प्रश्न :- केन्स के विनियोग
गुणक की धारणा का उल्लेख करें ?
> 'विनियोग गुणक'
को परिभाषित करें ?
> विनियोग गुणक
करता है ? यह किस प्रकार सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
से संबंधित है ?
उत्तर
:- 1936 में केन्स ने ," The General Theory of
Employment Interest and Money" में गुणक सिद्धांत की विस्तृत
व्याख्या की।
केन्स
के अनुसार,"
गुणक, विनियोग में हुए परिवर्तन के
फलस्वरुप आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है।"
सूत्र के रूप में,
गुणक
सीमांत
उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC ) या सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) का ज्ञान होने पर गुणक का अनुमान लगाया जा सकता है। MPC और गुणक में प्रत्यक्ष
तथा MPS और गुणक में विपरीत संबंध होता है। जब MPC शुन्य होता है तो गुणक एक होगा। इसी प्रकार यदि
MPC एक हो गुणक अनन्त होगा। यदि MPC = 0, तो
प्रश्न :- उपभोग तथा आय में क्या संबंध है?
उत्तर: उपभोग तथा आय के स्तर में संबंध उपयोग
फलन कहलाता है। उपभोग फलन बताता है कि उपभोग आय का फलन है अथवा अन्य शब्दों में उपभोग
आय के स्तर पर निर्भर करता है। लिए उपलब्ध होती है। इसे आगे बढ़ाते हुए ध्यान दो कि
जब एक व्यक्ति को अपनी साधन सेवाओं के लिए आय प्राप्त होती है तो वह समस्त आय को केवल
उपभोग पर खर्च नहीं कर सकता।
यहां, उपभोग (C), आय (Y) का फलन (f) है। ब्रुमैन
के अनुसार, “उपभोग फलन यह बताता है कि उपभोक्ता आय के प्रत्येक सम्भव स्तर पर उपभोग
पदार्थों पर कितना खर्च करना चाहेंगे।” उपभोग फलन कुल उपभोग व्यय तथा राष्ट्रीय आय
के सम्बन्ध को प्रकट करता है।
C = f (Y)
यहां, उपभोग (C), आय (Y) का फलन (f) है।
प्रश्न. अर्थव्यवस्था के संतुलन पर निम्नलिखित परिवर्तनों
का क्या प्रभाव होगा ? रेखाचित्र से स्पष्ट कीजिए
:
a) जब उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC) में
वृद्धि हो
b) स्वायत्त उपभोग में कमी हो ।
उत्तर–
a) जब उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC) में वृद्धि हो - उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC) में वृद्धि का अर्थ है कि लोग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा उपभोग पर खर्च करते हैं और कम बचत करते हैं। MPC में वृद्धि के कारण समग्र मांग में वृद्धि होती है, जिससे अर्थव्यवस्था का संतुलन स्तर बढ़ जाता है।
उपरोक्त रेखाचित्र में, AD वक्र समग्र मांग को दर्शाता है, और AS वक्र समग्र आपूर्ति को दर्शाता है। E1 बिंदु प्रारंभिक संतुलन स्तर को दर्शाता है, जहाँ AD और AS वक्र एक दूसरे को काटते हैं। जब उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC) में वृद्धि होती है, तो AD वक्र ऊपर की ओर खिसक जाता है, जिससे नया संतुलन स्तर E2 पर स्थापित होता है। E2 पर, उत्पादन और रोजगार दोनों ही बढ़ते हैं।
b) स्वायत्त उपभोग में कमी हो- स्वायत्त उपभोग वह उपभोग है जो आय पर निर्भर नहीं होता है। इसमें भोजन, आवास और कपड़े जैसी आवश्यक वस्तुओं पर खर्च शामिल होता है। स्वायत्त उपभोग में कमी के कारण समग्र मांग में कमी होती है, जिससे अर्थव्यवस्था का संतुलन स्तर घट जाता है।
उपरोक्त रेखाचित्र में, AD वक्र समग्र मांग को दर्शाता है, और AS वक्र समग्र आपूर्ति को दर्शाता है। E बिंदु प्रारंभिक संतुलन स्तर को दर्शाता है, जहाँ AD और AS वक्र एक दूसरे को काटते हैं। जब स्वायत्त उपभोग में कमी होती है, तो AD वक्र नीचे की ओर खिसक जाता है, जिससे नया संतुलन स्तर E1 पर स्थापित होता है। E1 पर, उत्पादन और रोजगार दोनों ही कम होते हैं।
प्रश्न. अर्थव्यवस्था के संतुलन पर निम्नलिखित परिवर्तनों
का क्या प्रभाव पड़ेगा ? रेखाचित्र से स्पष्ट कीजिए।
a) उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति में कमी
b) स्वायत्त उपभोग में वृद्धि।
उत्तर-
a) उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति में कमी- उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC) में कमी का अर्थ है कि लोग अपनी आय का एक छोटा हिस्सा उपभोग पर खर्च करते हैं और अधिक बचत करते हैं। MPC में कमी के कारण समग्र मांग में कमी आती है, जिससे अर्थव्यवस्था का संतुलन स्तर कम हो जाता है।
उपरोक्त रेखाचित्र में, AD वक्र समग्र मांग को दर्शाता है, और AS वक्र समग्र आपूर्ति को दर्शाता है। E बिंदु प्रारंभिक संतुलन स्तर को दर्शाता है, जहाँ AD और AS वक्र एक दूसरे को काटते हैं। जब MPC में कमी होती है, तो AD वक्र नीचे की ओर खिसक जाता है, जिससे नया संतुलन स्तर E1 पर स्थापित होता है। E1 पर, उत्पादन और रोजगार दोनों ही कम होते हैं।
b) स्वायत्त उपभोग में वृद्धि- स्वायत्त उपभोग वह उपभोग है जो आय पर निर्भर नहीं होता है। इसमें भोजन, आवास और कपड़े जैसी आवश्यक वस्तुओं पर खर्च शामिल होता है। स्वायत्त उपभोग में वृद्धि के कारण समग्र मांग में वृद्धि होती है, जिससे अर्थव्यवस्था का संतुलन स्तर बढ़ जाता है।
उपरोक्त रेखाचित्र में, AD वक्र समग्र मांग को दर्शाता है, और AS वक्र समग्र आपूर्ति को दर्शाता है। E1 बिंदु प्रारंभिक संतुलन स्तर को दर्शाता है, जहाँ AD और AS वक्र एक दूसरे को काटते हैं। जब स्वायत्त उपभोग में वृद्धि होती है, तो AD वक्र ऊपर की ओर खिसक जाता है, जिससे नया संतुलन स्तर E2 पर स्थापित होता है। E2 पर, उत्पादन और रोजगार दोनों ही बढ़ते हैं।
प्रश्न :- किसी अर्थव्यवस्था
में विनियोग व्यय में 400 करोड़ की वृद्धि की जाती है तथा
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है ,तो
आय एवं बचत में वृद्धि ज्ञात करें ?
उत्तर
:- ∆I
= 400 करोड़ , MPC = 0.8 , ∆Y
= ? , ∆S
= ?
K=11-MPC=11-0.8
K=100.2=5
आय
में वृद्धि (∆Y) = K∆I
= 5 (400 ) = 2000 करोड़
MPS = 1 - MPC = 1 - 0.8 =
0.2
MPS=Δ
बचत में वृद्धि (∆S) = ∆Y ( MPS) = 2000 \frac{0.2}{10} = 400 करोड़
∆Y
= 2000 करोड़ ∆S
= 400 करोड़
प्रश्न :- निम्नलिखित तालिका
से औसत उपभोग प्रवृत्ति और सीमांत
बचत प्रवृत्ति निकालिने ?
Icome |
1000 |
1200 |
Consumption |
700 |
850 |
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) = \frac CY=\frac{700}{1000}=0.7
=\frac{850}{1200}=0.7
MPC=\frac{\Delta C}{\Delta Y}
ΔY = 1200 – 1000 = 200
ΔC = 850 – 700 = 150
MPC=\frac{150}{200}=0.75
MPS = 1 – MPC
MPS = 1 – 0.75 = 0.25
प्रश्न :- निम्नलिखित तालिका
से औसत उपभोग प्रवृत्ति और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
निकालिये ?
Icome |
200 |
240 |
Consumption |
150 |
180 |
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) = \frac CY=\frac{150}{200}=0.75
=\frac{180}{240}=0.75
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति MPC=\frac{\Delta C}{\Delta Y}
ΔY = 240 – 200 = 40
ΔC = 180 – 150 = 30
MPC=\frac{30}{40}=0.75
प्रश्न :- निम्नलिखित तालिका
को पूरा करें ?
आय स्तर (Y) |
उपभोग खर्च (C) |
सीमांत
उपभोग प्रवृत्ति (MPC) |
औसत
उपभोग प्रवृत्ति (APC) |
100 |
100 |
- |
1 |
200 |
190 |
0.9 |
0.95 |
300 |
275 |
0.85 |
0.916 |
400 |
355 |
0.8 |
0.88 |
प्रश्न :- यदि सीमांत उपभोग
प्रवृत्ति 0.6 है तथा विनियोग में वृद्धि 100 करोड़ है,तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि ज्ञात करें ?
उत्तर
:- MPC = 0.6 , ΔI
= 100
ΔY
= K ΔI
\therefore K=\frac1{1-MPC}
=\frac1{1-0.6}=\frac{10}{0.4}=2.5
\therefore\Delta Y ( राष्ट्रीय आय ) = 2.5 (100) = 250 करोड़ रु.
प्रश्न :- निम्नलिखित तालिका को पूरा करे
प्रश्न :- अर्थव्यवस्था
में सामान्य उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि अर्थव्यवस्था में
निवेश व्यय 2000 करोड़ रु. बढ़ाया
जाता है, तो कुल आय तथा उपभोग व्यय की गणना करे ?
उत्तर
:- MPC = 0.75 , ΔI = 2000 करोड़ रु.
, ΔY =? , ΔC
= ?
ΔY
= K ΔI
\therefore K=\frac1{1-MPC}
=\frac1{1-0.75}=\frac{100}{0.25}=4
कुल
आय
(ΔY) = 4 (2000) = 8000 करोड़ रु.
MPC=\frac{\Delta C}{\Delta Y}
ΔC = ΔY
(MPC)
⸫उपभोग व्यय (ΔC) = 8000 (0.75) = 6000 करोड़ रु.
⸫ कुल आय = 8000 करोड़ रु. ;
उपभोग व्यय = 6000 करोड़ रु.
प्रश्न :- एक अर्थव्यवस्था
में सीमांत उपभोक्ता प्रवृत्ति (MPC) 0.8 है।यदि निवेश 400 करोड़ रु. हैं तो आय और उपभोग व्यय में होने वाली कुल वृद्धि
ज्ञात कीजिए ?
उत्तर
:- MPC = 0.8 , ΔI = 400 करोड़ रु.
, ΔY =? , ΔC
= ?
ΔY
= K ΔI
\therefore K=\frac1{1-MPC}
=\frac1{1-0.8}=\frac{10}{0.2}=5
आय
में वृद्धि (∆Y) = K∆I
= 5 (400 ) = 2000 करोड़ रु.
MPC=\frac{\Delta C}{\Delta Y}
ΔC = ΔY (MPC)
⸫ उपभोग व्यय में वृद्धि (ΔC) = 2000 (0.8) =
1600 करोड़ रु.
⸫ आय में वृद्धि = 2000 करोड़ रु. ;
उपभोग व्यय में वृद्धि = 1600 करोड़ रु.
प्रश्न :- आय के
संतुलन स्तर की बचत और निवेश वक्र की सहायता से व्याख्या करें ?
> " निवेश
और बचत सदैव समान होते हैं।" व्याख्या करें ?
> एक अर्थव्यवस्था
में संतुलन आय अथवा उत्पादन स्तर को रेखाचित्र द्वारा बचत = निवेश दृष्टिकोण का प्रयोग करते हुए
व्याख्या करें ?
> 'से' के नियमानुसार
कैसे कुल पूर्ति और कुल मांग का समान होना अनिवार्य है ?
उत्तर :- आय के जिस स्तर पर समग्र मांग (AD), समग्र पूर्ति
(AS) के बराबर होती है। उस आय को संतुलन आय कहते हैं।
हम जानते हैं कि,
कुल पूर्ति = आय = उपभोग
+ बचत
AS = Y = C + S
कुल मांग = उपभोग व्यय + निवेश
व्यय
AD = C + I
संतुलन तब होता है जब
AS = AD
C + S = C + I
S = I
इस प्रकार AS और AD की समानता
में ही S और I की समानता निहित है।
इस प्रकार S और I की समानता में ही AS और AD की समानता निहित है।
चित्र
में,
Q बिंदु पर संतुलन हो रहा है। जहां नियोजित बचत, नियोजित निवेश के बराबर है।
अतः आय , उत्पादन, रोजगार OL निर्धारित होती है।
तालिका द्वारा बचत तथा निवेश
में समानता के रूप में संतुलन आय को दिखाया गया है।
आय (Y) Y = C = I & Y =C +S |
उपभोग ( C ) |
बचत (S) Y-C |
निवेश (I) |
बचत और निवेश (S & I) |
0 |
50 |
-50 |
100 |
I > S |
100 |
100 |
0 |
100 |
I > S |
200 |
150 |
50 |
100 |
I > S |
300 |
200 |
100 |
100 |
I = S |
400 |
250 |
150 |
100 |
I < S |
संतुलन
S = I = 100 पर स्थापित होता है। Y का संतुलन
स्तर = 300
प्रश्न :- बाजार
में माँग आधिक्य की स्थिति कब उत्पन्न होती है ?
उत्तर : मांग आधिक्य एक ऐसी स्थिति है जब एक दी गई कीमत पर किसी वस्तु की मांग की
मात्रा उसकी
आपूर्ति की मात्रा से अधिक होती है ।
प्रश्न :- मंदी
से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर : 1974 में अमेरिका के अर्थशास्त्री जूलियस सिस्किन ने मंदी को
लेकर एक विवरण दिया था, उन्होंने कहा कि ग्रोथ में लगातार दो तिमाहियों तक गिरावट
आए तो इसे मंदी माना जा सकता है।
आर्थिक गतिविधियों में इस तरह की मंदी कुछ तिमाहियों तक बनी रह सकती है जिससे
अर्थव्यवस्था के विकास में पूरी तरह से बाधा उत्पन्न होती है। ऐसे में आर्थिक संकेतक जैसे
जीडीपी, कॉर्पोरेट मुनाफा, रोजगार आदि में गिरावट आती है।
प्रश्न :- एक रेखाचित्र
की सहायता से स्फीतिक अन्तराल की
धारणा की व्याख्या करें। इसे कम करने के दो उपाय बताये ?
>' मांग आधिक्य' की परिभाषा दीजिए। इसे ठीक करने के उपायों का उल्लेख करें
?
उत्तर :- ' मांग आधिक्य' वह स्थिति है जिसमें समग्र मांग (AD) अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार
के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति (AS) से अधिक होती है। किसी अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार संतुलन की स्थिति को बनाए
रखने के लिए जितनी समग्र मांग की आवश्यकता पड़ती है उससे अधिक समग्र मांग को स्फीतिक अंतराल कहा जाता है।
AD > AS
चित्र
में
समग्र मांग को OY अक्ष पर एवं आय/उत्पादन/रोजगार को OX अक्ष पर दर्शोया गया है।
ADF समग्र मांग के पूर्ण रोजगार स्तर को प्रकट
करता है। यह ME के बराबर है। ADE
द्वारा पूर्ण रोजगार स्तर से अधिक आयोजित समग्र मांग को दर्शाया
जाता है। यह MF के बराबर है। अतः
ADE तथा ADF का अन्तर
अधि मांग या स्फीतिक अंतराल को प्रकट करता है।
अधिमांग = स्फीतिक अंतराल = ADE - ADF = FE
ठीक करने के उपाय
अधिमानी या
स्फीतिक अंतराल को ठीक करने के निम्न
उपाय है
(A) राजकोषीय नीति
:-
इसके अंतर्गत निम्न उपाय हैं
1. करो में वृद्धि :- इसके
फलस्वरूप लोगों की क्रय शक्ति कम होगी
2. सार्वजनिक व्यय में कमी
:- सरकार को विमर्श मदो पर अपने व्यय में कमी करनी चाहिए
- ( a) स्वास्थ्य तथा शिक्षा (b) सार्वजनिक
निर्माण कार्य (c) आर्थिक सहायता इत्यादी
3. घाटे की वित्त व्यवस्था
में कमी :- इसके अंतर्गत कम मात्रा में नए नोट छापने चाहिए।
4. सार्वजनिक ऋण में वृद्धि
:- इससे लोगों के पास क्रय शक्ति कम हो जाती है
(B) मौद्रिक नीति :- इसके अंतर्गत
निम्न उपाय हैं
1. बैंक दर में वृद्धि की जाती
है जिससे लोग कम उधार ले तथा मांग में कमी हो।
2. सरकार खुले बाजार में प्रतिभूतियां
बेचने लगती है जिससे लोगों की क्रय शक्ति कम हो जाती है।
3. नगद निधि अनुपात को बढ़ा
दिया जाता है जिससे साख का विस्तार कम हो जाता है।
4. तरलता अनुपात को बढ़ा दिया
जाता है जिससे बैंकों की उधार देने की शक्ति कम हो जाती है।
5. केंद्रीय बैंक द्वारा व्यापारिक
बैंकों को साख का संकुचन करने की सलाह दी जाती है।
प्रश्न :- औसत उपभोग
प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति में क्या संबंध है ? क्या औसत बचत प्रवृत्ति (APS) का मूल्य
ऋणात्मक हो सकता है ? यदि हां,तो कब
उत्तर :- औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा औसत बचत प्रवृत्ति
(APS) के सम्बन्ध को निम्नलिखित समीकरण की सहायता से स्पष्ट किया
जा सकता है
APC=\frac CYand\;APS=\frac SY
हम
जानते हैं
कि Y = C + S
APC+APS=\frac CY+\frac SY
=\frac{C+S}Y=\frac YY=1
APC + APS = 1
APC = 1 - APS
APS = 1 - APC
इस संबंध से यह पता चलता है कि औसत बचत प्रवृत्ति का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है, यदि औसत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई से अधिक हो या उपभोग आय से अधिक हो। जब
उपभोग आय से कम होता है तो औसत उपभोग प्रवृत्ति 1 से कम होती
है तथा औसत बचत प्रवृत्ति धनात्मक होती है।
प्रश्न :- सीमांत उपभोग प्रवृत्ति एवं सीमांत बचत की प्रवृत्ति के बीच संबंध
की व्याख्या करें ?
> उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC) और बचत की
सीमांत प्रवृत्ति (MPS) को परिभाषित कीजिए । स्पष्ट कीजिए कि MPC + MPS = 1.
उत्तर : आय में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरुप उपभोग में होने वाले परिवर्तन के अनुपात को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
MPC=\frac{\Delta C}{\Delta Y}
∆C = उपभोग में परिवर्तन , ΔY = आय में परिवर्तन
आय में होने वाले परिवर्तन (∆Y) के कारण बचत में होने वाले परिवर्तन (∆C) के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) कहते हैं।
MPS=\frac{\Delta S}{\Delta Y}
ΔS = बचत में परिवर्तन ,
ΔY = आय में परिवर्तन
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) तथा सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) के सम्बंध को निम्नलिखित समीकरण की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।
हम जानते हैं कि ΔY = ΔC + ΔS
\therefore MPC+MPS=\frac{\Delta C}{\Delta Y}+\frac{\Delta S}{\Delta Y}
=\frac{\Delta C+\Delta S}{\Delta Y}+\frac{\Delta Y}{\Delta Y}=1
⸫ MPC + MPS = 1
MPC = 1 - MPS
MPS = 1 - MPC
समीकरण से स्पष्ट है कि सीमांत बचत प्रवृत्ति तथा सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का योग सदैव 1 के बराबर होता है।
MPS तथा MPC के उपर्युक्त संबंध से स्पष्ट है कि आय के दो मुख्य कार्य है - उपभोग तथा बचत। उपभोग और बचत मिलकर आय के बराबर होते हैं।
प्रश्न :- सीमांत बचत की प्रवृत्ति की व्याख्या रेखाचित्र
के सहारे कीजिए ?
उत्तर
:- आय में होने वाले परिवर्तन (∆Y) के कारण बचत में होने वाले
परिवर्तन (∆C) के अनुपात को सीमांत बचत
प्रवृत्ति (MPS) कहते हैं।
MPS=\frac{\Delta S}{\Delta Y}
ΔS = बचत में परिवर्तन ,
ΔY = आय में परिवर्तन
तालिका
से
आय(Y) |
आय में परिवर्तन (∆Y) |
बचत (S) |
बचत में परिवर्तन (∆S) |
MPS |
100 |
- |
20 |
- |
- |
200 |
100 |
80 |
60 |
60÷100=0.6 |
300 |
100 |
150 |
70 |
70÷100=0.7 |
चित्र
में;
OX अक्ष पर आय तथा OY अक्ष पर बचत को प्रकट किया गया है। SS बचत
वक्र है। इस वक्र के बिंदु A से ज्ञात
होता है कि सीमांत बचत प्रवृत्ति
MPS=\frac{\Delta S}{\Delta Y}
MPC=\frac{60}{100}=0.6 है।
प्रश्न :- निजी विनियोग
को प्रोत्साहित करने के विभिन्न उपायों का वर्णन करें ?
> निवेश के निर्धारण के तत्त्व का वर्णन करें
?
> निवेश को समझने के तत्त्व का वर्णन करें
?
उत्तर
:- निजी विनियोग को प्रोत्साहित करने के विभिन्न उपाय निम्नलिखित
है
1. निवेश से प्राप्त आय (अथवा
प्रत्याशित प्रतिफल ) :- निवेश से अभिप्राय उस
व्यय से है जो उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह केवल तभी किया जाएगा
यदि इससे अतिरिक्त आय होगी। उत्पादक अधिक आय तब पैदा करेंगे जब वे अधिक मात्रा में
बेचने में सफल होंगे। इसके लिए आवश्यक है कि बाजार में वस्तुओं तथा सेवाओं की मांग
में वृद्धि हो।
2. निवेश की लागत :- इसके
दो भाग हैं (a) प्लांट / साज - सामान की लागत, जिसे प्लांट की पूर्ति कीमत
भी कहा जाता है (b) प्लांट तथा साज - सामान को खरीदने हेतु उधार ली गई राशि पर ब्याज की दर
विनियोग
को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक है कि लागत तथा ब्याज की दर कम से कम हो
3. व्यवसायिक आशाएं :- भविष्य
में लाभ कमाने के लिए वर्तमान में किया गया व्यय ही निवेश है। किंतु भविष्य अनिश्चित
है। यही व्यवसायिक आशाओं का महत्व है। तेजी की आशाएं निवेश को उत्साहित करती है।
प्रश्न :- सीमांत उपभोग की प्रवृत्ति और सीमांत बचत
की प्रवृत्ति के बीच अंतर को स्पष्ट करें ?
उत्तर
:- सीमांत उपभोग प्रवृत्ति :- आय
में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरुप उपभोग में होने वाले परिवर्तन के अनुपात
को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
MPC=\frac{\Delta C}{\Delta Y}
∆C
= उपभोग में परिवर्तन , ΔY
= आय में परिवर्तन
आय
(Y)
|
उपभोग
(C)
|
MPC=\frac{\Delta C}{\Delta Y} |
100 |
100 |
- |
200 |
190 |
0.9 |
300 |
275 |
0.85 |
400 |
355 |
0.8 |
सीमांत बचत प्रवृत्ति :- कीजर के अनुसार ," सीमांत बचत प्रवृत्ति
बचत में होने वाले परिवर्तन तथा आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
है।"
आय
(Y)
|
बचत
(S)
|
MPS=\frac{\Delta S}{\Delta Y} |
100 |
20 |
- |
200 |
80 |
0.6 |
300 |
150 |
0.7 |
प्रश्न :- निवेश मांग फलन क्या होता है
उत्तर
:- निवेश से अभिप्राय उस व्यय से है जिसके द्वारा पूंजीगत पदार्थों जैसे - मशीनों,
कारखानों, मकानों आदि में वृद्धि की जाती है। इसके द्वारा उत्पादकों के पूंजी के स्टांक
में वृद्धि होती है, अतः इसे पूंजी निर्माण भी कहा जाता है।
दूसरे
शब्दों में - यह आय / रोजगार के विभिन्न स्तरों पर निवेश का व्यवहार
है।
प्रश्न :- प्रेरित निवेश किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्रेरित निवेश वह निवेश है जो आय तथा लाभ की मात्रा पर निर्भर करता है। यह निवेश आय
तथा लाभ में होने वाले परिवर्तनों से प्रेरणा प्राप्त करता है। आय तथा लाभ के बढ़ने
की सम्भावना से यह बढ़ता है तथा इसमें होने वाली कमी से यह कम होता जाता है। प्रेरित
निवेश लाभ या आय सापेक्ष होता है।
प्रश्न :- स्वायत्त / स्वतंत्र निवेश क्या है
?
उत्तर: जो आय के स्तर, ब्याज दर और लाभ की दर
में परिवर्तन पर निर्भर नहीं है ।जिसका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता।
प्रश्न :-निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट
कीजिए :
a) प्रत्याशित उपभोग और यथार्थ उपभोग
b) प्रत्याशित निवेश तथा यथार्थ निवेश।
a)
उत्तर - प्रत्याशित उपभोग वह होता है जो हम सोचते हैं या
अपेक्षा करते हैं कि हमें किसी वस्तु या अनुभव से मिलेगा। यदि हम उन्हें प्राप्त
नहीं करते हैं, तो यह हमें निराशा में डाल सकता है।
यथार्थ उपभोग, दूसरी ओर, वह होता है जो हम वास्तव में अनुभव करते हैं। यह
उपभोग हमें उस समय मिलता है जब हम किसी वस्तु या अनुभव का सामना करते हैं, और यह
आमतौर पर हमारी अपेक्षाओं और सोच से अलग होता है।
b)
उत्तर - प्रत्याशित
अथवा इच्छित निवेश वह निवेश है जो निवेशकर्ता किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए
आय तथा रोजगार के विभिन्न स्तरों पर करने की इच्छा रखते हैं।
यथार्थ अथवा वास्तविक निवेश वह निवेश है, जो निवेशकर्ता किसी
विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आय तथा रोजगार के विभिन्न स्तरों पर वास्तव में
करते हैं।
उदाहरण-मान लीजिए कि एक उत्पादक वर्ष के अंत तक अपने भंडार में
200 ₹ के मूल्य की वस्तु जोड़ने की योजना बनाता है। अतः उस वर्ष उसका प्रत्याशित निवेश
200 ₹ है। किंतु बाजार में उसकी वस्तुओं की माँग में अप्रत्याशित वृद्धि होने के कारण
उसकी विक्रय में उस परिमाण से अधिक वृद्धि होती है, जितना कि उसने बेचने की योजना बनाई
थी। इस अतिरिक्त माँग की पूर्ति के लिए उसे अपने भंडार से 60₹ के मूल्य की वस्तु बेचनी
पड़ती है। अतः वर्ष के अंत में उसकी माल-सूची में केवल 200 ₹ - 60 ₹ = 140 ₹ की वृद्धि
होती है। इस प्रकार, उसको प्रत्याशित निवेश 200 ₹ है, जबकि उसका यथार्थ निवेश केवल
140 ₹ है।
प्रश्न :- आय एवं रोजगार को निर्धारित करने वाले विभिन्न विधियों की विवेचना
करें ?
उत्तर
:- अर्थव्यवस्था में आय / उत्पादन,
रोजगार को निर्धारित करने की दो विधियां हैं
1.
समग्र पूर्ति = समग्र मांग दृष्टिकोण ( AS = AD )
2.
बचत = निवेश दृष्टिकोण (S = I )
⸪
AS = Y = C + S
AD =
Y = C + I
संतुलन तब होता है जब
उपभोग + बचत = उपभोग व्यय + निवेश
व्यय
[ C + S ] = [ C + I ]
या, [ समग्र पूर्ति = समग्र मांग ]
चित्र
में,
AS और AD तथा S और I में एक साथ संतुलन
को दिखाया गया है। Q बिंदु संतुलन
बिंदु है, जहां, AD = AS और S =
I है।
OL
आय, उत्पादन तथा रोजगार का संतुलन स्तर है।
AS
और AD की समानता में ही S और I की समानता निहित है। इसी प्रकार S
और I की समानता में ही AS और AD की समानता निहित है।
प्रश्न :- अधिक मांग किसे
कहते हैं ? उत्पाद तथा कीमतों पर इसका प्रभाव कैसा होता है
?
उत्तर
:- अधिक मांग वह स्थिति है जिसमें समग्र मांग अर्थव्यवस्था में पूर्ण
रोजगार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से अधिक होती है
AD > AS
अधिक
मांग या स्फीतिक अंतराल वह स्थिति है जिसमें अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के
प्रवाह में बिना वृद्धि हुए, व्यय में वृद्धि हो जाती है। यह वह स्थिति है जिसमें उपलब्ध
साधनों पर बढ़ते दबाव के कारण उत्पादन लागत में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है। इसके
अनुसार अंतिम वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगती है और अर्थव्यवस्था मजदूरी कीमत जाल की
स्थिति में चली जाती है, जहां कीमत बढ़ने से मजदूरी बढ़ने की प्रवृत्ति और मजदूरी बढ़ने
से कीमतों में बढ़ने की प्रवृत्ति नजर आती है।
प्रश्न :- औसत बचत प्रवृत्ति (APS) और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) में क्या अंतर है
?
उत्तर :- औसत बचत प्रवृत्ति एक अर्थव्यवस्था के आय तथा रोजगार के एक दिए हुए स्तर पर समग्र बचत और समग्र आय का अनुपात है।
आय में होने वाले परिवर्तन (∆Y) के कारण बचत में होने वाले परिवर्तन (∆C) के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
प्रश्न :- व्यापार चक्र
को परिभाषित करें ?
उत्तर :- किसी अर्थव्यवस्था में एक निश्चित समय के बाद मंदी तथा तेजी के रूप में होने वाले परिवर्तनों को व्यापार चक्र कहते हैं।
चित्र
में
EE रेखा पूर्ण रोजगार को प्रकट कर रही है जो कि किसी अर्थव्यवस्था
की आदर्श स्थिति होती है क्योंकि इस स्थिति में सभी साधनों
का पूर्ण उपयोग हो रहा होता है।
ABCD बिंदु क्रमशः अर्थव्यवस्था में समृद्धि, प्रतिसार, अवसाद
तथा पुनः समृद्धि को दर्शाता है।
सैम्युल्सन ने व्यापार चक्र के लिए निम्न समीकरण
प्रस्तुत किए हैं -
Ct
= b Yt-1 ------------------------(1)
It = IIt + IIIt
-----------------------(2)
IIt
= K ( Ct – Ct-1 ) ----------------(3)
IIIt
= G ……............................(4)
संतुलन
करने पर
Yt
= Ct + It
Ct
, It का मान बैठाने पर
Yt
= b Yt-1 + KCt – KCt-1 + G
Yt
= b Yt-1 +Kb Yt-1 - Kb Yt-2 + G
Yt
= b Yt-1 (1 + K ) - Kb Yt-2 + G
Yt
- b Yt-1 (1 + K ) + Kb Yt-2 = G
Try
Ȳ for all Y
Ȳ
- bȲ (1 + K ) + KbȲ = G
Ȳ
[ 1 – b (1 + K ) + Kb ] = G
Ȳ
[ 1 – b – Kb + Kb ] = G
\therefore\overline Y=\frac G{1-b} ...............(5)
समीकरण
(5) से पता चलता है कि गुणक - त्वरण अन्तक्रिया के कारण व्यापार चक्र चक्रीय ढ़ग से बढ़ती घटती रहती है।
प्रश्न :- एक अर्थव्यवस्था में विनियोग 1000 करोड़ रुपये
से बढ़कर 1200 करोड़ रुपये हो जाते
है ; जिससे कुल आय में 800 करोड़
रुपये की वृद्धि होती है। सीमांत
उपभोग प्रवृत्ति (MPC) की गणना करे ?
उत्तर
:- विनियोग में परिवर्तन (∆I)
= 1200 - 1000 = 200 करोड़ रुपये
आय (∆Y)
= 800
K=\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{800}{200}=4
K=\frac1{1-MPC}= K – K ( MPC ) = 1
or
, 4 – 4 ( MPC ) =
1
or
, - 4 ( MPC ) = 1-4
प्रश्न :- मुद्रा स्फीति
की अवधारणा को स्पष्ट करें ?
उत्तर
:- प्रो. क्राउथर के अनुसार
," मुद्रास्फीति वह स्थिति है जिसमें मुद्रा का मूल्य गिरता
है अथवा वस्तु का मूल्य बढ़ता है।"
मुद्रास्फीति के कारणो की व्याख्या
के लिए कई सिद्धांत दिए गए हैं
1. मांग प्रेरित स्फीति :- जब मुद्रा की मात्रा बढ़ती है तो मांग में वृद्धि होती है किंतु वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा में वृद्धि नहीं होती है। जिससे कीमत स्तर में वृद्धि होती है।
AS
समस्त पूर्ति वक्र है, जो स्थिर है एवं
AD1, AD2 , AD3 समस्त मांग वक्र है। मांग बढ़ने से मूल्यों में क्रमशः P1 , P2 , P3
की वृद्धि होती जाती है।
2. लागत प्रेरित स्फीति :- लागत
में हुई वृद्धि के कारण पैदा हुई स्फीति को लागत प्रेरित स्फीति कहते हैं। यह दो प्रकार
की होती है - (a) मजदूरी प्रेरित और (b) लाभ प्रेरित
मुद्रा
स्फीति के कारण
(A)
मांग में वृद्धि लाने वाले कारक :- (1) जनसंख्या
में वृद्धि (2) कर नीति (3) काला
धन (4) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि (5) आंतरिक ऋण की अदायगी।
(B)
वस्तु एवं सेवाओं की पूर्ति में कमी लाने वाले कारक :- (1) प्राकृतिक
कारण (2) उत्पादन में रुकावट (3) जमाखोरी।
(C)
लागत में वृद्धि लाने वाले कारण :- (1) मजदूरी दर में वृद्धि
(2) लाभ की सीमाओं में बढ़ोतरी।
मुद्रास्फीति के नियंत्रण
के उपाय
(A)
मौद्रिक नीति :- (1) मुद्रा की मात्रा को कम करना (2) बैंक दर की नीति (3) खुले बाजार
की क्रियाएं (4) उच्चतर प्रारक्षण अनुपात (5) प्रत्यक्ष कार्यवाही।
(B)
वित्तीय नीति :- (1) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि (2) करो में वृद्धि (3) सरकारी व्यय में कटौती
(4) संतुलित बजट की नीति
(C)
गैर मौद्रिक नीति :- (1) उत्पादन में वृद्धि (2) मजदूरी नीति
प्रश्न :- यदि , ∆I = 400 रु. , ∆Y =1600 रु. सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मान निकाले ?
उत्तर :-
K=\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{1600}{400}=4
or, \therefore K=\frac1{1-MPC}
or
, 4 – 4 ( MPC ) = 1
or
, - 4 ( MPC ) = 1-4
or
, - 4 ( MPC ) = - 3
\therefore MPC=\frac3{4}=0.75
प्रश्न :- यदि अर्थव्यवस्था
में आय 2000 करोड़ रुपये है तथा सीमांत
उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.75 है तो 200 करोड़ रुपये के निवेश की वृद्धि करने पर कुल राष्ट्रीय
आय में बढ़ोतरी क्या होगी ?
उत्तर
:- Y = 2000 , MPC = 0.75 , ∆I = 200 करोड़ रु.
K=\frac1{1-MPC}=\frac1{1-0.75}=4
राष्ट्रीय
आय में वृद्धि (∆Y) = K∆I
= 4 (200 ) = 800 करोड़ रु. होगी।
प्रश्न :- यदि आय
स्तर 1000 करोड़ रु. है तथा MPC = 0.50 है तो 200 करोड़ रु. के निवेश की वृद्धि करने पर अर्थव्यवस्था की आय में कुल कितनी वृद्धि होगी ?
उत्तर - यदि आय स्तर 1000 करोड़ रू०
MPC = 0.50
∆I = 200 करोड़ रू०
K=\frac1{1-MPC}=\frac1{1-0.5}=2
K=\frac{\Delta Y}{\Delta I}
2=\frac{\Delta Y}{\200}
∆Y = 400
कुल आय में वृद्धि = 1000 + ∆Y = 1000+400 = 1400 करोड़ रू०
प्रश्न :- कीन्स की क्या
मान्यताएं थी ?
उत्तर :- कीन्स की मान्यताएं
निम्नलिखित है
1. उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति
स्थिर रहनी चाहिए।
2. स्वायत्त विनियोग में परिवर्तन
होना चाहिए।
3. चूंकि
आय बढ़ने से प्रभावपूर्ण मांग में वृद्धि होती है अतः बाजार में उपभोग वस्तुएं
उपलब्ध रहनी चाहिए।
4. विनियोग में वृद्धि के फलस्वरुप
उत्पादन बढ़ाने के लिए अन्य उत्पादन के साधन उपलब्ध रहने चाहिए।
5. कीमतो
में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
प्रश्न :- यदि गुणक
का मूल्य 5 है तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
का मूल्य बताइए ?
उत्तर :- K = 5 MPC = ?
\therefore K=\frac1{1-MPC}
प्रश्न :- यदि किसी अर्थव्यवस्था में उपभोग फलन C = 150+ 0.6 Y है, तो MPC तथा गुणक का मान ज्ञात कीजिए।
उत्तर : उपभोग फलन C = 150+ 0.6 Y
अत : MPC = 0.6
गुणक K=\frac1{1-MPC}=\frac1{1-0.6}
K=\frac{10}{0.4}=2.5
अत : MPC = 0.6 और गुणक (K) = 2.5 होगा।
प्रश्न :- यदि किसी अर्थव्यवस्था में उपभोग फलन C = 25 + 0.6Y है, तो गुणक के मान की गणना कीजिए।
उत्तर - उपभोग फलन C = 25 + 0.6Y
MPC = 0.6
K=\frac1{1-MPC}=\frac1{1-0.6}
K=\frac{10}{0.4}= 2.5
प्रश्न :- मितव्ययिता के विरोधाभास की व्याख्या कीजिए।
उत्तर -मितव्ययिता के विरोधाभास से अभिप्राय यह है कि यदि अर्थव्यवस्था के सभी लोग अपनी आय से बचत के अनुपात को बढ़ा दें तो अर्थव्यवस्था में बचत के कुल मूल्य में वृद्धि नहीं होगी। इसका कारण यह है कि सीमांत बचत प्रवृत्ति के बढ़ने से सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है। और निवेश गुणक भी कम हो जाता है। फलस्वरूप आय में वृद्धि की दर भी कम हो जाती है। इस प्रकार बचत बढ़ाने से कुल बचत का बढ़ना आवश्यक नहीं है। नीचे दिए चित्र में स्पष्ट है कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति के कम SS से S1 S1 पर खिसक गया। फलस्वरूप राष्ट्रीय आय भी घटकर Oy1 से Oy2 हो जाती है। जिससे बचत फिर कम हो जाएगी। इस प्रकार बचत में वृद्धि नहीं हो सकेगी। मितव्ययिता से हम आय बढ़ाना चाहते थे, परंतु यह विरोधाभास है कि इससे आय बढ़ने की बजाय कम हो गई।