राष्ट्रीय आय
प्रश्न. राष्ट्रीय आय की परिभाषा दीजिए और उसकी विभिन्न धारणाओं की
व्याख्या करें ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय की धारणा बहुत ही
महत्वपूर्ण है। किसी देश का आर्थिक विकास उसकी राष्ट्रीय आय पर निर्भर करती है तथा
आर्थिक प्रगति को मापने का सर्वोत्तम साधन भी राष्ट्रीय आय ही है।
अतः
राष्ट्रीय आय की परिभाषा विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने दि है। जो निम्नलिखित है:-
मार्शल की परिभाषा
प्रो
मार्शल के अनुसार "किसी देश का श्रम एवं पूंजी उसके प्राकृतिक साधनों पर
क्रियाशील होकर प्रति वर्ष भौतिक एवं अभौतिक वस्तुओं का एक समूह उत्पन्न करते हैं
जिसमे सभी प्रकार की सेवाएं सम्मिलित रहती है। यह देश की वास्तविक विशुद्ध वार्षिक आय या
राष्ट्रीय लाभांश है"।
मार्शल
ने उपरोक्त परिभाषा में
वास्तविक शब्द का
प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि कुल उत्पादन में से कच्चे माल का मूल्य, घिसावट तथा बीमा व्यय को निकालकर ही वास्तविक
राष्ट्रीय आय ज्ञात
की जा सकती
है। इस आय में विदेशों से प्राप्त होने वाली आय भी शामिल रहती है
सूत्र से -
(शुद्ध
राष्ट्रीय आय ) = (एक वर्ष
में देश में उत्पादित कुल वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य) - (मशीनों
के मूल्य में गिरावट अथवा घिसावट) + (विदेशी विनिमय से प्राप्त लाभांश एवं व्याज)
आलोचना
श्री
मार्शल की परिभाषा की आलोचनाएँ भी की जाती है जो व्यावहारिक कठिनाइयों के
कारण उत्पन्न होती है। ये निम्नलिखित है-
(1)
सही गणना में कठिनाई :- कुछ वस्तुएं ऐसी होती है
जिनका उत्पादन द्वारा प्रत्यक्ष उपभोग कर लिया जाता है और इस
प्रकार अनेक वस्तुएं और सेवाएं विनिमय में नहीं आती । अतः राष्ट्रीय आय में इन्हें
शामिल करने
में कविनाई
होती है।
(2)
सम्पूर्ण उत्पादन की गणना अत्यंत दुरुह कार्य
:- देश में वर्ष भर में असंख्य वस्तुओं
का उत्पादन किया जाता है तथा एक वस्तु की भी कई किस्में होती है। साथ ही उत्पादन
करने वाले उद्यमी भी असंख्य होते है। ऐसी स्थिति में उत्पादन के आधार पर राष्ट्रीय
आय की गणना करना बहुत ही जटिल प्रक्रिया है।
(3)
दोहरी गणना की त्रूटि :- यद्यपि मार्शल ने इस बात
पर जोर दिया है कि
राष्ट्रीय आय की गणना करते समय दोहरी गणना की त्रुटि से बचना चाहिए किंतु यह
एक ऐसी गलती है जिससे काफी सावधानी के बावजूद नहीं बचा जा सकता है।
पीगू की परिभाषा
प्रो. पीगू के अनुसार, "राष्ट्रीय लाभांश किसी समाज की
वस्तुनिष्ठ अथवा भौतिक आय का वह भाग है जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित
होती है जिसकी मुद्रा के रूप में माप हो सकती है"।
मार्शल की परिभाषा की तुलना में पीगू की परिभाषा अधिक
व्यावहारिक एवं उपयुक्त है क्योंकि इसमे राष्ट्रीय आय की गणना करने के लिए मुद्रा
में मापी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओ को ही शामिल किया जाता है। इससे दोहरी गणना
के दोष से बचा जा सकता है।
आलोचना
प्रो पीगू की परिभाषा के निम्नलिखित मुख्य आलोचनाएँ दी जाती
है :-
(1) संकीर्ण परिभाषा :- बहुत सी ऐसी वस्तुएं है जिनका विनिमय नहीं किया जाता
फिर भी वे राष्ट्रीय आय का अंश होती है। जैसे यदि कोई कृषक अपनी उपज का वह भाग
जिसे वह निजी उपभोग के लिए रख लेता है, पीगू के अनुसार राष्ट्रीय आय में शामिल
नहीं होगा, क्योंकि उसका विनिमय नहीं किया जाता। किंतु यह उपज निश्चित ही
राष्ट्रीय आय का भाग है।
(2) वस्तुओं और सेवाओं में भेद: पीगू ने अपनी परिभाषा में ऐसी वस्तुओ में अनावश्यक भेद
किया है जिन्हें मुद्रा में नापा नहीं जा सकता है। वास्तव में, ऐसा भेद कृत्रिम हो
जाता है। पीगू ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि "क्रय की जाने वाली एवं क्रय न
की जाने वाली वस्तुओं में परस्पर कोई आधारभूत अन्तर नहीं होता"।
(3) पीगू की परिभाषा अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्था में लागू
नहीं होती है।
(4) राष्ट्रीय आय का सही आकलन नही
फिशर की परिभाषा
प्रो. फिशर के अनुसार, "वास्तविक शब्ट्रीय आय वार्षिक
शुद्ध उत्पादन का वह भाग है जिसका उस वर्ष के अन्तर्गत प्रत्यक्ष रूप से उपभोग
किया जाता है"। इस परिभाषा के अनुसार किसी एक विशेष वर्ष में उत्पादित किसी
महत्त्वपूर्ण वस्तु को राब्ट्रीय आप में शामिल नहीं किया जाता वरन् उस वस्तु के
उसी अंश को शामिल किया जाता है जिसका उपभोग किया जाता है।
आलोचना
प्रौ फिशर की परिभाषा की निम्नलिखित मुख्य आलोचनाएँ है
(1) किसी भी देश के अन्तर्गत सालभर में उपभोग की जानेवाली
वस्तुओं और सेवाओं की गणना करना बहुत ही कठिन है।
(2) यह कहना कठिन है कि कोई भी टिकाऊ वस्तु कितने दिनों तक
टिकेगी।
उपर्युक्त तीनो परिभाषाओं की अच्छाई-बुराई परिस्थिति पर
निर्भर है। और तीनों अपनी-अपनी जगह श्रेष्ठ है।
राष्ट्रीय आय की धारणाएं
राष्ट्रीय आय की विभिन्न धारणाएँ निम्नलिखित
है:-
(1) कुल राष्ट्रीय उत्पाद :- किसी अर्थव्यवस्था में जो भी अंतिम
पदार्थ तथा सेवाएँ एक वर्ष की अवधि में उत्पादित की जाती है, उन सभी के बाजार मूल्य
के कुल जोड़ को कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहते है।
कुल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना करते
समय निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है-
(a) कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) मे मूल्य ह्मस नहीं घटाया जाता।
(b) GNP में केवल चालू वर्ष के उत्पादन
को शामिल किया जाता है।
(c) GNP का मूल्य मुद्रा में व्यक्त किया जाता है।
(d) कीमतों में उच्चावचन के समायोजन हेतु आधार वर्ष की गणना
(e) GNP में अन्तिम उत्पादन की ही गणना
की जाती है।
(f) GNP में हस्तान्तरित भुगतानो को शामिल नहीं किया जाता
(g) निःशुल्क वस्तुओं और सेवाओं को GNP में शामिल नहीं किया जाता
(h) गैर-कानूनी ढंग से प्राप्त आय
को GNP में शामिल नहीं किया जाता है।
(2) कुल घरेलू उत्पाद (GDP) :- किसी देश मे एक वर्ष की अवधि में जिन वस्तुओं और सेवाओं का
उत्पादन किया जाता है, उनके मौद्रिक मूल्य को ही कुल घरेलू उत्पाद कहते है। मौद्रिक
मूल्य में से उस आय को घटा दिया जाता है जो हमारे देश में
विदेशियों द्वारा अर्जित की जाती है तथा इसमे विदेशों से प्राप्ति को जोड़ लिया जाता
है। इसे सूत्र रूप में निम्न ढंग से व्यक्त किया जा सकता है
GDP = GNP - (E - I)
जहाँ GDP= कुल घरेलू उत्पाद,
GNP = कुल राष्ट्रीय उत्पाद
E = निर्यात मूल्य
I = आयात मूल्य
कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) के अन्तर्गत
एक निश्चित अवधि में देश में उत्पन्न वस्तुओं और सेवाओं के साथ, निर्यातों एवं आयातो
के अंतर की राशि को जोड़ा जाता है जबकि कुल घरेलू उत्पाद (GDP) में एक निश्चित अवधि में केवल उन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य
को जोड़ा जाता है जिनका उत्पादन देश के भीतर किया जाता है
GNP = GDP + आयात-निर्यात के अवशेष
GDP = GNP - आयात+निर्यात के अवशेष
यदि GDP = 3,000 करोड़ रू०
निर्यात का कुल मूल्य = 200 करोड़
रू०
आयातो का कुल मूल्य = 100 करोड रू०
अत: GNP = GDP + आयात-निर्यात का अवशेष
= GDP+E-I
= 3000+200-100
GNP = 3,100 करोड़ रू० होगा।
(3) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद :- "एक देश में एक वर्ष की अवधि में चालू कीमतों पर उत्पादित
अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं का शुद्ध मौद्रिक मूल्य ही बाजार पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
है"। उत्पादन करते समय मशीनों में घिसावट होती है तथा कुछ मशीने पुरानी पड़ जाने
के कारण उन्हें प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। मशीनों की घिसावट और उनके प्रतिस्थापन
पर जो व्यय होता है, उसे स्थिर पूंजी का उपभोग कहते हैं। यदि बाजार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय
उत्पाद में से स्थिर पूँजी के उपभोग को घटा दिया जाए तो शेष बचेगा, उसे बाजार मूल्य
पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहेंगे क्योंकि उत्पादन की गणना चालू कीमतों के आधार पर
की जाती है।
सूत्र में,
NNP = GNP - प्रतिस्थापन व्यय (घिसावट व्यय)
दूसरे शब्दों में,
बाजार मूल्य पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय उत्पाद
- स्थिर पूँजी का उपभोग (प्रतिस्थापन व्यय)
(4) शुद्ध घरेलू उत्पाद :- एक देश में एक वर्ष की अवधि में देश के अपने ही साधनों द्वारा
उत्पादित की गई वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य में से यदि घिसावट व्यय
अथवा प्रतिस्थापन व्यय घटा दिया जाय तो जो शेष बचता है, उसे शुद्ध घरेलू उत्पाद कहते
है।
इसलिए शुद्ध
घरेलू उत्पाद = कुल घरेलू उत्पाद - प्रतिस्थापन व्यय
सूत्र में,
शुद्ध घरेलू उत्पाद = उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन + पूँजीगत
वस्तुओं का उत्पादन + सेवाओ का उत्पादन - प्रतिस्थापन व्यय
(5) बाजार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद तथा शुद्ध राष्ट्रीय
उत्पाद :- एक वर्ष की अवधि में
देश में जिन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, उनकी इकाइयों को उनकी उस
समय प्रचलित कीमत से गुणा कर दिया जाता है तथा इससे विदेशों से प्राप्त शुद्ध आय को
जोड़ लिया जाता है। इस प्रकार जो योग प्राप्त होता है, वही बाजार कीमत पर कुल राष्ट्रीय
उत्पाद कहलाता है। यदि इस प्रकार प्राप्त GNP में से मशीनों का घिसावट
व्यय घटा दिया जाय तो जो शेष बचता है, उसे बाजार कीसत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते
है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि बाजार कीमत पर GNP ज्ञात करने हेतु दूसरी विधि भी है
जिसके अनुसार कर्मचारियों का पारिश्रमिक, ब्याज, लगान, लाभ, मध्यवर्ती उपभोग, प्रतिस्थापन व्यय तथा
शुद्ध अप्रत्यक्ष करो का योग करके बाजार मूल्य पर GNP को ज्ञात किया जाता है।
(6) साधन लागत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद तथा शुद्ध राष्ट्रीय
उत्पाद :- जो कीमते बाजार में
प्रचलित होती है, उनमे अप्रत्यक्ष करो का समावेश होता है। इसके साथ ही सरकार उद्योगों को
आर्थिक सहायता भी देती है। यदि बाजार कीमत पर प्राप्त कुल राष्ट्रीय उत्पाद मे से अप्रत्यक्ष
करो को घटा दिया जाय तो उसमें आर्थिक सहायता की राशि को जोड़ दिया जाय तो हम साधन लागत
पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन ज्ञात कर सकते है। इसका सूत्र निम्न प्रकार है :-
GNP(FC) = GNP(mp) - अप्रत्यक्ष कर +
अनुदान
उपरोक्त सूत्र में कोष्ठक में
FC का अर्थ साधन लागत तथा mp का अर्थ बाजार कीमत है।
जहाँ तक साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
ज्ञात करने
का प्रश्न है, साधन लागत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से यदि घिसावट
व्यय अथवा प्रतिस्थापन व्यय को घटा दिया जाय तो साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद NNP(FC)
ज्ञात किया
जा सकता है।
NNP(FC) = NNP(mp) - अप्रत्यक्ष कर +
अनुदान
NNP(FC) ही राष्ट्रीय आय की माप है।
(7) बाजार कीमत पर कुल घरेलू उत्पाद तथा शुद्ध घरेलू उत्पाद :- बाजार कीमत पर कुल घरेलू उत्पाद ज्ञात करने के लिए एक वर्ष
की अवधि में देश की सीमा में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओ का प्रचलित कीमत से गुणा कर
दिया जाता है तथा इसमे से, विदेशों से प्राप्त शुद्ध आय को घटा दिया जाता है। इसका
सूत्र इस प्रकार है:-
GDP(MP) = (देश में उत्पादित वस्तुओं का बाजार मूल्य) - (विदेशों से प्राप्त शुद्ध आय)
बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद ज्ञात करने के लिए GDP(MP) में
से घिसावट व्यय अथवा स्थिर पूँजी के उपभोग मूल्य को घटा दिया जाता है। इसका सूत्र
इस प्रकार है:-
GDP(MP) = GDP(MP) - घिसावट व्यय
(8) साधन लागत पर कुल घरेलू उत्पाद तथा शुद्ध घरेलू उत्पाद :- अप्रत्यक्ष करो की राशि को घटाकर इसमें अनुदान की राशि
को जोड़ दिया जाय तो हम साधन लागत पर कुल घरेलू उत्पाद ज्ञात कर सकते है। इसका
सूत्र इस प्रकार है:-
GDP(FC) = GDP(MP) - अप्रत्यक्ष कर + अनुदान
साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद ज्ञात करने के लिए साधन
लागत पर कुल घरेलू उत्पाद में से प्रतिस्थापन व्यय को घटा दिया जाता है। जिसका
सूत्र है :-
NDP(FC) = GDP(FC) - प्रतिस्थापन व्यय
(9) वैयक्तिक आय :- एक देश के लोगों द्वारा जो आय एक वर्ष की अवधि में प्राप्त की जाती है,
उसे वैयक्तिक आय कहते है। वैयक्तिक आय एवं राष्ट्रीय आय में समानता नहीं होती
क्योंकि जो हस्तान्तरण आय, वैयक्तिक आय में शामिल होती है, वह राष्ट्रीय आय में
शामिल नहीं होती। इसे निम्न सूत्र से व्यक्त कर सकते हैं।-
वैयक्तिक आय = शुद्ध राष्ट्रीय आय + हस्तान्तरण
आय - अविभाजित कम्पनी लाभ - कम्पनी आय कर - सामाजिक सुरक्षा
अंशदान ।
(10) प्रति व्यक्ति आय तथा वास्तविक आय :- एक देश में किसी विशेष वर्ष की वहाँ के लोगों की औसत आय
ही उस वर्ष की प्रति व्यक्ति आय होती है। यदि किसी एक वर्ष की राष्ट्रीय आय में,
उस वर्ष की जनसंख्या का भाग दे दिया जाए तो प्रति व्यक्ति आय ज्ञात की जाती है।
यथा
2004 की राष्ट्रीय आय = 2004 की
राष्ट्रीय आय ÷ 2004 की जनसंख्या
किसी वर्ष को आधार वर्ष मानकर उसकी कीमतों के आधार पर
राष्ट्रीय आय की गणना की जाए तो वास्तविक आय ज्ञात की जा सकती है। इसका सूत्र इस
प्रकार है :-
वास्तविक शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = मौद्रिक शुद्ध राष्ट्रीय
उत्पाद ÷ वर्ष का कीमत निर्देशांक X100
राष्ट्रीय आय की गणना
राष्ट्रीय आय की गणना की निम्न विधियां प्रचलित है :
(1) उत्पादन - गणना पद्धतिः- इस पद्धति के अनुसार वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल वार्षिक
उत्पत्ति में कच्चे माल की कीमत, चल एवं अचल पूँजी का प्रतिस्थापन व्यय, अचल पूँजी
की घिसावट एवं मरम्मत का व्यय तथा कर एवं बीमा का व्यय निकालकर जो शुद्ध राष्ट्रीय
उत्पादन बचता है उसे ही राष्ट्रीय आय कहते है। इसी शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन को
उत्पत्ति के साधनों के बीच बाँटा जाता है। यद्यपि यह पद्धति लम्बी एवं कठिन है
तथापि आय की गणना के लिए मुख्यतः इसी का प्रयोग किया जाता है।
(2) आय-गणना पद्धति :- इस पद्धति के अनुसार देश के सम्पूर्ण व्यक्तियों एवं
संस्थाओं की आय की गणना की जाती है तथा उनके कुल योग को राष्ट्रीय आय कहते है।
इसमें दोहरी गणना का दोष नहीं होना चाहिए। जैसे- यदि किसी व्यक्ति की वार्षिक आय
15 हजार रुपये है जिसमे से वह वर्ष में अपने नौकर को डेढ़ हजार रुपये देता है तो
राष्ट्रीय आय में उस व्यक्ति की आय की गणना कर लेने के बाद नौकर की आय की गणना
नहीं करनी चाहिये, क्योंकि उसकी गणना तो पहले ही व्यक्ति की आय के साथ हो चुकी
रहती है।
(3) व्यय गणना पद्धति :- व्यय गणना पद्धति के अनुसार देश के सम्पूर्ण व्यक्तियों
एवं संस्थाओं के व्यय, बचत तथा संचय की गणना की जाती है तथा उनके कुल योग को
राष्ट्रीय आय कहते हैं। वास्तव में देश की कुल आय-व्यय, बचत एवं संचय के रूप में
विभाजित रहती है। लेकिन यह पद्धति अधिक लोकप्रिय नहीं है क्योंकि देश के अन्तर्गत
कुल व्यय का ठीक-ठीक पता लगाना बहुत कठिन काम है।
(4) व्यावसायिक-गणना पद्धति :- इस पद्धति में विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए
व्यक्तियों की आय की गणना करके उनका कुल योग प्राप्त किया जाता है जो राष्ट्रीय आय
होती है। विभिन्न व्यवसायों में कृषि, उद्योग, यातायात, सार्वजनिक सेवा आदि
सम्मिलित है। लेकिन इस पद्धति में राष्ट्रीय आय के अन्तर्गत उपहार की राशि शामिल
नहीं की जाती, क्योंकि इसके लिए श्रम नहीं करना पड़ता। प्रो. स्टाम्प के अनुसार,
'अनुत्पादन आन्तरिक ऋण जालसाजी से प्राप्त आय, वृद्धावस्था पेंशन आदि से प्राप्त
आय राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं की जाती।
(5) उत्पादन एवं आय पद्धति का मिश्रण :- डॉ. राव के अनुसार, राष्ट्रीय आय की गणना उत्पादन एवं
आय पद्धति को मिलाकर की जानी चाहिये।
(6) सामाजिक लेखा पद्धति :- इस पद्धति के प्रवर्तक प्रो. रिचार्ड स्टोन है। इस पद्धति
के अनुसार देशवासियों के लेन-देनों का अध्ययन कर उन्हें कई वर्गो में विभाजित कर
दिया जाता है। इसके पश्चात् सभी वर्गों में होनेवाले लेन-देन सम्बन्धी रखे गये
खातों की राशियों का योग कर राष्ट्रीय आय ज्ञात की जाती है। चूंकि इस रीति में
प्रत्येक लेन-देन का सही लेखा रखना आवश्यक है जो कि अत्यन्त कठिन काम है, अतः इस
पद्धति का बहुत कम प्रयोग होता है।
राष्ट्रीय आय की गणना की कठिनाइयाँ
राष्ट्रीय आय की गणना करना काफी जटिल कार्य है। राष्ट्रीय
आय की गणना में मुख्य रूप से निम्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है:-
(1) कुछ वस्तुओं और सेवाओं का मुद्रा में माप संभव नहीं
होता :- यद्यपि राष्ट्रीय
आय की गणना मुद्रा में की जाती है। किंतु कुछ वस्तुएं तथा सेवाएं ऐसी होती है
जिनका माप मुद्रा में नहीं हो पाता। जैसे पिता या बहन द्वारा की गयी सेवा । इन्हें
राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जा सकता है।
(2) दोहरी गणना की कठिनाई :- एक ही आय को गणना में दो बार आ जाने की संभावना रहती
है। जैसे-यदि डॉक्टर की आय 5000 रुपया है जिसमें से वह कम्पाउण्डर को 1000 रुपये
देता है। ऐसी आय की गणना में दोनो का (5000+1000 का) योग हो जाता है। यही दोहरी
गणना की कविनाई है।
(3) आँकडा एकत्र करने में कठिनाई :- सबसे बड़ी कठिनाई आँकडा एकत्र करने की है। विश्वसनीय
आंकडे नहीं मिल पाते है, क्योंकि ऑकडे एकत्र करने के तरीके ही ठोस नहीं है और
इनमें कई प्रकार की व्यावहारिक कठिनाइयाँ आती रहती है।
(4) अर्थव्यवस्था में अमौद्रिक क्षेत्र :- पिछड़े हुए देशों में काफी बड़ा क्षेत्र अमौद्रिक होता
है जहाँ बिना मुद्रा प्रयोग के वस्तु विनिमय होता है। जैसे कृषि क्षेत्र में
अधिकांश सौदे बिना मुद्रा के किए जाते है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय आय का अनुमान
लगाना बहुत कठिन होता है।
(5) कीमतों में होने वाले परिवर्तन के कारण कठिनाई :- यदि कीमतो में वृद्धि होती है तो राष्ट्रीय आय अधिक
रिकार्ड की जाती है, भले ही उत्पादन में गिरावट आई हो। यही कारण है कि इस समस्या
को हल करने के लिए वास्तविक राष्ट्रीय आय की धारणा को विकसित किया गया है।
(6) मूल्य ह्मस की कठिनाई :- शुद्ध राष्ट्रीय आय ज्ञात करने के लिए, कुल उत्पादन में
से मूल्य ह्मस को घटाया जाता है। किंतु मूल्य ह्मस का अनुमान लगाना सरल नहीं होता।
यह इस बात पर निर्भर रहता है कि किसी मशीन का औसत जीवन क्या है जिसका अनुमान लगाना
कठिन कार्य है।
(7) कुछ सार्वजनिक सेवाओं का सही आकलन नहीं हो पाता :- राष्ट्रीय आय में कुछ ऐसी सार्वजनिक सेवाओं का भी समावेश
किया जाता है जिनका सही-सही आकलन करना संभव नहीं होता। उदाहरण के लिए, मिलिट्री की
सेवाएं, क्योंकि इनकी सेवाएं युद्ध के समय ही सक्रिय होती है, अतः उनकी सेवाओं का
मौद्रिक अनुमान लगाना कठिन होता है।
(8) स्टॉक मूल्यों में परिवर्तन से गणना में कठिनाई :- उत्पादको के पास माल का जो स्टॉक होता है, उसका समावेश
भी राष्ट्रीय आय में होता है। किंतु इस स्टॉक के मूल्यो मे जो परिवर्तन होता है,
उसका समायोजन राष्ट्रीय आय की गणना में नहीं किया जाता, अतः राष्ट्रीय आय का
अनुमान सही नहीं होता।
उपरोक्त कठिनाइयों के कारण राष्ट्रीय आय का अनुमान मात्र अनुमान ही रहता है, उसे शत प्रतिशत सही एवं पूर्ण नहीं माना जा सकता।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
कुटीर लघु उद्योग (COTTAGE SMALL SCALE INDUSTRY)
सूती वस्त्र उद्योग (COTTON TEXTILES INDUSTRY)
लोहा तथा इस्पात उद्योग (IRON AND STEEL INDUSTRY)
सीमेण्ट उद्योग (CEMENT INDUSTRIES)
पटसन या जूट उद्योग (JUTE INDUSTRY)
ग्रामीण आधारभूत ढाँचा (Rural Infrastructure)
कृषि विपणन (Agricultural Marketing)\
कृषि का वाणिज्यीकरण Commercialisation of agriculture
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) [GOODS-AND-SERVICE-TAX-(GST)]
केन्द्रीय सरकार के आय (आगम) के स्रोत (SOURCES OF REVENUE OF CENTRAL GOVERNMENT)
भारत व विश्व व्यापार संगठन (INDIA AND THE WORLD TRADE ORGANISATION)
भारत में निर्यात प्रोत्साहन व आयात प्रतिस्थापन (EXPORT PROMOTION AND IMPORT SUBSTITUTION IN INDIA)
भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ (FEATURES OF INDIAN ECONOMY)
भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना (STRUCTURE OF INDIAN ECONOMY)
भारतीय जनांनिकी संरचना (INDIAN DEMOGRAPHIC STRUCTURE)
भारत में जनसंख्या समस्या (PROBLEMS OF POPULATION)
जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion)
भारत की जनसंख्या नीति-परिवार कल्याण (POPULATION POLICY OF INDIA : FAMILY WELFARE)
भारत में ग्रामीण-शहरी प्रवास या प्रवसन (RURAL-URBAN MIGRATION IN INDIA)
भारत में नियोजन-अर्थ(PLANNING IN INDIA : MEANING)
नियोजन के प्रकार (TYPES OF PLANNING)
आर्थिक नियोजन की आवश्यकता (Need for Financial Planning)
राज्य सरकारों की आय (आगम) के स्रोत (SOURCES OF REVENUE OF STATE GOVERNMENT)
भारत में नियोजन की व्यूह-रचना (STRATEGY OF PLANNING IN INDIA)
भारतीय नियोजन का मूल्यांकन (ASSESSMENT OF INDIAN PLANNING)
सूचना प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) उद्योग (INFORMATION TECHNOLOGY INDUSTRY)
परिवहन (यातायात)-सड़क, रेलवे, वायु व जल (TRANSPORT : ROAD, RAILWAY, AIR AND WATER)
कृषि की समस्याएँ व सम्भावनाएँ (PROBLEMS AND PROSPECTUS OF AGRICULTURE)
कृषि-वित्त (AGRICULTURAL FINANCE)
ग्रामीण ऋणग्रस्तता (RURAL INDEBTEDNESS)
निर्धनता : निरपेक्ष, सापेक्ष तथा सूचक (Poverty: absolute, relative and indicator)
भारत का विदेशी व्यापार (FOREIGN TRADE OF INDIA)
उदारीकरण, निजीकरण एवं भूमण्डलीकरण (LIBERALIZATION, PRIVATIZATION AND GLOBALIZATION)