History Model Question Solution Set-2 Term-2 Exam. (2021-22)

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सामान्य निर्देश-(General Instruction)

» परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दो में उतर दें।

» कुल प्रश्नो की संख्या 19 है।

» प्रश्न 1 से प्रश्न 7 तक अतिलघूतरीय प्रश्न है। इनमे से किन्ही पाँच प्रश्नों के उतर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।

» प्रश्न 8 से प्रश्न 14 तक लघूतरीय प्रश्न है। इनमे से किन्ही पॉच प्रश्नो के उतर अधिकतम 50 शब्दो में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित है।

» प्रश्न 15 से प्रश्न 19 तक दीर्घउतरीय प्रश्न है। इनमें से किन्ही तीन प्रश्ना के उतर अधिकतम 100 शब्दो में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।

खण्ड-अ अतिलघुउतरीय प्रश्न

1. तुज़ुक-ए-बाबरी किस भाषा में लिखा गया है?

उत्तर: तुर्की भाषा में

2. स्थाई बंदोबस्त के अंतर्गत किसानों से लगान के रूप में वसूली गई धनराशि का कितना भाग जमींदार अपने पास रखते थे?

उत्तर: जमीदारों को किसानों से वसूल किये गये भू-राजस्व की कुल रकम का 10/11 भाग कम्पनी को देना था तथा 1/11 भाग स्वयं रखना था। तय की गयी रकम से अधिक वसूली करने पर, उसे रखने का अधिकार जमींदारों को दे दिया गया।

3. 1857 की क्रांति के समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था?

उत्तर: 1857 के विद्रोह के दौरान लॉर्ड कैनिंग भारत के गवर्नर-जनरल (1856 - 1860) थे।

4. चौरी चौरा घटना कब और यह किस राज्य में घटित हुई थी?

उत्तर: चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में तत्कालीन संयुक्त प्रांत (वर्त्तमान में उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुई थी, जब असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था।

5. मुस्लिम लीग की स्थापना कब और कहाँ पर हुई?

उत्तर: 30 दिसंबर, 1906 में ब्रिटिश भारत के दौरान ढाका (वर्तमान में बांग्लादेश) में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना हुई थी।

6. अकबर ने फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा का निर्माण किस उपलक्ष्य में किया था?

उत्तर: बुलंद दरवाजे का निर्माण सम्राट अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त करने की स्मृति में 1602 ई. में करवाया।

7. भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत कब हुई?

उत्तर: भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था।

खण्ड–ब लघुउतरीय प्रश्न

8. दीन-ए-इलाही से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: दीन-ए-इलाही 1582 ईस्वी में मुगल सम्राट अकबर द्वारा एक सोच थी जिसमें सभी धर्मों के मूल तत्वों को डाला, इसमे प्रमुखता हिंदू एवं इस्लाम धर्म थे। अल्लाहु-अकबर शब्द के अर्थ है "अल्लाह (ईश्वर) महान हैं " या "अल्लाह (ईश्वर) सबसे बड़ा हैं"।[2] दीन-ऐ-इलाही सही मायनों में धर्म न होकर एक आचार सहिंता समान था। इसमें भोग, घमंड, निंदा करना या दोष लगाना वर्जित थे एवं इन्हें पाप कहा गया। दया, विचारशीलता और संयम इसके आधार स्तम्भ थे।

9. "संथाल और पहाड़ियों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी" सिद्ध कीजिए |

उत्तर: पहाड़िया लोगों की आजीविका तथा संथालों की आजीविका में अंतर विभिन्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता हैं:

1. पहाड़िया लोगों की खेती कुदाल पर आधारित थी। ये राजमहल की पहाड़ियों के इर्द-गिर्द रहते थे। वे हल को हाथ लगाना पापा समझते थे। वहीं दूसरी ओर, संथाल हल की खेती यानी स्थाई कृषि सीख रहे थे। ये गुंजारिया पहाड़ियों की तलहटी में रहने वाले लोग थे।

2. पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे और जंगल के उत्पादों से अपना जीविकोपार्जन करते थे। जंगल के छोटे से भाग में झाड़ियों को काटकर तथा घास-फूस को जलाकर वे जमीन साफ़ कर लेते थे। राख की पोटाश से जमीन पर्याप्त उपजाऊ बन जाती थीं। पहाडिया लोग उस ज़मीन पर अपने खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें और ज्वार बाजरा उगाते थे। इस प्रकार वे अपनी आजीविका के लिए जंगलों और चरागाहों पर निर्भर थे। किन्तु संथाल अपेक्षाकृत स्थायी खेती करते थे। ये परिश्रमी थे और इन्हें खेती की समझ थी। इसलिए जमींदार लोग इन्हें नई भूमि निकालने तथा खेती करने के लिए मज़दूरी पर रखते थे।

3. कृषि के अतिरिक्त शिकार व जंगल के उत्पाद पहाड़ियां लोगों की आजीविका के साधन थे। वे काठ कोयला बनाने के लिए जंगल से लकड़ियाँ एकत्रित करते थे। खाने के लिए महुआ नामक पौधे के फूल एकत्र करते थे। जंगल से रेशम के कीड़ें के कोया (Silkcocoons) एवं राल (Resin) एकत्रित करके बेचते थे। वहीं दूसरी और खानाबदोश जीवन को छोड़कर एक स्थान पर बस जाने के कारण संथाल स्थायी खेती करने लगे थे, वे बढ़िया तम्बाकू और सरसों जैसी वाणिज्यिक फसलों को उगाने लगे थे। परिणामस्वरूप, उनकी आर्थिक स्थिति उन्नत होने लगी और वे व्यापारियों एवं साहूकारों के साथ लेन-देन भी करने लगे।

4. पहाड़िया लोग उन मैदानी भागों पर बार-बार आक्रमण करते रहते थे, जहाँ किसानों द्वारा एक स्थान पर बसकर स्थायी खेती की जाती थी। इस प्रकार मैदानों में रहने वाले लोग प्रायः पहाड़िया लोगों के आक्रमणों से भयभीत रहते थे। किंतु संथाल लोगों के जमींदारों और व्यापारियों के साथ संबंध प्राय: मैत्रीपूर्ण होते थे। वे व्यापारियों एवं साहूकारों के साथ लेन-देन भी करते थे।

10. लॉर्ड डलहौजी की राज्य अपहरण नीति क्या थी?

उत्तर: व्यपगत का सिद्धान्त या हड़प नीति (अँग्रेजी: The Doctrine of Lapse, 1848-1856)।पैतृक वारिस के न होने की स्थिति में सर्वोच्च सत्ता कंपनी के द्वारा अपने अधीनस्थ क्षेत्रों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने की नीति व्यपगत का सिद्धान्त या हड़प नीति कहलाती है। यह परमसत्ता के सिद्धान्त का उपसिद्धांत था, जिसके द्वारा ग्रेट ब्रिटेन ने भारतीय उपमहाद्वीप के शासक के रूप में अधीनस्थ भारतीय राज्यों के संचालन तथा उनकी उत्तराधिकार के व्यवस्थापन का दावा किया।

11. भारत छोड़ो आंदोलन के कारण बताए ।

भारत छोड़ो आंदोलन के निम्नलिखित कारण थे-

1. आंदोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन की समाप्ति/ मिशन के किसी अंतिम निर्णय पर न पहुँचना था।

2. द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का ब्रिटिश को बिना शर्त समर्थन करने की मंशा को भारतीय राष्ट्रीय काँन्ग्रेस द्वारा सही से न समझा जाना।

3. ब्रिटिश-विरोधी भावना तथा पूर्ण स्वतंत्रता की मांग ने भारतीय जनता के बीच लोकप्रियता हासिल कर ली थी।

4. अखिल भारतीय किसान सभा, फारवर्ड ब्लाक आदि जैसे काँन्ग्रेस से संबद्ध विभिन्न निकायों के नेतृत्त्व में दो दशक से चल रहे जन आंदोलनों ने इस आंदोलन के लिये पृष्ठभूमि निर्मित कर दी थी।

5. द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था की स्थिति काफी खराब हो गई थी।

12. भारतीय संविधान के अनुसार "धर्मनिरपेक्षता" क्या है?

उत्तर: भारतीय संविधान के प्रस्तावना में घोषणा के अनुसार भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। यह एक खास धर्म,जाति , जन्म, सेक्स या जगह के सदस्यों से भेदभाव के खिलाफ है।

धर्मनिरपेक्ष शब्द प्रस्तावना में बयालीसवाँ संशोधन (1976) द्वारा डाला गया था यह सभी धर्मों और धार्मिक सहिष्णुता और सम्मान की समानता का अर्थ है। भारत का इसलिए एक आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है। हर व्यक्ति को उपदेश, अभ्यास और किसी भी धर्म के चुनाव प्रचार करने का अधिकार है। सरकार के पक्ष में या किसी भी धर्म के खिलाफ भेदभाव नहीं करना चाहिए. यह बराबर सम्मान के साथ सभी धर्मों का सम्मान करना होगा. सभी नागरिकों, चाहे उनकी धार्मिक मान्यताओं के लिए कानून के सामने बराबर हैं। कोई धार्मिक अनुदेश सरकार या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में दिया जाता है। फिर भी, सभी स्थापित दुनिया के धर्मों के बारे में सामान्य जानकारी समाजशास्त्र में पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में दिया जाता है, किसी भी एक धर्म या दूसरों को कोई महत्व देने के बिना. मौलिक मान्यताओं, सामाजिक मूल्यों और मुख्य प्रथाओं और प्रत्येक स्थापित दुनिया धर्मों के त्योहारों के संबंध के साथ सामग्री / बुनियादी मौलिक जानकारी प्रस्तुत करता है। एसआर बोम्मई बनाम भारतीय संघ में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे का एक अभिन्न हिस्सा है कि धर्मनिरपेक्षता था।

13. मुग़ल मनसबदारी व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: फ़ारसी में 'मंसबदार' का अर्थ है मंसब (पद या श्रेणी) रखनेवाला। मुगल साम्राज्य में मंसब से तात्पर्य उस पदस्थिति से था जो बादशाह अपने पदाधिकारियों को प्रदान करता था। मंसब दो प्रकार के होते थे, 'जात' और 'सवार'। मंसब की प्रथा का आरंभ सर्वप्रथम अकबर ने सन् 1575 में किया।

मनसबदारी प्रणाली मुगल काल में प्रचलित एक प्रशासनिक प्रणाली थी जिसे अकबर ने आरम्भ किया था। 'मनसब' मूलतः अरबी शब्द है जिसका अर्थ 'पद' या 'रैंक' है। मनसब शब्द, शासकीय अधिकारियों तथा सेनापतियों का पद निर्धारित करता था। सभी सैन्य तथा असैन्य अधिकारियों की मनसब निश्चित की जाती थी जो अलग-अलग हुआ करती थी। मनसब के आधार पर अधिकारियों के वेतन और भत्ते निर्धारित होते थे।

14. 1857 ई. की क्रांति से संबंधित तीन प्रमुख केंद्र तथा वहाँ के नेतृत्त्वकर्ता का नाम लिखें।

उत्तर: 1857 के विद्रोह का नेतृत्व दिल्ली के समाट बहादुरशाह जफर कर रहे थे परन्तु यह यह नेतृत्व औपचारिक एवं नाममात्र का था। विद्रोह का वास्तविक नेतृत्व जनरल बख्त खां के हाथों में था, जो बरेली के सैन्य विद्रोह के अगुआ तथा बाद में अपने सैन्य साथियों के साथ दिल्ली पहुंचे थे। बख्त खां के नेतृत्व वाले दल में प्रमुख रूप से 10 सदस्य थे, जिनमें से सेना के 6 तथा 4 नागरिक विभाग से थे। यह दल या न्यायालय समाट के नाम से सार्वजनिक मुद्दों की सुनवाई करता था।

कानपुर में अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब सभी की पसंद थे। उन्हें कम्पनी ने उपाधि एवं महल दोनों से वंचित कर दिया था। तथा पूना से निष्कासित कर कानपुर में रहने पर बाध्य कर दिया था। विद्रोह के पश्चात नाना साहब ने स्वयं को पेशवा घोषित कर दिया तथा स्वयं को भारत के सम्राट बहादुरशाह के गवर्नर के रूप में मान्यता दी। 27 जून, 1857 को सर यू व्हीलर ने कानपुर में आत्मसमर्पण कर दिया।

किंतु 1857 के विद्रोह में इन सभी नेतृत्वकर्ताओं में सबसे प्रमुख नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का था, जिसने झांसी में सैनिकों को ऐतिहासिक नेतृत्व प्रदान किया। झांसी के शासक राजा गंगाधर राव की मृत्यु के पश्चात लार्ड डलहौजी ने राजा के दत्तक पुत्र को झांसी का राजा मानने से इंकार कर दिया तथा 'व्यपगत के सिद्धांत के आधार पर झांसी को कम्पनी के सामाज्य में मिला लिया। तदुपरांत गंगाधर राव की विधवा महारानी लक्ष्मीबाई ने 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी' का नारा बुलंद करते हुए विद्रोह का मोर्चा संभाल लिया।

फैजाबाद के मौलवी अहमदउल्ला 1857 के विद्रोह के एक अन्य प्रमुख नेतृत्वकर्ता थे। वे मूलतः मद्रास के निवासी थी। बाद में वे फैजाबाद आ गये थे तथा 1857 विद्रोह के अन्तर्गत जब अवध में विद्रोह हुआ तब मौलवी अहमदउल्ला ने विद्रोहियों को एक सक्षम नेतृत्व प्रदान किया।

रोहिलखण्ड के पूर्व शासक केउत्तराधिकारी खान बहादुर ने स्वयं को बरेली का समाट घोषित कर दिया। कम्पनी द्वारा निर्धारित की गई पेंशन से असंतुष्ट होकर अपने 40 हजार सैनिकों की सहायता से खान बहादुर ने लम्बे समय तक विद्रोह का झंडा बुलंद रखा।

विद्रोह के केंद्र

नेता

दिल्ली

जनरल बख्त खां

कानपुर

नानासाहब

लखनऊ

बेगम हजरत महल

बरेली

खान बहादुर

बिहार

कुंवरसिंह

फैजाबाद

मौलवी अहमदउल्ला

झांसी

रानी लक्ष्मीबाई

गवालियर

तात्या टोपे


 खण्ड-स दीर्घउतरीय प्रश्न

15. मुगल काल में अभिजात्य वर्ग की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर: कैम्ब्रिज डिक्शनरी द्वारा परिभाषित, "अभिजात वर्ग" वे "वे लोग या संगठन हैं जिन्हें समान प्रकार के अन्य लोगों की तुलना में सबसे अच्छा या सबसे शक्तिशाली माना जाता है।"

• मुग़ल अभिजात वर्ग को समाज के गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया गया था। ये वफादारी के साथ बादशाह से जुड़े हुए होते थे। जब मुगल साम्राज्य का निर्माण हो रहा था ,उस समय भी तुरानी वाली ईरानी अभिजात वर्ग अकबर की शाही सेवा में शामिल थे।

• भारतीय मूल के दो स्थानीय समूहों को 1560 ईसवी में शाही सेवा में प्रवेश हुआ । यह समूह राजपूतों तथा भारतीय मुसलमानों का था। अम्बेर का राजा भारमल कछवाहा इसमें नियुक्त होने वाला प्रथम भारतीय व्यक्ति था।

• सभी मनसबदारों को जात एवं सवार के पद प्रदान किए जाते थे। ये संख्या विषयक पद होते थे। जात का अर्थ 'व्यक्तिगत' होता था । जात शाही पदानुक्रम में मनसबदार के पद और वेतन का सूचक था । सवार यह सूचित करता था के कितने घुड़सवार रखना अपेक्षित है।

• अभिजात सैन्य अभियानों में अपनी सेनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे तथा प्रांतों में वे साम्राज्य के अधिकारियों के रूप में अपनी सेवा देते थे। शाहजहां के शासनकाल में मुगल अभिजात वर्ग में ढक्कनी अभिजातों के रूप में एक नया दल सम्मिलित किया गया । अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा तैयार की गई अभिजातों की सूची में आठ ढक्कनी मुसलमानों अभिजातों का उल्लेख मिलता है।

• मुगल अभिजात वर्ग के हिंदू अभिजातों में अधिकांश संख्या राजपूतों और मराठों की थी। औरंगजेब के शासनकाल के पहले आधे भाग में कुल अभिजात संख्या में राजपूत और मराठों के संख्या 21.6% थी, जो उत्तरार्ध में बढ़कर 31.6 % हो गई। इस वृद्धि का प्रमुख कारण मराठों का मुगल अभिजात वर्ग में शामिल किया जाना था जिसके कारण मनसबदारी व्यवस्था में मराठों की संख्या राजपूतों की संख्या से अधिक हो गई।

• अभिजात वर्ग के बादशाह के साथ मधुर संबंध हुआ करते थे । अभिजात वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा , शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक माध्यम था।

16. पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस रूप में भिन्न थी?

उत्तर: पहाड़िया लोगों के आजीविका संथालों की आजीविका से निम्न प्रकार से भिन्न थी l

पहाड़िया लोगों के आजीविका

1. पहाड़िया लोगों के पास ऊँचाई पर स्थित सूबे वाले भू-भाग थे l

2. वे कुछ समय बाद स्थायी कृषि क्षेत्र से हट कर झूम कृषि क्षेत्र पर अपनी आजीविका के लिए केंद्रित हो गये।

3. जंगल और चरागाह पहाड़ियों की अर्थव्यवस्था के अटूट हिस्से थे l पहाड़िया लोग अपनी झूम खेती के लिए कुदाल का प्रयोग करते थे

4. पहाड़िया लोग कम्पनी के अधिकारीयों के प्रति आशंकित रहते थे और उनसे बातचीत करने के लिए आसानी से तैयार नहीं होते थे l

5. पहाड़ी लोग जंगल के उपज से अपनी गुजर-बसर करते थे l और प्राय: झूम खेती किया करते थे l वे जंगल के छोटे से हिस्से में झाड़ियों को काटकर और घास-फूस को जलाकर जमीन साफ करलेते थे

6. पहाड़ी लोग अपनी कुदाल से जमीन को थोडा खुरच लेते थे कुछ वर्षौं तक साफ जमीन पर खेती करते थे और फिर उसे वर्षों के लिए छोडकर नये इलाके में चले जाते थे l

7. पहाड़िया लोग पुरे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे l और ये भूमि उनकी पहचान और जीवन का आधार थी l वह बहारिय लोग के प्रवेश का विरोद्ध करते थे l उनके मुखिया लोग एकता बनाए रखते थे l आपसी लड़ाई-झगड़े निपटा देते थे l

संथालों की आजीविका

1. राजमहल की पहाड़ियों में संथाल लोग जम गएl

2. संथाल लोग आस-पास के जंगलों का सफाया करते हुए इमारती लकड़ी को काट ते थे l जमीन जोतते हुए उसमे चावल तथा कपास की खेती करते थे l

3. संथाल के लोगों ने निचली पहाड़ियों पर अपना कब्जा जमा लिया था l संथाल लोग खेती में हल का प्रयोग करते थे lऔर इनका चिंह भी हल था l

4. संथालों ने परिश्रम करके आंतरिक भू-भागों में गहरी जुताई करने के बाद कृषि योग्य भूमि को शानदार बना दिया l पहाड़िया लोग जब भी निचले इलाकों में घुसने की हिम्मत कतरे थे तो वो उन्हें भगा देते थेl

5. संथालों ने अपने से पहले राजमहल की पहाड़ियों पर बसने वाले पहाड़ी लोगों को चट्टानी और अधिक बंजर भीतरी शुष्क भागों तक सिमित कर दिया l

6. संथालों के पास पहाड़िया लोगों के मुकाबले अधिक उपजाऊ भूमि होती थी जिसके कारण पहाड़िया लोग खेती के अपने तरीकों को आगे सफलतापुर्वक नही चला सके l

7. जिस भूमि पर संथालों ने अधिकार कर लिया वे स्थायी खेती करने वाले, अपनी स्वयत्ता स्वयं स्थापित करने वाले आदिवासियों के रोल में उभरते चले गये l

17. 1857 के विद्रोह के परिणामों का वर्णन करें ।

उत्तर: 1857 की क्रांति विद्रोह के परिणाम निम्नलिखित हैं –

1857 की क्रांति से कंपनी शासन का अंत –

1857 के विद्रोह का प्रमुख परिणाम यह रहा कि 2 अगस्त, 1858 को ब्रिटिश संसद ने एक अधिनियम पारित किया जिसमें भारत में कंपनी के शासन का अंत कर दिया गया और ब्रिटिश भारत का प्रशासन ब्रिटिश ताज (क्राउन) ने ग्रहण कर लिया था। इसके अलावा बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल एवं बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स समाप्त कर दिए गये और इसके स्थान पर भारत सचिव और उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की इंडिया कौंसिल बनाई गई। कंपनी द्वारा भारत में किये गये सभी समझौतों को मान्यता प्रदान की गई। क्रांति के पश्चात भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा था। भारत में 1857 के विद्रोह के बाद जो परिवर्तन आए उससे सम्पूर्ण भारत में नए युग का सूत्रपात हुआ।

1857 की क्रांति के बाद महारानी का घोषणा पत्र –

1857 के विद्रोह के बाद जनसाधारण का जीवन अस्त-व्यस्त व अशांत हो गया इस दौरान जनता में शांति बनाने के लिए जनता के लिए निश्चित नीति एवं सिद्धांतों की घोषणा के लिए इलाहाबाद (वर्तमान में “प्रयागराज”) में धूमधाम से एक दरबार का आयोजन किया गया जिसमें 1 नवंबर, 1858 को लॉर्ड कैनिंग ने महारानी द्वारा भेजा गया घोषणा-पत्र पढ़कर सुनाया गया। महारानी के इस घोषणा पत्र को मेग्नाकार्टा कहा जाता है। घोषणा पत्र में लिखी गई प्रमुख बातें निम्नलिखित है –

1. भारत में जितना अंग्रेजों का राज्य विस्तार है वह पर्याप्त है, इससे ज्यादा अंग्रेजी राज्य-विस्तार नहीं होगा।

2. देसी राज्यों व नरेशों के साथ जो समझौते व प्रबंध निश्चित हुए हैं, उनका ब्रिटिश सरकार सदा आदर करेगी तथा उनके अधिकारों की सुरक्षा करेगी।

3. धार्मिक सहिष्णुता एवं स्वतंत्रता की नीति का पालन किया जायेगा।

4. भारतीयों के साथ स्वतंत्रता का व्यवहार किया जायेगा तथा उनके कल्याण के लिए कार्य किये जायेंगे।

5. प्राचीन रीति-रिवाजों, संपत्ति आदि का संरक्षण किया जायेगा।

6. सभी भारतीयों को निष्पक्ष रूप से कानून का संरक्षण प्राप्त होगा।

7. बिना किसी पक्षपात के शिक्षा, सच्चरित्रता और योग्यतानुसार सरकारी नौकरियां प्रदान की जायेंगी।

8.  उन सभी विद्रोहियों को क्षमादान मिलेगा, जिन्होंने किसी अंग्रेज की हत्या नहीं की है।

1857 की क्रांति से सेना पुनर्गठन –

शासन द्वारा पील आयोग की रिपोर्ट पर जाति और धर्म के आधार पर रेजीमेंट को बाँट दिया गया और सेना में भारतीयों की अपेक्षा यूरोपीयों सैनिकों की संख्या को बड़ा दिया गया। इसके अलावा उच्च पदों से भारतीयों को वंचित रखा गया और तोपखाना व अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को यूरोपियों के हवाले कर दिया गया।

फूट डालो राज करो नीति –

1857 की क्रांति में कई हिन्दू एवं मुसलमानों ने भाग लिया जिसमें मुसलमानों, हिन्दुओं की अपेक्षा अधिक उत्साहित थे। अंग्रेजों ने हिन्दुओं का पक्ष लेकर हिन्दुओं और मुस्लिमों के मध्य फूट डालो राज करो का माध्यम को अपनाया जिसका परिणाम यह हुआ की हिन्दू और मुसलमानों में मनमुटाव पैदा हो गया जिसका भावी राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

देसी रियासतों के लिए नीति में परिवर्तन –

1857 की क्रांति के पश्चात राज्यों को हड़पने की नीति को त्याग दिया गया और अधीनस्थ संघ की नीति प्रारम्भ करके देसी रियासतों को अधिनस्त किया गया। इसके अलावा भारतीय रजवाड़ों के प्रति विजय और विलय की नीति का परित्याग कर सरकार ने राजाओं को बच्चे गोद लेने की अनुमति प्रदान की जिससे वे अपने वंश को आगे बड़ा सकते थे।

18. नमक सत्याग्रह की पृष्ठभूमि एवं उद्देश्यों का वर्णन करें।

उत्तर: नमक सत्याग्रह की पृष्ठभूमि-गांधी और जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से 26 जनवरी, 1930 को आजादी की घोषणा, पूर्ण स्वराज जारी की। [2] नमक मार्च से दांडी, 6 अप्रैल को गांधी द्वारा अवैध नमक बनाने के साथ निष्कर्ष निकाला गया।, 1930 ने ब्रिटिश नमक कर के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू किया। 4 मई, 1930 को, गांधी ने भारत के वाइसराय लॉर्ड इरविन को लिखा, जिसमें धरसन नमक वर्क्स पर हमला करने का इरादा बताया गया। उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने कार्रवाई की प्रस्तावित योजना के साथ जारी रखने का फैसला किया। नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल समेत योजनाबद्ध दिन से पहले कई कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार किया गया था।

इसका मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों द्वारा लागू नमक कानून के विरुद्ध सविनय कानून को भंग करना था। दरअसल अंग्रेजी शासन में भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था। उन्हें इंग्लैंड से आने वाला नमक का ही इस्तेमाल करना पड़ता था। इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने इस नमक पर कई गुना कर भी लगा दिया था। लेकिन नमक जीवन के लिए आवश्यक वस्तु है इसलिए इस कर को हटाने के लिए गांधी ने यह सत्याग्रह चलाया था।

एक साल तक चला था सत्याग्रह, 80 हजार लोगों को हुई थी जेल

लगभग 25 दिन बाद 6 अप्रैल 1930 को 241 मील की दूरी तय कर यह यात्रा   दांडी पहुंची थी। तत्पश्चात गांधी ने कच्छ भूमि में समुद्र तल से एक मुट्ठी नमक उठाकर अंग्रेजी हुकूमत को सशक्त संदेश दिया और नमक कानून को तोड़ा।  यह आंदोलन तकरीबन एक साल तक चला। जिसमें 70,000 से भी ज्यादा भारतीयों को गिरफ्तार किया गया था। 1931 में गांधी और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच हुए समझौते के साथ इस सत्याग्रह को खत्म किया गया। किंतु तब तक चिंगारी भड़क चुकी थी और इसी आंदोलन से ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ की शुरुआत हुई। जिसने संपूर्ण देश में अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में व्यापक जन संघर्ष को जन्म दिया।

19. संविधान निर्माण में प्रारूप समिति की भूमिका का वर्णन करें?

उत्तर: हमारा देश भारत 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ, लेकिन आजादी से पहले ही स्वतंत्रता सेनानियों के बीच संविधान को लेकर सुगबुगाहट होने लगी थी। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन हाल में हुई थी। श्री सच्चिदानंद सिन्हा उस वक्त संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष निर्वाचित किए गए थे। लेकिन बाद में 11 दिसंबर 1946 को डॉं. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष बनाया गया।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए संविधान बनाना कोई आसान काम नहीं था, इसे बनाने में पूरे 2 साल 11 महीने और 18 दिन का वक्त लगे। 13 दिसंबर साल 1946 को संविधान सभा जवाहर लाल नेहरू की ओर से पेश किए गए उद्देश्य प्रस्‍ताव के साथ शुरू हुई। जिसके बाद 165 दिनों के 11 सत्र भी बुलाए गए।

भारत की आजादी के बाद देश के लीडरों के सामने सबसे बड़ा सवाल ये रहा कि देश कैसे चलाया जाए, मतलब देश का संविधान कैसा हो। जिसके लिए आजादी के महज कुछ ही दिनों बाद 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने संविधान का मसौदा तैयार करने के लिये एक सात सदस्यीय ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन किया। जिसका नेतृत्व डॉं. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने किया।

प्रारूप समिति ने संविधान के प्रारूप पर सोच विचार करने के बाद 21 फरवरी साल 1948 को संविधान सभा को अपनी रिपोर्ट पेश की.। संविधान सभा के ग्यारहवें सत्र के आखिरी दिन 26 नवंबर 1949 को हमारा संविधान स्वीकार किया गया। जिसके बाद 24 जनवरी 1950 को 284 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किया। इसके बाद 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान देशभर में लागू किया गया। देशभर में संविधान के लागू होते ही संविधान सभा को भंग कर दिया गया।

प्रारुप समिति (Drafting Committee) के सदस्य

* डॉ. भीमराव अम्बेडकर (अध्यक्ष)

* एन. गोपाल स्वामी आयंगर– ये आजादी के पहले कश्मीर के प्रधानमंत्री थे।

* अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर– ये मद्रास के एडवोकेट जनरल थे।

* कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी– ये एक साहित्यकार थे। इन्हें संविधान सभा में ऑर्डर ऑफ बिजनेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था।

* बी. एल. मित्र– ये एडवोकेट जनरल थे।

* डी. पी. खेतान – ये एक प्रसिद्ध वकील थे।

बाद में बी. एल. मित्र की जगह एन. माधव राव और डी. पी. खेतान की जगह पर टी. टी. कृष्माचारी को सदस्य बनाया गया।

भारतीय संविधान सभा और प्रारुप समिति से जुड़ी कुछ अहम बातें

* डॉ. भीमराव अम्बेडकर को संविधान का निर्माता माना जाता है।

* आजादी से पहले संविधान सभा के कुल 389 सदस्य थे, लेकिन संविधान सभा की पहली बैठक में 200 से कुछ अधिक ही सदस्य शामिल हुए।

* 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा ने संविधान निर्माण के लिए कई समितियां नियुक्त कीं. जिनमें वार्ता समिति, संघ संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, संघ शक्ति समिति, प्रारूप समिति प्रमुख थे।

* बी. एन. राव को संविधान सभा का संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया था।

* पंडित जवाहर लाल नेहरू संविधान सभा की संघीय शक्ति समिति के अध्यक्ष थे।

* भारत के संविधान के निर्माण में कुल 63 लाख 96 हज़ार 729 रुपये लगे।

निष्कर्ष

कुछ तरह से ही प्रारूप समिति के सदस्यों ने मिलकर तैयार किया गया आजाद भारत का संविधान। ये संविधान देश में लागू भी कर दिया गया। लेकिन जैसे- जैसे समय बीतता गया, संविधान में संशोधन की मांग भी तेज होने लगी। जरुरत के अनुसार संविधान में कई बार संशोधन किया भी जा चुका है। भारतीय संविधान सभा, उसके संशोधन और प्रारुप समिति से जुड़ी कोई भी आप अपनी राय हमें दे सकते हैं।

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