जनांकिकी का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध (RELATION OF DEMOGRAPHY WITH OTHER SCIENCES)

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विश्व में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या सामाजिक समस्याएँ निर्माण कर रही हैं इसलिए वर्तमान समय में जनांकिकी मानव समाज के अध्ययन में अपना एक मौलिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। अपने विकास के प्रारंभिक काल में जनसंख्या के विभिन्न पक्षों में से केवल सांख्यिकीय विवेचन के कारण जनांकिकी को एक नीरस विज्ञान माना जाता था, किंतु जनांकिकीय आँकड़ों का नवीन विधियों द्वारा विश्लेषण एवं जनसंख्या के विभिन्न पक्षों का वैज्ञानिक अध्ययन इसे एक सरल एवं रूचिकर विज्ञान बना रहा है। सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र में जनांकिकी को आज महत्वपूर्ण एवं पूर्ण विज्ञान का स्थान दिया जाता है।

आज जनांकिकी अपनी विषय सामग्री के अध्ययन के लिए अन्य सामाजिक विज्ञानों पर उतनी ही आश्रित है, जितना अन्य विज्ञान जनांकिकी पर। यह कहा जा सकता है कि अन्य सामाजिक विज्ञानों और जनांकिकी में परस्पर निर्भरता पायी जाती है। सामाजिक जनांकिकी का किन-किन विषयों से सम्बन्ध है उसका हम यहाँ विस्तृत अध्ययन करेंगे।

(1) जनांकिकी और समाज विज्ञान (Demography and Sociology):- समाज विज्ञान में हम मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष का अध्ययन करते हैं। सामान्यतया जनांकिकी को समाज विज्ञान का ही अंग माना जाता है। समाज विज्ञान और जनांकिकी में सम्बन्ध को निम्नलिखित बिन्दुओं से और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है:-

(i) जनांकिकी जनसंख्या का अध्ययन है और समाज विज्ञान समाज का अध्ययन है। जनसंख्या का अध्ययन तब तक अपूर्ण रहेगा, जब तक कि समाज का हमें अच्छा ज्ञान नहीं होगा। इस प्रकार जनांकिकी और समाज-विज्ञान एक-दूसरे से अर्न्तसम्बन्धित हैं।

(ii) जनसंख्याशास्त्री जनसंख्या की प्रकृति और बनावट आदि का विश्लेषण करता है, जिसके लिए सामाजिक व्यवस्था का ज्ञान होना आवश्यक है।

(iii) जनांकिकी में जन्म दर व मृत्यु दर का अध्ययन किया जाता है, जिन पर सामाजिक संस्थाओं और सामाजिक दशाओं का प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।

(iv) जनसंख्या नीति जनांकिकी का एक प्रमुख विषय है, लेकिन जनसंख्या नीति प्रत्येक देश की सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग होती है।

(v) जनांकिकी के अंतर्गत जनस्वास्थ्य का भी अध्ययन किया जाता है, लेकिन जनस्वास्थ्य की योजनाएँ बनाते समय हमें सामाजिक विशेषताओं को भी ध्यान में रखना पड़ता है।

(vi) जनसंख्या नीति जनांकिकी का एक प्रमुख विषय है, लेकिन जनस्वास्थ्य की योजनाएं बनाते समय हमें सामाजिक विशेषताओं को भी ध्यान में रखना पड़ता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जनांकिकी और समाज विज्ञान परस्पर सम्बन्धित तथा एक-दूसरे के सहयोगी हैं। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं समझना चाहिए कि ये दोनों विज्ञान एक हैं।

(2) जनांकिकी और अर्थशास्त्र (Dermography and Economics):- जनसंख्या का जैवकीय, समाजशास्त्र, भूगोल अथवा अन्य किसी भी विषय में चाहे जो सम्बन्ध हो, 20वीं सदी के अन्तिम दशक और इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ में आते-आते जनांकिकी अर्थशास्त्र के सर्वाधिक निकट आ गया है। अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन है। मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं के निर्धारण में जनांकिकीय घटनाओं का महत्वपूर्ण हाथ होता है। जहाँ जनसंख्या अधिक होगी, सम्पूर्ण आर्थिक क्रियायें वहाँ बढ़ जायेंगी और जनसंख्या के बढ़ने के कारण बेरोजगारी, आवास समस्या, शिक्षा आदि समस्याएँ सामने आई हैं। भारत में ये समस्त समस्यायें भयावह रूप धारण कर चुकी हैं, क्योंकि यह अत्याधिक जनसंख्या का देश है जनांकिकी के समस्त घटक आर्थिक चरों को प्रभावित करते हैं। जिस देश में जनसंख्या की संरचना इस प्रकार हो कि 15-60 की आयु वर्ग में कम व्यक्ति हों वहाँ श्रम पूर्ति कम होगी, जैसे-भारत। अधिक जनसंख्या उपभोग बढ़ाती है अतः एक विकसित देश में अधिक जनसंख्या, मन्दी एवं अति उत्पादन से मुक्ति दिला सकती है तो एक विकासशील देश के लिये यह अभिशाप है, क्योंकि यह पूँजी के निर्माण में बाधक हैं।

जेजे०स्पेग्लर ने जनांकिकी एवं अर्थशास्त्र के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए कहा है कि जनसंख्या परिवर्तन को मात्र समंकों में परिवर्तन मान लिया जाता है, जबकि जनसंख्या के परिवर्तन समस्त आर्थिक प्रणाली में परिवर्तन लाते हैं। अतः जनांकिकी चरों एवं आर्थिक चरों की परस्पर निर्भरता को ध्यान में रखना अनिवार्य है।" जनसंख्या अर्थशास्त्र में सामान्यतः दो रूप देखने मिलते हैं- एक ओर यह श्रमशक्ति के रूप में उत्पादन का साधन बनकर आती है अतः जनसंख्या के परिवर्तन, श्रमशक्ति में परिवर्तन लाकर उत्पाद-व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। दूसरी ओर जनसंख्या समस्त आर्थिक क्रियाओं का आदि भी है और अन्त भी है, क्योंकि आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य अपनी जनसंख्या का अधिकतम कल्याण करना है। इस प्रकार जनसंख्या पूँजी के निर्माण, प्रति व्यक्ति आय, प्राविधिक विकास, जिस देश में श्रमिक अधिक होंगे श्रम सघन उद्योगों क बिकास भी उसी प्रमाण में होगा, वहाँ आद्योगिक अन्वेषण एवं अनुसन्धान की मात्रा भी कम होगी। इसके विपरीत जहाँ श्रमिकों की कमी एवं पूँजी की पर्याप्तता होगी, वहाँ पूँजी सधन उद्योग होंगे, आय का एक बड़ा भाग औद्योगिक अनुसन्धान पर व्यय होगा। जनसंख्या उपभोग स्तर, विकास की दर, प्रवास आदि अनेक आर्थिक चरों के आकार एवं प्रकार को निधारित एवं प्रभावित करती है। प्रो० लॉसने जर्मनी के सम्बन्ध में लिखा है- "मेरा मत है कि जर्मनी में व्यापार चक्र आने का समय एवं व्यापार चक्र के स्वरूप का प्रमुख कारण श्रमपूर्ति है। किसी देश के आर्थिक जीवन में सवार्धिक निर्णयात्मक घटक जनसंख्या है।" जनसंख्या के कारण निर्माण होने वाली समस्याओं में प्रवास की समस्या, नगरीकरण की समस्या, बेरोजगारी की समस्या, शिक्षा, स्वास्थय, यातायात आदि सभी समस्याओं का समावेश होता है। जनांकिकी का एक पहलू जनसंख्या का गुणात्मक अध्ययन है जिसमें आकार का नहीं वरन् जनसंख्या के गुण का अध्ययन होता है। आर्थिक विकास की दृष्टि से यही श्रेष्ठ गुण वाली जनसंख्या किसी राष्ट्र कीअमूल्य निधि है। यही वह मानव-शक्ति है जिस पर किसी देश की समृद्धि आश्रित होती है।

(3) जनांकिकी एवं मानवशास्त्र (Anthropology and Demography):- आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी डिक्शनरी के अनुसार- जनांकिकी मानवशास्त्र का एक अंग माना जाता है जो कि जन्म, मृत्यु तथा रोगों की संख्याओं को विश्लेषित करता है। परम्परागत नस्तत्वीय शास्त्री जनांकिकी की भाँति सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या का अध्ययन नहीं करते, वरन् जनसंख्या के कुछ ही वर्गों का अध्ययन करते हैं। आज अनेक शारीरिक मानव शास्त्री जनांकिकी के साथ इसके बढ़ते सहसम्बन्ध को मुख्यतः तीन समस्याओं का परिणाम मानते हैं। (i) मानव का जीव विकास (ii) मानव एवं वानरगण का विकास, तथा (iii) मनुष्यों की जीवित किस्मों शीर्षकों में वर्गीकृत किये जा सकते हैं। इन मानवशास्त्रियों ने उत्परिवर्तन जीन बहाव का चुनाव, आकस्मिक अनुवांशिक स्त्रोत चुनने योग्य समागम आदि जीन बारम्बारता में परिवर्तन के निर्धारक तरीकों की जनसंख्या की आनुवंशिकी से लिया है। इसके अतिरिक्त समकालीन शारीरिक मानवशास्त्र ने प्रजनन, मृत्यु, विवाह, देशान्तरण, जनसंख्या का आकार और गठन आदि जनांकिकीय विषयों में भी रूचि लेना प्रारम्भ किया है, क्योंकि यह सभी पर जीन बाराबारता में होने वाले परिवर्तनों के अध्ययन में विशेष महत्वपूर्ण होते हैं। उपरोक्त अध्ययन से हमें जनांकिकी व मानवशास्त्र में निम्न सम्बनध दिखायी देता है।

(i) कुटूम्बार्तजनन या अन्तःप्रजनन का अध्ययन:- इसमें हम जन्म के समकों का अध्ययन करते है जो कि निकट सम्बन्धियों के सहवास से सम्बन्धित है।

(ii) सजातीय प्रजनन:- इसमें हम उन जीवन समको अध्ययन करते हैं जो एक ही जाति या वर्ग के हों।

(iii) उत्परिवर्तन:- इसके अन्तर्गत किसी वंश के जीन गुणों की पहचान करते हैं, कि जो जीन माता- पिता में या पूर्वजों में थे, वे ही हैं बच्चे में भी हैं या उनसे पृथक हैं। यदि पृथक है तो दूसरा परिणाम क्या है? जीन परिवर्तन से कभी-कभी हानि होती देखी गई है। लोग जीन-परिवर्तन से कभी-कभी विकृत, विक्षिप्त हो जाते है। जीनों का प्रभाव अस्थायी होता है तथा यह ताप, रासायनिक विकरण के कारण उत्पन्न होता है।

(iv) जीन प्रवाहः- इसके अन्तर्गत दोनों ही विषय जनांकिकी एवं नरतत्वीय शास्त्र का अध्ययन करते हैं कि किसी प्रकार से दो अलग वर्गों के स्त्री-पुरूषों के बीच सहवास के परिणामस्वरूप जो बच्चे पैदा होते हैं उनमें जीन-प्रवाह होता हैं।

(4) मानव परिस्थितिकी एवं जनांकिकी (Ecology and Demography):- जनसंख्या में वातावरण, परिस्थिति आदि का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। वातावरण में परिवर्तन जनसंख्या के द्वारा तथा जनसंख्या में परिवर्तन वातावरण के द्वारा उत्पन्न होता है। एक शिक्षित समाज में जनसंख्या के गुणात्मकता पर परिमाणात्मकता की अपेक्षा अधिक ध्यान दिया जाता है। वास्तव में हम विज्ञान के अन्तर्गत जनसंख्या, वातावरण, तकनीकी तथा संगठन का सम्पूर्ण अध्ययन करते हैं। आज परिस्थितिक वैज्ञानिक जनसंख्या वृद्धि के जैविक विश्लेषण के अलावा सामाजिक, सांस्कृतिक आदि पहलुओं का भी अध्ययन करते हैं। जनसंख्या घनत्व में जाति, स्थान, संस्कृति के अनुसार भिन्नता पाई जाती है। जन्म-दर, मृत्यु-दर के निर्धारक घटकों तथा जीवन सम्भाव्यताओं आदि का अध्ययन पूर्णरूपेण परिस्थिति विज्ञान में किया जाता है। अनेकों प्रयोगों का यह निष्कर्ष है कि जनसंख्या व खाद्य सामग्री तथा जनसंख्या में घनत्व के सह-सम्बन्ध होता है। इसके द्वारा हम यह जान पाते हैं कि उन जीवों की जन्म-दर अधिक होती है जिनकी जीवन सम्भाव्यता जन्म के बाद बहुत कम होती है।

अधिकांश नव-माल्थसवादी जनांकिकी विचारकों का मानना है कि भविष्य में जनसंख्या खाद्य-सामग्री की सीमितता के कारण स्वयं सीमित हो जायेगी। परिस्थिति विज्ञानी को जनसंख्या से सम्बन्धित सांस्कृतिक व समाज संस्थाओं के बारे में ज्ञान नहीं होता इस कारण वे जन्म व मृत्यु-दरों तथा प्रवास के बारे में केवल जैविक विश्लेषण ही करते हैं इस कारण परिस्थिति विज्ञान के ज्ञान का जनांकिकी विचारक सीमित प्रयोग ही कर पाते हैं।

(5) भूगोल एवं जनांकिकी (Geography and Demography):- भूगोल में मनुष्य एवं प्राकृतिक सम्पदा के परस्पर सम्बन्ध का विस्तृत अध्ययन होता है। यह एक ओर भू-आकृतियों का अध्ययन है जिसमें पहाड़, नदी, मैदान आदि का निर्माण कैसे होता है? इसका अध्ययन होता है तो दूसरी ओर यह मनुष्य के क्रमिक विकास का अध्ययन करता है। भौतिक आकृतियों के अध्ययन को भौतिक भूगोल कहा जाता है, जबकि मानव विकास, जातीय गुण, मानव आकृतियाँ, मानव के विकास की दर, जन्म-दर, मृत्यु-दर, जनसंख्या का वितरण, प्रवास आदि का अध्ययन मानव भूगोल का अध्ययन विषय माना गया है तथा जनांकिकी आँकड़ों की सहायता से परिवर्तनों का विश्लेषण करता है, जबकि मानव भूगोल इन परिवर्तनों का वातावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करता है। प्रो० एकरमैन ने बताया कि आधुनिक भूगोलशास्त्रियों ने पृथ्वी के साँस्कृतिक पहलू को लिया है। इसको उन्होंने सामान्य एवं जैवकीय सिद्धान्तों तथा स्थान से सम्बन्धित करने का प्रयत्न किया है। सांस्कृतिक पहलुओं को भौतिक एवं जीवन सम्बन्धी विशेषताओं से सम्बन्धित किया है। इसके लिये विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या के वितरण का अध्ययन किया है। जनांकिकी के अन्तर्गत मुख्य रूप से पाँच बातों का अध्ययन होता है- (i) जनांकिकी समंकों का एकत्रीकरण, (ii) जनगणना द्वारा प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण एवं क्षेत्रीय वितरण, (iii) उस जनगणना में आयु, लिंग, निवास, शिक्षा, व्यवसाय आदि के आधार पर क्षेत्रीय भिन्नता, (iv) स्थानीय गतिशीलता के आधार पर निवास में आने वाले परिवर्तन और (v) जनसंख्या एवं प्राकृतिक साधनों के बीच तालमेल। ग्रामीण एवं शहर के बीच जनसंख्या के वितरण एवं प्रवास के सम्बन्ध का भूगोल में विस्तार से अध्ययन होता है। नगरों का उद्भव, विकास एवं जनाधिक्य का वितरण नगरीय भूगोल में विस्तार से मिल जाता है।

(6) जनांकिकी एवं सांख्यिकी (Demography and Statistics):- जनांकिकी को यदि विच्छेदित किया जाये तो हमें जन और अंक दो शब्द मिलते हैं। अतः इससे स्पष्ट है कि यह मानव के आँकड़ों से सम्बन्धित है। जिस शास्त्र में संख्याओं का संकलन, वर्गीकरण, सारणीकरण आदि का अध्ययन किया जाता है उसे "सांख्यिकी' कहते हैं। अब यदि ये आँकड़े मानव से सम्बन्धित हों तो इन्हें हम जनांकिकी में अध्ययन करेंगे। जनांकिकी का बिना सांख्यिकी के प्रयोग के अध्ययन ही नहीं किया जा सकता है।

जनांकिकी का उद्देश्य एवं उसकी उपयोगिता (Purpose and Usefulness of Demographic Study):- वर्तमान समय में जनांकिकी की उपयोगिता दिनों-दिन बढ़ रही है जो निम्न प्रकार है।

सामान्यतः किसी समाज, देश या भौगोलिक खण्ड की सम्पूर्ण रचना, महत्व तथा मानव को ध्यान रखकर की जाती है। निर्मित प्रदेश, समाज आदि व्यक्ति को क्या प्राप्त हो रहा है? उसकी समस्यायें क्या हैं? सरकार कितना प्रयत्न कर रही है? आदि इस दिशा में ऐसे प्रश्न है जिनका उदय जनसंख्या को लेकर होता है। जनांकिकी में जनसंख्या सम्बन्धी ज्ञान, व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय दोनों ही दृष्टिकोणों से किया जाता है। वैदिक काल से सत्रहवीं सदी तक वह सरकार अच्छी मानी जाती थी जो कि प्रजा के लिये अधिक से अधिक कार्य करे अर्थात् अधिकतम हस्तक्षेप की नीति का सन्दर्भ मिलता है। अहस्तक्षेप की नीति में सरकारें प्रजा के किसी कार्य में बाधक नहीं होती हैं अर्थात् सरकार कोई भी कार्य नहीं करती। प्रजा सब स्वयं करेगी और सब स्वसंचालित है। इसके बाद ही पुनः अधिकतम हस्तक्षेप की नीति को ही मान्यता प्रदान की जा

रही है। शिक्षा, कर, सैन्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा, कृषि और औद्योगिक उत्पादन सड़कें एवं राष्ट्रीय मार्ग, स्वास्थ्य सेवा, व्यापार, आवास, मनोरंजन आदि कार्यक्रमों को ठीक से कार्यान्वित करने हेतु क्षेत्र विशेष की जनसंख्या, आकार संरचना आदि का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है। जनसंख्या के उपयोगिता को स्पष्ट करते हुए ओजैसकी का कहना है कि- “यदि आप यह जानना चाहते हैं कि राष्ट्र कितनी गति से अपने आर्थिक आधुनिकीकरण में प्रगति कर रहा है तो आपको विभिन्न व्यवसायों की संख्या कृषि, उद्योगों तथा सेवाओं में लगी जनसंख्या के प्रतिशत पर दृष्टिपात करना होगा। उसके रहन-सहन के स्तर को जानने के लिये जीवन- प्रत्याशा पर ध्यान देना होगा क्योंकि इससे अच्छा कोई भी माप नहीं है कि कोई सभ्यता प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के कितने वर्ष देती है। क्या आप राष्ट्रीय संस्कृति की अवस्था को जानते है? साक्षरों की संख्या तथा उसके शैक्षणिक स्तर इसका कुछ ज्ञान दे सकेंगे। जातीय सम्बन्धों के लिये जातिवाद व्यवसायों, शिक्षा तथा जीवन-अवधि के अन्तरों को समझना होगा।

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