जनसंख्या की संरचना : साक्षरता,शिक्षा (POPULATION COMPOSITION: LITERACY, EDUCATION)

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साक्षरता जनसंख्या का एक ऐसा सामाजिक पक्ष है जिसके आधार पर सामाजिक विकास का मापदण्ड निश्चित किया जा सकता है। यह किसी देश या प्रदेश की उन्नति का सूचक है। साक्षरता के विकास से मानव सीमित परिवेश से बाहर निकलकर अपने क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक प्रवृत्तियों से अन्योन्याश्रित सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। साक्षरता देश के आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति तथा प्रजातन्त्र की सफलता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। साक्षरता जनसंख्या के अन्य जनांकिकी विशेषताओं, जैसे-उत्पादन- दर, मृत्यु-दर, आर्थिक प्रतिरूप आदि को प्रभावित करती है।

यूनाइटेड नेशन्स पॉपूलेशन कमीशन के अनुसार, "Literacy is the ability of a person to read and write with understanding a short simple statement of his everyday life."

इस परिभाषा से स्पष्ट है कि लिखने-पढ़ने की समझ ही साक्षरता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के जनसंख्या आयोग के अनुसार किसी भाषा के एक साधारण सन्देश को समझकर पढ़ एवं लिख सकने की क्षमता रखने वाले व्यक्ति को साक्षर कहा जाता है। भारतीय जनगणना में भी इसी आधार को माना गया है। साक्षरता को निर्धारित करने के लिए विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न आधार प्रयुक्त किए गए जिनमें से कुछ आधारों को आगे समझाया गया है-

(1) कुछ देशों में पाठशाला शिक्षा की अवधि के आधार पर साक्षरता का निर्धारण किया जाता है किन्तु ट्रिवार्था इस तरह की साक्षरता निर्धारण आधार के पक्षधर नहीं थे।

(2) कुछ देशों में साक्षरता-निर्धारण के लिए कठिन प्रश्नों को आधार बनाया गया अर्थात् कठिन पक्षों से सही उत्तर देने वालों को साक्षर माना गया यथा फिनलैण्ड में 1950 में ऐसा आधार निश्चित किया गया। इस तरह के आधार में जो सफलता प्राप्त नहीं कर सके, उन्हें दो भागों में विभक्त किया गया- (i) अर्द्धशिक्षित तथा (ii) अशिक्षित।

(3) हांगकांग में 1961 की जनगणना में उसे साक्षर माना गया जो अपने देश की भाषा को पढ़ सकता है।

(4) संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या आयोग ने उन सभी को साक्षर माना जो किसी एक भाषा में पढ़-लिख तथा समझ सकते हैं।

(5) भारत में उस व्यक्ति को साक्षर माना जाता है जो देश में प्रचलित किसी भी भाषा की वर्णमाला को समझता है या अपने हस्ताक्षर बना सकता है।

साक्षरता मापन की विधियाँ (Methods of Literney Measurement)-

सामान्यतः जनसंख्या के आधार पर साक्षरता दर दो प्रकार की होती है।

(1) अशोधित साक्षरता दर (Crude Literacy Rate)- अशोधित साक्षरता-दर कुल साक्षर व्यक्तियों तथा कुल जनसंख्या का प्रतिशत अनुपात होती है। इसे निम्नांकित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है-

यह विधि बहुत लोकप्रिय है किन्तु इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चे को भी सम्मिलित किया जाता है। इसके साथ-साथ इससे अधिक आयु होने पर विद्यालय देर से जाने वाले बच्चे भी साक्षर नहीं होते।

(2) आयु विशिष्ट साक्षरता दर (Age Specific Literacy Rate)- आयु विशिष्ट साक्षरता दर में एक निश्चित आयु वर्ग (5 या 7 वर्ष) के बच्चों को सम्मिलित नहीं किया जाता है। इसे निम्न सूत्र द्वारा निकाला जाता है-

विश्व के विभिन्न देशों में 5 वर्ष तो कहीं 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को साक्षरता दर में सम्मिलित नहीं करते।

साक्षरता के निर्धारक (Determinants of Literacy)-

विश्व के देशों में साक्षरता में भिन्नता पायी जाती है जिसके लिए अनेक आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा जनांकिकी कारक उत्तरदायी होते हैं। सामान्य साक्षरता प्रभावित करने वाले कारक निम्नांकित है-

(1) अर्थव्यवस्था का प्रकार- साक्षरता निर्धारित करने वाले कारकों में अर्थव्यवस्था का प्रकार महत्वपूर्ण होता है क्योंकि जहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है, वहाँ की साक्षरता दर निम्न होती है। इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि कृषि कार्य हेतु शिक्षा का कोई विशेष महत्व नहीं है। ऐसे अनेक देश हैं जहाँ निरक्षर व्यक्ति सफल कृषक रहे है। इसके विपरीत कृषि अर्थव्यवस्था के अतिरिक्त अन्य अर्थव्यवस्था वाले देशों में साक्षरता-दर उच्च पायी जाती है। प्राथमिक व्यवसायों को छोड़कर अन्य अर्थव्यवस्था वाले देशों में साक्षरता-दर उच्च पायी जाती है।

(2) आर्थिक विकास का स्तर- जिन देशों के आर्थिक विकास का स्तर उच्च होता है, वहाँ साक्षरता- दर उच्च पायी जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, पश्चिमी यूरोपीय देश तथा ऑस्ट्रेलिया में उच्य साक्षरता के लिए वहाँ का आर्थिक विकास उत्तरदायी है। इसके विपरीत आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए देशों में साक्षरता-दर निम्न पायी जाती है। साक्षरता का आर्थिक विकास से धनात्मक सह-सम्बन्ध पाया जाता है।

(3) प्राविधिक विकास स्तर- जहाँ औद्योगिक एवं तकनीकी विकास हुआ है, वहाँ साक्षरता दर उच्च पायी जाती है। इसके विपरीत जहाँ इनका विकास कम हुआ है, वहाँ साक्षरता दर निम्न पायी जाती है। प्राविधिक विकास हेतु शिक्षा का विशेष महत्व होता है क्योंकि इसके अभाव में व्यक्तियों को उच्च रोजगार मिल पाना सम्भव नहीं होता है।

(4) जीवन-स्तर - रहन-सहन के उच्च स्तर वाले परिवारों में साक्षरता अधिक पायी जाती है, जबकि निम्न स्तर वाले परिवारों में साक्षरता भी निम्न पायी जाती है क्योंकि वहाँ परिवार के सभी लोग अपने भरण- पोषण में भी लगे रहते है तथा शैक्षणिक सुविधाओं का नितान्त अभाव पाया जाता है।

(5) यातायात व संचार के साधन- विकासशील देशों में यातायात व संचार के साधनों का साक्षरता वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान होता है। इससे ग्रामीण क्षेत्र नगरीय क्षेत्रों से जुड़ते है। अतः उनमें शिक्षा के प्रति लगाव होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात व संचार के साधनों की कमी होती है। अतः लोग सरलता से दूर अध्ययन हेतु नहीं जा पाते हैं।

(6) जातीय एवं धार्मिक संरचना- विभिन्न जातियों एवं वर्गों में विभक्त समाजों में साक्षरता में भिन्नता पायी जाती है। इसी आधार पर धर्म के आधार पर भी इनमें भिन्नता पायी जाती है। इस्लाम धर्म में अन्य धर्मों की अपेक्षा साक्षरता थोड़ी कम पायी जाती है क्योंकि ये लोग धर्म के प्रति कट्टर होते हैं तथा नमाज बिना पुस्तकों के ही पढ़ ली जाती है जबकि अन्य धर्मों में धार्मिक पुस्तकों के माध्यम से ही पूजा- अर्चना की जाती है। इसका प्रभाव भी पड़ता है। वर्तमान समय में विभिन्न जातियों में प्रतिद्वन्द्विता के कारण साक्षरता-दर बढ़ रही है।

(7) समाज में स्त्रियों की दशा- जिन समाजों में स्त्रियों की दशा निम्न व प्रतिष्ठा कम पायी जाती है, उनमें स्त्री साक्षरता-दर कम पायी जाती है जबकि वे समाज जिनमें स्त्रियों को पुरुषों के समान समझा जाता है, उनमें साक्षरता-दर उच्च पायी जाती है। भारत में ईसाई स्त्रियों में साक्षरता-दर उच्च पायी जाती है।

(8) शिक्षा के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण- समाज में विभिन्न प्रकार की कुरीतियाँ तथा अंधविश्वास प्रचलित हैं जिससे शिक्षा के प्रति विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है। बहुत से लोगों का सोचना है कि उन्हें कौन-सी नौकरी करनी है, घर पर ही रहकर कृषि कार्य करना है जिसमें शिक्षा बाधक नहीं है। लड़कियों को घर से बाहर भेजने में अभी भी बहुत सोच-विचार होता है।

(9) शिक्षा सुविधाओं की उपलब्धि- जिन क्षेत्रों में शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध हैं, वहाँ साक्षरता का प्रतिशत बढ़ जाता है किन्तु जहाँ इनका अभाव पाया जाता है वहाँ दूर-दराज के क्षेत्रों में भेजने के बजाय घर पर बैठा लेना ज्यादा उचित समझा जाता है। प्रायः गरीब परिवारों के लोग शिक्षा के खर्च को वहन नहीं कर पाते हैं। अतः उनके बच्चे अशिक्षित ही रह जाते हैं।

(10) नगरीकरण- नगरीकरण की मात्रा तथा साक्षरता में धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है। नगरीकरण की मात्रा उच्च होने पर साक्षरता-दरें उच्च होती हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में विविध क्रियाकलापों में पारिवारिक रूप से बच्चे भी कार्य करने लगते हैं जिससे शिक्षा की ओर से विमुख हो जाते हैं।

(11) सरकारी नीति- सरकारी नीति का भी साक्षरता पर बहुत प्रभाव पड़ता है। विकासशील देशों में अनिवार्य शिक्षा, निःशुल्क शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम साक्षरता वृद्धि में सहायक होते हैं। हमारे देश में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में नवोदय विद्यालय खोले गए। इसके साथ-साथ विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था की गयी है ताकि शिक्षा के प्रति बच्चों एवं उनके अभिभावकों का रुझान बढ़े।

विश्व में साक्षरता प्रतिरूप (Literacy Pattern in the World)

विश्व के विभिन्न देशों में साक्षरता की मात्रा में भिन्नता पायी जाती है। एक देश के भीतर भी विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों या समुदायों की शिक्षा तथा साक्षरता में अन्तर पाया जाता है। यह अन्तर निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-

(1) ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्र में,

(2) पुरुष व स्त्री वर्ग में,

(3) विभिन्न सामाजिक व धार्मिक समुदायों में,

(4) विभिन्न व्यापारिक समूहों में।

आवास, लिंग, जातीय स्थिति तथा व्यावसायिक वर्गों के अनुसार साक्षरता में अन्तर एशिया तथा अफ्रीका के आर्थिक दृष्टि से पिछड़े देशों में ही अधिक पाया जाता है। उन्नत देशों में उच्च साक्षरता पायी जाती है।

अल्प विकसित देशों के ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों की साक्षरता की मात्रा में महत्वपूर्ण अन्तर पाया जाता है जिसके अग्रांकित कारण है-

(1) गाँवों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में शिक्षा प्राप्ति की सुविधाएँ अधिक है।

(2) नगरीय क्षेत्रों का सामाजिक, आर्थिक ढाँचा ऐसा होता है जिससे साक्षरता की आवश्यकता अधिक होती है।

(3) नगरीय जनसंख्या में अपने बच्चों को शिक्षा देने की सामाजिक चेतना तथा आर्थिक क्षमता अधिक होती है।

(4) नगरीय समाज में स्त्रियों की स्थिति एवं प्रतिष्ठा ग्रामीण समाज की अपेक्षा अच्छी होती है।

(5) ग्रामीण क्षेत्र के शिक्षित लोग रोजगार के लिए नगरों में आते हैं। अतः साक्षरता में वृद्धि हो जाती है।

पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की साक्षरता दर कम है। विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में स्त्रियों को साक्षरता दर न्यून है क्योंकि-

(1) यहाँ गरीबी का साम्राज्य है। अतः लड़कियों को विद्यालयों में भेजने की व्यवस्था नहीं हो पाती है।

(2) यहाँ स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में कम महत्व दिया जाता है। अतः स्त्री शिक्षा को कम महत्व दिया जाता है।

(3) इस्लाम धर्म मानने वाले देशों में स्त्री शिक्षा की उपेक्षा की जाती है।

(4) अल्पायु में लड़कियों का विवाह होने व उनकी गतिशीलता पर प्रतिबन्ध होने से उनकी शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है।

विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों की साक्षरता में भी भिन्नता पायी जाती है। भारत में मुसलमानों की तुलना में हिन्दुओं तथा ईसाइयों में साक्षरता उच्च पायी जाती है। ईसाइयों में साक्षरता सबसे अधिक पायी जाती है।

व्यवसाय के आधार पर शिकार, पशुपालन तथा कृषि कार्य में लगे लोगों में साक्षरता कम होती है क्योंकि इन व्यवसायों में बिना शिक्षा के ही काम चल जाता है। इसके विपरीत व्यापार, प्रशासन, निर्माण उद्योग तथा सेवाओं में लगे व्यक्तियों में साक्षरता अधिक होती है।

UNDP रिपोर्ट 2007-2008 के अनुसार विश्व के महत्वपूर्ण देशों की वयस्क साक्षरता नीचे तालिका में दर्शायी गयी है-

विश्व के चयनित देशों में वयस्क साक्षरता-दर

क्र.सं

देश

साक्षरता-दर

(प्रतिशत में)

क्र.सं.

देश

साक्षरता-दर

(प्रतिशत में)

1.

जॉर्जिया

100.0

32.

म्यांमार

89.9

2.

पोलैण्ड

99.8

33.

मलेशिया

88.7

3.

बार्बाडोस

99.7

34.

ब्राजील

88.6

4.

हंगरी

99.4

35.

 टर्की

87.4

5.

रूस

99.4

36.

लीबिया

84.2

6.

यूक्रेन

99.4

37.

साऊदी अरब

82.9

7.

ऑस्ट्रेलिया

99.0

38.

ईरान

82.4

8.

कनाडा

99.0

39.

दक्षिण अफ्रीका

82.4

9.

डेनमार्क

99.0

40.

सीरिया

80.8

10.

फिनलैण्ड

99.0

41.

ट्यूनीशिया

74.3

11.

फ्रांस

99.0

42.

मिस्र

71.4

12.

जर्मनी

99.0

43.

मैडागास्कर

70.3

13.

जापान

99.0

44.

अल्जीरिया

69.9

14.

नीदरलैण्ड्स

99.0

45.

नाइजीरिया

69.1

15.

न्यूजीलैण्ड

99.0

46.

अंगोला

67.4

16.

नॉर्वे

99.0

47.

कांगो

87.2

17.

यूनाइटेड किंगडम

99.0

48.

उगाण्डा

66.8

18.

संयुक्तराज्य अमेरिका

99.0

49.

भारत

61.3

19.

इटली

98.4

50.

सूडान

60.9

20.

युरुग्वे

96.8

51.

टोगो

63.2

21.

ग्रीस

96.0

52.

मोरक्को

52.3

22.

चिली

95.7

53.

पाकिस्तान

49.9

23.

पुर्तगाल

93.8

54.

नेपाल

48.6

24.

कुवैत

93.3

55.

बांग्लादेश

47.5

25.

वेनेजुएला

93.9

56.

भूटान

47.0

26.

फिलीपाइन

92.6

57.

सेनेगल

39.3

27.

थाईलैंड

92.6

58.

इथियोपिया

35.9

28.

मैक्सिको

91.6

59.

नाइजर

28.7

29.

चीन

90.9

60.

चाड

25.7

30.

श्रीलंका

90.7

61.

माली

24.0

31.

इण्डोनेशिया

90.4

62.

बर्कीना फासो

23.6

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि विश्व में वयस्क साक्षरता-दर उच्च हो चुकी है। विश्व के विकसित देशों में साक्षरता-दर बहुत उच्च है। इसका कारण है कि वहाँ शिक्षा अनिवार्य मानी जाती है। UNDP रिपोर्ट के अनुसार जॉर्जिया शत-प्रतिशत साक्षरता वाला देश है। इसके बाद 99% या इससे अधिक साक्षरता वाले देश क्रमशः क्यूबा (99.8%), एस्टोनिया (99.8%), पौलैण्ड (99.8%), बारबाडोस (99.7%), लाटविया (99.7%), स्लोवेनिया (99.7%), बेलारूस (99.6%), लिथुआनिया (99.6%), कजाकिस्तान (99.5%), तजाकिस्तान (99.5%), आरमेनिया (99.4%), हंगरी (99.4%), रूस (99.4%), यूक्रेन (99.4%), उजबेकिस्तान (99.4%), मोल्डोवा (99.1%), ऑस्ट्रेलिया (99.0%), आस्ट्रिया (99.0%), बेल्जियम (99.0%), कनाडा (99.0%), चैक गणराज्य (99.0%), डेनमार्क (99.0%), फिनलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, गुयाना, आइसलैण्ड, आयरलैण्ड, जापान, कोरिया गणराज्य, लक्जमबर्ग, नीदरलैण्ड्स, न्यूजीलैण्ड, नॉर्वे, स्लोवाकिया, स्पेन, स्वीडन, स्विट्जरलैण्ड, यूनाइटेड किंगडम तथा संयुक्त राज्य अमेरिका (99.0%) आदि हैं। इनमें नगरीकरण की प्रवृत्ति उच्च है तथा अधिकतर लोग द्वितीयक एवं तृतीयक व्यवसायों में संलग्न हैं। इन देशों में स्त्री साक्षरता भी पुरुषों के समान ही उच्च है।

99% से कम किन्तु 60% से अधिक साक्षरता वाले देशों की संख्या बहुत है। इनमें क्रमानुसार अजरबेजान (98.8%), तुर्कमेनिस्तान (98.8%), अल्बानिया (98.7%), किरगिजिस्तान (98.7%), इटली (98.4%), ट्रिनीडाड एवं टोबैगो (98.4%), बल्गारिया (98.2%), क्रोशिया (98.1%), मंगोलिया (97.8%), रोमानिया (97.3%), अर्जेन्टाइना (97.2%), इजराइल (97.1%), साइप्रस (96.8%), युरुग्वे (96.8%), सर्विया (96.4%), मेकडोनिया (96.1%), ग्रीस (96.0%), बहामास (95.8%), चिली (95.7%), कोस्टारिका (94,9%), हांगकांग (94.6%), फिजी (94.4%), पुर्तगाल (93.8%), पराग्वे (93.5%), कुवैत (93.3%), वेनेजुएला (93.0%), कोलम्बिया (92.8%), माल्टा (92.8%), फिलापाइन्स (92.6%), थाइलैण्ड (92.6%), सिंगापुर (92.5%), पनामा (91.9%), सेचलीस (91.8%), मैक्सिको (91.6%), जोर्डन (91.1%), इक्वेडोर (91.0%), चीन (90.9%), श्रीलंका (90.7%), इण्डोनेशिया (90.4%), वियतनाम (90.3%), म्यांमार (89.9%), सुरीनाम (89.6%), जिम्बाब्वे (89.4%), कतार (89.0%), मलेशिया (88.7%), संयुक्त अरब अमीरात (88.7%), ब्राजील (88.6%), लेबनान (88.3%), पेरू (87.9%), टर्की (87.4%), बोलीविया (86.7%), बहरीन (86.5%), नामीबिया (85.0%), कांगो (84.7%), मॉरीशस (84.3%), लीबिया (84.2%), गैबोन (84.0%), सऊदी अरब (82.9%), ईरान (82.4%), दक्षिण अफ्रीका (82.4%), ओमान (81.4%), बोत्सवाना (81,2%), सीरिया (80.8%), एल सेल्वाडोर (80.6%), जमैका (79.9%), स्वाजीलैण्ड (79.6%), निकारागुआ (76.7%), ट्यूनीशिया (74.3%), कम्बोडिया (73.6%), केन्या (73.6%), मिस्र (71.4%), मेडागास्कर (71.7%), अल्जीरिया (69.9%), तंजानिया (68.7%),ग्वाटेमाला (69.1%), नाइजीरिया (69.1%), लाओस (68.7%), जाम्बिया (68.0%), कैमरुन (67.9%), अंगोला (67.4%), कांगो (67.2%), उगाण्डा (66.8%), रुवाण्डा (64.9%), मलावी (64.1%), भारत (61.0%), सूडान (60.9%), आदि हैं।

60% से कम साक्षरता वाले देशों में बुरूण्डी (59.3%), घाना (59.3%), हैटी (54.8%), यमन (54.1%), टोगो (53.2%), मोरक्को (52.3%), मौरीतानिया (51.2%), पाकिस्तान (49.9%), नेपाल (48.6%), बांग्लादेश (47.5%), भूटान (47.0%), सेनेगल (39.3%), मोजाम्बिक (38.7%), इथियोपिया (35.9%), सियागलियोन (34.8%), बेनिन (34.7%), नाइजर (28.7%), चाड (25.7%), माली (24.0%) तथा बर्किना

फासो (23.6%)आदि हैं। ये देश अधिकतर ग्रामीण जनसंख्या वाले अति पिछड़े हैं जहाँ शिक्षा का नितान्त अभाव है।

इस प्रकार उपरोक्त आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि विश्व में भी साक्षरता के वितरण में काफी अन्तर है। अब हम यहाँ भारत में साक्षरता का विस्तृत अध्ययन करेंगे।

भारत में साक्षरता (Literacy in India)

प्राचीन इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि मानव 4000 ई. पूर्व वर्ष पहले लिखना पढ़ना ही नहीं जानता था। उस समय केवल चित्रलिपि ही बनायी जाती थी। फिर धीरे-धीरे मानव ने लिखना शुरु किया। लिखने की विद्या के विकास के बाद सांस्कृतिक प्रगति में साक्षरता का महत्व बढ़ गया। यही कारण है कि 'जनसंख्या भूगोल में साक्षरता को सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विकास का एक विश्वसनीय सूचक माना जाता है। साक्षरता का गरीबी उन्मूलन, मानसिक एकाकीपन का समाप्तिकरण, शान्तिपूर्ण एवं भाई-बन्धु वाले अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के निर्माण और जनसांख्यिकीय प्रक्रिया की स्वतंत्र क्रियाशीलता में भारी महत्व है। निरक्षरता के कारण मानव का स्वाभिमान गिरता है, अज्ञानता बढ़ती है, गरीबी और मानसिक एकाकीपन आती है, शान्तिपूर्ण एवं मैत्रीपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों, आर्थिक विकास यथा राजनैतिक प्रौढ़ता में रूकावटआता है। साक्षरता का रूप जनसांख्यिकीय लक्षणों, यथा-उत्पादकता, मर्त्यता परिसंचरण, व्यवसाय आदि पर भी प्रभाव पड़ता है। इसलिए एक जनसंख्या भूगोलविद के लिए साक्षरता प्रवृत्ति तथा प्रारूप का विश्लेषण महत्वपूर्ण हैं।

साक्षरता की संकल्पना (Concept of Literacy)

न्यूनतम साक्षरता सभी देशों में एक समान ही है। निम्नतम साक्षरता स्तर की भिन्नता मूल रूप से विचार विनिमय से लेकर विभिन्न प्रकार की कठिन परिकलनाओं तक मानी जाती है। कभी-कभी पाठशाला शिक्षा अवधि के आधार पर साक्षरता तथा असाक्षरता का निर्धारण किया जाता है। इसी प्रकार देश की प्रचलित भाषा में नाम लिखने एवं पढ़ने की योग्यता के आधार पर साक्षरता निर्धारण के पक्ष में भी नहीं हैं। सन 1930 में फिनलैण्ड में साक्षरता निर्धारण के लिए सबसे कठिन परिभाषा को अपनाया गया। मात्र उन लोगों को साक्षर माना गया जो कठिन प्रश्नों का उत्तर दे सकते थे। जो उनमें असफल रहे, उन्हें दो श्रेणियों में बांटा : (a) अर्द्ध-शक्ति जो लिख-पढ़ तो सकते थे पर गणितीय गलतियाँ करते थे और (b) अशिक्षित जो न लिख सकते थे न ही पढ़ सकते थे। इसके विपरीत सन् 1961 की हांगकांग जनगणना में कोई भी व्यक्ति, जो यह कहता था कि वह कोई एक भाषा पढ़ सकता है, उसके लिये यह अनुमान कर लिया गया कि वह लिख भी सकता है एवं उसे साक्षर माना गया। इस कारण जनगणना संबंधी आँकड़े के लिये, उत्तर को स्वीकार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। लेकिन प्रश्नों को इस ढंग से बनाया जा सकता है। जिससे अधिक यही उत्तर उपलव्य हो सकें। संयुक्त राष्ट्र संघ जनसंख्या आयोग ने किसी भी भाषा में सामान्य संदेश को पढ़ने, लिखने के साथ-साथ समझने की योग्यता को साक्षरता निर्धारण को आधार माना है। भारतीय जनगणना ने इस परिभाषा को स्वीकार किया है, एवं धीरे-धीरे पूरा देश भी इसे मानने लगे हैं। अगर यह मान लिया जाए कि किसी भाषा में समझ के साथ लिखने और पढ़ने की योग्यता ही साक्षरता की परिभाषा है, तो प्रगणकों द्वारा सही आंकड़ों का संग्रह कठिन समस्या नहीं होगी। लेकिन साक्षर और शिक्षित में अन्तर किया जा सकता है। जैसा कि भारत में किया जाता है। वे सभी व्यक्ति जो लिखने-पढ़ने की योग्यता के आधार पर साक्षर माने जाते हैं, उन्हें विद्यालयी शिक्षा की अवधि के आधार पर पुनः उप-श्रेणियों में बांटा जा सकता है। इसके साथ-साथ साक्षरता के आँकड़े एकत्रित करने में कुछ समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है जो निम्नानुसार है-

(1) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साक्षरता प्रारूप की अपेक्षा आँकड़ों की कुछ समस्या है। प्रथम जिन देशों में जनगणना नियमित ढंग से की जाती है। उनमें सभी देशों में साक्षरता आंकड़ों का संग्रह नहीं होता है। लेकिन साक्षरता के बढ़ते महत्व के कारण ऐसे देशों की संख्या जो साक्षरता संबंधी संगृहीत नहीं करते, वह कम हो रही है।

(2) साक्षरता का आधार पर पृथक-पृथक देशों में एक संदृश्य नहीं है। इस कारण अन्तर्राष्ट्रीय तुलना कठिन है। संयुक्त राष्ट्र संघ को यह श्रेय जाता है कि अपने विभिन्न परिभाषाओं को मानक रूप प्रदान करने का प्रयत्न किया है।

(3) साक्षरता आंकड़ों की प्रमुख समस्या विविध सारणीय पद्धति है। कुछ देशों में साक्षरता के आंकड़े पांच से कम आयु वाले बच्चों को समाहित करके प्रदर्शित होते हैं, तो कुछ देशों में उन्हें सम्मिलित नहीं किया जाता है और उन्हें असाक्षर माना जाता है। कुछ ऐसे भी देश हैं जहां 10 वर्ष की आयु तक के लोगों को शामिल नहीं किया जाता है। इस प्रकार ऐसी अनेक समस्याएँ आती हैं जिसके कारण प्रगणक साक्षरता के सही-सही आंकड़े नहीं निकाल पाता।

साक्षरता संक्रमण

संसार के ज्यादातर असाक्षर समाज की साक्षर समाज में परिवर्तन प्रक्रिया का आरंभ सबसे पहले पश्चिम यूरोप के औद्योगिक राष्ट्रों में हुआ तथा वहाँ से उसका प्रसारण संसार के विभिन्न भागों में हुआ। सम्पूर्ण विश्व के विभिन्न राष्ट्र इस दृष्टि से तीन श्रेणियों में बांटे जा सकते हैं। (1) वे राष्ट्र जहाँ संक्रमण पूर्ण हो चुका है। (2) वे राष्ट्र जहाँ संक्रमण मध्य अवस्था में है। (3) वे राष्ट्र जहाँ संक्रमण मात्र शुरू हुआ है। प्राचीन औद्योगिक राष्ट्रों, जहाँ संक्रमण सबसे पहले हुआ, ने अपने यहाँ असाक्षरता का पूर्णतः निर्मूलन कर लिया है, एवं वहाँ बीसवीं सदी के प्रारम्भ में ही साक्षरता संक्रमण पूर्ण हो गया था।

राष्ट्र जहाँ साक्षरता संक्रमण मध्य अवस्था में है, वहाँ संक्रमण क्रिया हाल ही में शुरू हुई। कहने का आशय यह है कि यहाँ संक्रमण क्रिया द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शुरू हुआ। चूंकि ये राष्ट्र विशाल तथा कृषि प्रधान राष्ट्र हैं, इस कारण इनमें शिक्षा प्रगति मन्द रही है। ऐसे असाक्षर लोग जो पाठशाला आयु पार कर चुके हैं एवं जो इन्हें विरासत में मिले हैं उनकी संख्या बहुत अधिक है। साथ ही उच्च-दर के कारण विद्यालय जाने वाली अवधि के बच्चे बड़ी संख्या में सम्बद्ध रहे है, इसलिये साक्षरता और शिक्षा प्रसार के लिये भारी संसाधन की जरूरत है। इसमें अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है और वे आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं, इसलिए उनके संसाधनों पर दबाव पहले से ही अधिक है। इस कारण उनके साक्षरता संक्रमण में विलम्ब हो रहा है। तृतीय वर्ग में वे राष्ट्र हैं जहाँ साक्षरता संक्रमण अब भी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है। इसके अन्तर्गत मूल रूप से अफ्रीका के राष्ट्र है जहाँ साक्षरता प्रसार में अभी गति आनी है। पश्चिमी एशिया के इस्लाम धर्मावलम्बी राष्ट्र भी इसी राष्ट्र की इसी श्रेणी में है। साक्षरता प्रसार में गति तब तक मन्थर (मंद) रहेगी, जब तक कि स्त्रियों को बराबर का स्तर प्रदान नहीं किया जाता है।

साक्षरता विभेदन

साक्षरता संक्रमण स्तर की दृष्टि से संसार के सभी राष्ट्र तीन श्रेणियों में बाँटे जा सकते हैं- (a) जहाँ साक्षरता सर्वव्यापक है, (b) जहाँ साक्षरता औसत है, एवं (c) जहाँ साक्षरता निम्न है। लेकिन एक ही श्रेणी के राष्ट्र में स्त्री-पुरुष ग्रामीण-नगरीय और विविध जनसंख्या समुदायों की साक्षरता में विभिन्नता है। इस भाँति लिंग, आवास, मानवीय स्तर आदि के आधार पर साक्षरता में अन्तर मात्र उन राष्ट्रों में है जहाँ साक्षरता संक्रमण अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है या वह अभी पूर्ण नहीं हुआ है। जहाँ साक्षरता सर्वव्यापक है वहाँ इन विभेदनों का कोई महत्व नहीं है। इस तरह विकासशील राष्ट्रों में स्त्री-पुरुष के साक्षरता स्तर में बहुत अंतर है।

विकासशील राष्ट्रों में स्त्रियों की निम्न साक्षरता दर के बहुत से ऐतिहासिक, सामाजिक तथा आर्थिक कारक है। ऐतिहासिक दृष्टि से ये राष्ट्र या तो पश्चिम देशों के उपनिवेश थे अथवा वहां पर लम्बी अवधि तक सामन्ती शासन था। एक स्थिति यह भी थी की उनमें से कुछ इन दोनों के शिकार थे। उपनिवेश या सामन्तशाही व्यवस्था में सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। सामाजिक दृष्टि से स्त्री अध्यापिकाओं को कमी, स्त्रियों के बाल विवाह का प्रचलन, विवाह के बाद पिता के घर से पति के घर गमन, आदि कमियों से स्त्रियों की शिक्षा-दर निम्न है।

विकासशील राष्ट्रों में स्त्रियों की शिक्षा के प्रति लोगों में रूचि कम है या नहीं है। जैसे-भारतीय धार्मिक ग्रन्थों में कुछ प्रमाण ऐसे हैं, जो मात्र पिता अथवा भाई को छोड़कर किसी द्वारा स्त्रियों की शिक्षा का अनुमोदन नहीं करते हैं। साथ ही इन राष्ट्रों के प्रचलित सामाजिक वातावरण में एक आदर्श स्त्री की कर्तव्य परायण गृहिणी माना जाता है। वे घर की चारदीवारी में बन्द रहती हैं। लड़कियों को पड़ोस के गाँव में भी शिक्षा के लिए नहीं भेजा जाता। अगर गाँव में स्कूल नहीं है, तो उनकी शिक्षा का प्रश्न ही नहीं उठता है। स्त्रियों को पुरुषों से निम्न स्तर प्रदान किया जाता है। स्त्रियों की साक्षरता दर और उनके स्तर में उच्च धनात्मक सह-सम्बद्ध है। मुस्लिम राष्ट्रों में वहाँ स्त्रियों की साक्षरता विश्व में निम्नतम है। सभी पिछड़े देशों में आर्थिक संसाधनों की बहुत अधिक कमी है और वे लड़कियों के लिये अलग शिक्षा संस्थान प्रदत्त करने में असमर्थ हैं।

कुछ विकासशील समाजों (देशों) में अभी भी बाल-विवाह का प्रचलन है। इस कारण जो लड़कियाँ स्कूल जाती है, वे विवाह के उपरांत अपनी पढ़ाई छोड़ देती हैं। अंततः लड़की के माता-पिता में एक भाव यह होता है कि विवाह के उपरांत लड़की को अपने पति के साथ रहना है। इस कारण जब माता-पिता गरीब होते हैं, तब वे लड़की की शिक्षा पर खर्च नहीं करते। लेकिन भारत में लड़कियों की शिक्षा अब उनके विवाह के लिए जरूरी होती जा रही है, विशेषकर नगरीय क्षेत्रों में ऐसा ही है। आर्थिक दृष्टि से बहुत गरीबी एवं स्त्रियों की निम्न व्यावसायिक संलग्नता के कारण स्त्री और पुरुष की साक्षरता दर में अन्तर है। विकासशील राष्ट्रों में व्यापक गरीबी, स्त्रियों की साक्षरता प्रसार एवं विकास में महानतम अवरोध है। ऐसी गरीबी में स्त्रियों की शिक्षा की तुलना में पुरुषों की शिक्षा को प्रधानता प्रदान की जाती है। उसी भाँति आर्थिक लाभपरक कार्यों में स्त्रियों के लिये साक्षरता का कार्यकारी महत्व कम है, परिणामस्वरूप उनकी साक्षरता पर कम ध्यान दिया जाता है। हाल के वर्षों में परम्परागत समाज में भी स्त्री-पुरुष की साक्षरता दर में बदलाव आया है। स्त्रियों की साक्षरता दर में पुरुषों की साक्षरता दर की तुलनात्मक रूप से वृद्धि अधिक तीव्र हुई है। इस कारण पुरुष एवं स्त्री की साक्षरता दर का अन्तराल कम हुआ है। स्त्रियों की साक्षरता दर में अधिक वृद्धि का मुख्य कारण यह है कि उनकी साक्षरता बहुत निम्न है। फलस्वरूप स्त्री अध्यापिकाओं की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसका स्त्री शिक्षा प्रसार में महत्वपूर्ण योग है। साथ ही बढ़ती सामाजिक चेतना और बढ़ती पुरुष साक्षरता के कारण स्त्री शिक्षा प्रसार को प्रोत्साहन मिला।

इसी तरह राष्ट्रों के ग्रामीण और नगरीय जनसंख्या की साक्षरता दर में बहुत अन्तर है। नगरीय साक्षरता दर ग्रामीण साक्षरता दर की अपेक्षा बहुत उच्च है। ग्रामीण एवं नगरीय साक्षरता दर में विभेदन के बहुत से कारण है। जैसे- (1) कृषि पूरक देशों में साक्षरता का ग्रामीण क्षेत्रों में कोई सामाजिक और आर्थिक कार्यकारी महत्व नहीं है, (2) नगरीय जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या की तुलना सामाजिक और आर्थिक चेतना उच्च है, (3) ग्रामीण स्त्रियों की तुलना में नगरीय स्त्रियों का सामाजिक स्तर उच्च है। (4) शिक्षण सुविधायें मुख्यतः नगरों में सान्द्रित (उपलब्ध) हैं और कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में तो उनका पूर्ण अभाव है और (5) शिक्षित ग्रामीण युवकों में रोजगार की तलाश में नगरों में प्रवास की प्रवृत्ति है, विशेषकर जब कृषि सेक्टर में रोजगार सम्भावनाओं का अभाव होता है। इस तरह ग्रामीण एवं नगरीय साक्षरता दर के अन्तर का उद्भव अर्थव्यवस्था कोटि, शिक्षण संस्थाओं की सान्द्रण प्रवृत्ति, स्त्रियों का स्तर एवं इन दो क्षेत्रों की प्रवास-प्रवृत्ति का फल है। जिस भाँति स्त्री-पुरुष की साक्षरता दर का अन्तराल कम हो रहा है उसी भाँति ग्रामीण-नगरीय साक्षरता दर का भी अन्तराल कम हो रहा है। कुछ कम विकसित देश यथा-चीन, भारत आदि में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विभेदन का प्रयत्न इस आशय से किया जा रहा है, कि कृषि के अलावा मजदूरों को उसमें संलग्न किया जा सके। इस तरह ग्रामीण पुरुषों में साक्षरता की भावना बढ़ती जा रही है।

एक ही राष्ट्र में रहने वाले विभिन्न-धार्मिक समुदायों की साक्षरता दर में भी पर्याप्त अन्तर देखा गया है। इसका मूल कारण यह है कि एक राष्ट्र में रहने वाले भिन्न-भिन्न धार्मिक समुदाय-आर्थिक विकास के भिन्न-भिन्न स्तर पर होते हैं। लेकिन इस सत्य को भी नकारा नहीं जा सकता कि उनकी मातृभाषा के अलावा रूप भाषा के माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा के प्रति उनके भाव तिरस्कारपूर्ण हैं। इसके ईसाइयों की साक्षरता दर सबसे अधिक है। उसी तरह, भारत की विविध जातियों की साक्षरता दर में विभेद है। जाति प्रथा का विकास प्रारम्भ में श्रम विभाजन के लिए हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे उससे सामाजिक आर्थिक, अन्तराल बढ़ा, मनु की वर्ण व्यवस्था में यह भावना विकसित हुई कि शिक्षा तभी दी जानी चाहिये जब उसकी कार्यकारी जरूरत हो। परिणामस्वरूप ब्राह्मण, जो जाति व्यवस्था के शीर्ष पर थे, उनको शिक्षा का अधिकार दिया गया और दूसरों को शिक्षित करने का उत्तरदायित्व भी उन्हें प्रदान किया गया। इसके विपरीत शूद्र, जिन्हें सामाजिक व्यवस्था में सबसे निम्न स्थान दिया गया, उनको शिक्षा के अधिकार से इस आधार पर वंचित रखा गया कि इससे उनके सेवा कार्य में अवरोध आएगा। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि आज भी भारत की उन जन जातियों में साक्षरता दर उच्च है जिनके लिये इसका कार्यकारी महत्व है।

वे जो साक्षरता संक्रमण की मध्यावस्था में है, उनके विविध व्यावसायिक वर्गों में भी साक्षरता में पर्याप्त अन्तर है। कारण यह है कि इन समाजों में शिक्षा तभी प्राप्त की जाती है जब उसकी व्यावसायिक जरूरत होती है। फलस्वरूप भिन्न-भिन्न वर्गों के श्रमिकों की साक्षरता दर में अन्तर स्वाभाविक हैं। गोल्डन ने इस सन्दर्भ में कहा कि साक्षरता विभेदन का उद्भव इस कारण से होता है कि हर साक्षरता स्तर के पीछे समाज की पूर्ण संस्थागत संरचना होती है जिसमें व्यावसायिक संरचना सर्वप्रमुख होती है। यह सत्य है कि कुछ व्यवसायों के लिए साक्षरता जरूरी है तथा कुछ व्यवसायों को निरक्षर लोग भी कर सकते हैं। जैसे कम विकसित देशों में, जहाँ परम्परागत कृषि विधा का प्रचलन है, कृषि व्यवसाय में संलग्न काश्तकार, लोग निरक्षर होने पर भी कार्य कर सकते खेतिहर मजदूर, पशुपालन एवं उत्खनन, श्रम एवं निर्माण में लगे लोग निरक्षर होने पर भी कार्य कर सकते है। इसके विपरीत एक निरक्षर या अशिक्षित व्यक्ति के लिये व्यापार, वाणिज्य शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन सैन्य सेवा आदि कार्यों में सम्मिलित होना सम्भव नहीं है।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि वे देश, जहाँ साक्षरता पूर्ण हो चुकी है, जहाँ साक्षरता दर सार्वभौमिक रूप से उच्च है। वे देश जहां साक्षरता संक्रमण अभी नहीं हुआ है, वहाँ साक्षरता दर निम्न है तथा समाज के विभिन्न वर्गों के साक्षरता स्तर में बहुत अन्तर है। वे देश जो साक्षरता संक्रमण के मध्य में है, वहाँ साक्षरता दर औसत है, एवं विभिन्न जनसंख्या वर्गों की साक्षरता दर का अन्तर अधिक तीव्रता से कम हो रहे हैं।

साक्षरता निर्धारक घटक

साक्षरता संक्रमण प्रसरण के क्षेत्रीय तथा सामयिक प्रतिरूप की अनुभाविक दृष्टि से यह स्पष्ट है कि साक्षरता संक्रमण तथा आर्थिक साधन में सीधा-सह संबंध है। लेकिन यह निश्चित कर पाना कि कौन कारण और कौन प्रतिफल है, बहुत कठिन है। डेविस ने देखा कि साक्षरता संक्रमण दर निम्न होने पर आर्थिक विकास दर मन्द होती है, तथा साक्षरता संक्रमण दर तीव्र होने पर आर्थिक विकास दर तीव्र होती है। इन सब कारकों की विशद् तालिका तैयार करना बहुत अधिक कठिन है, क्योंकि उनसे संबंधित सामाजिक-आर्थिक स्थिति अतिशय उलझी हुई है। लेकिन साक्षरता निर्धारण करने वाले प्रमुख घटक (a) अर्थव्यवस्था कोटि, (b) जीवन स्तर, (c) नगरीयकरण दर, (d) शिक्षा लागत, (e) राजनैतिक एवं वैचारिक पृष्ठ भूमि, (f) तकनीकी विकास स्तर, (g) धार्मिक पृष्ठ भूमि (h) आवागमन एवं संचार साधनों का विकास स्तर, (i) शिक्षा माध्यम, (j) समाज में स्त्रियों का स्तर, (k) स्त्रियों के संचरण और शिक्षा के प्रति भाव, (l) शिक्षा संस्थाओं की उपलब्धता, (m) लोक नीति हैं और (n) सामान्य मानक तंत्र।

आर्थिक दृष्टि से अर्थव्यवस्था साक्षरता प्रतिरूप निर्धारण का प्रमुख कारक है! गोल्डन ने लिखने की कला की खोज को आर्थिक विभेदन का प्रतिफल माना है। औद्योगिक एवं कृषि प्रधान देशों के साक्षरता स्तर में इतना विशाल अन्तर है कि साक्षरता एवं अर्थव्यवस्था कोटि में स्पष्ट सह-सम्बन्ध परिलक्षित होता है। अकृषीय क्षेत्र के रोजगार के लिये साक्षरता एक मूल जरूरत है। इसके विपरीत कृषि कार्यों के लिये साक्षरता जरूरी नहीं हैं। इस कारण अकृषीय जनसंख्या अनुपात और साक्षरता दर में धनात्मक सह-सम्बन्ध है। विकासशील देशों में जहाँ शिक्षा की स्वतंत्र व्यवस्था नहीं हैं, उच्च शिक्षा लागत शिक्षा प्रसार में बड़ी रुकावट है। गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवार के बच्चों को स्कूल जाने की आशा रखना बेकार है, क्योंकि वे परिवार निर्वाह के लिये बाल्यावस्था से ही परिवार कार्यों में हाथ बंटाते हैं।

प्रायः नगरीकरण साक्षरता निर्धारण का एक घटक माना जाता है। साक्षरता स्तर और नगरीकरण में धनात्मक सह-सम्बन्ध है, इसलिए उच्च नगरीकरण वाले क्षेत्रों में साक्षरता उच्च अथवा सर्वव्यापक है, परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता स्तर निन्न है। नगरीय क्षेत्रों की आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था का प्रारूप इस तरह का है कि उनमें साक्षरता की क्रियात्मक उपादेयता उच्च है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे परिवार के सदस्यों का खेती या पारिवारिक उद्योगों में हाथ बंटाते हैं। लेकिन नगरीय क्षेत्रों में ऐसा नहीं है। इसी तरह साक्षरता और देश के तकनीकी विकास स्तर में धनात्मक सह-सम्बन्ध है। तकनीकी दृष्टि से विकसित राष्ट्रों में साक्षरता दर उच्च होती है। इसके विपरीत जिन राष्ट्रों में तकनीकी विकास स्तर निम्न है, उनमें साक्षरता दर निम्न है। तकनीकी रूप से विकसित राष्ट्रों में रोजगार प्राप्ति हेतु साक्षरता व शिक्षा आवश्यक है, लेकिन तकनीकी दृष्टि से विकासशील राष्ट्रों में यह आवश्यक नहीं हैं।

विकासशील देशों में हाल ही के समय में विकसित आवागमन तथा संचार के साधनों के विकास के कारण साक्षरता प्रसार में एक नया आयाम शुरू हुआ है। इससे विविध क्षेत्रों के पारस्परिक संबंधों में वृद्धि हुई है। ग्रामीण एकाकीपन स्थिति समाप्त हो गई है। नगरीय क्षेत्रों में स्थित शिक्षण संस्थायें ग्रामीण क्षेत्रों की पहुँच में आ गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के नगरीय क्षेत्रों से बढ़े पारम्परिक संबंध के कारण ग्रामीण क्षेत्रों की शिक्षा मान्यताओं का महत्व बढ़ा है। ग्रामीण लोग नगरीय शिक्षा संस्थाओं का उपयोग करने लगे हैं। इस कारण साक्षरता दर एवं आवागमन तथा संचार साधनों में उच्च सह-सम्बंध है। सामाजिक घटकों में धर्म का शिक्षा प्रसार में बहुत योगदान है। जिन समाजों में हजारों वर्ष तक मौखिक पूजा पद्धति का प्रचलन रहा हो, उनमें समाजों की तुलना में जहाँ धार्मिक पुस्तकों के पाठ का प्रचलन है, साक्षरता दर निम्न है। अगर शिक्षा माध्यम मातृभाषा हो तो साक्षरता संक्रमण शीघ्र पूर्ण होता है। तृतीय विश्व के राष्ट्रों में यह देखा गया है कि मातृभाषा में शिक्षा को स्वीकार करने की प्रवृत्ति अंग्रेजी भाषा माध्यम अथवा राष्ट्रीय माध्यम की तुलना में अधिक है। भारत में मुस्लिम समुदाय के सामाजिक पिछड़ेपन का एक कारण यह भी है कि वे शायद अपनी मातृभाषा के अलावा रूप किसी भाषा में शिक्षा ग्रहण करना ही नहीं चाहते हो

चाहे समाज जैसा भी हो समाज की जनसंख्या में आधी संख्या स्त्रियों की होती है। इस कारण उनके सामाजिक स्तर एवं उनकी शिक्षा के प्रति भाव का साक्षरता स्तर पर बहुत प्रभाव पड़ता है। स्त्रियों के सामाजिक स्तर एवं साक्षरता दर में धनात्मक सह-सम्बन्ध है।

यहाँ सरकारी नीतियों का वर्णन भी जरूरी है, जिसका शिक्षा के प्रति लोगों के मनोभाव निर्धारण में भारी योगदान होता है। स्वतंत्र और आवश्यक शिक्षा विधान, प्रौढ़ साक्षरता योजना का देश के शिक्षा स्तर पर बहुत प्रभाव होता है। ईरान, भूतपूर्व सोवियत रूस और चीन में प्रौढ़ शिक्षा योजना एवं इस दिशा में रूप सरकारी योजनाओं का साक्षरता संक्रमण में भारी योगदान रहा। भारत में स्वतंत्रोपरान्त कल्याणकारी राज्य भाव से लोगों में शिक्षा प्रसार के लिए बहुत सी योजनाओं का प्रारम्भ हुआ। फलस्वरूप आज भारत का तृतीय विश्व में निपुण श्रमिकों के उत्पादन में प्रथम स्थान है।

साक्षरता की अभिनव प्रवृत्ति (Recent Trend of Literacy)

जनसंख्या संक्रमण की भांति साक्षरता संक्रमण (परिवर्तन) भी चक्रीय रूप से घटित होता है। विश्व के विभिन्न देशों में साक्षरता संक्रमण की अलग-अलग अवस्थाएँ पायी जाती है जिनके अनुसार साक्षरता प्रतिरूपों में भिन्नता पायी जाती है। साक्षरता एक गत्यात्मक तथ्य है जो देश-काल के संदर्भ में परिवर्तनशील होता है।

(1) साक्षरता परिवर्तन और आर्थिक परिवर्तन में घनिष्ट संबंध पाया जाता है। अतः विश्व के सभी विकसित देशों में साक्षरता संक्रमण पूर्ण हो चुका है तथा वहाँ की सम्पूर्ण जनसंख्या साक्षर होती है और निरक्षरता अपवाद होती है।

(2) विकासशील देश अभी साक्षरता संक्रमण की अलग-अलग अवस्थाओं में और उनकी साक्षरता दर में मन्द या तीव्र गति से प्रगति हो रही है। इन देशों में ग्रामीण-नगरीय साक्षरता, स्त्री-पुरुष साक्षरता, जातीय वर्गों की साक्षरता, धार्मिक वर्गों की साक्षरता तथा व्यावसायिक वर्गों की साक्षरता में उल्लेखनीय अन्तर पाया जाता है। इसके साथ ही विभिन्न सामाजिक वर्गों की साक्षरता की प्रगति में भी भिन्नता पायी जाती है। द्वितीय विश्व युद्ध तक अधिकांश विकासशील देश साक्षरता संक्रमण की प्रारम्भिक अवस्था में थे जिसमें साक्षरता अति निम्न तथा विकास की गति अत्यंत मन्द थी। कुछ अफ्रीकी देशों को छोड़कर वर्तमान में लगभग सभी विकासशील देश साक्षस्ता परिवर्तन की मध्यवर्ती अवस्था में है जहाँ साक्षरता दर मध्यम है और उसमें तीव्र गति से उत्थान हो रहा है।

(3) प्रायः सभी अल्प विकसित देशों में कृषि प्रमुख व्यवसाय है और अशिक्षा, रूढ़िवादिता, अंधविश्वास, निर्धनत्य आदि सर्वव्यापी है। पिछले तीन-चार दशकों में सरकारी प्रयासों तथा शिक्षा के महत्व के प्रति जनजागरण के फलस्वरूप साक्षरता में तीव्र वृद्धि की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। एशिया तथा अफ्रीका के विकासशील देशों में नगरीकरण और सामान्य साक्षरता में वृद्धि के साथ ही स्त्री साक्षरता में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

भारत में पिछले तीन दशकों में साक्षरता में वृद्धि

प्राचीन ग्रंथों से इसके स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि प्राचीन काल में भारत में साक्षरता सर्वव्यापक रही होगी क्योंकि उस समय जाति व्यवस्था कठोर नहीं थी और समाज में स्त्रियों का स्थान भी ऊँचा था। परवर्ती वर्षों विशेषरूप से मध्यकाल के आरंभ से ही विदेशी आक्रमणों, पर्दाप्रथा के प्रचलन, जातिगत व्यवसायों की प्रथा के प्रचार के साथ साक्षरता का मार्ग अवरूद्ध सा हो गया। ब्रिटिश काल में शिक्षा मुख्यत: सरकारी नौकरियों से जुड़ गयी और इसकी सुविधा कुछ विशिष्ट वर्ग (उच्च वर्ग) तक सीमित होकर रह गयी तथा अधिसंख्यक निम्न वर्ग को शिक्षा से दूर रखने के प्रयास किये जाते रहे। इससे भारत में साक्षरता बहुत कम हो गयी और अत्यधिक निम्न स्थान तक पहुँच गयी। इन्हीं कारणों से 20वीं शताब्दी के आरम्भ में भारत की मात्र 5.35 प्रतिशत जनसंख्या ही साक्षर थी जो 1951 में बढ़कर 16.67 प्रतिशत तक हो गयी थी।

भारत में 1901 से लेकर 2011 तक विभिन्न जनगणना वर्षों में कुल जनसंख्या, पुरुष जनसंख्या और स्त्री जनसंख्या में प्रतिशत साक्षरता को प्रदर्शित करती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा और साक्षरता के उत्थान हेतु विशिष्ट प्रावधान किये गये और इस क्षेत्र के विकास के लिए विशेष प्राथमिकताएँ प्रदान की गयीं। प्राथमिक विद्यालयों से लेकर विभिन्न स्तर के विद्यालयों की संख्या और शिक्षकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की गयी। प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किये गये। शिक्षा के प्रसार के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था, निर्धन तथा तीव्र बुद्धि के छात्र-छात्राओं के लिए छात्रवृत्ति, छात्राओं के लिए पृथक् विद्यालयों की स्थापना तथा माध्यमिक स्तर तक निःशुल्क शिक्षा आदि के रूप में किये गये सरकारी तथा गैर सरकारी प्रयास सराहनीय हैं। इसके परिणामस्वरूप नियोजन के प्रारंभिक 20 वर्षों (1951-1971) में साक्षरता 16.67 प्रतिशत से बढ़कर 29.48 प्रतिशत तक पहुँच गयी। जनगणना 1991 में कुल साक्षरता 52.21 प्रतिशत अंकित की गयी थी जिसमें पुरुष साक्षरता (64.13 प्रतिशत), स्त्री साक्षरता (39.29 प्रतिशत) के डेढ़ गुना से अधिक थी। इसी प्रकार 2011 में कुल साक्षरता 74.04 जिसमें पुरुषों की साक्षरता 82.14 एवं स्त्रियों को साक्षरता 65.46 आंकी गई। अब हम यहाँ भारत में साक्षरता की दर में किस प्रकार वृद्धि हुई है उसका विस्तृत अध्ययन करने के लिए 1991, 2001 तथा 2011 के साक्षरता के आँकड़ों का अध्ययन कर तुलनात्मक अध्ययन करेंगे।

भारत में साक्षरता (प्रतिशत) का विकास (1901-2011)

जनगणना वर्ष

साक्षर जनसंख्या का प्रतिशत

व्यक्ति

पुरुष

स्त्री

1901

5.35

9.83

0.69

1911

5.92

10.56

1.05

1921

7.16

12.21

1.81

1931

9.50

15.59

2.93

1941

-

-

-

1951

16.67

24.95

7.93

1961

24.02

34.44

12.95

1971

29.48

39.52

18.70

1981

36.23

46.89

24.82

1991

52.21

64.13

39.29

2001

64.8

75.3

53.7

2011

74.04

82.14

65.46

सन् 2001 में साक्षरता

सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 65.38% थी। इसका आकलन अगर हम 1991 की देश की साक्षरता दर (52.10%) के संदर्भ में करें तो बहुत ही संतोषजनक प्रगति लगती है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि ऐसा मान्य है कि जब किसी क्षेत्र की साक्षरता दर 50% की लक्ष्मण रेखा पार कर जाये तो समझो क्षेत्र का कल्याण हो गया, इसलिए 13.19% की वृद्धि से देश की साक्षरता दर को अच्छा आयाम प्राप्त हुआ है। यह शायद इस करण भी हुआ है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार अनुपलब्ध होने से लोगों में साक्षर बनने की प्रेरणा प्राप्त हुई क्योंकि शहरों में रोजगार पाने के इच्छुक युवा के लिये साक्षर होना बहुत जरूरी है। आशा की जाती है कि आने वाला दशक साक्षरता की दृष्टि से और भी अधिक लाभदायक होगा। भारत के पुरुषों में से तीन-चौथाई (75.85%) पुरुष साक्षर थे, इसलिए प्रत्येक 4 पुरुषों में 3 पुरुष पढ़े-लिखे थे। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। सम्प्रति महिलाओं ने भी अब 50% लक्ष्मण रेखा पार कर ली है। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार 54.16% महिलायें अब पढ़ी-लिखी थी पुरुषों की साक्षरता दर सन् 1991 में 64.2% से बढ़कर 2001 में 75.85% हो गयी जबकि महिलाओं के साक्षरता दर सन् 1991 में 39.2% थी और सन् 2001 में बढ़कर 54.16% हो गयी।

राज्यों के मुकाबले संघीय क्षेत्र अथवा केन्द्र शासित प्रदेशों में साक्षरता दरें उच्च पायी गई हैं क्योंकि यहाँ की जनसंख्या ज्यादातर नगरीकृत होती है, इसलिए दादरा तथा नागर हवेली, जो सम्पूर्ण रूप से ग्रामीण है, के अतिरिक्त सभी संघीय क्षेत्रों में साक्षरता दर 80% से भी अधिक थी। मात्र दादरा व नगर हवेली में यह 60% थी। संघीय क्षेत्र में पुरुषों एवं महिलाओं दोनों में ही साक्षरता दरें उच्च थी। भारत के नगरों में महिलाओं के लिये साक्षर होना भी एक आवश्यकता सी हो गई है इससे उन्हें अच्छे अवसर मिलने की सम्भावना बढ़ जाती है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी इस विषय में जागरूकता कम है।

सन् 2011 में साक्षरता

सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 74.04% हो गयी है। इसका आकलन अगर हम 2001 की देश की साक्षरता दर (64.84) के सन्दर्भ में करें तो बहुत ही सन्तोषजनक प्रगति लगती है क्योंकि 10% की दशक में वृद्धि भी अपने आप में महत्वपूर्ण है। इस वृद्धि का प्रमुख कारण शायद यह है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों तक निशुल्क, प्राथमिक शिक्षा का सर्वशिक्षा अभियान चलाया गया। ग्रामीणों में भी शिक्षा के प्रति रूचि जागृत हुई और भी आगे आशा की जाती है कि भविष्य में भारत और भी अधिक शिक्षा की दृष्टि से मजबूत बनेगा।

भारत में पुरुषों की साक्षरता 82.14 है अर्थात प्रत्येक 5 में से 4 पुरुष शिक्षित हैं। जबकि इस आधार पर से महिलाओं में साक्षरता का प्रमाण पुरुषों की अपेक्षा कम है। 2011 के आंकड़ों के अनुसार स्त्रियों को साक्षरता 65.46 है जबकि 2001 में यह 53.67 थी। हालांकि एक दशक में स्त्री शिक्षा में वृद्धि हुई है परन्तु अभी भी स्त्रियों की शिक्षा का स्तर सुधरना चाहिए।

भारत में साक्षरता का प्रतिशत (2011)

राज्य/केन्द्र शासित क्षेत्र

साक्षरता दर (प्रतिशत)

समस्त जनसंख्या में

पुरुष

महिला

सम्पूर्ण भारत

74.04

82.14

65.46

जम्मू कश्मीर

68.74

78 26

58.01

हिमाचल प्रदेश

83.78

90.83

76.60

पंजाब

76.68

81.48

71.34

चण्डीगढ़

86.43

90.54

81.38

उत्तराखंड

79.63

88.33

70.70

हरियाणा

76.64

85.38

66.77

दिल्ली

86.34

91.03

80.93

राजस्थान

67.06

80.51

52.66

उत्तरप्रदेश

69.72

79.24

59.26

बिहार

63.82

73.39

53.33

सिक्किम

82.20

87.29

76.43

अरुणाचल प्रदेश

66.95

73.69

59.57

नागालैंड

80.11

83.29

76.69

मणिपुर

79.85

86.49

73.17

मिजोरम

91.58

93.72

89.40

त्रिपुरा

87.75

92.18

83.15

मेघालय

75.48

77.17

73.78

असम

73.18

78.81

67.27

पश्चिम बंगाल

77.08

82.67

71.16

झारखंड

67.63

78.45

56.21

ओड़िशा

73.45

82.40

64.36

छत्तीसगढ़

71.04

81.45

60.59

मध्यप्रदेश

70.63

80.53

60.02

गुजरात

79.31

87.23

70.73

दमन एवं दीव

87.07

91.48

79.59

दादरा एवं नगर हवेली

77.65

86.46

65.93

महाराष्ट्र

82.91

89.92

75.48

आंध्रप्रदेश

67.66

75.56

59.74

कर्नाटक

75.60

82.85

68.13

गोवा

87.40

92.81

81.94

लक्षद्वीप

92.28

96.11

88.25

केरल

93.91

96.02

91.98

तमिलनाडु

80.33

86.81

73.86

पुडुचेरी

86.55

92.12

81.22

अण्डमान एवं निकोबार द्वीपसमूह

86.27

90.11

81.84


साक्षरता का प्रादेशिक प्रतिरूप

विभिन्न तालिकाओं में भारत के विभिन्न राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों में कुल साक्षरता पुरुष साक्षरता और स्त्री साक्षरता को प्रदर्शित किया गया है। तालिका से स्पष्ट है कि देश के विभिन्न राज्यों तथा केन्द्र शासित क्षेत्रों की साक्षरता दर में अधिक भिन्नता पायी जाती है। देश की सर्वोच्च साक्षरता केरल में 93.91 प्रतिशत है । वहीं लक्षद्वीप में 92.28 प्रतिशत दूसरे क्रमांक एवं मिजोरम 91.58 तीसरे क्रमांक पर है। साक्षरता का न्यूनतम स्तर 63.82 प्रतिशत पूर्ववत बिहार में ही है। अरुणाचल प्रदेश में भी यह इसके निकट ही 66.95. प्रतिशत है।

विभिन्न राज्यों के मध्य भारी अन्तराल को देखते हुए समस्त राज्यों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है।

(1) उच्च साक्षरता वाले प्रदेश- इसके अन्तर्गत देश के कुल 15 राज्य तथा केन्द्र शासित क्षेत्र सम्मिलित है। इनमें केरल का स्थान सर्वोच्च है जहाँ 93.91 प्रतिशत जनसंख्या साक्षर है। मिजोरम 91.52 प्रतिशत, लक्षद्वीप 92.28 प्रतिशत, गोवा 87.40 प्रतिशत, दिल्ली 86.34 प्रतिशत, चण्डीगढ़ 86.43 प्रतिशत, पुडुचेरी 86.55 प्रतिशत और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह 86.27 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश 83.78, सिक्किम 82.20, दमनदीव 87.07, नागालैण्ड 80.11, महाराष्ट्र 82.91, त्रिपुरा 87.75, तमिलनाडु 80.33 में साक्षरता 80 प्रतिशत से ऊपर है। केरल में ईसाई मिशनरियों के प्रभाव तथा प्रयत्न से जनता में शिक्षा के प्रति जागरूकता अधिक पायी जाती है और यहाँ शिक्षा ग्रहण करना एक अनिवार्य परम्परा बन गयी है। यहाँ खेतिहर मजदूरों का अनुपात अपेक्षाकृत कम है जो प्रायः साक्षरता में बाधक होता है। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को छोड़कर उच्च साक्षरता वाले प्रदेशों में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत प्रायः 40 से ऊपर है जो उच्च नगरीकरण का प्रतीक है। उच्च नगरीकरण के प्रभाव से इन प्रदेशों में साक्षरता दर उच्च है क्योंकि नगरीकरण और साक्षरता में धनात्मक सह-सम्बन्ध पाया जाता है। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में सैनिकों के रूप में साक्षर व्यक्तियों के अधिक संख्या में आप्रवास से भी साक्षरता का स्तर उच्च पाया जाता है। इसी प्रकार साक्षरता की दर में राज्य अनुसार इस वर्ग में लगभग दुगुने को वृद्धि हुई है क्योंकि 2001 की जनगणना अनुसार केवल 8 राज्यों में ही साक्षरता 80 प्रतिशत से अधिक थी।

(2) मध्यम साक्षरता वाले प्रदेश- इस वर्ग के अन्तर्गत वे राज्य सम्मिलित हैं जहाँ साक्षरता 70 प्रतिशत या अधिक किन्तु 80 प्रतिशत से कम पायी जाती है। इसके अन्तर्गत राज्य व केन्द्र शासित राज्यों का समावेश है। जिसमें पंजाब (76.68), उत्तराखण्ड (79.63), हरियाणा (76.64), मणिपुर (79.85), मेघालय (75.48), असम (73.18), पश्चिम बंगाल (77.08), ओड़िसा (73.45), छत्तीसगढ़ (71.04), मध्यप्रदेश (70.63), गुजरात (79.31), दादरा नगर हवेली (77.65), कर्नाटक (75.60) आदि राज्यों का समावेश है।

(3) निम्न साक्षरता वाले प्रदेश- देश की औसत साक्षरता 74.04 प्रतिशत के सन्दर्भ में 70 प्रतिशत से कम साक्षरता वाले राज्य इस वर्ग के अन्तर्गत समाहित किये गये हैं। साक्षरता दर की दृष्टि से बिहार 63.82 प्रतिशत निम्नतम स्थान पर है। इस प्रदेश के अन्तर्गत जम्मू कश्मीर (68.74), राजस्थान (67.06), उत्तरप्रदेश (69.72), अरुणाचल प्रदेश (66.95), झारखण्ड (67.63), आन्ध्रप्रदेश (67.66) आदि राज्यों का समावेश किया जाता है। इन राज्यों में ग्रामीण जनसंख्या के उच्च अनुपात, कृषि क्षेत्र की प्रधानता, कृष्येत्तर क्षेत्रों (द्वितीयक एवं तृतीयक क्रियाओं) का पिछड़ापन, व्यापक निर्धनता आदि साक्षरता के उत्थान में बाधक हैं जिनके कारण वहाँ साक्षरता अत्यंत निम्न हैं।

पुरुष तथा स्त्री में साक्षरता में अन्तर

अन्य विकासशील देशों की भाँति भारत में भी पुरुष और स्त्री साक्षरता में अधिक अन्तर पाया जाता है। जनगणना 2011 में पुरुष साक्षरता 82.14 प्रतिशत और स्त्री साक्षरता 65.46 प्रतिशत अंकित की गई जिसमें पुरुष साक्षरता स्त्री साक्षरता से 16.68 प्रतिशत अधिक थी। पिछले 10 वर्ष में स्त्री साक्षरता में पुरुष साक्षरता की तुलना में अधिक वृद्धि हुई है।

भारत में राज्यानुसार कुल साक्षरता (प्रतिशत) में अन्तर (2001-2011)

तालिका से स्पष्ट है कि 2001 की तुलना में 2011 में सभी राज्यों में साक्षरता का प्रमाण बढ़ा है। पूरे देश की साक्षरता का प्रतिशत जो कि 2001 में 64.80 था वह 2011 में 74.04 हो गया है। इसमें सर्वाधिक साक्षरता केरल में जो 2001 में 90.9 थी वह 2011 में 93.91 प्रतशत हो गई है इसी प्रकार सबसे कम साक्षरता बिहार में जो 47.0 प्रतिशत थी वह 2011 में 63.82 हो गयी है। आंकड़ों के अन्तराल को देखा जाए तो बिहार में तीव्र गति से शिक्षा के क्षेत्र में वृद्धि हुई है। एक दशक में बिहार में साक्षरता के अनुपात की 16.82 प्रतिशत हो गयी है जो कि देश में साक्षरता के विकास को स्पष्ट करती है।

ग्रामीण तथा नगरीय साक्षरता में अन्तर

ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में साक्षरता दर काफी निम्न है। वर्ष 1981-91 की अवधि में ग्रामीण साक्षरता 36.09 प्रतिशत से बढ़कर 44.69 प्रतिशत और नगरीय साक्षरता 67.34 प्रतिशत से बढ़कर 73.01 प्रतिशत हो गयी। उसी प्रकार 2001 में ग्रामीणसाक्षरता 58.74 तथा नगरीय साक्षरता 79.92 थी जो कि 2011 में बढ़कर ग्रामीण साक्षरता 68.91 जिसमें पुरुष साक्षरता 78.57 एवं स्त्री साक्षरता 58.75 है एवं नगरीय साक्षरता 84.98 जिसमें पुरुष साक्षरता 89.67 एवं स्त्री साक्षरता 79.92 आंकी गयी है। नगरीय क्षेत्रों में पुरुष और स्त्री दोनों ही वर्गों में साक्षरता ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक पायी जाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि नगरों में शिक्षण संस्थाएँ तथा अन्य शैक्षिक सुविधाओं की बहुलता पायी जाती है जबकि ग्रामीण क्षेत्र में इनका प्रायः अभाव है। कृषीय अर्थव्यवस्था के कारण ग्रामों में अशिक्षित व्यक्तियों को भी कुछ न कुछ रोजगार मिल जाता है जबकि नगरों में द्वितीयक तथा तृतीयक क्रियाओं की प्रधानता के कारण निरक्षर व्यक्तियों के लिए रोजगार की कमी होती है। इससे नगरों में शिक्षा के प्रति जागरूकता अधिक पायी जाती है और बच्चों को स्कूल जाना अनिवार्य समझा जाता है। सामान्यतः शिक्षित परिवार में बाल शिक्षा को अनिवार्य माना जाता है लेकिन अशिक्षित परिवार में शिक्षा को विशेष प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में भीषण निर्धनता, अशिक्षा, रूढ़िवादी विचार, अंधविश्वास आदि भी साक्षरता की प्रगति में बाधक हैं। पस्तु वर्तमान 2011 में पूरे देश में साक्षरता के प्रति जन जागृति निर्माण हो चुकी है, गाँवो-गाँवों में शिक्षा का महत्व समझा जा रहा है एवं 2021 तक अनुमानतः भारत में 90% से अधिक साक्षरता लाने की योजनाएँ बनायी जा रही हैं।

भारत में शिक्षा (Education In India)

शिक्षा यह मनुष्य का मूलभूत अधिकार है। इसी को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा विश्व के प्रत्येक नागरिक को प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य रूप से मिल सके इसलिए अनेकानेक योजनाएँ चलायी जा रही है।

शिक्षा का सर्वव्यापीकरण- प्राथमिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने का कार्य राष्ट्रीय ध्येय के रूप में स्वीकार किया गया है, इसलिए नौवीं व दसवीं पंचवर्षीय योजना में प्राथमिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने के विषय में मोटे तौर पर तीन मापदण्ड निर्धारित किए गए थे। (1) सर्वव्यापी पहुँच, (2) सर्वव्यापी धारणा (3) सर्वव्यापी उपलब्धि।

केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा किए गए प्रयासों के परिणामस्वरूप देश की 94% ग्रामीण जनसंख्या को एक किलोमीटर की दूर पर प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध हैं तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय स्तर पर 84% ग्रामीण जनसंख्या को तीन किलोमीटर की दूरी के भीतर विद्यालय उपलब्ध हैं।

केन्द्र और राज्य सरकारों ने बीच में विद्यालय छोड़ने वालों की संख्या में कमी लाने और विद्यालयों में उपलब्धि के स्तर में सुधार लाने के लिए रणनीतियाँ विकसित की हैं। इनकी मुख्य बातों में सम्मिलित हैं - (i) अभिभावकों में जागरुकता और समाज में प्रेरणा पैदा करना, (ii) समाज के विभिन्न वर्गों और पी.आर.आई. की भागीदारी, (iii) आर्थिक प्रोत्साहन, (iv) विद्यालयों की बुनियादी सुविधाओं में सुधार, (v) जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम पहल, (vi) प्राथमिक शिक्षा के लिए पौष्टिक आहार सहायता का राष्ट्रीय कार्यक्रम (दोपहर भोजन व्यवस्था), (vii) शिक्षा गारण्टी योजना, वैकल्पिक और नए तरह की शिक्षा, (viii) अध्यापक शिक्षा योजनाएँ और (ix) सर्वशिक्षा अभियान।

(1) सर्वशिक्षा अभियान भारत में 2001 से सर्वशिक्षा अभियान योजना शुरू की गयी है। इस योजना के अन्तर्गत बालिकाओं, अनुसूचित जाति तथा जनजाति के छात्रों तथा दुष्कर परिस्थितियों में रह रहे छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। जिन आबादी क्षेत्रों में अभी तक विद्यालय नहीं हैं, वहाँ नवीन विद्यालय खोलना तथा अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना है।

(2) शिक्षा गारण्टी योजना- विद्यालय न जा रहे बच्चों को बुनियादी शिक्षा कार्यक्रम के तहत लाने का सर्वशिक्षा अभियान का एक महत्वपूर्ण घटक है। इसमें ऐसे दुर्गम आबादी-क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाता है जहाँ एक किलोमीटर के घेरे में कोई औपचारिक विद्यालय न हो और विद्यालय न जाने वाले 6-14 वर्ष आयु वर्ग के कम से कम 15-20 बच्चे वहाँ मौजूद हों। पर्वतीय क्षेत्रों के दुर्गम क्षेत्रों में 10 बच्चों पर भी विद्यालय खोला जा सकता है।

(3) जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम-केन्द्र द्वारा प्रायोजित जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (1994 से प्रारम्भ) का उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में फिर से जान फूंकना तथा प्राथमिक शिक्षा के सर्वांगीकरण का लक्ष्य पूरा करना था। इसका लक्ष्य सभी को शिक्षा दिलाने, बच्चों को स्कूल में बनाए रखने, शिक्षा के स्तर में सुधार करने तथा समाज के विभिन्न वर्गों में असमानता कम करके साथ-साथ काम करना है।

(4) राष्ट्रीय साक्षरता मिशन भारत में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए 1988 से राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना की गयी थी। इसका प्रमुख उद्देश्य 15 से 35 वर्ष आयु के उत्पादक और पुनरुत्पादक समूह के निरक्षर लोगों को व्यावहारिक साक्षरता प्रदान करते हुए 75 प्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त करना है। इसका उद्देश्य यह भी है कि सम्पूर्ण साक्षरता अभियान और साक्षरता के बाद के कार्यक्रम सफलतापूर्वक अनवरत शिक्षा-प्रक्रिया के रूप में जारी रहें और जीवन-पर्यन्त साक्षरता के अवसर उपलब्ध कराते रहें।

देश में महिला साक्षरता के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। महिला साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रवर्तित कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए हैं। इस कार्यक्रम हेतु उन जिलों को चुना गया है जिनमें महिला साक्षरता दर 30% से कम है।

निम्न साक्षरता वाले जिलों की क्षेत्रीय, सामाजिक एवं सामुदायिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से अल्पसंख्यक समूह, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, महिलाएँ तथा अन्य पिछड़े वर्ग के लिए विशेष साक्षरता अभियान की रणनीति बनायी गयी है।

जनशिक्षण संस्थानों का लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े तथा शहरी/ग्रामीण क्षेत्रों के शैक्षिक रूप से वंचित वर्गों विशेषकर नवसाक्षरों, अर्द्ध-शिक्षितों, अनुसूचित जाति/जनजातियों, महिलाओं तथा बालिकाओं, मलिन बस्ती निवासियों और प्रवासी श्रमिकों का शैक्षिक एवं व्यावसायिक विकास करना है।

शिक्षा पर विशेष ध्यान देने का परिणाम यह हुआ कि विद्यालयों, शिक्षकों तथा विद्यार्थियों की संख्या में पर्याप्त बढ़ोत्तरी हुई है। प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तरों पर इनमें नामांकन में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है। इसका कारण अभिभावकों का शिक्षा के प्रति लगाव तथा लड़कियों को लड़कों के बराबर समझना है। 1950-51 में लड़कियों का नामांकन प्रतिशत 28.1% था जो 1999-2000 में बढ़कर 43.6% हो गया तथा 2010 में यह प्रतिशत 64.57% हो गया।

नामांकन केन्द्र शासित प्रदेशों एवं राज्यों में भिन्नता वाला रहा है। प्राथनिक स्तर पर दादरा व नगर हवेली में लड़कों का नामांकन प्रतिशत 153.43% तथा सिक्किम में 138.48% सर्वोच्च रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि यह प्रतिशत 100 से भी अधिक है क्योंकि 6 वर्ष से 11 वर्ष से कुछ कम एवं अधिक आयु के बच्चे भी शामिल हैं। इस क्रम में चण्डीगढ़ में लड़कों का नामांकन प्रतिशत 66.3% रहा जो सबसे नीचा था। इसी समय उत्तरप्रदेश में लड़कों का नामांकन प्रतिशत 50.18% सबसे कम रहा।

उच्च प्राथमिक शिक्षा में नामांकन का प्रतिशत 58.8 है जबकि बिहार में नामांकन प्रतिशत 32.66 तथा केरल में 95.61% रहा। इस शिक्षा स्तर में राजस्थान में लड़कों का नामांकन 105.89% रहा जो सर्वाधिक था। इसके विपरीत बिहार में यह सबसे कम 41.38% रहा। लड़कियों के नामांकन के मामले में अण्डमान निकोबार द्वीप समूह सबसे आगे 95.69% तथा बिहार सबसे पीछे 22.04% रहा।

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