पटसन या जूट उद्योग (JUTE INDUSTRY)

पटसन या जूट उद्योग (JUTE INDUSTRY)

संक्षिप्त इतिहास-भारत में आधुनिक जूट उद्योग लगभग 125 वर्ष पुराना है। देश में जूट उद्योग सन् 1855 में आरम्भ हुआ जब जॉर्ज आकलैण्ड ने पश्चिम बंगाल में जूट मिल स्थापित की। इसके पश्चात् इस उद्योग का विकास होने लगा। सन् 1913-14 में भारत में कुल 64 मिलें थीं। प्रथम विश्वयुद्ध तक जूट उद्योग की प्रगति काफी धीमी रही परन्तु सन् 1929 की आर्थिक मन्दी का प्रभाव इस उद्योग पर पड़ा और इस उद्योग को काफो क्षति पहुँची। द्वितीय विश्वयुद्ध ने पुनः इस उद्योग को जीवन प्रदान किया क्योंकि युद्ध के कारण सैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जूट की वस्तुओं के मूल्य में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।

देश-विभाजन का प्रभाव (Effect of Country's Partition) सन् 1917 में भारत के विभाजन से इस उद्योग को भारी क्षति हुई। विभाजन के फलस्वरूप 75% कच्चा जूट उत्पादित करने वाला क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया किन्तु लगभग सभी मिलें भारतीय क्षेत्र में रहीं। अत: जूट उद्योग को कच्चे माल की समस्या का सामना करना पड़ा। समस्या का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सन् 1950-51 में जहाँ कच्चे जूट की माँग 70 लाख गाँठों की थी, वहाँ पूर्ति केवल 30 लाख गाँठों की थी।

पंचवर्षीय योजनाओं में जूट उद्योग का विकास (Development of the Jute Industry Under Five Year Plans)—भारत सरकार ने अपनी विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में जूट उद्योग के विकास के लिए मुख्य रूप से तीन बातों पर ध्यान दिया-(i) कच्चे जूट के उत्पादन में वृद्धि, (ii) मिलों को वर्तमान उत्पादन क्षमता में वृद्धि की अनुमति न देना। (ii) जूट से निर्मित वस्तुएँ-ओरे व टाट आदि के उत्पादन में वृद्धि करना।

जूट उद्योग की वर्तमान स्थिति (Present Position of Jute Industry)

भारत सरकार ने विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में जूट उद्योग के विकास को ओर पर्याप्त ध्यान दिया है जैसा कि निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट हो जायेगा-

1. मिलें- इस समय देश में 83 मिलें हैं जिनमें से 61 मिलें पश्चिम बंगाल में हैं। उनमें से 6 मिलों का राष्ट्रीयकरण हो चुका है। अत: वे सरकार के पास हैं। इन मिलों में 44,476 करघे हैं।

2. पूँजी एवं रोजगार-इस उद्योग में ₹ 300 करोड़ की पूँजी लगी है। लाख व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है।

3. उत्पादन-योजनावधि में जूट और मेस्टा के उत्पादन में होने से भारतीय जूट उद्योग की आयातित जूट पर निर्भरता कम वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। 2014-15 में जूट व मेस्टा के अधीन क्षेत्र 8 लाख हेक्टेअर था और उनका उत्पादन 114 लाख गाँट था। जूट वस्तुओं का कुल उत्पादन 2012-1 1.58 मिलियन टन था जो 2013-14 में गिरकर 1.52 मिलियन टन तथा 2014-15 में केवल 1.26 मिलियन टन रह गया।

4. निर्यात पूरे विश्व में भारत जूट वस्तुओं का सबसे बड़ा उत्पादक तथा दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। इस क्षेत्र में लाख किसान परिवारों को रोजगार मिला हुआ है तथा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जूट उद्योग में 4 लाख लोग कार्यरत हैं। देश में 89 जूट मिलें हैं जिनमें से 64 मिलें पश्चिमी बंगाल में

जूट उद्योग की प्रमुख समस्याएँ (Main Problems of Jute Industry)

वर्तमान में भारतीय जूट उद्योग की निम्नलिखित प्रमुख समस्याएँ हैं-

1. कच्चे जूट का अभाव-देश के विभाजन के बाद जूट उद्योग के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या कच्चे माल के अभाव को रही है। कच्चे माल के अभाव के कारण भारत में उत्पादन कुशलता को हानि पहुँची है और विश्व बाजार में भारत में प्रतियोगिता सामर्थ्य घट गयीं है।

2.आधुनिकीकरण की समस्या-भारतीय जूट उद्योग काफी पुराना होने के कारण इस उद्योग में अधिकांश मशीनें काफी पुरानी हैं जिससे उत्पादन लागत बहुत अधिक है।

3. स्थानापन्न वस्तुओं की समस्या अनेक पश्चिमी देशों ने जूट के स्थानापन्न पदार्थों का उपयोग आरम्भ कर दिया है। संयुक्त राज्य अमेरिका, फिलीपाइन्स, ब्राजील इत्यादि देशों में पैकिंग के लिए बरलप (Burlap) तथा विशेष प्रकार का कागज प्रयोग में लाया जा रहा है। स्थानापन्न वस्तुएँ जूट के माल की अपेक्षाकृत सस्ती होती हैं। फलतः इसका भी जूट उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

4. बीमार मिलों की समस्या-जूट उद्योग में कच्चे माल की समस्या और लागत निधि की कठिनाई के कारण बीमार मिलों की समस्या भी उत्पन्न हो गई है। सरकार को चाहिए कि ऐसी इकाइयों को जीवित रखने के लिए उचित ब्याज दर पर वित्त उपलब्ध कराये तथा वर्ष भर इन्हें उचित कीमतों पर जुट निगम से पटसन उपलब्ध कराया जाय।

5. श्रम समस्या- भारत की अधिकांश जूट मिलें पश्चिम बंगाल में ही हैं जहाँ पर श्रम समस्या काफी गम्भीर है जिसका श्रमिकों की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

6. निर्यात की समस्या- भारत का जूट उद्योग मुख्य रूप से एक निर्यातक उद्योग है परन्तु यह चिन्ता की बात है कि इसका निर्यात निरन्तर घटता जा रहा है। सिंथेटिक पदार्थों एवं बांग्लादेश से तीव्र प्रतियोगिता के कारण उद्योग की बिक्री से आय बहुत घट गयी है।

7. अनुसन्धान की समस्या-देश में जुट उद्योग से सम्बन्धित अनुसन्धान के लिए पर्याप्त सुविधाएँ नहीं हैं। इण्डियन जूट इण्डस्ट्रोज रिसर्च एसोसिएशन के नाम से एक संस्था की स्थापना कुछ वर्षों पूर्व की जा चुकी है किन्तु यह देश की आवश्यकताओं के लिए अपर्याप्त है। इस संस्था ने संयुक्त राज्य अमेरिका में फैब्रिक रिसर्च लेबोरेटरीज ऑफ हैडहम की अनुसन्धानशाला में शोध सम्बन्धी समझौता किया है।

8. पूर्ण उत्पादन क्षमता के उपयोग की समस्या-कच्चे माल की कमी, विद्युत् एवं कोयले का अभाव, कभी विदेशी बाजारों में माँग घट जाने से अथवा हड़तालों-तालाबन्दी से पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाता। अत: इन सब कारणों के उचित उपचार की व्यवस्था की जानी चाहिए।

9. यातायात की समस्या निर्मित माल को देश के दूर-दूर के भीतरी भागों में पहुँचने, वर्षा ऋतु में बाहों के कारण यातायात व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाने पर कच्चे माल के लाने तथा निर्मित माल को बाहर भेजने में समस्या आती है। इसके लिए यातायात साधनों का तेजी से विकास करना चाहिए।

10. कोयला एवं विद्युत् शक्ति की समस्या के कारण बहुत-सी जूट मिलों में उत्पादन ठप्प हो जाता है। इस समस्या के समाधान के लिए कोयला तथा विद्युत् पूर्ति में सुधार करना चाहिए।

जूट उद्योग की समस्याओं के समाधान सुझाव (Suggestions for Solution of Problems of Jutc Industry)

जूट उद्योग की समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये जाते हैं-

1. कच्चे जूट के उत्पादन को प्रोत्साहन-कच्चे माल की पूर्ति हेतु कृषकों को कच्चा जूर अधिक उत्पादित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । गत दशक में प्रति एकड़ जूट का उत्पादन लगभग 2.79 गाँठ था जिसको 4.61 गाँठ तक बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए अच्छी किस्म के बीज एवं उन्नत खादों की व्यवस्था की जानी चाहिए।

2. मण्डी विकास कार्यक्रम-जूट निर्मित माल के निर्यात के प्रोत्साहन हेतु मण्डी विकास कार्यक्रम अपनाया जाना चाहिए। भारतीय जूट मिल्स संघ ने इस उद्देश्य से ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी शाखाएँ स्थापित की हैं। जूट के सामान के बाजारों में भी समय समय पर प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है। इस कार्यक्रम को और अधिक सक्रिय बनाया जाना चाहिए।

3. बीमार मिलों को आर्थिक सहयता-सरकार को चाहिए कि बीमार मिलों को आर्थिक सहायता देकर उन्हें पुनः कार्यशील बनाये।

4. पर्याप्त मात्रा में शक्ति की व्यवस्था-जूट उद्योग हेतु पर्याप्त मात्रा में शक्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे कि मिलें अधिक से अधिक कार्यशील रहकर अपने उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ हो सकें।

5. आवश्यक साख की व्यवस्था-जूट के उत्पादन में वृद्धि, जूट वस्तुओं के निर्माण एवं निर्यात में वृद्धि के लिए आवश्यक है कि उन्हें आवश्यक साख सुविधा प्रदान की जाये।

6. शोध एवं विकास-कृत्रिग रेशों की प्रतिस्पर्द्धा को कम करने के लिए जूट उद्योग द्वारा अनुसन्धान एवं विकास पर अधिक व्यय करके ऐसी तकनीक का विकास करना चाहिए जिससे जूट की वस्तुएँ कृत्रिम रेशे की वस्तुओं से टिकाऊ एवं सस्ती पड़ें जिससे कि प्रतिस्पर्धा का मुकाबला किया जा सके।

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