मानव
एक ऐसा संसाधन है जो अन्य समस्त संसाधनों का उपभोगकर्ता भी है। मानव रहित संसाधन का
कोई महत्व नहीं है क्योंकि कोई भी संसाधन तब तक संसाधन नहीं कहा जा सकता है जब तक
कि उसमें मानव की आवश्यकता पूर्ति अथवा कठिनाई निवारण की आंशिक या पूर्ण क्षमता
विद्यमान नहीं होती। मानव का सम्बन्ध धरातल की प्रत्येक वस्तु से है।
भूमि-मानव अनुपात (Land-Man Ratio)
भूमि-मानव
अनुपात से तात्पर्य भूमि पर मानव निवास तथा वहाँ पाये जाने वाले संसाधनों का उपयोग
आदि से है। संसार के विभिन्न भाग ऐसे हैं जो जनशून्य हैं जबकि दूसरी ओर जनाधिक्य
पाया जाता है। भूतल पर पाये जाने वाले संसाधनों का उपयोग तो मानव द्वारा ही किया
जाता है। अधिकांश भाग ऐसे हैं जहाँ पर्याप्त मात्रा में संसाधनों के भण्डार हैं
तथा कुछ कठिनाइयों के कारण उनका समुचित दोहन नहीं हो पाता है जबकि ऐसे क्षेत्र भी
हैं जिन्हें पूर्णतः खोदकर खोखला कर दिया गया है। मानव ने कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं
छोड़ा है जहाँ उसने अपनी पहुँच न बनायी हो। उसने भूमि के प्रत्येक भाग का प्रयोग
करने का बीड़ा (अधिकार) उठाया है। मानव भूतल पर रहता है, कृषि करता है, उद्योग
चलाता है तथा विभिन्न अन्य क्रियाकलाप करता है। यही मानव एवं भूमि उपयोग है।
धरातल
तो सीमित है अर्थात् इसे बढ़ाया नहीं जा सकता है किन्तु मानव लगातार बढ़ता जा रहा है।
अतः उसके हिस्से में भूमि का हिस्सा लगातार कम होता जा रहा है। ध्यान देने की बात
है कि ईसा पूर्व 5000 में विश्व की जनसंख्या 20 लाख थी जो लगातार बढ़ती हुई 2011
में 6980234078 (698 करोड़) पहुँच गयी है। इस प्रकार लगातार प्रति व्यक्ति भूमि कम
होती चली गयी। जिन क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति भूमि अधिक है, वहाँ का जीवन स्तर
उच्च होगा बशर्ते अन्य परिस्थितियाँ उसके अनुकूल हों। कनाडा, संयुक्त राज्य
अमेरिका, ब्राजील, साइबेरिया तथा ऑस्ट्रेलिया में जनसंख्या की अपेक्षा भूमि अधिक
है। वहाँ पाये जाने वाले संसाधनों का समुचित उपयोग करके प्रति व्यक्ति आय बढ़ायी
जा सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में नवीन संसाधनों का अस्तित्व में आना
जनसंख्या वृद्धि का कारण रहा है।
जनांकिकी तत्व (Demographic Elements)
यह
उस पक्ष को प्रदर्शित करता है जिसकी माप हो सके एवं जिनकी सहायता से दो भिन्न
प्रकार के व्यक्तियों के समूह में अन्तर स्पष्ट किया जा सके। आयु, लिंग, साक्षरता,
ग्रामीण-नगरीय अनुपात, व्यावसायिक संरचना आदि प्रमुख घटक हैं। यहाँ
पाठ्यक्रमानुसार ही विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है-
आयु संरचना (Age Structure)
जनसंख्या
की शक्ति एवं क्षमता के अध्ययन में आयु संरचना सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है। आयु- वर्गानुसार
वर्गीकरण से देश की जनसंख्या के वास्तविक चित्र का ज्ञान प्राप्त किया जाता है कि
जनसंख्या में कितने बच्चे हैं, कार्यशील जनसंख्या कितनी है तथा कितने व्यक्ति जीवन
की अन्तिम अवस्था में हैं। इसी आधार पर सन्तानोत्पादन योग्य समूह की स्त्रियों का
अनुमान लगाया जा सकता है।
आयु संरचना के अध्ययन का महत्व (Importance of Study of Age
Structure)-
आयु
संरचना के अध्ययन का वर्तमान समय में महत्व निम्नांकित क्षेत्रों में है-
(1)
किसी क्षेत्र की आयु संरचना के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि उस क्षेत्र की जनसंख्या
में शक्ति का प्रतिशत कितना है तथा कितने प्रतिशत जनसंख्या को रोजगार की आवश्यकता है।
(2)
आयु व्यक्ति की आवश्यकताओं, कार्यक्षमता, दृष्टिकोण तथा विचारों को प्रभावित करती है।
यह कारण है कि आयु संरचना का किसी राष्ट्र की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था पर सर्वाधिक
प्रभाव पड़ता है।
(3)
आयु संरचना के अध्ययन से निर्भरता अनुपात को ज्ञात किया जा सकता है। जब किसी राष्ट्र
में निर्भरता अनुपात उच्च होता है तो इसका आशय यह होता है कि उस क्षेत्र की कार्यशील
जनसंख्या पर दबाव अधिक है।
(4)
किसी देश की भविष्य की जनसंख्या वृद्धि प्रतिरूप को जानने के लिए उस देश की आयु संरचना
का ज्ञान आवश्यक होता है क्योंकि आयु संरचना का सीधा प्रभाव जन्म-दर, मृत्यु-दर, विवाह-दर
तथा जनसंख्या की प्रजनन क्षमता पर पड़ता है।
(5)
किसी जनसंख्या में उपभोक्ता व उत्पादक का अनुपात उस जनसंख्या की बचत व व्यय की क्षमता
को निर्धारित करता है। उपभोक्ता व उत्पादक का अनुपात काफी सीमा तक आयु संरचना की सहायता
से ज्ञात किया जा सकता है।
(6)
आयु संरचना के अध्ययन से उन वृद्ध लोगों की संख्या सरलता से ज्ञात की जा सकती है जिन्हें
वृद्धावस्था पेंशन का लाभ दिया जाता है।
वस्तुतः
आयु समूह की दृष्टि से जनसंख्या वितरण के निम्नांकित दो तथ्य महत्वपूर्ण है-
(i)
सामान्यतः विकासशील देशों में युवा जनसंख्या और विकसित देशों में वृद्धों की जनसंख्या
का आधिक्य पाया जाता है।
(ii)
जिन देशों को आज विकसित कहा जाता है, उनमें भी पूर्व औद्योगिक अवस्था में युवा जनसंख्या
का आधिक्य था किन्तु औद्योगिक विकास के उत्कृष्ट काल में इसमें परिवर्तन आ गया है और
वृद्ध जनसंख्या का प्रतिशत पूर्व की भाँति बढ़ गया है। ऐसी स्थिति को 'Aging of
Population' कहा जाता है। यह स्थिति संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन,
फ्रांस, नीदरलैण्ड्स, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा ऑस्ट्रिया में पायी जाती
है। अतः अब वहाँ वास्तविक जनसंख्या वृद्धि दर तेजी से घटती जा रही है।
किसी
भी देश की जनसंख्या 'युवा' अथवा 'वृद्ध' है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश
में स्त्रियों की प्रजनन क्षमता कैसी है। जब प्रजनन अधिक होता है तो जन्म-दर उच्च होती
है। अतः जनसंख्या युवा होती है। जब प्रजनन कम होता है तो जन्म-दर कम होने के कारण कम
बच्चों का जन्म होता है। विकासशील देशों में लड़कियाँ 15 से 17 वर्ष के मध्य एवं विकसित
देशों में 21 से 25 वर्ष की आयु के मध्य सामान्यतः विवाहित होती हैं। इस कारण भी उनकी
प्रजनन क्षमता कम रहती है।
आयु संरचना को निर्धारित करने वाले कारक (Determinants of Age
Structure)-
आयु
संरचना को निर्धारित करने वाले कारक निम्नांकित हैं-
(1) प्रजननता (Fertility)- प्रजननता से तात्पर्य किसी
महिला अथवा उसके किसी समूह द्वारा किसी निश्चित समयावधि जन्मे कुल जीवित बच्चों की
वास्तविक संख्या से होता है। यदि किसी राष्ट्र में 0-14 वर्ष तक की आयु वर्ग तक की
जनसंख्या का प्रतिशत अधिक है तो इसका अर्थ उस राष्ट्र में प्रजननता दरों का अधिक होना
है। जहाँ प्रजननता दरें निम्न हैं तथा प्रत्याशित आयु अधिक है, वहाँ बाल आयु वर्ग में
जनसंख्या का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम मिलता है तथा प्रौढावस्था (15 से 64 वर्ष) था वृद्धावस्था
(65 वर्ष से अधिक) आयु वर्ग की जनसंख्या का प्रतिशत अधिक मिलता है। एशिया, अफ्रीका
तथा लैटिन अमेरिका के लगभग सभी विकासशील देशों में जन्म दर उच्च है। अत: 0-14 वर्ष
तक की आयु वर्ग का प्रतिशत 35 से 40 है, जबकि पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया
के विकसित देशों में निम्न जन्म-दर तथा उच्च जीवन प्रत्याशा के कारण 0-14 वर्ष आयु
वर्ग की जनसंख्या का प्रतिशत लगभग 25 है।
(2) मर्त्यता (Mortality)- यदि किसी जनसंख्या की मृत्यु
दर निम्न है तो उस जनसंख्या में प्रौढ़ावस्था व वृद्धावस्था वर्ग का प्रतिशत उस जनसंख्या
से अधिक होता है जिसकी मृत्यु-दरें उच्च होती हैं। उदाहरणार्थ, विकसित राष्ट्रों में
मृत्यु-दरों की न्यूनता के कारण प्रौढ़ावस्था व वृद्धावस्था आयु वर्ग का प्रतिशत अधिक
रहता है। इसके विपरीत यदि बाल आयु वर्ग की मृत्यु दर वृद्धावस्था आयु वर्ग की मृत्यु
दर से कम रहती है तो इससे बाल आयु वर्ग की जनसंख्या के प्रतिशत में वृद्धि होगी।
(3) प्रवास (Migration)- प्रवास आयु तथा लिंग चयनित
होते हैं। 20 से 45 वर्ष आयु के पुरुष प्रवास पर अधिक जाते हैं। अतः बहिर्पवास के क्षेत्र
में युवा और प्रौढ़ पुरुषों की कमी तथा अप्रवासित क्षेत्र में इनकी अधिकता होती है।
प्रवास प्रक्रिया से किसी दी गयी समयावधि में किसी देश की आयु संरचना में परिवर्तन
होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
(4) अन्य (Others)- उपर्युक्त कारकों के अतिरिक्त
प्राकृतिक प्रकोप, महामारी, युद्ध तथा जनसंख्या नीतियों के कारण भी आयु वर्ग प्रभावित
होता है।
आयु विश्लेषण की विधियाँ (Methods of Age Analysis)-
आयु
विश्लेषण की निम्नांकित विधियाँ हैं-
(1)
आयु पिरामिड (Age Pyramid)
(2)
आयु वर्ग (Age Groups)
(3)
आयु सूचकांक (Age Indices)
(1) आयु पिरामिड(Age Pyramid)- इसे जनसंख्या स्तूप
अथवा आयु लिंग स्तूप भी कहा जाता है। आयु एवं लिंग गठन का आरेखीय चित्रण ही आयु लिंग
स्तूप या जनसंख्या स्तूप या आयु पिरामिड कहलाता है। इसमें पुरुष एवं स्त्री दोनों की
जनसंख्याओं को सम्मिलित किया जाता है। इसमें आयु संरचना को प्रदर्शित करने के लिए ऊर्ध्वाधर
रेखा पर आयु समूह तथा क्षैतिज रेखा पर उस आयु समूह के पुरुष व महिलाओं को प्रदर्शित
किया जाता है। ऊधिर अक्ष पर 5 वर्ष के सतत् अन्तराल से आयु वर्ग प्रदर्शित किया जाता
है। आयु वर्ग के दायों ओर महिलाओं को एवं बायीं ओर पुरुषों को प्रदर्शित किया जाता
है।
पिरामिड
ऐसे भी बनाए जाते हैं जहाँ क्षैतिज अक्ष पर पूर्ण जनसंख्या का प्रदर्शन किया जाता है
तथा पुरुष एवं स्त्रियों के लिए पृथक्-पृथक् एवं सम्मिलित दोनों ही रूपों में पिरामिड
तैयार किए जाते हैं। आयु पिरामिड की आकृति एक महत्वपूर्ण सूचक होती है।
विकसित
राष्ट्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के विकसित व उच्च जीवन-स्तर होने के कारण पिरामिड अधिक
ऊँचा होता है तथा इसकी आकृति उतनी ही अधिक आयताकार होती है, जबकि इसके विपरीत विकासशील
राष्ट्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के कम विकसित होने तथा निम्न जीवन-स्तर होने के कारण
जन्म व मृत्यु-दर दोनों उच्च रहती है जिससे पिरामिड का आकार शंकु जैसा मिलता है। ऐसा
शंकु कम ऊँचा होता है। इस प्रकार के आयु पिरामिड का आधार अधिक चौड़ा होता है जो शीघ्र
ही अवतल आकृति में ऊपर की ओर नुकीला होता जाता है। पिरामिड से निम्नांकित आकृतियाँ
स्पष्ट होती हैं-
(i) यदि किसी पिरामिड का आधार चौड़ा है तथा ऊपर की ओर शिखर लगातार पतला होता जाता
विश्व के प्रमुख देशों के आयु पिरामिड
है
तो इसका तात्पर्य है कि जन्म एवं मृत्यु-दर दोनों उच्च हैं। भारत में 1951 और छठे दशक
के अन्त तक तथा अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिका के देशों में आयु संरचना ऐसी ही थी।
(ii)
जब पिरामिडों में आधार अत्यन्त चौड़ा हो जबकि शिखर तीव्रगति से संकीर्ण होता जाता है
तो जन्म दर उच्च और क्रमशः ह्रासमान मृत्यु-दर वाले देश होते हैं।
(iii)
तृतीय वर्ग क्रमशः निम्न जन्म-दर व निम्न मृत्यु-दर कर द्योतक है। पश्चिमी यूरोपीय
देश तथा 1945 तक संयुक्त राज्य अमेरिका की यही स्थिति थी।
आयु संरचना के प्रभाव (Effects of Age Structure)-
आयु
संरचना के निम्नांकित प्रभाव होते हैं-
(i)
जिन देशों में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है, उनमें बच्चों की संख्या अधिक होगी।
यदि इनका आर्थिक विकास भली-भाँति होता रहे तो यह ऊँचा प्रतिशत एक प्रकार से लाभदायक
भी होता है क्योंकि वस्तुओं का उत्पादन अधिक होने के साथ-साथ श्रमिकों की संख्या भी
बढ़ती है किन्तु यदि आर्थिक दृष्टि से ये देश स्थिर होते हैं तो यह भार स्वरूप होता
जाता है जैसा कि भारत, मैक्सिको, ब्राजील तथा फिलीपाइन्स में देखने को मिलता है। जब
वृद्धों का प्रतिशत अधिक होता है तो वह भी भार स्वरूप हो जाता है।
(ii)
विकासशील देशों में बच्चों का प्रतिशत अधिक होने से राष्ट्रीय आय और उत्पादक वर्ग पर
निरन्तर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह प्रतिशत कुल जनसंख्या की श्रमशक्ति को कम करता
है जिसके कारण प्रति व्यक्ति उत्पादन और प्रति व्यक्ति आय भी कम होती है। विकसित राष्ट्र
की संख्या अपने ऊपर हुए राष्ट्रीय विनियोग के प्रतिफल में राष्ट्र को अपनी सेवाएँ देती
है जबकि विकासशील देशों में 15 से 64 वर्ष की आयु का प्रतिशत कम होने से आर्थिक विकास
में कमी रहती है।
(iii)
विकासशील देशों में प्रत्याशित आयु विकसित देशों की तुलना में कम होती है। 2009 के
अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका में 75 वर्ष, यूनाइटेड किंगडम में 77 वर्ष, कनाडा में
81 वर्ष, स्वीडन में 80 वर्ष तथा जापान में 79 वर्ष हैं जबकि विकासशील देशों में आयु
कम होती है। भारत में जन्म के समय प्रत्याशित आयु 62.7 वर्ष, पाकिस्तान में 61 वर्ष,
चीन में 71 वर्ष, ब्राजील में 71 वर्ष, बांग्लादेश में 60 वर्ष, इण्डोनेशिया में
68 वर्ष, मिस्र में 68 वर्ष है।
(2) आयु वर्ग (Age Group)- आयु वर्ग विधि से विभिन्न
देशों अथवा प्रदेशों की आयु संरचना का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। इस विधि में
जनसंख्या को विभिन्न आयु वर्गों में विभाजित कर लिया जाता है। आयु वर्गों की संख्या
तथा उनके बीच का समय अन्तराल विभिन्न देशों की जनगणनाओं में भिन्न-भिन्न होता है। सामान्यतः
सम्पूर्ण जनसंख्या को तीन वर्गों में रखा जाता है-
(i) बाल आयु वर्ग (0-14 वर्ष)- इस वर्ग में 15 वर्ष से कम
आयु के शिशु एवं बच्चों को सम्मिलित किया जाता है। यह आयु वर्ग आर्थिक दृष्टि से अनुत्पादक
होता है तथा यह समाज तथा देश पर बोझ रहता है क्योंकि इनके भोजन, वस्त्र, शिक्षा तथा
स्वास्थ्य पर व्यय करना पड़ता है परन्तु यही आयु वर्ग भविष्य की आधारशिला भी है। नवीनतम
आँकड़ों (2009) के अनुसार विश्व की 30% जनसंख्या इस वर्ग में है। विकसित देशों में
इस वर्ग में जनसंख्या 19% तथा विकासशील देशों में 36% है। इससे स्पष्ट है कि विकासशील
देशों में बाल आयु वर्ग की जनसंख्या विकसित देशों से लगभग दो-गुनी है। विश्व के महत्वपूर्ण
विकसित देशों में इस वर्ग में जनसंख्या का प्रतिशत जापान में 14%, जर्मनी में 15%,
रूस में 16%, कनाडा में 18%, यूनाइटेड किंगडम व जर्मनी में 19% तथा संयुक्त राज्य अमेरिका
में 21% है। इसके विपरीत विकासशील देशों में (मिस्र में 36%, नाइजीरिया, इथियोपिया
में 44%, ब्राजील में 30%, भारत में 36%, पाकिस्तान में 42%, श्रीलंका में 27%) इस
बाल आयु वर्ग में जनसंख्या प्रतिशत अधिक पाया जाता है। यहाँ बाल आयु वर्ग का प्रतिशत
अधिक होने का कारण उच्च जन्म-दर का होना है।
(ii) प्रौढ़ आयु वर्ग (15-64 वर्ष)- इस आयु वर्ग में सामान्यतः
15 से 64 वर्ष तक की आयु वर्ग के लोग सम्मिलित किए जाते हैं। यह वर्ग आर्थिक रूप से
सर्वाधिक उत्पादक तथा जैविक रूप से प्रजननकारी व पुनरुत्पादनकारी होता है। इस वर्ग
की जनसंख्या पर ही अधिकांश लोग निर्भर करते हैं। यह वर्ग अधिक क्रियाशील व गतिशील होता
है। विकसित राष्ट्रों में विकासशील राष्ट्रों की तुलना में इसमें जनसंख्या प्रतिशत
अधिक पाया जाता है। विकासशील देशों में जहाँ जन्म-दर उच्च पायी जाती है, वहाँ इस जनसंख्या
का प्रतिशत कम पाया जाता है। यहाँ मृत्यु-दर भी सामान्यतः अधिक रहती है। इस आयु वर्ग
की जनसंख्या के प्रतिशत अंश व जन्म एवं मृत्यु दर की मात्रा के मध्य विपरीत सह सम्बन्ध
पाया जाता है। 2001 के आँकड़ों के अनुसार विश्व में इस वर्ग की जनसंख्या 63.7% है जबकि
विकासशील देशों में 59.2% है। भारत में इस आयु वर्ग में 81% जनसंख्या है। पाकिस्तान
में 54.5%, बांग्लादेश में 68% तथा ब्राजील में 69.9% जनसंख्या इस आयु वर्ग की है।
(iii) वृद्ध आयु वर्ग (65 वर्ष से अधिक)- इस आयु वर्ग में 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग सम्मिलित किए जाते हैं। विश्व की लगभग 8% जनसंख्या इस वर्ग में है। इस आयु वर्ग में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों का प्रतिशत अधिक पाया जाता है जो सामान्यतः अनुत्पादक होती हैं। इनकी संख्या के अधिक पाए जाने का कारण स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों की अधिक मृत्यु होना है। इस आयु वर्ग की जनसंख्या देश पर आर्थिक रूप से बोझ के रूप में होती है तथा इसका आर्थिक उत्पादन कार्य में न्यूनतम योगदान रहता है। यह आयु वर्ग अपने जीवन-यापन के लिए प्रौढ़ आयु वर्ग पर आश्रित रहता है। उच्च स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण विकसित देशों में इस आयु वर्ग का प्रतिशत 15% है जबकि विकासशील देशों में मात्र 5% प्रतिशत है। इस आयु वर्ग में जनसंख्या कनाडा, युरुग्वे, ऑस्ट्रेलिया में 15%, संयुक्त राज्य अमेरिका में 14%, स्वीडन में 21%, बेल्जियम तथा जर्मनी में 19%, यूनाइटेड किंगडम तथा फ्रांस में 16%, इटली में 22%, जापान में 20%, भारत में एवं पाकिस्तान में 4%, श्रीलंका एवं चीन में 7%, बांग्लादेश में 3%, मिस्र में 5% तथा ब्राजील में 6% है।
प्रमुख विकसित देशों में जनसंख्या आयु संरचना, 2001 (प्रतिशत में)
देश |
आयु समूह |
||||
0-4 |
5-14 |
15-24 |
25-64 |
65 से ऊपर |
|
सं.रा. अमेरिका |
6.9 |
14.6 |
13.6 |
52.1 |
12.8 |
ग्रेट ब्रिटेन |
6.2 |
13.1 |
12.2 |
52.8 |
15.7 |
जापान |
4.8 |
10.4 |
13.6 |
55.2 |
16.0 |
फ्रांस |
6.0 |
12.8 |
13.2 |
52.1 |
15.8 |
जर्मनी |
4.6 |
11.0 |
10.8 |
57.7 |
15.9 |
स्वीडन |
5.9 |
12.8 |
11.8 |
52.1 |
17.4 |
इटली |
4.6 |
9.8 |
12.6 |
55.4 |
17.6 |
ऑस्ट्रेलिया |
6.9 |
14.3 |
11.7 |
52.4 |
12.4 |
देश |
आयु समूह |
||||
पाकिस्तान |
15.2 |
26.6 |
19.5 |
34.7 |
4.0 |
भारत |
12.0 |
22.5 |
19.3 |
41.6 |
4.6 |
ब्राजील |
10.1 |
20.1 |
20.2 |
44.6 |
5.1 |
चीन |
7.9 |
17.9 |
16.2 |
51.4 |
6.6 |
कीनिया |
14.8 |
28.8 |
23.4 |
30.3 |
2.7 |
श्रीलंका |
9.0 |
18.6 |
19.1 |
47.0 |
6.3 |
(3) आयु सूचकांक (Age Indices)- आयु सूचकांक द्वारा आयु संरचना की गणना करके कई महत्वपूर्ण आयु सूचकांक ज्ञात किए जाते हैं। आयु सूचकांकों में निम्नलिखित महत्वपूर्ण हैं-
को
निर्भरता अनुपात कहा जाता है। यह अनुपात जनसंख्या के ऐसे अनुपात का द्योतक है जिसके
एक आर अनुत्पादक जनसंख्या तथा दूसरी ओर उत्पादक जनसंख्या है अर्थात् प्रौढ आय वर्ग
पर बाल एव वृद्धा का भार ज्ञात है। यह भार विकसित देशों में कम तथा विकासशील देशों
में अधिक है।
भारत में आयु संरचना (Age Structure in India)
‘चन्द्रशेखर' के शब्दों में, "व्यक्ति की आयु उसके
स्कूल प्रवेश, श्रम बाजार में प्रवेश, मत देने का अधिकार, विवाह आदि का समय तय करने
में महत्वपूर्ण घटक है। आयु संरचचा, मृत्यु तथा विवाह- दर, जनसंख्या के आर्थिक तथा
व्यावसायिक संघटन तथा समाज की कुछ सामाजिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों पर गहरा प्रभाव
पड़ता है।
किसी
भी देश में प्रायः 4 वर्ष की आयु तक शिशु, 5 से 14 वर्ष की आयु वालों को किशोर-किशोरियाँ,
15 से 34 वर्ष की आयु वालों का नवयुवक-नवयुवतियाँ, 35 से 59 वर्ष तक की आयु वालों को
अधेड़ व्यक्ति तथा इससे अधिक आयु वालों को वयोवृद्ध माना जाता है। भारत में 2011 की
जनगणना के आधार पर आयु के अनुसार जनसंख्या का वितरण नीचे किया जा रहा है-
सारणी - आयु के अनुसार जनसंख्या वितरण (प्रतिशत में)
आयु समूह (वर्ष) |
1921 |
1951 |
1961 |
1971 |
1981 |
1991 |
2001 |
2011 |
0-14 |
39.17 |
38.34 |
41.03 |
42.02 |
39.6 |
38.0 |
34.33 |
31.7% |
15 से 39 |
55 54 |
55.86 |
53.30 |
41.99 |
53.0 |
54.0 |
58.70 |
63.5% |
60 से अधिक |
5.29 |
5.74 |
5.63 |
5.97 |
6.5 |
8.0 |
6.97 |
4.8% |
उपर्युक्त
तालिका से स्पष्ट है कि 1991 की जनगणना के अनुसार भारत की 38% जनसंख्या 15 वर्ष से
कम आयु वर्ग की थी। कुल जनसंख्या में 6 वर्ष से कम आयु वर्ग के शिशु 15.9% थे। 8% जनसंख्या
वृद्ध लोगों की थी जो 60 वर्ष या इससे अधिक आयु के हैं। कुल जनसंख्या में 54% 15 से
59 वर्ष की आयु के हैं।
किशोर
जनसंख्या का प्रतिशत घटा है। जहाँ 1971 में इनकी जनसंख्या का प्रतिशत 42.2 था, वहीं
1991 में घटकर 38 एवं 2001 में 34.33% रह गया है। इसका कारण घटती जन्म एवं मृत्यु-दर
है। नगरीय क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में किशोर एवं वृद्धों का अनुपात
अधिक है। इसके लिए निम्नांकित कारक उत्तरदायी हैं- (i) नगरों की तुलना में गाँवों में
उच्च जन्म दर, (ii) प्रौढ़ों का ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में प्रवास तथा
(iii) वृद्धों का पुनः ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवास। विभिन्न आयु वर्गों की जनसंख्या
प्रतिशत को तालिका में दर्शाया गया है-
2001
की जनगणना के अनुसार 0-6 वर्ष आयु के शिशुओं संख्या 15.78 करोड़ है जो कुल जनसंख्या
का 15.42 प्रतिशत है। भारत में राज्यानुसार 0-6 वर्ष आयु वर्ग की कुल जनसंख्या एवं
उनका कुल जनसंख्या के अनुपात को आगे दर्शाया गया है-
भारत
में राज्यवार शिशुओं (0-6) आयु वर्ग की कुल जनसंख्या
क्र. |
भारत/राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश |
शिशु जनसंख्या (0-6 आयु वर्ग)(2011) |
||
कुल व्यक्ति |
पुरुष |
स्त्रियाॅं |
||
|
भारत |
15,87,89,287 |
8,29,52,135 |
7,58,37,152 |
1. |
जम्मू एवं कश्मीर |
20.08,642 |
10,80,662 |
9,27,980 |
2. |
हिमाचल प्रदेश |
7,63,864 |
4,00,681 |
3,63,183 |
3. |
पंजाब |
29,41,570 |
15,93,262 |
13,48,308 |
4. |
चण्डीगढ़ |
1,17,953 |
63,187 |
54,766 |
5. |
उत्तराखण्ड |
13,28,844 |
7,04,769 |
6,24,075 |
6. |
हरियाणा |
32,97,724 |
18,02,047 |
14,95,677 |
7. |
दिल्ली |
19,70,510 |
10,55,735 |
89,14,775 |
8. |
राजस्थान |
1,05,04,916 |
55,80,212 |
49,24,704 |
9. |
उत्तरप्रदेश |
2,97,28,235 |
1,56,53,175 |
1,40,75,060 |
10. |
बिहार |
1,85,82,229 |
96,15,280 |
89,66,949 |
11. |
सिक्किम |
61,077 |
31,418 |
29,659 |
12. |
अरुणाचल प्रदेश |
2,02,759 |
1,03,430 |
99,329 |
13. |
नागालैण्ड |
2,85,981 |
1,47,111 |
1,38,870 |
14. |
मणिपुर |
3,53,237 |
1,82,684 |
1,70,553 |
15. |
मिजोरम |
1,65,536 |
83,965 |
81,571 |
16. |
त्रिपुरा |
4,44,055 |
2,27,354 |
2,16,701 |
17. |
मेघालय |
5,55,822 |
2,82,189 |
2,73,633 |
18. |
आसाम |
45,11,307 |
23,05,088 |
22,06,219 |
19. |
पश्चिम बंगाल |
1,01,12,599 |
51,87,264 |
49,25,335 |
20. |
झारखण्ड |
52,37,582 |
26,95,921 |
25,41,661 |
21. |
ओड़ीसा |
50,35,650 |
26,03,208 |
24,32.442 |
22. |
छत्तीसगढ़ |
35,84,028 |
18,24,987 |
17,59,041 |
23. |
मध्यप्रदेश |
1,05,48,295 |
55,16,957 |
50,31,338 |
24. |
गुजरात |
74,94,176 |
39,74,286 |
35,19,890 |
25. |
दमन एवं दीव |
25,880 |
13,556 |
12,324 |
26. |
दादरा एवं नागर हवेली |
49,196 |
25,575 |
23,621 |
27. |
महाराष्ट्र |
1,28,48,375 |
68,22,262 |
60,26,113 |
28. |
आन्ध्रप्रदेश |
86,42,686 |
44,48,330 |
41,94,356 |
29. |
कर्नाटक |
68,55,801 |
35,27,844 |
33,27,95 |
30. |
गोआ |
1,39,495 |
72,669 |
66,826 |
31. |
लक्षद्वीप |
7,088 |
3,715 |
3,373 |
32. |
केरल |
33,22,247 |
16,95.935 |
16,26,312 |
33. |
तमिलनाडु |
68,94,821 |
35,42,351 |
33,52,470 |
34. |
पुदुचेरी |
1,27,610 |
64,932 |
62,678 |
35. |
अण्डमान एवं निकोबार द्वीपसमूह |
39,497 |
20,094 |
19,403 |
आयु
के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि 1921 से 2001 की सभी जनगणनाओं में प्रत्याशित
आयु में वृद्धि होती रही है। इसका प्रमुख कारण बीमारियों एवं मृत्यु दर पर नियन्त्रण
किया जाना है जिससे मृत्यु दर में कमी आयी है। 1881-91 में मृत्यु-दर प्रति हजार
41 थी जो 1961-71 के मध्य 19 व 1971-81 के मध्य पुनः गिरकर 12.2 प्रति हजार रह गयी
तथा 1991 में यह 9.2 प्रति हजार थी 2002 में मृत्यु- दर 8.1 प्रति हजार है। भारत की
प्रत्याशित आयु को नीचे तालिका में दर्शाया गया है-
प्रत्याशित
आयु
वर्ष |
औसत आयु (वर्षो में) |
औसत आयु |
|
स्त्री |
पुरुष |
प्रति व्यक्ति (वर्षों में) |
|
1901-1910 |
23.30 |
22.60 |
22.9 |
1911-1920 |
20.30 |
19.40 |
20.1 |
1921-1930 |
26.56 |
26.91 |
26.8 |
1931-1940 |
31.37 |
31.09 |
31.8 |
1941-1950 |
31.66 |
35.45 |
32.1 |
1951-1960 |
40.60 |
41.90 |
41.3 |
1961-1970 |
45.60 |
47.10 |
46.4 |
1971-1980 |
51.55 |
52.62 |
52.0 |
-- 1991 |
59.91 |
58.60 |
58.8 |
-- 2001 |
61.80 |
60.40 |
61.3 |
2001-2006 |
66.91 |
63.87 |
- |
2011 -- |
66.10 |
64.52 |
65.31 |
लिंग अनुपात (Sex Ratio)
लिंग
अनुपात से तात्पर्य किसी जनसंख्या में सभी आयु वर्गों की कुल स्त्रियों व पुरुषों का
अनुपात है। लिंग अनुपात किसी क्षेत्र की वर्तमान एवं आर्थिक दशाओं का सूचकांक होता
है तथा प्रादेशिक विश्लेषण के लिए उपयोगी साधन है। इसका प्रभाव जनसंख्या वृद्धि, विवाह-दर
तथा व्यावसायिक संरचना जैसे अन्य जनांकिकी गुणों पर भी पड़ता है। किसी जनसंख्या में
रोजगार व उपभोग के प्रतिरूप सामाजिक आवश्यकताएँ और उसकी मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को
समझने में लिंग अनुपात का अध्ययन उपयोगी होता है। किसी क्षेत्र में लिंग अनुपात में
परिवर्तन से विभिन्न आयु स्तरों पर पुरुषो व स्त्रियों की जन्म व मृत्यु दर में परिवर्तन
तथा प्रवास के स्वरूप का ज्ञान होता है। इससे सामाजिक एवं आर्थिक जीवन की प्रवृत्ति
विश्लेषण और जनांकिकी तत्वों के प्रभाव को समझने में सहायता मिलती है। फ्रैंकलिन के
अनुसार, "लिंग अनुपात किसी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का एक सूचक है तथा प्रादेशिक
विश्लेषण के लिए अत्यन्त लाभदायक यन्त्र है”।
ट्रिवार्था के अनुसार, "किसी भी क्षेत्र के भौगोलिक
विश्लेषण के लिए दोनों लिंगों का अनुपात आधारभूत है क्योंकि यह न केवल स्थलरूप का एक
महत्वपूर्ण लक्षण है, अपितु यह अन्य जनांकिकीय तत्वों को भी महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित
करता है। अतः क्षेत्रीय स्थलरूप के विश्लेषण का यह एक अतिरिक्त माध्यम बन सकता
लिंगानुपात परिकलन की विधियाँ - लिंग अनुपात किसी विशिष्ट समय पर किसी देश, स्थान या जाति विशेष के स्त्री तथा पुरुषों की संख्या के बीच अनुपात को प्रदर्शित करता है। इसका परिकलन भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है। कुछ देशों में लिंग अनुपात को पुरुषों अथवा स्त्रियों की जनसंख्या के प्रतिशत रूप में व्यक्त किया जाता है। इसे निम्न सूत्रानुसार ज्ञात किया जाता है-
लिंगानुपात = `\frac MP`X 100 अथवा `\frac FP`X100
जहाँ,
M= पुरुषों की संख्या
F
= स्त्रियों की संख्या
P=कुल
जनसख्या
संयुक्त
राज्य अमेरिका में लिंग अनुपात प्रति 100 त्रियों पर पुरुषों की संख्या के रूप में
किया जाता है। इसकी गणना निम्नानुसार की जाती है
लिंगानुपात = `\frac MP`X 100
न्यूजीलैण्ड
में लिंग अनुपात का परिकलन प्रति 100 पुरुषों पर स्त्रियों के रूप में किया जाता है।
लिंगानुपात = `\frac FM`X 100
भारत
में प्रति एक हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या को लिंगानुपात कहा जाता है। यहाँ
2011 की जनगणना के अनुसार लिंगानुपात 940 है। इसे ज्ञात करने के लिए स्त्रियों की संख्या
में पुरुषों की संख्या का भाग देकर भागफल में 1000 से गुणा किया जाता है, यथा -
लिंगानुपात = `\frac FM`X 100
भारत
में 2011 के जनगणनानुसार स्त्रियों की संख्या 58.64 करोड़, पुरुषों की संख्या
62.37 करोड़
अतः सूत्रानुसार = `\frac{58.64}{62.37}\times1000=940`
यदि
लिंग अनुपात एक से अधिक है, तो इसका अर्थ है कि समाज में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों
की संख्या अधिक है। यदि यह अनुपात एक से कम है तो इसका अर्थ है कि स्त्रियों की संख्या
पुरुषों की तुलना में कम है। यदि यह अनुपात एक आता है तो इसका अर्थ है कि समाज में
स्त्रियों तथा पुरुषों की संख्या बराबर है।
लिंग अनुपात के प्रकार (Types of Sex Ratio)
समय
के आधार पर लिंगानुपात को निम्नांकित रूपों में समझा जा सकता है -
(1) प्राथमिक लिंगानुपात (Primary Sex Ratio)- यह लिंगानुपात
गर्भधारण के समय का होता है। आनुवांशिक विज्ञान की मान्यता है कि गर्भधारण के समय प्रत्याशित
लिंगानुपात समान नहीं होता है। जैव वैज्ञानिकों का मत है कि पुरुषों के Y शुक्राणु
स्त्री के X शुक्राणु से हल्के और तेज होते हैं जिससे उनका शीघ्र निषेचन हो जाता है।
अतः गर्भधारण में पुरुष शिशुओं की संख्या अधिक होती है।
(2) द्वितीयक लिंगानुपात (Secondary Sex Ratio)- यह
लिंगानुपात जन्म के समय का होता हैं सामान्यतः जन्म के समय पुरुष शिशुओं की संख्या
अधिक होती है।
(3) तृतीयक लिंगानुपात (Tertiary Sex Ratio)- यह
लिंगानुपात वह होता है जो जनगणना के समय प्राप्त किया जाता है। वास्तव में, यही वास्तविक
लिंगानुपात को प्रदर्शित करता है। इसकी गणना विश्व के विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न
प्रकार से की जाती है।
लिंगानुपात को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Sex
Ratio)
समय
और क्षेत्र परिवर्तन के साथ-साथ लिंग अनुपात में भी अन्तर आता जाता है। यह अन्तर निम्नांकित
कारणों से आता है-
(1) जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth)- प्रायः
देखा जाता है कि जन्म के समय पुरुष शिशुओं की संख्या स्त्री शिशुओं से अधिक होती है।
अनेक जैव वैज्ञानिकों का मत है कि पुरुष के Y शुक्राणु स्त्री के X शुक्राणु की अपेक्षा
हल्के और तेज होते हैं जिससे इनका शीघ्र निषेचन हो जाता है। अतः पुरुष शिशुओं की संख्या
अधिक होती है। इस सन्दर्भ में कर्ट महोदय ने निम्नांकित विचार रखे हैं-
(i)
गर्भाशय के Y शुक्राणु स्त्रियों के गर्भाशय में अधिक सुरक्षित रहते हैं जबकि स्त्रियों
के X शुक्राणु कम सुरक्षित रहते हैं।
(ii)
गर्भाशय में निहित अण्डे X शुक्राणु की अपेक्षा Y शुक्राणु के लिए अधिक अनुकूल प्रतिक्रिया
करते हैं।
(iii)
पुरुष के Y शुक्राणु गर्भाशय में अण्डे तक पहुँचने में X शुक्राणु की अपेक्षा अधिक
शक्तिशाली होते हैं।
(iv)
पुरुष के Y शुक्राणुओं की संख्या स्त्रियों के X शुक्राणुओं की अपेक्षा अधिक होती है।
जनांकिकीविदों
का यह भी मानना है कि कम आयु में विवाह होने से पुरुष शिशुओं की संख्या अधिक तथा अधिक
आयु में विवाह से स्त्री शिशुओं की संख्या अधिक होती है। इसी भाँति माता को कम आयु
होने पर प्रथम व द्वितीय क्रम वाले जन्मों में पुरुष शिशुओं की प्रधानता रहती है।
थोम्सन एवं लेविस
के अनुसार, जिन देशों में बच्चों के जन्म से पूर्व मृत्यु-दर निम्न है, वहाँ जन्म के
समय लिंग अनुपात की दर भी निम्न होती है अर्थात् पुरुष शिशुओं की संख्या कम होती है।
इसके विपरीत जिन देशों में जन्म के पूर्व ही मृत्यु-दर उच्च है, वहाँ जन्म के समय लिंग
अनुपात की दर भी उच्च रहती है अर्थात् पुरुष शिशुओं की संख्या अधिक होगी। इस प्रकार
बहुसंख्यक मुस्लिम राष्ट्रों और एशियाई देशों में उच्च पुरुष जन्म-दर, यूरोप तथा उत्तरी
अमेरिका में मध्यम तथा दक्षिणी अमेरिका में निम्न पायी जाती है।
(2) स्त्री-पुरुष मृत्यु-दर में भिन्नता (Different Morality of
Sexes)-
स्त्री एवं पुरुष मृत्यु-दर में भिन्नता पायी जाती है जो लिंगानुपात को प्रभावित करती
है। जैविक दृष्टि से स्त्रियों की जीवन प्रत्याशा पुरुषों की अपेक्षा अधिक होती है।
उनमें पुरुषों की तुलना में रोग सहन करने की क्षमता अधिक होती है। सभवतः इसीलिए विश्व
के सभी देशों में विभिन्न आयु-वर्ग में मरने वालों की संख्या पुरुषों को अधिक रही है।
फ्रैंकलिन के अनुसार अनेक विकसित देश, जैसे- U.S.A., ब्रिटेन, न्यूजीलैण्ड आदि में
जहाँ जन्म- दर सामान्य से निम्न रहती है, पोषण की सुविधाएँ तथा दवाएँ पर्याप्त मात्रा
में उपलब्ध हैं, जहाँ माताओं मृत्यु-दर निम्न है, स्त्री जाति के शिशुओं की सुरक्षा
पुरुष जाति के बच्चों की भाँति ही समान रूप से की जाती है, वहाँ पुरुष मृत्यु-दर स्त्री
मृत्यु-दर से उच्च है। ऐसा ही शिशुओं में भी पाया जाता है। जन्म के समय पुरुष शिशुओं
की संख्या अधिक होती है। 4 वर्ष की आयु तक स्त्री-पुरुष अनुपात लगभग सन्तुलित हो जाता
है क्योकि 4 वर्ष की आयु तक पुरुष शिशुओं की मृत्यु दर स्त्री शिशुओं की अपेक्षा अधिक
रहती है। 15 वर्ष की आयु तक जनसंख्या में लिंग अनुपात 100 से अधिक मिलता है क्योंकि
जन्म के समय उन्न लिंग अनुपात दर रहती है। 15 वर्ष की आयु के बाद प्रायः सभी उन्नत
देशों में लिंगानुपात उच्च होता है अर्थात् स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक होती
है। विकासशील व अल्प विकसित देशों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की मृत्यु दर अधिक
होती है। इन देशों में सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के निम्न स्तर व उसका स्त्रियों के
प्रतिकूल होना स्त्री मृत्यु दर की अधिकता का कारण है। पुनरुत्पादन काल में गर्भ धारण
करने की निरन्तरता न केवल मातृ मृत्यु-दर को बढ़ाती है बल्कि उनको आयु को भी कम करती
है।
(3) लिंग चयनात्मक प्रवास (Sex Selectivity among Migrants)- स्थानान्तरित
करने वालो में लिंग अनुपात की मात्रा प्रमुख रूप से सामाजिक-आर्थिक कारकों से नियन्त्रित
रहती है। स्थानान्तरण में सदैव लिंग चुनाव पाया जाता है अर्थात् इसमें स्त्री-पुरुष
दोनों समान रूप से सक्रिय नहीं होते हैं। जब अन्तर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय प्रवास आर्थिक
उद्देश्य के दृष्टिकोण से होता है तो इसमें पुरुषों की प्रधानता रहती है। आर्थिक कारणों
से होने वाले प्रवास में युवा तथा प्रौढ़ पुरुषों की अधिकता होती है। इस प्रकार प्रवास
के क्षेत्र में स्त्रियों की संख्या तथा अप्रवास के क्षेत्र में पुरुषों की संख्या
अधिक पायी जाती है। समय परिवर्तन के साथ अब स्त्रियों का भी प्रवास बढ़ने लगा है। स्मिथ
के अनुसार, उपनिवेशों की स्थापना पर उन क्षेत्रों की बागाती कृषि के विकास ने बड़ी
मात्रा में मजदूरों को वहाँ बसने के लिए आकर्षित किया और विशेषकर उन क्षेत्रों में
जहाँ पुरुषों की संख्या स्त्रियों की संख्या से बहुत अधिक थी।
(4) अन्य कारक (Other Factors)- उपर्युक्त कारकों के
अतिरिक्त युद्ध, अकाल, संक्रामक बीमारियाँ तथा समाज में स्त्रियों की प्रतिष्ठा भी
लिंगानुपात को प्रभावित करते हैं।
यदि
किसी क्षेत्र में लम्बे समय तक युद्ध चलता रहता है तो वहाँ पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों
की संख्या अधिक पायी जाती है क्योंकि युद्ध के कारण पुरुषों की मृत्यु-दर बढ़ जाती
है। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् यूरोप के युद्धरत देशों में सैनिकों के अधिक संख्या
में मारे जाने से लिंगानुपात उच्च हो गया।
अकाल
तथा दुर्भिक्ष के कारण भी पुरुष ही बड़ी मात्रा में स्थानान्तरित होते हैं जिससे स्त्रियों
की संख्या बढ़ जाती है और जहाँ वे पहुँचते हैं, वहाँ पुरुषों की संख्या में वृद्धि
हो जाती है।
संक्रामक
बीमारियों के कारण मृत्यु दर बढ़ जाती है। इसमें भी स्त्रियों की तुलना में पुरुष अधिक
मरते हैं। जिस समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं होती अर्थात् उन्हें उपेक्षित
रखा जाता है, वहाँ स्त्रियों का अनुपात कम हो जाता है। मुस्लिम समाज में स्त्रियों
पर अनेकानेक प्रतिबन्ध होते हैं। अतः लिंगानुपात पुरुषों के पक्ष में जाता है।
भारत में लिंगानुपात (Sex Ratio in India)
भारत
में जनसंख्या की संरचना की प्रमुख विशेषता लिंगानुपात में विषमता का पाया जाना है।
भारत की जनसंख्या पुरुष प्रधान है अर्थात् स्त्रियों की तुलना में पुरुषों की संख्या
अधिक है। भारत में 1000 पुरुषों के पीछे पायी जाने वाली स्त्रियों की संख्या को ही
लिंगानुपात कहा जाता है। यहाँ 2001 की जनगणना के अनुसार लिंगानुपात 933 है। भारत में
1901 से 2011 तक लिंगानुपात नीचे तालिका में दर्शाया गया है-
भारत
में लिंगानुपात (1901-2011)
वर्ष |
लिंगानुपात (प्रति एक हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या) |
1901 |
972 |
1911 |
964 |
1921 |
955 |
1931 |
950 |
1941 |
945 |
1951 |
946 |
1961 |
941 |
1971 |
930 |
1981 |
934 |
1991 |
927 |
2001 |
933 |
2011 |
940 |
भारत में लिंगानुपात
सन्
1961 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल 22.63 करोड़ पुरुष (51.1 प्रतिशत), 21.29 करोड़
स्त्रियाँ (48.9 प्रतिशत) थी। सन् 1971 में यह संख्या क्रमशः 28.4 करोड़ और 26.4 करोड़
अर्थात् 51.7 और 48.3 प्रतिशत थी। 1981 में 35.42 करोड़ पुरुष और 33.10 करोड़ स्त्रियाँ
थीं। अर्थात् कुल जनसंख्या में 51.4% पुरुष और 48.6% स्त्रियों का अनुपात था। 1991
में 43.93 करोड़ पुरुष एवं 40.70 करोड़ स्त्रियाँ थी। अर्थात् यह प्रतिशत क्रमशः
51.43 एवं 48.58 रहा। इस सम्बन्ध में एक विलक्षण बात यह है कि गत 90 वर्षों में स्त्रियों
का अनुपात पुरुषों की तुलना में निरन्तर कम होता गया है। यह तथ्य इन आँकड़ों से स्पष्ट
है- 1901 में प्रति 1,000 पुरुषों के पीछे 972 स्त्रियाँ थीं। स्त्रियों का अनुपात
घटकर 1911 में 964, 1921 में 955, 1931 में 950, 1941 में 945, 1951 में 946, 1961
में 941, 1971 में 930, 1981 में 934 एवं 1991 में 927 स्त्रियाँ प्रति 1,000 पुरुष
रह गया था। अब 2001 में देश में लिंगानुपात 933 है।
भारत में राज्यानुसार लिंगानुपात
2001
की जनगणना में भारत की कुल जनसंख्या में पुरुषों की संख्या 53,12,77,078 व महिलाओं
की संख्या 39,57,38,169 पायी गयी। इस प्रकार औसत रूप से प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं
की संख्या 933 रही जो 1991 की तुलना में अधिक है अर्थात् 1991 में यह 927 थी। 1901
में 1941 तक लगातार गिरावट प्रदर्शित करती है कि भारत में लिंगानुपात महिलाओं के प्रतिकूल
रहा है। 1951 में सकारात्मक सुधार हुआ किन्तु 1971 में पुनः गिरावट आयी तथा लिंगानुपात
930 रहा। केरल को छोड़कर 11 राज्य एवं केन्द्र शासित प्रदेश ऐसे थे जहाँ लिंगानुपात
अधिक था। इस अनुपात में गिरावट आयी है जिसके लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, ओड़ीसा,
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र व तमिलनाडु जिम्मेदार हैं। राजस्थान में
लिंगानुपात सदैव कम रहा है।
इसी
प्रकार 2011 की जनगणना में कुल 121,01,93,422 जनसंख्या में से पुरुष जनसंख्या
62,37,24,248 तथा महिला जनसंख्या 58,64,69,174 पायी गयी। इस प्रकार औसत 1000 पुरुषों
पर 940 महिलाओं की संख्या पायी गयी है जो कि 2001 की तुलना (933) में बढ़ी है।
भारत
को विविध राज्यों के लिंगानुपात का अध्ययन करने पर पता चलता है कि पूरे देश में दो
ही राज्य केरल तथा पुडुचेरी हैं जहां पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या अधिक
है। केरल में 1084 तथा पुडुचेरी में 1038 लिंगानुपात है। इसके अलावा सभी राज्यों में
पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां की संख्या कम है। भारत का 2011 में औसत लिंगानुपात
940 है। इससे अधिक लिंगानुपात वाले राज्य क्रमशः हिमाचल प्रदेश (974), उत्तराखड
(963), मणीपुर (987), मिजोरम (975), त्रिपुरा (961), मेघालय (986), आसाम (954), पश्चिम
बंगाल (947), झारखण्ड (947), ओड़ीशा (978), छत्तीसगढ़ (991), आंध्रप्रदेश (992), कर्नाटक
(968). गोवा (968) लक्षद्वीप समूह (946), तमिलनाडु (995) आदि है। भारत में राज्य अनुसार
लिंगानुपात का वर्णन 1901 से 2011 का अध्ययन हम निम्न तालिका में करेंगे।
ग्रामीण-नगरीय लिंगानुपात (Rural-Urban Sex Ratio)
यदि
ग्रामीण एवं नगरीय लिंगानुपात को देखा जाय तो पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में
पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या अधिक पायी जाती है। इसका कारण यह है कि ग्रामीण
क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पुरुष वर्ग नगरीय क्षेत्रों की ओर रोजगार की खोज में
जाते हैं जबकि स्त्रियाँ गाँवों में ही बनी रहती हैं।
2011
की जनगणना के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में लिंगानुपात 947 है जबकि नगरीय क्षेत्रों
में लिंगानुपात 926 है। 2001 के आँकड़ों से यदि तुलना करें तो ग्रामीण लिंगानुपात में
केवल । स्त्री की वृद्धि हुई है जबकि नगरीय क्षेत्रों में 25 स्त्रियों की वृद्धि दर
दिखाई दे रही है।
वर्ष |
ग्रामीण |
नगरीय |
1951 |
965 |
859 |
1961 |
963 |
845 |
1971 |
951 |
847 |
1981 |
954 |
880 |
1991 |
938 |
894 |
2001 |
946 |
901 |
2011 |
947 |
926 |
भारत में लिंगानुपात विषमता के कारण-
भारत
में विषम (पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की कमी) लिंगानुपात के महत्वपूर्ण कारक निम्नांकित
हैं-
(1) पुरुष शिशुओं का अधिक जन्म- जन्म के समय पुरुष
शिशुओं की संख्या स्त्री शिशुओं की तुलना में अधिक होती है। एक वर्ष की आयु तक लड़कों
की मृत्यु लड़कियों से अधिक होती है। एक वर्ष से पाँच वर्ष तक की आयु में लड़कियों
की संख्या में वृद्धि हो जाती है। इसके बाद 15 से 30 वर्ष के वर्ग में लड़कों की अपेक्षा
लड़कियों की मृत्यु-दर अधिक होती है।
(2) लड़कियों को भार स्वरूप मानना- भारत के अनेक प्रदेशों
में लड़कियों को भार स्वरूप माना जाता है। अतः उनका लालन-पालन पक्षपातपूर्ण तरीके से
किया जाता है। अतः उनमें कुपोषण हो जाता है अन्ततः मृत्यु हो जाती है।
(3) बाल विवाह- भारत में बाल विवाह बहुत होते हैं और छोटी
आयु में ही मातृत्व का भार वहन करने में अयोग्य होने के कारण बहुत-सी लड़कियों की प्रसूति
काल में ही मृत्यु हो जाती है।
(4) कन्या शिशुओं की हत्या- यह बड़ा दुर्भाग्य है कि हमारे
देश में लड़कियों को लड़कों की तुलना में कम पसन्द किया जाता है क्योंकि लोगों का मानना
है कि पुत्र ही मोक्ष दिलाता है। ऐसी स्थिति में लड़कियों को भ्रूण में ही मार डाला
जाता है।
(5) गरीबी- हमारे देश में गरीबी बहुत है। अतः स्त्रियों को गर्भावस्था में भी अन्तिम समय तक कार्य करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में उनकी असमय मृत्यु हो जाती है।