झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण
परिषद्, राँची (झारखंड)
Jharkhand Council of Educational Research
and Training, Ranchi (Jharkhand)
द्वितीय सावधिक परीक्षा - 2021-2022
Second Terminal Examination - 2021-2022
मॉडल प्रश्नपत्र
Model Question Paper
सेट-3 (Set-3)
वर्ग- 12 (Class-12) | विषय-अर्थशास्त्र। (Sub-Economics) | पूर्णांक-40 (F.M-40) | समय-1:30 घंटे (Time-1:30 hours) |
सामान्य निर्देश (General Instructions) -
» परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर दें।
» कुल प्रश्नों की संख्या 19 है।
» प्रश्न संख्या 1 से प्रश्न संख्या 7 तक अति लघूत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।
» प्रश्न संख्या 8 से प्रश्न संख्या 14 तक लघूतरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 5 प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित है।
» प्रश्न संख्या 15 से प्रश्न संख्या 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।
खंड- A अति लघु उत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
1. आधुनिक अर्थशास्त्र
का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर: एडम स्मिथ
को आधुनिक अर्थशास्त्र का जनक कहा जाता है।
2. राष्ट्रीय
आय मापने की तीन विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर: राष्ट्रीय आय की गणना की तीन विधियाँ हैं –
1. उत्पादन विधि
2. आय विधि
3. व्यय विधि
3. आय के चक्रीय
प्रवाह में अंतक्षेपण या भरण क्या है?
उत्तर:
अंतक्षेपण या क्षरण या वापसी
वे प्रवाह चर है जिनका उत्पादन की प्रक्रिया (आय सृजन प्रक्रिया ) या ऋणात्मक प्रभाव
पड़ता है। इसमें बचत, आयात, सरकार द्वारा लगाए गए कर हैं। यह सभी चर अर्थव्यवस्था में आए प्रवाह को कम करते हैं।
भरण या समावेश वे प्रवाह चर है जो अर्थव्यवस्था में उत्पादन की प्रक्रिया में वृद्धि करते
हैं। इसमें निवेश, निर्यात, सरकारी एवं परिवार क्षेत्र द्वारा
किया गया उपभोग व्यय है। इसके फलस्वरूप
विकास प्रक्रिया में वृद्धि होती है।
4. मुद्रा की
परिभाषा दीजिए।
उत्तर: कानूनी तौर पर मुद्रा
कोई भी ऐसी वस्तु हो सकती है जिसे कानून द्वारा विनिमय का माध्यम घोषित किया जाए। कागजी नोट तथा सिक्के (जिन्हें सामूहिक
रूप से करेंसी कहा जाता है) कानूनी तौर पर मुद्रा है। कोई
व्यक्ति इन्हें विनिमय माध्यम के रूप में स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकता।
5. स्वायत्त
उपभोग को परिभाषित कीजिए।
उत्तर: स्वायत्त
उपभोग को उन खर्चों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो उपभोक्ताओं
को तब भी करना चाहिए जब उनके पास कोई डिस्पोजेबल आय न हो । किसी भी समय किसी उपभोक्ता
के पास कितनी आय या धन है, इसकी परवाह किए बिना, कुछ सामान खरीदने की आवश्यकता है।
जब कोई उपभोक्ता के पास साधन कम होता है, तो इन आवश्यकताओं के लिए भुगतान उन्हें उधार
लेने या उन धन तक पहुंचने के लिए मजबूर कर सकता है जो वे पहले बचत कर रहे थे।
6. पूँजीगत प्राप्ति
से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पूंजीगत
प्राप्तियां :- पूंजीगत प्राप्तियां वे मौद्रिक प्राप्तियां
हैं जिनसे सरकार की देयता उत्पन्न होती है या परिसंपत्ति कम
होती है।
7. आयात की संकल्पना
को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: आयात
जिसे अंग्रेजी में इम्पोर्ट कहते हैं इसका सामान्य अर्थ होता है किसी भी अन्य देश से
अपने देश में कुछ मंगाना। विश्व के सभी देश एक दूसरे से व्यापार करते हैं। इस व्यापार
में एक देश दूसरे देश से या तो कुछ खरीदता है या उस देश को कोई वस्तु बेंचता है। कई
बार अपने देश में किसी वस्तु की कमी को पूरा करने के लिए या कई बार किसी वस्तु के निर्माण
के लिए कच्चा माल के लिए दूसरे देशों से उन वस्तुओं की खरीदारी की जाती है। तो कई बार
विदेशों से सर्विस के लिए भी एक देश दूसरे देश को मूल्य चुकाना पड़ता है। अतः वे सारी
क्रियाएं जिनके द्वारा हम किसी दूसरे देश से सेवाएं, कच्चा माल, वस्तुएं या अन्य कोई
भी सामान पैसे चुकाकर प्राप्त करते हैं अर्थात खरीदारी करते हैं आयात या इम्पोर्ट कहलाता
है।
M = M(Y); `\frac{dM}{dY}` > 0
खंड-B लघु उत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित में से
किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
8. समष्टि अर्थशास्त्र
की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 'बाह्य क्षेत्र' का वर्णन कीजिए।
उत्तर :- चार क्षेत्रकीय चक्रीय प्रवाह में विदेशी क्षेत्र का समावेश किया गया है। विदेशी क्षेत्र अर्थव्यवस्था में अन्य क्षेत्रो से निम्न प्रकार से सम्बन्धित है -
1. हमारा उत्पादक
क्षेत्र शेष विश्व को वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात करता है। इसके फलस्वरूप निर्यात
प्राप्तियों के रुप में मौद्रिक प्रवाह विदेशी क्षेत्र से उत्पादक क्षेत्र की ओर होता
है।
2. हमारे उत्पादक
विदेशी क्षेत्र से वस्तुओं और सेवाओं का आयात करते हैं इसके फलस्वरूप आयात भुगतान के
रूप में मौद्रिक प्रवाह उत्पादकों से शेष विश्व की ओर होता है।
3. हमारे निवासी
विदेशी क्षेत्र से उपहार या हस्तांतरण भुगतान प्राप्त करते हैं इसी प्रकार वे विदेशी
क्षेत्र के निवासियों को उपहार या हस्तांतरण भुगतान प्रदान करते हैं।
4. हमारे निवासी
विदेशी क्षेत्र से जो साधन सेवाएं प्रदान करते हैं उसके बदले में ये साधन भुगतान प्राप्त
करते हैं। इसी प्रकार हम विदेशी क्षेत्र को उसकी साधन सेवाओं के बदले में साधन भुगतान
प्रदान करते हैं।
9. व्यापार आधिक्य
और व्यापार घाटा में क्या अंतर है।
उत्तर: व्यापार
संतुलन एक निश्चित अवधि में निर्यात और आयात के प्रवाह को मापता है। व्यापार संतुलन
की धारणा का अर्थ यह नहीं है कि निर्यात और आयात एक दूसरे के साथ "संतुलन में"
हैं।
यदि कोई देश
आयात से अधिक मूल्य का निर्यात करता है, तो उसके पास व्यापार आधिक्य
या सकारात्मक व्यापार संतुलन होता है , और इसके विपरीत, यदि कोई देश निर्यात
से अधिक मूल्य का आयात करता है, तो उसका व्यापार घाटा या नकारात्मक व्यापार संतुलन
होता है।
10.पूँजीगत वस्तु
की धारणा को उदाहरण से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: एक पूंजीगत
वस्तु व्यापार या सरकार में संपत्ति का एक टुकड़ा है जो कई वर्षों तक चलेगी, और संभवत:
वर्षों के दौरान भी वित्तपोषित होगी। जबकि नकदी के आधार पर पूंजीगत वस्तुओं को खरीदना
संभव है, संभावना है, उन वस्तुओं की बचत समय के साथ हुई। पूंजीगत वस्तुओं के कुछ सामान्य
उदाहरणों में इमारतों और अविकसित अचल संपत्ति शामिल हैं, खासकर व्यवसायों या सरकारों
के लिए। सड़कें और पुल भी पूंजीगत वस्तुएं हैं, जो आमतौर पर सरकार के पास होती हैं।
11. 'आवश्यकता
के दोहरे संयोग' से आप क्या समझते हैं? उदाहरण से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: आवश्यकताओं
का दोहरा संयोग वस्तु विनिमय प्रणाली की एक पूर्व-शर्त है। आवश्यकताओं के दोहरे संयोग
से अभिप्राय यह है कि किसी एक व्यक्ति की वस्तु दूसरे की आवश्यकता को और दूसरे व्यक्ति
की वस्तु पहले की आवश्यकता को पूरा करती है। किंतु यह एक दुर्लभ घटना है। वास्तव में
यह बहुत ही कठिन है कि आपको कोई ऐसा व्यक्ति मिले जिसे आपके घोड़े की आवश्यकता हो और
उसके पास देने के लिए गाय हो जिसकी आपको आवश्यकता है। अतः वस्तु विनिमय प्रणाली में
विनिमय बहुत ही सीमित स्तर पर हुआ करता था। विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के
आविष्कार का उद्देश्य वस्तु के विनिमय के अंतर्गत विनिमय को बंधनमुक्त करना था।
12. प्रत्याशित
उपभोग और यथार्थ उपभोग में क्या अंतर है।
उत्तर: आय का
वह भाग जिसे वस्तुओं व सेवाओं पर व्यय किया जाता है उसे उपभोग कहते हैं। उपभोग आय पर निर्भर करता है
C = f(Y)
जब कोई उपभोक्ता
दिए गए समय में जितना उपभोग करने का आशा करता है उसे हम प्रत्याशित उपभोग कहते हैं
जबकि उपभोक्ता को भिन्न भिन्न परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जिससे उसका उपभोग
प्रभावित हो जाता है। कहने का तात्पर्य है कि वास्तविक उपभोग उस उपभोग को कहते हैं
जो वास्तव में उपभोक्ता द्वारा उपभोग किया जाता है। वास्तविक उपभोग प्रत्याशित उपभोग
से भिन्न हो सकता है। वास्तविक उपभोग प्रत्याशित उपभोग से ज्यादा कम या बराबर हो सकता
है। मान लिया कोई उपभोक्ता उपभोग्य पदार्थों पर ₹100 खर्च करने का इच्छा रखता है जो
इसका प्रत्याशित उपभोग है, लेकिन परिस्थितियों के कारण वह उतना राशि उस वस्तु पर खर्च
नहीं कर पाता जिससे उसका वास्तविक उपभोग कम हो जाता है।
13.सार्वजनिक वस्तु क्या है? यह निजी वस्तु से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर: सामाजिक वस्तुओं को परिभाषित करते हुए डॉ. मसग्रेव ने कहा है कि
"सामाजिक वस्तुएँ ऐसी विशिष्ट वस्तुएँ होती हैं जो उपभोग में गैर-प्रतियोगी हों,
ताकि इनसे समाज के सभी सदस्यों द्वारा समान लाभ उठाए जा सकते हों। इनवस्तुओं के सन्दर्भ
में उपभोक्ता की पृथकता सामान्यतया वांछनीय नहीं होती और अनेक परिस्थितियों में सम्भव
भी नहीं होती है।"
निजी वस्तुओं का उपभोग सामूहिक नहीं होता अर्थात् जो व्यक्ति निजी" वस्तुओं
के मूल्य का भुगतान नहीं करता, वह वस्तु के उपभोग से भी वंचित रहता है। इसके विपरीत
सामाजिक वस्तुओं का प्रयोग सामूहिक होता है अर्थात् इन वस्तुओं का लाभ सभी को समान
रूप से प्राप्त होता है और मूल्य का भुगतान न करने वाले व्यक्ति को भी इसके उपभोग से
वंचित नहीं किया जा सकता है।
14. व्यापार संतुलन किसे कहते हैं? इसके कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर: दो या दो से अधिक देशों के मध्य निश्चित समय मे होने वाले आयात-निर्यात
के अंतर को व्यापार संतुलन या व्यापार शेष कहते है। इस प्रकार व्यापार संतुलन मे आयात-निर्यात
मे केवल दृश्य मदों को ही शामिल किया जाता है। दृश्य मदें वे वस्तुएं है जिनका लेखा-जोखा
बन्दरगाहो, हवाई अड्डों, सीमा चौकियों आदि पर रखा जाता है।
बेन्हम के अनुसार," किसी देश का व्यापार संतुलन वह संबंध है जो एक निश्चित
समयावधि मे उसके आयातों तथा निर्यातों के मूल्यों के बीच पाया जाता है।"
व्यापार संतुलन की तीन स्थितियां हो सकती है, यथा- अनुकूल व्यापार संतुलन, प्रतिकूल
व्यापार संतुलन और साम्य व्यापार संतुलन। इनका विवेचना इस प्रकार है--
1. अनुकूल व्यापार संतुलन - अनुकूल व्यापार संतुलन से आशय उस स्थिति से है,
जब आयातों की तुलना मे निर्यात अधिक हो। दूसरे शब्दों मे, वस्तुओं के निर्यात से प्राप्त
होने वाली राशि, वस्तुओं के आयात के लिए किए गए भुगतानो से अधिक हो।
2. प्रतिकूल व्यापार संतुलन - प्रतिकूल व्यापार संतुलन से आशय उस स्थिति से
है जब निर्यातों की तुलना मे आयात अधिक हो। दूसरे शब्दों मे, वस्तुओं के आयात के लिए
किए गए भुगतान, वस्तुओं के निर्यात से प्राप्त राशि से अधिक हो।
3. साम्य व्यापार संतुलन - साम्य व्यापार संतुलन से अभिप्राय विदेशी व्यापार की उस दशा से है जिसमे किसी बर्ष मे देश के आयातों का मूल्य, निर्यातों से प्राप्त राशि के बराबर हो। प्रायः ऐसी स्थिति देखने मे नही आती जब आयात एवं निर्यात दोनों बराबर हो।
खंड-C दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित
में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
15. निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए-
(a) सकल घरेलू उत्पाद
उत्तर: एक वर्ष में एक देश की घरेलू अर्थव्यवस्था में उत्पादित समस्त अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार मूल्यों के योग को सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। इसमें विदेशी नागरिकों द्वारा घरेलु अर्थव्यवस्था में कमाई गई आय को सम्मिलित किया जाता है लेकिन देश के नागरिकों द्वारा विदेशों में कमाई गई आय को सम्मिलित नहीं किया जाता है।
GDP = GNP - शुद्ध विदेशी साधन आय
(b) मूल्यह्रास
उत्तर: एक वित्तीय वर्ष में उत्पादन प्रक्रिया के दौरान पूँजीगत वस्तुओं के मूल्यों में सामान्य टूट-फूट, घिसावट तथा प्रत्याशित अप्रचलन के कारण आने वाली कमी को मूल्यह्रास कहते हैं।
किसी संपत्ति का मौद्रिक मूल्य उपयोग, पहनने और अप्रचलन के कारण समय के साथ
कम हो जाता है। इस कमी को मूल्यह्रास के रूप में मापा जाता है।
(c) उपभोक्ता वस्तु
उत्तर: जिन वस्तुओं से प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता की आवश्यकताओं की तुष्टि की
जाती है उन्हें उपभोक्ता वस्तु कहते हैं । उदाहरण के लिये डबल रोटी, फल, दूध, वस्त्र
आदि।
16.निम्नलिखित आँकड़ों से व्यय विधि से राष्ट्रीय आय की गणना कीजिए।
|
(करोड़
रुपये
में) |
a) निजी अंतिम उपभोग |
500 |
b) सरकारी अंतिम व्यय |
50 |
c) निजी निवेश व्यय |
50 |
d) शुद्ध निर्यात |
2 |
e) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर |
(-) 10 |
f) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय |
(-) 50 |
g) मूल्यह्रास |
20 |
उत्तर: व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = निजी अंतिम उपभोग + सरकारी अंतिम व्यय + निजी निवेश व्यय + शुद्ध निर्यात + विदेशों से शुद्ध कारक आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर – मूल्यह्रास
= 500 + 50+ 50 + 2 +
(-)50 - (-) 10 – 20
= 500 + 50+ 50 + 2 - 50 + 10 – 20
= 612 – 70
व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = ₹ 542 करोड़
17.व्यावसायिक बैंक किस प्रकार साख का सृजन करते हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:- प्रो. वाइटहैड के अनुसार ," बैंक एक ऐसी संस्था है जो जनता की फालतू राशि एकत्रित करती है, उसकी सुरक्षा
करती है। जब वास्तविक जमाकर्ता को आवश्यकता
होती है तो उसे उसकी जमा वापिस कर देती है ; तथा उस राशि को
जिसकी वास्तविक जमाकर्ता को आवश्यक नहीं
होती है उन्हें रुपया उधार देती है जो जमानत दे सकते
हैं।" व्यापारिक बैंक मांग जमाओ के रूप में मुद्रा पूर्ति का एक महत्वपूर्ण साधन होते हैं।
व्यापारिक बैंकों की मांग जमाए उनके नगद कोषो से कई गुणा अधिक होती है। यदि मान लो नकद कोष 100 रुपये है और यदि मांग जमाए ( चेक द्वारा
निकाली जाने वाली जमाए ) मान लो 1000 रुपये
है तो इसका अर्थ यह है कि अर्थव्यवस्था
में मुद्रा की पूर्ति में 1000 रुपये मूल्य के मांग
जमाओ के रूप में परिवर्तित कर लेता है। यह निम्न प्रकार से
होता है।
1. यदि एक बैंक के पास
1000 रुपये की जमा राशि पड़ी है तो बैंक अधिकारियों को अपने
अनुभव के आधार पर यह ज्ञात होता है कि सभी
जमाकर्ता : एक ही समय इस राशि को निकलवाने के लिए नहीं
आएंगे।
2. यदि बैंक का अनुभव या कहता
है कि, सामान्यता जमाकर्ता अपनी जमा राशियों का लगभग 10% ही निकालवाते हैं तो बैंक को उनकी मांग
पूरी करने के लिए कुल जमा का केवल 10% ही अपने पास नकद कोष के रूप में रखना होगा।
3. यदि बैंक अपने पास 10%
(अर्थात 100 रु.) नगद कोष में रखता है तो वह 1000 रुपये मूल्य के ऋण दे सकता है। ये ऋण नकदी के रूप में नहीं दिए जाएंगे बल्कि इन्हें ऋणी के खाते में जमा के रूप में दिखाया जाएगा।
तदनुसार बैंक की जमाएं नकद कोष से 10 गुणा अधिक हो जाएगी।
4. अपने पास कुल जमाओ का केवल 10% नकद कोष के रूप में रखने
से बैंक इस प्रकार का कोई जोखिम नहीं उठाता कि यदि जमाकर्ता अपनी
जमा राशि वापस लेने आएगा तो वह कहां से देगा क्योंकि बैंक ने अपने पास कुल जमा का
10% नकद कोष के रूप में इस वापसी के लिए सुरक्षित रखा हुआ
है।
5. जबकि बैंक के पास नकद कोष में केवल 100 रु. हैं किंतु इसने 1000 रु. मूल्य की साख का निर्माण कर रखा है। फलस्वरूप
18.आरबीआई की खुली बाजार कार्रवाई नीति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: देश में साख के नियमन हेतु भारतीय रिजर्व बैंक खुले बाजार की क्रियाओं
का सहारा भी लेता है। खुले बाजार की क्रियाओं से तात्पर्य केन्द्रीय बैंक द्वारा मुद्रा
बाजार में ग्राह्य प्रतिभूतियों (Eligible securities) के क्रय-विक्रय से है। अन्य
शब्दों में खुले बाजार की क्रियाओं से तात्पर्य खुले बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों
तथा प्रथम श्रेणी के बिलों व प्रतिज्ञा पत्रों, आदि के क्रय-विक्रय से है। ऐसी अर्थव्यवस्थाएं
जिनमें सुविकसित मुद्रा बाजार विद्यमान है, केन्द्रीय बैंक खुले बाजार की क्रियाओं
का प्रयोग वाणिज्य बैंक के पास नकद आरक्षण (Cash Reserve) को प्रभावित करने के लिए
करते हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया अधिनियम की धारा 17 के अनुसार, रिजर्व बैंक को यह
अधिकार प्राप्त है कि वह सरकारी व अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं द्वारा जारी की गई प्रतिभूतियों
के क्रय-विक्रय के अतिरिक्त ऐसे व्यापारिक बिलों व प्रतिज्ञा-पत्रों को खरीद व बेच
अथवा बट्टा कर सकता है जिनका भुगतान 90 दिन के भीतर भारत में होने वाला हो तथा जिन
पर कम-से-कम दो प्रतिष्ठित हस्ताक्षर (इनमें से एक हस्ताक्षर अनुसूचित अथवा सहकारी
बैंक का होना चाहिए) हों। रिजर्व बैंक 15 माह तक की अवधि के लिए लिखे गए कृषि बिलों
को भी खरीद, बेच व पुनः भुना सकता है। भारत में रिजर्व बैंक की मुद्रा बाजार में प्रतिभूतियों
को क्रय-विक्रय करने सम्बन्धी क्रियाएं मुख्यतः सरकारी बॉण्डों के क्रय-विक्रय से सम्बन्धित
हैं।
वर्ष 1951 तक बैंक रिजर्व बैंक को असीमित मात्रा में सरकारी प्रतिभूति बेचकर
नकदी प्राप्त कर लेते थे जिसके आधार पर साख का प्रसार कर लेते थे। इस काल में रिजर्व
बैंक की खुले बाजार की क्रियाओं का उद्देश्य साख मुद्रा वितरण के लिए बैंक की नकदी
आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए ऋण पत्रों को क्रय करना था। नवम्बर 1951 में रिजर्व
बैंक ने बैंकों से उदारतापूर्वक प्रतिभूतियां खरीदने की नीति में परिवर्तन कर दिया
तथा यह घोषणा की कि बैंकों की सामयिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए रिजर्व बैंक इन प्रतिभूतियों
को खरीदेगा नहीं, बल्कि इनके आधार पर ऋण देगा। यह नीति 1956 तक प्रचलित रही।
19. गुणक क्या है? गुणक तथा MPC में संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
:- 1936 में केन्स ने ," The General Theory of
Employment Interest and Money" में गुणक सिद्धांत की विस्तृत
व्याख्या की।
केन्स के अनुसार," गुणक, विनियोग में हुए परिवर्तन के फलस्वरुप आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है।"
गुणक `K=\frac{\Delta Y}{\Delta I}`
गुणक सीमांत उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC ) या सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) का ज्ञान होने पर गुणक का अनुमान लगाया जा सकता है। MPC और गुणक में प्रत्यक्ष तथा MPS और गुणक में विपरीत संबंध होता है। जब MPC शुन्य होता है तो गुणक एक होगा। इसी प्रकार यदि MPC एक हो गुणक अनन्त होगा। यदि MPC = 0 है जो कि दुर्लभ स्थिति है, तब गुणक का मान
`K=\frac1{1-0}=1`
यदि MPC, एक के बराबर है तो गुणक का मान
`K=\frac1{1-1}=\frac1{0}=`∞