(वित्त आयोग की भूमिका, 73वें और 74वें संविधान संशोधन के वित्तीय पक्ष।)
भारतीय संविधान में केन्द्र एवं राज्यों के मध्य
मुख्यतः तीन प्रकार केसम्बन्धों की व्यवस्था दी गई है। यथा-
(A) विधायी सम्बन्ध (Legislative Relations)
(B) प्रशासनिक सम्बन्ध (Administrative Relations)
(C) वित्तीय सम्बन्ध (Financial Relations)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 264 से 293 में
केन्द्र एवं राज्य सरकारों के वित्तीय सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या की गई है । वे
कर जिनका अन्त:राज्यीय आधार है, केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाते हैं, जबकि स्थानीय
आधार वाले कर राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाते हैं। अवशिष्ट अधिकार (Residual Powers) केन्द्र सरकार को प्राप्त है।
केन्द्रीय राजस्व का वितरण
संविधान की सातवीं अनुसूची में केन्द्र एवं
राज्यों के बीच वित्तीय स्त्रोतों का विभाजन किया गया है। सातवीं अनुसूची की प्रथम
लिस्ट में उन करों का वर्णन है, जो पूर्णतया केन्द्र द्वारा लगाए जाते हैं। इन्हें
संघीय कर (Union Taxes) कहते हैं। दूसरी लिस्ट में उन करों का वर्णन है, जो
पूर्णतया राज्यों के अधिकार में आते हैं, इन्हें राज्य के कर (State Taxes) कहते हैं। राज्यों के राजस्व में योगदान हेतु राज्यों को ऐच्छिक वित्तीय सहायता भी केन्द्र
हस्तांतरित करता है। उपर्युक्त दो सूचियों के अतिरिक्त संविधान में एक तीसरी
समवर्ती सूची भी है जिसमें वर्तमान में 52 विषय सम्मिलित हैं।
(1) संघीय कर-संविधान की सप्तम अनुसूची की प्रथम सूची में उल्लेखित मद संख्या 82 से 92A
तक के कर संघीय कर हैं। इस प्रथम सूची को संघीय सूची (Union List) भी कहा जाता है।
ज्ञातव्य है कि उक्त सूची में वर्णित करों का उल्लेख केन्द्र सरकार के प्रत्यक्ष
और अप्रत्यक्ष करों में किया गया है।
(2) कर-ये कर राज्य सरकारों द्वारा ही आरोपित किए जाते हैं और उन्हीं के द्वारा संगृहीत किए जाते हैं। संविधान की अनुसूची सात की द्वितीय सूची की मद संख्या 45 से 63 में राज्य सरकारों के कर अधिकारों का विवरण है। यदि राज्य चाहे तो उनके द्वारा यह अधिकार केन्द्रीय सरकार को हस्तांरित किया जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में केन्द्र द्वारा कर संगृहीत कर उस राज्य सरकार को कर राजस्व दे दिया जाता है। भारत में प. बंगाल और जम्मू-कश्मीर के अलावा समस्त राज्य सरकारों ने कृषि भूमि पर सम्पदा शुल्क वसूल करने का अधिकार केन्द्रीय सरकार को दे रखा है। ज्ञातव्य है कि राज्य करों का भी उल्लेख प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों में किया गया है।
गैर-कर राजस्व का वितरण
(अ) केन्द्रीय
सरकार के गैर-कर राजस्व में
निम्नलिखित क्षेत्रों से
प्राप्त आय को सम्मिलित
किया जाता है-
(1) रेलवे, (2) पोस्ट तथा टेलीग्राफ, (3) प्रसारण, (4) अफीम, (5) चलन एवं टकसाल, (6) केन्द्रीय सरकार के औद्योगिक एवं वाणिज्यिक उपक्रम, जोकि
केन्द्रीय सरकार के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत आते हैं।
(ब) राज्य
सरकारों के गैर-कर राजस्व में
निम्नलिखित क्षेत्रों से
प्राप्त आमद को सम्मिलित
किया जाता है। यथा
(1) वन, (2) सिंचाई, (3) वाणिज्यिक एवं औद्योगिक उपक्रम, जोकि राज्य सरकार के
क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत आते हैं, (4) गहरे समुद्री क्षेत्रों में मत्स्यपालन
तथा सिल्क आदि।
राज्यों को आय हस्तांतरण
भारतीय संविधान में राज्यों की वित्तीय अल्पता के परिप्रेक्ष्य
में आय हस्तांतरण के तीन प्रमुख माध्यम हैं : (1) कुछ केन्द्रीय करों में हिस्सा देना,
(2) सहायतार्थ अनुदान और (3) जनोपयोगी कार्यों के लिये ऋण।
कर विभाजन
संविधान में कर विभाजन की चार प्रमुख रीतियाँ
दिखाई गयी हैं-
1. संविधान के
अनुच्छेद 268 में उन करों का उल्लेख किया गया है जो केन्द्र द्वारा लगाये
जाते हैं, परन्तु राज्य सरकारों द्वारा एकत्र तथा प्रयुक्त किये जाते हैं। स्टाम्प
शुल्क इस श्रेणी का कर है।
2, संविधान के
अनुच्छेद 269 में उन करों का विश्लेषण किया गया है जो केन्द्र द्वारा लगायें और
एकत्र किये जाते हैं। परन्तु जिनसे प्राप्त समस्त राजस्व राज्यों को सौंप दिया
जाता है। इस श्रेणी में उत्तराधिकार एवं सम्पदा शुल्क, सवारियों पर सीमा कर, रेल भाड़ा
और सवारियों पर कर, साझा बाजार में किये गये सौदों पर कर आदि मुख्य हैं।
3. संविधान के
अनुच्छेद 270 में उन करों का विश्लेषण है जो केन्द्र सरकार द्वारा लगाये और
एकत्र किये जाते हैं, परन्तु जिनसे प्राप्त राजस्व राज्यों में बाँट दिया जाता है।
यथा-आयकर से प्राप्त आय।
4. संविधान के
अनुच्छेद 272 में उन करों का उल्लेख किया गया है जो केन्द्र सरकार द्वारा
लगाये और एकत्र किये जाते हैं, परन्तु संसद की स्वीकृति पर राज्यों में इसका कुछ
अंश बाँटा जाता है। यथा-संघीय उत्पादन शुल्क।
कर विभाजन के लिये की गई उपरोक्त व्यवस्था में
प्रथम दो स्पष्ट रूप से केन्द्र और राज्य सरकार के मध्य वित्तीय समायोजन की
प्रक्रिया पर प्रकाश नहीं डालते हैं और उसे प्रभावित नहीं करते हैं। इस प्रकार के
करों के सन्दर्भ में विभिन्न राज्यों की प्राप्ति सुनिश्चित रहती है। यहाँ केन्द्र
सरकार केवल एजेन्सी के माध्यम से कार्य सम्पादन करती है और इस प्रक्रिया से कर भार
न्यूनतम करने और समरूपता लाने में सहायता मिलती है। वस्तुतः तृतीय और चतुर्थ वर्ग
में आने वाले कर स्रोत ही केन्द्र और राज्य सरकारों में वित्तीय समायोजन की
प्रक्रिया को आधारित रूप से प्रभावित करते हैं। संविधान के अनुच्छेद 270 के अनुसार
कृषि को छोड़कर अन्य आयों पर लगाया जाने वाला कर विभिन्न राज्यों में विभक्त किया
जाता है।
संविधान (80वां संशोधन) अधिनियम 2000 के पूर्व
आयकर (अनुच्छेद 270) और केन्द्रीय उत्पादन शुल्क (अनुच्छेद 272) विभाज्य श्रेणी में थे। आयकर की हिस्सेदारी
अनिवार्य है जबकि केन्द्रीय उत्पादन शुल्क में हिस्सेदारी विवेकाधीन रही है। 80वें
संविधान संशोधन से विभाज्य करों और विभाजन प्रक्रिया में आधारभूत परिवर्तन हो गया।
इस संशोधन ने सभी केन्द्रीय करों को विभाज्य निकाय (अनुच्छेद 270) की श्रेणी में
ला दिया है। अब अनुच्छेद 268 और 269 के करों और अलग किये हुए उपकरों (Cess)
और अधिभार (अनुच्छेद 271) को छोड़कर सभी केन्द्रीय करों को विभाज्य निकाय में ला दिया
गया है। विभाजन की इस योजना को दसवें वित्त आयोग ने संस्तुति की और ग्यारहवें
वित्त आयोग ने लागू किया।
संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार सेवाओं पर कर
लगाने की शक्ति केन्द्र सरकार को प्रदान की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 268A के
अनुसार सेवा कर वित्त आयोग की सीमा से बाहर हैं संविधान के 88वें संशोधन के
अधिसूचित होने के बाद यदि सेवा कर के लिये कोई कानून बनाया जाता है तो उसमें यह
अवश्य सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि कानून के अंतर्गत राज्यों द्वारा प्राप्त
किया जाने वाला राजस्व उस हिस्से से कम नहीं होना चाहिये जो उस स्थिति में राज्य
को मिलता जबकि समूचे सेवा कर से प्राप्त राशि विभाज्य राशि का हिस्सा होती।
सहायता अनुदान
संविधान के अनुच्छेद 275 के प्रावधान के अनुसार
संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह भारत की संचित निधि से राज्यों को सहायतार्थ
अनुदान प्रदान कर सकती है। सहायतार्थ अनुदानों द्वारा विभिन्न राज्यों के बीच
विद्यमान संसाधन असमानताओं को घटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 282 के
अनुसार यह प्रावधान है कि केन्द्र सरकार किसी सामाजिक कार्य हेतु अनुदान प्रदान कर
सकती है। राज्यों की बढ़ती हुई जरूरतों के कारण सहायता अनुदानों का महत्वपूर्ण
स्थान हो गया है। ये अनुदान वित्त की कमी के अतिरिक्त और गैर-योजनागत कार्यों के
लिए होते हैं। गैर योजनागत कार्यों के लिये अनुदान वित्त आयोग की सिफारिशों के
अनुसार दिया जाता है और योजनागत कार्यों के लिये अनुदान सामान्यतः योजना अयोग
द्वारा आबंटित किया जाता है।
• केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को दिए जाने वाले अनुदानों के लिए पात्र राज्यों की पहचान के लिए नए सूचकों के निर्धारण के लिए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. रघुराम राजन की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति का गठन केन्द्र सरकार ने मई 2013 में किया था। समिति की रिपोर्ट सरकार ने 26 सितम्बर, 2013 को सार्वजनिक की है। रिपोर्ट में पिछड़े राज्यों को दिए जाने वाले अनुदान 'पिछड़ेपन के एक नए सूचकांक' (Index Of Backwardness) के आधार पर उपलब्ध कराने की संस्तुति की गई। प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय (Monthly Per Capita Consumption Expenditure), शिक्षा, स्वास्थ्य, आवासीय सुख-सुविधाओं, निर्धनता दर, महिला साक्षरता, कुल जनसंख्या में अनु. जाति/जनजाति की जनसंख्या का प्रतिशत, शहरीकरण, वित्तीय समावेषण व फिजीकल कनेक्टिविटी सहित 10 समान भारांश वाले सूचकों के औसत के आधार पर तैयार किए गए इस पिछड़ेपन सूचकांक के आधार पर देश के सभी 28 राज्यों को तीन विभिन्न श्रेणियों में समिति ने वर्गीकृत किया था। इनमें 10 राज्यों को सर्वाधिक पिछड़े राज्यों की श्रेणी में रखा गया था। अधिकतम । मूल्य वाले सूचकांक में इन राज्यों का पिछड़ापन सूचकांक 0.6 से अधिक बताया गया तथा इनमें सर्वाधिक पिछड़ा राज्य ओडिशा को माना गया, जिसके पश्चात् क्रमश: बिहार, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ का स्थान है।
11 राज्यों जिनका पिछड़ापन सूचकांक 0.4 से 0.6 के बीच है, को कम विकसित (Less Developed) राज्य
के रूप में राजन समिति ने वर्गीकृत किया है। 0.4 से कम सूचकांक वाले 7 राज्यों को
अपेक्षाकृत विकसित' (Relatively Developed) राज्यों के रूप में समिति ने वर्गीकृत किया है। इनमें गोवा को सर्वाधिक विकसित
राज्य अपने नए सूचकांक के आधार पर समिति ने बताया है। जबकि उसके बाद के तीन स्थान
क्रमशः केरल, तमिलनाडु व पंजाब के हैं।
राज्यों को ऋण (Loan to the States)
संविधान के अनुच्छेद 292 के अनुसार संसद द्वारा
बनायी गयी विधि की सीमा के अंतर्गत भारत की संचित निधि की साख पर देश के भीतर, विदेशों
से अथवा अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक संस्थाओं से केन्द्र सरकार को ऋण लेने की सामर्थ्य
का प्रावधान है। राज्य सरकारें केन्द्र सरकार से ही ऋण ले सकती हैं। राज्य सरकारें
विदेशों से संचित निधि के साख पर ऋण नहीं ले सकती हैं। योजनाकाल में विभिन्न राज्य
सरकारों ने अनुच्छेद 293 के अंतर्गत केन्द्र सरकार से ऋण लिये हैं।
संविधान के अनुच्छेद 293 के अन्तर्गत केन्द्र
सरकार आवश्यकता पड़ने पर राज्य सरकारों को ऋण सुविधा प्रदान कर सकती है। हाल केवर्षों में राज्यों द्वारा केन्द्रीय सरकार से मांगे जाने वाले वार्षिक
औसतउधार की राशि सतत बढ़ती जा रही है। इनके अतिरिक्त
केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय सम्बन्धों को अधिक प्रभावी बनाने के निमित्त और
राज्यों की बढ़ती वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने विवेकाधिकार से भी
वित्तीय हस्तांतरण करना आरम्भ किया है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि केन्द्र
सरकार से राज्य सरकारों को वित्त आयोग और योजना आयोग की सिफारिशों के अनुसार तथा
केन्द्र सरकार के स्वयं विवेकाधिकार से वित्तीय संसाधन हस्तांतरित होते हैं।
वित्त आयोग
केन्द्र से राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण हेतु
दिशा निर्देश सुझाने हेतु वित्त आयोग (Finance Commission) का गठन किया जाता है।
संविधान के अनुच्छेद 280(1) में यह व्यवस्था है कि राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक
पाँच वर्ष के पश्चात् या आवश्यकता पड़ने पर उससे पूर्व एक वित्त आयोग का गठन किया
जाएगा जिसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त चार अन्य सदस्य होंगे। अनुच्छेद 280(2) के
अनुसार आयोग का कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को निम्नलिखित के सम्बन्ध में अपनी
संस्तुतियाँ दे-
1. केन्द्र तथा राज्यों के बीच विभाजनीय करों से प्राप्त शुद्ध राजस्व का वितरण तथा इसमें विभिन्न
राज्यों का हिस्सा।
2. भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) में से राज्यों को दिए जाने वाले अनुदानों (Grants-in-Aid) के लिए सिद्धान्त।
3. सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को निर्दिष्ट किया गया अन्य कोई मामला।
उपर्युक्त संदर्भ में ही भारत में अब तक 13 वित्त
आयोगों का गठन किया जा चुका है। पहले वित्त आयोग का गठन 1951 में श्री के.सी. नियोगी
की अध्यक्षता में किया गया था।
आयोगों द्वारा दी गई सिफारिशों को तीन शीर्षकों के
अन्तर्गत विभाजित किया जा सकता है-
(a) आय कर तथा अन्य करों का विभाजन तथा वितरण।
(b) अनुदान
(c) संघ द्वारा राज्यों को दिए गए ऋण।
14वाँ वित्त
आयोग
2015-20 की अवधि में केन्द्र एवं राज्यों के बीच वित्त के बँटवारे के लिए दिशा-निर्देश सझाने के लिए
जनवरी 2013 में गठित 14वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को 15 दिसम्बर, 2014
को प्रस्तुत कर दी थी। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. वाई.वी. रेड्डी की
अध्यक्षता वाले इस आयोग की रिपोर्ट सरकार ने एक्शन टेकिन रिपोर्ट (AIR) के साथ 24
फरवरी, 2015 को संसद में प्रस्तुत की। ध्यातव्य है कि इस रिपोर्ट की सिफारिशें 31
मार्च, 2020 तक कार्यान्वित रहेगी। यहाँ प्रस्तुत है आयोग की सिफारिशों का परीक्षोपयोगी
अंश। यथा
• 14वें वित्त आयोग ने केंद्रीय विभाज्य पूल में राज्यों का अंश वर्तमान 32 प्रतिशत से बढ़ाकर मूलत: 42 प्रतिशत कर दिया है, जो ऊर्ध्वाधर अंतरण में अब तक का सबसे अधिक है। ज्ञातव्य है कि विगत् 12वें (अवधि 2005-2010) और 13वें (अवधि 2010-2015) वित्त आयोगों ने केंद्रीय विभाज्य पूल में राज्य का हिस्सा क्रमश: 30.5 प्रतिशत और 32 प्रतिशत की सिफारिश की थी।
• राज्यों को दिए जाने वाले राजस्व के अन्तर्राज्यीय
विभाजन के लिए सम्बन्धित राज्य की 1971 की जनसंख्या, तत्पश्चात् जनसंख्या में हुई वृद्धि
आय-दूरी (Income Distance) व वनाच्छादन (Forest Cover) क्षेत्रफल का ध्यान में
रखते हुए फॉर्मूला आयोग ने निर्धारित किया है।
• स्थानीय निकायों के लिए राज्यों को दिए जाने वाले अनुदानों के लिए 2011 की जनसंख्या को 90 प्रतिशत तथा क्षेत्रफल को 10 प्रतिशत भारांश आयोग ने दिया है।
• नगर पालिकाओं के सम्बन्ध में मूल एवं निष्पादन अनुदान
में बंटवारा 80 : 20 के अनुपात में होगा।
• 14वें वित्त आयोग ने सिफारिश की है कि राज्य आपदा राहत निधि (SDRF) में सभी राज्यों का योगदान 10 प्रतिशत तथा केंद्र का योगदान 90 प्रतिशत होगा।
• आयोग ने राज्यों के राजस्व घाटों की आपूर्ति के लिए
जहां 1,94,281 करोड़ रुपये के अनुदान की सिफारिश की है वहीं वस्तु एवं सेवा कर
(GST) लागू होने के बाद पहले तीन वर्षों में राज्यों का 100 प्रतिशत क्षतिपूर्ति, चौथे वर्ष में 75
प्रतिशत क्षतिपूर्ति तथा पांचवें एवं अंतिम वर्ष में 50 प्रतिशत क्षतिपूर्ति का
भुगतान करने की अनुसंशा की गई है।
73वें व 74वें संविधान संशोधन के वित्तीय पहलू
वित्तीय परिपेक्ष्य में 73वां संवैधानिक संशोधन:
अनुच्छेद 243ज के अधीन राज्य विधान मंडल विधि बनाकर पंचायतों को अपनी सीमा में कर
शुल्क, पथकर और फीसें अधिरोपित करने, संग्रहित और विनियोजित करने की शक्ति प्रदान
करता है। ऐसी विधि में उपर्युक्त कार्यों के लिए प्रक्रिया, शर्ते, प्रयोजनों का
उल्लेख भी होगा। पंचायतों के लिए राज्य संचित निधि (State consolidated fund) में से सहायता अनुदान (grant in aid) देने का उपबंध करता है। पंचायतों द्वारा प्राप्त सभी धनों के जमा करने के लिए
निधियों का गठन करता है जिसमें से पंचायतें धन को निकालकर व्यय (spend) करती हैं।
74वां संवैधानिक
संशोधन
अनुच्छेद 243(भ) के अनुसार राज्य का विधानमंडल
विधि द्वारा निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान कर सकता है-
• ऐसी प्रक्रिया के अनुसार और ऐसी शर्तों और सीमाओं के अधीन रहते हुए कर, शुल्क, पथकर और फीसें
उद्गृहीत और विनियोजित करने के लिए प्राधिकृत कर सकता है।
• नगरपालिकाओं के लिए राज्य की संचित निधि में से सहायता अनुदानों (grant in aid) के लिए उपबंध।