11th 5. केंद्रीय प्रवृत्ति की माप, सांख्यिकी के सिद्धान्त JCERT/JAC Reference Book

11th 5. केंद्रीय प्रवृत्ति की माप, सांख्यिकी के सिद्धान्त JCERT/JAC Reference Book

11th 4. आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण सांख्यिकी के सिद्धान्त JCERT/JAC Reference Book

5. केंद्रीय प्रवृत्ति की माप

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

1. निम्नलिखित स्थितियों में कौन सा औसत उपयुक्त होगा?

(क) तैयार वस्त्रों के औसत आकार।

(ख) एक कक्षा के छात्रों की औसत बौद्धिक प्रतिभा।

(ग) एक कारखाने में प्रति पाली औसत उत्पादन।

(घ) एक कारखाने में औसत मजदूरी।

(ङ) जब औसत से निरपेक्ष विचलनों का योग न्यूनतम हों।

(च) जब चरों की मात्रा अनुपात में हो।

(छ) मुक्तांत बारंबारता बटने के मामले में

उत्तर :

(क) भूयिष्ठक

(ख) भूयिष्ठक

(ग) माध्य

(घ) माध्य

(ङ) माध्यिका

(च) माध्य

(छ) माध्यिका

प्र.2. प्रत्येक प्रश्न के सामने दिये गये बहुविकल्पों में से सर्वाधिक उचित विकल्प को चिह्नित करें:

(i) गुणात्मक मापन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त औसत है:

(क) समांतर माध्य।

(ख) माध्यिका

(ग) बहुलक

(घ) ज्यामितीय माध्ये

(ङ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

(ii) चरम मदों की उपस्थिति से कौन सा औसत सर्वाधिक प्रभावित होता है?

(क) माध्यिका

(ख) बहुलक

(ग) समांतर माध्य

(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

(iii) समांतर माध्य से मूल्यों के किसी समुच्चय के विचलन का बीजगणितीय योग है

(क) द

(ख) 0

(ग) 1

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

प्र.3. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही है या गलत

(क) माध्यिका से मदों के विचलनों का योग शून्य होता है।

(ख) श्रृंखलाओं की तुलना के लिए मात्र औसत ही पर्याप्त नहीं है।

(ग) समांतर माध्य एक स्थैतिक मूल्य है।

(घ) उच्च चतुर्थक शीर्ष 25 प्रतिशत मदों का निम्नतम मान है।

(ङ) माध्यिका चरम प्रेक्षणों द्वारा अनुचित रूप से प्रभावित होती है।

उत्तर :

(क) गलत

(ख) सही

(ग) गलत

(घ) सही

(ङ) गलत।

प्र.4. नीचे दिए गए आँकड़ों का समांतर माध्य 28 है, तो (क) लुप्त आवृत्ति का पता करें, और (ख) श्रृंखला की माध्यिका ज्ञात करें।

प्रति खुदरा दुकान लाभ(रू.में)

खुदरा दुकानों की संख्या

0-10

12

10-20

18

20-30

27

30-40

-

40-50

17

50-60

6

उत्तर : लुप्त आवृत्ति का पता करना

प्रति खुदरा दुकान लाभ(रू.में)

खुदरा दुकानों की संख्या

मध्य मूल्य

FM

0-10

12

5

60

10-20

18

15

270

20-30

27

25

675

30-40

X

35

35X

40-50

17

45

765

50-60

6

55

330

कुल

ΣF = 80+X

 

ΣFM = 2100+35X

 `\overline X=\frac{\sum_{i=1}^n\ƒ_i\m_i}{\sum_{i=1}^n\ƒ_i\}`

`28=\frac{2100+35X}{80+X\}`

2240 + 28X = 2100 + 35X

2240 - 2100 = 35X - 28X

140 = 7X

इसलिए X = 20 उत्तर

प्र.4. माध्यिका की गणना करें

प्रति खुदरा दुकान लाम (रु. में)

खुदरा दुकानों की संख्या

संचयी बारंबारता

0-10

12

12

10-20

18

30

20-30

27

57

30-40

20

77

40-50

17

94

50-60

6

100

माध्यिका = आकार N/2वें मद = आकार 100/2वें परिकलन 50वें मद 20-30 में है।

हम नीचे दिए गए सूत्रों का प्रयोग करके माध्यिका ज्ञात कर सकते हैं।

माध्यिका `=l_1+\frac{\frac N2-C}ƒ\times i`

`=20+\frac{50-30}{27}\times10`

माध्यिका = 20 + 7.40 = 27.40

माध्यिका 27.40 है।

प्र.5. निम्नलिखित सारणी में एक कारखाने 10 मजदूरों की दैनिक आय दी गयी है। इसका समांतर माध्य ज्ञात कीजिए।

मजदूर

दैनिक आय

A

20

B

150

C

180

D

20

E

250

F

300

G

220

H

350

I

370

J

260

उत्तर :

मजदूर

दैनिक आय

A

20

B

150

C

180

D

20

E

250

F

300

G

220

H

350

I

370

J

260

कुल

ΣX = 2400

 `\overline X=\frac1n\sum_{i=1}^nx_i`

माध्य `\overline X=\frac{2400}{10}=240`

प्र.6. निम्नलिखित सूचना 150 परिवारों की दैनिक आय से संबद्ध है। इससे समांतर माध्य का परिकलन कीजिए।

आय (रू. में)

परिवारों की संख्या

75 से अधिक

150

85 से अधिक

140

95 से अधिक

115

105 से अधिक

95

115 से अधिक

70

125 से अधिक

60

135 से अधिक

40

145 से अधिक

25

उत्तर :

आय (रू.में)

परिवारों की संख्या

मध्य मूल्य

FM

78-85

150

80

800

85-95

140

90

2250

95-105

115

100

2000

105-115

95

110

2750

115-125

70

120

1200

125-135

60

130

2600

135-145

40

140

2100

145-155

25

150

3750

कुल

ΣF = 150

 

ΣFM = 17450

 `\overline X=\frac{\sum_{i=1}^n\ƒ_i\m_i}{\sum_{i=1}^n\ƒ_i\}`

`\overline X=\frac{17450}{150}=116.33`

माध्य 116.33 है।

प्र.7. नीचे एक गाँव के 380 परिवारों की जोतों का आकार दिया गया है। जोत का माध्यिका आकार ज्ञात कीजिए।

जोतों का आकार (एकड़ में)

परिवारों की संख्या

100 से कम

40

100-200

89

20-300

148

300-400

64

400 से अधिक

39

उत्तर :

जोतों का आकार (एकड़ में)

संबंधी बारंबरता

100 से कम

40

200 से कम

129

300 से कम

277

400 से कम

341

500 से कम

380

माध्यिका = N / 2 का

माध्यिका = आकार 380/2 =190वें मद से 300 के बीच

हम नीचे दिए गए सूत्र कर प्रयोग करके माध्यिका ज्ञात कर सकते हैं।

माध्यिका `=l_1+\frac{\frac N2-C}ƒ\times i`

`=200+\frac{190-129}{148}\times100`

माध्यिका `=200+\frac{6100}{148}`

माध्यिका = 200 + 41.22 = 27.40

241.22 जोतों के आकार की माध्यिका है।

प्र.8. निम्नलिखित श्रृंखला किसी कंपनी में नियोजित मजदूरों की दैनिक आय से संबद्ध है। अभिकलन कीजिए:

(क) निम्नतम 50% मजदूरों की उच्चतम आय

(ख) शेष 25% मजदूरों द्वारा अर्जित न्यूनतम आय और

(ग) निम्नतम 25% मजदूरों द्वारा अर्जित अधिकतम आय

दैनिक आय (रू.में)

मजदूरों की संख्या

10-14

5

15-19

10

20-24

15

25-29

20

30-34

10

सकेतः माध्य, निम्न चतुर्थक तथा उच्च चतुर्थक को अभिकलन कीजिए।

उत्तर :

दैनिक आय (रू. में)

मजदूरों की संख्या

CF

9.5-14.5

5

5

14.5-19.5

10

15

19.5-24.5

15

30

24.5-29.5

20

50

29.5-34.5

10

60

34.5-39.5

5

65

(क) निम्नलिखित 50 मजदूरों की उच्चतम आय माध्यिका के बराबर होगी।

माध्यिका = आकार N/2

माध्यिका आकार 65/2 = 32वें मद जो 24.5 - 29.5 के बीच में है।

हम नीचे दिए गए सूत्र का प्रयोग करके माध्यिका ज्ञात कर सकते हैं।

माध्यिका `=l_1+\frac{\frac N2-C}ƒ\times i`

`=24.5+\frac{32.5-30}{20}\times5`

मध्यिका = 24.5 + 0.62

25.12 माध्यिका होगी।

(ख) शेष 25% मजदूरों द्वारा अर्जित न्यूनतम आय के लिए उच्च चतुर्थक ज्ञात करना होगा।

Q3 = 3(n) / 4 वें मद 3 (65)/4 = 48.75 वें मद

Q3 वर्ग है 24.5-29.51

फिर चतुर्थक को एक संतत श्रृंखला में नीचे दिए गए सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।

जहाँ l

`Q_3=l_1+\frac{\frac{3N}4-C}ƒ\times i`

`Q_3=24.5+\frac{48.5-30}{20}\times5`

Q3 = 24.5 + 4.68 = 29.19

(ग) निम्नलिखित 25% मजदूरों द्वारा अर्जित अधिकतम आय के लिए हमें Q1 ज्ञात करने की आवश्यकता है।

जहाँ l

`Q_1=l_1+\frac{\frac{N}4-C}ƒ\times i`

`Q_1=19.5+\frac{16.25-15}{15}\times5`

Q1 = 19.5 + 0.416 = 19.92

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1 संख्यात्मक तथ्यों के मूल्यों में, मूल्य के आसपास संकेन्द्रण होने की प्रवृत्ति कहलाती है-

(क) माध्य

(ख) केंद्रीय प्रवृत्ति की माप

(ग) उपरोक्त दोनों

(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

प्रश्न 2 विचलन द्वारा ज्ञात किया जाता है-

(क) माध्य से

(ख) कल्पित माध्य से

(ग) माध्यिका से

(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 3 सामान्यतया जब भी माध्य शब्द का प्रयोग किया जाता है तब इसका आशय होता है-

(क) अंकगणित माध्य से

(ख) माध्यिका से

(ग) बहुलक से

(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 4 वह केंद्रीय मूल्य जो अनुविन्यासित समंक श्रेणी को दो समान भागों में विभाजित करता है-

(क) समांतर माध्य

(ख) माध्यिका

(ग) बहुलक

(घ) ज्यामितीय माध्य

प्रश्न 5 ऐसा पद मूल्य जो वितरण में सबसे अधिक बार आता है, कहलाता है-

(क) माध्यिक

(ख) माध्य

(ग) बहुलक

(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 6 भार होता है-

(क) वास्तविक

(ख) अनुमानित

(ग) उपरोक्त दोनों

(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 7 सामान्य से औसत आकार अथवा औसत माप की बात की जाए तो इसका आशय होता है-

(क) समांतर माध्य

(ख) माध्यिका

(ग) बहुलक

(घ) इनमें से सभी

प्रश्न 8 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप होती है-

(क) समांतर माध्

(ख) निर्देशांक

(ग) माध्य विचलन

(घ) सहसंबंध

प्रश्न 9 माध्यिका को कहा जाता है-

(क) बहुलक

(ख) औसत

(ग) समूहीकरण

(घ) स्थिति संबंधी माध्य

प्रश्न 10 - भूयिष्ठक होता है-

(क) सबसे बड़ा प्रेक्षण

(ख) सबसे बड़ी आवृत्ति

(ग) उपरोक्त दोनों

(घ) प्रेक्षण जिसकी आवृत्ति सबसे अधिक हो।

प्रश्न 11 केंद्रीय प्रवृत्ति का सर्वाधिक लोकप्रिय माप है-

(क) माध्यिका

(ख) बहुलक

(ग) अंकगणितीय माध्य

(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 12 निम्न में से कौन सा केंद्रीय प्रवृत्ति की माप नहीं है-

(क) समांतर माध्य

(ख) बहुलक

(ग) मानक विचलन

(घ) माध्यिका

प्रश्न 13 - समांतर माध्य से लिये गए मूल्यों के विचलनों का योग सदैव होता है-

(क) शून्य

(ख) एक

(ग) एक से कम

(घ) एक से अधिक

प्रश्न 14 किस केंद्रीय प्रवृत्ति की माप में श्रेणी के सभी पद शामिल नहीं होते-

(क) समांतर माध्य

(ख) भूयिष्ठक

(ग) गुणोत्तर माध्य

(घ) हरात्मक माध्य

प्रश्न 15 - तैयार कपड़ों के 'माध्य' आकार के लिए उपयुक्त केंद्रीय प्रवृत्ति की माप होगी-

(क) समांतर माध्य

(ख) माध्यिका

(ग) भूयिष्ठक

(घ) गुणोत्तर माध्य

प्रश्न 16 - आवृत्ति आयात चित्र की सहायता से अनुमानित मान प्राप्त किया जा सकता है-

(क) समांतर माध्य

(ख) माध्यिका

(ग) भूयिष्ठक

(घ) विभाजन मूल्य

प्रश्न 17 - छात्रों के बौद्धिक स्तर की माप के लिए उपयुक्त माध्य है-

(क) समांतर माध्य

(ख) माध्यिका

(ग) भूयिष्ठक

(घ) इनमें से सभी

प्रश्न 18 द्वितीय चतुर्थक (f) कहा जाता है-

(क) निम्न चतुर्थक

(ख) माध्यिका

(ग) उच्च चतुर्थक

(घ) इनमें से सभी

प्रश्न 19 - एक अच्छे औसत के क्या लक्षण होने चाहिए-

(क) सरलता

(ख) निरपेक्ष संख्या

(ग) स्पष्ट एवं स्थिर परिभाषा

(घ) उपरोक्त में से सभी

प्रश्न 20- केंद्रीय प्रवृत्ति के अंतर्गत कौन से माप आते हैं-

(क) समांतर माध्य

(ख) माध्यिका

(ग) भूयिष्ठक

(घ) इनमें से सभी

प्रश्न 21 समांतर माध्य की गणना के लिए वर्गान्तर होने चाहिए-

(क) समावेशी

(ख) समान

(ग) असमान

(घ) उपरोक्त सभी संभव

प्रश्न 22 - बहुलक (भूयिष्ठक) की गणना में वर्गान्तर होना चाहिए-

(क) समावेशी होने चाहिए

(ख) समान होने चाहिए

(ग) असमान होने चाहिए

(घ) उपरोक्त सभी संभव

प्रश्न 23 - श्रेणी में बहुलक के लिए आवृत्ति-

(क) शून्य होनी चाहिए

(ख) सबसे कम होनी चाहिए

(ग) सबसे अधिक होनी चाहिए

(घ) उपरोक्त में सभी संभव है

प्रश्न 24 - यदि किसी श्रेणी में अति सीमांत पदों को ज्यादा महत्व न दिया जाए, तो उपयुक्त माध्य होगा-

(क) समांतर माध्य

(ख) माध्यिका

(ग) उपर्युक्त दोनों

(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 25 किसी परिवार में औसत बच्चों की संख्या ज्ञात करने के लिए उपयुक्त माध्य होगा-

(क) समांतर माध्य

(ख) माध्यिका

(ग) भूयिष्ठक

(घ) इनमें से सभी

प्रश्न 26 सही/गलत कथन की पहचान करें।

(क) श्रृंखलाओं की तुलना के लिए मात्र औसत ही पर्याप्त नहीं है।

उत्तरः सही

(ख) समान्तर माध्ये एक स्थैतिक मूल्य है।

उत्तरः गलत ।

(ग) उच्च चतुर्थक शीर्ष 25 प्रतिशत मदों का निम्नतम मान है।

उत्तरः सही।

(घ) मध्यिका चरम प्रेक्षणों द्वारा अनुचित रूप से प्रभावित होती है।

उत्तरः गलत ।

पाठ का परिचय

5.1.1 प्रस्तावना

केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप आँकड़ों की संक्षिप्त रूप में व्याख्या करने की संख्यात्मक विधि है। यह आंकड़ों का संक्षेपन किसी एकल मान में इस प्रकार करता है की यह मान सम्पूर्ण आंकड़ों का प्रतिनिधित्व करे। इस प्रकार केंद्रीय प्रवृति की माप प्रतिनिधि मान के रूप में आंकड़ों के संक्षेपण की एक विधि है। इसे सांख्यिकीय माप भी कहते है।

उदाहरण: कक्षा के छात्रों द्वारा किसी विषय में प्राप्त किए गए औसत अंक, किसी फैक्ट्री में सबसे ज्यादा बनने वाले सामग्री का नाम, देश के किसानों के खेतों का औसत आकार तुलना करना हो तो केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप की मदद लेनी होगी।

केंद्रीय प्रवृत्ति की माप या सांख्यिकीय माप

परिभाषा-एक ऐसा अंक जो किसी श्रेणी के लगभग मध्य में स्थित होता है और उसके महत्वपूर्ण लक्षणों का प्रतिनिधित्व करता है।

केंद्रीय प्रवृत्ति की माप की विशेषताएं

a. एक ऐसी बिंदु जिस के आस पास अन्य बिंदुओं के जमाव होने की प्रवृत्ति मौजूद हो.

b. केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप दिये गये आकड़ो (Data) का प्रतिनिधित्व करता है।

c. यह आंकड़ों (समकों) को संक्षित व सरल रूप में व्याख्या करने की एक संख्यात्मक विधि है।

d. केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप का अर्थ औसत मान (Average value) होता है।

e. सांख्यिकी के अंतर्गत औसत का अर्थ ही केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप से लगाया जाता है।

केंद्रीय प्रवृत्ति (Central Tendency) या संखिकीय माध्य (Statistical Average)

1. गणितीय माध्य (Mathematical Mean)

a. समांतर माध्य (Arithmetic Mean)

b. गुणोत्तर या ज्यामितीय माध्य (Geometric mean)

c. हरात्मक माध्य (Geometric mean)

2. स्थिति संबंधी माध्य (Positional Average)

a. माध्यिका (Median)

b. बहुलक या भूयिष्ठक (Mode)

5.2.1 गणितीय माध्य :

माध्य या मध्यमान केन्द्रीय प्रवृत्ति की एक माप है। वह संख्या जो किसी समूह के सभी आंकड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, उस समूह का माध्य कहलाती है।

इसके मुख्य तीन प्रकार है-

1. समांतर या अंकगणितीय माध्य (Arithemetic mean)

2. हरात्मक माध्य (Harmonic & mean)

3. ज्यामितीय माध्य (Geometric mean) कहते हैं।

ज्यामितीय माध्य तथा हरात्मक माध्य का उपयोग विशिष्ट पारस्थियों में होता है। हम यहाँ समानांतर माध्य का अध्ययन करें है।

5.2.2 समान्तर माध्य- केंद्रीय प्रवृत्ति का सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला माप समांतर माध्य है। इसका चिह्न x होता है।

समान्तर माध्य के गुण -

1. सरल एवं बुद्धिगम्यः- सांख्यिकीय माध्यों में समान्तर माध्य की गणना सबसे सरल है तथा एक सामान्य व्यक्ति भी इसे आसानी से समझ सकता है।

2. सभी मूल्यों पर आधारितः समान्तर माध्य श्रेणी के सभी मूल्यों पर आधारित होता है। जबकि बहुलक एवं माध्यिका, श्रेणी के सभी मूल्यों पर आधारित नहीं होते हैं।

3. स्थिरता :- समान्तर माध्य केन्द्रीय प्रवृत्ति का एक स्थाई माप है। इस पर निदर्शन के परिवर्तनों का न्यूनतम प्रभाव पड़ता है।

4. निश्चितता :- समान्तर माध्य सदैव निश्चित एवं एक ही होता है। इसकी गणना करने में अनुमान का सहारा नहीं लिया जाता है।

5. तुलनात्मक विवेचन : इसकी सहायता से दो श्रेणियों में आसानी से तुलना की जा सकती है।

6. पदों के क्रम बदलने की आवश्यकता नहीं- समान्तर माध्य निकालते समय पदों के क्रम को बदलने की आवश्यकता नहीं होती है.।

7. अपूर्णताओं में भी गणना: यदि सभी पदों के मूल्य पता न हों, लेकिन उनका योग व पद संख्या ज्ञात हो, तो भी समान्तर माध्य की गणना की जा सकती है।

8. अज्ञात मूल्यों की गणना- यदि किसी श्रेणी के समान्तर माध्य, पदों की संख्या तथा पदों के योग में से कोई एक अज्ञात हो, तो उसे दो ज्ञात संख्याओं की सहायता से जाना जा सकता है।

समान्तर माध्य के दोष-

1. चरम मूल्यों का अधिक प्रभाव:- समान्तर माध्य का सबसे बड़ा दोष है कि यह चरम मूल्यों को अधिक महत्व देता है जिसके कारण यह कभी-कभी श्रेणी के सभी मूल्यों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं कर पाता है।

2. भ्रमात्मक निष्कर्ष:- समान्तर माध्य के आधार पर कभी-कभी बड़े ही भ्रमात्मक निष्कर्ष निकलते हैं, यदि समंक श्रेणी की रचना व बनावट पर ध्यान न दिया जाए।

3. अप्रतिनिधित्व: प्रायः समान्तर माध्य ऐसा मूल्य होता है जो समंकमाला में विद्यमान ही नहीं होता। ऐसा मूल्य प्रतिनिधि मूल्य कैसे हो सकता है।

4. अवास्तविक माध्य- कभी कभी यह माध्य पूर्णांक में न होकर दशमलव में आता है जो स्थिति को हास्यास्पद बना देता है।

5. गणना कठिन- यदि समंक माला में कोई मूल्य अज्ञात हो, तो इसकी गणना नहीं की जा सकती है।

5.2.2a प्रत्यक्ष एवं लघु रीति द्वारा समान्तर माध्य की गणना विधि

समान्तर माध्य की गणना

व्यक्तिगत श्रेणी में

1. प्रत्यक्ष रीति

व्यक्तिगगत श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से व्यक्तिगत श्रेणी में समान्तर माध्य की गणना करने के लिए

सभी पदों का योग करने के बाद उसमें पदों की संख्या का भाग दे दिया जाता है।

इसका सूत्र निम्न है

माध्य अवलोकन का योग अवलोकनों की संख्या

यहाँ X = समान्तर माध्य, ΣX पद मूल्यों का योग, N= पदों की संख्या।

2. लघु रीति

किसी पद मूल्य या संख्या को कल्पित माध्य मान लेते हैं। यह पद मूल्य बीच का हो, तो अधिक अच्छा रहता है।

1. प्रत्येक पद मूल्य में से इस कल्पित माध्य को घटाकर पदों से विचलन ज्ञात किए जाते हैं।

2. विचलनों का योग लगाकर उसमें पद संख्या का भाग दे देते हैं।

3. कल्पित माध्य तथा भाग देने पर आई संख्या को जोड़ देते हैं।

4 इस प्रकार प्राप्त मूल्य ही समान्तर माध्य होता है। इसके लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है।

`\overline X=A+\frac{\Sigma dx}n`

यहाँ `\overline X` = समान्तर माध्य, । = कल्पित माध्य, Σdx = कल्पित माध्य से लिए गए विचलनों का योग, n = पदों की संख्या।

उदाहरण :

निम्नलिखित समंकों से प्रत्यक्ष एवं लघु रीति से समान्तर माध्य की गणना कीजिए

क्र. सं

1

2

3

4

5

6

7

8

9

प्राप्तांक

35

28

14

16

21

24

17

13

27

हल-

क्रम संख्या

प्रप्तांक (x)

कल्पित माध्य से विचलन A = 28[X - A]

1

35

+7

2

28

0

3

14

-14

4

16

-12

5

21

-7

6

24

-4

7

17

-11

8

13

-15

9

27

-1

10

45

+17

N=10

Σ= 240

Σdx = -40

प्रत्यक्ष रीति `\overline X=\frac{\Sigma x}n=\frac{240}{10}=24`

समान्तर माध्य = 24

`\overline X=A+\frac{\Sigma dx}n`

लघु रीति -`\overline X=28+\frac{-40}{10}=28-4=24`

समान्तर माध्य = 24

5.2.2b खण्डित श्रेणी में समान्तर माध्य की गणना

1 प्रत्यक्ष रीति से

प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना करने के लिए सर्वप्रथम पद मूल्यों (x) तथा आवृत्ति (f) का गुणा करके उनका योग ज्ञात करते हैं अर्थात् Σfx निकालते हैं।

इसके बाद आवृत्तियों (f) का योग Σf ज्ञात करते हैं। तत्पश्चात् समान्तर माध्य का निम्न सूत्र प्रयोग करके समान्तर माध्य की गणना करते हैं:

`\overline X=\frac{\Sigma ƒx}{\Sigma ƒ}` 

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण :

निम्न समंकों से प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना कीजिए :

पद मूल्य (x)

4

6

8

10

12

14

आवृत्ति (ƒ)

5

9

11

8

4

3

हल-

पद मूल्य (x)

आवृत्ति (ƒ)

पद मूल्य X आवृत्ति (ƒx)

4

5

20

6

9

54

8

11

88

10

8

80

12

4

48

14

3

42

 

Σƒ = 40

Σƒx =332

 `\overline X=\frac{\Sigma ƒx}{\Sigma ƒ}`

`=\frac{332}{40}=8.3`

(ब) लघु रीति द्वारा खण्डित श्रेणी में समान्तर माध्य की गणना लघु रीति द्वारा समान्तर माध्य की गणना करने के लिए निम्न प्रक्रिया अपनाते हैं:

पद मूल्यों में से (विशेष रूप में बीच से कोई मूल्य) किसी संख्या को कल्पित माध्य (A) मान लेते हैं। सभी पद मूल्यों में से कल्पित माध्य घटाकर (X - A) विचलन (dx) ज्ञात करते हैं।

इन विचलनों का उनकी आवृत्तियों से गुणा करते हैं (ƒdx) और इनका योग (Σƒd) लगा लेते हैं। आवृत्ति का योग (Σƒ) लगाते हैं। इसके बाद निम्न सूत्र का प्रयोग करके समान्तर माध्य ज्ञात कर लेते हैं

`Mean\overline X=A+\frac{\Sigma ƒx}{\Sigma ƒ}`

उदाहरण :

प्रत्यक्ष रीति से वर्णित प्रश्न को लघु रीति द्वारा हल कीजिए -

हल :

पद मूल्य (x)

आवृति (f)

A = 8 कल्पित माध्य (A) से विचलन (dx)

विचलन का आवृति गुणा (fdx)

4

5

-4

-20

6

9

-2

-18

8

11

0

0

10

8

+2

16

12

4

+4

16

14

3

+6

18

 

Σƒ = 40

 

Σƒdx = 12

अखण्डित श्रेणी अथवा श्रेणी में माध्य की गणना 

`Mean\overline X=A+\frac{\Sigma ƒdx}{\Sigma ƒ}`

`=8+\frac{12}{40}=8.3`

अखण्डित श्रेणी एवं खण्डित श्रेणी में समान्तर माध्य की गणना करने की प्रक्रिया तथा सूत्र एक जैसे हैं। सिर्फ अन्तर यह है कि अविछिन्न श्रेणी में जो वर्ग (Groups) दिए होते हैं, उनके मध्य मूल्य (Mid Value) निकाले जाते हैं और यही मध्य मूल्य (x) या पद मूल्य माना जाता है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण :

प्राप्ताक

5-10

10-15

15-20

20-25

25-30

30-35

छात्रों की सख्या

4

12

14

8

7

5

हल :

प्रप्तांक (C.I.)

मध्य बिंदु (x)

आवृत्ति (f)

fx

A = 17.5(dx)

ƒdx

5-10

7.5

4

30

-10

-40

10-15

12.5

12

150

-5

-60

15-20

17.5

14

245

0

0

20-25

22.5

8

180

5

40

25-30

27.5

7

192.5

10

70

30-35

32.5

5

162.5

15

75

 

 

Σƒ = 50

Σƒx=960

 

Σƒdx=85

प्रत्यक्ष रीति द्वारा 

Mean `\overline X=\frac{\Sigma ƒx}{\Sigma ƒ}`

`=\frac{960}{50}=19.2`

समान्तर माध्य = 19.2 अंक

`Mean \overline X=A+\frac{\Sigma ƒdx}{\Sigma ƒ}`

`Mean \overline X=17.5+\frac{85}{50}`

= 17.5 + 1.7 = 19.2

समान्तर माध्य = 19.2 अंक ।

5.2.2c संचयी आवृत्ति वितरण में समान्तर माध्य की गणना

जब वर्गान्तरों को संचयी आधार पर दिया गया हो, तो सर्वप्रथम संचयी आवृत्ति से विभिन्न वर्गों की आवृत्तियाँ ज्ञात करते हैं। इसके बाद समान्तर माध्य की गणना की जाती है।

उदाहरण :

निम्नलिखित तालिका से समान्तर माध्य की गणना लघु रीति से कीजिए:

अंक (से कम)

5

10

15

20

25

30

संचयी आवृति

4

16

30

38

45

50

हलः

सर्वप्रथम संचयी आवृत्ति से वर्गों एवं उनकी आवृत्तियों को ज्ञात करेंगे।

प्राप्तांक (C.I.)

आवृति (ƒ)

मध्य बिंदु (x)

A = 12.5 कल्पित माध्य से विचलन (dx)

विचलन x आयु (fdx)

0-5

4

2.5

-10

-40

5-10

(16-4) =12

7.5

-5

-60

10-15

(30-16)=14

12.5

0

0

15-20

(38-30)=8

17.5

5

40

20-25

(45-38)=7

22.5

10

70

25-30

(50-45)=5

27.5

15

75

 

Σƒ = 50

 

 

Σƒdx=85

 `Mean \overline X=A+\frac{\Sigma ƒdx}{\Sigma ƒ}`

`Mean \overline X=12.5+\frac{85}{50}`

= 12.5 + 1.7 = 14.2

समान्तर माध्य = 14.2 अंक

5.2.2d समान्तर माध्य गणना की पद विचलन रीति

1. समान्तर माध्य गणना की पद विचलन रीति-समान्तर माध्य गणना की पद विचलन रीति गुणन क्रिया को सरल करने के लिए अपनायी जाती है।

2. इसका प्रयोग तभी किया जाता है, जबकि विभिन्न पद मूल्यों के विचलनों को उभयनिष्ठ गुणक (Common Factor) से भाग दिया जा सके।

3. ऐसा करने से विचलन की संख्या छोटी हो जाती है तथा गुणन क्रिया सरल हो जाती है।

4. जब विभिन्न वर्गों के वर्गान्तर बराबर होते हैं, तो वर्गान्तर से ही विचलनों में भाग देकर पद विचलन ज्ञात कर लिए जाते हैं। पद विचलन रीति से समान्तर माध्य की गणना का सूत्र निम्न प्रकार है।

`Mean \overline X=A+\frac{\Sigma ƒdx^I}{\Sigma ƒ}\times i`

यहाँ `\overline X` = समान्तर माध्य, A = कल्पित माध्य, d' = पद विचलन, ƒdx = पद विचलन का आवृत्ति से गुणनफल, N = पद संख्या, i = वर्गान्तर, Σ = योग।

उदाहरण :

निम्नलिखित सारणी से पद विचलन रीति द्वारा समान्तर माध्य की गणना कीजिए:

C.I

Ƒ

MV

x

A = 25

dx

i = 10

dxI

ƒdxI

0-10

3

5

-20

-2

-6

10-20

2

15

-10

-1

-2

20-30

3

25

0

0

0

30-40

1

35

10

1

1

40-50

2

45

20

2

4

50-60

1

55

30

3

3

 

Σƒ = 12

 

 

 

ΣƒdxI = 8-8 =0

`Mean \overline X=A+\frac{\Sigma ƒdx^I}{\Sigma ƒ}\times i` 

`=25+\frac0{12}\times10`

= 25 + 0 = 25

5.3.1 भारित समान्तर माध्य

समान्तर माध्य का एक महत्वपूर्ण दोष यह है कि इसमें श्रेणी के सभी पदों को समान महत्व दिया जाता है, जबकि व्यवहार में पद मूल्यों का महत्व कम या अधिक होता है, समान नहीं होता। इस कारण पद मूल्यों के महत्व को ध्यान में रखकर समान्तर माध्य की गणना की जानी चाहिए।

5.3.1a भारित समान्तर माध्य का आशय :

भारित समान्तर माध्य की गणना में प्रत्येक मद या पद के मूल्य का महत्व निश्चितता है। इन अंकों को ही भार कहते हैं। भारों के आधार पर निकाले गए समान्तर माध्य को भारित समान्तर माध्य कहते हैं।

5.3.1b भारित समान्तर माध्य की आवश्यकता

भारों की आवश्यकता को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। एक विद्यालय में प्रधानाचार्य, प्रवक्ता, अध्यापक, लिपिक तथा चपरासी कार्य करते हैं। इन सभी को यदि समान मानकर इनके औसत वेतन की गणना की जाएगी, तो औसत वेतन भ्रमात्मक हो सकता है, लेकिन यदि उनके वेतन में उनकी संख्या का गुणा (भार) करके औसत वेतन निकालेंगे, तो जो औसत वेतन आयेगा वह अधिक सही स्थिति बताएगा।

5.3.1c गणना विधि :

1. भारित समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष एवं लघु दोनों विधियों से की जा सकती है प्रत्यक्ष विधि-इस विधि से भारित समान्तर माध्य निकालने के लिए निम्न प्रक्रिया अपनायी जाती है।

2. प्रत्येक पद (X) और उसके भार (W) में गुणा करके पद व भार का गुणनफल (WX) निकालते हैं।

3. पद व भार के गुणनफल का योग (ΣWX) ज्ञात करते हैं।

4. भार का योग (ΣW) निकालते हैं।

5. इसके बाद निम्न सूत्र द्वारा भारित समान्तर माध्य की गणना करते हैं

`\overline X_w=A+\frac{\Sigma Wd}{\Sigma W}`

लघु विधि :

लघु विधि से भारित माध्य

1. सर्वप्रथम किसी पद मूल्य को कल्पित भारित माध्य माना जाता है।।

2. इसके बाद कल्पित भारित माध्य से विभिन्न पद मूल्यों के विचलन निकालते हैं।

3. विचलनों का भार से गुणा करके (Wd) निकालते हैं।

4. विचलनों के भार से गुणनफल का योग (ΣWd) निकालते हैं।

5. इसके बाद निम्न सूत्र का प्रयोग करके भारित समान्तर माध्य की गणना करते हैं

`\overline X_w=A+\frac{\Sigma Wd}{\Sigma W}`

व्यवहार में, भारित समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष रीति से की जाती है।

उदाहरण :

निम्नलिखित तालिका की सहायता से भारित समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष एवं लघु दोनों रीतियों से कीजिए :

कर्मचारियों की श्रेणी

मासिक वेतन

कर्मचारियों की संख्या

प्राधानाचार्य

42,000

1

वरिष्ठ प्रवक्ता

38,000

5

कनिष्ठ प्रवक्ता

24,000

8

अध्यापक

17,000

12

लिपिक

12,000

5

चपरासी

7,000

8

हलः

कर्मचारियों की श्रेणी

मासिक वेतन (x)

संख्या (w)

(wx)

कल्पित माध्य से विचलन (d) A = 24000

विचलन का भार से गुणा (wd)

प्राधानाचार्य

42,000

1

42000

18000

18000

वरिष्ठ प्रवक्ता

38,000

5

190000

14000

70000

कनिष्ठ प्रवक्ता

24,000

8

192000

0

0

अध्यापक

17,000

12

204000

-7000

-84000

लिपिक

12,000

5

60000

-12000

-60000

चपरासी

7,000

8

56000

-17000

-136000

 

 

Σw=39

744000

 

Σwd=-192000

प्रत्यक्ष रीति - `\overline X_w=A+\frac{\Sigma Wx}{\Sigma W}`

`=\frac{744000}{39}=9,07692`

लघु रीति- `\overline X_w=A+\frac{\Sigma Wd}{\Sigma W}`

`=2400+\frac{-192000}{39}`

= 24000 - 4923.8 = 9 ,07692

सरल व भारित समान्तर माध्य की तुलना

1. श्रेणी के प्रत्येक मूल्य को समान भार देने की दशा में सरल व भारित समान्तर माध्य बराबर होते हैं।

`\overline X=\overline X_w`

2. जब श्रेणी के छोटे मूल्यों को अधिक भार और बड़े मूल्यों को कम भार दिया जाता है, तब सरल समान्तर माध्य भारित समान्तर माध्य से अधिक होता है।

`\overline X>\overline X_w`

3. जब श्रेणी के छोटे मूल्यों को कम भार तथा बड़े मूल्यों को अधिक भार दिया जाता है, तब सरल समान्तर माध्य भारित समान्तर माध्य से कम होता है।

`\overline X<\overline X_w`

5.3.3 सामूहिक समान्तर माध्य (Combined Arithmetic Mean)

सामूहिक समान्तर माध्य (Combined Arithmetic Mean):- यदि किसी समूह के दो या अधिक भागों के अलग-अलग समांतर माध्य और उन भागों में पदों की संख्या ज्ञात हो तो उनकी सहायता से पूरे समूह का सामूहिक समान्तर माध्य (Combined Arithmetic Mean) ज्ञात किया जा सकता है। सामूहिक समांतर माध्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है:

सामूहिक समान्तर माध्य (Combined Arithmetic Mean)

5.4 माध्यिका

माध्यिका वह मान है जो संख्याओं के श्रेणी को दो बराबर संख्याओं में विभाजित करता है. इस संख्या को ज्ञात करने के लिए आंकड़ों को बढ़ते अथवा घटते क्रम यानी आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित कर गणना किया जाता है.

डॉ० बाउले के शब्दों में "यदि एक समूह के पदों को उनके मूल्यों के अनुसार क्रमबद्ध किया जाए, तब लगभग मध्य पद का मूल्य 'मध्यिका' होता है।"

5.4.1 मध्यिका के गुण

(1) माध्यिका को समझना व ज्ञात करना अत्यंत सरल होता है।

(2) माध्यिका पर चरम मूल्यों यानि कि अति सीमान्त मूल्यों (पदों) का प्रभाव नहीं पड़ता है।

(3 बिंदु-रेखाचित्र यानि कि ग्राफ द्वारा भी ज्ञात किया जा सकता है।

(4) माध्यिका एक निश्चित एवं स्पष्ट माध्य होता है।

(5) यदि समंक श्रेणी छोटी हो, तो माध्यिका की गणना निरीक्षण से भी संभव है।

(6) ऐसे तथ्य जैसे सुंदरता, बौद्धिक स्तर, स्वास्थ्य आदि को संख्यात्मक रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता। तब ऐसी परिस्थिति में उन्हें क्रमानुसार व्यवस्थित करने के बाद माध्यिका का प्रयोग किया जा सकता है।

5.4.2 मध्यिका के दोष या सीमाएँ

(1) माध्यिका की बीजगणितीय विवेचना संभव नहीं होती है।

(2) माध्यिका की गणना करनी हो तो व्यक्तिगत श्रेणी में समंक श्रेणी को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित करने अनिवार्य होता है। जो कि असुविधाजनक होता है।

(3) यदि चर-मूल्यों का वितरण अनियमित हो तो ऐसी परिस्थिति में माध्यिका के भ्रमात्मक निष्कर्ष प्राप्त होते हैं। अर्थात सीधे शब्दों में कहा जाए तो यह अनियमित आँकड़ों के लिए उपयुक्त नहीं है।

(4) माध्यिका सीमान्त मूल्यों को महत्व नहीं देता है। अर्थात जहाँ इन मूल्यों का महत्व ज्यादा होता है वहीं पर यह अनुपयुक्त होता है।

(5) माध्यिका केवल संभावित अनुमानित माप होती है। वास्तविक होने की संभावना कम होती है।

(6) माध्यिका में प्रतिनिधित्व का अभाव पाया जाता है। क्योंकि यह प्रत्येक पदों पर आधारित नहीं होती।

मध्यिका के उपयोग

1. माध्यिका समझने में सरल हैय अतः व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए इसका बहुत अधिक उपयोग होता है।

2. इसके द्वारा गुणात्मक तथ्यों जैसे बुद्धिमत्ता, स्वास्थ्य आदि का भी अध्ययन किया जा सकता है।

3. इसी कारण सामाजिक समस्याओं के विश्लेषण में यह अत्यधिक उपयोगी है।

4. यह उन दशाओं में अधिक उपयोगी है, जहाँ अति सीमान्त पदों को महत्त्व नहीं दिया जाता अथवा वितरण विषम होता है।

5.4.4 मध्यिका ज्ञात करने की विधि

यदि दी गई संख्याएँ सम, और विषम n संख्याएँ हो, तो अलग-अलग सूत्र का उपयोग होता है.

1. जब n विषम संख्या हो, तो

मध्यिका (M) = [(n+1)/2] वाँ पद

2. जब n सम संख्या हो, तो

मध्यिका = (n/2) वाँ पद

मध्यिका M = [(n/2) वाँ पद+ {(n/2)+1}वाँ]/2

उदाहरण :

1. निम्नलिखित आँकड़ों का माध्यिका मान ज्ञात कीजिए -

50,42,48,52,47,58,60,40,51

क्रम संख्या

मूल्य

1

40

2

42

3

47

4

48

5

50

6

51

7

52

8

58

9

60

यहां M= [N+1]/2 वां पद

यहां N = मदों की संख्या

M = [9 + 1] / 2 वा 44 = 10/2 =5 पद का मूल्य

यहां 5 वें पद का मूल्य = 50

इसलिए यहां M = 50 उत्तर

यदि वस्तु का मूल्य सम है, तो प्रक्रिया बदल जाएगी जो नीचे दिए गए उदाहरण

उदाहरण 2 से स्पष्ट हो जाएगी।

नीचे 10 परिवारों की 'मासिक आय' दी गई है। माध्यिका ज्ञात कीजिए। 

S.N

A

B

C

D

E

F

G

H

I

J

मासिक आय

2000

2200

1800

1700

1100

3100

1500

4000

3600

800

हलः सबसे पहले श्रृंखला को आरोही क्रम में व्यवस्थित करें।

सीरीयल नम्बर

मासिक आय

1

800

2

1100

3

1500

4

1700

5

1800

6

2000

7

2200

8

3100

9

3600

10

4000

Median = Value of `\frac{(N+1)}2` th items

here N = number of items, M = Median 

Median = Value of `\frac{(10+1)}2`th items = 5.5th item

Value of 5.5th item = Value of 5th item `\frac{6^{th}-5^{th}}2`

`=1800+\frac{2000-1800}2`

= 1800 + 100 = Rs.1900

Median = Rs.1900

5.4.4a सतत श्रृंखला में माध्यिका निर्धारित करने की प्रक्रिया निम्नलिखित हैः

1. संचयी आवृत्तियों को पहले चरण में निर्धारित किया जाता है।

2. माध्यिका मद को (N / 2) वे पद द्वारा ज्ञात किया जाता है।

3. माध्यिका पद वाले माध्यिका वर्ग को ज्ञात किया जाता है।

4. सूत्र का उपयोग कर माध्यिका ज्ञात की जाती है।

जब डेटा-आइटम श्रृंखला आरोही क्रम में होः

M `=l_1+\frac{\frac N2-C}ƒ\times i`

जब डेटा आइटम श्रृंखला अवरोही क्रम में होः

M `=l_1+\frac{\frac N2-C}ƒ\times i`

M = माध्यिका

i = माध्यिका वर्ग का वर्ग परिमाण (l2 - l1)

f = माध्यिका वर्ग

N की बारंबारता = कुल बारंबारता c = माध्यिका वर्ग के पूर्ववर्ती

वर्ग की संचयी आवृत्ति = C

l1 = माध्यिका वर्ग की ऊपरी सीमा

l2 = की निचली सीमा मध्य वर्ग

उदाहरण 1.

निम्नलिखित मद श्रृंखला से माध्यिका ज्ञात कीजिए:

Obtained Marks

0-10

10-20

20-30

30-40

40-50

No. of Students

4

6

9

7

5

समाधानः

प्राप्त अंक

छात्रों की संख्या (च)

संचयी आवृत्ति (एफ)

0-10

4

4

10-20

6

10 सीएफ

एल1 20-30

9

19

30-40

7

26

40-50

5

31

 M = VAlue of `\frac N2` th term = `\frac{31}2` = 15.5th item

Item 15.5th is included in the cumulative frequency 19. Therefore the class in front of this i.e. 20-30 is called median class.

M `=l_1+\frac{\frac N2-C}ƒ\times i`

`M=20+\frac{15.5-9}9\times10` = 20 + 7.22 = 27.22

Median = 27.22 marks

5.5.1 चतुर्थक

चतुर्थक को एक माप द्वारा परिभाषित किया जाता है जो श्रृंखला को 4 बराबर भागों में विभाजित करता है।

1. जब किसी मद समूह या श्रृंखला को 4 बराबर भागों में बांटा जाता है, तो प्रत्येक भाग की अंतिम इकाई को चतुर्थक कहते हैं।

2. इस प्रकार किसी भी श्रेणी में चार चतुर्थक होते हैं।

3. चौथे चतुर्थक मूल्य की एक अंतिम सीमा होती है इसलिए इसकी गणना करना आवश्यक नहीं है,

4 दूसरा चतुर्थक माध्यिका है, इसलिए केवल प्रथम और तृतीय चतुर्थक की गणना करने की आवश्यकता है।

5. प्रथम चतुर्थक को निम्न चतुर्थक तथा तृतीय चतुर्थक को उच्च चतुर्थक कहते हैं।

6. इन्हें क्रमशः Q1 और Q3 प्रतीकों द्वारा दर्शाया गया है।

7. प्रथम चतुर्थक में 25% वितरण मद इससे कम तथा 75% मान इससे अधिक होते हैं।

8. दूसरे चतुर्थक या माध्यिका में, 50% मान ऊपर हैं, और 50% नीचे होते हैं।

9. तीसरे चतुर्थक में 75% आइटम इसके नीचे हैं और 25% आइटम इसके ऊपर होते हैं।

10. इस प्रकार, 50% आंकड़े Q1 और Q3 की सीमाओं के बीच मौजूद हैं

5.5.2 चतुर्थक की गणना की विधिः

विभिन्न सांख्यिकीय श्रृंखलाओं के लिए चतुर्थक मानों की गणना अलग-अलग की जाती है

(i) व्यक्तिगत और असतत श्रृंखलाः

व्यक्तिगत और असतत श्रृंखला में चतुर्थक की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जाता है

Q1 = Value of [N + 1/4]th item

Q3 = Value of [3N + 1/4]th item

व्यक्तिगत श्रृंखला में N = कुल संख्या। मदों की संख्या और असतत श्रृंखला में N = आवृत्तियों का योग

(ii) अबाधित और सतत श्रंखला इन श्रृंखलाओं में सबसे पहले Q1 और Q3 का पता लगाया जाएगा और इसके लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाएगाः

Q1 = Value of [N + 1/4]th item

Q3 = Value of [3N + 1/4]th item

इसके बाद, हम देखते हैं कि उपरोक्त सूत्र द्वारा निकाली गई प्राप्त वस्तु किस संचयी आवृत्ति में है। उस संचयी बारंबारता के सामने का वर्ग Q1 और Q3 है। फिर Q1 और Q3 का मान सूत्र की सहायता से निर्धारित किया जाता है। 

`Q_1=l_1+\frac{\frac{N}4-C}ƒ\times i`

`Q_3=l_1+\frac{\frac{3N}4-C}ƒ\times i`

उदाहरणः

5.5.2a (i) व्यक्तिगत श्रृंखला में गणनाः सबसे पहले मानों को क्रम में व्यवस्थित किया जाता है।

उदाहरण 1.

निम्न में से निम्न चतुर्थक और उच्च चतुर्थक की गणना करें:

Year

1991

1992

1993

1994

1995

1996

1997

1998

उत्पादन (टन में)

12

20

18

14

10

13

17

15

समाधानः

सीरीयल नम्बर

उत्पादन (टन में)

1

10

2

12

3

13

4

14

5

15

6

17

7

18

8

20

Q1 = Value of [N + 1/4]th item = value of 8 + 1/4th item = value of 2.25th item

2.75 वें आइटम का मूल्य = दूसरे आइटम का मूल्य 0.25 (तीसरे आइटम का मूल्य - दूसरे आइटम का मूल्य)

= 12+0.25 (13-12)

= 12.25 + 0.25x1

= 12.25

Q1 (क्यू 1) = 12.25 टन

Q3 = Value of 3N+1/4th item = Value of 3 [8 + 1/4]th item = VAlue of 6.75th item

6.75 वें आइटम का मूल्य = छठे आइटम का मूल्य 0.75 (सातवें आइटम का मूल्य - छठे आइटम का मूल्य)

= 17+0.75 (18-17)

= 17 + 0.75x1 = 17.75 टन

Q3 (क्यू 3) = 17.75 टन

5.5.2b (ii) असतत श्रृंखला में गणनाः इस श्रृंखला में गणना के लिए, पहले देखें कि मान को क्रमबद्ध किया गया है या नहीं। यदि उन्हें क्रमबद्ध नहीं किया जाता है, तो उन्हें आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। इसके बाद, संचयी आवृत्ति निर्धारित की जाती है।

उदाहरण 2.

निम्नलिखित में से प्रथम और तृतीय चतुर्थक की गणना कीजिए :

Size

6

7

8

9

10

11

12

13

14

15

ƒ

3

5

9

6

4

7

10

5

4

6

समाधानः

मजदूरी की दर

श्रमिकों की संख्या (f)

संचयी आवृत्ति (cf)

6

3

3

7

5

8

8

9

17

9

6

23

10

4

27

11

7

34

12

10

44

13

5

49

14

4

53

15

6

59

Q1 = Value of [N + 1/4]th item = value of 59 + 1/4th item = Value of 15th item

आइटम 15 वें संचयी आवृत्ति 17 में शामिल है, इसलिए संगत मान 8 (क्यू 1) है।

Q1 (क्यू 1) = 8

Q2 = Value of [3N + 1/4] th item = value of 59 + 1/4th item = Value of 45th item

आइटम 45 वें संचयी आवृत्ति 49 में शामिल है, इसलिए संगत मान 13 क्यू 3

क्यू 3 = 13 है

(iii) निरंतर श्रृंखला में चतुर्थक की गणना

उदाहरण 3.

निम्नलिखित आवृत्ति वितरण से प्रथम और तृतीय चतुर्थक की गणना करें:

Value

4-8

8-12

12-16

16-20

20-24

24-28

28-32

32-36

36-40

ƒ

6

10

18

30

15

12

10

6

2

समाधानः

मूल्य (सीआई)

आवृत्ति (एफ)

संचयी आवृत्ति (सीएफ)

4-8

6

6

8-12

10

16

12-16

18

34

16-20

30

64

20-24

15

79

24-28

12

91

28-32

10

101

32-36

6

107

36-40

2

109

Q1 = Value of [N + 1/4]th item = value of 109/4th item = Value of 27.25th item

आइटम 27.25 वें संचयी आवृत्ति 34 में शामिल है, इसलिए Q3 कक्षा= 12-16

`Q_1=l_1+\frac{\frac{N}4-C}ƒ\times i`

`Q_1=12+\frac{27.25-16}{18}\times4`

`=12+\frac{45}{18}`

= 12+2.5 = 14.5

Q1 = 14.25

Q3 = Value of 3N/4th item = value of 3x109/4th item = Value of 81.75th item

आइटम 81.75 वें को संचयी आवृत्ति 91 में शामिल किया गया है, इसलिए क्यू 3 वर्ग = 24- 28

`Q_3=l_1+\frac{\frac{3N}4-C}ƒ\times i`

`Q_3=24+\frac{81.75-79}{12}\times4`

`=12+\frac{11}{12}`

Q3 = 24.92

5.6.1 बहुलक

केन्द्रीय प्रवृत्ति ज्ञात करने का एक और महत्त्वपूर्ण माप भूयिष्ठिक या बहुलक है। जो मूल्य श्रेणी में सबसे अधिक बार आता है उसी मूल्य को बहुलक कहते हैं। इसका आशय यह है कि जिस मूल्य की आवृत्ति सबसे अधिक होती है, वही मूल्य बहुलक कहलाता है।

उदाहरण - यदि पुरुषों द्वारा '7' नम्बर का जूता सबसे अधिक लोगों द्वारा पहना जाता है, तो '7' आकार ही बहुलक होगा।

भाषा के Z अथवा M अक्षर द्वारा प्रकट किया जाता है।

5.6.2 बहुलक के गुण

1. सरल एवं लोकप्रिय : यह एक सरल एवं लोकप्रिय माध्य है। कुछ परिस्थितियों में तो इसकी गणना केवल निरीक्षण मात्र से ही हो जाती है। दैनिक जीवन में यह माध्य काफी लोकप्रिय है। दैनिक प्रयोग की वस्तुओंय जैसे, सिले-सिलाये वस्त्र आदि में औसत आकार का आशय बहुलक से ही होता है।

2. सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व : बहुलक श्रेणी का वह मूल्य होता है जिसकी पुनरावृत्ति सबसे अधिक बार होती है। अतः यह श्रेणी का सबसे अच्छा प्रतिनिधि होता है। इसका मूल्य भी श्रेणी के मूल्यों में से ही होता है।

3. चरम मूल्यों का न्यूनतम प्रभाव : बहुलक का एक महत्त्वपूर्ण गुण यह भी है कि यह श्रेणी के चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होता है। समान्तर माध्य पर चरम मूल्यों का बहुत प्रभाव पड़ता है।

4. सभी आवृत्तियों की गणना आवश्यक नहीं : इसकी गणना करने के लिए श्रेणी के सभी मूल्यों की आवृत्तिं जानने की आवश्यकता नहीं होती है। केवल भूयिष्ठिक मद के आगे-पीछे की आवृत्तियों से काम चल जाता है।

5.6.3 बहुलक के दोष :

1. अनिश्चित एवं अस्पष्ट : यदि श्रेणी के सभी मूल्यों की आवृत्ति समान हो, तो इसकी गणना नहीं की जा सकती है। साथ ही कई बार श्रेणी के एक से अधिक बहुलक होते हैं। ये सब इस माध्य की अनिश्चितता को दर्शाते हैं।

2. बीजगणितीय विवेचन का अभाव : माध्यिका की तरह बहुलक में भी यह दोष पाया जाता है। इसका बीजगणितीय विवेचन सम्भव नहीं है। इस दोष के कारण इस बहुलक का अनेक सांख्यिकीय रीतियों में बहुत कम प्रयोग होता है।

3. गणना क्रिया में जटिलता : यदि बहुलक का निर्धारण निरीक्षण विधि से हो जाता है, तब तो सरलता रहती है अन्यथा समूहीकरण तथा अन्तर्गणन क्रियाओं के द्वारा इसकी गणना करना सामान्य व्यक्ति के लिए बहुत कठिन हो जाता है।

5.6.4 बहुलक की उपयोगिता :

1. दैनिक जीवन जहाँ वितरण के सर्वाधिक लोकप्रिय मूल्य की जानकारी प्राप्त करना हो, वहाँ यह सर्वश्रेष्ठ माध्य रहता है।

2. व्यावसायिक क्षेत्र में व्यापारिक पूर्वानुमान लगाने, उत्पादन प्रक्रिया के आदर्श समय या व्यावसायिक क्षेत्र में यह अत्यन्त लोकप्रिय माध्य है।

3. आदर्श मजदूरी का निर्धारण करने आदि में इसका प्रयोग सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

4. विभिन्न उत्पादक वस्तुओं की लोकप्रियता का अनुमान भी बहुलक के माध्यम से ही लगाया जाता है।

5.6.5 बहुलक निर्धारण की प्रक्रिया

(1) व्यक्तिगत श्रेणी में:

व्यक्तिगत श्रेणी में बहुलक ज्ञात करने की तीन विधियाँ हैं:

1. निरीक्षण द्वारा : इस विधि में विभिन्न मूल्यों का निरीक्षण करते हैं तथा जो मूल्य सबसे अधिक बार आता है, वही बहुलक होता है।

2. व्यक्तिगत श्रेणी को खण्डित में बदलकर : जब श्रेणी के कुछ पद दो से अधिक बार आते हैं, तो श्रेणी को खण्डित में बदलकर बहुलक की गणना की जाती है।

3. अविछिन्न श्रेणी में बदलकर : यदि श्रेणी के सभी पद एक-एक बार ही आ रहे हैं, तो उस अवस्था में बहुलक की गणना करने के लिए श्रेणी को अविछिन्न श्रेणी में बदल लेते हैं। फिर अविछिन्न श्रेणी की प्रक्रिया के अनुसार बहुलक की गणना की जाती है।

उदाहरण 1.

किसी कार्यालय के 10 कर्मचारियों की मासिक आय निम्नांकित है। आप बहुलक मासिक आय ज्ञात कीजिए।

मासिक आय (रू. में) : 2000     2100   2220   2000   1800   2400   2000   2000   1600   1900

हलः उपर्युक्त उदाहरण में ₹ 2,000 मासिक आय वाले 4 कर्मचारी हैं। यह कर्मचारियों की सर्वाधिक संख्या है। अतः ₹ 2,000 मासिक आय बहुलक आय होगी अर्थात् Z = 2,000

उदाहरण 2.

निम्नलिखित समंकों से बहुलक ज्ञात कीजिए :

9, 2, 7, 4, 8, 6, 10, 11

हलः इस प्रश्न में कोई भी मूल्य एक से अधिक बार नहीं आया है। अतः यहाँ बहुलक अस्पष्ट (ill-defined) है।

उदाहरण 3.

निम्नांकित श्रेणी में जूतों के आकार (size) दिये हुए हैं, जिन्हें ग्राहकों द्वारा पहना जाता है। बहुलक आकार ज्ञात कीजिए

4, 3, 4, 5, 6, 7, 6, 4, 5, 7, 3, 7, 8, 7, 9, 6

हलः सर्वप्रथम इस श्रेणी को खण्डित में परिवर्तित करेंगे

जूते का साइज

ग्राहकों की संख्या (f)

3

2

4

3

5

2

6

3

7

4

8

1

9

1

अधिकतम आवृत्ति 4 है जिसका मूल्य 7 है। अतः जूतों का बहुलक आकार = 7

(2) खण्डित श्रेणी : खण्डित में बहुलक की गणना करने की दो विधियाँ हैं

1. निरीक्षण विधि (Inspection Method),

2. समूहीकरण रीति (Grouping Method)

5.6.4a निरीक्षण विधि :

इस विधि में श्रेणी का निरीक्षण करते हैं तथा जिस मूल्य की आवृत्ति सर्वाधिक होती है, वही मूल्य बहुलक होता है।

उदाहरण 4.

निम्नांकित पद माला से बहुलक ज्ञात कीजिए

आयु

लड़कों की संख्या

9

2

10

3

11

12

12

9

13

7

14

4

15

2

हलः

निरीक्षण द्वारा स्पष्ट है कि 11 आयु की आवृत्ति अर्थात् लड़कों की संख्या सर्वाधिक है। अतः बहुलक आयु = 11 वर्ष या 11 वर्ष।

5.6.2b समूहीकरण रीति :

जब श्रेणी के विभिन्न मूल्यों में अनियमितता पाई जाती है तथा दो या दो से अधिक मूल्यों की आवृत्ति सबसे अधिक हो, तो यह निश्चित करना सम्भव नहीं होता है कि किस मूल्य को बहुलक माना जाए। ऐसी स्थिति में समूहीकरण विधि द्वारा बहुलक का निर्धारण किया जाता है। इस विधि से बहुलक निर्धारित करने के लिए दो सारणियाँ बनाई जाती हैं

(अ) समूहीकरण सारणी,

(ब) विश्लेषण सारणी।

5.6.4c (अ) समूहीकरण सारणी तैयार करने की विधि :

1. समूहीकरण सारणी तैयार करने के लिए पद मूल्य एवं सम्बन्धित आवृत्ति के दो खानों के अतिरिक्त 5 खाने और बनाये जाते हैं। इस प्रकार आवृत्ति के लिए कुल 6 खाने हो जाते हैं। आवृत्ति के पहले खाने में सम्बन्धित मूल्यों की आवृत्तियाँ दी हुई होती हैं।

2. दूसरे खाने में प्रारम्भ से दो-दो आवृत्तियों के योग पहली एवं दूसरी आवृत्ति के बीच में तथा फिर तीसरी और चौथी आवृत्ति के बीच में तथा इसी प्रकार आगे दो-दो आवृत्तियों के योग को लिखते जाते हैं।

3. तीसरे खाने में पहली आवृत्ति को छोड़कर अगली दो-दो आवृत्तियों का योग उनके बीच में लिखते हैं। यदि अन्त में दो से कम आवृत्ति बचती हैं, तो उन्हें छोड़ देते हैं।

4. चौथे खाने में पहली आवृत्ति से तीन-तीन आवृत्तियों का योग लगाते हैं और उन्हें उनके बीच में अर्थात् दूसरी के सामने फिर पाँचवीं के सामने आदि लिखते जाते हैं।

5. पाँचवें खाने में पहली आवृत्ति छोड़कर तीन-तीन के जोड़ लगाकर उनके बीच में लिखते जाते हैं।

6. छठे खाने में पहली दो आवृत्ति छोड़कर तीन-तीन जोड़ उनके सामने मध्य में लिखते हैं। यदि अन्त में तीन से कम आवृत्ति बचती हैं, तो उन्हें छोड़ देते हैं।

7. यह क्रिया करने के बाद आवत्तियों के छः खानों में सर्वाधिक आवत्ति योग को रेखांकित कर देते हैं।

5.6.4d (ब) विश्लेषण सारणी :

1. समूहीकरण करने के बाद विष्लेषण सारणी तैयार की जाती है।

2. इस सारणी में मूल्यों अथवा वर्गों को (जैसी स्थिति हो) सारणी में ऊपर से बायीं से दाहिनी ओर लिख देते हैं

3. तथा पहले खाने में खाने 1 से 6 ऊपर से नीचे लिख देते हैं।

4. अब समूहीकरण सारणी के आवृत्ति के 6 खानों को क्रम से देखते हैं और रेखांकित अधिकतम आवृत्ति किस-किस मूल्य की है, उसे देखकर विश्लेषण सारणी में उसी खाने के सामने मूल्य के नीचे (√) सही का चिन्ह लगाकर इंगित कर देते हैं।

5. बाद में इन चिह्नों का मूल्यों के नीचे योग लगा देते हैं। जिस मूल्य का योग अधिक आता है वही बहुलक कहलाता है।

उदाहरण 5.

निम्नांकित माला से बहुलक ज्ञात कीजिए

11th 5. केंद्रीय प्रवृत्ति की माप, सांख्यिकी के सिद्धान्त JCERT/JAC Reference Book

वैकल्पिक सूत्र : यदि उपर्युक्त सूत्र से बहुलक का मूल्य बहुलक वर्ग की सीमाओं के बाहर आये, तो निम्नलिखित वैकल्पिक सूत्र का प्रयोग करते हैं

`Z=L_1+\frac{ƒ_2}{ƒ_0+ƒ_2}\times i`

सूत्रों में प्रयुक्त चिह्नों का आशय

L1 = बहुलक वर्ग की निम्न सीमा

D1 = बहुलक वर्ग एवं उससे पूवर्वर्ती वर्ग की बारम्बारता के बीच अन्तर (संकेतों को छोड़कर)

D2 = बहुलक वर्ग एवं उससे अगले वर्ग की बारम्बारता के बीच अन्तर (संकेतों को छोड़कर)

i = वर्ग अन्तराल

f1 = बहुलक वर्ग की बारम्बारता

f0 = बहुलक वर्ग से पहले वर्ग की बारम्बारता

f2 = बहुलक वर्ग से अगले वर्ग की बारम्बारता

Z = बहुलक

यहाँ यह ध्यान रखना होता है कि श्रृंखला के वर्ग अन्तराल समान हों। यदि समान नहीं हैं, तो उन्हें समान करना होता है। इसके साथ ही श्रेणी अपवर्जी होनी चाहिए। समावेशी श्रेणी को अपवर्जी में बदलना होता है। इसी तरह यदि मध्य बिन्दु (Mid value) दिये हों, तो वर्ग अन्तरालों को निकालना होता है।

उदाहरण 1.

निम्नांकित सारणी से बहुलक ज्ञात कीजिए

प्रप्तांक

विद्यार्थियों की संख्या

0-10

2

10-20

5

20-30

8 f0

30-40

15 f1

40-50

12 f2

50-60

6

60-70

3

हलः

सारणी से स्पष्ट है कि वर्ग 30-40 की आवृत्ति सर्वाधिक है, अतः बहुलक वर्ग = 30 - 40 , इस वर्ग में बहुलक का मूल्य जानने के लिए निम्नांकित सूत्र का प्रयोग किया जाएगा।

`Z=L_1+\frac{ƒ_1-ƒ_0}{2ƒ_1-ƒ_0-ƒ_2}\times i`

`Z=30+\frac{15-18}{2(15)-8-12}\times10`

`Z=30+\frac{70}{10}`

Z = 37

बहुलक निम्नांकित सूत्र से भी निकाला जा सकता है =

`Z=L_1+\frac{D_1}{D_1+D_2}\times i`

`Z=30+\frac7{7+3}\times10`

`Z=30+\frac{70}{10}` 

Z = 37

निम्नांकित आवृत्ति वितरण से बहुलक की गणना कीजिए

मजदूरी (से अधिक) (रू. में)

श्रमिकों की संख्या

30

519

40

469

50

398

60

208

70

104

80

44

90

6

हलः सर्वप्रथम संचयी बारम्बारता वितरण को साधारण आवृत्ति वितरण में बदला जाएगा।

मजदूरी (रू. में)

श्रमिकों की संख्या (f)

30-40

50 (519-469)

40-50

71 f0 (469-398)

L1 50-60

190 f1 (398-208)

60-70

104 f2 (208-104)

70-80

60 (104-44)

80-90

38 (44-6)

90-100

6

निरीक्षण से स्पष्ट है कि बहुलक वर्ग 50 - 60 है।

`Z=L_1+\frac{ƒ_1-ƒ_0}{2ƒ_1-ƒ_0-ƒ_2}\times i`

`Z=4000+\frac{32-20}{2(32)-20-20}\times100`

`Z=4000+\frac{1200}{24}`

Z = 4000 + 50 = Rs. 450

उदाहरण 4. निम्नांकित आँकड़ों से बहुलक ज्ञात कीजिए

मध्य बिंदु

आवृति

5

10

10

15

15

28

20

35

25

16

30

7

35

4

हलः प्रश्न को वर्गान्तर ज्ञात करके हल करेंगे।

मध्य बिंदु

वर्गान्तर

आवृति

5

2.5-7.5

10

10

7.5-2.5

15

15

12.5-17.5

28 f0

20

L1 17.5-22.5

35f1

25

22.5-27.5

16 f2

30

27.5-32.5

7

35

32.5-37.5

4

निरीक्षण से स्पष्ट है कि बहुलक वर्ग 17.5-22.5 है, क्योंकि इसकी आवृत्ति सर्वाधिक है। अब Z की गणना निम्नाकिंत सूत्र से करेंगे

`Z=L_1+\frac{ƒ_1-ƒ_0}{2ƒ_1-ƒ_0-ƒ_2}\times i`

`Z=17.5+\frac{35-28}{2(35)-28-16}\times5`

`Z=17.5+\frac{35}{26}`

Z = 17.5 + 1.35 = Rs. 18.85

उदाहरण 5. निम्नांकित आँकड़ों से बहुलक मूल्य ज्ञात कीजिए

वर्गान्तर

आवृति

10-19

10

20-29

12

30-39

18

40-49

30

50-59

16

60-69

6

70-79

8

हलः प्रश्न हल करने से पूर्व समावेशी श्रेणी को अपवर्जी में बदला जाएगा। इसके बाद बहुलक की गणना निम्नलिखित प्रकार की जाएगी

वर्गान्तर

अपवर्जी वर्गान्तर

आवृति

10-19

9.5-19.5

10

20-29

19.5-29.5

12

30-39

29.5-39.5

18 f0

40-49

L1 39.5-49.5

30 f1

50-59

49.5-59.5

16 f2

60-69

59.5-69.5

6

70-79

69.5-79.5

8

39.5 - 49.5 वर्ग की आवृत्ति सर्वाधिक है, अतः यह बहुलक वर्ग है। 

`Z=L_1+\frac{ƒ_1-ƒ_0}{2ƒ_1-ƒ_0-ƒ_2}\times i`

`Z=39.5+\frac{30-18}{2(30)-18-16}\times10`

`Z=39.5+\frac{120}{26}`

Z = 39.5 + 4.62 = Rs. 44.12

उदाहरण 6. निम्नांकित आवृत्ति वितरण का बहुलक ज्ञात कीजिए

वर्गान्तर

आवृत्ति

40-50

8

50-60

7

60-70

13

70-80

10

80-90

13

90-100

12

100-110

9

110-120

8

हलः इस श्रेणी में सर्वाधिक आवृत्ति '13' दो बार आई है। अतः निरीक्षण द्वारा बहुलक वर्ग निश्चित नहीं हो सकता है। अतः समूहीकरण विधि से बहुलक वर्ग का निर्धारण होगा।

5.6.4f समूहीकरण

11th 5. केंद्रीय प्रवृत्ति की माप, सांख्यिकी के सिद्धान्त JCERT/JAC Reference Book

5.6.4g बिन्दुरेखीय विधि से बहुलक की गणना :

1. बिन्दुरेखीय विधि में श्रेणी को आयत चित्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

2. इस चित्र का सबसे ऊँचा आयत बहुलक वर्ग को प्रकट करता है।

3. बहुलक वर्ग के आयत के एक किनारे के बराबर के दूसरे आयत के किनारे से मिलते हैं। फिर आयत के दूसरे किनारे को बराबर के दूसरे आयत के किनारे से मिलते हैं।

a. ऐसा करने से दोनों रेखाएँ एक-दूसरे को काटती हैं।

b. जहाँ पर ये रेखाएँ एक-दूसरे को काटती हैं, वहाँ से अक्ष पर लम्ब डाल देते हैं।

c. यह लम्ब X अक्ष को जहाँ स्पर्ष करता है, वहीं बहुलक होता है।

उदाहरण : बिन्दुरेखीय विधि से बहुलक ज्ञात कीजिए

व्यय (रू. में)

0-10

10-20

20-30

30-40

40-50

परिवारों की संख्या

14

23

27

21

15

हलः बिन्दुरेखा द्वारा बहुलक निर्धारण

11th 5. केंद्रीय प्रवृत्ति की माप, सांख्यिकी के सिद्धान्त JCERT/JAC Reference Book

चित्र में X अक्ष पर व्यय तथा अक्ष पर परिवारों की संख्या को दिखाया गया है। 20-30 वर्ग का आयत सबसे ऊँचा है। इस आयत से दोनों सटे आयतों के विपरीत दिशा में किनारों पर मिलाने पर वे एक-दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं। E बिन्दु से x अक्ष पर लम्ब डालने पर वह अक्ष x पर काट रहा है। अतः Z = 24.

निम्नांकित सूत्र द्वारा इसकी जाँच की जा सकती है:

`Z=L_1+\frac{ƒ_1-ƒ_0}{2ƒ_1-ƒ_0-ƒ_2}\times i`

`Z=20+\frac{27-23}{2(27)-23-21}\times10`

`Z=20+\frac{40}{10}`

Z = 20 + 4 = 24

5.7.1 समांतर माध्य, माध्यिका एवं बहुलक में परस्पर सम्बन्धः

समान्तर माध्य (X), माध्यिका (M) तथा बहुलक (Z) में सम्बन्ध आवृत्ति वितरण की प्रकृति पर निर्भर करता है। आवृत्ति वितरण दो प्रकार का होता है

1. सममित आवृत्ति वितरण इस स्थिति में X, M तथा Z के मूल्य एक-दूसरे के समान होते हैं = M = Z

2. असममितीय आवृत्ति वितरण इस स्थिति में (X - Z) सामान्यतः 3(X - M) के बराबर होते हैं अर्थात

3. (X - Z) = 3(X - M)

बहुलक = 3× माध्यिका - 2× माध्य

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

क्र०स०

अध्याय का नाम

अर्थशास्त्र में सांख्यिकी

1.

परिचय

2.

आँकड़ों का संग्रह

3.

आँकड़ों का संगठन

4.

आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण

5.

केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप

6.

सहसंबंध

7.

सूचकांक

8.

सांख्यिकीय विधियों के उपयोग

भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास

1.

स्वतंत्रता के पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था

2.

भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-90)

3.

उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण एक समीक्षा

4.

भारत में मानव पूँजी का निर्माण

5.

ग्रामीण विकास

6.

रोजगार संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे

7.

पर्यावरण और धारणीय विकास

8.

भारत और उसके पड़ोसी देशों के तुलनात्मक विकास अनुभव

Jac Board Class 11 Economics (Arts) 2023 Answer key

Jac Board Class 11 Economics (Sci._Comm.) 2023 Answer key

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