प्रश्न. सरकारी बजट के घटकों के नाम लिखिए।
उत्तर– सरकारी बजट के
मुख्यतः दो घटक होते हैं -
i) राजस्व बजट तथा ii) पूँजीगत बजट
प्रश्न :- सरकारी बजट
से आप क्या समझते हैं ? इसके मुख्य तत्व क्या है ?
उत्तर
:- सरकारी बजट एक वित्तीय वर्ष ( अप्रैल
1 से मार्च 31 तक ) की अवधि के दौरान
सरकार की प्राप्तियों ( आय ) तथा
सरकार के व्यय के अनुमानों का विवरण होता है।
सरकारी बजट के दो
मुख्य तत्व ( घटक ) है
(1) बजट प्राप्तियां :- बजट प्राप्तियों से अभिप्राय एक वित्तीय वर्ष में सरकार को
सभी साधनों से प्राप्त होने वाली अनुमानित मौद्रिक आय से है। बजट प्राप्तियों का विस्तृत रूप से दो भागों में वर्गीकरण किया
जाता है।
(a) राजस्व प्राप्तियां
:-
सरकार की राजस्व प्राप्तियां वे मौद्रिक प्राप्तियां हैं जिनके फलस्वरूप न तो कोई देयता उत्पन्न होती है और न ही परिसंपत्तियों में कमी होती है।
(b) पूंजीगत प्राप्तियां
:-
पूंजीगत प्राप्तियां वे मौद्रिक प्राप्तियां हैं जिनसे सरकार
की देयता उत्पन्न होती है या परिसंपत्ति कम होती है।
(2) बजट व्यय :- बजट व्यय से अभिप्राय
सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में 'विकास तथा विकासेतर' या
'योजना' तथा 'योजनेत्तर' कार्यक्रमों पर अनुमानित व्यय से है।
बजट व्यय को निम्न दो भागों में वर्गीकरण किया जाता है -
(a) राजस्व व्यय :- राजस्व व्यय से अभिप्राय
सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में किये जाने वाले उस अनुमानित
व्यय से है जिसके फलस्वरूप न तो सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण
होता है न ही देयता में कमी होती है।
(b) पूंजीगत व्यय :- पूंजीगत व्यय से अभिप्राय
एक वित्तीय वर्ष में सरकार के उस अनुमानित व्यय से है जो परिसंपत्तियों में वृद्धि
करता है या देयता
को कम करता है।
प्रश्न :- राजस्व प्राप्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : सरकार द्वारा वसूले गए सभी प्रकार के कर और शुल्क,
निवेशों पर प्राप्त ब्याज और लाभांश तथा विभिन्न सेवाओं के बदले प्राप्त रकम को राजस्व प्राप्ति
या राजस्व कहा जाता है।
प्रश्न. राजस्व प्राप्तियाँ क्या हैं? यह पूँजीगत प्राप्तियों
से किस प्रकार भिन्न होती हैं ?
उत्तर- राजस्व प्राप्तियाँ- सरकार की वे मौदिक
प्राप्तियाँ जो न तो देयताओं का निर्माण करती है और न ही परिसंपत्तियों को कम करती
है, राजस्व
प्राप्तियाँ कहलाती हैं।
राजस्व प्राप्तियों से सरकार को
कोई देयता उत्पन्न नहीं होती। है। उदा० कर अर्थात सरकार कर के बदले कुछ देने के
लिए बाध्य नहीं होती हैं।
जबकि पूँजीगत प्राप्तियों से सरकार
की देयता उत्पन्न होती है। उदा० सरकार द्वारा लिये जाने वाले ऋण देयता हैं। इन्हें
वापस किया जाता है।
प्रश्न. सरकार की पूँजीगत प्राप्तियाँ क्या होती हैं ?
उत्तर - सरकार की वे मौद्रिक प्राप्तियाँ
जो देयताओं का निर्माण करती है और जो परिसंपत्तियों है, पूँजीगत प्राप्तियाँ
कहलाती है। पूँजीगत प्राप्तियाँ सरकार की को कम करती की बजेट प्राप्तियों का एक
मुख्य भाग है।
पूँजीगत प्राप्तियों से सरकार की देयता उत्पन्न होती
है। उदाहरण - सरकार द्वारा लिये जाने वाले ऋण
देयता हैं। इन्हें वापस किया जाता है।
इसके अतिरिक्त पूँजीगत प्राप्तियों से सरकार की परिसंपत्ति कम होती है। उदाहरण - सरकार द्वारा किसी सार्वजनिक उद्योग के शेयर बेचने से सरकार की परिसंपत्ति कम हो जाती है।
प्रश्न :- प्रत्यक्ष कर को परिभाषित कीजिए।
प्रश्न. प्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं ? एक उदाहरण से
स्पष्ट कीजिए कि निगम कर प्रत्यक्ष कर का एक उदाहरण है।
उत्तर:
जिस कर के भुगतान में कर भार तथा कर दायित्व एक ही व्यक्ति पर पड़ते हैं उसे प्रत्यक्ष कर कहते हैं।
जैसे
– आयकर, सम्पत्ति कर आदि।
निगम
कर एक ऐसा कर है जो किसी कंपनी या निगम के लाभ
पर लगाया जाता है। यह कर कंपनी की आय में से खर्चों को घटाने के बाद शेष बची आय पर
लगाया जाता है। निगम कर का भुगतान सीधे कंपनी द्वारा सरकार को किया जाता है। इसलिए,
निगम कर प्रत्यक्ष कर का एक उदाहरण है।
प्रश्न :- प्रत्यक्ष कर के क्या गुण हैं ?
उत्तर: जब किसी कर का करापात (Impact of
Tax) और करों का भार (Tax Incidence) एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो वह करे प्रत्यक्ष
कर कहलाता है।
प्रत्यक्ष करों के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं
1. न्यायपूर्ण- प्रत्यक्ष कर न्यायपूर्ण होते हैं, क्योंकि
ये कर व्यक्तियों की करदान क्षमता के आधार पर लगाये जाते हैं। इन करों का भार धनी वर्ग
पर अधिक तथा निर्धनों पर कम पड़ती है। प्रत्यक्ष कर की दरें बहुधा प्रगतिशील होती हैं।
2. मितव्ययिता - प्रत्यक्ष करों में मितव्ययिता पायी जाती है,
क्योंकि इन करों को वसूल करने में राज्य को अधिक व्यय नहीं करना पड़ता है।
3. निश्चितता - प्रत्यक्ष करों में निश्चितता का गुण भी पाया
जाता है, क्योंकि इन करों के सम्बन्ध में करदाता को पूर्ण जानकारी रहती है।
4. लोचता - प्रत्यक्ष कर लोचदार होते हैं। सरकार इन करों
में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सकती है।
5. नागरिक चेतना - प्रत्यक्ष कर नागरिक स्वयं जमा करता है तथा
स्वयं ही उसका भार वहन करता है। इस कारण वह यह जानने का प्रयास करता है कि दिये गये
कर का उपयोग सार्वजनिक हित के कार्यों में हो रहा है अथवा नहीं। इस प्रकार कर का भुगतान
करने के पश्चात् व्यक्ति में आदर्श नागरिकता एवं कर्तव्यपरायणता की भावना जागृत होती
है।
6. उत्पादकता - प्रत्यक्ष कर उत्पादक होते हैं। करों की मात्रा
में थोड़ी-सी वृद्धि से ही अधिक आय प्राप्त हो जाती है जिसका उपयोग देश के आर्थिक विकास
में किया जा सकता है।
7. समानता- प्रत्यक्ष कर प्रगतिशील होते हैं। ये कर धनी
व्यक्तियों पर अधिक मात्रा में तथा निर्धन वर्ग पर कम मात्रा में लगाये जाते हैं। इस
प्रकार प्रत्यक्ष कर आर्थिक असमानता समाप्त कर समाज में समानता लाने का प्रयास करते
हैं।
प्रश्न :- प्रत्यक्ष कर
तथा अप्रत्यक्ष कर के बीच अन्तर स्पष्ट करें। प्रत्येक का एक उदाहरण दे ?
उत्तर :- प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में मुख्य अंतर निम्नलिखित है -
1. अंतिम भार :- प्रत्यक्ष कर का अंतिम
भार उसी व्यक्ति को उठाना पड़ता है जो सरकार के कर का भुगतान
करता है। इसके विपरीत अप्रत्यक्ष कर जिसका सरकार को भुगतान
एक व्यक्ति करता है किंतु अंतिम भार किसी अन्य व्यक्ति को
उठाना पड़ता है।
2. कर का टालना :- प्रत्यक्ष कर
को दूसरे व्यक्तियों पर नहीं टाला जा सकता जबकि अप्रत्यक्ष
कर को दूसरे व्यक्तियों पर टाला जा सकता है।
3. प्रगतिशीलता
:-
प्रत्यक्ष कर साधारणतः प्रगतिशील
होते हैं। इनका वास्तविक भार निर्धन व्यक्तियों की तुलना में
धनी व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है। इसके विपरीत अप्रत्यक्ष
कर साधारणतः प्रतिगामी होते हैं। इसका
वास्तविक भार निर्धन व्यक्तियों पर धनी व्यक्तियों की तुलना में अधिक पड़ता है।
प्रत्यक्ष कर का उदाहरण :-
आयकर, संपत्ति कर, निगम कर
अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण
:- बिक्री कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क
प्रश्न :- सरकारी
बजट में घाटे के वित्त की धारणा का उल्लेख करें ?
> घाटे का वित्तीयन किस प्रकार हो सकता है ?
उत्तर :- समस्त व्यय एवं प्राप्तियों के अंतर को बजटीय घाटा कहते हैं। बजटीय घाटा उस समय उत्पन्न होता है जब सरकारी व्यय, सरकारी प्राप्तियों से ज्यादा होता है। घाटे
के वित्तीयन के दो रास्ते हैं -
1. मौद्रिक प्रसार
:-
सरकार घाटे के समय नए नोट छपवा सकती है। यह प्रक्रिया सरकार
द्वारा राजकोषीय हुण्डियों के आधार पर
RBI से ऋण लेने जैसा है। RBI नए नोट छापता
है और हुण्डियो के बदले उन्हें सरकार को देता है। सरकार इन नोटों से अपना घाटा पूरा
कर सकती है।
2. ऋण लेना :- सरकार
घाटे को पूरा करने के लिए घरेलू एवं विदेशी ऋण ले सकती है।
प्रश्न :- विकासात्मक
और गैर - विकासात्मक व्यय में अंतर
स्पष्ट करें ?
> सार्वजनिक
(सरकारी) व्यय का वर्गीकरण करें ?
उत्तर :- सार्वजनिक व्यय का
कई प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है। इसके मुख्य प्रकार निम्न हैं
-
1. विकासात्मक व्यय
(विकास व्यय) :- विकास व्यय वह व्यय है जो आर्थिक विकास
तथा सामाजिक कल्याण के लिये किया जाता है। इसके अंतर्गत शिक्षा,
चिकित्सा,उधोग,
कृषि, यातायात, सड़क,नहरों, ग्रामीण विकास,जल कल्याण बिजली आदि के विकास
पर खर्च की जाने वाली धन राशि को शामिल किया जाता है।इसमे
सरकार द्वारा उद्यमो को विकास के लिए दिए जाने वाले ऋण भी सम्मिलित होते हैं जैसे एयर
इंडिया को दिए गए ऋण।
2. गैर-विकासात्मक व्यय (गैर
विकास व्यय, विकासेतर व्यय ) :- गैर विकास व्यय वह व्यय है जो सरकार के गैर विकास
कार्यों पर किया जाता है। इसके अंतर्गत प्रशासन, पुलिस,सेना, कानून तथा व्यवस्था,करो के एकत्रीकरण,ऋणों पर ब्याज, वृद्धावस्था पेंशन आदि पर कितने जाने वाले व्यय
को शामिल किया जाता है।
3. योजना व्यय
:- योजना
व्यय से अभिप्राय सरकार के उस व्यय से है जो चालू पंचवर्षीय योजना
के अधीन कार्यक्रमो पर किया जाता है। इसके अंतर्गत सरकार या योजना
आयोग द्वारा किया गया उपभोग तथा निवेश दोनों प्रकार का व्यय शामिल किया जाता
है। इसके कुछ मुख्य उदाहरण है - कृषि,
ऊर्जा,संचार,उधोग, यातायात, सार्वजनिक सेवा में जैसे स्वास्थ्य,
शिक्षा आदि पर किया गया व्यय।
4. गैर योजना व्यय
(योजनेतर व्यय ) :- योजनेतर
व्यय से अभिप्राय सरकार के उस व्यय से है जो योजनात्मक विकास संबंधी कार्यक्रमों
के अतिरिक्त अन्य कार्ये पर किया जाता है। इसके अंतर्गत सरकार के उपभोग तथा निवेश दोनों
प्रकार के व्यय को शामिल किया जाता है। इसके मुख्य उदाहरण है
- अनुदान, सुरक्षा,कानून तथा व्यवस्था, सरकार द्वारा लिखे ग्रे
ऋणों पर ब्याज का भुगतान।
प्रश्न :- राजकोषीय
घाटे से आपका क्या अभिप्राय है ? भारी राजकोषीय घाटे के बजट के क्या प्रभाव होते हैं
?
उत्तर :- राजकोषीय घाटे का संबंध सरकार की राजस्व तथा पूंजीगत दोनों प्रकार
के व्ययो तथा राजस्व और उधार छोड़कर बाकी पूंजीगत प्राप्तियों से है। राजकोषीय घाटा कुल व्यय ( राजस्व + पूंजीगत
) की उधार छोड़कर कुल प्राप्तियो
( राजस्व + उधार छोड़कर पूंजीगत प्राप्तियो ) पर अधिकता है।
राजकोषीय घाटे का अधिक होना
इस बात का प्रतीक है कि सरकार को अधिक धन उधार लेना पड़ेगा। भारत
में सरकार द्वारा लिए जाने वाले उधार का एक प्रमुख स्रोत RBI है।
इसे घाटे का वित्त व्यवस्था भी कहा जाता है क्योंकि सामान्यता रिजर्व बैंक सरकार
को उधार देने के लिए अधिक नोट छपता है। यह प्रथा यद्यपि सरकार
के लिए सुविधाजनक है परंतु इसका अर्थव्यवस्था पर काफी हानिकारक
प्रभाव पड़ता है। इसके फलस्वरुप प्रचलन में मुद्रा की मात्रा
बढ़ जाने के कारण मुद्रास्फीति अर्थात कीमतों के बढ़ जाने की स्थिति उत्पन्न हो जाती
है।
प्रश्न :- प्रगतिशील कर
क्या है ?
उत्तर
:- प्रगतिशील कर वह कर है जिसकी दर आय अथवा संपत्ति में वृद्घि के
साथ साथ बढ़ती जाती है। इस प्रणाली में जिस व्यक्ति की आय जितनी अधिक होगी उससे उतना
ही अधिक कर वसूला जायेगा।
प्रश्न :- एक सरकारी बजट
में 'राजस्व घाटे ' की अवधारणा की
व्याख्या कीजिए ?
> राजस्व घाटे का क्या अर्थ है ? इससे क्या समस्या
उत्पन्न होती है ?
उत्तर
:- राजस्व घाटा राजस्व व्यय की राजस्व प्राप्तियों पर अधिकता है
RD = RE
- RR
RE
> RR
जहां
, RR = राजस्व घाटा , RE = राजस्व व्यय
, RR = राजस्व प्राप्तियां
राजस्व
घाटे का अधिक होना सरकार को यह चेतावनी देता है कि या तो वह अपना व्यय कम करें या अपनी
कर तथा करेतर प्राप्तियो में वृद्धि करें। भारत जैसे अल्पविकसित देशों में प्राय: ऐसी
स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब सरकार को प्रशासन तथा रख रखाव पर बहुत अधिक धन व्यय करना
पड़ता है। परंतु देश की निर्धन जनता को अधिक कर देने के लिए मजबूर करना कठिन होता है
इस स्थिति में सरकार को बढ़ते हुए राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए या तो धन उधार लेना
पड़ता है या विनिवेश करना पड़ता है। धन उधार लेने से सरकार की देयता बढ़ जाती है तथा
विनिवेश के फलस्वरुप उसकी परिसंपत्तियां कम हो जाती है। अतएव परिसंपत्तियों तथा देयता
में एक संतुलन स्थापित करने के लिए सुनियोजित रणनीति की आवश्यकता होती है अन्यथा अर्थव्यवस्था
का संपूर्ण वित्तीय व्यवस्था असंतुलित हो सकती है।
प्रश्न :- आधिक्य बजट तथा घाटे का बजट की व्याख्या करें।
उत्तर: आधिक्य का बजट :- जब सरकार प्रत्याशित
आगम की तुलना में कम व्यय का आयोजन कर सकती है अर्थात् सार्वजनिक आगम की तुलना में
सार्वजनिक व्यय कम होता है, इसे आधिक्य बजट (Surplus Budget) कहते हैं।
आधिक्य बजट के कारण अर्थव्यवस्था में मुद्रा
की कुल पूर्ति का एक भाग चलन से बाहर हो जाता है।
इसका अर्थव्यवस्था पर संकुचनात्मक प्रभाव होता
है।
आधिक्य के बजट उस दशा में बनाए जाते हैं जब
सरकार का उद्देश्य आर्थिक क्रियाओं के स्तर को गिराना हो, जैसे मुद्रा-स्फीति के काल
में। करारोपण में परिवर्तन किये वगैर ही राजकीय व्यय में कमी करके कुल व्यय में प्रत्यक्ष
रूप में कमी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त राजकीय व्यय को बढ़ाये बिना करारोपण में
वृद्धि करके भी आधिक्य का बजट बनाया जा सकता है। पर व्यय घटाने की अपेक्षा कर बढ़ाने
से अधिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती है।
घाटे का बजट:- घाटे का बजट वह बजट है जिसमें किसी सरकार की अनुमानित आय उसके अनुमानित व्यय से कम होती है।
घाटे का बजट : सरकार की अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय
केन्ज तथा अन्य कई आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने
घाटे के बजट पर बल दिया है और इसके निम्नलिखित लाभ बताए:
घाटे के बजट के लाभ तथा हानियाँ
लाभ:
केन्ज ने मंदी की स्थिति को ठीक करने के लिए
घाटे के बजट को एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बताया है। इसके अनुसार मंदी की स्थिति में
AD का स्तर नीचा होने के कारण निवेश का स्तर बहुत नीचा हो जाता है। फलस्वरूप नियोजित
उत्पादन का स्तर पूर्ण रोजगार स्तर पर होने वाले उत्पादन से बहुत नीचा हो जाता है।
बेरोजगारी एक राष्ट्रीय समस्या बन जाती है। घाटे का बजट तरह से AD के स्तर को ऊपर उठाता
है:
(a) प्रत्यक्ष रूप से सरकार अधिक व्यय के लिए
प्रेरित करके तथा
(b) अप्रत्यक्ष तौर पर लोगों को अधिक व्यय
(निवेश और उपभोग) के लिए प्रेरित करके।
हानियाँ :
मुद्रास्फीति की अवधि में घाटे का बजट वांछनीय
नहीं है। इस अवधि में कुल माँग (AD) पूर्ण रोजगार के लिए आवश्यक कुल पूर्ति के स्तर
से अधिक होती है। ऐसी स्थिति में घाटे का बजट कुल माँग तथा कुल पूर्ति के बीच के अंतर
को और भी अधिक बढ़ा देगा। फलस्वरूप स्फीति अंतराल बढ़ेगा तथा मजदूरी दर-कीमत स्तर में
अधिक से अधिक वृद्धि होने लगेगी।
प्रश्न :- संतुलित
बजट, आधिक्य बजट और घाटे के बजट के बीच अन्तर स्पष्ट करें ?
उत्तर :-
प्रश्न :- संतुलित तथा असंतुलित बजट
में अंतर बताएं, क्या संतुलित बजट सरकार की उपलब्धि है ?
उत्तर :- संतुलित बजट :- संतुलित बजट वह बजट है जिसमें सरकार की आय तथा व्यय दोनों
बराबर होते हैं
संतुलित बजट के लाभ
(1) सरकार
द्वारा अपव्यय नहीं किया जाएगा (2) वित्तीय स्थिरता बनी रहेगी किंतु सन्
1930 की महामंदी के फलस्वरुप संतुलित बजट की आलोचना की गई तब संतुलित
बजट के दोष प्रकाश में आए
संतुलित बजट
के दोष
(1) विकसित
देशों में महामंदी तथा बेरोजगारी का समाधान संतुलित बजट से नहीं हो सकता
(2) अल्पविकसित देशों के आर्थिक विकास के लिए यह उपयुक्त नहीं है।
इन दोनों में सरकार द्वारा अधिक से अधिक निवेश की
आवश्यकता होती है चाहे उसके फलस्वरुप अर्थव्यवस्था में कुछ मुद्रास्फीति ही क्यों न
हो जाए
संतुलित बजट सरकार की उपलब्धि
नहीं है। विशेष रूप से मंदी के समय जब सरकार को कुल मांग बढ़ाने
के लिए अपने खर्चों में वृद्धि करनी चाहिए।
असंतुलित बजट :- असंतुलित
बजट वह बजट है जिसमें किसी सरकार की अनुमानित आय तथा
अनुमानित व्यय बराबर नहीं होते। यह दो प्रकार का हो सकता है
(a) बचत का बजट
:-
बचत का बजट वह बजट है जिसमें सरकार
की अनुमानित आय उसके अनुमानित व्यय से अधिक होती है। यह तब वांछनीय है जब अर्थव्यवस्था में स्फीति
अंतर पाया जाए। यह मंदी के समय वांछनीय
नहीं होगा।
(b) घाटे का बजट :- घाटे का बजट वह बजट है जिसमें किसी सरकार की अनुमानित
आय उसके अनुमानित व्यय से कम होती
है। केन्स ने मंदी की स्थिति को ठीक
करने के लिए घाटे के बजट को एक महत्वपूर्ण उपकरण बताया है। मुद्रास्फीति
की अवधि में घाटे का बजट वांछनीय नहीं है।
प्रश्न :- सरकारी बजट क्या है ? इसके किन्हीं चार उद्देश्यो का वर्णन करें ?
उत्तर
:- सरकारी बजट एक वित्तीय वर्ष की अवधि के दौरान सरकार की
प्राप्तियों (आय) तथा सरकार के
व्यय के अनुमानों का विवरण होता है।
सरकारी बजट के उद्देश्य
(1) आय तथा संपत्ति का पुनः वितरण :- संपत्ति
और आय का समान बटवारा सामाजिक न्याय का प्रतीक है जो कि भारत जैसे किसी भी
कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य होता है।
(2)
संसाधनों का पुनः आवंटन :- अपनी
बजट संबंधी नीति द्वारा देश की सरकार संसाधनों का आवंटन इस प्रकार करती है जिससे
अधिकतम लाभ तथा सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके
(3) आर्थिक स्थिरता :- अर्थव्यवस्था में
तेजी और मंदी के चक्र चलते हैं। सरकार अर्थव्यवस्था को इन व्यापार
चक्रो से सुरक्षित रखने के लिए सदा वचनबद्ध होती है। सरकार आर्थिक स्थिरता की स्थिति को प्राप्त करने का प्रयत्न करती
है।
(4) सार्वजनिक उद्यमों का प्रबंध :- सरकार के बजट संबंधी नीति से ही यह प्रकट होता है कि वह किस प्रकार सार्वजनिक उद्यमों
के माध्यम से विकास की गति को तीव्र करने के लिए उत्सुक
है। प्राय: सार्वजनिक उद्यमो को उन क्षेत्रों में लगाने का प्रयत्न किया जाता है जहां प्राकृतिक
एकाधिकार पाया जाता है।
प्रश्न :- कर क्या है
? इसकी दो प्रमुख विशेषताओ का उल्लेख कीजिए
?
उत्तर
:- एनातोल मुराद के अनुसार ," कर वह
आवश्यक भुगतान है जो एक व्यक्ति या फर्म द्वारा सरकार को
दिया जाता है। करदाता को सरकार से मिलने
वाले लाभ का इससे कोई भी सम्बंध नहीं होता।"
विशेषताएं
1. कर एक अनिवार्य भुगतान है।
प्रत्येक करदाता को जिस पर सरकार ने इसे लगाया है उसे राज्य
को देना ही पड़ता है। कर देने से इनकार करने से सजा हो सकती
है।
2. कर देना, करदाता का निजी
दायित्व है। यदि सरकार द्वारा किसी व्यक्ति पर इसे लगाया गया है।
3. करदाता से प्राप्त राजस्व
केवल उसी व्यक्ति के निजी हित के लिए खर्च नहीं किया जाता बल्कि इसे सामान्य तथा जन
कल्याण के लिए खर्च किया जाता है।
4. क्योंकि सार्वजनिक व्यय साझे हितों के लिए खर्च किया जाता
है इसलिए लोगों को मिलने वाले निजी लाभ, करो के भुगतान के
अनुपात में नहीं होते।
5. कर किसी व्यक्ति, संपत्ति
अथवा वस्तु पर लगाए जाते हैं किंतु इसका वास्तविक भुगतान व्यक्तियों द्वारा किया जाता
है।
प्रश्न :- घाटे का बजट
क्या है ? इसके गुण तथा दोषों का उल्लेख करें ?
उत्तर :- घाटे का बजट वह बजट है जिसमें किसी सरकार की अनुमानित आय उसके अनुमानित व्यय से कम होती है।
घाटे का बजट = सरकार का अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय
गुण ( लाभ )
(1) आर्थिक विकास हेतु वित्त
की व्यवस्था (2) मंदी काल में व्याप्त बेरोजगारी से छुटकारा प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त
निवेश की व्यवस्था (3) निजी विनियोग की कमी को दूर किया जा सकता है (4) युद्धकालीन
व्यय एवं अन्य आकस्मिक वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु
पूंजी की व्यवस्था।
दोष
( हानि )
(1) अतिरिक्त मुद्रा पूर्ति के फलस्वरुप अर्थव्यवस्था पर स्फीतिक दबाव
(2) स्फीतिक दबाव के कारण औसत उपभोक्ता स्तर में कमी (3) आय की असमानताओं में वृद्धि (4) विनियोग ढांचे
पर प्रतिकूल प्रभाव
प्रश्न :- मौद्रिक
नीति तथा राजकोषीय नीति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :- मौद्रिक
नीति
प्रो. हैरी जॉनसन के अनुसार,"मौद्रिक
नीति का तात्पर्य उस नीति से है जिसके द्वारा केंद्रीय बैंक सामान्य आर्थिक नीति के
उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मुद्रा की पूर्ति को नियंत्रित करता
है।"
मौद्रिक नीति के उद्देश्य :- (1) भुगतान
संतुलन एवं विनिमय स्थिरता (2) मूल्य स्थिरता (3) मुद्रा की तटस्थता (4) पूर्ण रोजगार
(5) आर्थिक विकास
मौद्रिक नीति के उपकरण
(A) मात्रात्मक :- (1) बैंक दर नीति (2) खुले बाजार की क्रियाएं तथा
(3) परिवर्तनशील कोष अनुपात को सम्मिलित किया जाता है।
(B) गुणात्मक :- (1) प्रत्यक्ष कार्यवाही
(2) मार्जिन में परिवर्तन (3) उपभोक्ता साख
नियमन (4) प्रचार (5) साख की राशनिंग
तथा (6) नैतिक दबाव
राजकोषीय नीति
राजकोषीय नीति से अभिप्राय,
देश में क्रय शक्ति के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए सरकार की आय - व्यय नीति (अथवा बजट संबंधी नीति ) से है, ताकि स्फीतिक अथवा अवस्फीतिक दबाव को नियंत्रित
किया जा सके।
राजकोषीय नीति के
उद्देश्य :- (1) वित्तीय संसाधनों का संग्रह (2) बचत को प्रोत्साहन
(3) मुद्रा स्फीति का नियंत्रण (4) सामाजिक
न्याय
प्रश्न :- प्रगतिशील
कर क्या है ? इसके गुण - दोषों की व्याख्या करें ?
उत्तर :- प्रगतिशील कर वह कर है जिसकी दर आय अथवा
सम्पत्ति में वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती जाती है। इस प्रणाली
में जिस व्यक्ति की आय जितनी ही अधिक
होगी उससे उतना ही अधिक कर वसूला जायेगा।
गुण अथवा पक्ष
(1) न्यायपूर्ण :- यह कर ऊंची आय वालों
से ऊंची दर के आधार पर कर लिया जाता है जो उपयोगिता ह्रास
नियम के अनुरूप है।
(2) कुल त्याग न्यूनतम सिद्धांत के अनुरूप :- निर्धन व्यक्तियों की तुलना में धनी व्यक्तियों को कम त्याग करना
पड़ता है।
(3) वितरण में समानता
:-
इस कर से धन के वितरण में अधिक समानता लाई जा सकती है।
(4) सरकार की आय
में वृद्धि सम्भव :- इस कर
के माध्यम से अमीर व्यक्तियों पर ऊंची दर से कर लगाकर सरकार अपनी आय की पूर्ति कर
सकती है।
दोष अथवा विपक्ष
(1) उत्पादन पर प्रतिकूल
प्रभाव :- जब लोग यह अनुभव करते हैं कि उनके द्वारा
अर्जित आय का बड़ा हिस्सा करो के रुप में लिया जाएगा तो वे उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित
नहीं होते।
(2) करो का आधार
गलत :-
इसके आधार पर यह मान्यता है कि तुलनात्मक रूप से एक निर्धन
व्यक्ति की तुलना में एक धनी व्यक्ति की मुद्रा की सीमांत उपयोगिता कम होती है। किंतु कुछ अर्थशास्त्री इसे सही नहीं
मानते क्योंकि उनकी दृष्टि में एक मानसिक तत्त्व होने से उपयोगिता की तुलना नहीं की
जा सकती है।
(3)
करो की मनमानी दर :- विभिन्न प्रकार
की आयों पर लगने के लिए कर की जो
दर निर्धारित की जाती है वह प्राय: मनमाने ढंग से निश्चित की जाती है जो किसी न किसी
रूप से अन्यायपूर्ण होती है।
(4) बचत और परिश्रम हतोत्साहित :- यह
कर बचत एवं परिश्रम करने वालों को सजा देती
है तथा फिजूलखर्ची करने वालों और आलसियों को प्रश्रेय देती है।
प्रश्न :- लोक वित्त को समझाएं ?
उत्तर :-लोक वित्त या सार्वजनिक वित्त से अभिप्राय किसी देश की सरकार के वित्तीय साधनों अर्थात आय और व्यय से है। फिन्डले शिराज के अनुसार," लोकवित्त सरकारी अधिकारियों द्वारा एकत्रित की जाने वाली आय तथा उसके व्यय में निहित सिद्धांतों का अध्ययन है।"
प्रश्न :- सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए। क्यों,
उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तुएँ ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जिनकी कीमत का निर्धारण बाजार कीमत तंत्र
द्वारा नहीं हो सकता। इनकी संतुलन कीमत व संतुलन मात्रा वैयक्तिक उपभोक्ताओं और उत्पादकों
के बीच संव्यवहार से नहीं हो सकती। उदाहरण-राष्ट्रीय प्रतिरक्षा, सड़क, लोक प्रशासन
आदि। सार्वजनिक वस्तुएँ सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि
(i)
सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ किसी उपभोक्ता विशेष तक ही सीमित नहीं रहता है, बल्कि इसका
लाभ सबको मिलता है। उदाहरण के लिए सार्वजनिक उद्यान अथवा वायु प्रदूषण को कम करने के
उपाय किये जाते हैं तो इसका लाभ सभी को मिलता है, भले ही वे इसका भुगतान करें या न
करें। ऐसी स्थिति में सार्वजनिक वस्तुओं पर शुल्क लगाना कठिन या कहें असंभव होता है,
इसे 'मुफ्तखोरी की समस्या कहा जाता है। इससे ये वस्तुएँ अर्वज्य हो जाती हैं अर्थात्
भुगतान नहीं करने वाले उपभोक्ता को इसके उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता।
(ii)
ये वस्तुएँ “प्रतिस्पर्धी” नहीं होती, क्योंकि एक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के उपभोग
को कम किये बिना इनका भरपूर प्रयोग कर सकता है।
प्रश्न :- सार्वजनिक आय के विभिन्न साधनों की
व्याख्या करें।
उत्तर: सार्वजनिक आय के स्रोतों को मोटे रूप
मे दो भागों मे विभाजित किया जा सकता है--
(अ) कर आय :- कर सार्वजनिक आय का सबसे प्राचीनतम स्त्रोत
है। आज भी सार्वजनिक आय का अधिकांश भाग करों के रूप मे ही प्राप्त किया जाता है। कर
राज्य की अनिर्वाय रूप से चुकायी जाने वाली राशि है। सरकार करों से प्राप्त इस राशि
को जन कल्याण संबंधी कार्यों पर व्यय कर देती है।
सामान्यतया कर दो प्रकार के होते है--
1. प्रत्यक्ष कर :- प्रत्यक्ष कर वह होता है, जिसका भार वही व्यक्ति
वहन करता है जिस पर वह लगाया जाता है, अर्थात् कराघात व करापात एक ही व्यक्ति पर होता
है। ऐसे करों मे आय कर मूल्य कर, संपत्ति कर, उपहार कर, व्यय कर आदि शामिल है।
2. अप्रत्यक्ष कर :- अप्रत्यक्ष या परोक्ष कर वह होता है जिसका
भुगतान एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है, पर भार किसी अन्य व्यक्ति द्वारा वहन किया
जाता है। इस तरह के करों मे बिक्री कर तथा उत्पादन कर शामिल है। इस कर को विक्रेता
तथा उत्पादक से वसूल किया जाता है, पर वे इसे ग्राहक तथा उपभोक्ता से वसूल कर लेते
है।
(ब) गैर-कर आय :- वे समस्त आय के स्रोत जो कर की श्रेणी मे नही
आते उन्हे गैर-कर आय मे शामिल किया जाता है। राज्य के कार्य क्षेत्र मे विस्तार के
साथ-साथ आय के गैर-कर स्त्रोतों मे भी वृद्धि हुई है। सरकार के गैर-कर आय के स्रोतों
का वर्मन इस प्रकार है--
1. शुल्क अथवा फीस :- राज्य समाज को कुछ सेवाएं प्रदान करता है,
जिसके बदले वह पूर्ण अथवा आंशिक लागत प्राप्त करता है। इसे शुल्क कहा जाता है। इस प्रकार
के भुगतान अनिर्वाय होते है। जैसे काॅलेजों मे ली जाने वाली फीस, कोर्ट फीस, रजिस्टेशन
फीस आदि।
कर और शुल्क मे अंतर है। कर व्यक्तियों से बिना
सुविधा के भी वसूल किये जाते है, जबकि शुल्क सुविधाओं का पारिश्रमिक होता है।
2. लाइसेन्स शुल्क:- शुल्क का भुगतान उस समय किया जाता है जबकि
व्यक्ति शासकीय सेवाओं का उपयोग करता है, परन्तु लाइसेन्स शुल्क तब देना होता है, जब
किसी कार्य को सरकार स्वयं न करके अपने कार्य का संपादन किसी व्यक्ति अथवा संस्था को
सौंप देती है। ऐसी दशा मे कार्य करने वाले व्यक्ति से लाइसेंस शुल्क वसूल किया जाता
है।
3. जुर्माना एवं संपत्ति जप्त करना:- यह सरकार की आय का प्रमुख स्त्रोत नही है।
इस स्त्रोत से सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त नही होती है। इस प्रकार की क्रियाओं से
सरकार को उसी दशा मे आय प्राप्त होती है, जब कोई व्यक्ति सरकारी नियमों एवं कानूनों
का उल्लंघन करता है। व्यक्ति बार-बार इस प्रकार की वारदातों को न करे, इसलिए उस पर
जुर्माना लगा दिया जाता है अथवा उस व्यक्ति की संपत्ति जप्त कर ली जाती है।
4. विशेष निर्धारण :- विशेष निर्धारणों से सरकार को प्रत्यक्ष आय
प्राप्त होती है। ये निर्धारण किसी विशेष व्यक्ति की सुविधा पर नही बल्कि जब परिस्थितियों
मे सुधार करना होता है, उस दशा मे विशेष निर्धारणों से आय प्राप्त की जाती है।
5. सार्वजनिक उपक्रम:- सरकार द्वारा जनहित की दृष्टि से ऐसे उद्योगों
का संचालन किया जाता है जो जोखिमपूर्ण तथा लाभप्रद नही होते। जोखिमपूर्ण उद्योगों के
अलावा सरकार ऐसे उद्योगों का संचालन भी करती है जिनसे सरकार को लाभ भी प्राप्त होता
है। इस तरह सार्वजनिक उपक्रम भी सरकार की आय प्राप्ति के मूख्य स्त्रोत है।
6. उपहार एवं अनुदान :- उपहार से अभिप्राय ऐसे भुगतान से है, जो कि
स्वेच्छा से किया जाता है। कुछ व्यक्ति दानशील प्रवृत्ति के होते है जो कि अस्पताल
बनवाने, स्कूल खोलने धर्मशाला बनवाने, गरीबों को सहायता प्रदान आदि कार्यों के लिये
सरकार को उपहार या दान देते है। उदाहरण के लिए कोरोना महामारी से निपटने मे, रतन टाटा, मुकेश अंबानी, अक्षय कुमार इत्यादि द्वारा
दिया गया अनुदान।
इसके साथ-साथ केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों
को अनुदान दिया जाता है। वर्तमान मे ऐसा अनुदान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रचलन
मे है। विकसित राष्ट्र अविकसित राष्ट्रों को तकनीकी शिक्षा, उद्योगों, सामाजिक कार्यों
आदि के क्षेत्रों को विकसित करने के लिये अनुदान प्रदान करते है।
7. महसूल:- सरकार द्वारा महसूल का इस्तेमाल उन वस्तुओं
के उपभोग पर किया जाता है जिनके उपभोग से सामाजिक बुराइयों को बल मिलता है, अनैतिकता
बढ़ती है, स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है एवं कुशलता मे कमी आती है। महसूल लगाने
से ऐसी वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती है जिसके कारण उपभोग मे कमी आती है। ऐसी वस्तुओं
मे मादक वस्तुएं शामिल है।
8. सरकारी संपत्ति:- सार्वजनिक संपत्ति पर सरकार का अधिकार होता
है। इन संपत्ति मे प्राकृतिक संपदा (भूमि, वन, खान) शामिल है। सरकार अपनी इस संपत्ति
को ठेकों आदि पर देकर लगान या राॅयल्टी प्राप्त करती है। इसके अलावा सरकार संपत्ति
को विक्रय कर के भी धन प्राप्त कर सकती है।
10. पत्र मुद्रा छापकर :- किसी भी देश मे नोट निर्गमन का अधिकार सरकार
को प्राप्त होता है। हमारे देश मे नोट निर्गमन का यह कार्य रिजर्व बैंक द्वारा किया
जाता है। जब सरकार के व्यय प्राप्त आय से पूरे नही हो पाते तो सरकार नये नोट छापकर
इन व्ययों को पूरा करती है। नये नोटों के निर्गमन से सरकार की आय बढ़ती है।
उपरोक्त आय के स्रोतों से यह स्पष्ट होता है
कि कर ही सरकारी आय प्राप्ति के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। कुछ अर्थशास्त्र ऋण
तथा नोट निर्गमन को सरकारी आय का स्त्रोत नही मानते, क्योंकि ऋणों को मय ब्याज सरकार
को लौटाना पड़ता है एवं नोट निर्गमन अप्रत्यक्ष कर का ही दूसरा रूप है।