विनियोग नियोजन के लिए आवश्यक
वास्तविक विधि जिससे एक योजना को क्रियान्वित किया जा सके ऐसा महत्वपूर्ण पक्ष है
जिस पर प्रो॰ प्रशान्त चन्द्र महालनोबीस ने विचार किया । 1952-55 की अवधि में
प्रस्तुत अपने नियोजन मॉडल में हैरोड-डोमर के प्रतिपादन से आगे जाते हुए उन्होंने
क्षेत्रीय विधि की प्रस्तावना रखी । प्रो॰ महालनोबीस ने हैरोड व डोमर द्वारा
प्रस्तुत वृद्धि मॉडल को परिपक्व एवं परिमार्जित किया ।
यद्यपि महालनोबीस का मॉडल आर्थिक
धारणा की दृष्टि से किसी तक हैरोड-डोमर-फेल्डमैन के मॉडलों के समीप था परन्तु
निर्वहन एवं प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से उसने अपनी अलग पहचान बनाई ।
अपरिहार्य रूप से महालनोबीस के मॉडल
कींजियन विश्लेषण के शुद्ध समग्रों पर आधारित थे । इनके अनुसार राष्ट्रीय आय या
उत्पादन इसलिए बढता है, क्योंकि एक धनात्मक शुद्ध विनियोग उत्तरोत्तर अवधियों में
आय के अतिरिक्त प्रवाहों को जन्म देता है । विनियोग एवं आय के अतिरिक्त प्रवाहों
के मध्य फलनात्मक सम्बन्ध को विनियोग की उत्पादकता या पूंजी-उत्पाद अनुपात के
व्युत्क्रम द्वारा स्पष्ट रूप से बिम्बित किया गया ।
प्रोफेसर
महालनोबिस का सितम्बर 1953 का द्वि-क्षेत्रीय मॉडल हमारी दूसरी पंचवर्षीय योजना के
चतु: क्षेत्रीय मॉडल के निर्माण का आधार बना।
महालनोबिस का द्वि-क्षेत्रीय मॉडल निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित था :
(i) यह बन्द
अर्थव्यवस्था से संबंध रखता है जहाँ विदेशी व्यापार नहीं होता।
(ii) अर्थव्यवस्था के दो क्षेत्र
होते है : उपभोक्ता वस्तु-क्षेत्र (c) तथा पूँजी वस्तु-क्षेत्र (k),कोई मध्यवर्ती क्षेत्र नहीं होता । मध्यवर्ती वस्तुओं उत्पादन करने वाले
उद्योगों को उन उपभोक्ता वस्तुओं तथा पूंजी वस्तुओं के साथ इकट्ठा कर दिया जाता है
जिनके उत्पादन में वे सहायक होते हैं। पूँजी के लिए कच्चा माल उत्पादित क्षेत्रों
को पूँजी वस्तुओं को बनाने वाले क्षेत्रों के साथ इकट्ठा कर दिया जाता है और यही नियम
उपभोक्ता वस्तुओं पर लागू होता है।
(iii) किसी भी एक क्षेत्र में जब एक बार पूँजी उपस्कर
(equipment) संस्थापित हो जाता है, तो उसमें किसी प्रकार का
विचलन नहीं होता । परन्तु पूँजी वस्तु-क्षेत्र के उत्पादन दोनों क्षेत्रों में
आगतों के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं।
(iv) उपभोक्ता वस्तु-क्षेत्र
एवं पूँजी वस्तु-क्षेत्र, दोनों में ही पूर्ण क्षमता के साथ उत्पादन होता है।
(v) निवेश को पूँजी वस्तुओं
की पूर्ति निर्धारित करती है।
(vi) कीमतों में कोई परिवर्तन
नहीं होते।
इन मान्यताओं के दिया हुआ होने पर, यह मॉडल अर्थव्यवस्था का
वृद्धि-पथ निम्नलिखित रूप में स्पष्ट करता है-
Yt=Y0[1+α0λkβkλcβcλkβk(1+λkβk)t-1]
जहाँ Yt =वर्ष t में सकल घरेलू
राष्ट्रीय आय;
अर्थव्यवस्था में शुद्ध
निवेश को महालनोबिस दो भागों में बाँटता है : λk पूँजी वस्तु-क्षेत्र में प्रयुक्त शुद्ध निवेश
का अनुपात तथा λc उपभोक्ता
वस्तु-क्षेत्र में प्रयुक्त शुद्ध निवेश का अनुपात । अतः
आगे,
शुद्ध निवेश (I ) किसी भी समय (t) पर दो भागों में बाँटा जा सकता है : एक, λkIt
पूँजी वस्तु क्षेत्र की उत्पादक क्षमता बढ़ाने हेतु तथा दूसरा λcIt
उपभोक्ता वस्तु-क्षेत्र की । इस प्रकार
It = λkIt
+ λcIt
..........(2)
पूँजी
तथा उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्रों के उत्पादन पूँजी (output capital) अनुपात
क्रमशःβk and
βc मानकर
तथा कुल उत्पादकता गुणांक (Coefficient) β जिसे इस प्रकार व्यक्त
किया जाता है।
β = λkβk+λcβc(λk+λc)
सम्पूर्ण
अर्थव्यवस्था का आय साम्य समीकरण है
Yt = It
Ct ……………………..(4)
अब,
जब आय में परिवर्तन होता है तो निवेश तथा उपभोग में भी परिवर्तन होगा। निवेश में
परिवर्तन पिछले वर्ष के निवेश (It-1) पर तथा उपभोग में परिवर्तन पिछले
वर्ष के उपभोग (Ct-1) पर निर्भर करता है। इस प्रकार निवेश में अवधि t
में वृद्धि ΔIt
= It – It-1, तथा उपभोग में वृद्धि ΔCt = Ct – Ct-1
वास्तव में, दोनों क्षेत्रों में वृद्धि उनमें निवेश की उत्पादक क्षमता तथा उत्पादन-पूजी
अनुपात को अनुबंध करने से संबद्ध है। पहले निवेश वृद्धि पथ लें
जो पूँजी-क्षेत्र में निवेश की उत्पादक क्षमता (λkIt) तथा उसके उत्पादन-पूँजी अनुपात (βk)
द्वारा निर्धारित होती है।
It – It-1
= λkβk It-1
It = It-1 + λkβk It-1
या It
= (1
+ λkβk) It-1
…....(5)
t को विभिन्न मूल्य लगाकर
(t = 1, 2, 3 ...,) ऊपर के समीकरण (5) से यह हल प्राप्त होते हैं
I1 = (1 + λkβk) I0
I2 = (1 + λkβk) I,
= (1 + λkβk) (1 + λkβk) I0 I1 = (1 + λkβk) I0
= (1 + λkβk)2 I0
इस
प्रकार t का आगे मूल्य समीकरण (5) में लगाने से यह हल प्राप्त होता है।
It = I0 (1 + λkβk)t
It - I0
= I0 (1 + λkβk)t I0
या
It
- I0 = I0 (1 + λkβk)t 1 ……….(6)
इसी
प्रकार उपभोग वृद्धि पथ ΔCt
= Ct – Ct-1 = λkβk It-1
में समीकरण (5) की तरह t के मूल्य (t = 1, 2, 3,
...) लगाने से हम प्राप्त करते है
C1 – C0
= λc βc I0
C2 – C1
= λc βc I1
और
अन्तिम C1 – C0
= λc βc (I0 + I1 +
I2 +…… + It)
I1 , I2
,…… It के मूल्य समीकरण (6) और
उससे संबद्ध समीकरण के लगाने पर ऊपर का समीकरण इस प्रकार हल किया
जा सकता है:
C1 – C0
= λc βc [I0 + (1 + λkβk) I0
+ (1 + λkβk)2 I0
+…… + (1 + λkβk)t I0
]
= λc βc I0 [ 1 + (1 + λkβk) + (1 + λkβk)2 +…… + (1 + λkβk)t ]
= λc βc I0 [(1+λkβk)t-1(1+λkβk)-1]
या ΔCt = λc βc I0 [(1+λkβk)t-1λkβk]..(7)
अब,
समस्त अर्थव्यवस्था की आय का वृद्धि पथ समीकरण (4) के आधार पर होता है
ΔYt = ΔIt
+ ΔCt
या
Yt
– Y0 = [ ( It – I0
) + (Ct – C0) ]
समीकरणों
(6) एवं (7) के मूल्य लगाने से
Yt – Y0 = [ I0 + (1 + λkβk)t - 1] + λc βc I0[(1+λkβk)t-1λkβk]
= I0 [(1 + λkβk)t – 1] [1+λcβcλkβk]
=I0[(1+λkβk)t-1][1+λkβk+λcβcλkβk]
I0 = α0
Y0 मानकर ऊपर के समीकरण में लगाने से
Yt – Y0 = α0 Y0 [(1 + λkβk)t – 1] [λkβk+λcβcλkβk]
या Yt = α0 Y0 [(1 + λkβk)t – 1] [λkβk+λcβcλkβk] + Y0
या Yt=Y0[1+α0λkβk+λcβcλkβk(1+λkβk)t-1]...(8)
जहाँ
Yt = वर्ष t में सकल घरेलू राष्ट्रीय आय;
α0 = आधार-वर्ष में निवेश की दर;
λk = पूँजी वस्तु-क्षेत्र में प्रयुक्त शुद्ध निवेश
का भाग;
λc = 1
- λk
= उपभोक्ता वस्तु-क्षेत्र को जाने वाला शुद्ध निवेश का भाग;
βk = पूँजी वस्तु-क्षेत्र में सीमान्त उत्पादन-पूँजी
अनुपात;
βc = उपभोक्ता वस्तु-क्षेत्र में सीमान्त उत्पादन-पूँजी
अनुपात ।
इस मॉडल का व्याख्यात्मक मूल्य यह है कि अर्थव्यवस्था में कुल निवेश के दो भाग होते हैं : एक भाग λk पूँजी वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाने के लिए काम में लाया जाता है और दूसरा भाग λ0उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाने के लिए काम में लाया जाता है। इस प्रकार, कुल निवेश λk + λc = 1 है। समीकरण का यह λkβk+λcβcλkβk अनुपात समस्त पूँजी गुणक है I βk तथा βc को दिया हुआ मान लेने पर, आय की वृद्धि-दर α0 तथा λk पर निर्भर करेगी। आगे α0 (आधार -वर्ष में निवेश की दर) को स्थिर मान लेने पर, आय की वृद्धि-दर नीति साधन λk पर निर्भर करेगी।
यदि βc > βk दिया हो, तो इसका मतलब होगा कि उपभोक्ता वस्तु उद्योगों में जितने प्रतिशत निवेश अधिक होगा, प्रजनित आय भी उतनी ही अधिक होगी। पर, समीकरण का यह व्यंजक (1 + λkβk)t बताता है कि समय के क्रांतिक परिसर (critical range of time) के बाद, पूँजी वस्तु उद्योगों में निवेश जितना अधिक होगा, प्रजनित आय भी उतनी ही अधिक होगी। प्रारंभ में, λk का ऊँचा मूल्य परिमाण (1 + λkβk)t को बढ़ाता है और समस्त पूँजी गुणक λkβk+λcβcλkβk को गिराता है। परन्तु ज्यों-ज्यो समय बीतता है, त्यों-त्यों दीर्घकाल में λk के अधिक ऊँचे मूल्य से आय की वृद्धि-दर अधिक ऊँची हो जाएगी।
यदि βc = βk है, तो समस्त पूँजी गुणक का व्युत्क्रम (reciprocal) λkβk+λcβcλkβk = λk बचत की सीमान्त दर इससे मॉडल का एक महत्वपूर्ण नीति विषयक अर्थ यह उपलब्ध होता है कि निवेश की अपेक्षाकृत ऊंची दर (λk) के लिए आवश्यक है कि बचत की सीमान्त दर भी अपेक्षाकृत ऊंची हो । पूँजी वस्तुओं पर निवेश की अधिक ऊँची दर अल्पकाल में तो उपभोग के लिए थोड़ा उत्पादन उपलब्ध करायेगी परन्तु दीर्घकाल में उपभोग की वृद्धि-दर बढ़ा देगी।
डोमर समीकरण का महालनोबिस मॉडल से व्युत्पत्ति (DERIV ATION OF DOMAR'S EQUATION FROM MAHALANOBIS'S MODEL)
वास्तव
में, यदि दोनों मॉडलों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि महालनोबिस
का मॉडल डोमर मॉडल का सुधरा हुआ रूप है। डोमर मॉडल के प्रमुख समीकरण को महालनोबिस
मॉडल से व्युत्पत्ति को प्रभावित किया जा सकता है।
मान लो अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर एक समान रहती है । महालनोबिस मॉडल के आधारभूत समीकरण को पुनः लिखने से,
Yt = Y0 [1+α0λkβk+λcβcλkβk[(1+λkβk)t-1]]
ऊपर दिए गए समीकरण के दोनों तरफ Y0 घटाने से,
Yt-Y0=Y0[1+α0λkβk+λcβcλkβk[(1+λkβk)t-1]]- Y0
अब
समीकरण के दोनों तरफ से Y0 विभाजित
करने से
Yt-Y0Y0=Y0[1+α0{λkβkλcβcλkβk}[(1+λkβk)t-1]Y0]-Y0
अथवाYt-Y0Y0=[1+α0λkβk+λcβcλkβk[(1+λkβk)t-1]]-1
ऊपर
के समीकरण में 1 (एक) को लुप्त करने से,
Yt-Y0Y0=α0λkβk+λcβcλkβk(λkβk)t
मूल्य
t = 1 रखने से और समान मूल्य λkβk को लुप्त करने से नया
समीकरण
Yt-Y0Y0= α0 (λkβk. + λcβc)
लेकिन
महालनोबिस βk = βc = β मानता है
Yt-Y0Y0= α0 (λkβ + λcβ )
= α0 β
(λk + λc)
लेकिन λk + λc = 1
∴ΔYY=α0β
अथवा ∴ΔYY = I0eα𝛔t [Therefore α0β = I0eα𝛔t]
यह
डोमर मॉडल का वृद्धि समीकरण है, जो यह दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था में उत्पादन की
पूर्ण क्षमता बनाए रखने के लिए समयानुसार जितनी निवेश की मात्रा की आवश्यकता होगी
वह एक घातांकीय दर
डोमर
का सतत वृद्धि-दर ∴ΔYY = I0
∴ΔYY = I0eα𝛔t = Gw=sCr
डोमर
मॉडल से संबंध : अब हम डोमर मॉडल को महालनोबिस मॉडल के प्रचालनों (parameters) के
आधार पर प्रस्तुत करते हैं।
डोमर
के मांग समीकरण को पुनः लिखने से,
I = αY
जहाँ
। निवेश है, α
बचत-आय अनुपात तथा Y राष्ट्रीय आय ।
समय
t में निवेश में वृद्धि (Δ)
करने से समीकरण बनता है :
Δlt = αΔYt
………..(1)
प्रारंभिक अवधि में निवेश I0 = α0 Y0 ...(2)
(1) को (2) से भाग देने परΔItI0=αα0.ΔYtY0
या ΔYt Y0=α0α.ΔIt I0 [एक दूसरे के सामने गुणा करने से]
या Yt-Y0 Y0=α0α. It-I0 I0[ ΔYt = Yt – Y0 और ΔIt = It – I0]
या Yt-Y0Y0=α0α[ItI0-1]
=α0α[(1+αβ)t-1] [ItI0= (1 + αβ)t or β उत्पादन पूँजी अनुपात है ]
या Yt -Y0 =α0αY0 [ (1 + αβ)t – 1 ]
या Yt =α0αY0 [ (1 + αβ)t – 1 ] + Y0
या Yt = Y0 [1 + (1 + αβ)t – 1] ……(3)
दूसरी ओर महालनोबिस मॉडल का अन्तिम समीकरण यह है :
Yt = Y0 [1 + α0λkβk+λcβcλkβk(1 + λk βk)t – 1 ] …..(4)
दोनों के समीकरणों (3) तथा (4) के अन्तिम व्यंजक (1 + αβ)t तथा (1 + λk βk)t समान है, क्योंकि डोमर का αβ महालनोबिस मॉडल में αkβk हैं । दोनों ही मॉडल केन्जीय गुणक द्वारा आय से वृद्धि की व्याख्या करते हैं ! डोमर के अनुसार, आय में जो वार्षिक वृद्धि होगी, वह निवेश में वृद्धि की (K) गुणा होगी तथा इसका मूल्य 11-MPCहै। महालनोबिस मॉडल के प्रमुख समीकरण (4) में λkβk+λcβcλkβk केन्जीय गुणक (K) के बराबर है | समीकरण (4) यह बता रहा है कि समयानुसार राष्ट्रीय आय में जो वृद्धि होगी वह निवेश के कारण होगी और उसका मूल्य सीमान्त बचत प्रवृत्ति के विलोमशः होगा। दोनों ही मॉडल अन्तराल (time lag) की धारणा का प्रयोग करते हैं। दोनों मॉडलों के नीति विषयक निष्कर्ष समान हैं।
इन
समानताओं के बावजूद व दोनों मॉडलों में कुछ स्पष्ट भिन्नता है। डोमर का मॉडल
एकल-क्षेत्र मॉडल है जबकि महालनोबिस का मॉडल दो-क्षेत्र मॉडल है। डोमर समस्त
अर्थव्यवस्था को एक ही क्षेत्र मानता है जबकि महालनोबिस उसे पूँजी वस्तु-क्षेत्र
तथा उपभोक्ता वस्तु-क्षेत्र में विभाजित करता है । इस प्रकार महालनोबिस का मॉडल
अधिक वास्तविक है।
महालनोबिस का चार क्षेत्र मॉडल (THE
MAHALANOBIS FOUR SECTOR MODEL)
महालनोबिस
ने राष्ट्रीय आय तथा निवेश के चरों (variables) पर आधारित एक एकल-क्षेत्र (single sector)
मॉडल का अक्तूबर 1952 में निर्माण किया। 1953 में इसी मॉडल को आगे द्वि-क्षेत्र मॉडल
में विकसित किया, जहाँ यह मान लिया गया था कि अर्थव्यवस्था की
समस्त शुद्ध उत्पाद का उत्पादन दो क्षेत्रों निवेश-वस्तु क्षेत्र तथा उपभोक्ता
वस्तु क्षेत्र, में होता है । इसके बाद उसने 1955 से प्रसिद्ध चार-क्षेत्र मॉडल का
विकास किया, जिस पर नीचे विचार किया जा रहा है।
महालनोबिस
मॉडल वास्तविक अर्थ में विकास मॉडल नहीं बल्कि वितरण (allocation) मॉडल हैं। योजना
आयोग से संबद्ध होने के कारण प्रो० महालनोबिस जानते थे कि द्वितीय पंचवर्षीय योजना
में निवेश के लिए उपलब्ध अधिकतम राशि रुपये 5,600 करोड़ होगी। लक्ष्य एक करोड़ से
एक करोड़ बीस लाख (10 से 12 मिलियन) व्यक्तियों को अतिरिक्त रोजगार प्रदान करना
था। योजना अवधि में राष्ट्रीय आय में 5% वार्षिक वृद्धि-दर को लिया गया। इसके बाद महालनोबिस
ने निवेश वस्तु उद्योगों (investment goods industries) में कुल निवेश
के एक तिहाई निवेश का अनुमान लगाया और शेष दो-तिहाई अर्थव्यवस्था
के बाकी तीन क्षेत्रों में निवेश के लिए छोड़ दिया। उसने यह सब आँकड़े सरल युगपत्
समीकरण पद्धति (simple simultaneous equation system) में रखे (जो नीचे दिए गए हैं)
और वह हल निकला, जो भारत की द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार बना।
महालनोबिस का मॉडल चतुक्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को लेता है, जिसमें
ये क्षेत्र सम्मिलित हैं:
(i) निवेश वस्तु क्षेत्र
(k);
(ii) फैक्टरी उत्पादित उपभोक्ता-वस्तु
क्षेत्र (C1)
(iii) लघु या गृह उद्योग उत्पादित
(जिसमें कृषि उत्पादन भी शामिल है) उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र (C2); और
(iv) सेवाएँ (स्वास्थ्य शिक्षा
इत्यादि) उत्पादन क्षेत्र (C3) |
मॉडल
में पादाक्षर k और पादांक 1,2,3 का प्रयोग क्रमशः निवेश-वस्तुओं, (फैक्टरी तथा
गृह) उपभोक्ता वस्तुओं, और सेवाओं का उत्पादन करने वाले उद्योगों के लिए किया जाता
है। इन चारों क्षेत्रों में से प्रत्येक के लिए तीन प्राचलों (parameters) का एक
सैट प्रस्तुत किया गया है :
β's (beta) अर्थात βk , β1 , β2 , β3 जनित
शुद्ध आय के निवेश से अनुपात (the ratio of net income generated to investment), अथवा
पूँजी-उत्पादन अनुपात |
θ's (theta) अर्थात θk , θ1 , θ2 , θ3 प्रति
नियुक्त व्यक्ति के लिए आवश्यक शुद्ध निवेश (net investment required per engaged
person), अथवा पूँजी-श्रम अनुपात ।
λ's (lambda) अर्थात
λk , λ1 , λ2 , λ3 प्रत्येक
क्षेत्र में वितरित निवेश का अनुपात (the proportion of investment allocated to
each sector), अथवा वितरण अनुपात।
आगे
योजना-अवधि के पाँच वर्षों में किए जाने वाले निवेश की कुल मात्रा के लिए A, आय
में कुल वृद्धि के लिए E, और योजना अवधि में रोजगार की कुल वृद्धि के लिए N रखे गए
हैं।
इन
प्राचल अनुपातों (β's, θ's, λ's) और निवेश की जाने
वाली कुल मात्रा (A) के दिये होने पर, समीकरणों की व्यवस्था के आधार पर योजना-अवधि
के दौरान अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में जनित (generated) कुल आय
(E), और रोजगार (N) का हिसाब लगाया जा सकता है।
मॉडल
के समीकरण ये हैं :
E = Ek + E1
+ E2 + E3 ………(1)
N = nk + n1
+ n2 + n3 ……(2)
A = λkA + λ1A + λ2A + λ3A ...(3)
अब
प्रत्येक क्षेत्र में रोजगार में वृद्धि यह है :
nk = λk
A/θk
...(4)
n1 = λ1
A/θ1
...(5)
n2 = λ2
A/θ2
...(6)
n3 = λ3
A/θ3
...(7)
और,
A= nkθk + n1θ1
+ n2θ2 + n3θ3
(क्योंकि समीकरण (4) से)
nkθk
= λk A…….(8) और इसी प्रकार आगे समीकरणों (5), (6) और (7) से ।
इसी
प्रकार, प्रत्येक क्षेत्र में जनित आय में वृद्धि का यो हिसाब लगाया जा सकता है:
Ek = λk
Aβk
...(9)
E1 = λ1
Aβ1 ...(10)
E2 = λ2
Aβ2 ...(11)
E3 = λ3
Aβ3 ...(12)
और,
E = nkθkβk + n1θ1β1
+ n2θ2β2 + n3θ3β3
= Y0
[(1 + η)5 – 1 ]
….(13)
महालनोबिस
के मॉडल में ऊपर दिया गया समीकरण (13) अन्तिम है, जहाँ η (eta) दी हुई आय की 5
प्रतिशत वार्षिक वृद्धि-दर है और Y0 आरंभिक आय प्रतिवर्ष है, Y0
पर η दर लगाने से E प्राप्त हुआ
है। ऊपर दिए गए समीकरणों की व्यवस्था में A , E और N सीमा-दशाएँ (boundary
conditions) हैं । वे स्थिर (constants) हैं। पर साथ ही वे लक्ष्य-चर (target
variables) भी हैं जिन्हें योजना-अवधि में पूरा करना है, β's, θ's और λ's साधन चर (instrument variables) हैं।
पर
β's और θ's संरचनात्मक-प्राचल (structural parameters) हैं, जिन्हें प्रौद्योगिकी
स्थितियाँ निर्धारित करती हैं और जिन्हें योजना की अवधि में स्थिर मान लिया जाता
है | λ's वितरण-प्राचल (allocation
paramete 's) हैं, जो "कुछ सीमाओं के भीतर योजना बनाने वाले की इच्छा पर रहते
हैं।'
महालनोबिस
के मॉडल में निवेश वस्तु-क्षेत्र के लिए वितरण-प्राचल (अनुपात), λk
दिया हुआ होता है, और शेष तीनों क्षेत्रों के लिए बाकी अनुपात (λ1 , λ2 , λ3)
ऊपर दिए गए एक साथ समीकरणों के हल से प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिए, जैसाकि
महालनोबिस स्पष्ट करता है, जनित आय की वृद्धि की दर अथवा रोजगार को चरों के रूप
में लिया जा सकता है जिन्हें वांछित मूल्य दिया जा सकता है । इस प्रकार विविध
प्राचलों के संख्यात्मक अनुमानों की सहायता से हम इस मॉडल के द्वारा यह अध्ययन कर
सकते हैं कि वितरण अनुपात λ's अर्थात् विभिन्न
क्षेत्रों में जाने वाले कुल निवेश के अनुपातों का चुनाव किस प्रकार किया जाए
जिससे वांछित लक्ष्य पूरा हो जाए ।”
समीक्षात्मक मूल्यांकन (CRITICAL
APPRAISAL)
महालनोबिस
मॉडल का ऊपर दिया गया हल और द्वितीय पंचवर्षीय योजना के रूप में भारत पर इसका व्यावहारिक
प्रयोग सिद्ध करता है कि विकास आयोजन के साधन के रूप में इसकी बहुत अधिक उपयोगिता
है। परन्तु इसकी अपनी परिसीमाएँ तथा दुर्बलताएँ हैं :
1.किसी निश्चित
कल्याण फलन का हल करने में असमर्थ (Fails to solve any
definite welfare function)- यह मूलतः संक्रियात्मक मॉडल है। जैसाकि पहले ही स्पष्ट
किया जा चुका है, यह पहले से नियत अधिमान या कल्याण-फलन से
संबद्ध अनेक हलों में से अनुकूलतम हल पर पहुँचता है। परन्तु
मॉडल का संख्यात्मक हल किसी निश्चित कल्याण-फलन की ओर संकेत नहीं करता जिसके बिना
साधनों के अनुकूलतम वितरण पर पहुँचना सम्भव नहीं ।
2. λk का मूल्य मनगढन्त (Arbitrary value of λk)
महालनोबिस मान लेता है कि λk का
मूल्य 1/3 है परन्तु इसका कोई तर्कसंगत कारण नहीं बताता और इतना
ही कह देता है कि वर्तमान स्थितियों के अन्तर्गत इस मूल्य स बढ़ना सम्भव नहीं है।”
वह किसी भी अन्य वितरण प्राचल के लिए इसका कोई मूल्य या कोई भी अन्य मूल्य बड़ी
आसानी से ले सकता था और उसके परिणामस्वरूप सम्भवतः परिणाम भी अधिक अच्छे उपलब्ध
होते । इसलिए λk
=1/3 की धारणा कुछ-कुछ मनमानी है। और योजना बनाने वाले इसमें सहायक नहीं हैं कि वे
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश के अनुकूलतम वितरण के लिए सही हल
प्राप्त कर सकें।
3. λ तकनीक खुली अर्थव्यवस्था पर लागू
नहीं होती (λ Technique not applicable
to open economy)- फिर λ तकनीकी का प्रयोग संकेत करता है कि निवेश
एक एकल-समरूप-कोष (single homogeneous fund) है जिसका एकल-प्रकार भी निवेश-वस्तु के
लिए उपयोग होता है। क्योंकि निवेश-वस्तुएँ बहुजातीय
(heterogeneous) होती हैं, अतः इसके लिए निवेश-आव्यूह (investment matrix) के
प्रयोग की आवश्यकता है। इसलिए, इसे खुली अर्थव्यवस्था के मॉडल पर नहीं लागू किया जा सकता, जहाँ कि व्यवस्था समरूप (homogeneous) नहीं होती।
4. कृषि उत्पादन
की पूर्ति अनन्त लोचदार नहीं (Supply of agricultural produce not
infinitely elastic)- महालनोबिस मॉडल इस मान्यता पर आधारित है कि कृषि उत्पादन की पूर्ति
अनन्त लोचदार है । यह अमान्य है क्योंकि द्वितीय पंचवर्षीय योजना
के प्रारंभ होने से अब तक कृषि उत्पादन की पूर्ति खाद्य-पदार्थों तथा कच्चे माल की
बढ़ती हुई माँग को पूरा करने में असमर्थ रही है।
5. श्रम पूर्ति
भी अनन्त लोचदार नहीं ( Supply of labour also not infinitely
elastic)- यह श्रम की पूर्ति को भी अनन्त लोचात्मक मान लेता है,
जोकि ठीक नहीं प्रतीत होता, भले ही भारत जैसे अल्पविकसित देश को बेरोजगारी और अल्प-रोजगारी
की गम्भीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। उत्पादक ढाँचे के लिए साधारण श्रम की
ही नहीं बल्कि कुशल और प्रशिक्षित श्रम तथा प्रबन्धकर्ता की आवश्यकता होती है।
6. उत्पादन तकनीक
स्थिर नहीं रहती (Production technique not constant) हेरेंड
की भाँति महालनोबिस भी यह मान्यता लेकर चलता है कि योजना की अवधि
में उत्पादन की तकनीक स्थिर रहती है । वास्तव में, विकास की प्रक्रिया के दौरान
प्रौद्योगिकीय प्रगति का होना आवश्यक है। इस प्रकार यह मॉडल हमारे लिए बहुत उपयोगी
नहीं है।
7. संरचनात्मक
प्राचलों को दिए गए मूल्य मनगढन्त (Arbitrary values for
structural parameters)- संरचनात्मक प्राचलों (β's
एवं θ's) को दिए गए मूल्य भी
काल्पनिक हैं । वास्तव में, अल्पविकसित देश में β's और θ's के सही मूल्यों का
हिसाब लगाना बहुत ही कठिन होता है। क्योंकि उसमें पर्याप्त विश्वसनीय आँकड़ों का
पूर्णतया अभाव होता है
8. मिश्रित अर्थव्यवस्था
में निवेश पर मौन (Silent over investment in mixed economy)-
महालनोबिस का मॉडल योजना बनाने वालों का इस सम्बन्ध में भी
मार्गदर्शन करने में असमर्थ है कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में निवेश के भागों
का निर्णय कर सकें। प्रजातन्त्रात्मक देश की मिश्रित अर्थव्यवस्था में विकास योजना
की इस महत्वपूर्ण समस्या के बारे में यह मॉडल चुप है।
9.साधन कीमतों
की उपेक्षा ( Ignores factor prices)-- इस मॉडल की एक अन्य महत्वपूर्ण
त्रुटि यह है कि अपने मॉडल के आधार पर लक्ष्य निश्चित करते हुए
साधन कीमतों के ढाँचों की उपेक्षा करता है।
10. बन्द अर्थव्यवस्था
(Closed
economy)-- यह मॉडल बन्द अर्थव्यवस्था पर लागू होता है। महालनोबिस
यह मान लेता है कि निवेश वस्तुओं के कोई आयात या निर्यात नहीं होंगे। इस प्रकार वह
मॉडल के चलों पर विदेशी व्यापार के प्रभाव की उपेक्षा करता है और इसे वास्तविकता
से दूर ले जाता है।
11. माँग फलनों
की उपेक्षा (Neglects demand functions)- महालनोबिस मॉडल पूर्ण रूप से
पूर्ति-फलनों पर संकेन्द्रण करता है और माँग-फलनों की बिल्कुल
उपेक्षा कर जाता है। यह मान्यता अयाथार्थिक है और वृद्धि मॉडल को अपूर्ण छोड़ देती
है। “दरअसल, मार्केट शक्तियों, मनोवैज्ञानिक वातावरण, जन-उत्साह से सम्बद्ध अनेक
महत्वपूर्ण विचारणाएँ और विशिष्ट दबाव-बिन्दुओं का उत्पन्न होना किसी पिछड़ी हुई
अर्थव्यवस्था में विकास योजना के मार्ग में अनिवार्य रूप से अन्तर्ग्रस्त रहता है।
महालनोबिस का मॉडल गणितीय सरलता के लिए इन महत्वपूर्ण समस्याओं को चुपचाप छोड़
जाता है।"
12. निवेश निर्णयों को अपेक्षित बचत दरों के साथ जोड़ने में असफलता (Failure
to link-up investment decisions with the rates of saving
required)- प्रो० के. एन. राज के अनुसार महालनोबिस मॉडल की एक
कमी यह है कि यह निवेश निर्णयों को अपेक्षित बचत दरों के साथ जोड़ने में असफल रहा
है । ऊँची सीमान्त बचत दरों की आवश्यकता उत्पादन की पूँजी-गहन तकनीकों के पक्ष में
एक मुख्य तर्क है।
13. तकनीकों
के चुनाव की समस्या को समझाने में असफल (Failure to explain the
problem of choice of techniques)- प्रो० राज के ही अनुसार, सैद्धान्तिक दृष्टिकोण
से महालनोबिस मॉडल तकनीकों के चुनाव की समस्या को सन्तोषजनक ढंग
से समझाने में असफल रहा है । वह पूछता है, यदि क्षेत्र C उत्पादन की तकनीकों के
अनुसार बांटा जा सकता है तो क्षेत्र K क्यों न इसी तरह बाँटा जाए? मशीन-औजार के
निर्माण में भी अधिक और कम पूँजी-गहन तकनीकें होती हैं । श्रम-गहन तकनीकों का पक्ष
अधिक स्पष्ट वर्णित किया जा सकता था।
निष्कर्ष (Conclusion) ---
यह
है कि इन व्यावहारिक तथा सैद्धान्तिक दुर्बलताओं के बावजूद महालनोबिस मॉडल द्वितीय
पंचवर्षीय योजना के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को विकास आयोजन के सही मार्ग पर डालने
में सहायक हुआ और इसने आगामी अधिक साहसिक योजनाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया।