JPSC_Government_Policies_on_Food_and_Nutritional_Security (खाद्य और पोषणात्मक सुरक्षा संबंधी सरकारी नीतियाँ)

Government Policies on Food and Nutritional Security (खाद्य और पोषणात्मक सुरक्षा संबंधी सरकारी नीतियाँ)

खाद्य और पोषणात्मक सुरक्षा संबंधी सरकारी नीतियाँ

खाद्य कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation, FAO) के अनुसार, सभी व्यक्तियों को सही समय पर उनके लिए आवश्यक बुनियादी भोजन के लिए भौतिक एवं आर्थिक दोनों रूप में उपलब्धि के आश्वासन मिलना खाद्य सुरक्षा (Food Security) है।

खाद्य सुरक्षा के प्रथम अवस्था में जीवन को कायम करवाने के लिए आवश्यक खाद्यान्नों को उपलब्ध कराने की बात कही गई, जबकि द्वितीय अवस्था में खाद्यान्नों के साथ दालों को वतृतीय अवस्था में इसमें दूध व दूध से बने पदार्थ और चतुर्त व अंतिम अवस्था में इसमें फल, सब्जी, मांस, अंडे की आपूर्ति की बात कही गई है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम

• केन्द्र सरकार ने 3 नवम्बर, 2016 को यह घोषित किया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून देश के सभी 36 राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों में लागू हो गया है। केरल एवं तमिलनाडु ने इस कानून को सबसे बाद में लागू (1 नवम्बर, 2016 को) किया।

सस्ती कीमतों पर पर्याप्त मात्रा में अच्छी गुणवत्ता के भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करने तथा खाद्य एवं पोषाहार सुरक्षा प्रदान किए जाने के उद्देश्य से 10 सितम्बर, 2013 को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम अधिसूचित किया गया था।

इस अधिनियम में 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी को लाभान्वित किए जाने का प्रावधान है। इसमें गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों (BPL धारक) के लिए प्रति व्यक्ति 5 किग्रा. खाद्यान्न और अन्त्योदय अन्न योजना के अन्तर्गत परिवारों के लिए 3 रुपए प्रति किग्रा. चावल, 2 रुपए प्रति किग्रा. गेहूँ और 1 रुपए प्रति किग्रा. मोटे अनाज की देय कीमतों पर प्रत्येक परिवार प्रत्येक माह 35 किग्रा. खाद्यान्नों का हकदार है।

इस अधिनियम के तहत APL परिवारों को मिलने वाले खाद्यान्न का मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।

इस अधिनियम में राशन कार्ड को गृहस्थ परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला के नाम जारी करने का प्रावधान है, लेकिन उसकी आयु 18 वर्ष से कम न हो।

• इसके साथ ही महिलाओं और बच्चों को पोषाहार संबंधी सहायता दिए जाने पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। गर्भवती महिलाएं गर्भावस्था के दौरान तथा बच्चे को जन्म देने के पश्चात् 6 माह तक स्तनपान कराने वाली माताओं को कम से कम 600 रुपए का मातृत्व लाभ प्राप्त करने की भी हकदार होगी।

निर्धारित पोषाहार मानकों के अनुसार, 14 वर्ष तक की आयु के बच्चे पौष्टिक आहार अथवा राशन घर में ले जाने के हकदार होंगे। अधिकृत खाद्यान्न अथवा आहार की आपूर्ति न हो पाने की स्थिति में लाभार्थी खाद्य सुरक्षा भत्ता प्राप्त करेंगे।

इस अधिनियम में जिला और राज्य स्तरों पर शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना किए जाने के भी प्रावधान हैं। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए इस अधिनियम में अलग से प्रावधान किए गए हैं।

• इस अधिनियम में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS-Targeted PDS) में सुधार के उपाय भी दिए गए हैं जो केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किए जाएंगे।

• इन सुधारों में, अन्य बातों के साथ-साथ, खाद्यान्नों को टी.पी.डी.एस. दुकानों तक पहुँचाया जाना, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उपकरणों के प्रयोग और विगत कुछ समय में टी.पी.डी.एस. के अन्तर्गत वितरित वस्तुओं का विविधिकरण शामिल है।

इस अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर टी.पी.डी.एस. और अन्य स्कीमों के लिए खाद्यान्नों की आवश्यकता 614.3 लाख टन आँकी गई है। पूरे देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने से लगभग 81 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार लगभग 11,726 करोड़ रुपये प्रतिमाह अथवा लगभग 1,40,700 करोड़ रुपये की सब्सिडी देगी।

खाद्य प्रबन्धन

खाद्य प्रबन्धन के मुख्य उद्देश्य लाभकारी मूल्यों में किसानों से खाद्यान्नों की अधिप्राप्ति, उपभोक्ताओं (खासकर समाज के कमजोर वर्गो) को वहनीय कीमतों पर खाद्यान्न का वितरण और खाद्य सुरक्षा एवं मूल्य विस्तार के लिए खाद्य बफर का अनुरक्षण करना है।

खाद्यान्न की अधिप्राप्ति, विवरण और भण्डारण करने वाली नोडल एजेन्सी भारतीय खाद्य निगम (FCI) है। MSP पर अधिप्राप्ति खुली है,जबकि वितरण आवंटन के स्केल और लाभार्थियों उपयोग से नियंत्रित है। खाद्यान्नों की कुल खरीद प्राथमिक तौर पर लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत और भारत सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओंके लिए की जाती है।

खाद्य सब्सिडी

सब्सिडी प्राप्त खाद्यान्नों के माध्यम से गरीबों को न्यूनतम पोषाहार सहायता का प्रावधान और विभिन्न राज्यों में कीमत स्थिरता सुनिश्चित करना, खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के दो प्रमुख उद्देश्य है। सरकार समुचित वितरण का अपना दायित्व पूरा करते हुए खाद्य सब्सिडी देती है।

खाद्य प्रसंस्करण

किसी भी कृषि उत्पाद को तकनीक माध्यम से टिकाऊ बनाने, पोषण युक्त, मूल्य बढ़ाने और आसानी से उपयोग में लाने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाती है उसे खाद्य प्रसंस्करण कहते हैं।

राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन

भारत सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना में वर्ष 2012-13 में किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से तथा खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक संरक्षित रखने के उद्देश्य से राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन (National Food Processing Mission) प्रारम्भ करने का निर्णय लिया। यह केन्द्र प्रायोजित योजना है, जिसे राज्य सरकारों की मदद से क्रियान्वित किया जाएगा।

2012-13 में जो मुख्य कार्यक्रम/योजनाएं इसके तहत कवर किए जाएंगे निम्नलिखित हैं-

1. खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की तकनीकी का उन्नयन/संस्थापन आधुनिकीकरण किया जाएगा।

2. गैर-उद्यान उत्पादों के लिए शीतगृहों, मूल्य वर्द्धन एवं संस्करण‌अवसंरचना का निर्माण।

3. मानव संसाधन विकास की योजना।

4. बूचड़खानों (कसाईखानों) का आधुनिकीकरण।

एन.एम.एफ.पी. के तहत केंद्र-राज्य भागीदारी अनुपात 75:25 (उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए 90:10) रखा गया है।

5. राष्ट्रीय पोषण रणनीति, 2017

कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन, पद्मश्री डॉ. एच. सुदर्शन एवं नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने 5 सितम्बर, 2017 को नीति आयोग की राष्ट्रीय पोषण रणनीति (National Nutrition strategy NNS) जारी की।

इस रणनीति के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित है-

1. 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में अल्पवजन (2 एस.डी. से कम) स्तर को वर्तमान 35.7 प्रतिशत से कम कर वर्ष 2022 तक 20.7 प्रतिशत करना।

2. 15-49 वर्ष की लड़कियों एवं महिलाओं में एनीमिया स्तर को‌ मौजूदा 53.1 से कम कर 17.7 प्रतिशत तक लाना।

• अंत्योदय अन्न योजना : सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) में आबादी के निर्धनतम वर्ग पर ध्यान केंद्रित करने और इस वर्ग को लक्ष्य बनाने के उद्देश्य से, दिसंबर, 2000 में अंत्योदय अन्न योजना एक करोड़ निर्धन परिवारों के लिए शुरू की गयी थी। अंत्योदय अन्न योजना में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत शामिल गरीबीरेखा से नीचे के परिवारों में से सबसे गरीब परिवारों की पहचान की जाती है तथा उन्हें गेहूँ 2 रुपये प्रति किलोग्राम की अत्यधिक रियायती दर पर मुहैया कराया जाता है। इस योजना के अंतर्गत राज्य केन्द्रशासित क्षेत्र, डोलरों और खाद्य व्यापारियों का मार्जिन तथा ढुलाईलागत सहित वितरण लागत वहन करते है और अधिक रियायती दरों पर अधिकतम गरीब व्यक्तियों को सुलभ कराया जाता है। आरंभ में प्रतिमाह प्रति परिवार 25 किलोग्राम अनाज जारी किया गया था जिसे 2002 में बढ़ाकर प्रतिमाह 35 किलोग्राम कर दिया गया है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)

उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर आवश्यक उपभोग हेतु वस्तुएँ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से भारत में वर्ष 1950 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू की गई थी। PDS के निम्नलिखित 6 अंग थे।

राशन या सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानें।

• सहकारी उपभोक्ता भण्डार।

नियंत्रित उपभोक्ता भण्डार।

नियंत्रित कपड़े की दुकान।

सुपर बाजार।

• मिट्टी के तेल विक्रय की दुकानें एवं सॉफ्ट कोक डिपो।

लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली

गरीबी रेखा के नीचे (BPL) अन्त्योदय अन्न योजना (AAY) श्रेणियों के लिए स्वीकृत 6.52 करोड़ परिवारों के खाद्यान्नों का वितरण 35 किग्रा प्रति वार की दर से किया जाता है।

• गरीबी रेखा से ऊपर (APL) की श्रेणी के अंतर्गत आवंटन केंद्रीय पूल में खाद्यान्न के स्टॉक की उपलब्धता तथा विगत वर्ष में उठाव को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। वर्तमान में यह आवंटन विभिन्न राज्यों संघ राज्य क्षेत्रों के प्रति माह प्रति परिवार 15 किग्रा. और 35 किग्रा. के बीच की सीमा में है।

केन्द्र सरकार ने 1 जून, 1997 से लक्षित सार्वजनिक वितरण योजना लागू की थी, जबकि 25 दिसम्बर, 2000 को अन्त्योदय अन्न योजना की शुरुआत की गई थी।

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की योजनाओं को पुनर्गठित करने हेतु 3 मई, 2017 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने एक नई केंद्रीय क्षेत्र योजना यथा कृषि समुद्रीय प्रसंस्करण और कृषि-प्रसंस्करण क्लस्टर के विकास हेतु योजनाः संपदा (SAMPADA) : Scheme for Agro-Marine Processing and Development of Agro-Processing (Clusters) को स्वीकृति प्रदान की गई।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा संपदा योजना का पुनर्नामकरण किसान संपदा योजना के रूप में किया गया।

• 23 अगस्त, 2017 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमण्डलीय समिति ने इस योजना का पुनर्नामकरण प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के रूप में करने को स्वीकृति प्रदान की।

लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (नियंत्रण) आदेश, 2015 में प्रावधान किया गया है कि अंत्योदय परिवारों को राज्यवार संख्या किसी राज्य में उनकी स्वीकृत संख्या से अधिक नहीं होगी। किसी अंत्योदय परिवार के राज्य से बाहर प्रवास, सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार के कारण अपात्र बन जाने, मृत्यु आदि की स्थिति में उस राज्य से नए अंत्योदय परिवार की पहचान नहीं की जाएगी और उतनी सीमा तकअंत्योदय परिवार की कुल संख्या कम कर दी जायेगी। अंत्योदय परिवारों की संख्या में कमी होने पर राज्य उतनी सीमा तक प्राथमिकता श्रेणी की व्यक्तियों के कवरेज में वृद्धि कर सकते हैं, परंतु यह वृद्धि निर्धारित सीमा के अधीन होगी।

राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण योजना (सबला)

सबला कार्यक्रम, किशोरियों के लिए पोषण कार्यक्रम और किशोरी शक्ति योजना नाम के दो कार्यक्रमों को मिलाकर एक कार्यक्रम के रूप में वर्ष 2010 में शुरू किया गया, जिसे देश के 200 चुनिंदा जिलों में कार्यान्वित किया जा रहा है। केन्द्रीय स्तर पर महिला और बाल विकास मंत्रालय इस कार्यक्रम को लागू करता है और राज्य/केन्द्रशासित क्षेत्र इस योजना को कार्यान्वित करते हैं। इस कार्यक्रम का लक्ष्य 11 से 18 वर्ष की किशोरियों को उनके पोषण और स्वास्थ्य स्थिति में सुधार लाकर और घरेलू कौशल जीवन जीने के लिए जरूरी योग्यता तथा व्यावसायिक योग्यता जैसी विभिन्न योग्यताओं में उन्नत बनाते हुए उनका सशक्तीकरण करना है। इसका उद्देश्य लड़कियों को परिवार कल्याण, स्वास्थ्य तथा स्वच्छता के बारे में शिक्षित करना और मौजूदा सार्वजनिक सेवाओं के विषय में जानकारी तथा मार्गदर्शन प्रदान करना भी है। इसके तहत स्कूल छोड़ चुकी लड़कियों को औपचारिक अथवा अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में लाना भी है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत पोषण के लिए प्रत्येक लाभार्थी को वर्ष में 300 दिन तक 100 ग्राम अनाज प्रतिदिन उपलब्ध कराया जाता है।

खाद्य सुरक्षा रणनीति

किसी खाद्य सुरक्षा रणनीति में निम्नलिखित बातें शामिल करने की आवश्यकता होगी-

• विकास के साथ-साथ समता को बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त

परिस्थितियों का सृजन करने वाली आर्थिक नीति व विकास नीति अपनाने की आवश्यकता है।

• कृषि क्षेत्र में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के साथ रोजगार वृद्धि के प्रयास किये जाने चाहिए। इससे जहां एक ओर अतिरिक्त खाद्यान्न उत्पन्न होगा, वहीं उन्हें क्रय कर पाने के लिए उपर्युक्त आय का भी सृजन होगा।

गरीबों को केन्द्र में रखकर ग्रामीण विकास योजनाएं बनाई जानी चाहिए।

भूमि व अन्य प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच बढ़ाने की आवश्यकता है।

• गरीबों को अल्प ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

आय हस्तान्तरण योजना लागू की जानी चाहिए जिसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सस्ते अनाज का गरीबों में वितरण भी शामिल है।

खाद्यान्न आपूर्ति व कीमतों को स्थिरता प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।

बाढ़, सूखा व भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए पूर्व में ही आयोजनाएं तैयार रखने की आवश्यकता है।

Post a Comment

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare