सार्वजनिक व्यय के प्रभाव (EFFECTS OF PUBLIC EXPENDITURE)

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सार्वजनिक व्यय के प्रभाव (EFFECTS OF PUBLIC EXPENDITURE)
प्राचीन अर्थशास्त्री सार्वजनिक व्यय को अनुत्पादक तथा अपव्ययपूर्ण समझते थे परन्तु आज उनकी यह धारणा निर्मूल सिद्ध हो चुकी है । प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उत्पन्न बेरोजगारी की समस्या तथा 1930 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने सार्वजनिक व्यय के महत्व को आज पूर्णतया स्पष्ट कर दिया है । कीन्स की यह धारणा कि सार्वजनिक व्यय के माध्यम से प्रभावपूर्ण माँग में वृद्धि करके उत्पादन , आय एवं रोजगार के स्तर को ऊँचा उठाया जा सकता है , आज एक मत से स्वीकार की जाने लगी है । आज यह स्पष्ट हो चुका है कि सार्वजनिक व्यय वितरण की विषमताओं को कम करके , उत्पादन , आय एवं रोजगार में वृद्धि करके स्थिरता के साथ विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इस सम्बन्ध में डॉ० डाल्टन का कथन है कि , “ जिस प्रकार करारोपण को उत्पादन में कम से कम कमी करनी चाहिए , ठीक उसी प्रकार सार्वजनिक व्यय को उत्पादन में अधिक से अधिक वृद्धि करनी चाहिए । ” सार्वजनिक व्यय के प्रभावों का अध्ययन निम्न शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है :- ( A ) उत्पादन पर प्रभाव ( B ) वितरण पर प्रभाव ( C ) अन्य प्रभाव । ( A ) सार्वजनिक व्यय का उत्पादन एवं रोजगार पर प्रभाव ( EFFECTS OF…