6.
परिक्षेपण का माप
6.1 प्रस्तावना
पिछले
दो अध्यायों में हमने औसत (Average) या केन्द्रीय प्रवृत्ति के मापों का अध्ययन किया
है। एक श्रृंखला की केन्द्रीय प्रवृत्ति या औसत एक प्रतिनिधि मूल्य है और इसलिए श्रृंखला
के विभिन्न मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है। परन्तु एक औसत यह नहीं बता पाता कि एक
श्रृंखला के विभिन्न मदों में कितना अन्तर है। इसलिए औसत की जानकारी प्राप्त करने के
साथ-साथ यह ज्ञान प्राप्त करना भी जरूरी हो जाता है कि किसी श्रृंखला के विभिन्न मदों
में आपस में कितना अन्तर है तथा माध्य से कितना अन्तर है।
• एक माध्य एक श्रेणी का प्रतिनिधित्व
करता है। इसलिए केन्द्रीय मूल्यों को प्रथम श्रेणी का माध्य भी कहा जाता है।
• परन्तु विभिन्न माध्यों के
अध्ययन करने के बाद भी हमें समंक श्रेणी की संरचना, बनावट, फैलाव विस्तार आदि की जानकारी
प्राप्त नहीं होती है इसलिए यह ज्ञात करने के लिए अपकिरण के माप ज्ञात किये जाते है।
• इसलिए सिम्पसन एवं काफ्का ने
सही कहा है कि एक अकेला माध्य पूरी कहानी नहीं बता सकता है क्योंकि समंक श्रेणी का
औसत मूल्य माध्य होता है जो समंक श्रेणी का केन्द्रीय मूल्य, प्रतिनिधित मूल्य होता
है। अर्थात् समंक श्रेणी के व्यक्तिगत मूल्य के बारे में अवगत नहीं करा सकते है अर्थात्
माध्य समंक श्रेणी की बनावट संरचना फैलाव विस्तार आदि के बारे में स्पष्ट जानकारी प्रदान
नहीं करा पाते है।
उदाहरण
:
एक
कॉलेज में 3 दोस्त राम, श्याम और सुन्दर तीनों एक दिन केन्टिन में बैठे थे और अपने
परिवार की मासिक आय के बारे में चर्चा कर रहे थे। तीनों के परिवारों में आय का अर्जन
करने वाले पांच व्यक्ति हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार है-
व्यक्ति |
राम
परिवार |
श्याम
परिवार |
सुंदर
परिवार |
A |
10000 |
12500 |
4000 |
B |
10000 |
10000 |
16000 |
C |
10000 |
7500 |
10000 |
D |
10000 |
15000 |
13000 |
E |
10000 |
5000 |
7000 |
TOTAL |
50000 |
50000 |
50000 |
औसत |
10000 |
10000 |
10000 |
तालिका में स्पष्ट है कि समांतर माध्य तथा माध्यिका तीनों
परिवारों में समान है अर्थात ₹10000। परंतु आसानी से देखा जा सकता है कि राम का परिवार
में प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन मिल रहा है अर्थात् कोई विचरण (variation) नहीं
है। श्याम के परिवार परिवार को प्राप्त होने वाले वेतन में विचरण कम है (अर्थात् न्यूनतम
तथा अधिकतम)। जबकि सुंदर के परिवार को मिलने वाले वेतन में विचरण अधिक है अर्थात्,
न्यूनतम वेतन ₹4000 तथा अधिकतम वेतन ₹16000। अतः हम कह सकते हैं कि औसत वितरण का सही
तस्वीर प्रस्तुत नहीं करता इन विभिन्न परिस्थितियों का विश्लेषण करने के लिए हमारे
पास एक अन्य सांख्यिकी विधि है जिसे हम परिक्षेपण की माप कहते हैं।
6.2.1 परिक्षेपण के माप से तात्पर्य -
• श्रेणी
के माध्य से लिए गए पदों के विचलनों के औसत से है।
• अपकिरण
परिक्षेपण (DISPERSION) को फैलाव बिखराव प्रसार आदि के नाम से जाना जाता है।
• अपकिरण
को द्वितीय श्रेणी के माध्य भी कहते है क्योंकि इसमें श्रेणी से निकाले गये माध्यों
का पद / चर मूल्य से विचलन (अन्तर) ज्ञान करके माध्य (औसत) ज्ञात किया जाता है, इसलिए
इसे द्वितीय श्रेणी का माध्य भी कहते है।
6.2.2 परिक्षेपण माप के उद्देश्य -
(1) माध्य से औसत दूरी ज्ञात करना (Knowing Variation from Average) - अपकिरण का पहला उद्देश्य
समंक श्रेणी के माध्य से विभिन्न पद मूल्यों की औसत दूरी ज्ञात करना होता है।
(2) माध्य की विश्वसनीयता का अनुमान (Testing the Reliability of the Average) - अपकिरण का माप
हमें यह भी बताता है कि श्रेणी का माध्य किस सीमा तक श्रेणी का प्रतिनिधित्व करता है।
(3) श्रेणी की रचना का ज्ञान (Knowledge of Composition of Series) - अपकिरण की मापों
द्वारा श्रेणी की बनावट के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है। इससे
हमें यह जानकारी हो जाती है कि माध्य के दोनों ओर मूल्यों का फैलाव या बिखराव किस प्रकार
का है।
(4) दो या अधिक श्रेणियों की तुलना (Comparison of Two or more Series) - अपकिरण की मापों के आधार पर दो या अधिक श्रेणियों के मध्य विचरणशीलता की तुलना आसानी से की जा सकती है। अत्यधिक विचरण का अर्थ है एकरूपता या समानुरूपता का अभाव, जबकि अल्प विचरण का अर्थ है एकरूपता की उपस्थिति।
(5) उच्च सांख्यिकीय विश्लेषण में सहायक (Helpful for Higher Statistical Analysis)- अपकिरण की माप
अन्य सांख्यिकीय मापों, जैसे विषमता, पृथुशीर्षत्व, सहसम्बन्ध, प्रतीपगमन आदि में भी
सहायक है।
श्रृंखला के परिक्षेपण तथा औसत में क्या अन्तर है ? किसी श्रृंखला के औसत से अभिप्राय उसकी केन्द्रीय प्रवृत्ति
से है। यह श्रृंखला की सभी मदों के व्यवहार का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु विभिन्न
मदों में एक-दूसरे से तथा औसत से विभिन्न होने की प्रवृत्ति पाई जाती है। प्रभावीकरण
इनके अन्तर के विस्तार को मापता है। अन्य शब्दों में परिक्षेपण विभिन्न मदों तथा
केन्द्रीय प्रवृत्ति के बिखराव के विस्तार को मापता है। परिक्षेपण के माप का आधारभूत
उद्देश्य क्या है? इसका मुख्य उद्देश्य केन्द्रीय प्रवृत्ति या औसत
मूल्य से श्रृंखला की विभिन्न मदों के अन्तर के विस्तार को माप कर श्रृंखला की
संरचना का ज्ञान प्राप्त करना है। |
6.2.1 अपकिरण के माप -
(1) सापेक्ष माप (Relative measurement)
(2) निरपेक्ष माप (Absolute
measurement)
(1) सापेक्ष माप : सापेक्ष माप का प्रयोग दो या दो
से अधिक श्रेणियों की तुलना करने के लिये किया जाता है। यह एक प्रकार तुलनात्मक
माप होता है जिसे अनुपात या प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
(2) निरपेक्ष माप : निरपेक्ष माप के प्रयोग यह माप
अपकिरण की मात्रा को व्यक्त करते है तथा इसे उसी इकाई में व्यक्त किया जाता है।
जिसमें प्रश्न में दिया हुआ होता है। जैसे लीटर, मीटर, वर्ष आदि।
6.2.2 अपकिरण के माप
नापने की विधियां-
निरपेक्ष माप |
सापेक्ष माप |
1. परास या विस्तार (Range) |
1. विस्तार गुणांक (coefficient of range) |
2. चतुर्थक विचलन, अंतर चतुर्थक विस्तार (Quarti
Deviation] Inter - Quartile Range) |
2. चतुर्थक विचलन गुणांक (coefficient of quartile
deviation) |
3. माध्य विचलन (Mean Deviation) |
3. माध्य विचलन गुणांक (coefficient of mean
deviation) |
4. प्रमाप विचलन (Standard Deviation) |
4. प्रमाप विचलन गुणांक (coefficient of standard
deviation) |
5. लॉरेंज वक्र (Lorenz Curve) |
|
6.2.2a 1.परास या विस्तार (Range) विस्तार
को चिह्न "R" से दर्शाते हैं।
• किसी समंक (आंकड़ों) माला के सबसे बड़े और सबसे
छोटे पदों के मूल्यों के अन्तर को विस्तार कहते हैं।
• विस्तार जब कम होता है तो श्रेणी को नियमित श्रेणी
कहते हैं जबकि विस्तार अधिक होने पर श्रेणी अनियमित कही जाती है।
• यह अपकिरण ज्ञात करने की सरलतम रीति है।
व्यक्तिगत श्रेणी में विस्तार की गणना :
सूत्र, R = H - L
"R" (Range) निरपेक्ष माप है जहां H = उच्च
मूल्य तथा L = निम्न मूल्य दर्शाता है। परास गुणांक (coefficie of range] या CR)
का सूत्र =
`Co–of R=\frac{(H-L)}{(H+L)}`
अर्थात्,
विस्तार गुणांक (Coefficient of Range) जोकि विस्तार
का साक्षेप माप है, निम्न सूत्रों के प्रयोग द्वारा प्रप्त किया जा सकता है :
यहां, R = विस्तार; L = अधिकतम मान; S = न्यूनतम मान.
उदाहरण - निम्न समंको से विस्तार अपकिरण तथा उसके
गुणांक का निर्धारण कीजिए ।
मजदूरी (रूपयों) 40, 60, 55, 88, 100, 75, 80, 45, 70
हल : (1) विस्तार = अधिकतम मूल्य - न्यूनतम मूल्य
या, R = H - L
R = 100 - 40 = 60
6.2.2b (2) विस्तार गुणांक
`Co–of R=\frac{(100-40)}{(100+40)}`
`Co–ofR=\frac{60}{40}=0.43`
6.2.3 खंडित श्रेणी में विस्तार की
गणना- खंडित श्रेणी में विस्तार याद करने में आकृतियों पर
ध्यान नहीं दिया जाता केवल पद मूल्य के आधार पर ही विस्तार तथा विस्तार गुणांक
ज्ञात किया जाता है। (सूत्र वही होगा जो व्यक्तिगत श्रेणी में प्रयोग किए गए हैं)
उदाहरण - निम्नलिखित आंकड़ों से विस्तार तथा विस्तार
गुणांक ज्ञात कीजिए।
प्राप्तांक (x) |
विद्यार्थियों की संख्या (f) |
5 |
2 |
6 |
3 |
7 |
10 |
8 |
5 |
9 |
4 |
10 |
1 |
हल जहां, H = 10, L = 5
R = H – L
Range = 10 – 05 = 05
6.2.4 2. विस्तार गुणांक की गणना (CR)
`Co–of R=\frac{(H-L)}{(H+L)}`
`Co–of R=\frac{(10-5)}{(10+5)}`
`Co–ofR=\frac{5}{15}=0.33`
6.2.5 (ब) अखंडित या सतत श्रेणी में विस्तार की गणना-
• इसमें
विस्तार की गणना में आकृतियों को ध्यान में नहीं रखा जाता है।
• समावेशी
श्रेणी को अपवर्जी श्रेणी में परिवर्तित किया जाता है। (सूत्र वही प्रयोग होता है
जो व्यक्तिगत श्रेणी के लिए किया जाता है।)
उदाहरण- निम्न सतत् श्रेणी में विद्यमान विस्तार अपकिरण एवं उसके गुणांक का निर्धारण
कीजिए।
वजन, kg |
आवृत्ति |
100-110 |
5 |
110-120 |
10 |
120-130 |
20 |
130-140 |
15 |
140-150 |
8 |
150-160 |
5 |
1. विस्तार की गणना R = H - L
= 160-100 = 60
2. विस्तार गुणांक की गणना
`Co–of R=\frac{(H-L)}{(H+L)}`
`Co–of R=\frac{(160-100)}{(160+100)}`
`Co–ofR=\frac{60}{260}=0.23`
6.2.5a विस्तार के गुण
1. विस्तार की गणना करना तथा इसे समझना बहुत सरल है।
2. यह स्थिर रूप से परिभाषित है।
3. इसकी गणना श्रेणी के सभी पदों पर निर्भर नहीं करती।
4. इसका गुण नियंत्रण संबंधी कार्यों में प्रयोग अधिक लाभदायक है। विस्तार के
आधार पर नियंत्रण चार्ट तैयार किए जाते हैं। यदि उत्पादित वस्तुओं की क्वालिटी,
चार्ट में दिए गए विस्तार के अनुसार है तो उत्पादन प्रक्रिया को नियंत्रण में माना
जाएगा अन्यथा नहीं माना जाएगा। इस प्रकार ब्याज की दर, विनिमय दर, शेयर कीमतों आदि
में होने वाले परिवर्तन को मापने के लिए विस्तार का प्रयोग सामान्य रूप से किया
जाता है।
6.2.5b विस्तार के दोष
1. अस्थिर - विस्तार किसी श्रृंखला का स्थिर माप नहीं है। यह सीमांत मानों पर निर्भर करता
है। इसमें होने वाले परिवर्तन का विस्तार पर तुरंत प्रभाव पड़ता है।
2. सभी मूल्यों पर आधारित ना होना- विस्तार श्रृंखला के सभी मूल्यों पर आधारित नहीं होती है।
इसमें सभी मूल्यों को महत्व नहीं दिया जाता।
3. श्रेणी की संरचना का ज्ञान नहीं होना- इसमें श्रृंखला की बनावट एवं आकार का ठीक से ज्ञान नहीं
होता है, हो सकता है कि दो श्रृंखलाओं का विस्तार बराबर हो परंतु उनकी आकृति में
अंतर हो।
4. खुले सिर वाले आवृत्ति वितरण के लिए उपयोगी ना होना- खुले सिर वाले आवृत्ति वितरण की स्थिति में विस्तार की
गणना नहीं की जा सकती। अतः इस स्थिति के लिए विस्तार अनुपयुक्त होता है।
पाठगत प्रश्न
1. उत्तम और न्यूनतम चमक मूल्य का अंतर है-
A. विचलन अंतर
B. चतुर्थक विस्तार
C. विस्तार
D. विचलन गुणांक
2. एक अन्वेषक ने निम्नांकित निर्देशक समंक
एकत्र किए जिनका निदेशक माध्य 5 है 3, 5, 12, 3, 2 विस्तार है-
A. 1
B. 2
C. 10
D. 12
6.6.1 अन्तर चतुर्थक विचलन (INTER QUARTILE RANGE)
किसी श्रृंखला के तृतीय चतुर्थक (Q3) तथा प्रथम चतुर्थक (Q1)
अंतर को अंतर चतुर तक विस्तार कहते हैं। अर्थात्,
अंतर चतुर्थक विस्तार (I. R.) = Q3- Q1
विस्तार की तरह अंतर चतुर्थक विस्तार भी अपकिरण ज्ञात करने की एक सरल विधि है।
इसके गुण एवं दोष विस्तार के भांति ही होते हैं।
6.6.2 चतुर्थक विचलन (QUARTILE DEVIATION)
अंतरचतुर्थक विस्तार के अंतर को चतुर्थक विचलन कहा जाता है। (Q3Q1) तृतीय
चतुर्थक तथा प्रथम चतुर्थक के अंतर को अन्तरचतुर्थक विचलन कहा जाता है। इसे अर्ध
चतुर्थक विस्तार भी कहते हैं। अर्थात् (सूत्र)
6.6.3 चतुर्थक विचलन (QUARTILE DEVIATION, Q.D.)
इसे अर्ध चतुर्थक विस्तार (Semi Interquartile Range) भी कहते हैं
चतुर्थक विचलन Q.D. = `\frac{Q_3-Q_1}2` दो चतुर्थकों को तृतीय चतुर्थक तथा प्रथम चतुर्थक के बीच के अंतर का औसत है।
6.6.4 चतुर्थक विचलन का गुणांक (Coefficient
of Quartile Deviation): चतुर्थक
विचलन अपकिरण का एक निरपेक्ष माप होता है। अन्य श्रेणियों से तुलना योग बनाने के लिए इसका गुणक
निकालकर इसे सापेक्ष रूप में बदल देते हैं। सूत्र :
चतुर्थक विचलन गुणांक = `\frac{Q_3-Q_1}{Q_3+Q_1}`
चतुर्थक विचलन की गणना चतुर्थक विचलन की गणना तीन दशाओं में
किया जाता है :-
1. व्यक्तिगत श्रेणी (Individual series)
2. खंडित श्रेणी (discrete serie)
3. सतत श्रेणी (continuous serie)
6.6.4a व्यक्तिगत श्रेणी में चतुर्थक विचलन की
गणना :
उदहारण : नीचे 7 मजदूरों की दैनिक मजदूरी दी गई है मजदूरी का
(रुपए में) चतुर्थक विचलन ज्ञात कीजिए : 120, 70, 150, 100, 190, 170, 250 |
हल यहां N= 7 है।
आंकड़ों को आरोही क्रम में सजाने पर हम पाते हैं कि-
70, 100, 120, 150, 170, 250
`Q_1=\frac{7+1}4` = 2 वें पद का आकार
Q1 = 100
`Q_3=\frac{3\left(n+1\right)}4` वें पद का आकार
`Q_3=\frac{3\left(7+1\right)}4` 6वें पद का आकार
Q3
= 190
प्रश्न. 20 एकड़ भूमि पर गेहूं का उत्पादन (किलोग्राम में)
दिया है। जिसका चतुर्थक विचलन और चतुर्थक विचलन गुणांक ज्ञात करे। 1120, 1240, 1320, 1040, 1080, 1200, 1440, 1360, 1680,
1730, 1785, 1342, 1960, 1880, 1755, 1720, 1600, 1470,1750, 1885 |
6.6.4b खंडित श्रेणी में चतुर्थक विचलन की गणना-
उदाहरण- एक विशेष बाजार में आयकर विभाग ने विभिन्न फर्मों से
निम्न प्रकार कर एकत्र किया
कर की राशि (हजार रु. में) |
फर्मों की संख्या |
10 |
3 |
11 |
12 |
12 |
18 |
13 |
12 |
14 |
3 |
हल
कर की राशि (हजार रु. में) |
फर्मों की संख्या |
संचय बारंबारता |
10 |
3 |
3 |
11 |
12 |
15 |
12 |
18 |
33 |
13 |
12 |
45 |
14 |
3 |
48 |
|
Σƒ=
48 |
|
यहां N=48 हैं
`Q_1=\frac{N+1}4` वें मद का आकार
`Q_1=\frac{48+1}4` वें मद का आकार
Q1 = 12.25 वें मद का आकार
Q1 = 11 (हजार रू.)
`Q_1=\frac{3\left(N+1\right)}4`
`Q_1=\frac{3\left(48+1\right)}4`
Q3 = 36.75 वें मद का आकार
Q3 = 13 (हजार रू.)
6.6.4c सतत या अखंडित श्रेणी में चतुर्थक विचलन की गणना:
उदाहरण : निम्न वितरण से चतुर्थक विचलन और चतुर्थक विचलन का गुणांक की गणना
कीजिए
सप्ताहिक वेतन (हजार रू. में) |
श्रमिकों की संख्या |
0-10 |
14 |
10-20 |
24 |
20-30 |
38 |
30-40 |
20 |
40-50 |
34 |
हल :
सप्ताहिक मजदूरी (हजार रू. में) |
श्रमिकों की संख्या (ƒ) |
संचय बारंबारता (Cƒ) |
0-10 |
14 |
14 |
10-20 |
24 |
38 |
20-30 |
38 |
76 |
30-40 |
20 |
96 |
40-50 |
34 |
100 |
|
Σƒ
=100 |
|
25 वाँ पद वर्ग अंतर 10 से 20 में स्थित है। Q1
का वास्तविक मूल्य निकालने के लिए नियम सूत्र का प्रयोग
करेंगे।
`Q_1=L_1+\frac{\frac N4-C}ƒ\left(L_2-L_1\right)`
`Q_1=10+\frac{25-14}{24}\left(20-10\right)`
`Q_1=10+\frac{11}{24}\left(10\right)`
Q1 = 10 + 2.58
Q1 = 12.8
`Q_3=\frac{3N}4` वें पद का आकार
`Q_3=\frac{3\left(100\right)}4` = 75 वाँ पद
75 वाँ पद वर्ग अंतर 20 से 30 में स्थित है। Q3 का वास्तविक मूल्य निकालने के लिए नियम सूत्र का प्रयोग करेंगे।
`Q_3=L_1+\frac{\frac{3N}4-C}ƒ\left(L_2-L_1\right)`
= 20 +`\frac{75-38}38`( 30 – 20 )
Q3 = 20 +`\frac{37}38` (10 ) = 20 + 9.74
Q3 = 29.74
अन्तर-चतुर्थक विस्तार = Q3 - Q1 = 29.74-12.58 = 17.16
चतुर्थक विचलन = `\frac{Q_3-Q_1}2`= `\frac{29.74-12.58}2` = `\frac{17.16}2` = 8.58
अभ्यास प्रश्न
1. निम्न श्रेणी में चतुर्थक विचलन गुणांक ज्ञात कीजिए।
फार्म का लाभ |
फर्म की संख्या |
0-10 |
3 |
10-20 |
9 |
20-30 |
12 |
30-40 |
20 |
40-50 |
8 |
50-60 |
6 |
60-70 |
6 |
70-80 |
5 |
उत्तर : चतुर्थक विचलन गुणांक = 0.342
2. निम्न आंकड़ों का चतुर्थक विचलन तथा उसका गुणांक ज्ञात
करें।
8, 9, 11, 12, 13, 17, 20, 21, 23, 25, 27
उत्तर : Q .D.=6, coefficient of Q.D.= 0.353
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. निम्न में से कौन-सा अपकिरण की माप है।
(क) प्रतिशतता
(ख) चतुर्थक
(ग) अंतर चतुर्थक विस्तार
(घ) उपरोक्त सभी अपकिरण की माप है।
2. अंतर चतुर्थक विस्तार है
(क) पचासवां प्रतिशतता
(ख) मानक विचलन का द्वितीय नाम
(ग) अधिकतम और न्यूनतम मूल्यों के मध्य का अंतर
(घ) प्रथम चतुर्थक और तृतीय चतुर्थक के बीच का
अंतर
3. निम्न
में से विस्तार की कौन-सी सीमा अंतर चतुर्थक विस्तार द्वारा दूर की जा सकती है
(क) विस्तार विचलन जब शून्य होता है।
(ख) जब विस्तार की गणना करना कठिन होता है।
(ग) चरम मूल्यों से विस्तार का अधिक प्रभावित
होना ।
(घ) विस्तार जब ऋणात्मक हो ।
4. एक अन्वेषक ने निम्न निदर्श समंकों का संकलन
किया है, उन निदर्शकों का माध्य 5 है 3, 5, 12, 3, 2 इनका अंतर चतुर्थक विस्तार है
(क) 1
(ख) 2
(ग) 10
(घ) 12
6.7.1 माध्य विचलन (MEAN DEVIATION)
श्रृंखला के किसी केंद्रीय प्रवृत्ति के माप (अंकगणितीय माध्य,
माध्यिका या बहुलक) से निकाले गए विभिन्न मूल्यों के विचलनों के अंकगणितीय मध्य को
उसका माध्य विचलन कहा जाता है। माध्य विचलन वितरण के सभी पदों पर आधारित है। इसे औसत
के रूप में ज्ञात किया जाता है। अंकगणितीय माध्य, माध्यिका अथवा बहुलक सामान्यतः माध्य
के द्वारा ज्ञात विचलनों आधार पर मूल्यों के विचलन निकालते समय बीजगणितीय चिन्ह तथा
ऋणात्मक चिन्ह को छोड़ दिया जाता है। अर्थात् ऋणात्मक विचलन भी धनात्मक मान लिए जाते
हैं। संकेत देते हैं कि निरपेक्ष मूल्यों को ही लिया गया है, इसे आदर्श मूल्य भी कहा
जाता है।
6.7.2 माध्य विचलन की गणना
A. व्यक्तिगत श्रेणी
1. आंकड़ों को आरोही क्रम में सजाए जाते हैं।
2. माध्य / माध्यिका की गणना किया जाता है।
3. माध्य / माध्यिका / बहुलक से विचलन ज्ञात किया जाता है। तथा
(-) के चिन्ह पर ध्यान ना दे कर |d| में विचलन दर्शाए जाते हैं।
4. इन विचलनों का योग Σ ld | प्राप्त किया जाता है तथा उसको पदों की संख्या से भाग दे
दिया जाता है।
5. माध्य विचलन ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित में से किसी एक
सूत्र का प्रयोग किया जाता है।
(i) माध्य से माध्य विचलन (δX̅) =`\frac{\Sigma|dx\|}n` जहाँ δX̅
= X-
(ii) माध्य से माध्य विचलन (δX̅) =`\frac{\Sigma|dx\|}n` जहाँ δM = X - M
(iii) बहुलक से माध्य विचलन (δZ ) = `\frac{\Sigma|dx\|}n` जहाँ δZ = X - Z
6.7.3 माध्य विचलन गुणांक
माध्य विचलन एक निरपेक्ष माफ है। माध्य विचलन गुणांक एक सापेक्ष माप है। जिसकी गणना के लिए माध्य विचलन में क्रमशः उन्हीं माध्यों का भाग देंगे जिनकी सहायता से वे प्राप्त किए जाते हैं। इनके लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किए जाते हैं:
व्यक्तिगत श्रेणी में माध्य विचलन और उसके गुणांक की गणना के
पद
1. समकों को X से संबोधित कीजीये।
2. श्रेणी के माध्य (X) की गणना कीजीए।
3. माध्य से श्रेणी के प्रत्येक पद का विचलन लीजीए और इन्हें
dx से सम्बोधित कीजीए।
4. विचलनों से और चिह्नों की ओर ध्यान न देते हुए विचलनों के
केवल मूल्यों को जोड़ दें। परिणाम को Σ Idx| से सम्बोधित करें।
5. अन्त में सूत्र अपनायें।
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
Group -A सांख्यिकी के सिद्धान्त
Group-B भारतीय अर्थव्यवस्था
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
क्र०स० | अध्याय का नाम |
अर्थशास्त्र में सांख्यिकी | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |
भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास | |
1. | |
2. | |
3. | |
4. | |
5. | |
6. | |
7. | |
8. | |