ग्रामीण ऋणग्रस्तता (RURAL INDEBTEDNESS)
ऋणग्रस्तता
से आशय उस ऋण राशि से हैं जिसका कृषकों को ऋण देने वालों को भुगतान करना है,
अर्थात् यह कृषकों पर ऋण देने वालों की बकाया राशि का संकेतक है। ग्रामीण
ऋणग्रस्तता भारतीय कृषि को प्रमुख समस्या है, जिसके बोझ से लदे भारतीय कृषक आज
कृषि में सुधार लाने में असमर्थ हैं। शाही कृषि आयोग के अनुसार-"भारतीय किसान
ऋण में जन्म लेता है। ऋण में जीवन व्यतीत करता है, ऋण में मर जाता है और ऋण छोड़
जाता है।" इस ऋणग्रस्तता का सम्बन्ध किसानों की आर्थिक स्थिति, कृषि में
विनियोग की क्षमता और देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से हैं। अत: हम ग्रामीण ऋणग्रस्तता
के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन सविस्तार करेंगे। ग्रामीण ऋणग्रस्तता की सीमा (EXTENT OF
RURAL INDEBTEDNESS) भारतीय
कृषकों की ऋणग्रस्तता के अनुमान समय-समय पर विभिन्न व्यक्तियों और विशेषज्ञों द्वारा
लगाए गये हैं। जैसाकि सारणी 1 में दर्शाया गया है- सारणी
1 भारत में ग्रामीण ऋणग्रस्तता की सीमा का अनुमान (Extent of Rural
Indebtedness in India) ग्रामीण ऋणग्रस्तता की बदलती हुई तस्वीर (CHANGING PICTURE OF
RURAL INDEBTEDNESS) राष्ट्रीय
नमूना सर्वेक्षण (National Samp…