प्रश्न :- मुद्रा की परिभाषा दीजिए। मुद्रा के कार्यों का संक्षिप्त विवरण दें ?
> मुद्रा के प्राथमिक, गौण तथा आकस्मिक कार्यों का उल्लेख करें ?
उत्तर
:- क्राउथर के अनुसार,
“मुद्रा वह वस्तु है जो विनिमय के
माध्यम के रूप में सामान्यतया स्वीकारी जाती है और साथ ही साथ में मुद्रा के माप और
मुद्रा के संग्रह का कार्य भी करे।”
प्रो.
किनले ने मुद्रा के कार्यो को निम्नलिखित तीन वर्गो में
विभाजित किया है -
(A) प्राथमिक या मुख्य कार्य :- इसे आधारभूत अथवा मौलिक कार्य भी कहते
हैं।
मुद्रा के मुख्य कार्य दो है -
1. विनिमय का माध्यम :- वस्तु
विनिमय प्रणाली की एक मुख्य कठिनाई यह थी कि उनमें आवश्यकताओ के दोहरे संयोग का अभाव पाया
जाता था। मुद्रा ने इस कठिनाई को दूर कर दिया है। आज किसी वस्तु को बेचकर मुद्रा प्राप्त कर ली जाती है और उस मुद्रा
से आवश्यकतानुसार बाजार में वस्तुएं खरीदी जाती है। अर्थात
मुद्रा विनिमय का माध्यम है।
2. मूल्य का मापक :- मुद्रा
लेखे की इकाई के रूप में मूल्य का मापदंड करती है लेखे की इकाई से अभिप्राय यह है कि
प्रत्येक वस्तु तथा सेवा का मूल्य मुद्रा के रूप में मापा जाता है। मुद्रा के द्वारा सभी वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य अथवा कीमतों
को मापा जा सकता है तथा व्यक्त किया जा सकता है।
(B) गौण अथवा सहायक कार्य :- इस श्रेणी में
उन कार्यों को सम्मिलित करते हैं जो प्राथमिक कार्यों के सहायक है। इसमें निम्न कार्य है -
1. स्थगित भुगतानो का
मान :- जिन लेन-देनो का भुगतान तत्काल न करके भविष्य
के लिए स्थगित कर दिया जाता है उन्हें स्थगित भुगतान कहा जाता है।
मुद्रा को स्थगित भुगतानो का मान इसलिए माना गया है
क्योंकि - (क) अन्य किसी वस्तु की
तुलना में इसका मूल्य स्थिर रहता है (ख) इसमें सामान्य स्वीकृति
का गुण पाया जाता है (ग) अन्य वस्तुओं की तुलना में यह अधिक टिकाऊ है (घ) स्थगित भुगतानो के मान के रूप में कार्य करके मुद्रा पूंजी
निर्माण में सहायक होती है।
2. मूल्य का संचय :- मुद्रा के मूल्य संचय
से अभिप्राय यह है कि मुद्रा
को वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए खर्च करने का तुरंत कोई विचार नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आय का कुछ भाग भविष्य के लिए बचाता है। इसे ही मूल्य का संचय कहा जाता है। मुद्रा के
रूप में मूल्य का संचय करना सरल होता है क्योंकि (क) मुद्रा को सब लोग स्वीकार कर लेते हैं (ख) मुद्रा
के मूल्य में अधिक कमी या वृद्धि नहीं होती है (ग) मुद्रा का संग्रह सरलता से किया जा सकता
है (घ) मुद्रा के रूप में बचत करने
में बहुत कम स्थान की आवश्यकता होती है।
3. मूल्य का हस्तांतरण
:- मुद्रा
मूल्य के हस्तांतरण का कार्य करती है, क्योंकि इसके माध्यम से कोई व्यक्ति अपनी
क्रय शक्ति दूसरे को दे सकता है अथवा एक स्थान पर अपनी अचल
संपत्ति को बेच कर दूसरे स्थान पर संपत्ति खरीद सकता है।
(C) आकस्मिक कार्य :- मुद्रा के आकस्मिक कार्य निम्नलिखित है
(a) सामाजिक आय का वितरण (b) साख निर्माण का आधार (c) अधिकतम संतुष्टि का माप (d) राष्ट्रीय आय का वितरण (e) शोधन क्षमता की गारंटी (f) पूंजी की तरलता में वृद्धि।
प्रश्न :- मुद्रा
विनिमय का माध्यम है। स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : मुद्रा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य विनिमय का माध्यम है। इसका
अभिप्राय यह है कि एक व्यक्ति अपनी वस्तुओं को बेचकर मुद्रा प्राप्त करता है तथा
मुद्रा देकर अन्य वस्तुओं को खरीदता है। मुद्रा
क्रय तथा विक्रय दोनों में ही एक मध्यस्थ का कार्य करती है। विनिमय के माध्यम के
रूप में मुद्रा ने वस्तु विनिमय प्रणाली की मुख्य कठिनाई अर्थात आवश्यकताओं के दोहरे
सहयोग के अभाव को समाप्त कर दिया है। इसके फलस्वरूप विनिमय का कार्य सरल और सुगम हो
गया है तथा समय और परिश्रम की बहुत अधिक बचत हुई है। मुद्रा के विनिमय के माध्यम के
रूप में कार्य करने का अभिप्राय यह है कि इसे लोग सामान्य रूप से स्वीकार करते हैं। इसलिए
मुद्रा के द्वारा वे अपनी इच्छा की विभिन्न वस्तुएं खरीद सकते हैं अर्थात बहुपक्षीय
व्यापार कर सकते हैं। इस प्रकार मुद्रा लोगों को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करती है
तथा बाजार का विस्तार तथा प्रतियोगिता बढ़ाकर बाजार संयंत्र को निपुण बनाती है।
प्रश्न :- "मुद्रा लेखे की इकाई का कार्य करती है।" इस कथन से
क्या तात्पर्य है ?
उत्तर - मुद्रा लेखे की इकाई
के रूप में मूल्य का मापदंड करती है लेखे की इकाई से अभिप्राय यह है कि प्रत्येक वस्तु
तथा सेवा का मूल्य मुद्रा के रूप में मापा जाता है। मुद्रा के द्वारा सभी वस्तुओं तथा
सेवाओं के मूल्य अथवा कीमतों को मापा जा सकता है तथा व्यक्त किया जा सकता है।
प्रश्न :- बैंक की जमाओं
के विभिन्न रूपों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्रो, हाम के अनुसार बैंकों की जमाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(A)
प्राथमिक जमाएँ - प्राथमिक जमाएँ वे जमाएँ हैं जो जमाकर्ताओं
द्वारा बैंक में वास्तुविक मुद्रा के रूप में ( अर्थात् नकदी में) जमा की जाती हैं।
दूसरे शब्दों में, जब कोई खाताधारक बैंक को नकदी देकर अपने खाते में धनराशि जमा करता
है, तब बैंक को मिलने वाली ये नकदी बैंक की नकद जमाएँ होती हैं।
उदाहरण
के लिए, यदि बैंक का ग्राहक दिनेश अपने बैंक भारतीय स्टेट बैंक में अपने बचत या किसी
अन्य खाते में ₹ 10,000 नकद जमा करता है, तब यह
₹ 10,000 भारतीय स्टेट बैंक के लिए उसकी नकद अथवा प्राथमिक जमाएँ हैं।
(B)
व्युत्पन्न अथवा गौण जमाएँ - इसके विपरीत जब बैंक किसी
व्यक्ति को ऋण देता है, तब वह बैंक अपने ही बैंक में उसके खाते में उस ऋण राशि को डाल
देता है, तब उस खाते में बैंक द्वारा लिखी गई धनराशि व्युत्पन्न जमा कहलाती है। व्युत्पन्न
जमा प्राथमिक जमा का परिणाम होती है क्योंकि बैंक अपने नकद कोष के आधार पर ही साख प्रदान
करता है। इसीलिए इन व्युत्पन्न जमाओं को साख जमा भी कहते हैं।
प्रश्न :- केंद्रीय
बैंक के तीन प्रमुख कार्यों का उल्लेख करें ?
> केंद्रीय बैंक
से क्या समझते हैं ? केंद्रीय बैंक के कार्यों का वर्णन करें
उत्तर :- डी. कॉक के शब्दों में," केंद्रीय बैंक का बैंक है जो देश की मौद्रिक तथा बैंकिंग प्रणाली
के शिखर पर होता है"
भारत का केंद्रीय बैंक रिजर्व
बैंक ऑफ इंडिया है जिसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 ई. को की गई।
एक केंद्रीय बैंक
द्वारा किए जाने वाले मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं
1. मुद्रा जारी करना
:- वर्तमान समय में संसार के प्रत्येक
देश में नोट (मुद्रा ) छापने का एकाधिकार केवल केंद्रीय बैंक को ही प्राप्त होता है
और केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किए गए नोट सारे देश में असीमित विधिग्राह्म के रूप में घोषित होते हैं
2. सरकार का बैंक :- केंद्रीय
बैंक सभी देशों में सरकार के बैंकर, एजेंट एवं वित्तीय
परामर्शदाता के रूप में कार्य करते हैं। सरकार बैंकर के रूप में यह सरकारी विभागों के खाते रखता है तथा सरकारी
कोषों की व्यवस्था करता है। यह सरकार के लिए उसी प्रकार कार्य
करता है जिस प्रकार व्यवसायिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए करते हैं। आवश्यकता पड़ने पर सरकार को बिना ब्याज के ऋण दिया जाता है।
3. बैंकों का बैंक :- केंद्रीय
बैंक देश के अन्य बैंकों के लिए बैंक का कार्य करता है। केंद्रीय
बैंक अन्य बैंकों के नगद कोष का कुछ
भाग अपने पास जमा के रूप में रखता है, ताकि
ग्राहकों की मांग होने पर वह उनके धन की अदायगी कर
सके।
4. बैंको का निरीक्षण :- बैंकों का बैंक होने के कारण
केंद्रीय बैंक वाणिज्य बैंकों का निरीक्षण भी करता है। इसके
लिए उसे ये कार्य करने होते हैं - (a) वाणिज्यिक बैंकों को लाइसेंस जारी करना (b) देश के विभिन्न भागों तथा विदेशों में वाणिज्यिक बैंकों की शाखाएं खुलवा कर उनका विस्तार करना (c) वाणिज्यिक बैंकों का विलयन तथा (d) बैंको का परिसमापन
5. अन्तिम
ऋणदाता 6. देश के विदेशी मुद्रा कोषों का संरक्षण
7. समाशोधन गृह का कार्य 8. साख मुद्रा
का नियंत्रण 9. आंकड़े इकट्ठा करना 10. अन्य
कार्य - (a) कृषि वित्त (b) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा
सम्मेलन (c) मुद्रा तथा बिल बाजार
(d) फटे पुराने नोट वापिस लेना।
प्रश्न :- साख सृजन से आप क्या समझते हैं। एक बैंक
किस प्रकार साख का
सृजन करता है ?
> व्यापारिक बैंकों
द्वारा साख सृजन की प्रक्रिया को समझाएं ?
उत्तर-
वर्त्तमान समय में व्यापारिक बैंक मुद्रा का केवल लेन-देन ही नहीं करता बल्कि साख का
निर्माण भी करता है।
प्रो.
हॉम के अनुसार बैंकों की जमाएँ दो प्रकार की होती हैं प्राथमिक जमाएँ और व्युत्पन्न
जमा। प्राथमिक जमाएँ वे जमाएँ होती है जो जमाकर्ताओं द्वारा बैंक वास्तविक मुद्रा के
रूप में जमा की जाती है। जब बैंक किसी व्यक्ति को ऋण देता है, तब वह बैंक अपने बैंक
में उसके खातें में ऋण राशि को डाल देता है तब उस खाते में बैंक द्वारा लिखी गई धनराशि
व्युत्पन्न जमा कहलाती है। व्युत्पन्न जमा साख जमा का परिणाम होता है, क्योंकि बैंक
अपने नकद कोष के आधार पर ही साख प्रदान करता है इसलिए इन व्युत्पन्न जमाओं को साख जमा
भी कहते है।
बैंक
जितना अधिक ऋण देता है, उतना ही अधिक साख जमाएँ उत्पन्न होती है। इस प्रकार ऋण जमाओं
को उत्पन्न करते है और जमाएँ ऋणों को जन्म देती है।
उदाहरण
:-
1.
यदि कोई ग्राहक अपने बैंक A में 10,000 रुपये जमा करता है तो यह बैंक A का प्राथमिक
जमा राशि है।
2.
बैंक अपने अनुभव से यह जानता है कि ग्राहक किसी समय पर अपनी जमाओं का एक अंश की ही
माँग करते है इसलिए वह अपने ग्राहक के खाते में 10,000 रुपये नकदी नहीं बनायें रखता।
3.
इस मान्यता पर कि नकद कोष अनुपात 20 प्रतिशत है, बैंक A अपने पास 2000 रुपये नकद कोष
के रूप में रखेगा और बाकि 8000 रुपये उधार दे देगा।
4.
अब बैंक यह रुपया दिनेश को नकद के रूप में न देकर उसके खातें में जमा कर देता है। इस
प्रकार बैंक A में 8000 रुपये की व्युत्पन्न जमा उत्पन्न हो जाती है।
5.
अब दिनेश यदि किसी भुगतान के लिए चैक द्वारा यह रुपया सुरेश को दे देता है।
6.
सुरेश इसे अपने बैंक B में जमा करा देता है। अतः बैंक B में 8000 रुपये प्राथमिक जमा
में से उसका 20 प्रतिशत 1600 रुपये अपने पास नकद रूप में रखकर शेष 6400 रुपये किसी
अन्य व्यक्ति श्याम को उधार दे देगा अर्थात् श्याम के नाम उसके खाते में जमा कर देगा।
यह प्रक्रिया विभिन्न बैंकों में उस समय तक चलती रहेगी जब
तक कि सम्पूर्ण पहली नकद प्राथमिक जमा राशि 10,000 रुपये में 5 गुणी वृद्धि (20%
CRR के आधार पर) नहीं हो जाती है।
इस प्रक्रिया को एक सारणी द्वारा समझ सकते है :-
बैंक |
प्राथमिक जमा |
बैंक द्वारा रखी गई नकद राशि |
ऋण (व्युत्पन्न जमा) |
A |
10000 |
2000 |
8000 |
B |
8000 |
1600 |
6400 |
C |
6400 |
1280 |
5120 |
D |
5120 |
- |
- |
|
50000 |
10000 |
40000 |
प्रश्न. यदि नकद आरक्षित अनुपात 20% है तो मुद्रा गुणक
का मान ज्ञात कीजिए।
उत्तर - यदि नकद आरक्षित अनुपात 20% है, तो
मुद्रा गुणक =1CRR=120%=10.20=5
प्रश्न. यदि नकद आरक्षित अनुपात 25% है तो मुद्रा गुणक का मान ज्ञात
कीजिए।
उत्तर - यदि नकद आरक्षित अनुपात 25% है, तो
मुद्रा गुणक =1CRR=125%=10.25=4
प्रश्न :- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए :
a) रेपो
दर
उत्तर : रेपो दर वह दर है जिस पर देश का केन्द्रीय बैंक अपने
अनुसूचित वाणिज्यक बैंकों को अल्पकालीन ऋण प्रदान करता है।
(b) वैधानिक
तरलता अनुपात (SLR )
उत्तर : व्यापारिक बैंकों को अपने कुल जमा (निवल मांग एवं समय देयता- NDTL)
का एक निश्चित प्रतिशत अपने पास नकद,
स्वर्ण एवं अल्पकालीन अभारित सरकारी प्रतिभूतियों के रूप
में संरक्षित
रखना होता है, जिसे वैधानिक/साविधिक तरलता अनुपात (SLR)
कहते हैं। यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित किया जाता है तथा भारतीय
रिज़र्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति के एक उपकरण के रूप में इसमें समय-समय पर परिवर्तन
होता रहता है।
प्रश्न :- नकद निधि अनुपात
(CRR) तथा वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) में
क्या अन्तर है ?
उत्तर :- नकद निधि अनुपात :- व्यापारिक बैंकों को कानूनी तौर पर अपनी जमाओ का एक निश्चित प्रतिशत केन्द्रीय बैंक के पास नकद
निधि के रुप में रखना पड़ता है। उदाहरण के
लिए,यदि न्यूनतम निधि अनुपात 10% है और किसी बैंक की कुल जमाएं 100 करोड़ रु.
हैं तो इस बैंक को 10 करोड़ रु. केन्द्रीय बैंक के पास रखने होंगे। यदि केन्द्रीय बैंक ने साख या नकद प्रवाह का संकुचन करना होगा तो वह नगद निधि अनुपात को बढ़ा देगा और यदि उसे
साख प्रवाह का विस्तार करना होगा तो CRR की दर घटा देगा।
वैधानिक तरलता अनुपात :- प्रत्येक बैंक को
अपनी परिसंपत्तियों के एक निश्चित प्रतिशत को अपने पास नकद रूप में या अन्य तरल परिसंपत्तियों के
रूप में कानूनी तौर पर रखना पड़ता है जिसे वैधानिक तरलता अनुपात करते हैं। बाजार में साख के प्रभाव को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक तरलता
अनुपात को बढ़ा देता है और यदि केंद्रीय बैंक साख का विस्तार करना
चाहता है तो वह तरलता अनुपात को घटा देता है।
प्रश्न :- वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते हैं ?
उत्तर: विनिमय की वह प्रणाली, जिसमें विनिमय के साधन के रूप में मुद्रा का प्रयोग नहीं होकर, वस्तु का प्रयोग होता है, वस्तु विनिमय प्रणाली के नाम से जानी जाती है।
प्रश्न :- वस्तु
विनिमय प्रणाली के दो कमियों का उल्लेख करें। इसे मुद्रा ने किस प्रकार दूर किया ?
उत्तर:- विनिमय की वह प्रणाली, जिसमें विनिमय के साधन के रूप में मुद्रा का प्रयोग नहीं होकर, वस्तु का प्रयोग होता है, वस्तु विनिमय प्रणाली के नाम से जानी जाती है।
मुद्रा के प्रयोग द्वारा वस्तु विनिमय के निम्न दोष दूर हुए
1. वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यमान
के इकाई का अभाव वस्तु विनिमय प्रणाली की प्रमुख समस्या है। इसका
तात्पर्य यह हुआ कि यदि एक व्यक्ति को 5 मीटर कपड़े की आवश्यकता
है तथा उसे वह अपने पास के गेहूं से बदलना चाहता है, तब प्रति
मीटर कपड़े के लिए उसे कितना गेहूं देना होगा निश्चित नहीं
कर पाता। इस प्रकार मूल्यमान के उभयनिष्ठ
इकाई के अभाव में विनिमय सीमित हो जाता है।
मुद्रा व्यवस्था के अंतर्गत
हर वस्तु अथवा सेवा का मूल्य मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जाता है, जिससे विनिमय
के अनुपात को निश्चित करने में कोई कठिनाई नहीं होती।
मुद्रा के मापक के रूप में
प्रयोग करने से आर्थिक गणना का कार्य बहुत ही सुगम हो जाता है।
2. वस्तु विनिमय प्रणाली में
मूल्य या धन संचय का कोई स्थान नहीं होता इस व्यवस्था में सिर्फ वस्तुओं का भंडारण
किया जा सकता है। उससे वस्तुओं के खराब होने की संभावना बनी
रहती है।
किंतु मुद्रा के प्रयोग से
मनुष्य भविष्य के लिए क्रय शक्ति का संचय कर सकता है। वस्तुएं एवं सेवाएं बेचकर मुद्रा
प्राप्त कर ली जाती है, उसका कुछ भाग वर्तमान आवश्यकताओं पर व्यय
कर दिया जाता है और शेष भविष्य के लिए जमा कर लिया जाता है।
प्रश्न :- व्यावसायिक
बैंक के कोई चार मुख्य कार्य बताएं। किन्ही दो का वर्णन करें ?
> व्यापारिक बैंक
की परिभाषा दीजिए। इसके मुख्य कार्यों का उल्लेख कीजिए ?
> वाणिज्यिक बैंक
से आप क्या समझते हैं ? वाणिज्यिक बैंकों के विभिन्न कार्यों की व्याख्या करें ?
उत्तर :- "व्यावसायिक बैंक व वित्तीय संस्था है जो लोगों के रुपये को अपने पास जमा के रूप में स्वीकार करती हैं
और उनको उपभोग अथवा निवेश के लिए उधार देती है।"
व्यवसायिक बैंकों
के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं -
1. जमा प्राप्त करना
:-
व्यवसायिक बैंकों का एक मौलिक कार्य जनता से जमा प्राप्त करना है।
जनता से प्राप्त जमा पर बैंक कुछ ब्याज भी देते हैं तथा इसी जमा की रकम को अधिक
ब्याज की दरों पर कर्ज दे कर मुनाफा प्राप्त करते हैं।
व्यवसायिक बैंक तीन प्रकार
के खातों में रकम जमा करते हैं
(क) स्थायी
जमा खाता (ख) चालू खाता (ग)
बचत बैंक खाता
2. ऋण देना :- व्यवसायिक
बैंक खातों में जो जमा की रकम प्राप्त करते हैं उसे विभिन्न उत्पादक कार्यों के लिए
अपने ग्राहकों को ऋण के रूप में देते हैं। विभिन्न खातों में जमा रकम पर चुकाई गई ब्याज
की राशि एवं ऋणों से प्राप्त ब्याज की राशि का अंतर ही बैंक
का मुनाफा होता है। बैंक निम्न प्रकार से ऋण देते हैं -
(a) अधिविकर्ष (b) नकद साख
(c) ऋण एवं अग्रिम (d) विनिमय बिलों
अथवा हुण्डियो का बट्टा करना तथा (e) याचना तथा अल्प सूचना
ऋण
3. सामान्य उपयोगिता
सम्बन्धी कार्य :- बैंक के सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य निम्न है - (a) विदेशी
विनिमय का क्रय विक्रय (b) बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा
(c) साख प्रमाण पत्र एवं अन्य साख पत्रों को जारी करना
(d) ग्राहकों को दूसरे की साख के बारे में जानकारी देना
(e) व्यावसायिक सूचना तथा आर्थिक आंकड़े एकत्रित करना (f)
वित्तीय मामलों के संबंध में सलाह देना (g) मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने
की सुविधा।
4. एजेन्सी के कार्य :- बैंक अपने ग्राहकों के एजेण्ट के रूप में कार्य करते हैं जिन्हें एजेन्सी
के कार्य कहा जाता है। इसमे निम्नलिखित प्रमुख है -
(a) प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय (b) ग्राहकों
की ओर से भुगतान का काम करना (c) ग्राहकों के लिए भुगतान प्राप्त करना (d) चेक एवं अन्य साख पत्रों के भुगतान को इकट्ठा
करना (e) प्रतिनिधि के समान कार्य करना (f) ग्राहकों की ओर से विनिमय बिलों को स्वीकार
करना।
प्रश्न. "व्यावसायिक
बैंक जमा स्वीकार करते हैं।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर–
व्यावसायिक बैंक, जिन्हें वाणिज्यिक बैंक भी कहा जाता है, वित्तीय संस्थान होते हैं
जो जनता से जमा स्वीकार करते हैं और उन्हें ऋण प्रदान करते हैं। जमा स्वीकार करना व्यावसायिक
बैंकों के प्रमुख कार्यों में से एक है।
जमा
स्वीकार करने के कई तरीके हैं, जिनमें शामिल हैं:
1.
बचत खाते: ये खाते व्यक्तियों को थोड़ी-थोड़ी बचत करने
और उस पर ब्याज अर्जित करने की अनुमति देते हैं।
2.
चालू खाते: ये खाते व्यवसायों के लिए होते हैं और उन्हें
अपने दैनिक लेनदेन के लिए उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
3.
सावधि जमा: ये जमा एक निश्चित अवधि के लिए होते हैं और
उन पर बचत खातों की तुलना में अधिक ब्याज मिलता है।
4.
आवर्ती जमा: ये जमा व्यक्तियों को नियमित रूप से एक
निश्चित राशि जमा करने और एक निश्चित अवधि के बाद एकमुश्त राशि प्राप्त करने की अनुमति
देते हैं।
जमा
स्वीकार करना व्यावसायिक बैंकों के लिए एक महत्वपूर्ण गतिविधि है, क्योंकि यह उन्हें
अपनी आय का एक प्रमुख स्रोत प्रदान करता है। जमा पर ब्याज दर और ऋण पर ब्याज दर के
बीच का अंतर बैंकों के लाभ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
प्रश्न :- मुद्रा की आपूर्ति
क्या होती है ?
उत्तर :- किसी भी समय पर मुद्रा की आपूर्ति का अर्थ है अर्थव्यवस्था में
विद्यमान मुद्रा का कुल परिमाण
23 जून 1998 में डाॅ. वाई.
वी. रेड्डी की अध्यक्षता में गठित कार्यदल ने मुद्रा आपूर्ति के संकेतकों ( M1
, M2 , M3 , M4 ) की सिफारिश की।
1. M1 = जनता के पास ( करेन्सी, नोट तथा सिक्के) + बैंको की मांग जमाऐ
( चालू और बचत खातों की ) + रिजर्व बैंक
के पास अन्य जमाये
2. M2 = M1
+ डाकघरों की बचत बैंक जमाये
3. M3 = M1
+ बैंकों की सावधि जमाये
4. M4 = M3
+ डाकघर की कुल जमाये
मुद्रा की पूर्ति मुद्रा अधिकारियों
द्वारा स्वतंत्र रूप से निर्धारित की जाती है। मुद्रा की पूर्ति के दो निर्धारक तत्व
हैं - व्यावसायिक बैंकों की जमा राशि तथा लोगों द्वारा रखी जाने वाली मुद्रा की मात्रा
सूत्र से ,
M = D + C ------------------------(1)
जहां , M = मुद्रा की मात्रा , D = बैंको की मांग जमा राशि, C = लोगों के पास मुद्रा की मात्रा।
शक्तिशाली मुद्रा तीन तत्त्वो से निर्धारित होती है - लोगों द्वारा नकद मुद्रा की मांग (C) बैंकों द्वारा रिजर्व अनुपात की मांग (RR), एवं बैंको द्वारा अतिरिक्त रिजर्व की मांग (ER)
सूत्र से,
H = C + RR + ER --------------------(2)
यदि हम CD को Cr ,RD को RRr तथा ERD ERr से प्रतिस्थापित कर दे तो सूत्र निम्न प्रकार होगा -
प्रश्न :- केंद्रीय बैंक
द्वारा साख की मात्रा नियंत्रित करने के
लिए अपनायी जानेवाली किन्हीं तीन विधियों को बतलाइए ?
उत्तर :- साख नियंत्रण की प्रमुख
विधियां निम्नलिखित हैं -
(1) आरक्षित जमा कोष में परिवर्तन :- सभी अनुसूचित व्यवसायिक बैंको को
अपनी कुल जमा की एक निश्चित नियंत्रण राशी आरक्षित कोष के रूप में केंद्रीय बैंक के पास जमा करनी पड़ती है। यह
आरक्षित कोष जितना अधिक होता है, व्यवसायिक
बैंकों के पास नकदी जमा उतनी ही कम हो जाती है और उसी अनुपात
में साख का सृजन कम होता है। इसके विपरीत आरक्षित कोष में कमी से साख का सृजन अधिक
होता है।
(2) बैंक दर में परिवर्तन :- बैंक दर
में परिवर्तन करके भी साख पर नियंत्रण किया जा सकता है। बैंक
दर वह दर है जिस पर केन्द्रिय बैंक व्यवसायिक बैंको को ऋण देता है। बैंक दर से
ब्याज दर प्रभावित होता है। बैंक दर में वृद्धि करके साख की मात्रा को कम किया जा सकता
है और बैंक दर में कमी करके साख की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है।
(3) खुले बाजार की क्रियाएं :- खुले बाजार की क्रियाओं के अंतर्गत केंद्रीय बैंक बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करता है। जब केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों को बेचता है तो मुद्रा बाजार में मुद्रा की मात्रा कम होने लगती है और जब बाजार से केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों को खरीदता है तो मुद्रा बाजार में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती है ।
जब मुद्रा बाजार में मुद्रा की
अधिकता (अर्थात मुद्रास्फीति) होती है, तब केंद्रीय बैंक खुले बाजार में प्रतिभूतियां बेचना
प्रारंभ कर देता है। जनता अपनी नकदी अथवा बचत कोषों से केंद्रीय बैंक द्वारा बेचे
जाने वाली प्रतिभूतियों का क्रय करना शुरू कर देती है। इस प्रकार नकदी केंद्रीय
बैंक को लौट जाती है और प्रचलित मुद्रा की मात्रा कम हो जाती है जिससे बैंकों के
नकद कोषों में कमी आ जाती है ।
खुले बाजार की क्रियाओ से अभिप्राय केन्द्रीय बैंक के द्वारा बाजार में प्रतिभूतियों का क्रय - विक्रय करना है। (4) सीमांत कटौती में परिवर्तन :- व्यापारी लोग अपनी वस्तुओं को व्यापारिक बैंकों के पास प्रतिभूतियों के रूप में रखते हैं और उसके बदले ऋण लेते हैं। बैंक पूरी प्रतिभूति अथवा जमानत मूल्य के बराबर ऋण नहीं देते हैं। उसमें कुछ कटौती करते हैं। इसे सीमांत कटौती कहते हैं। सीमांत कटौती में परिवर्तन करके साख पर नियंत्रण करने का प्रयास किया जाता है।
(5) नैतिक दबाव :- नैतिक दबाव के अंतर्गत केंद्रीय बैंक साख संस्थाओं पर नैतिक दबाव डालकर उन्हें संबंधित नीति अपनाने के लिए बाध्य कर सकता है।
प्रश्न :- केंद्रीय
बैंक के ' मुद्रा जारी करने ' के कार्य की व्याख्या कीजिए ?
उत्तर :- केंद्रीय बैंक देश
में मुद्रा जारी करने का एकाधिकारी होता है। इसके द्वारा निर्गत की गई मुद्रा ही कानूनी रूप से वैध होती है। क्योंकि मुद्रा निर्गमन केंद्रीय बैंक की जिम्मेवारी होती है इसलिए
केंद्रीय बैंक पर जारी की गई मुद्रा के मान के बराबर संपत्तियों का सुरक्षित भंडार
रखने का भी दायित्व होता है। इन संपत्तियों में सोने, चांदी,
इनके बने सिक्के, विदेशी मुद्रा और राष्ट्रीय सरकार की स्थानीय करेंसी प्रतिभूतियां
शामिल रहती है। देश की केंद्रीय सरकार को केंद्रीय बैंक से
ऋण लेने का अधिकार है।
प्रश्न :- बैंक दर
में वृद्धि के वाणिज्यिक बैंकों द्वारा किए जाने वाले साख निर्माण का प्रभाव समझाएं
?
उत्तर :- बैंक दर ब्याज की
वह न्यूनतम दर है जिस पर देश का केंद्रीय
बैंक वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देने के लिए तैयार होता है। बैंक दर
में वृद्धि होने से वाणिज्यिक बैंकों को ब्याज दर में वृद्धि करनी पड़ती है। ब्याज दर बढ़ने से व्यापारियों द्वारा साख की मांग कम हो जाती
है। इससे साख निर्माण घट जाता है। मुद्रास्फीति के समय जब साख का संकुचन जरूरी होता है तब केंद्रीय बैंक, बैंक
दर को बढ़ा देता है।
प्रश्न :- मौद्रिक नीति के उद्देश्यों को बताइएं
?
उत्तर :- प्रो. हैरी जॉनसन के अनुसार," मौद्रिक
नीति का तात्पर्य उस नीति से है जिसके द्वारा केंद्रीय बैंक
सामान्य आर्थिक नीति के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मुद्रा की पूर्ति को नियंत्रित
करता है।"
मौद्रिक नीति के
निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य है -
(1) मूल्यों में स्थिरता
(2) धीरे-धीरे वर्द्धमान
मूल्य स्तर (3) विदेशी विनिमय दर की स्थिरता (4) मुद्रा की तटस्थता (5) पूर्ण रोजगार (6) आर्थिक
विकास।
प्रश्न :- चेक तथा ओवरड्राफ्ट (अधिविकर्ष) में अंतर बताइएं ?
उत्तर :- चेक :- व्यक्ति अपने
खाते में जमा राशि को चेक के माध्यम से निकालता है। चालू जमा खाता में प्राय: सभी लेनदेन
चेक के माध्यम से होता है। इसमें व्यक्ति अपनी जमा राशि से
अधिक रुपया चेक के माध्यम से निकाल सकता है।
ओवरड्राफ्ट
(अधिविकर्ष) :- बैंक में चालू जमा रखने वाले ग्राहक बैंक से एक समझौते
के अनुसार अपनी जमा से अधिक रकम निकलवाने की अनुमति ले लेते हैं।
निकाली गई रकम को ओवरड्राफ्ट कहते हैं। यह सुविधा अल्पकाल के लिए विश्वसनीय ग्राहकों
को ही मिलता है। मान लीजिए एक व्यक्ति के 10000 रुपये जमा है और उसको बैंक 12000 रुपये तक के चेक
काटने का अधिकार दे देता है तो 2000 रुपया ओवरड्राफ्ट कहलाएगा।
प्रश्न :- एक केंद्रीय
बैंक और एक व्यापारिक बैंक के अंतर को बताएं ?
उत्तर :- इन दोनों में मुख्य
अंतर निम्न है
1. केंद्रीय बैंक एक उच्च बैंक
है। यह सब बैंकों का बैंक है। इसके
विपरीत व्यापारिक बैंक केंद्रीय बैंक के नियंत्रण के अंतर्गत कार्य करता है।
2. व्यापारिक बैंक लाभ अधिकतमीकरण पर अपना ध्यान केंद्रित करता है, जबकि केंद्रीय बैंक का
लक्ष्य सामाजिक कल्याण है।
3. व्यापारिक बैंक, साख निर्माण
के माध्यम से, साख के प्रवाह में े अपना योगदान देते हैं। इसके विपरीत केंद्रीय
बैंक साख के प्रवाह को नियंत्रित करता है।
4. व्यापारिक बैंक सामान्य
जनता से जमाएं स्वीकार करते हैं और व्यक्तियों तथा परिवारों
को ऋण देते हैं। केंद्रीय बैंक ऐसा
नहीं करता
5. केंद्रीय
बैंक देश के विदेशी मुद्रा कोष का अभिरक्षक है। जबकि व्यापारिक बैंक नहीं है ।
6. केंद्रीय
बैंक मुद्रा जारी करता है, व्यापारिक बैंकों के पास ऐसा अधिकार नहीं है।
7. केंद्रीय
बैंक मौद्रिक मामलों पर सरकार का सलाहकार है, जबकि व्यापारिक बैंक नहीं है।
प्रश्न :- मुद्रा
का वर्गीकरण कैसे किया जाता है ?
उत्तर :- मुद्रा का वर्गीकरण
तीन भागों में किया जाता है
1. पूर्ण
काय मुद्रा :- इसका संबंध उस मुद्रा से है जो सिक्कों के
रूप में होती है। यदि सिक्के पर अंकित मूल्य और उसमें लगी धातु का मूल्य बराबर
है तो ऐसे सिक्के को पूर्ण काय मुद्रा कहा जाएगा।
2. प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा
:- इसका संबंध कागजी नोटों से है। ये नोट पूर्ण मुद्रा का प्रतिनिधित्व करते हैं। वास्तव
में यह नोट पूर्ण काय सिक्कों का प्रतिनिधित्व करने वाली ' चिट
' है जिसे सरकार जारी करती है।
3. साख मुद्रा :- उस मुद्रा
को कहते हैं जिसका मौद्रिक मूल्य उसके वस्तु मूल्य से अधिक होता है। जैसे - बैंकों के पास जमाऐ।
प्रश्न :- मुद्रा
की आदर्श पूर्ति का क्या अर्थ है
?
उत्तर :- अर्थव्यवस्था में
सभी प्रकार के मुद्राओं के योग को मुद्रा की आपूर्ति कहते
हैं। मुद्रा की पूर्ति का कुल व्यय पर
प्रभाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप व्यापारिक क्रियाये, उत्पादन तथा रोजगार प्रभावित होते हैं। अतएव
देश में पूर्ण रोजगार की स्थिति में बिना किसी साधन को खाली रखे हुए जितना उत्पादन
होता है उसे खरीदने के लिए जितनी मुद्रा की आवश्यकता होती है उसे मुद्रा की पूर्ति
की आदर्श पूर्ति कहते हैं।
यदि
मुद्रा
की पूर्ति आदर्श पूर्ति से अधिक होगी तो पुर्ण रोजगार की स्थिति में कीमतें बढ़ने लगेगी तथा मुद्रास्फीति की
स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। इसके विपरीत, यदि
मुद्रा की पूर्ति आदर्श पूर्ति से कम है तो कीमतें कम हो जाएगी, मंदी की स्थिति
उत्पन्न हो जाएगी तथा देश में बेरोजगारी फैलेगी। अतएव मुद्रा
की पूर्ति केवल इतनी होनी चाहिए जिससे देश में उत्पादित सभी वस्तुओं की बिक्री हो सके
तथा मुद्रास्फीति या अवस्फीति की स्थिति उत्पन्न न हो।
प्रश्न :- अन्तिम ऋणदाता के रूप में केंद्रीय बैंक क्या करता है ?
उत्तर :- देश के अन्य बैंकों के लिए केंद्रीय बैंक अंतिम ऋणदाता के रूप में कार्य करता है। इसका अर्थ यह है कि जब किसी वाणिज्यिक बैंक को कहीं से भी ऋण प्राप्त न होता हो तब वह केंद्रीय बैंक से ऋण की मांग करता है। और केन्द्रीय बैंक उचित प्रतिभूतियों के आधार पर उसे ऋण दे देता है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक अन्तिम ऋणदाता के रूप में देश की बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करता है।
प्रश्न :-
"मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करें "। कथन की व्याख्या करें ?
> मुद्रा की वैधानिक
तथा कार्यात्मक परिभाषा परिभाषित करें ?
उत्तर :- कानूनी तौर पर मुद्रा
कोई भी ऐसी वस्तु हो सकती है जिसे कानून द्वारा विनिमय का माध्यम घोषित किया जाए। कागजी नोट तथा सिक्के (जिन्हें सामूहिक
रूप से करेंसी कहा जाता है) कानूनी तौर पर मुद्रा है। कोई
व्यक्ति इन्हें विनिमय माध्यम के रूप में स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकता।
मुद्रा के कार्यात्मक परिभाषा
के अनुसार कोई भी वस्तु मुद्रा हो सकती है जो चार मूल कार्य करती है -(1) विनिमय के माध्यम का कार्य (2) मूल्य के मापदंड
का कार्य (3) भावी भुगतान के मान का कार्य और (4) मूल्य के संचय का कार्य।
इस परिभाषा के अनुसार कागजी
नोट, सिक्के, बैंकों में पड़ी मांग जमा या चेको द्वारा निकलवायी जाने
वाली जमा को मुद्रा में सम्मिलित किया जाता है।
इस आधार पर हम कह सकते हैं
कि 'मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करें '।
प्रश्न :- मुद्रा
की पूर्ति कौन करता है ?
उत्तर :- मुद्रा की पूर्ति
सरकार, केंद्रीय बैंक, तथा व्यापारिक बैंक करते हैं। भारत में सरकार का वित्त मंत्रालय
₹1 के नोट जारी करता है तथा सिक्के ढालता है। भारत में मुद्रा जारी करने का कार्य मुख्य रूप से केंद्रीय बैंक
करता है। भारत का केंद्रीय बैंक (रिजर्व
बैंक ऑफ इंडिया ) न्यूनतम मुद्रा कोष प्रणाली के आधार
पर करेंसी जारी करता है। रिजर्व बैंक को 200 करोड़ रुपए का सोना तथा विदेशी प्रतिभूतियां कोष में रखनी पड़ती है। इसमें से 115 करोड़ रुपये का सोना होना आवश्यक है। व्यापारिक बैंक
मांग जमा के आधार पर साख अथवा मुद्रा की पूर्ति का निर्माण करते हैं। जब व्यापारिक बैंक लोगों को साख प्रदान करते हैं तो इससे मुद्रा
की पूर्ति में वृद्धि होती है। इसके
विपरीत जब वे साख का संकुचन करते हैं तो मुद्रा की पूर्ति
कम हो जाती है। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के अनुसार ही
व्यापारिक बैंकों को मुद्रा की पूर्ति का विस्तार या संकुचन करना पड़ता है।