झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण
परिषद्, राँची (झारखंड)
Jharkhand Council of Educational Research
and Training, Ranchi (Jharkhand)
द्वितीय सावधिक परीक्षा - 2021-2022
Second Terminal Examination - 2021-2022
मॉडल प्रश्नपत्र
Model Question Paper
सेट-2 (Set-2)
वर्ग- 12 (Class-12) |
विषय-अर्थशास्त्र। (Sub-Economics) |
पूर्णांक-40 (F.M-40) |
समय-1:30 घंटे (Time-1:30 hours) |
सामान्य
निर्देश (General Instructions) -
» परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर दें।
»
कुल प्रश्नों की संख्या 19 है।
»
प्रश्न संख्या 1 से प्रश्न संख्या 7 तक अति लघूत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं
पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक
प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।
»
प्रश्न संख्या 8 से प्रश्न संख्या 14 तक लघूतरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 5 प्रश्नों
के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3
अंक निर्धारित है।
» प्रश्न संख्या 15 से प्रश्न संख्या 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।
खंड- A अति लघु उत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर
दीजिए।
1. आर्थिक एजेंट कौन होते हैं?
उत्तर: परिवार (उपभोक्ता), कंपनियां (निर्माता और बाजार), और राज्य (जो, विभिन्न तंत्रों के माध्यम से, बाजार के कामकाज
को विनियमित करते हैं) सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक एजेंट हैं।
2. राष्ट्रीय आय को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
:- राष्ट्रीय आय का अर्थ है एक देश के सभी
निवासियों द्वारा एक वर्ष की अवधि में अर्जित कुल साधन
( कारक ) आय का जोड़।
NY =`\sum_{i=1}^nFY_i`
यहां
NY = राष्ट्रीय आय , ∑
= कुल जोड़ , FY = कारक आय ( मजदूरी ,लगान , व्याज
, लाभ ) , n = एक देश के सभी सामान्य निवासी।
3. नगद निधि अनुपात (CRR) से आप क्या समझते
हैं?
उत्तर: व्यापारिक बैंकों को कानूनी तौर
पर अपनी जमाओ का एक निश्चित प्रतिशत केन्द्रीय बैंक के पास नकद निधि के रुप में रखना पड़ता है।
4. सरकारी बजट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सरकारी बजट एक वित्तीय वर्ष ( अप्रैल
1 से मार्च 31 तक ) की अवधि के दौरान
सरकार की प्राप्तियों ( आय ) तथा
सरकार के व्यय के अनुमानों का विवरण होता है।
5. राजस्व प्राप्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: सरकार की राजस्व प्राप्तियां वे मौद्रिक प्राप्तियां
हैं जिनके फलस्वरूप न तो कोई देयता उत्पन्न होती है और न ही
परिसंपत्तियों में कमी होती है।
6. समग्र माँग क्या है?
उत्तर: आय व
रोजगार के स्तर पर एक साल में अर्थव्यवस्था में जो वस्तुओं और सेवाओं की माँग की
जाती है उसे समग्र माँग कहते हैं।
7. व्यापार संतुलन क्या है?
उत्तर: व्यापार संतुलन के अंतर्गत आयातो और निर्यातो का विस्तृत विवरण रहता है। जब एक देश के आयातो की तुलना में उसके निर्यात अधिक होते हैं तो उसे अनुकूल व्यापार संतुलन कहते हैं और जब निर्यात की तुलना में आयात अधिक होते हैं तो उसे प्रतिकूल व्यापार संतुलन कहते हैं।
खंड-B लघु उत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर
दीजिए।
8. 1929 ई. की विश्व की महामंदी का वर्णन कीजिए।
उत्तर: 1929 की महामंदी:
1. 1929 में विश्व में एक गंभीर स्थिति 'महामंदी' ने जन्म
लिया। यह महामंदी 1933 तक बनी रही। इस विश्व्यापी महामंदी की घटना ने परंपरावादी मान्यता
को चूर-चूर कर दिया। इस महामंदी के कारण अमरीका के देशों में निर्गत और रोजगार के स्तरों
में भारी गिरावट आयी।
2. इसका प्रभाव दुनिया के अन्य देशों पर भी पड़ा। बाजार में
वस्तुओं की माँग में भारी गिरावट के कारण कई कार खाने बंद हो गए तथा श्रमिकों को काम
से निकाल दिया गया था।
3. संयुक्त राज्य अमरीका में 1929 से 1933 तक बेरोज़गारी
की दर 3 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई थी। इस अवधि के दौरान संयुक्त राज्य अमरीका
में समस्त निर्गत में लगभग 33 प्रतिशत की गिरावट आई।
4. मंदी की ऐसी गंभीर स्थिति ने अर्थशास्त्रियों को 'व्यष्टि'
के स्थान पर 'समष्टि' स्तर पर सोचने को बाध्य कर दिया।
5. इन परिस्थितियों में जे.एम .केन्ज की पुस्तक 'रोज़गार,
ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत' 1936 में प्रकाशित हुई जिससे समष्टि अर्थशास्त्र
जैसे विषय का उद्भव हुआ।
9. वस्तु विनिमय प्रणाली के किसी एक दोष का
वर्णन कीजिए।
उत्तर: वस्तु
विनिमय प्रणाली के दोष
1. दोहरे संयोग का अभाव – वस्तु विनिमय तभी सम्भव हो सकता है जबकि दो ऐसे व्यक्ति आपस में मिल जायें जो उनकी आवश्यकता की वस्तु को आपस में बदलने के लिए तैयार हों। ऐसा संयोग मिलना बहुत कठिन होता है।
2. मूल्य मापन में कठिनाई – यदि दोहरा संयोग मिल भी जाता है तो भी विनिमय तब तक सम्भव नहीं हो सकता जबकि वस्तु अदला-बदली की मात्रा पर सहमति न हो। किस वस्तु के बदले कितनी दूसरी वस्तु दी जाए। इसका निर्धारण करना बहुत कठिन कार्य है।
10.प्रत्यक्ष कर को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: जिस कर के भुगतान में कर भार तथा कर
दायित्व एक ही व्यक्ति पर पड़ते हैं उसे प्रत्यक्ष कर कहते हैं।
जैसे – आयकर, सम्पत्ति कर आदि।
11.स्टॉक और प्रवाह चर को परिभाषित कीजिए।
उत्तर :-
स्टॉक |
प्रवाह |
स्टॉक का अर्थ किसी एक विशेष समय बंदु पर मापी जाने वाली आर्थिक चर की मात्रा है। |
प्रवाह का अर्थ एक आर्थिक चर की वह मात्रा है जिसे किसी समय अवधि के दौरान मापा जाता है। |
स्टॉक का कोई समय परिमाप नहीं
होता। |
प्रवाह का समय परिमाण होता है जैसे प्रति घंटा,
प्रतिदिन,प्रतिमास |
स्टॉक एक स्थैतिक अवधारणा है। |
प्रवाह एक गत्यात्मक अवधारणा है। |
उदाहरण- मुद्रा का परिमाण,धन,गोदाम में रखे गेहूं की मात्रा,टंकी में
रखा पानी। |
उदाहरण - उपभोग,
निवेश,आय,नदी में जल। |
12. समष्टि अर्थशास्त्र के अर्थ को समझाइए।
एम. एच. स्पेन्सर के अनुसार," समष्टि
अर्थशास्त्र का संबंध अर्थव्यवस्था अथवा उसके बड़े-बड़े हिस्सों
से है। इसके अंतर्गत ऐसी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है जैसे बेरोजगारी का
स्तर, मुद्रास्फीति की दर राष्ट्र का कुल उत्पादन आदि जिनका संपूर्ण अर्थव्यवस्था के
लिए महत्व होता है"।
13.समग्र माँग के घटकों को लिखिए।
उत्तर :- कुल ( समग्र) मांग,
वह कुल व्यय है जो लोग एक वित्तीय वर्ष की अवधि के दौरान वस्तुओं
और सेवाओं के खरीदने पर खर्च करने की योजना बनाते हैं। ध्यान देने वाली बात
यह है कि समग्र मांग (AD) को मापने समय हम सदा लोगों द्वारा
किए जाने वाले आयोजित व्यय या प्रत्याशित व्यय के संदर्भ
में बात करते हैं।
कुल मांग के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं -
1. निजी उपभोग व्यय (C) :- इसमें देश के गृहस्थो/परिवारो द्वारा एक लेखा वर्ष में, सभी वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए
की गई मांग को शामिल किया जाता है।
2. निजी निवेश मांग (I) :- इससे अभिप्राय निजी निवेशकर्ताओं द्वारा
पूंजी पदार्थों की खरीद पर करने वाले व्यय से है।
3 सरकारी व्यय
(G) :- इसमें सरकारी उपभोग में व्यय तथा
सरकारी निवेश व्यय दोनों शामिल होते हैं।
सरकारी उपभोग व्यय से अभिप्राय है
सैन्य/सुरक्षा प्रयोग के लिए वस्तुओं के उपभोग की खरीद पर
खर्च/सरकारी निवेश व्यय से अभिप्राय है सड़कों,डैमो तथा पुलो के निर्माण पर किया जाने वाला व्यय।
4. शुद्ध निर्यात (X - M ) :- विदेशियों द्वारा हमारी वस्तु के लिए किए गए व्यय
को अर्थव्यवस्था में कुल व्यय (समग्र
मांग) मे जोड़ा जाता है, जबकि आयात पर किए जाने वाले
व्यय को घटाया जाता है। अतः X -
M (शुद्ध निर्यात) को समग्र मांग
(AD) में जोड़ा जाता है।
अतः समग्र मांग के प्रमुख
तत्त्व है -
AD = C + I + G + ( X- M) [ खुली अर्थव्यवस्था में ]
or, AD = C + I
[ बन्द अर्थव्यवस्था में ]
जहां , AD = समग्र मांग , C = निजी उपभोग व्यय , I = निजी निवेश व्यय , G = सरकारी व्यय, X - M = शुद्ध निर्यात
चित्र
में, AD वक्र का बारे
से दाये ऊपर की ओर बढ़ना इस बात को दर्शाता हैं कि जैसे-जैसे
आय / रोजगार की मात्रा बढ़ती जाती है, कुल मांग भी बढ़ती जाती है।
14.भुगतान शेष के चालू खाते के घटकों को लिखिए।
उत्तर :- चालू खाता
चालू खाता वह खाता
है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात एवं एकपक्षीय भुगतानो का हिसाब किताब रखा जाता है।
चालू खातों के निम्नलिखित घटक है
1. वस्तुओं का निर्यात तथा आयात
(अथवा दृश्य मदे)
2. सेवाओं का निर्यात
तथा आयात (अथवा अदृश्य मदे)
3. एक देश से दूसरे
देश को एकपक्षीय अंतरण
खंड-दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों का उत्तर
दीजिए।
15. वास्तविक प्रवाह और मौद्रिक प्रवाह में
अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: सन् 1758 में क्वीने ने
आय और उत्पादन की चक्रीय प्रवाह की रचना की थी। 19वी शताब्दी
के मध्य में कार्ल मार्क्स ने आय और उत्पादन के चक्रीय प्रवाह के बारे में चर्चा की।
आय के प्रवाह से अभिप्राय है मुद्रा का प्रवाह जबकि उत्पाद के प्रवाह से अभिप्राय वस्तुओं
और सेवाओं के प्रवाह से है। इसलिए आय के प्रवाह को मौद्रिक प्रवाह तथा वस्तुओं एवं
सेवाओं के प्रवाह को वास्तविक प्रवाह कहा जाता है
वास्तविक प्रवाह – आय के वास्तविक प्रवाह से अभिप्राय है कि परिवार
क्षेत्र द्वारा प्रदान की गई उत्पादन के कारकों की सेवाओं का प्रवाह उत्पादक क्षेत्र
की ओर से होता है तथा उत्पादक क्षेत्र द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का परिवार
परिवार क्षेत्र की ओर होता है।
मान लीजिए एक सरल अर्थव्यवस्था में केवल दो क्षेत्र हैं:(a) उत्पादक क्षेत्र और
(b) परिवार क्षेत्र
ये दोनों क्षेत्र निम्न प्रकार से परस्पर निर्भर है:
(क)
उत्पादक क्षेत्र वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति परिवार क्षेत्र को
करता है।
(ख) परिवार क्षेत्र (उत्पादन के कारकों के स्वामियों के रूप में) उत्पादन के कारकों ( या कारक सेवाओं) की आपूर्ति उत्पादक क्षेत्र को करता है
ऊपर के चित्र
द्वारा वास्तविक प्रवाहों को (1) उत्पादक क्षेत्र से परिवार क्षेत्र की ओर वस्तुओं
और सेवाओं के रूप में होने वाले प्रवाह एवं (2) परिवार क्षेत्र से कारक सेवाओं जैसे
श्रम, पूंजी, भूमि और उद्यम को उत्पादक क्षेत्र की ओर होने वाले प्रभाव के रूप में
प्रकट किया गया है।
मौद्रिक प्रवाह- से अभिप्राय कारक आय अर्थात् लगान, ब्याज,
लाभ और मजदूरी का उत्पादक क्षेत्र से परिवार क्षेत्र की ओर उनकी कारक सेवाओं के मौद्रिक
पुरस्कारों के रूप में होने वाले प्रभाव से है। परिवार क्षेत्र अपनी आय को उत्पादक
क्षेत्र द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं पर व्यय करता है। इस प्रकार मुद्रा का प्रवाह
परिवारिक व्यय के रूप में परिवार क्षेत्र से उत्पादक क्षेत्र की ओर वापस हो जाता है।
चक्रीय प्रवाह मॉडल मुद्रा प्रवाहों को प्रकट करते हैं। अपनी कारक सेवाओं के लिए परिवार क्षेत्र को कारक भुगतान/ अदायगी (लगान, ब्याज, लाभ और मजदूरी) उत्पादक क्षेत्र से प्राप्त होते हैं। परिवार क्षेत्र वस्तुओं और सेवाऐ खरीदने के लिए जो व्यय करता है वह उत्पादक क्षेत्र को प्राप्त होता है।
16. निम्नलिखित आँकड़ो से आय विधि से साधन
लागत पर सकल घरेलू उत्पाद की गणना कीजिए।
|
(करोड़ रुपये में) |
a) कर्मचारियों का पारिश्रमिक |
13300 |
b) ब्याज |
1500 |
c) लगान |
1000 |
d) लाभ |
1500 |
e) स्वरोजगार से मिश्रित आय |
16100 |
f) अप्रत्यक्ष कर |
800 |
g) सहायता |
300 |
उत्तर: साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC)
= कर्मचारियों का पारिश्रमिक +ब्याज + लगान
+ लाभ + स्वरोजगार से मिश्रित आय + सहायता - अप्रत्यक्ष कर
GDPFC = 13300 + 1500 + 1000 + 1500 + 16100
+ 300 - 800
GDPFC = 33700 - 800 = 32900
17.मुद्रा के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: मुद्रा के कार्यों को निम्न
शीर्षकों में बाँटकर देखा जा सकता है –
(अ) मुद्रा के प्रमुख या प्रधान कार्य
(Primary Functions of Money) – मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं। इन कार्यों
को मुद्रा प्रत्येक प्रकार की अर्थव्यवस्था में आवश्यक रूप से सम्पन्न करती है –
(i) विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)
– मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करती है। आजकल सभी लेन-देन मुद्रा के माध्यम
से किए जाते हैं। यह मुद्रा का महत्वपूर्ण कार्य है। उत्पादक, विक्रेता अपनी
वस्तुओं के मूल्य स्वरूप मुद्रा प्राप्त करते हैं तथा क्रेता मुद्रा के रूप में
खरीदी गई वस्तु अथवा सेवा का मूल्य चुकाते हैं।
(ii) मूल्य का मापक (Measure of Value) –
मुद्रा का यह दूसरा महत्वपूर्ण कार्य हैं। मुद्रा के चलन के बाद सभी वस्तुओं एवं
सेवाओं का मूल्य मुद्रा में ही निर्धारित होता है। इस कारण वस्तुओं का लेन-देन
बहुत सरल हो गया है।
(ब) मुद्रा के सहायक या गौण कार्य
(Secondary Functions of Money) – मुद्रा के सहायक कार्यों से आशय ऐसे कार्यों से
लगाया जाता है जिन्हें मुद्रा प्राथमिक कार्यों को सम्पन्न करने में सहायता प्रदान
करने के लिए करती है। ये कार्य निम्नलिखित हैं –
(i) मूल्य संचय का साधन (Means of Store of
Value) – वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुएँ नाशवान होने के कारण मूल्य का संचय
सम्भव नहीं था लेकिन मुद्रा के चलन ने इस कार्य को सरल बना दिया है। मुद्रा में
टिकाऊपन होता है। अतः मुद्रा के रूप में मूल्य का संचय आसानी से किया जा सकता है।
(ii) भावी भुगतान का आधार (Basis of
deferred Payment) – मुद्रा ने भुगतान भविष्य में करना सम्भव बना दिया है क्योंकि
मुद्रा के मूल्य में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होते हैं। वर्तमान समय में अधिकांश
व्यापारिक लेन-देन उधार पर आधारित होते हैं। मुद्रा के माध्यम से भविष्य में उधारी
की रकम को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
(iii) क्रय शक्ति हस्तांतरण (Transfer of
purchasing Power) – मुद्रा के द्वारा क्रय शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर
तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को आसानी से हस्तांतरित किया जा सकता है। ऐसा
करने से कोई आर्थिक नुकसान भी नहीं होता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति भरतपुर
से जयपुर जाकर बसना चाहता है तो वह आसानी से अपनी भरतपुर की सम्पत्तियों को बेचकर
मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा उस मुद्रा से जयपुर में सम्पत्ति खरीद सकता है।
मुद्रा एक तरल सम्पत्ति हैं। इसलिए इसे लाने ले जाने में कोई कठिनाई नहीं होती है।
(स) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent
functions of Money) – मुद्रा कुछ आकस्मिक कार्य भी सम्पादित करती है। इन कार्यों
से मुद्रा और भी सुविधाजनक व उपयोगी माध्यम बन जाती है। ये कार्य निम्नलिखित हैं –
(i) सामाजिक आय का वितरण (Distribution of
Social Income) – मुद्रा सामाजिक आय के न्यायपूर्ण वितरण को सरल बनाती है। आजकल
उत्पादन कार्य बड़े पैमाने पर किया जाता है जिसमें उत्पत्ति के विभिन्न साधनों का
महत्वपूर्ण योगदान होता है। इन सभी साधनों में उत्पादन से प्राप्त आय को
न्यायपूर्ण ढंग से वितरित करने में मुद्रा हमारी सहायता करती है।
(ii) साख का आधार (Basis of Credit) –
मुद्रा ही साख का आधार है। आज बैंकिंग संस्थाएँ बड़े पैमाने पर अनेक प्रकार के ऋण
उपलब्ध कराती है तथा साख पत्रों के प्रयोग की सुविधा प्रदान करती है। यह कार्य भी
मुद्रा के द्वारा ही सम्भव हुआ है।
(iii) सम्पत्ति की तरलता (Liquidity of
Property) – मुद्रा पूँजी एवं सम्पत्ति को तरलता प्रदान करती है। तरल रूप में
मुद्रा का किसी भी कार्य में आसानी से प्रयोग किया जा सकता है।
(द) मुद्रा के अन्य कार्य (Other functions
of Money) – मुद्रा द्वारा उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त और भी कुछ कार्य किए जाते
हैं। इन कार्यों को अन्य कार्यों की श्रेणी में रखा जाता है। अन्य कार्य निम्न
प्रकार हैं –
(i) शोधन क्षमता का सूचक (Basis of
Solvency) – किसी भी व्यक्ति के पास मुद्रा की उपलब्धता के आधार पर ही उसकी शोधन
क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है। इससे ही उस व्यक्ति की ऋण चुकाने की क्षमता का
अनुमान लगाया जाता है। किसी व्यक्ति के पास मुद्रा की मात्रा जितनी ज्यादा होती है
उसकी ऋण चुकाने की क्षमता अर्थात् शोधन क्षमता भी उतनी ही ज्यादा होती है।
(ii) निर्णय की वाहक (Bearer of option) –
मुद्रा व्यक्ति को अपने धन को विभिन्न कार्यों में विनियोजित करने के सम्बन्ध में
निर्णय लेने में सहायता करती है। यह मनुष्य द्वारा आर्थिक निर्णय लेने में सहायता
प्रदान करती है।
18.व्यावसायिक बैंक और केन्द्रीय बैंक में
अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: केन्द्रीय एवं व्यापारिक बैंक में अन्तर – केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक दोनों की ही देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन इन दोनों के उद्देश्य एवं कार्य भिन्न होते हैं। इन दोनों में निम्न अन्तर पाए जाते हैं –
19. उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC) में परिवर्तन का समग्र
माँग पर पड़ने वाले प्रभाव की व्याख्या एक उपयुक्त रेखाचित्र से कीजिए।
उत्तर: समग्र मांग (AD) = Y= C+I
C = a+bY और I = I
सीमांत
उपभोग प्रवृत्ति (MPC) में परिवर्तन
Case(1):-
जब MPC बढ़ती है
MPC बढ़ने से गुणक का मूल्य बढ़ जाएगा और निवेश का प्रभाव कई गुणा बढ़ जाएगा,जिससे राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी होगी और समग्र मांग बढ़ेगा।
Case(2):-
जब MPC घटती है
MPC घटने से गुणक का मूल्य घट जाता है जिससे निवेश का प्रभाव कई गुणा घट जाता है।,इससे राष्ट्रीय आय में कमी होगी और समग्र मांग घटेगा।