JPSC_Structure_Of_Indian_Monetary_and_Banking_System_in_India(भारतीय मौद्रिक संरचना और भारत की बैंकिंग प्रणाली)

JPSC Structure Of Indian Monetary and Banking System in India(भारतीय मौद्रिक संरचना और भारत की बैंकिंग प्रणाली)
JPSC_Structure_Of_Indian_Monetary_and_Banking_System_in_India(भारतीय मौद्रिक संरचना और भारत की बैंकिंग प्रणाली)
(भारतीय व्यापार की संरचना और दिशा, भुगतान संतुलन की समस्या) भारतीय मौद्रिक नीति भारतीय मौद्रिक प्रणाली में मुद्रा का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में भारत में कोई प्रमाणिक सिक्का नहीं था। 1835 के पूर्व अंग्रेजी भारत में अनेक प्रकार के स्वर्ण तथा रजत के सिक्के प्रचलनशील प्रचलित थे जिनके मध्य कोई निश्चित वैध अनुपात निर्धारित नहीं था। इससे देश में वाणिज्य तथा उद्योग को अनेक कठिनाइयों का अनुभव करना पड़ता था क्योंकि देश में उद्योग तथा विकास के लिए स्थिर मुद्रामान का होना अत्यावश्यक है। मुद्रा की माप मुद्रा के मापन पर विचार हेतु भारतीय रिजर्व बैंक ने सर्वप्रथम 1961 में एक कार्यकारी समिति का गठन किया था। कालान्तर में दूसरा कार्यकारी समूह वर्ष 1977 में गठित किया गया, जिसने तरलता के आधार पर मुद्रा को चार वर्गों में बांटा है। 1. M 1 = जनता के पास मुद्रा (करेन्सी नोट तथा सिक्के )+ बैंकों की मांग जमाएं (चालू और बचत खातों पर)+ रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएं। 2. M 2 = M 1 + डाकघरों की बचत बैंक जमाएं 3. M 3 = M 1 + बैंकों तथा सरकारी बैंकों की समय जमाएं या M 3 = जनता के पास चलन बैंकों की …