प्रश्न :- जनसंख्या वृद्धि के कारणों या जनसंख्या विस्फोट के कारणों की
व्याख्या करें? 20वी शताब्दी में जनसंख्या रुझान की
व्याख्या करें ?
उत्तर -
मानव अपनी ही संख्या बढ़ाकर दारुण दुःख प्राप्ति की अनजाने में योजना बना रहा है।
आज स्थिति यह उत्पन्न हो गयी है कि दुनिया के साधन जनसंख्या के भार को सहन करने में अपने को
असहज महसूस कर रहे है। जनसख्या की तीव्र वृद्धि से भोजन, वस्त्र एवं आवास की समस्या
विकराल होती चली जा रही है।
जनांकिकी
चक्र की द्वितीय अवस्था जनसंख्या विस्फोट की अवस्था है। यह जनसंख्या विकास की वह
अवस्था है जिसमें मृत्यु दर में कमी आने लगती है, परन्तु जन्म दर में कमी नहीं आती
है। प्रायः कुछ समय के लिए जन्म दर
में वृद्धि ही हो जाती है। इस प्रकार की अवस्था में जनसंख्या में वृद्धि तीव्र गति
से होती है। यही कारण है कि इस अवस्था को जनसंख्या विस्फोट की अवस्था कहते हैं।
भारत
की जनसंख्या वर्ष 1971 की जनगणना के अनुसार 84.6 करोड़ थी जो बढ़कर 2001 में 102.7
करोड़ हो गयी। भारत में अधिक जनसंख्या वाला दुनिया की एक ही देश है और वह है चीन। भारत की जनसंख्या के बृहत आकार का अनुमान हमे
इस तथ्य से विशेषकर लग सकता है कि उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका दोनों की जनसंख्या
मिलाकर भी भारत की जनसंख्या में कम है। अकेले उत्तर प्रदेश की जनसंख्या ब्रिटेन की जनसंख्या से ढाई गुनी से
भी अधिक है। वास्तव में पृथ्वी पर हर छठवां
व्यक्ति भारतीय है।
भारत की जनसंख्या एवं वृद्धि दर
वर्ष |
जनसंख्या (करोड़
में) |
वृद्धि दर (प्रतिशत में) |
1921 |
25.1 |
-0.3 |
1931 |
27.9 |
11.0 |
1941 |
31.9 |
14.2 |
1951 |
36.1 |
13.3 |
1961 |
43.9 |
21.5 |
1971 |
54.8 |
24.8 |
1981 |
68.4 |
24.6 |
1991 |
84.6 |
23.5 |
2001 |
102.7 |
21.34 |
उपर्युक्त
तालिका से स्पष्ट होता है कि भारत में कुल जनसंख्या तथा जनसंख्या वृद्धि दर दोनों में बड़ी तेजी से
वृद्धि हुई है। 1991-2001 में जिस
दर पर भारत की जनसंख्या बढ़ती रही है उस दर पर जनसंख्या के दुगनी होने में लगभग 30 वर्ष लगते हैं। यहां
पर उल्लेखनीय है कि जनसंख्या के दुगनी होने में लगराग 30
वर्ष लगते हैं। यहाँ पर उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में भारत की जनसंख्या के
दुगने होने का अर्थ है, देश में 100 करोड़ लोगों की वृद्धि। भारत की जनसंख्या की
वृद्धि के बारे में एक भयानक किंतु दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि जितनी कुल जापान की
जनसंख्या है उतनी जनसंख्या भारत में केवल एक दशक में बढ़ जाती है।
अनुमान है कि 2015 ई. तक भारत की जनसंख्या जनसंख्या लगभग 121
करोड़ हो जाएगी। इस दर पर जनसंख्या यदि बढ़ती रहे तो उसके दुष्परिणाम वास्तव में
बड़े ही भयानक हो सकते है।
उपर्युक्त तथ्यों से पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है कि इस समय
भारत एक भयानक जनसंख्या विस्फोट से गुजर रहा है।
भारत में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण
किसी भी देश का सामाजिक एवं आर्थिक विकास उस देश की जनशक्ति
पर निर्भर करता है। लेकिन यह जनशक्ति यदि देश में उपलब्ध संसाधनों की तुलना में
अधिक हो जाऐ तो यह देश के लिए एक समस्या बन जाती है। वस्तुतः भारत जनसंख्या
विस्फोट की स्थिति से गुजर रहा है। जिससे देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में कई
तरह से बाधा उत्पन्न कर रही है।
भारत में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति के उत्पन्न होने अथवा
जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के निम्नलिखित कारण है-
(1) शिक्षा का निम्न स्तर :- देश
में अभी भी लगभग 35% आबादी शिक्षित नहीं है। 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में
साक्षरता का प्रतिशत 65.38 है। शिक्षा जन्म दर को प्रभावित करने वाले घटकों में
सबसे प्रमुख है। यदि व्यक्ति अशिक्षित होगा तो यह स्वाभाविक ही है कि उसे ज्ञान
नहीं होगा कि अधिक संतान होने से क्या नुकसान होगा वह तो हर बच्चे को भगवान की देन
ही समझेगा। अशिक्षा के कारण ही अनेक दम्पतियाँ निरोधक उपायों से अनभिज्ञ है या इन
उपायों को अपनाने में हिचकिचाते है। अशिक्षा के कारण ही विवाह तथा बच्चों के जन्म
के प्रति इस प्रकार का दृष्टिकोण निर्मित होते है जो जनसंख्या वृद्धि को
प्रोत्साहित करता है।
(2) परम्परावादी समाज :- भारत में अधिकतर लोग रुढ़ियों तथा पुरानी परम्पराओं से
प्रभावित है। नये विचार अपनाने में इस प्रकार के लोग को कठिनाई होती है। परम्पराओं
एवं रुढ़ियों के प्रभाव में जब लोग जन्म निरोध के नए उपाय नहीं अपनाते और बच्चे
पैदा होने के विरुद्ध कोई प्रयास नहीं करते तब जन्म दर ऊँची दर से बना रहना
स्वाभाविक है।
(3) धार्मिक अन्धविश्वास :- भारतीय जीवन अभी भी धर्म की रुढ़ियों तथा अन्धविश्वासों
के वश में कहा जा सकता है। एक सामान्य भारतीय नागरिक के लिए संतात भगवान
की देन होती है। हिन्दू धर्म में मानाता है कि वंश का नाम
आगे चलाने के लिए पुत्र का होना आवश्यक है अर्थात् जब तक पुत्र-रत्न की प्राप्ति न हो तब तक
सन्तानोत्पति करते रहना चाहिए। इस्लाम धर्म तों परिवार नियोजन कार्यक्रम को धर्म के
विरूद्ध मानता है। अतः भारत में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होना स्वाभाविक
है।
(4) संयुक्त परिवार :- भारत में संयुक्त परिवार प्रथा विद्यमान है। संयुक्त
परिवार में पैदा होने वाले बच्चे के भरण-पोषण का दायित्व माता-पिता पर ही न होकर सम्पूर्ण
परिवार का होता है अतः बच्चा पैदा होने के विरुद्ध कोई विवशता नहीं होती। संयुक्त परिवार
प्रथा विवाह की आयु के कम होने को भी प्रोत्साहित करती है।
(5) लड़को का महत्त्व :- भारतीय समाज मे लड़कियों की अपेक्षा लड़कों का महत्त्व कही
अधिक है। हिन्दु धर्म के अनुसार पुत्र का होना बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। ऐसा
विश्वास किया जाता है कि पुत्र होने से माता-पिता मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। केवल
पुत्र ही वंश को चलाता है, पुत्रियां विवाह के उपरान्त परिवार से बाहर चली जाती
है। यही कारण है कि कई पुत्रियां के होते हुए भी पुत्र की कामना में लोग बच्चे पैदा करते
जाते है। इस तरह परिवार का आकार बड़ा हो जाता है।
(6) समाज में स्त्रियों का कम सम्मान :- समाज में स्त्रियों का कम सम्मान होना भी परिवार के बड़े
आकार का कारण बनता है। समाज में स्त्रियों को बच्चा बच्चा पैदा करने की मशीन समझ लिया जाता है तथा
उसकी सुख सुविधा तथा कल्याण पर ध्यान नहीं दिया जाता।
(7) आर्थिक कारण :- भारत के व्यावसायिक ढाँचे में प्राथमिक व्यवसायो का बाहुल्य
है। यहाँ लगभग 64% कार्यशील जनसंख्या कृषि में लगी हुई है जिसके लिए परिवार का बड़ा
आकार ही उपयुक्त समझा जाता है क्योंकि यहाँ कृषि परम्परागत पुराने ढंग से की जाती है
जिसमे अधिक श्रम शक्ति की आवश्यकता पड़ती है।
यहाँ औद्योगीकरण का स्तर नीचा है
जिससे शहरीकरण भी यहाँ कम हुआ है। इससे लोगों में शहरी मानसिकता का विकास नहीं
हो पाया है। यह तथ्य सर्वमान्य है कि धनवानो की अपेक्षा गरीबों के अधिक बच्चे होते
है।
(8) आयु सरंचना एवं जलवायु :- भारत में व्याप्त आयु संरचना भी जन्म दर बढ़ाने में सहायक है। यहाँ 36% जनसंख्या
0-14 आयुवर्ग में, 57% जनसंख्या 15-59 आयु वर्ग में तथा 7% 60 वर्ष से अधिक वर्ग में है। स्पष्टतया
यहाँ प्रजनन योग्य आयु वर्ग में लोगों की सख्या अधिक है जिससे सन्तानोत्पत्ति अधिक होती है। इसके
अतिरिक्त यहाँ की गर्म जलवायु भी लड़के लड़कियों को काम आयु में प्रजनन योग्य बना
देती है।
(9) ग्रामीण समाज :- 2001 की जनगणना के अनुसार देश की 72.22 प्रतिशत
जनसंख्या गाँवों में तथा शेष 27.78 प्रतिशत जनसंख्या नगरो में रहती है। गाँवों में लोग सादा
जीवन बिताते है, कृषि करते हैं, परम्पराओं तथा रूढ़ियों में बँधे रहते है तथा
संयुक्त परिवार से सम्बद्ध रहने के कारण कम आयु में ही विवाह कर लेते है। परिवार
नियोजन की विधियों को अपनाने में कोई रुचि नहीं दिखाते इस कारण गाँवों में जन्म दर
ऊँची रहती है।
(10) सबका विवाह होना तथा विवाह की आयु का नीचा होना :- यह
समझा जाता है कि विवाह के बिना व्यक्ति अधूरा है तथा वह बिना विवाह के किसी
धार्मिक अनुष्ठान में भाग नही ले सकता। छोटी आयु में विवाह के कारण यहाँ प्रजनन
क्रिया भी कम आयु में प्रारम्भ हो जाती है। सर्वेक्षणों से यह सिद्ध हो चुका है कि
कम आयु में विवाह होंने से जन्म दर बढ़ती है जबकि अधिक आयु में विवाह होने पर जन्म
पर घटती है।
(11) मृत्यु दर में कमी :- भारत
में विगत 80 वर्षों में मृत्यु दर में पर्याप्त गिरावट आयी हैं। वर्ष 1901-11 के
दशक में भारत में मृत्यु दर 42.6 प्रति हजार थी जो क्रमशः घटते हुए 1980-81 में 10.8
रह गयी। वर्तमान में मृत्यु दर लगभग 8.7 प्रति हजार है। इसका प्रमुख कारण
लोगों की आय में वृद्धि तथा रहन-सहन के स्तर में सुधार,औषधि विज्ञान, स्त्रियों की
दशा में सुधार, साक्षरता में वृद्धि, मनोरंजन के साधनों में वृद्धि, शहरीकरण में
वृद्धि तथा परिवार नियोजन के प्रति लोगों का बढ़ता रुझान आदि है।
इस तरह भारत में जन्म दर में वृद्धि तथा मृत्युदर में आयी
कमी के फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि होना स्वाभाविक है।
सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के उपाय
जनसंख्या विस्फोट के भयानक दुःखदायी परिणामों से बचने के
लिए सरकार सदैव सचेष्ट रही है। शुरू से ही 'परिवार नियोजन 'जिसे बाद में 'परिवार कल्याण' का नाम दिया
गया, पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए 16
अप्रील 1976 को राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की गई। इस नीति की
मुख्य बाते निम्नलिखित हैं -
(1) अनिवार्य बंध्याकरण :- इस नीति के अनुसार यदि राज्य सरकारे चाहे तो अनिवार्य
बंध्याकरण के सम्बन्ध में कानून बना सकती है, लेकिन केन्द्र सरकार इसे पूरे देश
में लागू नहीं करेंगी।
(2) विवाह की उम्र में वृद्धि :- यह निर्णय लिया गया कि विवाह की उम्र में वृद्धि की
जानी चाहिए। अतः लड़कों के लिए विवाह की उम्र 21
वर्ष तथा लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गयी।
(3) संसद में प्रतिनिधित्व तथा केन्द्रीय साधनों में हिस्सा :- यह निर्णय लिया गया कि 2001ई.
तक संसद् में प्रतिनिधित्व के लिए 1971
की जनसंख्या के ऑकडे ही काम में लाये जायेंगे। इसी प्रकार
2001 ई. तक केन्द्रीय सहायता तथा केन्द्रीय अनुदान के वितरण के आधार 1971 के ऑकडे
ही रहेगे
(4) मुद्रा के रूप में प्रेरणा :- गरीब एवं कम शिक्षित लोगों के बीच नसबंदी को
प्रोत्साहित करने के लिए इस नीति में इसके लिए दी जाने वाली प्रोत्साहन की रकम की
बढ़ा देने का निर्णय लिया गया । जिन लोगों के दो या कम जीवित बच्चे है उन्हें 150
रुपये मिलेंगे। तीन जीवित बच्चे वालों को 100 रुपये और चार या अधिक बच्चे वाले को
60 रुपये की मौद्रिक सहायता निश्चित की गयी।
(5) स्त्री
शिक्षा का प्रचार :- स्त्रियों
में शिक्षा की वृद्धि होने पर प्रजनन दर में स्वतः कमी आ जाती है। वे परिवार
कल्याण के महत्त्व को समझने लगती है।
(6) सुविधा में वृद्धि :- ऐसे कर्मचारी जिन्होंने परिवार नियोजन कार्यक्रम स्वीकार
कर लिया है उन्हें मकान, जमीन, ऋण के वितरण में प्राथमिकता दी जायेगी तथा ग्रामीण
क्षेत्रों में नसबन्दी की सुविधा बढायी जायेगी।
(7)
व्यापक प्रचार :- परिवार नियोजन
कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने के लिए व्यापक प्रचार की सहायता ली जायेंगी। सभी
उपलब्ध साधनो- रेडियो, टेलीविजन, प्रेस, फिल्म, समूह नृत्य गान का उपयोग किये
जाने का निर्णय लिया गया।
(8) पुरुस्कार व्यवस्था :- परिवार नियोजन के दिशा में अच्छा काम करने वाले गाँवों,
जिला तथा पंचायत समितियो, मजदूर संगठनो आदि के सामूहिक प्रयत्नों को भी पुरस्कृत
करने की व्यवस्था की गयी।
(9) करो में छूट :- नयी जनसंख्या नीति में करो से छूट की भी व्यवस्थ की गयी। स्थानीय संस्थाओं
अथवा सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एवं पंजीकृत स्वयंसेवी संगठनों को परिवार
नियोजन के लिए दिये गये दान की रकम पर आय कर नहीं लेने का निर्णय हुआ।
सरकार की यह नीति है कि जोर एवं जबरदस्ती न करके स्वेच्छा
से परिवार नियोजन को जनसाधारण द्वारा अपनाया जाए तथा इस सम्बंध में आवश्यक वातावरण
बनाऐ जाए जिससे कि निम्न लक्ष्यो को प्राप्त किया जा सके-
(a) परिवार का औसत आकार 1996 तक कम करके 2 या 3 बच्चों
तक लाया जाऐ।
(b) जन्म दर जो वर्तमान में 33.3 प्रति हजार है उसमे
1996 तक कमी कर इसे 21 हजार तक लाया जाऐ।
(c) परिवार नियोजन कार्यक्रम को और बढ़ाया जाए।
1975 में आपातकाल की घोषणा हुई। उस काल में परिवार नियोजन
कार्यक्रम का बड़ा दुरुपयोग हुआ। बच्चों, बूढ़ों, अपाहिजों को भी जबरदस्ती
बंध्याकरण कर दिया गया । 1977 मे जनता पार्टी की सरकार बनी तो उसने सर्वप्रथम
परिवार नियोजन का नाम बदल कर परिवार कल्याण कर दिया और जनसंख्या पर नियंत्रण रखने
के सभी कार्यक्रमा से अधिक प्रभावशाली बनाने पर बल दिया गया।
परिवार कल्याण के विभिन्न कार्यक्रम राज्य सरकारों के
माध्यम से क्रियान्वित होती है जिसमे शत प्रतिशत सहायता कार्यक्रमों का विस्तार
किया जा रहा है। छठी योजना में 84400 प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेन्द्र स्थापित किये
गये।
परिवार नियोजन के तरीके अपनाने वाले (लाखों मे)
वर्ष |
बंध्याकरण |
लूप लगाई |
अन्य तरीके |
कुल |
1991-92 |
40.55 |
43.21 |
153.76 |
237.52 |
1992-93 |
41.76 |
46.23 |
178.56 |
266.55 |
1993-94 |
32.77 |
42.94 |
176.36 |
252.07 |
1994-95 |
42.90 |
62.40 |
218.59 |
323.89 |
1995-96 |
43.50 |
68.10 |
222.74 |
334.64 |
1996-97 |
38.16 |
57.12 |
222.79 |
318.07 |
1997-98 |
40.83 |
60.88 |
200.99 |
302.70 |
परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाने वालो की सख्या से कम से कम यह बात निश्चित हो जाती है कि जनसंख्या की वृद्धि दर पर अंकुश रखने में सरकार सफल अवश्य हुई है, परन्तु जनसंख्या की वृद्धि को लक्ष्य के अनुरूप कम नहीं कर सकी है। अतः इसके लिए सरकार एवं जनता दोनों को जागरुक होना अनिवार्य है तभी भारत जनसंख्या विस्फोट के दुश्चक्र से बाहर निकल सकता है।
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