प्रश्न:- भारत में रेल परिवहन के महत्व एवं समस्याओं की व्याख्या
करें?
उत्तर:- देश में यात्री परिवहन और माल ढुलाई का मुख्य साधन रेले
हैं। हमारे देश में रेल परिचालन की शुरुआत 1853 में हुई थी। 16 अप्रैल, 1853 को
पहली रेलगाड़ी मुम्बई से थाणे तक (34 किलोमीटर) चलाई गई थी।
भारत में रेलमार्ग बनाने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित
है-
(1) अधिकांश रेलमार्ग उन क्षेत्रों में बनाये गये है जो बहुत
उपजाऊ और घने बसे हैं, क्योंकि ऐसे ही क्षेत्रो में यात्री और माल ढोने को मिलता है।
फलतः रेलों का विस्तार गंगा की घाटी में अधिक हुआ है।
(2) रेलमार्ग प्रसिद्ध बन्दरगाहों को औद्योगिक और व्यापारिक
केन्द्रों से जोड़ते है और विदेशों से आयातित माल को भीतरी भागों में वितरण करने में
सहयोग देते हैं तथा कृषि क्षेत्रों के उत्पादन को कारखानों तक पहुँचाते हैं।
(3) ये अकाल अथवा दैवी आपत्ति के समय अकाल-पीड़ित और बाढ़ग्रस्त
क्षेत्रों को अन्न और अन्य आवश्यक सामग्री पहुंचाने में योग देते हैं।
भारत में रेलों का विकास
भारत में रेलमागों का विकास 19वीं शताब्दी में हुआ है।
सर्वप्रथम सन् 1845 में लॉर्ड डलहौजी के राज्यकाल में तीन रेलमागों की स्वीकृति दी
गई। पहला रेलमार्ग ईस्ट इण्डियन रेलवे था जो कलकत्ता से रानीगंज तक 183 किलोमीटर
लम्बा था। यह रेलमार्ग सन् 1845 में बनाया गया। दूसरा रेलमार्ग सन् 1853 में बेट
इण्डियन पेनिनसुला रेलवे द्वारा मुम्बई से थाना के बीच 34 किलोमीटर लम्बा बनाया
गया। सन् 1854 में मद्रास से कलकत्ता और रानीगंज के बीच 180 किलोमीटर लम्बा
रेलमार्ग बनाया गया। सन् 1856 में मद्रास से अरकोनम के बीच 70 किमी. लम्बा
रेलमार्ग बनाया गया। सन् 1870 में भारत में रेलमार्गों की लम्बाई 6,840 किलोमीटर
थी। सन् 1871 तक कलकत्ता, मुम्बई और मद्रास रेलमार्ग द्वारा एक दूसरे से जोड़े जा
चुके थे। बाद में ये अमृतसर और कालीकट से भी रेलवे की एक शाखा द्वारा जोड़ दिये
गये थे।
ईस्ट इण्डियन रेलवे द्वारा गंगा की उपजाऊ घाटी तथा ग्रेट
इण्डियन पेनिनसुला रेलवे द्वारा दक्कन के पठार के कपास उत्पादक क्षेत्री को लाभ
पहुँचाया गया। ये दोनों रेलमार्ग इलाहाबाद में मिलते थे। मद्रास में दक्षिण मराठा
रेलवे जी. पी. रेलवे से रायचूर पर मिलती थी तथा शाखाओं द्वारा बंगलुरु और कालीकट
से। मुम्बई से एक रेलमार्ग अहमदाबाद, नई दिल्ली और लाहौर के बीच बनाया गया। इसके उपरान्त
सन् 1872-79 में आर्थिक कारणों से छोटी लाइनों के निर्माण पर ध्यान दिया गया।
मद्रास में तूतीकोरन, अहमदाबाद से
आगरा और नई दिल्ली तथा नई दिल्ली और वाराणसी के बीच छोटी लाइनें डाली गयीं। बाद
में पहाड़ी भागों तथा उजाड़ क्षेत्रों में तंग लाइनें बनायी गयीं। सन् 1906 तक
कलकत्ता और मद्रास तथा कलकत्ता, नागपुर और मुम्बई के बीच बड़ी लाइन बन चुकी थी।
किन्तु सबसे अधिक विकास छोटी लाइनों का किया गया अहमदाबाद को नई दिल्ली, आगरा को
कानपुर, ब्रहमपुत्र की घाटी और डेल्टाई भागों को जोड़ने के लिये बंगाल असोम रेलवे
तथा बंगाल और उत्तरी-पश्चिमी रेलवे और तिरहुत-रोहिलखण्ड-कुमायूँ रेलवे का निर्माण
भी किया गया।
विभाजन के समय अविभाजित भारत में
66,208 किमी. लम्बे रेलमार्ग थे। विभाजन के उपरान्त भारत को 54.969 किमी. लम्बे
रेलमार्ग मिले तथा 9 से 7 रेलमार्ग पूरी तरह भारत को मिले। शेष दो में से
बंगाल-असोम और उत्तरी-पश्चिमी रेलमार्गों और जोधपुर राज्य रेलमार्ग को भारत और
पाकिस्तान के बीच बाँटा गया। विभाजन के उपरान्त पश्चिम बंगाल और असोम के अनेक
रेलमार्ग बनाने पड़े क्योंकि इन दोनों का देश के अन्य भागों से सीधा सम्पर्क टूट
गया था। असोम रेलमार्ग गंगा नदी पर मनीहारीघाट से फकीराग्राम तक 425 किलोमीटर
लम्बा बनाया गया। यह बांग्लादेश और नेपाल के बीच 20 किलोमीटर चौड़े भाग में बनाया
गया। इसका निर्माण तत्कालीन लाइनों का उपयोग कर 230 किलोमीटर मार्ग नया बनाकर असोम
को बिहार और उत्तर प्रदेश में छोटी लाइनों द्वारा जोड़ा गया। मनीहारीघाट में
सेकरीगली घाट के बीच असोम रेलमार्ग को गंगा के आर-पार नाव सेवा द्वारा ले जाया गया
है। बिहार में मोकामेह के निकट गंगा पर एक नया पुल बनाकर वाराणसी तक सीधा सम्पर्क
स्थापित किया गया। रानीगंज और कलकत्ता के बीच बढ़ते हुए व्यापार की माँग को पूरा
करने के लिए बार मार्ग डाले गये तथा कई मार्गों को दुहरा किया गया।
1950-51 में भारत में रेलवे लाइन
53,596 किलोमीटर थी, जो वर्तमान में बढ़कर 66,030 किलोमीटर हो गयी। वर्तमान में
भारतीय रेलवे के पास 10,499 इंजन, 58,566 यात्री डिब्बे, 6,792 अन्य सवारी
गाड़ियों के डिब्बे और 2,45.267 माल डिब्बे हैं। देश में रेलवे स्टेशनों की संख्या
7,112 है।
भारतीय रेलों में यात्रा करने वाले
यात्रियों की संख्या वर्ष 1950-51 में 128.4 करोड़ थी जो वर्ष 2013-14 में बढ़कर 839.7 करोड हो गई।
रेलों का प्रबन्ध
इस सार्वजनिक उद्योग की विशालता,
राष्ट्रीय व्यापकता, विशिष्ट महत्ता एवं क्षेत्र विस्तार को देखते हुए प्रशासन
प्रबन्ध, कार्यक्षमता एवं सुधार आदि के लिए एवं सभी स्तरों पर निरन्तर वास्तविक
गतिशीलता तथा प्रगति बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने रेल मन्त्रालय के अधीन एक
रेलवे बोर्ड स्थापित कर रखा है। सम्पूर्ण रेलमार्ग को इसके अधीन 17 रेल क्षेत्रों
(जोन) में बाँटा गया है। प्रत्येक क्षेत्र या जोन को रेलवे की सघनता, कार्यभार एवं
क्षेत्र विस्तार के अनुसार डिवीजन में बाँटा गया है। रेल मन्त्रालय, रेलवे बोर्ड
एवं 17 रेल क्षेत्रों के सर्वोच्च अधिकारी ही राष्ट्रीय नीति निर्धारण के लिए
उत्तरदायी हैं। विभिन्न रेल क्षेत्र निम्न प्रकार से है-
जोन |
मुख्यालय |
कार्य प्रारम्भ करने
का वर्ष |
1. मध्य रेलवे (CR) |
मुम्बई वी टी |
5 नवम्बर, 1951 |
2. पूर्वी रेलवे (ER) |
कोलकाता |
1 अगस्त, 1955 |
3. उत्तरी रेलवे (NR) |
नई दिल्ली |
4 अप्रैल, 1952 |
4. उत्तरी पूर्वी रेलवे (NER) |
गोरखपुर |
4 अप्रैल, 1952 |
5. उत्तरी-पूर्वी सीमा प्रान्त रेलवे
(NEFR) |
मालीगाँव-गुवाहाटी |
15 जनवरी, 1958 |
6. दक्षिण रेलवे (SR) |
चेन्नई |
14 अप्रैल, 1951 |
7. दक्षिणी मध्य रेलवे (SCR) |
सिकन्दराबाद |
2 अक्टूबर, 1966 |
8. दक्षिण-पूर्वी रेलवे (SER) |
कोलकाता |
1 अगस्त, 1955 |
9. पश्चिम रेलवे (WR) |
मुम्बई-चर्चगेट |
5 नवम्बर, 1951 |
10. पूर्वी मध्य रेलवे (ECR) |
हाजीपुर |
1 अक्टूबर, 2002 |
11. उत्तर-पश्चिमी रेलवे (NWR) |
जयपुर |
1 अक्टूबर, 2002 |
12. पूर्वी तटवर्ती (Coast) रेलवे (ECR) |
भुवनेश्वर |
1 अप्रैल, 2003 |
13. उत्तर-मध्य रेलवे (NCR) |
इलाहाबाद |
1 अप्रैल, 2003 |
14. दक्षिण-पश्चिमी रेलवे (SWR) |
हुबली |
1 अप्रैल, 2003 |
15. पश्चिम मध्य रेलवे (WCR) |
जबलपुर |
1 अप्रैल, 2003 |
16. दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे (SERC) |
बिलासपुर |
5 अप्रैल, 2003 |
17. कोलकाता मेट्रो रेलवे (KMR) |
कोलकाता |
25 दिसम्बर, 2010 |
भारतीय रेलों का महत्व
यातायात के विभिन्न साधनों में रेलों का महत्व सर्वाधिक है।
इसको निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
(1) आंधकांश रेलमार्ग उन क्षेत्रों में बनाये गये हैं जो
बहुत उपजाऊ और घने बसे है क्योंकि ऐसे ही क्षेत्रों में यात्री और माल ढोने को
मिलता है। इसी कारण रेलों का विस्तार विशाल मैदान में अधिक मिलता है।
(2) रेलें देश के समुद्रतटीय बन्दरगाहों को भीतरी औद्योगिक
व व्यापारिक नगरों से जोड़ती है। विदेशों से आयातित माल भीतरी भागों में वितरण
करने तथा विदेशों को माल निर्यात करने में सहयोग देती हैं। कच्चा माल क्षेत्रों,
कारखानों व बाजार क्षेत्रों को परस्पर जोडती है।
(3) रेलो ने देश में छुआछूत, प्रादेशिक और साम्प्रदायिक
भावनाओं और सामाजिक संगठन पर प्रभाव डाला है। इनके कारण लोगों में गतिशीलता,
भ्रमणप्रियता और मनोरंजन की भावनायें बढ़ गई है।
(4) रेलों ने देश के सुदूर क्षेत्रों को एक-दूसरे के पड़ौस
में लाकर बिठा दिया है।
(5) रेलों के कारण अकाल के भयानक परिणामों से छुटकारा मिला
है।
(6) रेलें बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों या दैवी विपत्ति के समय माल
व अनाज पहुँचाने में भारी मदद करती हैं।
(7) किसानों को उन्नत बीजों, खाद एवं उन्नत कृषि यन्त्रों
की प्राप्ति होने लगी है। उनकी उपज दूर-दूर की मण्डियो में पहुँचने लगी है। कृषि
का रूप व्यापारिक होता जा रहा है।
(8) औद्योगिक उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चा माल, कोयला,
खनिज, तेल, श्रम आदि को जुटाने में रेलों का बहुत बड़ा योगदान है।
(9) अन्य सभी प्रचलित व विस्तृत साधनों में रेलें सबसे
सस्ते यातायात साधन है। भारत में यात्री किराया एशिया के देशों में सबसे कम है।
(10) शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं का उत्पादन बढ़ गया है,
क्योंकि रेलों द्वारा उन्हें कम समय में ही इच्छित स्थानों पर ले जाया जाता है।
(11) रेलमार्गों ने अनेक नई बस्तियों को जन्म दिया है तथा
अनेक रेल बस्तियाँ नगर व महानगर के रूप में विकसित हो गई है।
(12) भारत जैसे विशाल देश का सुदृढ़ प्रशासन एवं सुरक्षा
रेलों द्वारा ही सम्भव हो सका है।
भारतीय रेल का एशिया में प्रथम एवं विश्व में दूसरा स्थान
है। 1950-51 में रेलमार्ग 53,596 किमी. था जो वर्तमान में बढ़कर 66,030 किमी. हो
गया है। इसमें विद्युत् रेलमार्ग 22.200 किलोमीटर है।
रेल विकास के मुद्दे व समस्याएँ
भारत सरकार ने रेलवे मन्त्रालय द्वारा प्रकाशित 'स्टेट्स
पेपर' में रेलवे विकास से सम्बन्धित निम्नलिखित छह मुद्दे उठाए गए है- (i) तकनीक का सुधार, (ii) रेल सेवाओं का
विस्तार, (iii) वित्तीय साधनों की पूर्ति, (iv) पूँजी की पुनः संरचना, (v) भाड़ा
नीति, (vi) यात्री सेवाएँ तथा वस्तुओं का आगमन ।
(i) तकनीक का सुधार 'स्टेट्स पेपर' के अनुसार, सीमित साधनों को ध्यान में रखते
हुए तकनीक में सुधार लाने की आवश्यकता है ताकि परिचालन लागतों में कमी लाई जा सके,
निवेश के आकार में बचत की जा सके तथा बेहतर सेवाएँ उपलब्ध कराई जा सके।
(ii) रेल सेवाओं का विस्तार देश की आवश्यकताओं को देखते हुए रेल सेवाएँ बहुत अपर्याप्त
है। बहुत सारे क्षेत्रों में अभी रेल पहुँचना शेष है। यह सन्तोष वा विषय है कि
अनेक दुर्गम मार्गों पर हाल के दिनों में रेल सेवाओं का विस्तार हुआ है, किन्तु
अभी भी अनेक क्षेत्र में रेल सेवा उपलब्ध नहीं है।
(iii) वित्तीय साधनों की पूर्ति रेलवे विस्तार कार्यक्रमों की सफलता अन्ततः वित्तीय साधनों
की उपलब्धि पर निर्भर करती है। यदि रेलवे को अपने लक्ष्य प्राप्त करने हैं तो रेल
बजट में घोषित प्रावधानों को सख्ती से लागू करना होगा।
(iv) पूँजी की पुनः संरचना अभी तक रेलवे के लिए वित्त प्रदान करने की नीति यह रही है
कि सामान्य रेवेन्यू से बजट के अधीन सहायता व्याज देय पूँजी के रूप में दी जाती
है। इस पर व्याज देना होता है। हालांकि व्याज की दर बाजार की दर से कम होती है।
(v) भाड़ा नीति-सामाजिक उत्तरदायित्व के कारण रेलवे को बहुत-सी अलाभकारी लाइनों पर भी सेवाएँ
उपलब्ध करानी पड़ती हैं तथा उपनगरीय व अन्य सेवाओं पर भारी घाटे उठाने पड़ते हैं।
अधिकांशतः आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं; जैसे-खाद्यान्न, लोहा इत्यादि को हानि उठाकर
भी लाना-ले-जाना पड़ता है।
(vi) यात्री सेवायें तथा वस्तुओं का आवागमन रेलवे की उपलब्ध क्षमता का यात्रियों द्वारा या व्यापारियों द्वारा प्रयोग किया जाता है। क्षमता कम होने के कारण तथा अर्थव्यवस्था के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न वस्तुओं के आवागमन को प्राथमिकता दी जाती है ताकि आर्थिक व औद्योगिक प्रगति में रुकावट न पड़े। इस नीति का परिणाम यह हुआ कि यात्री ट्रेनों का विस्तार यात्रियों की संख्या की तुलना में बहुत कम हो पाया है। इसके परिणामस्वरूप यात्री गाड़ियों में भीड़-भाड़ बढ़ी है तथा यात्री सेवाओं की क्वालिटी में सुधार लाना कठिन हो गया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
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