यास के प्रथम विराम के चतुर्थ निःश्वास से संकलित है। इसके रचयिता अम्बिकादत्तव्यास बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होंने संस्कृत व हिन्दी में शताधिक ग्रन्थों की रचना की। इनकी कृतियों में अभिव्यक्त अद्भुत कल्पनाशक्ति एवं पात्रों के चरित्र में प्रदर्शित उच्च आदर्शों ने विद्वज्जनों को अपनी ओर आकृष्ट किया।

प्रस्तुत पाठ में यह दर्शाया गया है कि जो वीर, विश्वासपात्र, कर्मठ व दृढसंकल्प वाले होते हैं, उन्हें मानवीय एवं प्राकृतिक किसी भी प्रकार की बाधाऐं अपने संकल्पित लक्ष्य को प्राप्त करने से नहीं रोक सकतीं, संकल्पित कार्य को पूरा करने में चाहे उन के प्राण भी क्यों न चले जाएँ।

शिवाजी का विश्वासपात्र एवं कर्मठ दूत; गुप्तचर अपने निर्दिष्ट कार्यों को पूरा करने के लिए सहदुर्ग से पत्र लेकर तोरणदुर्ग जाता है। रास्ते में अनेक प्रकार की भीषण प्राकृतिक बाधाओं के बाद भी वह तनिक भी विचलित नहीं होता है तथा अपने संकल्पित लक्ष्य की ओर बढ़ता ही जाता है। वह कहता है-'कार्य वा साध्येयम्, देहं वा पातयेयम्' अर्थात्-'कार्य सिद्ध करूँगा या देह त्याग कर दूँगा'। यही भाव प्रस्तुत गद्यांश में वर्णित है।

गद्यांश:-

मासोऽयमाषाढः, अस्ति च सायं समयः, अस्तं जिगमिषुर्भगवान् भास्करः सिन्दूर

द्रव-स्नातानामिव वरफण-दिगवलम्बिनामरफण-वारिवाहानामभ्यन्तरं प्रविष्टः।

कलविघाश्चाटवैफर- रफतैः परिपूर्णेषु नीडेषु प्रतिनिवर्तन्ते। वनानि प्रतिक्षणमध्किाधिकां ड

श्यामतां कलयन्ति। अथाकस्मात् परितो मेघमाला पर्वतश्रेणीव प्रादुरभूत्, क्षणं

सूक्ष्मविस्तारा, परतः प्रकटित-शिखरि शिखर-विडम्बना, अथ दर्शित-दीर्घ-

शुण्डमण्डित-दिगन्त-दन्तावल-भयानकाकारा ततः पारस्परिक संश्लेष-विहित-

महान्धकारा च समस्तं गगनतलं पर्यच्छदीत्।

अस्मिन् समये एकः षोडशवर्ष-देशीयो गौरो युवा हयेन पर्वतश्रेणीरफपर्युपरि गच्छति

स्म। एष सुघटितदृढशरीरः श्याम श्यामैर्गुच्छ-गुच्छेः कुञ्चित - कुञ्चितैः कच-कलापै

कमनीय-कपोलपालिः दूरागमनायासवशेन सूक्ष्म-मौक्तिक-पटलेनेव स्वेदबिन्दु-व्रजे

समाच्छादित-ललाट-कपोल-नासाग्रोत्तरोष्ठः प्रसन्न - वदनाम्भोज- प्रदर्शित-दृढसिध्दान्त-

महोत्साहः, राजतसूत्रा-शिल्पवृफत-बहुल-चाकचक्य-वक्र-हरितोष्णीष-शोभितः, हरितेनैव

च कञ्चुवेफन-व्यूढगूढचरता-कार्यः, कोऽपि शिववीरस्य विश्वासपात्रां सिंहदुर्गात् तस्यैव

पत्रामादाय तोरणदुर्गं प्रयाति।

पदार्थाः/व्याकरणकार्यम्-

जिगमिषुः = जाने के इच्छुक, गम् + सन् + उ, इच्छार्थक 'सन्' प्रत्यय

सिन्दूरद्रवस्नातानाम् = सिन्दूर के घोल से स्नान किये हुए।

स्नातानाम् = ष्णा + क्त प्रत्यय। षष्ठी विभक्ति बहवचनम्।

वरुणदिक् = वरुण देव को पश्चिम दिशा का अधिपति माना जाता है।

वरुणदिगवलम्बिनाम् = वरुदिशः अवलम्बनं शीलंयेषां ते। तेषाम्। अव लम्ब् + इन् प्रत्यय।

अरुणवारिवाहानाम् = लालिमायुक्त बादलों के।

कलविङ्काः = पक्षी। (गौरैया)

चाटकैरः = गौरैया का बच्चा। चटका एरच् प्रत्यय।

प्रतिक्षणम् = पल-पल

निडेषु = घोंसले में। नपुसकलिङ्ग, सप्तमी बहुवचन।

श्यामताम् = काले पन को। श्याम तल प्रत्यय।

कलयन्ति = प्राप्त करते हैं। लट् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन।

अथ = अव्यय।

दर्शितदीर्घशुण्डित = लम्बी-लम्बी सूंडों से सुशोभित दिग्गजों के समान भयानक आकार वाला।

प्रकटितशिखरिशिखरविडम्बना = पर्वत शिखर का अनुकरण करने वाली।

मेघमाला = मेघमाला ने समस्त गगन मण्डल को आच्छादित कर लिया।

समस्तं = पदों में द्वितीया विभक्त हुई है।

परितः = अव्यय है।

परितः = चारों ओर, परितः, अव्यय पद हैं।

प्रादुरभूत् = प्रकट हुई। प्रादुस् + भू लुङ् लकार, प्रथम पुरुष एकवचनम्।

पारस्परिकसंश्लेषेण = (बादलों के) परस्पर मिल जाने से।

पर्यच्छदीत् = ढक लिया है। परि + अच्छदीत्, लुङ् लकार, प्रथमा पुरुष एकवचनम्।

षोडशवर्षदेशीयः = लगभग सोलह साल का। यहां देशीयू प्रत्यय लगा है।

कुञ्चितकुञ्चितैः = घुंघराले। कुञ्च् + क्त प्रत्यय।

कचकलापैः = केश समुहों के द्वारा।

अनुवादः/ भावार्थ:-

आषाढ़ का महीना है। सायं का समय है। अस्त होने की इच्छा वाला भगवान् भास्कर (सूर्य देव) सिन्दूर के घोल में स्नान-सा किए हुए, वरुण-दिशा (पश्चिम दिशा) का आश्रय लिए हुए जलवाहक बादलों में प्रविष्ट हो रहा है। गौरैया पक्षी अपने शिशुओं की चहचहाचट से परिपूर्ण घोंसलों में वापस लौट रहे हैं। वन प्रतिक्षण अधिक और अधिक कालेपन को प्राप्त हो रहे हैं। तभी अकस्मात् चारों ओर मेघ माला पर्वत श्रृंखला की तरह प्रकट हो गई। क्षण भर में ही उन बादलों का सूक्ष्म विस्तार हो गया। मेघमाला ने किसी दूसरे ही पर्वत शिखर का सा रूप धारण कर लिया और वह मेघमाला लम्बी-लम्बी सैंडों से सुशोभित दिग्गजों की सुन्दर दन्तावली के समान भयानक आकार वाली हो गई। फिर बादलों के परस्पर मिल जाने से उत्पन्न घोर अन्धकार ने सम्पूर्ण आकाशमण्डल को पूरी तरह से ढक लिया।

इसी समय लगभग सोलह वर्ष की आयु वाला एक गोरा युवक घोड़े से पर्वत श्रृंखला के ऊपर ऊपर जा रहा था। इसका अच्छा गठा हुआ शरीर था। काले काले, गुच्छेदार, घुंघराले केश समूह से उसकी गालें सुशोभित हो रही थी। दूर से आने के परिश्रम से छोटे-छोटे मोतियों के समूह की भाँति पसीने की बूंदों से उसका ललाट, कपोल, नासिक का अग्रभाग तथा ऊपरी होंठ व्याप्त था। प्रसन्न मुख कमल से जिसके दृढ़ सिद्धान्त का उत्साह प्रकट हो रहा था। वह चाँदी के तार की कढ़ाई के कारण अत्यधिक चमकने वाली एक टेढ़ी बँधी हुई हरी पगड़ी से सुशोभित था। हरे रंग के कुर्ते से ही जिसने गुप्तचर का कार्य स्वीकार हुआ था। इस प्रकार का कोई शिवाजी का विश्वासपात्र (सैनिक) सिंहदुर्ग से उसी (शिवाजी) का पत्र लेकर तोरणदुर्ग की ओर प्रस्थान कर गया।

पाठांशाधारिताः प्रश्नाः--

1. एकपदेन उत्तरत-

क. सायं समये भगवान् भास्करः कुत्र जिगमिषुः भवति ?

ख. के प्रतिक्षणमधिकाधिकां श्यामतां कलमन्ति?

ग. महान्धकारा कं पर्यच्छदीत् ?

घ. गौरी युवा केन पर्वतश्रेणीरुपर्युपरि गच्छति स्म?

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-

क. कस्य विश्वासपात्रं सिंहदुर्गात् तस्मैव पत्रमादाय तोरणदुर्ग प्रयाति?

ख. 'परिपूर्णेषु नीडेषु' अत्र विशेष्यपदं किम्?

3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः-

1. "स्नातानाम्” इति पदे कः विभक्ति?

(क) प्रथमा

(ख) चतुर्थी

(ग) पञ्चमी

(घ) षष्ठी।

2. "नीडेषु" इति पदे कः वचनम् ?

(क) एकवचनम्

(ख) द्विवचनम्

(ग) बहुवचनम्

(घ) अन्य

3. "कलयन्ति" इति पदे कः लकारः?

(क) लट्

(ख) लङ

(ग) लोट्

(घ) लृट्

4. "स्यामता" इति पदे कः प्रत्ययः?

(क) अनीयर्

(ख) तल्

(ग) ल्यप्

(घ) क्त

गद्यांश:-

तावदकस्मादुत्थितो महान् झञ्झावातः, एका सायंसमयप्रयुक्तः स्वभाव-

वृत्तोऽन्धकारः, स च द्विगुणितो मेघमालाभिः।

झञ्झावातोध्तैः रेणुभिः शीर्णपत्रौः

वुफसुमपरागैः शुष्कपुष्पैश्च पुनरेष द्वैगुण्यं प्राप्तः। इह पर्वत-श्रेणीतः पर्वतश्रेणीः, वनाद्

अध्त्यिकातोऽधित्यकाः, उपत्यकात वनानि, शिखराच्छिखराणि प्रपातात् प्रपातान्,

उपत्यकाः, न कोऽपि सरलो मार्गः, नानुद्धेदिनी भूमिः, पन्थाः अपि च नावलोक्यते।

क्षणे-क्षणे हयस्य खुराश्चिक्कण-पाषाण-खण्डेषु प्रस्खलन्ति।

पदे पदे दोधूयमानाः वृक्षशाखाः सम्मुखमाघ्नन्ति, परं दृढसघड्ड

ल्पोऽयं सादी; अश्वारोहीद्ध न स्वकार्याद्

विरमति। परितः स-हडहडाशब्दं दोधूयमानानां परस्सहडस्त्र-वृक्षाणां, वाताघात सञ्जात-

पाषाण-पातानां प्रपातानाम्, महान्ध्तमसेन ग्रस्यमानानामिव सत्त्वानां क्रन्दनस्य च

भयानवेफन स्वनेन कवलीवृफतमिव गगनतलम्। परं "देहं वा पातयेयं कार्यं वा साधयेयम्य्"

इति वृफतप्रतिज्ञोऽसौ निजकार्यान्न विरमति। शिववीरचरो

पदार्थाः/व्याकरणकार्यम् -

कमनीयकपोलपालिः = सुंदर गालों वाला। कमनीये कपोलपाली यस्य सः बहुव्रीहि समास, कम् + अनीयू प्रत्यय।

हयेन = घोड़े से।

स्वेदबिन्दुव्रजेन = पसीने की बूंदों से। समाच्छादितं ललाटकपोलनासाग्रोत्तरोष्ठं यस्य सः बहुव्रीहि समास।

प्रसन्नवदनाम्भोजेन = प्रसन्नमुखकमल से। प्रसन्नवदनाम्भोजप्रदर्शित दृढसिध्दान्तमहोत्साहः- प्रसन्न मुख कमल से दृढ़ सिद्धांत की महोत्सव को प्रकट करने वाला।

राजतसूत्रशिल्पकृतबहुल चाकचक्यवक्रहरितोष्णीषशोभितः - चांदी के तार की कढ़ाई के कारण अत्यधिक चमकने वाली तथा टेढ़ी बांधी हुई हरी पगड़ी से सुशोभित।

आदाय = लेकर। आ + दा + ल्यप् प्रत्यय।

प्रयाति = जाता है। प्र या लट् लकार, प्रथम पुरुष एकवचनम्।

झञ्झावातोध्दूतैः = आंधी से उठी। उत् धू, क्त प्रत्यय।

रेणुभिः = धूलों से।

द्वैगुण्यम् = दुगुना हो गया।

अनुद् भेदिनी = समतल ।

न + उद्भेदिनी = न उद् भिद् इन् + डीप प्रत्यय।

प्रपातात् प्रपाता = झरने के बाद झरने।

अत्धिकातोऽधित्यकाः = अत्यधिका (पर्वत के ऊपर की ऊंची भूमि) के बाद अधित्यकाएं।

उपत्यकात उपत्यकाः = पर्वत के पास की नीची भूमि।

दोधूयमानाः = अत्यधिक हिलाने वाले। धूञ् +यङ् + शान्त प्रत्यय।

आघातः = अभिघात। चोट। आ हन् + क्त प्रत्यय।

महान्धतमसेन = अत्यन्त अन्धकार से।

कवलीकृतम् = ग्रसित होता हुआ। कवल + च्वि + कृत्य प्रत्यय।

आध्नन्ति = आ + हन्। लट् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन

सादी = घुड़सवार।

चिक्कणपाषाणखण्डेषु = चिकने पत्थर खण्डों पर।

साधयेयम् = सिद्ध करूंगा, साध् + णिच् प्रत्यय, लङ् लकार, उत्तम पुरुष एकवचनम्।

पातयेयम् = नष्ट कर दूँगा। पत् + णिच् प्रत्यय, लङ् लकार उत्तम पुरुष एकवचनम्।

अनुवादः/भावार्थाः-

तभी अचानक भारी तूफान उठा। एक तो सायं के समय में होने वाला स्वाभाविक अन्धकार, वह भी बादलों के समूह के कारण दोगुणा हो गया। तूफान से उठी हुई धूलियों, पुराने पत्रों, पुष्पपरागों तथा सूखे पत्तों से (यह अन्धकार) फिर से दुगना हो गया। इधर एक पर्वत श्रृंखला के बाद दूसरी पर्वत श्रृंखला पर, एक वन के बाद दूसरे वन में, एक शिखर के बाद दूसरे शिखर पर, एक झरने बाद दूसरे झरने पर, एक अधित्यका (पर्वत के ऊपर की ऊँची भूमि) के बाद दूसरी अधित्यका पर, एक उपत्यका (पर्वत के पास वाली निचली भूमि) के बाद दूसरी उपत्यका पर (जहाँ) कोई सरल मार्ग नहीं, क्षण-क्षण भर में घोड़े के खुर चिकने पत्थर-खण्डों पर फिसल रहे हैं। पग-पग पर झूलती हुई वृक्ष-शाखाएँ सामने से आघात (प्रहार) करती हैं। परन्तु यह दृढ़ संकल्प वाला घुड़सवार अपने कार्य से रुक नहीं रहा है। चारों ओर हड़ हड़ शन शन के साथ बार-बार झूलते हुए हजारों वृक्षों तूफान की चोट से गिरने वाले पत्थरों से युक्त झरनों तथा घोर अन्धकार से ग्रसे जाते हुए से वन्यप्राणियों की चीख के भयानक शब्द से सम्पूर्ण आकाशमण्डल ही मानो ग्रस लिया गया था। परन्तु 'कार्य सिद्ध करूँगा या शरीर को नष्ट कर दूंगा' ऐसी प्रतिज्ञावाला वह शिवाजी सैनिक अपने कार्य से रुक नहीं रहा है।

पाठांशाधारिताः प्रश्नाः

1. एकपदेन उत्तर -

क. क्षणे-क्षणे कस्य खुशश्चिक्कणपाषाण खण्डेषु प्रस्खलन्ति?

उत्तर- हयस्य

ख. कृत प्रतिसोऽसौ कः निजकार्यान्न विरमति ?

उत्तर- शिववीरचरः

ग. पदे-पदे सम्मुखमाध्नन्ति? दोधूयमानाः काः

उत्तर- वृक्षशाखाः

घ. पाठे कस्य मासस्य वर्णनम् अस्ति?

उत्तर- आषाढमासस्य

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-

क. शिववीरचरः का प्रतिज्ञा कृतवान्?

उत्तर- कार्यं सा साधयेयम् देहं वा पातयेयं इति प्रतिज्ञा शिववीरचरः कुतवान् ।

ख. अकस्मात् कः उत्थितः?

उत्तर- अकस्मात् महान् झञ्झावात्ः उत्थितः ।

3. बहुविकल्पीयाः उत्तरत

1. "आदाय" इति पदे कः प्रत्यय?

(क) क्त

(ख) क्त्वा

(ग) ल्यप्

(घ) इन्

2. "प्रयति" इति पदे कः लकार :?

(क) लट्

(ख) लङ

(ग) लोट्

(घ) लृट्

3. "साधयेयम्" इति पदे क वचनम् ?

(क) एकवचनम्

(ख) द्विवचनम

(ग) बहुवचनम्

(घ) अन्यः

4. "प्रयुक्तः" गति पदे कः उपसर्ग?

(क) प्र

(ख) आ

(ग) प्रति

(घ) उप

अभ्यासः

प्रश्न 1. संस्कृतेन उत्तरं दीयताम् -

(क) सायं समये भगवान् भास्कर: कुत्र जिगमिषुः भवति ?

उत्तर : सायं समये भगवान् भास्करः अस्ति जिगमिषुः भवति ।

(ख) अस्ताचलगमनकाले भास्करस्य वर्णः कीदृशः भवति ?

उत्तर : अस्ताचलगमनकाले भास्करस्य वर्णः सिंन्दूर-द्रव-स्नातानामिव प्रतीयते।

(ग) नीडेषु के प्रतिनिवर्तन्ते ?

उत्तर : कलविङ्काः नीडेषु प्रतिनिवर्तन्ते ।

(घ) शिववीरस्य विश्वासपात्रं किं स्थानं प्रयाति स्म ?

उत्तर :  शिववीरस्य विश्वासपात्रं तोरणदुर्गं प्रयाति स्म।

(ङ) प्रतिक्षणमधिकाधिका श्यामतां कानि कलयन्ति ?

उत्तर : प्रतिक्षणमधिकाधिकां श्यामतां वनानि कलयन्ति।

(च) शिववीरविश्वासपात्रस्य उष्णीषम् कीदृशमासीत् ?

उत्तर : शिववीरविश्वासपात्रस्य उष्णीषं राजतसूत्र-शिल्पकृत बहुल - चाक चक्य-वक्र-हरितम् आसीत्।

(छ) मेघमाला कथं शोभते ?

उत्तर : पर्वतश्रेणीव।

प्रश्न 2. समीचीनोत्तरसङ्ख्यां कोष्ठके लिखत -

अ. शिवराजविजयस्य रचयिता कः अस्ति ?

(क) बाणभट्टः

(ख) श्रीहर्षः

(ग) अम्बिकादत्तव्यासः

(घ) माघः

आ. कतिवर्षदेशीयो युवा हयेन पर्वतश्रेणीरुपर्युपरि गच्छति स्म।

(क) चतुर्दशवर्षदेशीयः

(ख) द्वादशवर्षदेशीयः

(ग) पञ्चदशवर्षदेशीयः

(घ) षोडशवर्षदेशीयः

इ. शिववीरस्य विश्वासपात्रं किम् आदाय तोरणदुर्गं प्रयाति ?

(क) संवादम् आदाय

(ख) पत्रम् आदाय

(ग) पुष्पगुच्छम् आदाय

(घ) अश्वम् आदाय

प्रश्न 3. रिक्तस्थानानि पूरयत।

(क) अथाकस्मात् परितो मेघमाला पर्वतश्रीणीव: इव प्रादुरभूत्।

(ख) क्षणे क्षणे समस्त खुराश्चिक्कणपाषाणखण्डेषु प्रस्खलन्ति।

(ग) पदे पदे दोधूयमानाः वृक्षशाखाः सम्मुखमाघ्नन्ति।

(घ) कृतप्रतिज्ञोऽसौ शिववीरचरः निजकार्यान्न विरमति।

प्रश्न 4. अधोलिखितानां पदानाम् अर्थान् विलिख्य वाक्येषु प्रयुञ्जत

भास्करः मेघमाला, वनानि, मार्गः वीरः, गगनतलम्, झञ्झावातः मासः, सायम्।

(क) भास्करः (सूर्यः) - पूर्वदिशायां भास्करः उदयति।

(ख) मेघमाला (मेघसमूहः) - मेघमाला आकाशम् आच्छादयति।

(ग) वनानि (अरण्यानि) - नगरं परितः वनानि सन्ति।

(घ) मार्गः (पन्थाः) - महान्धकारे मार्गः न अवलोक्यते।

(ङ) वीरः (वीर्यवान्) - युद्धे वीरः एव जयति।

(च) गगनतलम् (आकाशतलम्) - रात्रौ अन्धकार: गगनतलम् आच्छादयति।

(छ) झञ्झावातः (वात्याचक्रम्, 'तूफान' इति हिन्दीभाषायाम्) - सहसा झञ्झावातः प्रादुरभवत्।

(ज) मासः ('महीना' इति हिन्दी भाषायाम्) - मासोऽयम् आषाढः।

(झ) सायम् (सन्ध्यासमय:) - सायं समये भगवान् भास्करः अस्तं गच्छति।

प्रश्न 5. अधोलिखितानां पदानां सन्धिच्छेदं कृत्वा सन्धिनिर्देशं कुरुत

तस्यैव, शिखराच्छिखराणि, कोऽपि, प्रादुरभूत्, अथाकस्मात्, कार्यान्न।

(क) तस्यैव  = तस्य + एव, वृध्दि सन्धि

(ख) शिखराच्छिखराणि = शिखरात् + शिखराणि, हल् सन्धि

(ग) कोऽपि = कः + अपि, विसर्ग सन्धि

(घ) प्रादुरभूत् = प्रादुः + अभूत्, विसर्ग सन्धि

(ङ) अथाकस्मात् = अथ + अकस्मात्, दीर्घ सन्धि

(च) कार्यान्न = कार्यात् + न, हल् सन्धि।

प्रश्न 6. अधोलिखितानां पदानां प्रकृतिप्रत्ययविभागं प्रदर्शयत -

प्रयुक्तः, उत्थितः, उत्प्लुत्य, रुतैः, उपत्यकातः, उत्थितः, ग्रस्यमानः।

(क) प्रयुक्तः = प्र + युद्ध + क्त प्रत्यय

(ख) उत्थितः = उत् + स्थान + क्त प्रत्यय

(ग) उत्प्लुत्य = उत् + प्लु + ल्यप् प्रत्यय

(घ) रुतैः = रुत् + तृतीया विभक्त बहुवचनम्।

(ङ) उपत्यकातः = उपत्यका + तसिल् प्रत्यय।

(च) 'ग्रस्यमानः = ग्रस् + शानच् प्रत्यय

प्रश्न 7.  अलङ्कारनिर्देशं कुरुत -

(1) वदनाम्भोजेन - रुपकः अलङ्कारः

(2) दिगन्तदन्तावल: - अनुप्रासः अलङ्कारः

(3) सिन्दूरद्रवस्नातामिव वरुणदिगवलम्बिनाम् - उत्प्रेक्षा अलङ्कारः

प्रश्न 8. विग्रहवाक्यं विलिख्य समासनामानि निर्दिशत -

मेघमाला, महान्धकारः, पवर्तश्रेणी:, महोत्साहः, विश्वासपात्रम्, हरितोष्णीषशोभितः।

(क) मेघमाला = मेघानां माला, षष्ठी तत्पुरुष समास।

(ख) महान्धकारः = महान् चासौ अन्धकारः, कर्म धारण समास।

(ग) पर्वतश्रेणी: = पर्वतानां श्रेणीः, षष्ठी तत्पुरुष समास

(घ) महोत्साहः = महान् चाहौ उत्साहः, कर्मधारय समास

(ङ) विश्वासपात्रम् = विश्वासस्य पात्रम्, षष्ठी तत्पुरूष समास

(च) हरितोष्णीषशोभितः = हरितं यत् उष्णीषं तेन शोभितः, बहुव्रीहि समास

प्रश्न 9. पाठ्यांशस्य सारं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत -

उत्तर : प्रस्तुत पाठ 'कार्यं वा साधेययम् देहं वा पातयेयम्' संस्कृत के आधुनिक गद्यकार पं० अम्बिकादत्त व्यास के प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास 'शिवराजविजयः' के प्रथम विराम के चतुर्थ निःश्वास से संकलित है। इस पाठ्यांश में शिवाजी का एक विश्वासपात्र गुप्तचर 'कार्य वा साधयेयम्, देहं वा पातयेयम्'- 'कार्य सिद्ध करूँगा या देह त्याग कर दूंगा' इस दृढ़ संकल्पपूर्वक सिंह दुर्ग से शिवाजी का पत्र लेकर तोरण दुर्ग की ओर प्रस्थान करता है।

मार्ग में भयंकर प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं, परन्तु वीर सैनिक अपनी कार्यसिद्धि करके ही विश्राम लेता है। आषाढ़ का महीना है। सायं का समय है। सूर्य अस्त हो रहा है। गौरैया पक्षी अपने घोंसलों की ओर लौट रहे हैं। प्रकाश के अभाव में वन वृक्ष और भी काले हुए जा रहे हैं। तभी अचानक आकाश बादलों से ढक जाता है। चारों ओर धरती से आकाश तक घोर अन्धकार का साम्राज्य हो जाता है। बादल ऐसे भयावह लग रहे हैं। मानों वे कोई लम्बी-लम्बी सूँड वाले दिग्गज हों और उनका विशाल दन्तसमूह उन्हें भयानक आकार दे रहा हो।

उसी समय लगभग सोलह वर्ष की आयु वाला गौरवर्ण युवक (गौरसिंह) घोड़े पर सवार होकर पर्वतों को पार करता हुआ जा रहा है। इसका गठा हुआ शरीर है, काले धुंघराले बाल हैं, सुन्दर मुखमण्डल परिश्रम के कारण पसीने से नहाया हुआ है। कमल की भाँति खिले हुए मुख से उसका दृढ़ उत्साह प्रकट हो रहा है। उसकी हरे रंग की पगड़ी में चाँदी के तारों से कढ़ाई की हुई है। हरे रंग का कुर्ता है। शिवाजी का अत्यन्त विश्वासपात्र यह गुप्तचर सिंहदुर्ग से शिवाजी का ही पत्र लेकर तोरणदुर्ग की ओर प्रस्थान कर रहा है।

तभी अचानक भयंकर तूफान उठता है। बादलों की घटाएँ, तूफान से उठी धूल तथा सूखे पत्ते मिलकर सायंकाल के अन्धकार को कई गुणा कर देते हैं। पर्वत, जंगल, पानी के झरने, पर्वतों के शिखर और तलहटियाँ, ऊबड़-खाबड़ भूमि, कोई सीधा सरल मार्ग नहीं, कोई समतल भूमि नहीं, इन सबसे बढ़कर घोर अंधकार जिसमें वह भयंकर रास्ता कार्य वा साधयेयम, देहं वा पातयेयम् भी दिखाई नहीं पड़ता। थोड़ी-थोड़ी देर बाद चिकने पत्थरों से घोड़ों के खुर टकराकर फिसल जाते हैं।

पग पर वृक्षों की झूलती हुई शाखाएँ सामने से आ टकराती हैं, परन्तु शिवाजी का यह वीर सैनिक अपने कार्य से विराम नहीं लेता। चारों ओर से हड़-हड़ की आवाज़ के साथ हज़ारों वृक्षों, तूफान से टकराकर झरनों में गिरने वाले पत्थरों तथा घने अन्धकार का ग्रास बन रहे वन्यप्राणियों के चीत्कार से सारा आकाश व्याप्त है। परन्तु शिवाजी का यह दृढ़प्रतिज्ञ गुप्तचर अपने कार्य से न रुका। 'कार्य वा साधयेयम्, देहं वा पातयेयम्'- 'कार्य सिद्ध करूँगा या देह का त्याग कर दूंगा।' शिवाजी के इस दृढ़ संकल्प को अपना संकल्प बनाते हुए इस वीर सैनिक ने कार्य सिद्ध करके ही विश्राम लिया।

इस अंश की भाषा एवं शब्दावली भावों के अनुरूप ओजस्विनी है। पाठ्यांश का स्पष्ट सन्देश है-निर्भयतापूर्वक कठोर परिश्रम ही सफलता की कुञ्जी है।

प्रश्न 10. पाठ्यांशे प्रयुक्तानि अव्ययानि चित्वा लिखत -

उत्तर :

च (और)

सायम् (सायंकाल)

इव (की तरह, मानो)

अथ (इसके बाद, फिर)

अकस्मात् (अचानक)

परितः (चारों ओर)

परतः (दूसरी ओर)

ततः (उसके बाद)

उपर्युपरि (ऊपर-ऊपर)

एव (ही)

अपि (भी)

तावत् (तभी)

अकस्मात् (अचानक)

पुनः (फिर)

इह (यहाँ, इस विषय में)

न (नहीं)

परम् (परन्तु)

वा (अथवा, या)

इति (यह, इसप्रकार)

प्रतिक्षणम् (पल-पल)

आदाय (लेकर)

पर्वतश्रेणीतः (पर्वतश्रेणी से)

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

विषय सूची

अध्याय-1 विद्ययामृतमश्नुते (विद्या से अमृतत्व की प्राप्ति होती है)

अध्याय-2 रघुकौत्ससंवादः

अध्याय-3 बालकौतुकम्

अध्याय-4 कर्मगौरवम्

अध्याय-5 शुकनासोपदेशः (शुकनास का उपदेश)

अध्याय-6 सूक्तिसुधा

अध्याय-7 विक्रमस्यौदार्यम् (विक्रम की उदारता)

अध्याय-8 भू-विभागाः

अध्याय-9 कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम् (कार्य सिद्धकरूँगा या देह त्याग दूँगा)

अध्याय-10 दीनबन्धु श्रीनायारः

अध्याय-11 उद्भिज्ज परिषद् (वृक्षों की सभा)

अध्याय-12 किन्तोः कुटिलता (किन्तु शब्द की कुटिलता)

अध्याय-13 योगस्य वैशिष्ट्यम् (योग की विशेषता)

अध्याय-14 कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् (शब्दों का अनुशासन(प्रयोग) कैसे करना चाहिए)

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषयानुक्रमणिका

क्रम.

पाठ का नाम

प्रथमः पाठः

विद्ययाऽमृतमश्नुते

द्वितीयः पाठः

रधुकौत्ससंवादः

तृतीयः पाठः

बालकौतुकम्

चतुर्थः पाठः

कर्मगौरवम्

पंचमः पाठः

शुकनासोपदेशः

षष्ठः पाठः

सूक्तिसुधा

सप्तमः पाठः

विक्रमस्यौदार्यम्

अष्टमः पाठः

भू-विभागाः

नवमः पाठः

कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम्

दशमः पाठः

दीनबन्धुः श्रीनायारः

एकादशः पाठः

उद्भिज्ज -परिषद्

द्वादशः पाठः

किन्तोः कुटिलता

त्रयोदशः पाठः

योगस्य वैशिष्टयम्

चतुर्दशः पाठः

कथं शब्दानुशासनं कर्तव्यम्

JAC वार्षिक माध्यमिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर

Sanskrit Solutions शाश्वती भाग 2













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