संक्षिप्त इतिहास-देश के संगठित उद्योगों में चीनी उद्योग का स्थान तीसरा है। चीनी उद्योग भारत का अत्यन्त प्राचीन उद्योग है परन्तु आधुनिक ढंग से चीनी का उत्पादन वर्तमान शताब्दी के आरम्भ से ही शुरू हुआ है। प्रथम चीनी मिल तो सन् 1903 में स्थापित हुई परन्तु भारतीय चीनी उद्योग के विकास का इतिहास वस्तुत: 1921 से ही आरम्भ होता है, जबकि इस उद्योग को सरकार द्वारा संरक्षण प्रदान किया गया। संरक्षण मिलने के पश्चात् चीनी मिलों तथा उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी। सन् 1931-32 ई. में भारत में चीनी के केवल 32 कारखाने थे जिनका उत्पादन केवल 1.6 लाख टन था। देश की आन्तरिक माँग की पूर्ति के लिए लगभग 6 लाख टन चीनी आयात की जाती थी परन्तु सन् 1939-40 में कारखानों की संख्या बढ़कर 145 और उत्पादन 12.4 लाख टन हो गया। इससे स्पष्ट है कि चीनी उद्योग को संरक्षण से पर्याप्त लाभ हुआ। संरक्षण के कारण चीनी उद्योग के विकास को देखते हुए कहा जाता है कि भारतीय चीनी उद्योग संरक्षण का शिशु है। सन् 1950 में यह संरक्षण समाप्त कर दिया गया। संक्षेप में, चीनी उद्योग सन् 1932 से 1950 तक 18 वर्षों तक संरक्षण के अधीन रहा और इस काल में उद्योग ने बहुत उन्नति की।
योजनाओं
में उद्योग की प्रगति योजना काल में उद्योग के विकास के लिए दो बातों पर ध्यान
दिया गया। एक तो मिलों का कुल उत्पादन बढ़े जिससे उपभोक्ताओं को चीनी पर्याप्त
मात्रा में मिल सके। दूसरी, नये-नये कारखाने और खोले जायें जिससे उत्पादन को
बढ़ाकर कुल चीनी का निर्यात कर सकें और दुर्लभ विदेशी मुद्रा को कमा सकें। इस काल
में मिलों की संख्या बढ़ी है। उनका उत्पादन बढ़ा है। मिलों की कुल क्षमता में
वृद्धि हुई है। चीनी ने निर्यात में भी स्थान प्राप्त कर लिया है।
चीनी उद्योग की वर्तमान स्थिति (Present Position of Sugar
Industry)
1. मिलों की संख्या (Number of Mills) अगस्त
2015 तक देश में कार्यरत् चीनी मिलों की संख्या 698 थी, (जबकि 1950-51 में इनकी संख्या
138 थी) जिसमें 324 मिलें सहकारी क्षेत्र में 62 मिलें सरकारी क्षेत्र में और 312 मिलें
निजी क्षेत्र में हैं।
2. उत्पादन (Production) वर्ष 2014-15 में देश में
चीनी का उत्पादन 27.9 लाख टा हुआ वर्ष 2015-16 में यह 25.3 लाख टन आकलित किया गया है।
वर्ष 2016-17 में 32.2 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ। भारत विश्व में ब्राजील के बाद
चीनी उत्पादन करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है।
3. उद्योग का स्थानीयकरण (Localisation of Industry)—महाराष्ट्र
देश के कुल चीनी उत्पादन में एक तिहाई से अधिक (32%) का योगदान करता है। 30 प्रतिशत
योगदान के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है। तमिलनाडु तथा कर्नाटक देश के दो अन्य
प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य हैं।
4. चीनी की खपत (Consumption ol Sugar)—चीनी
की वार्षिक खपत 188 लाख टन है जिसमें से 46 लाख टन की आपूर्ति सार्वजनिक वितरण प्रणाली
के माध्यम से की जाती है।
5. सरकारी नीति (Government Policy)-20
अगस्त, 1998 को केन्द्र सरकार ने चीनी उद्योग पर 1931 से लागू लाइसेन्स व्यवस्था समाप्त
कर दी, किन्तु दो चीनी मिलों के बीच 15 किलोमीटर के फासले की शर्त को जारी रखा गया
है। नई चीनी मिलों की क्षमता से सम्बन्धित भी कोई शर्त लागू नहीं की गई है। वर्ष
2000-2001 के बजट में सरकार ने आयकरदाताओं को सार्वजनिक वितरण प्रणाली की चीनी की सुविधा
से वंचित कर दिया था।
चीनी उद्योग की समस्याएँ और उनका समाधान (Problems of Sugar
Industry and its Solution)
1. गन्ने सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Problems of Sugarcane)-भारत
में चीनी मिलों का भाग्य गन्ने के उत्पादन पर आधारित है। गन्ने के अभाव के कारण चीनी
का उत्पादन कम होता है और कारखानों को हानि होती है। भारत में गन्ना कम होने का कारण
गन्ने की प्रति हेक्टेअर उपज का कम होना है। भारत में गन्ने की प्रति एकड़ उपज ही कम
नहीं है, यहाँ गन्ने का गुण अत्यन्त न्यून है जिससे गन्ने से उपलब्ध चीनी का अनुपात
अपेक्षाकृत कम होता है।
उपाय-गन्ने के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए वैज्ञानिक
आधार पर कृषि की जानी चाहिए। इसके लिए उत्तम खाद और बीज तथा पर्याप्त पानी का प्रबन्ध
करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, मिलों के भी अपने गन्ना फार्म होने चाहिए ।
2. उप-उत्पादनों की समस्या (Problems of Bi-products)—चीनी
बनाते समय कई सहायक उत्पादन प्राप्त होते हैं, जैसे-छोई (Bagasses) तथा शीरा
(Molasses) । इनका प्रयोग कई उपयोगी वस्तुएँ बनाने के लिए किया जा सकता है। जैसे-छोई
से कागज, गत्ता आदि बनाया जा सकता है तथा शीरे से ऐल्कोहॉल व उर्वरक।
उपाय-चीनी उद्योग में उत्पादन व्यय कम से कम करने
के लिए गन्ने की छोई और शीरे जैसे उपोत्पति का कागज, सोख्ता, खाद, गता एवं ऐल्कोहॉल
आदि वस्तुएँ बनाने में उपयोग करना चाहिए।
3. गुड़ तथा खांडसारी से प्रतियोगिता (Competition from Gur and
Khandsari) चीनी को गुड़ तथा खांडसारी से प्रतियोगिता करनी पड़ती है।
इनमें प्रतियोगिता का मुख्य कारण उनके मूल्यों में अन्तर पाया जाना है।
उपाय-प्रतिस्पर्धा की समाप्ति-चीनी, गुड़ एवं खांडसारी
से प्रतियोगिता को समाप्त किया जाना चाहिए जिससे उत्पादन में अनिश्चितता न रहे। इसके
लिए गुड़, खांडसारी एवं चीनी मिल क्षेत्र के विकास हेतु एक संगृहीत योजना तैयार की
जानी चाहिए।
4. आधुनिकीकरण की समस्या (Problem of Modernization)—भारत
में चीनी मिलों में मशीनें काफी पुरानी हो गई हैं तथा घिस चुकी हैं, इससे उत्पादन व्यय
अधिक होता है। अत: उत्पादन लागत को कम करने के लिए उस उद्योग के आधुनिकीकरण की आवश्यकता
है। आधुनिकीकरण के लिए पर्याप्त मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होगी जिसका सर्वथा अभाव
है।
उपाय- पुरानी चीनी मिलों का शीघ्रातिशीघ्र आधुनिकीकरण
किया जाना चाहिए।
5. अनार्थिक इकाइयाँ (Uneconomic Units)—भारत
में बहुत-सी चीनी मिलें ऐसी हैं जिनका आकार छोटा है और आर्थिक दृष्टि से वे अलाभप्रद
इकाइयाँ मानी जाती हैं।
उपाय-सरकार
को इन अलाभप्रद इकाइयों का या ते आकार बढ़ाकर इन्हें लाभप्रद बनाने का प्रयत्न करना
चाहिए अथवा इन्हें समाप्त कर देना चाहिए।
6. कम उत्पादन क्षमता- भारतीय चीनी मिलों की उत्पादन
क्षमता बहुत कम है। अत: अन्य देशों की अपेक्षा चीनी का उत्पादन भारत में बहुत कम है।
उपाय-कारखानों को उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जाना चाहिए
और नवीन मिलों की अनुमति देते समय इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि उनकी क्षमता
3,500 टन प्रतिदिन से कम न हो।
7. कारखानों का दूर होना (Distance of Mill)—भारत
में चीनी के अधिकांश कारखाने गन्ने की खेती से दूर हैं। अत: गत्रों को कारखानों तक
पहुँचाने में बहुत व्यय होता है और मार्ग में गन्ने का रस काफी सूख जाता है।
उपाय-चीनी की नयी मिलों की स्थापना उन क्षेत्रों में
की जानी चाहिए जहाँ गन्ने के खेत हैं।
8. कम अवधि (Short Duration)—भारत में चीनी के कारखाने नवम्बर
से फरवरी तक लगभग 120 दिन कार्य करते हैं अर्थात् वर्ष में अधिकांश समय वे बेकार रहते
हैं। अत: गन्ने की जल्दी तथा देर से पकने वाली किस्मों को बोने के लिए प्रोत्साहन देना
चाहिए।
9. परिवहन सम्बन्धी असुविधा (Transportation Inconveniences)—भारत
में गन्ना उत्पादन क्षेत्र और चीनी मिलों के बीच काफी दूरी है। इस दुरी को तय करने
के लिए परिवहन के सस्ते और उपयुक्त साधनों का अभाव है।
उपाय-परिवहन के सस्ते और उपयुक्त साधनों को जुटाना
चाहिए तथा ग्रामीण सड़कों की मरम्मत की जानी चाहिए।
10. अनुसन्धान सम्बन्धी अभाव (Lack of Rescarches)—भारत
में अनुसन्धान सम्बन्धी अभाव के कारण गन्ने की किस्म में सुधार नहीं हो पाता। अत: इस
ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि गन्ना मोटा, मीठा और रसदार उत्पन्न किया जा सके।
उपाय- गन्ने की किस्म एवं उत्पादकता में सुधार करने,
प्रति हेक्टेअर उत्पादन बढ़ाने व गन्ने में मिठास का प्रतिशत बढ़ाने के लिए अनुसन्धान
को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
11. उत्पादकों को बढ़ती हुई हानि (Increasing Loss of Producers) चीनी
की कीमतों में वृद्धि इतनी नहीं हो पा रही है कि उत्पादन लागतों में वृद्धि की भरपाई
की जा सके। इसका परिणाम यह हुआ कि चीनी उत्पादकों को भारी हानि उठानी पड़ती है।
उपाय चीनी उत्पादकों को चीनी का उचित मूल्य मिलना
चाहिए, चीनी उत्पादन लागत को कम किया जाना चाहिए, रोगी मिलों की दशा सुधारने के लिए
वित्तीय सुविधाएँ दी जानी चाहिए।
12. दीर्घकालीन नीति न होना (Lack of Long-term Policy)—चीनी
के सम्बन्ध में सरकार ने कोई सुसंगत दीर्घकालीन नीति नहीं अपनाई है। कभी पूर्ण नियन्त्रण
लगाये गये, कभी नियन्त्रण और कभी सारे प्रतिबन्ध हटा दिये गये।
उपाय-चीनी के सम्बन्ध में सुसंगत दीघकालीन नीति अपनानी
चाहिए, ताकि उद्योग में निश्चितता का वातावरण बन सके।
13. ऊँची कीमतों की समस्या (Problem of High Prices)—भारत
में चीनी की उत्पादन लागत अधिक होने के कारण इसकी कीमत विश्व कीनत (World Price) की
तुलना में ऊँची है। इसका कारण एक हद तक चीनी कारखानों द्वारा स्टॉक में हेरा-फेरी,
जमाखोरी और चोरबाजारों के कारण भी थोक-विक्रेता चीनी की कीमतें बढ़ा देते हैं।
चीनी उद्योग की समस्याओं के समाधान हेतु सरकारी प्रयास (Government
Efforts to Solve the Problems of Sugar Industry)
विगत
वर्षों में चीनी उद्योग की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने निम्नलिखित प्रयास किए
हैं-
1.
चीनी उद्योग के विकास के लिए धन एकत्र करने हेतु 1982 में एक चीनी विकास कोष' की स्थापना
की गई थी। इस कोष का उपयोग मिलों के आधुनिकीकरण एवं मिल क्षेत्रों में गन्ने के विकास
के लिए आसान शतों पर ऋण प्रदान करने के लिए किया जा रहा है।
2.
उद्योग में तकनीकी कुशलता के सुधार हेतु कानपुर (उ. प्र.) में इण्डियन इन्स्टीट्यूट
ऑफ सुगर टेक्नोलॉजी की स्थापना भी की गई है।
3.
सरकार ने हाल ही में चीनी के निर्यात को डिकेनालाइज (Decanalise) करने का निर्णय लिया
है। इसके परिणामस्वरूप अब चीनी मिलें सीधे ही चीनी का निर्यात कर सकेंगी। अभी तक इसका
निर्यात केवल इण्डियन सुगर एण्ड जनरल इण्डस्ट्री एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट कॉर्पोरेशन
(ISGIEIC) के माध्यम से ही होता आया है।
4.
कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए कृषि मूल्य लागत आयोग' (CACP) की स्थापना
की गई है, जो फसल आने से पहले फसलों के समर्थन मूल्यों का सुझाव सरकार को देता है और
अधिकांशतः केन्द्र सरकार गन्ने के सांविधिक समर्थन मूल्य (SMP) उसके सिफारिश मूल्य
से अधिक ही घोषित करती है चीनी वर्ष 2016-17 (अक्टूबर-सितम्बर) के लिए सरकार द्वारा
गन्ने का FRP मूल्य र 230 प्रति क्विटल निर्धारित किया गया है।
5.
3 जनवरी, 2014 को सरकार ने चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य
से एक योजना की घोषणा की जिसमें यह व्यवस्था है कि बैंक, चीनी मिलों को 6,600 करोड़
रुपए की ब्याज मुक्त सहायता चलती पूँजी (Working Capital) के रूप में प्रदान करेंगे
ताकि वे गन्ना उत्पादकों की बकाया राशि का भुगतान कर सकें तथा साथ ही साथ चालू चीनी
मौसम की गन्ना कीमतों का समय पर भुगतान कर सकें। इस ऋण पर ब्याज की मात्रा लगभग
2,750 करोड़ रुपए बैठती है जिसका भुगतान अगले पाँच वर्षों के दौरान चीनी विकास फण्ड
(SDF) से किया जाएगा।
महाजन समिति रिपोर्ट ( Mahajan Committee Report)
चीनी
उद्योग पर गलित बी. बी. महाजन समिति ने 15 अप्रैल, 1998 को सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत
की जिसमें सरकार को चीनी नीति के कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तनों का सुझाव दिया गया। मुख्य
सुझाव निम्नलिखित हैं-
1.
सरकार को वैधानिक न्यूनतम कीमतों की घोषणा करने की नीति को चालू रखना चाहिए।
2.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधीन चीनी की आपूर्ति को बन्द कर देना चाहिए।
3.
सरकार को चीनी कीमत निर्धारण को पूरी तरह विनियन्त्रण कर देना चाहिए।
4.
गन्ने की कीमत का निर्धारण गन्ने की उत्पादन लागत के आधार पर करने की सिफारिश।
5.
10 लाख टन के चीनी निर्यात कोटे का निर्धारण।
6.
अन्य सुझावों में यह सुझाव दिया गया है-
(अ)
प्रतिवर्ष 10 लाख टन चीनी का निर्यात कोटा हो;
(ब)
चीनी आयात खुले सामान्य लाइसेन्स के अधीन हो तथा
(स)
नई इकाइयों को दिये जाने वाले प्रोत्साहनों को समाप्त किया जाये।
महाजन समिति की सिफारिशों का क्रियान्वयन (Implementation of
Recommendation of Mahajan Committee)
भारत
सरकार महाजन समिति की सिफारिशों पर बड़ी गम्भीरता से विचार कर रही है। इसी बीच सरकार
ने अनलिखित निर्णयों की घोषणा की है-
(i)
चीनी उद्योग के औद्योगिक (विकास एवं विनियमन कानून) के अधीन अनिवार्य लाइसेंस प्राप्ति
से मुक्त कर दिया गया है।
(ii)
वर्तमान चीनी कारखाने और नये कारखाने के बीच न्यूनतम दूरी 15 किमी. रखनी होगी ताकि
गन्ना प्राप्त करने के लिए चीनी के कारखाने में अस्वस्थ प्रतियोगिता को रोका जा सके।