प्रश्न :- कुल मांग की परिभाषा
दें। इसके प्रमुख तत्त्व क्या है ?
> एक रेखा चित्र की सहायता से कुल मांग की अवधारणा की
व्याख्या करें ?
> संपूर्ण मांग से आप क्या समझते हैं ? संपूर्ण मांग
के घटकों का संक्षेप में वर्णन करें
उत्तर :- कुल ( समग्र) मांग,
वह कुल व्यय है जो लोग एक वित्तीय वर्ष की अवधि के दौरान वस्तुओं
और सेवाओं के खरीदने पर खर्च करने की योजना बनाते हैं। ध्यान देने वाली बात
यह है कि समग्र मांग (AD) को मापने समय हम सदा लोगों द्वारा
किए जाने वाले आयोजित व्यय या प्रत्याशित व्यय के संदर्भ
में बात करते हैं।
कुल मांग के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं
-
1. निजी उपभोग व्यय (C) :- इसमें देश के गृहस्थो/परिवारो द्वारा एक लेखा वर्ष में,
सभी वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए की गई मांग को शामिल किया जाता है।
2. निजी निवेश मांग (I) :- इससे अभिप्राय निजी निवेशकर्ताओं द्वारा
पूंजी पदार्थों की खरीद पर करने वाले व्यय से है।
3 सरकारी व्यय (G) :- इसमें सरकारी उपभोग
में व्यय तथा सरकारी निवेश व्यय दोनों
शामिल होते हैं। सरकारी उपभोग व्यय से अभिप्राय
है सैन्य/सुरक्षा प्रयोग के लिए वस्तुओं
के उपभोग की खरीद पर खर्च/सरकारी निवेश व्यय से अभिप्राय है
सड़कों,डैमो तथा पुलो के निर्माण पर किया जाने वाला व्यय।
4. शुद्ध निर्यात (X - M ) :- विदेशियों द्वारा हमारी वस्तु के लिए किए गए व्यय को अर्थव्यवस्था में कुल व्यय (समग्र मांग) मे जोड़ा जाता है, जबकि आयात
पर किए जाने वाले व्यय को घटाया जाता है।
अतः X - M (शुद्ध निर्यात) को समग्र
मांग (AD) में जोड़ा जाता है।
अतः समग्र मांग के प्रमुख तत्त्व है -
AD = C + I + G + ( X- M) [ खुली अर्थव्यवस्था
में ]
or, AD = C + I [ बन्द अर्थव्यवस्था में
]
जहां , AD = समग्र मांग , C = निजी उपभोग व्यय , I = निजी निवेश व्यय
,
G = सरकारी व्यय, X - M = शुद्ध निर्यात
चित्र में, AD वक्र का बारे से दाये ऊपर की ओर बढ़ना इस
बात को दर्शाता हैं कि जैसे-जैसे आय / रोजगार की मात्रा बढ़ती जाती है, कुल मांग भी बढ़ती
जाती है।
प्रश्न :- प्रवाह तथा स्टाॅक में अन्तर
स्पष्ट करें ?
उत्तर :-
स्टाॅक |
प्रवाह |
स्टाॅक
का अर्थ किसी एक विशेष समय बंदु पर मापी जाने वाली आर्थिक चर की मात्रा है। |
प्रवाह
का अर्थ एक आर्थिक चर की वह मात्रा है जिसे किसी समय अवधि के दौरान मापा जाता है। |
स्टाॅक
का कोई समय परिमाप नहीं होता। |
प्रवाह
का समय परिमाण होता है जैसे प्रति घंटा, प्रतिदिन,प्रतिमास |
स्टाॅक
एक स्थैतिक अवधारणा है। |
प्रवाह
एक गत्यात्मक अवधारणा है। |
उदाहरण- मुद्रा का परिमाण,धन,गोदाम में रखे गेहूं की मात्रा,टंकी में रखा पानी। |
उदाहरण - उपभोग, निवेश,आय,नदी में जल। |
प्रश्न :- उपभोक्ता
फलन की धारणा का उल्लेख करें ?
> उपभोग फलन की अवधारणा का सचित्र
वर्णन करें ?
उत्तर :- लाॅडस जे.एम.केन्स ने अपनी पुस्तक 'The General Theory
of Employment, Interst and Money' में उपभोग फलन का वर्णन किया है।
किसी भी समाज में उपभोग मुख्यता आय पर निर्भर
करता है। उपभोग तथा आय में संबंध
को उपभोग फलन कहते हैं। अतः
C = f ( Y )
"आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग के विभिन्न मात्राओं को प्रकट
करने वाली अनुसूची को उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है।"
अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे राष्ट्रीय आय के स्तर में बढ़ोत्तरी होती
है, उपभोग भी बढ़ता है परंतु उपभोग में वृद्धि राष्ट्रीय आय की वृद्धि की तुलना में कम होती है।
आय(Y)करोड़ रु. |
0 |
60 |
120 |
180 |
240 |
300 |
उपभोग
(C) |
20 |
70 |
120 |
170 |
220 |
270 |
तालिका से स्पष्ट होता है की आय के अनुपात में उपभोग में वृद्धि नहीं होती है।
चित्र से स्पष्ट है की आय में वृद्धि की अपेक्षा उपभोग
में वृद्धि कम होती है
C1
C2 < Y1 Y2
प्रश्न :- चित्र की सहायता से अल्प रोजगार संतुलन की अवधारणा
की व्याख्या करें। उसी चित्र पर पूर्ण रोजगार संतुलन प्राप्त करने के लिए जरूरी अतिरिक्त
निवेश व्यय को दिखाएं ?
उत्तर :- न्यून मांग की स्थिति में अर्थव्यवस्था में समग्र मांग पूर्ण रोजगार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से कम होती है। इसके फलस्वरूप समग्र मांग को उपलब्ध स्तर के बराबर करने के लिए समग्र पूर्ति को कम कर दिया जाता है। अतएव समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति पूर्ण रोजगार से कम स्तर पर बराबर हो जाते हैं। अन्य शब्दों में अर्थव्यवस्था में अपूर्ण या अल्प रोजगार संतुलन पाया जाता है।
चित्र में, पूर्ण क्षमता या पूर्ण रोजगार स्तर पर उत्पादन करने हेतु मांग
के वांछित स्तर को ADF द्वारा दिखाया गया है। यह MF के बराबर है परंतु यदि संतुलन
E बिंदु पर स्थापित हो जाता है तब यह न्यून
मांग की स्थिति अथवा अल्प रोजगार संतुलन की स्थिति होगी।
न्यून मांग =
ADF - ADU = FC
प्रश्न :- अर्थव्यवस्था में निवेश वृद्धि उसके आय के स्तर को कैसे प्रभावित करती है ? एक संख्यात्मक उदाहरण की सहायता
से समझाएं ?
उत्तर :- पीटरसन के अनुसार,"निवेश में उत्पादन के टिकाऊ यंत्रों,
नए निर्माण तथा स्टॉक में होने वाले परिवर्तन के खर्च को शामिल किया जाता है।"
निवेश से आय बढ़ती है।
निवेश पूंजी की सीमांत क्षमता (MEC ) तथा ब्याज की दर के द्वारा निर्धारित होती
है। यदि बाजार में ब्याज की दर पूंजी की सीमांत क्षमता से
अधिक है तो फर्म निवेश नहीं करेगी। जिससे आय स्तर घटेगा। इसके विपरीत स्थिति में फर्मों द्वारा निवेश किया
जाएगा।
प्रो. केन्स के अनुसार निवेश दो तत्वों पर निर्भर
करता है
1. पूंजी की सीमांत क्षमता :- पूंजी की एक अतिरिक्त इकाई लगाने से कुल लागत में जो वृद्धि होती है। उसे पूंजी की सीमांत क्षमता कहते हैं।
MEC=QP
For example
साधन की पूर्ति कीमत (लागत ) = Cr
प्रत्याशित आय = Q
शुद्ध प्रत्याशित आय
= Q - Cr
यदि पूंजीगत साधन का जीवन काल 1 वर्ष मान लें तो
MEC(e)=Q-CrCr=QCr-CrCr=QCr-1
QCr=1+e
Cr=Q1+e
इसी प्रकार यदि पूंजीगत साधन का जीवन काल n वर्ष हो
2. व्याज की दर :- व्याज की दर अधिक होने से निवेश कम होता है जिससे
आय कम होता है तथा ब्याज की दर कम होने से निवेश अधिक होता
है जिससे आय में वृद्धि होती है।
प्रश्न :- एक अर्थव्यवस्था में
समग्र मांग में कमी लाने में रिजर्व नकद
अनुपात तथा व्याज दर की भूमिका की व्याख्या कीजिए ?
> एक अर्थव्यवस्था में समग्र मांग में कमी लाने में
रिजर्व नकद अनुपात तथा व्याज दर की भूमिका
की व्याख्या कीजिए ?
उत्तर :- एक अर्थव्यवस्था में समग्र मांग में कमी लाने में रिजर्व
नगद अनुपात तथा ब्याज दर की भूमिका निम्न है -
रिजर्व नकद अनुपात :- रिजर्व नकद निधि अनुपात से अभिप्राय किसी बैंक की जमा राशि के उस
न्यूनतम प्रतिशत से है जो उसे केन्द्रीय बैंक के पास जमा रखना पड़ता
है। सभी बैंकों को केंद्रीय बैंक के पास अपनी जमा का कुछ प्रतिशत न्यूनतम निधि
अनुपात के रूप में रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि न्यूनतम
निधि 10% है तथा किसी बैंक की जमा 100 करोड़
रुपये है तो उसे 10 करोड़ रुपये केंद्रीय
बैंक के पास जमा कराने पड़ेंगे तथा वह 90 करोड़ रुपये के आधार
पर साख का निर्माण कर सकेगा।
यदि न्यूनतम निधि अनुपात को बढ़ाकर 20% कर दिया जाए तो उस बैंक को
केंद्रीय बैंक के पास 20 करोड़ रुपये जमा कराने पड़ेंगे तथा
अब वह केवल 80 करोड़ रुपये के आधार पर
ही साख का निर्माण कर सकेगा। जब समग्र मांग
में कमी लानी होती है तो केंद्रीय बैंक रिजर्व नकद अनुपात
को बढ़ा देता है।
व्याज दर :- ब्याज दर अधिक होने से साख की मांग कम हो जाती है तथा ब्याज दर कम
होने से साख की मांग बढ़ती है। जब
समग्र मांग में वृद्धि होती है तो इसे कम करने के लिए केंद्रीय बैंक, बैंक दर को बढ़ा
देता है, जिससे व्यापारिक बैंकों को व्याज दर बढ़ाना पड़ता
है और साख की मांग कम हो जाती है।
प्रश्न :- एक अर्थव्यवस्था में समग्र
मांग में कमी लाने में कर और सरकारी व्यय की भूमिका बताइये
?
उत्तर :- समग्र मांग में कमी लाने में कर और सरकारी व्यय की भूमिका निम्न है
सरकारी व्यय :- कल्याणकारी अर्थव्यवस्थाओं में सरकारी व्यय का एक महत्वपूर्ण स्थान है। परंतु
कई बार ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो जाती है जब सार्वजनिक उद्यमों में निरंतर हानियां
होने लगती है जैसे कि भारत में हाल ही के वर्षों
में हुआ है। ऐसी स्थिति में नए निवेश करने के बजाय सरकार विनिवेश
का सहारा ले लेती है। इससे भी समग्र मांग में कमी हो जाती
है।
कर दरों में वृद्धि :- कर दरों में वृद्धि से लोगों की प्रयोज्य आय कम
रह जाती है। यह व्यय करने की क्षमता
को कम करती है, बेशक उनकी व्यय करने की प्रवृत्ति पहले जितनी
ही क्यों न रहे। कम प्रयोज्य आय का अर्थ है समग्र मांग का
निम्न स्तर।
प्रश्न :- (क) परम्परावादी विचारधारा
तथा (ख) केन्सीयन विचारधारा के अनुसार कुल पूर्ति की अवधारणा
की व्याख्या करें ?
उत्तर :- परम्परावादी(प्रतिष्ठित) अवधारणा के अनुसार, कुल पूर्ति,कीमत स्तर से पूर्णतः लोचविहीन होती है अर्थात मूल्य वृद्धि या कमी का पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
चित्र में कीमत P, P1 ,P2 पर
उत्पादन की मात्रा OQ स्थिर है अर्थात पूर्ति वक्र
Y अक्ष के समानान्तर होता है।
केन्सीयन विचारधारा के अनुसार पूर्ण रोजगार के स्तर तक पूर्ति,कीमत के सन्दर्भ में पूर्णतः लोचशील होती है पर पूर्ण रोजगार तक पहुंचने के बाद यह पूर्णतः लोचविहीन हो जाती है। इस विचारधारा के अनुसार फर्म चालू कीमतों पर वस्तु की किसी भी मात्रा उत्पादन करने को तब तक तैयार रहती है जब तक पूर्ण रोजगार की स्थिति प्राप्त नहीं हो जाती।
प्रश्न :- 'ऐच्छिक
बेरोजगारी' तथा 'अनैच्छिक बेरोजगारी'
से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :- ऐच्छिक बेरोजगारी
:- ऐच्छिक बेरोजगारी से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें
एक श्रमिक रोजगार उपलब्ध होने पर भी मजदूरी की वर्त्तमान दर पर काम करने के लिए तैयार
नहीं होता। उदाहरण के लिए,एक डाक्टर का बाजार में प्रचलित
वेतन 10 हजार रुपये प्रतिमाह है परन्तु वह इस वेतन पर काम
करने के लिए तैयार नहीं है,इसे ऐच्छिक बेरोजगारी कहा जाऐगा।
देश में बेरोजगारी के आकार का अनुमान लगाते समय ऐच्छिक बेरोजगारी
को ध्यान में नहीं रखा जाता।
अनैच्छिक बेरोजगारी :- अनैच्छिक बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें लोगों को रोजगार के अवसर
के अभाव में बेरोजगार रहना पड़ता है, यद्यपि
वे मजदूरी की वर्त्तमान दर पर काम करने को तैयार होते हैं।
प्रश्न :- कुल मांग तथा कुल प्रभावपूर्ण मांग की अवधारणाएं किस प्रकार एक दूसरे से भिन्न है ?
उत्तर :- कुल मांग,वह कुल व्यय है जो लोग एक वित्तीय
वर्ष की अवधि के दौरान वस्तुओं और सेवाओं के खरीदने पर खर्च
करने की योजना बनाते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि समग्र मांग को मापते समय हम
सदा लोगों द्वारा किए जाने वाले आयोजित व्यय या प्रत्याशित व्यय के संदर्भ में बात करते हैं।
एक उद्यमी को उत्पादित माल के विक्रय से जिस राशि
के प्राप्त होने की आशा रहती है, उसे कुल मांग फलन या कुल
प्रभावपूर्ण मांग कहते हैं।
प्रश्न :- बचत फलन करता है ? व्याख्या करें
उत्तर :- बचत प्रवृत्ति ( बचत फलन ) एक दिये हुए आय स्तर पर परिवारों की बचत करने की प्रवृत्ति को सूचित करती है। यह बचत और
आय के बीच संबंध प्रदर्शित करती है।
S = f ( Y )