भारत में जनसंख्या नीति या परिवार कल्याण कार्यक्रम
(Population Policy or Family
Welfare Programme in India)
भारत
की बढ़ती हुई जनसंख्या की वृद्धि-दर को कम करने का एक महत्वपूर्ण उपाय परिवार नियोजन
है। अब सरकार ने इस कार्यक्रम को और भी अधिक विस्तृत करके इसका नाम परिवार कल्याण
(Family Welfare) कर दिया है। भारत विश्व में पहला देश है जिसने परिवार नियोजन कार्यक्रम
को सरकारी स्तर पर अपनाया है।
अर्थ (Meaning)-परिवार नियोजन का अर्थ है
कि परिवार को एक सीमा तक ही बढ़ाया जाये, ताकि परिवार की आमदनी को ध्यान में रखते
हुए जीवन स्तर को ऊँचा किया जाये या कम-से-कम नीचा होने से तो अवश्य रोका जाये। इस
प्रकार इसका अर्थ, "बच्चों को अपनी इच्छा के अनुसार, न कि संयोग (Chance) के
अनुसार पैदा करना (To have children by choice and not by chance,
by design and not by accident)" अन्य शब्दों में, "परिवार को जान-बूझकर
अपनी इच्छानुसार सीमित करना, उचित समय के बाद सन्तान पैदा करना
(Proper Spacing of Children)" इसके लिए कई उपाय काम में लाये जा सकते हैं-
(1)
गर्भ निरोधक साधन, (2) दवाइयाँ, (3) ऑपरेशन तथा (4) लूप।
परिवार नियोजन कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य (Main Objectives of
the Family Planning Programme)
(1)
छोटे परिवार के विचार को प्रोत्साहित करना। 'हम दो हमारे दो', छोटा परिवार सुखी परिवार'
के विचार को जनमानस में बैठाना, (2) सन्तानोत्पत्ति के बीच अन्तर
हो। दो बच्चों के जन्म में अन्तर होना आवश्यक है, ताकि माँ के स्वास्थ्य पर
दुष्प्रभाव न पड़े एवं बच्चे की देखभाल भी उचित रूप से हो सके, (3) निरन्तर बढ़ती
जनसंख्या पर नियन्त्रण, (4) अविवेकपूर्ण मातृत्व पर रोक।
परिवार
कल्याण कार्यक्रम के लिए सरकार अनेक उपायों का सहारा लेती है-
(1)
लोगों को परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाने के लिए प्रेरित करना और इसके लिए सभी प्रकार के माध्यमों-अखबार, रेडियो, टी. वी., फिल्मों आदि का सहारा
लेना, (2) पुरुष तथा महिला दोनों की नसबन्दी के व्यापक प्रयास, (3) नसबन्दी कराने
हेतु नकद प्रोत्साहन, (4) ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों के सभी वर्गों को गर्भ
निरोधक सामग्रियों की आपूर्ति ।
पंचवर्षीय योजनाएँ एवं परिवार नियोजन कार्यक्रम (जनसंख्या सम्बन्धी नीति) (FIVE YEAR
PLANS AND FAMILY PLANNING (POPULATION POLICY)
भारत
में जनसंख्या पर नियन्त्रण लगाने के लिए आर्थिक व सामाजिक कदमों का सहारा न लेकर सरकार
ने परिवार नियोजन कार्यक्रम का सहारा लिया है।
भारत
में नियोजित आर्थिक विकास के प्रथम दशक (1951 से 1961) में परिवार नियोजन को एक सरकारी
कार्यक्रम के रूप में स्वीकार किया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में इस पर
65 लाख रुपये तथा द्वितीय पंचवर्षीय योजना में 5 करोड़ रुपये रखे गये थे।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना( 1956-61) तक इस कार्यक्रम को
क्लिनीकल दृष्टिकोण (Clinical Approach) के अन्तर्गत लागू किया गया था। क्लिनीकल दृष्टिकोण
के अन्तर्गत न केवल शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ परिवार नियोजन केन्द्र खोले गये
अपितु अस्पतालों एवं स्वास्थ्य केन्द्रों में भी चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करायी गईं।
1961
की जनगणना में जनसंख्या की तीन वृद्धि दर को देखते हुए इस कार्यक्रम को तीसरी पंचवर्षीय
योजना (1961-66) से काफी महत्व दिया जा रहा है। साथ ही इस कार्यक्रन को प्रभावशाली
ढंग से लागू करने के लिए ब्लिनीकल दृष्टिकोण के स्थान पर विस्तार दृष्टिकोण
(Extension Approach) को अधिक महत्व दिया गया। विस्तार या प्रसार नै विस्तार दृष्टिकोण
परिवार नियोजन से सम्बन्धित सारी जानकारी व शिक्षा का व्यापक आधार पर सभी क्षेत्रों
में प्रसार करने पर जोर था।
चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) में परिवार नियोजन
कार्यक्रम को उच्च प्राथमिकता दी गयी और पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन को लक्ष्योन्मुखी
(Target Oriented) बनाया गया।
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-78) में परिवार कल्याण
कार्यक्रम को उच्च प्राथमिकता दी गयी तथा सरकार ने इसे जनरवास्थ्य मातृत्व एवं शिशु
स्वास्थ्य देखभाल तथा पोषण आहार के साथ जोड़ते हुए समन्वित (Integrated Programme
with Health, Maternity and child health Care and nutrition) के रूप में लागू किया।
जब
परिवार कल्याण कार्यक्रमों से वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हुए तो सरकार ने 1976 में
एक दृढ़ व सुस्पष्ट जनसंख्या नीति अपनाने का संकल्प लिया। इस दृढ़ नीति के अन्तर्गत
कैम्प दृष्टिकोण अपनाया गया जिसके अन्तर्गत लोगों को तरह-तरह से प्रलोभन देकर कैम्पों
में बन्ध्याकरण के लिए लाया जाता था। 1976 में आपातकाल के दौरान बन्ध्याकरण के इस कार्यक्रम
में भ्रष्ट प्रशासन ने अपनी शन्तियों का भरपूर दुरुपयोग किया।
छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) में दीर्घकालीन जनांकिकीय
कार्यक्रम के अन्तर्गत विशुद्ध पुनरुत्पादन दर (Net Reproduction Rate) को 1978 में
1.67 से घटाकर 1995 में 1 तक लाने का लक्ष्य रखा गया।
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) में सन् 1990 तक जन्म
दर को 27 प्रति हजार तथा वार्षिक वृद्धि दर को 1.66 प्रतिशत के स्तर पर लाने का लक्ष्य
रखा गया था।
आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-971) में भारत में परिवार
नियोजन कार्यक्रम को प्रभावशाली ढंग से लागू किये जाने के बावजूद भी 1991 की जनगणना
के अनुसार जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 प्रति वर्ष बनी हुई है। जनसंख्या वृद्धि दर से विशेष
कमी नहीं आयी। अतः आठवीं पंचवर्षीय योजना में जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करना एक
मुख्य उद्देश्य था।
नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) में जनसंख्या नीति
व परिवार कल्याण कार्यक्रम सन् 1994 में काहिरा के जनसंख्या और विकास सम्मेलन में स्वीकृत
कार्ययोजना के आधार पर अक्टूबर, 1997 में प्रजनन और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
(Reproduction and Child Health : RCH) को आरम्भ किया गया। इस नीति में सीमित परिवार
को प्रोत्साहन के अतिरिक्त लोगों को अपने स्वयं के प्रजनन के लक्ष्य को प्राप्त करने
में मदद करना है और सेवा की गुणवत्ता पर अधिक ध्यान दिया गया है।
दसर्वी पंचवर्षीय योजना (2002-07) इस योजना में परिवार
कल्याण कार्यक्रम पर 38,344 करोड़ रुपये व्यय किये जाने थे। इस योजना का लक्ष्य जन्म
दर को कम करके 21 प्रति हजार लाना था। परन्तु यह चोजना जनसंख्या नियंत्रण में पूरी
तरह असफल रही।
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) ग्यारहवीं
योजना में परिवार कल्याण कार्यक्रमों पर 1,20,879 करोड़ रुपए व्यय करके प्रमुख रूप
से निम्न लक्ष्यों को प्राप्त करना था। (i) कुल प्रजनन दर (2.1 प्रतिशत), (ii) मातृत्व
मृत्यु दर (1 प्रति हजार), (iii) शिशु (0 से 1 वर्ष) मृत्यु दर (28 प्रति हजार),
(iv) जनसंख्या की वृद्धि दर (1.3 प्रतिशत प्रतिवर्ष कम।)
उपर्युक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों पर
जोर दिया गया है-
(i)
शिक्षा में सुधार, स्त्री शिक्षा पर विशेष बल देना।
(ii)
बीमारियों पर नियन्त्रण।
(iii)
सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार ।
(iv)
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य निशन कार्यक्रम को सुदृढ़ करना।
बारहवीं
योजना में जनस्वास्थ्य व परिवार कल्याण कार्यक्रम की पहुँच के विस्तार और व्यापक स्वास्थ्य
कवरेज को प्रणाली की स्थापना के दीर्घविधि उद्देश्य की प्राप्ति ग्यारहवीं योजना में
किए गए पहलों (Initiatives) को पूरा करने के लिए उपयोग किया जायेगा।
इस योजना में महिला एवं बाल स्वास्थ्य विस्तार के लिए निम्नलिखित बातों
पर जोर दिया गया है-
(अ)
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य प्रदान करने की व्यवस्था के लिए आवश्यक बुनियादी आधारिक
संरचना उपलब्ध कराना।
(ब)
यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रत्येक सचल (Mobile) चिकित्सा यूनिट में आवश्यक
आपाती उपकरण महत्वपूर्ण बुनियादी दवाइयाँ व उपकरण उपलब्ध कराना।
(स)
यह सुनिश्चित किया जायेगा कि सभी शहरी मलिन बस्तियों को राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन
के जरिए उपकेन्द्रों एवं एकीकृत बाल-विकास सेवा केन्द्रों तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों
से जोड़ा जायेगा।
(द)
सभी स्वास्थ्य सुविधा केन्द्रों को कम्प्यूटरीकृत एवं उनको आपस में जोड़ना तथा नये
इण्टरकेस सृजित करने के लिए प्रौद्योगिकी मोबाइल प्रौद्योगिकी का उपयोग करने पर भी
जोर दिया जायेगा।
बारहवीं योजना में स्वास्थ्य सम्बन्धी विभिन्न लक्ष्य निम्न प्रकार
निर्धारित किये गये हैं-
सारणी
1-स्वास्थ्य सम्बन्धी विभिन्न लक्ष्य
क्र.सं. |
विवरण |
लाभ |
1 |
कुल प्रजनन दर (TFR) (प्रति
महिला) |
2.1 |
2 |
मातृत्व मृत्यु-दर (MMR) (प्रति
1000 जीवित जन्म) |
100 |
3 |
शिशु मृत्यु-दर (IMR) (प्रति
1000 जीवित जन्म) |
25 |
4 |
बाल (0-6 वर्ष) मृत्यु-दर (प्रति 100 बच्चे) |
- |
5 |
जीवित जन्म तक लाने तथा 0-6 वर्ष के आयु वर्ग में बाल लिंगानुपात |
950 |
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 (THE
NATIONAL POPULATION POLICY, 2000)
राष्ट्रीय
जनसंख्या स्थिरीकरण कोष (National Population Statvilization Pund : NPSE') का नाम
बदलकर जून, 2003 में इसे जनसंख्या स्थिरता कोष के रूप में पंजीकृत किया गया है। जनसंख्या
स्थिरता कोष का उद्देश्य जनसंख्या नीति, 2000 के लक्ष्यों को प्राप्त करना है।
नई
जनसंख्या नीति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. अल्प अवधि के उद्देश्य (Short Term Objectives)- इसमें
मुख्यतः आपूर्ति क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में गर्भ निरोधक वस्तुओं का वितरण एवं
स्वास्थ्य कर्मचारियों की नियुक्ति करना है।
2. मध्यम अवधि के उद्देश्य Medium Term Objectives)-
प्रजनन दर को एक पीढ़ी के बराबर ही दूसरी पीढ़ी को संख्या रखने की स्थिति तक लाना है।
इस तरह इसके अन्तर्गत सन् 2010 तक रणनीति को जोरदार ढंग से लागू कर एक दम्पति को केवल
दो बच्चों का लक्ष्य हासिल किया जाना है।
3. दीर्घकालीन उद्देश्य (Long Term Objectives)- सन्
2045 तक जनसंख्या को स्थिर करना है। आर्थिक वृद्धि, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण
की आवश्यकताओं के अनुरूप स्तर तक जनसंख्या को स्थिर किया जायेगा।
विशेषताएँ (Features)
1. स्वैच्छिक (Voluntary)- भारत सरकार की जनसंख्या नीति
स्वैच्छिक है। इस नीति के अनुसार
जनसंख्या नियन्त्रण के लक्ष्य को जन सहयोग से प्राप्त किया जायेगा। जनता को छोटे परिवार
के महत्व के सम्बन्ध में
शिक्षित किया जायेगा तथा उन्हें जन्म दर कम करने के लिए प्रेरित किया जायेगा।
2. व्यापक क्षेत्र (Wider Scope)- जनसंख्या नीति का क्षेत्र
काफी व्यापक है। इसके अन्तर्गत जन्म
दर को कम करने के उपायों के अतिरिक्त परिवार के स्वास्थ्य, मातृत्व कल्याण, बच्चों
के स्वास्थ्य, आदि को भी शामिल किया
गया है। इसलिए यह परिवार नियोजन के स्थान पर परिवार कल्याण का प्रोग्राम बन गया है
3. राज्यों की निर्भय सहभागिता (Fearless Participation by
States)-
नई जनसंख्या नीति में राज्यों को
निर्भय सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए लोकसभा की संरचना को 2001 केmपश्चात् 25 वर्ष तक और आगे
अपरिवर्तित रखने की घोषणा की गयी है।
4. मानवीय विकास नीतियाँ (Human Development Policies)- नई
नीति नें कहा गया है कि
ऐसी तर्कसंगत मानवीय प्रभावी विकास नीतियाँ बनायी जायें जो कि जनकल्याणकारी हों। बड़ी आबादी वाले इन प्रदेशों में
इस नीति के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कार्य-योजना की भी घोषणा की गयी है जिसके तहत न केवल जनसंख्या
नियन्त्रण के लिए विशेष कदम उठाये जायेंगे बल्कि नागरिकों का जीवन-स्तर
सुधारने पर भी विशेष ध्यान दिया जायेगा।
5. राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन (Formation of National
Population Commission)- नई जनसंख्या नीति के कार्यान्वयन पर निगरानी
रखने व उसकी समीक्षा के लिए प्रधानमन्त्री
की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय 'राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग' (National Population Commission) का गठन किया जायेगा।
केन्द्रीय परिवार कल्याण मन्त्री व कुछेक अन्य सम्बन्धित केन्द्रीय मन्त्रियों के अतिरिक्त
सभी राज्यों व केन्द्रशासित क्षेत्रों में मुख्यमन्त्री इस आयोग के सदस्य होंगे। जाने-माने जनसंख्याशास्त्रियों,
जन-स्वास्थ्य विशेषज्ञों व गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों को भी इसमें शामिल किया जायेगा।
6. छोटे परिवार हेतु प्रोत्साहन (Encouragement of Small Family)- छोटे
परिवार के मानक को अपनाने को प्रोत्साहित
करने के लिए शामिल किये गये प्रयासों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं-
(i)
केन्द्र सरकार न पंचायतों और जिला परिषदों को पुरस्कृत करेगी जो अपने क्षेत्र में रहने
वाले लोगों को जनसंख्या नियन्त्रण
के उपाय को अधिकाधिक अपनाने के लिए प्रेरित करेंगी। (ii) प्रसव-पूर्व लिंग परीक्षण तकनीकी निरोध
अधिनियम को कड़ाई के साथ लागू किया जायेगा। (iii) गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले उन
परिवारों को पाँच हजार रूपये की स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी जायेगी जिनके सिर्फ दो बच्चे हों और
दो बच्चों के जन्म के बाद उन्होंने बन्ध्याकरण करा लिया हो। (iv) ग्रामीण क्षेत्रों में एम्बुलेन्स की
सुविधा उपलब्ध कराने के लिए उदार शर्तों पर ऋण तथा आर्थिक मदद उपलब्ध करायी जायेगी।
7. संगठन तथा अनुसन्धान (Organisation and Research)- परिवार
कल्याण कार्यक्रम का
सारा खर्च केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जाता है। परन्तु इस कार्यक्रन को राज्य सरकारें
लागू करती हैं। यह कार्यक्रम पंचायत
जिल्ला परिषद् आदि स्तर पर चलाया जायेगा ताकि इसके लिए जन प्रतिनिधियों का सहयोग प्राप्त किया जा सके।
जन्मदर को कम करने के उपायों से सम्बन्धित नये अनुसन्धान किये जा रहे हैं। आयुर्वेद तथा न्यूनानी
चिकित्सा प्रणाली में इस सम्बन्ध में विशेष खोज की जा रही है।
लक्ष्य (Target)
नई नीति के अन्तर्गत निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं-
(i)
सन् 2005 तक जनसंख्या वृद्धि की शून्य-दर को प्राप्त करना।
(i)
शिशु मृत्यु दर को कम करके 30 प्रति हजार जीवित नवजात तक ले जाना।
(iii)
सन 2010 तक जन्न दर को कम करके 21 प्रति हजार तक लाना।
(iv)
सन् 2010 तक कुल प्रजनता दर (TFTR) को कम करके 2 : 1 करना।
(v)
सन् 2010 तक भारत की जनसंख्या 111.7 करोड़ होगी।
(vi)
मातृ मृत्यु दर को कम करके 100 प्रति एक लाख जीवित जन्मजात से नीचे लाना।
नयी जनसंख्या नीति, 2000 में बदलाव
नयी
जनसंख्या नीति में दीर्घकालीन लक्ष्य 2015 तक जनसंख्या स्थिरता का लक्ष्य रखा गया था। परन्तु अब दीर्घकालीन लक्ष्य
का समय परिवर्तित कर वर्ष 2070 कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि इन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु
भारत सरकार द्वारा कई पहलकारी कदम उठाये गये जिसमें एक ओर राष्ट्रीय जनसंख्या कोष को स्थापना की
गयी तो दूसरी तरफ जनजागरूकता अभियान कार्यक्रम से निश्चित रूप से हमें इनका लाभ भी मिला।
क्योंकि 1921 की जनगणना के बाद पहली बार 2011 की जनगणना में जनसंख्या वृद्धि अनुपात घटा
है।
जनसंख्या नीति (परिवार कल्याण कार्यक्रमों)
की प्रगति व उपलब्धियाँ [(PROGRESS
AND ACHIEVEMENTS OF POPULATION POLICY (FAMILY WELFARE PROGRAMME)]
1. व्यापक क्षेत्र (Wider Scope) वर्ष 1952 में भारत
ने विश्व का पहला राष्ट्रीय कार्यक्रम
शुरू
किया जिसमें 'राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के अनुरूप स्तर पर जनसंख्या को स्थिर करने के
लिए' जन्म दरों को कम करने
हेतु आवश्यक सीमा तक परिवार नियोजन पर जोर दिया गया। तब से परिवार नियोजन कार्यक्रम में विकास
हुआ है और यह कार्यक्रम इस समय न केवल जनसंख्या स्थिरीकरण को प्राप्त करने बल्कि प्रजान
स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और मातृ, शिशु, बाल मृत्यु एवं रुग्णता को कम करने के लिए दोबारा कार्यान्वित
किया जा रहा है।
2. व्यापक संगठन (Wider Organisation) जनसंख्या
नीति के फलस्वरूप देश में व्यापक संगठन
तथा संरचना का निर्माण सम्भव हो सका है। इस नीति के फलस्वरूप देश के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन
केन्द्रों, प्रशिक्षण संस्थानों, अनुसन्धान प्रयोगशालाओं, मूल्यांकन एजेन्सियों की स्थापना की गई। यह जनसंख्या
नीति की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
3. जागरूकता में वृद्धि (Increase in Awareness) जनसंख्या
नीति के फलस्वरूप कई राज्यों
व शहरों में परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता बढ़ी है। शिक्षित जनसंख्या परिवार नियोजन
के महत्व को अच्छी तरह
समझने लगी है।
संक्षेप
में भारत में परिवार कल्याण कार्यक्रम प्रगति का अनुमान का अध्ययन हम निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर कर सकते
हैं-
(i)
देश के 105 जिलों में बाल जीवन व सुरक्षित मातृत्व' (Child Survival and Safe Motherhood : CSSM) कार्यक्रम
चलाया गया है।
(ii)
सरकारी अस्पतालों व सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा निरोध का वितरण किया जा रहा है।
(iii)
जनसंख्या नियन्त्रण के लिए गैर सरकारी संगठनों का सहयोग लिया जा रहा है।
भारत में परिवार कल्याण कार्यक्रम की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्न प्रकार
हैं-
1.
प्रजनन दर प्रति हजार महिलाओं के पीछे जो 1971 में 5.2 थी वह 2016 में घटकर 2.15 हो गयी।
2.
शिशु मृत्यु दर जो 1985 में 95 प्रति हजार थी वह 2016 में कम होकर 40.5 प्रति हजार हो गई।
3. विश्व बैंक के अनुमान से
1990-2014 में भारत में पुनरुत्पादनीय आयु के 60 प्रतिशत दम्पतियों तक
परिवार नियोजन कार्यक्रम पहुँच गया है।
4.
परिवार कल्याण विभाग ने देश के ऐसे 90 जिले छाँटे हैं जहाँ परिवार कल्याण का कार्य
ठीक ढंग से नहीं हुआ है।
इनमें से 83 जिले उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में हैं। इन जिलों में परिवार कल्याण के
कार्य को अधिक कुशल बनाने के लिए 320 करोड़ खर्च किए गए हैं।
उपयुक्त
उपलब्धियों के बावजूद भारत में जनसंख्या वृद्धि दर अभी भी लगभग 1.3 प्रतिशत है जबकि चीन में जनसंख्या वृद्धि
दर कम होकर 0.6 प्रतिशत रह गई है। इससे बह निष्कर्ष निकलता है कि भारत में परिवार कल्याण
कार्यक्रन को और अधिक गति देने की आवश्यकता है।
जनसंख्या सम्बन्धी नीति का मूल्यांकन (APPRAISAL OF THE POPULATION POLICY)
उपर्युक्त
विश्लेषण में हमने इस ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि वर्तमान जनसंख्या समस्या के समाधान के लिए कल्पनाशील व
प्रभावी जनसंख्या नीति आवश्यक है, परन्तु भारत सरकार इस प्रकार की नीति बनाने में असफल रही
है।
संक्षेप में भारत की जनसंख्या सम्बन्धी नीति में निम्नलिखित कमियाँ
हैं-
1. अधिक सैद्धान्तिक- भारत की जनसंख्या नीति व्यावहारिक
कम तथा सैद्धान्तिक अधिक है। फलतः
इस नीति को देश के सभी धर्मों और वर्गों पर समान रूप से क्रियान्वित करने में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना
करना पड़ रहा है।
2. राज्य सरकारों की अकुशलता- वर्तमान जनसंख्या नीति यद्यपि
भारत सरकार द्वारा तैयार की गयी
है, परन्तु इसके क्रियान्वयन का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों पर है। राज्य सरकारें इस
उत्तरदायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वाह
नहीं कर पा रही हैं।
3. यौन शिक्षा की उपेक्षा- यद्यपि सरकार ने जनसंख्या
शिक्षा और यौन शिक्षा को पाठ्यक्रमों में
सम्मिलित
करने की बात को सिद्धान्त रूप में स्वीकार कर लिया है किन्तु व्यवहार में सरकार इसके
प्रति उदासीन ही रही है।
4. अपर्याप्त मौद्रिक प्रलोभन- वर्तमान काल में जिस गति से
मुद्रा प्रसार हो रहा है, उसे देखते
हुए इस नोति में जनसंख्या नियन्त्रण के लिए जिन मौद्रिक प्रलोभनों की घोषणा की गयी
है, वे अपर्याप्त हैं।
5. अनिवार्यता का अभाव- यह नीति स्वैच्छिक अधिक और
अनिवार्य कम है। जनसंख्या के प्रभावी
नियन्त्रण हेतु जिन उपायों को बतलाया गया है, उनको अपनाने के लिए किसी भी प्रकार की अनिवार्यता का इस नीति में
सर्वथा अभाव है।
6. सीमित दृष्टिकोण (Narrow View)- जनसंख्या नीति का दृष्टिकोण
सीमित है। इस नीति में जनसंख्या नियन्त्रण के लिए गर्भ
निरोधक
उपायों
(Contraceptives) तथा नसबन्दी (Sterlization)
को
बहुत अधिक महत्व दिया गया है परन्तु जनसंख्या नियन्त्रण केवल इन उपायों द्वारा सम्भव
नहीं है। इसके लिए लोगों के निर्धनता
उन्मूलन, जीवन-स्तर का ऊँचा होना तथा शिक्षा का प्रसार अत्यन्त आवश्यक है।
7. अन्य कमियाँ-
(i) नयी जनसंख्या नीति में परिवार
परिसीमन का सारा भार स्त्रियों पर डाला
जा
रहा है।
(ii)
हमारी जनसंख्या नीति में संतति निरोध के उपकरणों पर अनावश्यक जोर दिया गया है।
(iii)
जनसंख्या नीति में जनता के शिक्षा प्रसार और जीवन स्तर में व्यापक सुधार पर अधिक महत्व नहीं दिया गया है।
उपर्युक्त
कमियों के होते हुए भी यह कहा जा सकता है कि भारत में शहरी क्षेत्रों में परिवार नियोजन कार्यक्रम को कुछ सफलता
अवश्य मिली है। 1970 के दशक के बाद से कुल प्रजनन दर में गिरावट आई है।
भारत में परिवार कल्याण (नियोजन) कार्यक्रम
की सफलता
के लिए सुझाव (SUGGESTIONS
FOR THE SUCCESS OF FAMILY WELFARE PROGRAMME IN INDIA)
देश
में परिवार कल्याण कार्यक्रम को और अधिक सफल बनाने के लिए निम्नांकित सुझाव प्रस्तुत किये जा सकते हैं-
(1) लोगों में परिवार नियोजन के प्रति जागृति पैदा करना (Creation
of Awareness among People about Family Planning)
1. जागृति (Awareness)- परिवार नियोजन कार्यक्रम को
सफल बनाने के लिए लोगों में जागृति
पैदा करना बहुत आवश्यक है। शिक्षा से जनता में जागृति उत्पन्न होती है। अत: यह आवश्यक है कि अनिवार्य शिक्षा की व्यापक
योजना बनायी जाय।
2. प्रेरणा कार्यक्रम (Motivational Programmes)- परिवार
नियोजन कार्यक्रम तभी सफल हो
सकता है, जबकि विज्ञापन और प्रचार के माध्यम से लोगों को छोटे आकार के परिवार के गुण
और लाभों से अवगत कराया
जा सके। प्रेरणा अभियान के अन्तर्गत अनौपचारिक बातचीत, भाषण, फिल्में, समाचार-पत्र, विज्ञापन, नाटक
आदि को लिया जा सकता है।
3. प्रोत्साहन (Incentives)-
लोगों
को परिवार नियोजन अपनाने के लिए प्रेरित करने के वास्ते तरह-तरह के प्रोत्साहन दिये
जा सकते हैं।
4. बल प्रयोग (Use of Force)- यदि ऊंची जन्म दर देश के विकास
में बाधक बनती है और लोगों
के जीवन स्तर (विशेषकर कमजोर वर्गों) को उन्नत करने में बाधा बनती है तो सरकार का यह कर्तव्य हो जाता है कि उचित
विधान द्वारा इन रुकावटों को दूर करे।
5. सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में वृद्धि (Increase in Social
Security Programme)- सरकार
को सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में वृद्धि करनी चाहिए जिससे कि लोग वृद्धावस्था या
रोगावस्था में सहारा पाने की दृष्टि
से सन्तानोत्पत्ति की प्रवृत्ति से हतोत्साहित होकर परिवार कल्याण कार्यक्रम अपना सकें।
6. जन-सहयोग (People's Co-operation)- इस
कार्यक्रम की सफलता के लिए जन-सहयोग
आवश्यक
है। पंचायती राज संस्थाओं को इस क्षेत्र में निर्णयात्मक भूमिका सौंपी जानी चाहिए।
परिवार नियोजन कार्यक्रम तैयार
करने और उसे कार्यान्वित करने का दायित्व पंचायती राज संस्थाओं को दिया जाना चाहिए।
7. यौन शिक्षा (Sex Education)- युवक युवतियों को पाठ्यक्रम
एवं अन्य तरीकों से यौन शिक्षा
दी जानी चाहिए जिससे कि वे सुखी दाम्पत्य जीवन जी सकें तथा स्वस्थ सन्तान प्राप्त कर
सकें। यौन शिक्षा से यौन विकार
भी रोका जा सकता है।
(II) परिवार नियोजन के साधन उपलब्ध करवाना (Availability of Family
Planning Means)
यह
परिवार नियोजन के साधन से सम्बन्धित है। इस दृष्टि से निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-
1. गर्भ-निरोधक साधनों को उपलब्ध कराना (Availability of Contra
Ceptives)- (i) देश में गर्भ-निरोधक
साधनों का मुफ्त वितरण बढ़ाया जाना चाहिए, (ii) संतति निग्रह के हानि रहित एवं अधिक प्रभावपूर्ण उपार्यों
की खोज करके उन्हें लोकप्रिय बनाया जाये, (ii) परिवार कल्याण के सम्बन्ध में आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक
आदि चिकित्सा प्रणालियों का लाभ उठाया जाना चाहिए, (iv) चल चिकित्सालयों का विस्तार करना
चाहिए।
2. बन्ध्याकरण के बाद देखभाल (Supervision after Sterilisation)- जिन
व्यक्तियों का बभ्याकरण किया जाय,
उनकी बाद में उचित देखभाल की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि उन्हें मनोवैज्ञानिक शान्ति मिले और
यदि उनको बाद में किसी प्रकार की परेशानी हो तो उसका उचित उपचार किया जा सके।
3. परिवार कल्याण केन्द्रों की स्थापना (Establishment of Family
Welfare Centres)- सेवाएँ उपलब्ध करवाने के उद्देश्य
से परिवार कल्याण केन्द्रों की स्थापना करना, संतति निग्रह के बारे में लोगों को जानकारी प्रदान करना
ही पर्याप्त नहीं होगा बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि इस सम्बन्ध में आवश्यक चिकित्सा
और देखभाल की सुविधाओं की व्यवस्था की जाये।
4. शोध का विस्तार (Research Expansion)- सन्तति
निग्नह साधनों के बारे में शोध का
विस्तार
किया जाना चाहिए। यह प्रयत्न किया जाना चाहिए कि सन्तति निग्रह के लिए अपनाये जाने
वाले तरीके सरल और सस्ते
हों। इन्हें सामान्य रूप से स्वीकार करवाये जाने के प्रत्यन्न किये जाने चाहिए।
(III) अन्य सुझाव (Other Suggestions)
1. तीव्र आर्थिक विकास (Rapid Economic Development)- जनसंख्या
नीति को सफल बनाने का सर्वाधिक उपयुक्त
तीन आर्थिक विकास है। अत : सरकार को आर्थिक विकास की गति तेज करनी चाहिए।
2. आर्थिक विकास का समान वितरण (Equal Distribution of Economic Development)- भारत की वर्तमान स्थिति यह है कि निम्न
आय वर्ग के लोग न तो आर्थिक विकास
के
कार्यक्रमों से जुड़े हैं और न ही उनको इसके लाभ प्राप्त हो रहे हैं। अत: आर्थिक विकास
की प्रक्रिया में आम लोगों को भागीदार
बनाकर और उनको समान रूप से इसके लाभों को वितरित करके ही जन्म-दर को कम किया जा सकता
है।
3. छोटे किसानों की उत्पादकता में सुधार (Improvement in the
Productivity of Small Farmers)-वित्तीय
सेवाओं, भूमि सुधार सिंचाई की सुविधाओं आदि के माध्यम से सरकार छोटे किसानों की उत्पादन क्षमता
में सुधार ला सकती है। उत्पादन क्षमता की वृद्धि से किसानों की आय बढ़ती है, उनके रहन-सहन के
स्तर में सुधार होता है और वे परिवारों के आकार को छोटा करने की इच्छा करने लगते हैं।
4. राज्यों की आवश्यकतानुसार कार्यक्रम (Programme According to
Need of States)- जनसंख्या नीति में विभिन्न राज्यों की आवश्यकताओं
को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। जैसे-आने
वाले समय में देश की कुल आबादी में राष्ट्रीय स्तर से ज्यादा कुल प्रजनन दर वाले राज्यों (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान,
झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और मेघालय) का 50 प्रतिशत हिस्सा हो जायेगा। इन राज्यों में सबसे पहले जो
कार्य किया जाना चाहिए वह यह है कि इच्छित प्रजनन (दो से अधिक बच्चे पैदा करने की कामना)
पर आधारित दर को कम करने के लिए सामाजिक-आर्थिक विकास पर ध्यान दिया जाए।
जिन
राज्यों (उत्तराखण्ड, गुजरात, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, ओडिशा) में कुल प्रजनन दर
2.1 से 3 के बीच है, इन
राज्यों में सबसे अधिक यह कार्य किया जाना चाहिए कि दम्पतियों की मदद की जाए कि वे परिवार नियोजन कार्यक्रम
को मजबूत बगाएँ ताकि प्रजनन लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
प्रवीण विसारिया के अनुसार, कुल प्रजनन दर को कम करने के लिए कुछ नीतिगत
परिवर्तनों की जरूरत है। वे खासतौर पर निम्नलिखित नोतियों का सुझाव देते हैं-
(i)
एक सही ढंग से बनाए गए कार्यक्रम का क्रियान्वयन जिसमें बड़े पैमाने पर कार्यरत स्वास्थ्य कर्मचारियों को इस बात के लिए
प्रशिक्षित किया जाए कि वे आम जनता को अपने
पुनरुत्पादनीय
व्यवहार (reproductive behaviour) को बदलने के लिए प्रेरित कर सकें।
(ii)
परिवार नियोजन कार्यक्रम के विशिष्ट लक्ष्यों के स्थान पर जन्म दर तथा मृत्यु दर में
परिवर्तनों के मूल्यांकन पर ज्यादा
जोर देना चाहिए।
(iii) ऐसी प्रोत्साहित करने व हतोत्साहित करने वाली योजनाएँ लागू की जानी चाहिए जिससे लोग विवाह की आयु को स्थगित करने के लिए प्रेरित हों और विवाह पश्चात् बच्चों की संख्या सीमित करने को प्रेरित हों।