मानवीय संसाधन का अर्थ
(MEANING OF HUMAN RESOURCES
मानवीय
संसाधन से आशय किसी देश की जनसंख्या और उसकी शिक्षा, कुशलता, दूरदर्शिता तथा
उत्पादकता से होता है। मानवीय संसाधन को मानव पूँजी भी कहा जाता है।
किसी
देश के लिए मानव संसाधन (Human Resources} का अर्थ है-स्वस्थ एवं शिक्षित श्रम का
उपलब्ध होना । सम्पूर्ण स्वस्थ एवं पूर्ण शिक्षित श्रम अथवा कार्यशील जनसंख्या को
मानव-पूँजी (Human Capital) की भी संज्ञा दी जाती है जो किसी देश के
उत्पादन व आय के स्तर को पूँजी- मानवकृत पूँजी (Man-made
Capital) के संयोग से बढ़ाता है। मानव विकास' आर्थिक आयोजन के सभी विकास प्रयासों
का केन्द्र बिन्दु है। केवल स्वस्थ और शिक्षित व्यक्ति ही आर्थिक वृद्धि में
योगदान कर सकते हैं और यह वृद्धि मानव-कल्याण को बढ़ाती है। मानव-पूँजी मानव विकास
को उप्रेरित करती है और मानव-विकास आर्थिक विकास को। सारांश यह है कि मानव
संसाधनों के अन्तर्गत केवल जनसंख्या के आकार की चर्चा करना ही पर्याप्त नहीं है
बल्कि जनसंख्या की वृद्धि-दर, जन-घनत्व, स्त्री-पुरुष अनुपात, साक्षरता-प्रतिशत,
आयु-संरचना, जीवन-प्रत्याशा, जनसंख्या का व्यावसायिक विभाजन, शिक्षा, प्रशिक्षण,
कौशल निर्माण, साहसिक योग्यता, उद्यमी वृत्ति आदि का अध्ययन भी सम्मिलित किया जाता
है। चूँकि आर्थिक विकास एक मानबीय उपक्रम (Human Enterprise) है। अत: इस दृष्टि
से एक उपक्रम के रूप में मानव संसाधनों के सभी पहलू इसके
अन्तर्गत शामिल किये जाते हैं।
मानवीय संसाधन (जनसंख्या) के पहलू (ASPECTS OF HUMAN RESOURCES
(POPULATION)
जनसंख्या
के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते हैं-
I. जनसंख्या के परिमाणात्मक पहलू (Quantitative Aspects of Population) मोटे तौर पर जनसंख्या के परिमाणात्मक पहलू के अन्तर्गत जनसंख्या को
निम्नलिखित विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है-
1.
जनसंख्या का आकार (Size of the Population),
2.
जनसंख्या की वृद्धि दर (Growth Rate of Population),
3.
जनसंख्या की संरचना (Composition of Population)।
इसके
दो उप-विभाग होते हैं-
(1)
लिंगमूलक संरचना (Sex or Gender Composition),
(ii)
आयु-संरचना (Age-composition) |
4.
जनसंख्या का घनत्व क नगरीकरण (Density and Urbanisation of Population) |
II. जनसंख्या का गुणात्मक पहलू (Qualitative Aspect of Population)
1.
साक्षरता का स्तर (Literacy Level),
2.
प्रत्याशित आयु (Life Expectancy)|
अब
हम भारतीय जनसंख्या के उपर्युक्त पहलुओं का अध्ययन विस्तार से करेंगे।
1. जनसंख्या का परिमाणात्मक पहलू (QUANTITATIVE ASPECTS OF
POPULATION)
1.
जनसंख्या का आकार एवं वृद्धि (Size and Increase of Population) भारत का भू-क्षेत्र
सम्पूर्ण विश्व का लगभग 2.4 प्रतिशत है किन्तु उसे विश्व की कुल जनसंख्या के 16.7 प्रतिशत
भाग का पालन-पोषण करना पड़ता है। भारत में प्रति 10 वर्ष में जनसंख्या की गणना की जाती
है। जनगणना का कार्य भारत में पहली बार सन् 1871 में किया गया। वर्तमान में जनसंख्या
की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है।
सारणी
1 भारत की जनसंख्या
जनसंख्या वर्ष |
जनसंख्या (करोड़ में) |
दशक में परिवर्तन (करोड़ में) |
दशक में वृद्धि की दर (प्रतिशत) |
औसत वार्षिक घातांक वृद्धि दर (प्रतिशत) |
1901 |
23.84 |
+0.24 |
- |
- |
1951 |
36.11 |
+4.24 |
+13.31 |
+1.25 |
1961 |
43.92 |
+7.81 |
+21.51 |
+1.96 |
1971 |
54.82 |
+10.90 |
+24.80 |
+2.20 |
1981 |
68.88 |
+13.51 |
+24.66 |
+2.22 |
1991 |
84.64 |
+16.30 |
+23.86 |
+2.14 |
2001 |
102.87 |
+18.23 |
+21.54 |
+1.95 |
2011 |
121.02 |
+18.14 |
+17.7 |
+1.64 |
उपर्युक्त
सारणी के अंकों से स्पष्ट होता है कि-
(i)
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121.02 करोड़ है। 1901 की जनगणना के अनुसार
उस वर्ष देश की जनसंख्या 23.84 करोड़ थीं। इस प्रकार 110 वर्ष की अवधि में देश की जनसंख्या
में 97 करोड़ से अधिक की वृद्धि हुई।
(ii)
फिर भी भारत के लिए आशा की किरण इसलिए पैदा होती है कि जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार घटी
है।
(iii)
यदि पिछले तीन दशकों की आबादी की बढ़ोत्तरी को देखें तो हर दशक में दो करोड़ का इजाफा
होता आया है। इस हिसाब से 2011 की जनगणना में लगभग 20 करोड़ की आबादी तो बढ़नी ही चाहिए
थी, लेकिन इस दशक में 18 करोड़ ही बढ़ी। हम यह कह सकते हैं कि वृद्धि दर में मामूली
गिरावट से हमने दस वर्षों में करीब दो करोड़ की आबादी बढ़ने से रोक ली। अगले दशक मैं
जब जनगणना होगी, तो आशा की जानी चाहिए कि वृद्धि और कम हो।
प्रादेशिक प्रारूप (Regional Pattern)
2011
जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा आबादी वाले प्रदेश के रूप में उभरकर सामने
आया है। यही नहीं उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की आबादी मिलकर अमेरिका से अधिक है। सिक्किम की आबादी सबसे कम है, बिहार का स्थान तीसरा
है। दूसरे नम्बर पर महाराष्ट्र है।
इसी
प्रकार 2011 की जनगणना के अनुसार केन्द्र शासित क्षेत्र में सर्वाधिक जनसंख्या वाला
दिल्ली में जनसंख्या 167.53 लाख तथा सबसे कम जनसंख्या वाला लक्षद्वीप (2011 में जनसंख्या
64.43 हजार) है।
विश्व
की भावी जनसंख्या के सम्बन्ध में UNO की रिपोर्ट के अनुसार 2015 जनसंख्या की दृष्टि
से शीर्ष तीन देश इस प्रकार हैं-चीन 137.6 करोड़, भारत 131.1 करोड़, अमेरिका 32.2 करोड़
तथा सम्पूर्ण विश्व 731.0 करोड़।
2. जनसंख्या की वृद्धि दर (Rate of Population Growth)
सारणी
1 के अंकों से स्पष्ट होता है कि-
(i)
जनगणना दशकों में सबसे अधिक वृद्धि 24.08 प्रतिशत वर्ष 1961-71 के दशक में हुई थी,
जबकि यह वृद्धि 1971-81 के दशक में 24.06 प्रतिशत, 1981-91 के दशक में 23.86 प्रतिशत
तथा 2001 में 21.54 तथा 2011 में 17.64 प्रतिशत रही। इस प्रकार जनसंख्या के दशक वृद्धि
प्रतिशत में कमी तो हुई है, किन्तु यह कमी महत्वपूर्ण नहीं है।
(ii)
इन अवधियों में जनसंख्या की औसत वार्षिक वृद्धि दर जो वर्ष 1971 में 2.2 प्रतिशत वार्षिक
थी, वह बढ़कर वर्ष 1981 में 2.22 प्रतिशत वार्षिक हो गयी थी, जबकि 1991 में यह घटकर
2.14 प्रतिशत वार्षिक, 2001 में यह घटकर 1.93 प्रतिशत तथा वर्ष, 2011 में 1.64 प्रतिशत
गई। जो पिछली शताब्दी में किसी भी दशक में होने वाली न्यूनतम वृद्धि है।
(iii) यह भी उल्लेखनीय है कि 25 राज्य और संघ राज्य क्षेत्र जिनमें देश की लगभग 85 प्रतिशत आबादी रहती है उनकी वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर 2 प्रतिशत या उससे भी कम है, जबकि 1991-2001 के बीच ऐसे राज्यों की संख्या सिर्फ 15 थी।
जन्म और मृत्यु दरें (Birth and Death Rates)
भारत
की जनसंख्या की वृद्धि पर केवल जन्म दर और मृत्यु दर के अन्तर का प्रभाव पड़ता है।
जनसंख्या की वृद्धि का मुख्य कारण जन्म दर की तुलना में मृत्यु दर में होने वाली भारी
कमी है। सारणी 2 विभिन्न जनगणनाओं में आकलित जन्म दर एवं मृत्यु दरें प्रदर्शित करती
हैं
सारणी
2- भारत में जन्म-मृत्यु दर (प्रतिशत में)
वर्ष |
जन्म दर प्रति 1000 |
मृत्यु दर प्रति 1000 |
वृद्धि दर |
1911-21 |
48.1 |
47.2 |
0.9 |
1941-50 |
39.9 |
27.4 |
12.5 |
1951-60 |
41.7 |
22.8 |
18.9 |
1961-70 |
37.9 |
15.9 |
22.0 |
1971-80 |
36.0 |
14.8 |
21.2 |
1991-92 |
29.2 |
10.1 |
19.1 |
2000-01 |
25.5 |
8.4 |
17.1 |
2012-13 |
25.4 |
7.0 |
18.4 |
2015-16 |
19.3 |
7.3 |
12.0 |
उपर्युक्त
सारणी से स्पष्ट है कि-
(i)
वर्ष 1911 से 1921 में भारत की जन्म दर एवं मृत्यु दर एक-दूसरे के लगभग बराबर थीं।
इन दोनों में मात्र 0.9 प्रति हजार का अन्तर था।
(ii)
वर्ष 1901 से 2001 की अवधि में जन्म दर की तुलना में मृत्यु दर में तीव्र गिरावट आने
के कारण ही जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही
(iii)
वर्ष 1951 से 1960 के दशक में जन्म दर बढ़ गयी है, जबकि 1961 से 1970 के दशक में इसमें
मात्र 0.9 प्रतिशत की कमी आयी है।
(iv) वर्ष 1950 से 2009-10 के बीच जहाँ जन्म दर में 48.6 प्रतिशत कमी हुई है वहाँ मृत्यु दर एक-तिहाई से भी कम रह गई है। फलतः देश में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है।
(v)
वर्ष 2010-11 तक जन्म दर घटकर 21.8 प्रति हजार हो गयी और अशोधित मृत्यु दर घटकर
7.1 प्रति हजार हो गयी जिसके कारण जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि दर 14.7 प्रति हजार
बार्षिक होने का अनुमान लगाया गया है। जनसंख्या वृद्धि में गिरावट से यह आशा पैदा होती
है कि देश की शीघ्र ही जनांकिकी परिवर्तन (Dermographic Transitiori) की चौथी अवस्था
में पहुंच जाएगा।
भारत में जनसंख्या का संक्रमण काल (Dermographic Transition period
in India)
भारत
में जनसंख्या की मृत्यु दर और जन्म दर की प्रवृत्तियों के अध्ययन के उपरान्त अब हम
भारत की जनसंख्या के संक्रमण काल को निम्नलिखित चार भागों में बाँट सकते हैं-
प्रथम अवस्था (1901-1921)- इस अवस्था में उच्च जन्म दर'
के साथ विद्यमान 'उच्च मृत्यु दर' रही। देश में भीषण अकाल व महामारी के चलते जनसंख्या
में उच्च मृत्यु दर' की प्रवृत्ति थी।
द्वितीय अवस्था (1921-1951)- इस अवस्था में जनसंख्या में
वृद्धि का मुख्य कारण अकाल एवं महामारियों पर नियन्त्रण से हुई 'मृत्यु दर में कमी
थी। इससे मृत्यु दर तो घटी, किन्तु जन्म दर में कोई कमी नहीं हुई। वर्ष 1921 को महान्
विभाजक वर्ष' (Great Divide Year) के नाम से भी जाना जाता है।
तृतीय अवस्था (1951-1981)- इस अवस्था में जनसंख्या में
तीव्र वृद्धि का कारण है-इस अवधि में मृत्यु दर का लगातार घटते जाना तथा जन्म दर में
अधिक कमी न होना। अत: जनसंख्या विस्फोट की स्थिति है।
चतुर्थ अवस्था (1981-2011)- इस अवस्था में लोगों में छोटे
परिवार को अवधारणा के बलवती होने से जन्म दर में मामूली गिरावट आई। फलत: आशा की जा
सकती है कि भारत जनांकिकी के परिवर्तन (Demographic Transition) को चौथी अवस्था में
शोघ्र पहुँच जायेगा।
3. जनसंख्या की संरचना (Composition of Population)
(i) लिंगमूलक रचना (Sex Composition) स्त्री-पुरुष
अनुपात की गणना 1,000 के आधार पर की जाती है। इसका अर्थ यह है कि 1,000 पुरुषों के
पीछे कितनी स्त्रियाँ हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में प्रति 1,000 पुरुषों
के पीछे 940 स्त्रियाँ रह गयी हैं।
चिन्ता
का विषय यह है कि इस अनुपात में गिरावट हुई है। 1901 की जनगणना के अनुसार स्त्री पुरुष
अनुपात 972 था जो 1951 में कम होकर 946 तथा 2001 में 983 रह गया। 2011 में स्त्री-पुरुष
अनुपात 943 था।
2011
की जनगणना के अनुसार भारत में सबसे बेहतर लिंग अनुपात वाले दो राज्य केरल 1084 तथा
पुदुचेरी 1037 हैं और सबसे कम लिंग अनुपात वाले दो राज्य दिल्ली (866) तथा अण्डमान
निकोबार द्वीप समूह (877) हैं।
यदि
हम इस सन्दर्भ में भारत की स्थिति का अन्य देशों की स्थिति से मुकाबला करें तो यह पायेंगे
कि भारत की स्थिति ठीक विपरीत है। अमेरिका में प्रति हजार पुरुषों पर 1,050 स्त्रियाँ,
रूस में 1,140 स्त्रियाँ व ब्रिटेन में 1,104 स्त्रियाँ हैं।
भारत में इस प्रतिकूल लिंग-अनुपात के कई कारण हैं जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण
कारण निम्नलिखित हैं-
(i)
भारत में (विशेषकर उत्तरी भारत में) पुत्रों के लिए विशेष लगाव व आकर्षण है।
(ii)
पुत्रों को भविष्य में आय का स्रोत तथा बुढ़ापे का सहारा माना जाता है।
(iii)
कुछ ऐसे धार्मिक व अन्य अनुष्ठान हैं जो पुत्रों द्वारा ही सम्पन्न किए जाते हैं।
(iv)
अन्य कारण-
(a)
स्त्रियों का दहेज के लिए बच्चे को जन्म देते समय जीवन का खतरा,
(b)
स्त्रियों का दहेज प्रथा का शिकार होना,
(e)
पुत्रों की अपेक्षा पुत्रियों को कम देखभाल,
(d)
निर्धनता.
(e)
बाल-विवाह तथा पदा प्रथा,
(D
लिंग निर्धारण परीक्षण।
(ii) आयु संरचना(Age Composition)- वयमूलक रचना से अभिप्राय
आयु के अनुसार कुल जनसंख्या के वितरण से है। भारत में जनसंख्या का आयु वर्ग में विभाजन
महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हमें देश की श्रम शक्ति के आकार के सम्बन्ध में जानकारी
मिलती है।
भारतीय
जनानिकी संरचना
सारणी 3-भारत में आयु वर्ग के अनुसार जनसंख्या का प्रतिशत वितरण (2001 तथा
2026) |
|||
आयु वर्ग |
2001 |
2011 |
2026 (प्रक्षेपित) |
0-14 |
35.4 |
30.76 |
23.4 |
15-60 |
57.7 |
60.29 |
64.3 |
+60 |
6.9 |
8.95 |
12.4 |
|
100.0 |
100.0 |
100.0 |
यह
उल्लेखनीय है कि 0-14 आयु वर्ग तथा 60 वर्ष से अधिक आयु वाले वर्ग को जनसंख्या को निर्भर
जनसंख्या कहते हैं तथा 15-60 आयु वर्ग के बीच जनसंख्या को कार्यशील या कार्यकारी जनसंख्या
कहते हैं। निर्भर जनसंख्या का कार्यकारी जनसंख्या से भाग देने पर हमें निर्भरता अनुपात
मालूम हो जाता है।
निर्भर
जनसंख्या किसी भी देश के लिए दायित्व होती है जबकि कार्यकारी जनसंख्या देश के उत्पादन
में मानव संसाधन के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अत: किसी देश में कम होता
हुआ निर्भरता-अनुपात (Derendency-Ratio) आर्थिक विकास के लिए अनुकूल माना जाता है।
भारत में 1971 में निर्भरता अनुपात 0.9 था। यह कम होकर 0.8 तथा 2001 में 0.73 रह गया। 2011 में इससे और कम होकर 0.6 हो गया है।
जनांकिकीय लाभांश (DemographicDividend)- जब
देश की कुल जनसंख्या में कार्यकारी जनसंख्या का भाग अधिक हो तो इसे जनांकिकीय लाभांश
कहते हैं। यह देश के विकास में काफी सहायक होती है, क्योंकि 15-59 वर्ष की आयु वर्ग
को जनसंख्या उत्पादक होती है।
2011
की जनगणना के अनुसार भारत की कार्यकारी जनसंख्या 69 करोड़ है जो विश्व में सबसे अधिक
है। अगले 60 वर्षों तक यह कार्यकारी जनसंख्या का अनुपात अधिक ही रहेगा, जैसा कि चित्र
द्वारा स्पष्ट होता है।
भारत
में 15-60 आयु वर्ग की जनसंख्या अधिक होने के कारण यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारतीय
अर्थव्यवस्था आने वाले वर्षों में वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी,
बशर्ते अभी से इस दिशा में उन्हें सही दिशा में मोड़ा जाए। सर्वप्रथम उनके लिए गुणवत्तापूर्ण
शिक्षा, श्रेष्ठ प्रशिक्षण और विकास के अनुकूल वातावरण मुहैया कराना होगा और शिक्षा
को रोजगारोन्मुखी बनाना होगा।
4. जनसंख्या का घनत्व व वर्गीकरण (Density and Urbanisation of
Population)
भारत
में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है किन्तु भारत में क्षेत्रफल स्थिर है, अतः भारत
में जनसंख्या का घनत्व बढ़ रहा है।
सारणी
4- भारत में जनसंख्या का घनत्व
वर्ष |
घनत्व |
1901 |
77 |
1911 |
82 |
1921 |
81 |
1931 |
90 |
1941 |
102 |
1951 |
117 |
1961 |
142 |
1971 |
177 |
1981 |
216 |
1991 |
267 |
2001 |
325 |
2011 |
382 |
उपर्युक्त
सारगी से स्पष्ट है कि वर्ष 2001 की तुलना में 2011 में जनसंख्या के घनत्व में 57 अंक
की वृद्धि हुई है अर्थात् 2001 में जनसंख्या घनत्व जो 325 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर
था वह 2011 में बढ़कर 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो गया।
क्षेत्रीय प्रारूप (Regional Palleri)
राज्यों
में सर्वाधिक घनत्व बिहार में 1,102 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. तथा सबसे कम अरुणाचल
प्रदेश में 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. रहा। इसी प्रकार केन्द्रशासित क्षेत्रों में
सर्वाधिक घनत्व दिल्ली में 11,297 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. तथा सबसे कम अण्डमान निकोबार
द्वीप समूह में 16 व्यक्ति प्रति वर्ग किमो. था।
भारत में नगरीकरण की प्रवृत्तियाँ (Trends of Urbanization)
ग्रामीण
क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या के प्रवसन से ही नगरीकरण का विकास होता है।
भारत की जनसंख्या में भारी वृद्धि होने के साथ-साथ नगरीय जनसंख्या में तीव्र गति से
वृद्धि हो रही है। सन् 1991 में देश की 26.72 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती थी। सन्
2001 में यह प्रतिशत बढ़कर 27.78 प्रतिशत हो गया।
विगत
दस वर्षों में भारत में नगरीकरण में तेजी से वृद्धि हुई है क्योंकि 2001 में शहरी आबादी
जो 28% थी वह 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 34% हो गई है। इसी प्रकार 2001 की जनगणना
में शहर कस्बों की कुल संख्या 5,161 थी, जो 2011 में बढ़कर 7,936 हो गई और गाँवों की
संख्या में भी इजाफा हुआ है, पिछले दस वर्षों में करीब 48 हजार गाँव बढ़े हैं।
2001 में गाँवों की संख्या 5.93 लाख थी, जो अब बढ़कर 6.41 लाख हो गई है।
II. जनसंख्या का गुणात्मक पहलू
(QUALITATIVE ASPECT OF POPULATION)
इसके
अन्तर्गत साक्षरता, स्वास्थ्य सुविधाएँ तथा पोषण तत्वों की उपलब्धता को शामिल किया
जाता है। इसका जीवन की औसत प्रत्याशा आयु पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा इससे लोगों
की कार्यकुशलता बढ़ जाती है। इसका उत्पादन एवं आर्थिक विकास पर अच्छा प्रभाव पड़ता
है। भारत की जनसंख्या के गुणात्मक पहलू का अध्ययन य रूप से निम्नलिखित दो शीर्षकों
के अन्तर्गत करेंगे-
1.
साक्षरता का स्तर, 2. प्रत्याशित आयु।
1. साक्षरता का स्तर (Level of Literacy)- साक्षरता
दर का अर्थ देश की कुल जनसंख्या में शिक्षित व्यक्तियों की संख्या के प्रतिशत से है।
नीचे सारणी में भारत की साक्षरता दर को दर्शाया गया है-
सारणी
5 : भारत में साक्षरता (प्रतिशत में)
जनगणना वर्ष |
कुल साक्षरता |
पुरुषों में |
स्त्रियों में |
1951 |
18.33 |
27.16 |
8.86 |
1991 |
52.11 |
63.86 |
39.42 |
2001 |
65.38 |
75.85 |
54.16 |
2011 |
73.0 |
80.9 |
64.6 |
उपर्युक्त
सारणी से स्पष्ट होता है कि-
(i)
भारत में साक्षरता की दर में निरन्तर वृद्धि हो रही है। 1951 की जनगणना के अनुसार भारत
में साक्षरता का प्रतिशत 18.33 था, 1991 में 52.11 व 2001 में 65.38 तथा 2011 में
73.0 प्रतिशत है।
(ii)
देश में वर्ष 2011 में करीब 80.9 प्रतिशत पुरुष एवं 64.6 प्रतिशत महिलाएँ साक्षर हैं,
इस दौरान महिला साक्षरता दर 11.8 प्रतिशत और पुरुष साक्षरता दर 6.9 प्रतिशत की दर से
बढ़ी है।
(iii)
पिछले एक दशक (2001-11) में 21 करोड़ 77 लाख लोग साक्षर हुए हैं। इनमें महिलाओं की
संख्या ( 11 करोड़ से अधिक) पुरुषों की संख्या (लगभग 10 करोड़) है।
(iv)
साक्षरता की दृष्टि से राज्यों में काफी विषमता है। जैसे-
(a)
सर्वाधिक साक्षरता केरल में 94.0 तथा सबसे कम बिहार में 61.8 पाई गई।
(b)
महिलाओं में सर्वाधिक साक्षरता केरल में (91.98 प्रतिशत) तथा सबसे कम राजस्थान में
(52.66 प्रतिशत) पाई गई।
(c)
देश में अब तक पूर्ण साक्षर घोषित किया जाने वाला एकमात्र राज्य केरल है।
2011
की जनगणना से एक उल्लेखनीय तथ्य प्रकाश में आया है कि केरल, दिल्ली, त्रिपुरा और गोवा
सहित दस राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों ने 85 प्रतिशत से अधिक साक्षरता दर हासिल
करके योजना आयोग के लक्ष्य को पूरा कर लिया, लेकिन इसके बावजूद साक्षरता के मामले में
भारत कांगो (81 प्रतिशत), दक्षिण अफ्रीका (88 प्रतिशत), ब्राजील (90 प्रतिशत), श्रीलंका
(91 प्रतिशत) और चीन (93 प्रतिशत) से पीछे है।
2. प्रत्याशित आयु (Life Expectaney- प्रत्याशित आयु का
अर्थ एक देश के निवासियों की जीवित रहने की सम्भावित आयु से है।
सारणी
6- भारत में प्रत्याशित आयु (अनुमानित वर्षों में)
वर्ष |
सम्पूर्ण भारत |
पुरुष |
स्त्री |
1951 |
32.1 |
32.4 |
31.7 |
1991 |
58.7 |
58.6 |
59.0 |
2001 |
62.0 |
62.36 |
- |
2009-13 |
67.5 |
65.8 |
69.3 |
यद्यपि
भारत में प्रत्याशित आयु में वृद्धि हुई है, किन्तु विश्व के अन्य प्रमुख देशों को
देखते हुए भारत में जीवन प्रत्याशा आज भी बहुत अधिक कम है। विश्व के कुछ प्रमुख देशों
में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा निम्नानुसार है-
सारणी
7–विश्व के प्रमुख देशों में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (2010-15)
देश |
प्रत्याशित आयु |
सिंगापुर |
82.0 |
जापान |
83.0 |
स्विट्जरलैण्ड, स्वीडन व ऑस्ट्रेलिया |
82.0 |
कनाडा |
81.0 |
आइसलैण्ड |
81.0 |
भारत
में प्रत्याशित आयु के सम्बन्ध में एक उल्लेखनीय बात यह है कि यहाँ स्त्रियों की जीवन-
अवधि पुरुषों से कम है, जबकि पश्चिमी देशों में यह लगभग बराबर अथवा पुरुषों से अधिक
है। भारत में स्त्रियों की जीवन-अवधि अपेक्षाकृत कम होने का मुख्य कारण स्त्रियों को
असामयिक मृत्यु है।
विगत
वर्षों में भारत में प्रत्याशित आयु में वृद्धि प्रति वर्ष हो रही है। यह शुभ प्रवृत्ति
है, क्योंकि औसत आयु बढ़ने से आर्थिक विकास पर बहुत लाभदायक प्रभाव पड़ता है। औसत आयु
बढ़ने से अर्थव्यवस्था को प्राप्त होने वाले लाभ निम्न प्रकार हैं-
(i)
औसत आयु बढ़ने से एक व्यक्ति का कार्यकाल बढ़ जाता है, जिसमें राष्ट्रीय उत्पादन आयु
में वह अधिक वृद्धि कर सकता है।
(ii)
अल्प औसत आयु के कारण नागरिकों के पालन-पोषण, शिक्षा तथा प्रशिक्षण आदि पर किये गए
व्यय का पूरा प्रतिफल नहीं मिल पाता।
(iii)
राष्ट्रीय आय का बहुत बड़ा भाग ऐसे शिशुओं पर ज्यच होता है, जो उत्पादक आय में पहुँचने
से पूर्व ही मौत के शिकार बन जाते हैं।
(iv)
अल्प औसत आयु के कारण देश में अनुभवी लोगों की कमी रहती है।
स्वास्थ्य (Health)
सरकार
द्वारा जनसंख्या को सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराने में आ रही चुनौतियों के बावजूद
स्वास्थ्य सेक्टर में कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियाँ प्राप्त की गई हैं। जीवन प्रत्याशा
(Life expectancy) दोगुनी हुई है, जबकि शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality) व अशोधित
मृत्यु दर (Crude Death Rate) में तेजी से कमी आई है। आर्थिक समीक्षा में बताया गया
है कि-
भारत में कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rale : TRF)
में तेजी से गिरावट आई है तथा 2014 में यह दर 2.3 प्रतिशत हो गई थी। ग्रामीण क्षेत्रों
में यह जहाँ 2.5 प्रतिशत थी, वहीं शहरी क्षेत्रों में यह दर 1.8 प्रतिशत थी।
शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality) 2011 में 44 प्रति
1000 जीवित जन्म थी, जो घटकर 2015 में 37 प्रति 1000 जीवित जन्म रह गई थी। 2015 में
ग्रामीण क्षेत्रों में यह 41 प्रति हजार जीवित जन्म थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह
25 प्रति हजार जीवित जन्म थी। शिशु मृत्यु दर में ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में यह
अन्तर अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है। मातृत्व मृत्यु दर (Maternal Mortality
Rate) 2001-03 के दौरान 301 मातृत्व मृत्यु प्रति
1,00,000
जीवित जन्म था, जो घटकर 2011-13 के दौरान 1,00,000 जीवित जन्मों पर 167 मातृत्व मृत्यु
रह गया था। मातृत्व मृत्यु के मामले में राज्य वार असमानता पर चिन्ता व्यक्त करते हुए
समीक्षा में बताया गया है कि 2011-13 में असम में जहाँ यह 300 मृत्यु प्रति एक लाख
जीवित जन्म थी तथा उत्तर प्रदेश उत्तराखण्ड में यह 285, राजस्थान में 244, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़
में 221 तथा बिहार-झारखण्ड में यह जहाँ 208 थी वहीं केरल में यह 61, महाराष्ट्र में
68 तथा तमिलनाडु में यह दर 92 मृत्यु प्रति एक लाख जीवित जन्म ही थी।
मानव विकास सूचकांक-2016 (HUMAN DEVELOPMENT INDEX-2016)
यू.एन.
डी पी का मानना है कि मानवीय विकास का वास्तविक आकलन प्रायः सकल घरेलू उत्पाद'
(GDP) या 'प्रति व्यक्ति आय' (PCI) जैसे पारम्परिक मापकों से नहीं, बल्कि विकास के
आधारभूत पहलुओं जैसे-स्वास्थ्य, शिक्षा, आय आदि के सूचकांकों के औसत द्वारा तथा विभिन्न
देशों के तुलनात्मक विश्लेषण द्वारा मानव विकास सूचकांक' (HDI-Human Development
Index) तैयार किया जाना चाहिए। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु हर साल यूएन डीपी 'मानव
विकास रिर्पोट' प्रकाशित करता है और इसके विश्लेषण के आधार पर मानव विकास सूचकांक जारी
किया जाता है।
सारणी-8.
एचडीआई (HDI)-2016 में ब्रिक्स द. एशिया एवं विश्व की प्रगति
देश |
रैंक (2016) |
एचडीआई |
भारत |
131 |
0.624 |
ब्राजील |
79 |
0.754 |
रूसी संघ |
49 |
0.804 |
चीन |
90 |
0.738 |
विश्व |
- |
0.717 |