झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, राँची (झारखंड)
Jharkhand Council of Educational Research and Training, Ranchi (Jharkhand)
द्वितीय सावधिक परीक्षा - 2021-2022
Second Terminal Examination - 2021-2022
मॉडल प्रश्नपत्र
Model Question Paper
सेट-3 (Set-3)
वर्ग- 12 (Class-12) | विषय-अर्थशास्त्र। (Sub-Economics) | पूर्णांक-40 (F.M-40) | समय-1:30 घंटे (Time-1:30 hours) |
सामान्य निर्देश (General Instructions) -
» परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर दें।
» कुल प्रश्नों की संख्या 19 है।
» प्रश्न संख्या 1 से प्रश्न संख्या 7 तक अति लघूत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।
» प्रश्न संख्या 8 से प्रश्न संख्या 14 तक लघूतरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 5 प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित है।
» प्रश्न संख्या 15 से प्रश्न संख्या 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।
खंड- A अति लघु उत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
1. समष्टि अर्थशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र वह आर्थिक प्रणाली है जिसमें आर्थिक समस्याओं का अध्ययन एवं
विश्लेषण अर्थव्यवस्था के स्तर पर किया जाता है। जैसे – सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था,
समग्र उत्पादन, समग्र विनियोग आदि।
2. विनियोग को परिभाषित कीजिए।
उत्तर: विनियोग – विनियोग का आशय उम
व्ययों से होता है जिनके करने से पूँजीगत वस्तुओं; जैसे – मशीन, कारखाना, मकान,
फर्नीचर आदि में वृद्धि होती है। निवेश में उत्पादन कार्य हेतु आवश्यक मशीनों तथा
यन्त्रों के साथ-साथ, नये निर्माण तथा स्टॉक में होने वाली वृद्धि को भी शामिल
किया जाता है।
3. भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर:
भारत
का केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है जिसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 ई. को की गई।
4. प्रत्यक्ष कर क्या है?
उत्तर: जिस कर के भुगतान में कर भार तथा कर दायित्व एक ही व्यक्ति पर
पड़ते हैं उसे प्रत्यक्ष कर कहते हैं।
जैसे – आयकर, सम्पत्ति कर आदि।
5. ऋणों का भुगतान पूँजीगत व्यय क्यों है?
उत्तर:
ऋणों का भुगतान पूँजीगत व्यय इसलिए कहलाता है क्योंकि ऋणों का भुगतान करने से सरकार
की देयताओं में कमी आती है।
6. यदि MPC का मान 0.3 है तो MPS का मान क्या
होगा?
उत्तर: MPC = 0.3
MPC + MPS =
1
⸫ MPS = 1 – MPC = 1 – 0.3 = 0.7
7. बंद अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: वह अर्थव्यवस्था जिसका अन्य किसी राष्ट्र से कोई व्यापार या परिसंपत्तियों का लेन देन नहीं होता। बंद अर्थव्यवस्था कहलाती है।
खंड-B लघु उत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
8. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की किन्हीं तीन विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर-
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था, वह आर्थिक प्रणाली है, जहाँ उत्पादन के साधनों का निजी स्वामित्व
होता है, वस्तु का उत्पादन लाभ-प्राप्ति की दृष्टि से किया जाता है तथा आर्थिक क्रियाओं
सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता है।
विशेषताएँ-
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-
(1)
पूँजीवाद में निजी सम्पत्ति का अधिकार होता है, प्रत्येक व्यक्ति को सम्पत्ति प्राप्त
करने, रखने, प्रयोग करने तथा उसका क्रय-विक्रय करने का पूर्ण अधिकार होता है।
(2)
पूँजीवादी व्यवस्था में आर्थिक स्वतंत्रता होती है, व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी भी
व्यवसाय को चुन सकता है।
(3)
पूँजीवाद में लाभ उद्देश्य प्रमुख होता है, व्यक्ति केवल उन कार्यों को सम्पादित करता
है, जिसमें उसे अधिकतम लाभ प्राप्ति होती है।
(4)
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन एवम् समन्वय कीमत, यंत्र द्वारा होता है, अर्थात्
उत्पादन उपभोग एवं विनियोग सभी कीमतों द्वारा निर्धारित होते हैं।
(5)
इसके अन्तर्गत उपभोक्ता अपनी राय को इच्छानुसार विभिन्न वस्तुओं पर व्यय कर सकता है।
9. व्यावसायिक बैंक के किन्हीं तीन कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
:- "व्यावसायिक बैंक व वित्तीय संस्था है जो लोगों के
रुपये को अपने पास जमा के रूप में स्वीकार करती हैं और उनको
उपभोग अथवा निवेश के लिए उधार देती है।"
व्यवसायिक बैंकों के मुख्य कार्य
निम्नलिखित हैं -
1.
जमा प्राप्त करना :- व्यवसायिक बैंकों का एक मौलिक कार्य जनता से जमा प्राप्त करना
है। जनता से प्राप्त जमा पर बैंक कुछ ब्याज भी देते हैं तथा
इसी जमा की रकम को अधिक ब्याज की दरों पर कर्ज दे कर मुनाफा
प्राप्त करते हैं।
व्यवसायिक
बैंक तीन प्रकार के खातों में रकम जमा करते हैं
(क)
स्थायी जमा खाता (ख) चालू खाता (ग) बचत बैंक खाता
2.
ऋण देना :- व्यवसायिक बैंक खातों में जो जमा की रकम प्राप्त करते हैं उसे विभिन्न उत्पादक
कार्यों के लिए अपने ग्राहकों को ऋण के रूप में देते हैं। विभिन्न खातों में जमा रकम
पर चुकाई गई ब्याज की राशि एवं ऋणों से प्राप्त ब्याज की राशि
का अंतर ही बैंक का मुनाफा होता है। बैंक निम्न प्रकार से ऋण देते
हैं -
(a)
अधिविकर्ष (b) नकद साख (c) ऋण एवं अग्रिम (d) विनिमय बिलों अथवा हुण्डियो का बट्टा करना तथा (e) याचना तथा अल्प सूचना ऋण
3.
सामान्य उपयोगिता सम्बन्धी कार्य :- बैंक के सामान्य उपयोगिता
संबंधी कार्य निम्न है - (a) विदेशी विनिमय का क्रय विक्रय
(b) बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा (c) साख
प्रमाण पत्र एवं अन्य साख पत्रों को जारी करना (d) ग्राहकों
को दूसरे की साख के बारे में जानकारी देना (e) व्यावसायिक
सूचना तथा आर्थिक आंकड़े एकत्रित करना (f) वित्तीय मामलों के संबंध में सलाह
देना (g) मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने की सुविधा।
4.
एजेन्सी के कार्य :- बैंक अपने ग्राहकों के एजेंट के रूप में
कार्य करते हैं जिन्हें एजेन्सी के कार्य कहा
जाता है। इसमे निम्नलिखित प्रमुख है - (a) प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय (b) ग्राहकों की ओर
से भुगतान का काम करना (c) ग्राहकों के लिए भुगतान प्राप्त करना (d) चेक एवं अन्य साख पत्रों के भुगतान को इकट्ठा
करना (e) प्रतिनिधि के समान कार्य करना (f) ग्राहकों की ओर से विनिमय बिलों को स्वीकार
करना।
10. मध्यवर्ती वस्तु और अंतिम वस्तु में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(ब) मध्यवर्त्ती वस्तुएं तथा अन्तिम वस्तुएं
अन्तिम वस्तुएं |
मध्यवर्त्ती
वस्तुएं |
अन्तिम
वस्तुएं
वे वस्तुएं हैं जिन्होंने उत्पादन की सीमा
रेखा को पार कर लिया है। |
मध्यवर्त्ती
वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो अभी उत्पादन
की सीमा रेखा में ही है। |
इनमें
कोई मूल्य जोड़ना शेष नहीं है। |
मध्यवर्त्ती
वस्तुओ में मूल्य जोड़ना शेष रहता
है। |
अंतिम
उपभोग
करने वालों (जिनमें उपभोक्ता तथा उत्पादक सम्मिलित होते
हैं) के लिए तैयार होती है। |
अंतिम
उपभोग
करने के लिए तैयार नहीं रहती। |
राष्ट्रीय
आय
का अनुमान लगाने के लिए अंतिम वस्तुओं को सम्मिलित किया जाता है। |
राष्ट्रीय
आय
का अनुमान लगाने के लिए सम्मिलित नहीं किया जाता है। |
11. उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति क्या है? यह बचत की सीमांत प्रवृत्ति
से किस प्रकार संबंधित है?
उत्तर:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) तथा सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) के सम्बंध को निम्नलिखित
समीकरण की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।
MPC `=\frac{\Delta C}{\Delta Y}`
MPS `=\frac{\Delta S}{\Delta Y}`
हम जानते हैं कि ΔY = ΔC + ΔS
⸫ MPC+MPS`=\frac{\Delta C}{\Delta Y}+\frac{\Delta S}{\Delta Y}=\frac{\Delta C+\Delta S}{\Delta Y}=\frac{\Delta Y}{\Delta Y}`=1
⸫ MPC + MPS = 1
MPC =
1 - MPS
MPS =
1 - MPC
समीकरण से स्पष्ट है कि सीमांत बचत प्रवृत्ति तथा सीमांत
उपभोग प्रवृत्ति का योग सदैव 1 के बराबर होता है।
MPS तथा MPC के उपर्युक्त संबंध से स्पष्ट
है कि आय के दो मुख्य कार्य है - उपभोग तथा बचत। उपभोग और बचत मिलकर आय के बराबर होते हैं।
12. आर्थिक एजेंट से आप क्या समझते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
एक एजेंट उसे कहा जाता है जो किसी वस्तु को उत्पन्न करने या कार्य करने की क्षमता रखता हो । आर्थिक एजेंट, इस तरह से,
एक बाजार में निर्णय लेने वाले अभिनेता
हैं। इन कार्यों से विभिन्न परिणाम उत्पन्न होते हैं जो सामान्य रूप से आर्थिक
प्रणाली को प्रभावित करते हैं।
परिवार (उपभोक्ता), कंपनियां (निर्माता
और बाजार), और राज्य (जो, विभिन्न तंत्रों के
माध्यम से, बाजार के कामकाज को विनियमित करते हैं) सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक एजेंट
हैं। आर्थिक एजेंटों का यह वर्गीकरण एक कथित बंद अर्थव्यवस्था के
मॉडल पर आधारित है, अर्थात इसका विदेशी बाजारों से कोई
संबंध नहीं है।
यह ध्यान में रखना चाहिए कि आर्थिक एजेंट अक्सर दोहरी भूमिका निभाते हैं । परिवार जो उत्पाद मांगते हैं और उपभोक्ताओं के रूप में कार्य करते हैं, वे भी अपने काम में उत्पादक होते हैं। एक कंपनी जो मशीनरी और विभिन्न इनपुट खरीदते हुए, भोजन बनाती और बेचती है। यहां तक कि राज्य भी एक साथ निर्माता और उपभोक्ता है।
13. राजस्व लेखा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
:- राजस्व लेखा एक वित्तीय वर्ष ( अप्रैल 1 से मार्च 31 तक
) की अवधि के दौरान सरकार की प्राप्तियों ( आय ) तथा सरकार के व्यय के अनुमानों का
विवरण होता है।
राजस्व
लेखा के
दो मुख्य तत्व ( घटक ) है
(1)
बजट प्राप्तियां :- बजट प्राप्तियों से अभिप्राय एक वित्तीय वर्ष में सरकार को सभी
साधनों से प्राप्त होने वाली अनुमानित मौद्रिक आय से है। बजट प्राप्तियों का विस्तृत
रूप से दो भागों में वर्गीकरण किया जाता है।
(a)
राजस्व प्राप्तियां :- सरकार की राजस्व प्राप्तियां वे मौद्रिक प्राप्तियां हैं जिनके
फलस्वरूप न तो कोई देयता उत्पन्न होती है और न ही परिसंपत्तियों में कमी होती है।
(b)
पूंजीगत प्राप्तियां :- पूंजीगत प्राप्तियां वे मौद्रिक प्राप्तियां हैं जिनसे सरकार
की देयता उत्पन्न होती है या परिसंपत्ति कम होती है।
(2)
बजट व्यय :- बजट व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में 'विकास तथा विकासेतर'
या 'योजना' तथा 'योजनेतर' कार्यक्रमों पर अनुमानित व्यय से है।
बजट
व्यय को निम्न दो भागों में वर्गीकरण किया जाता है -
(a)
राजस्व व्यय :- राजस्व व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में किये जाने
वाले उस अनुमानित व्यय से है जिसके फलस्वरूप न तो सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण होता
है न ही देयता में कमी होती है।
(b)
पूंजीगत व्यय :- पूंजीगत व्यय से अभिप्राय एक वित्तीय वर्ष में सरकार के उस अनुमानित
व्यय से है जो परिसंपत्तियों में वृद्धि करता
है या देयता को कम करता है।
14. खुली अर्थव्यवस्था को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: खुली अर्थव्यवस्था को अगर उसके शाब्दिक अर्थ से समझें तो इसका मतलब होता है एक ऐसा देश या समाज जहाँ किसी को किसी से भी व्यापार करने की छूट होती है और ऐसा भी नही कि इस व्यापार पे कोई सरकारी अंकुश या नियंत्रण नही होता। पर सरकार ऐसी नीतियाँ बनाती है जिससे आम लोग उद्योग और अन्य प्रकार के व्यापार आसानी से शुरू कर सकें। ऐसी अर्थव्यवस्था मे व्यापारों को स्वतंत्र रूप से फलने-फूलने दिया जाता है। सरकारी नियंत्रण ऐसे बनाये जातें है जिनमें व्यापारों को किसी भी प्रकार की बेईमानी से तो रोका जाता है पर नियंत्रण को इतना भी कड़ा नही किया जाता है कि ईमान्दार व्यापार मे असुविधा हो। खुली अर्थव्यवस्था न केवल उस समाज य देश के अंदरूनी व्यापार के लिये होती है बल्कि बाहरी व्यापार को भी उसी दृष्टि से देखा जाता है।
खंड-दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
15. राष्ट्रीय आय की गणना की उत्पाद विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर: इस विधि के अन्तर्गत राष्ट्रीय आय का आकलन करने के लिए वर्ष भर के उत्पादन के बाजार मूल्य में से प्रयुक्त साधनों के मूल्य को घटा दिया जाता है। जो शेष बचाता है वही राष्ट्रीय आय कहलाती है। दूसरे शब्दों में, इस विधि के अन्तर्गत उत्पादित सभी अन्तिम उपभोग्य वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य को जोड़ा जाता है। इस प्रकार सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना की जाती है।
उत्पादित कुछ वस्तुओं एवं सेवाओं की प्रकृति अन्तरिम या मध्यवर्ती होती है जिन्हें बाद में उत्पादन कार्य में प्रयोग किया जाता है। इनका उपभोक्ता द्वारा आवश्यकता पूर्ति हेतु उस अवस्था में प्रयोग नहीं होता है। ऐसी वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य राष्ट्रीय आय की गणना में शामिल नहीं किया जाता है।
इस विधि से राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने में दोहरी गणना की सम्भावना रहती है। इससे बचने के लिए उत्पादन विधि की मूल्य सम्वर्धन विधि का प्रयोग करते हैं। इसके अन्तर्गत उत्पादन के प्रत्येक चरण पर उत्पादन का सही-सही मूल्य ज्ञात कर लिया जाता है। उत्पादन का सही-सही मूल्य ज्ञात करने के लिए उत्पादन के मूल्य में से उत्पादन साधनों पर होने वाला खर्च घटा देते हैं। इस प्रकार प्राप्त राशि ही राष्ट्रीय आय कहलाती है।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण-
यदि कोई फर्म ₹ 500 मूल्य का उत्पादन करती है इसमें वह ₹ 200 मूल्य की मध्यवर्ती वस्तु का प्रयोग करती है तो फर्म के उत्पादन का सकल मूल्य के ₹ 500 – 200 =
300 होगा। शुद्ध मूल्य ज्ञात करने के लिए इसमें से साधनों पर होने वाले ह्रास की राशि को और घटाया जाता है। यदि ह्रास की राशि के 50 हो तो शुद्ध उत्पाद मूल्य ₹ 300 – 50 = 250 होगा।
16. निम्नलिखित ऑकड़ा से शुद्ध मूल्य वृद्धि की गणना कीजिए।
|
(लाख रुपये में) |
a) विक्रय |
200 |
b) कच्चे माल का क्रय |
50 |
c) अंतिम स्टॉक |
15 |
d) प्रारम्भिक स्टॉक |
10 |
e) अचल पूँजी का उपभोग |
10 |
उत्तर:
शुद्ध मूल्य वृद्धि = सकल मूल्य वृद्धि - मूल्यह्रास -(अप्रत्यक्ष
कर- आर्थिक सहायता)
सकल
मूल्य वृद्धि = उत्पादन का मूल्य - अन्य फर्मों से कच्चे माल की खरीद
उत्पादन
का मूल्य = कुल बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन (अंतिम स्टॉक - प्रारंभिक स्टॉक)
उत्पादन
का मूल्य = 200 + (15-10) = 200+5= ₹205
सकल
मूल्य वृद्धि = 205 - 50 = ₹155
⸫ शुद्ध
मूल्य वृद्धि = 155-10 = ₹145
17. सट्टा उद्देश्य प्रयोजन के लिए मुद्रा की माँग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सट्टा उद्देश्य- व्यक्ति अपने पास नकद मुद्रा इसलिए भी रखना चाहता है ताकि भविष्य में
व्याज दर, बॉण्ड तथा प्रतिभूतियों की कीमतों में होने वाले परिवर्तन का लाभ उठा सके।
प्रो.
कीन्स के अनुसार, "भविष्य के सम्बन्ध में बाजार की तुलना में अधिक जानकारी द्वारा
लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य को सट्टा उद्देश्य कहा जाता है।"
व्यक्ति
सट्टा उद्देश्य के अन्तर्गत नकद मुद्रा की मांग इस इच्छा से करता है जिससे व्यक्ति
बॉण्डों, आदि की कीमतों में होने वाले परिवर्तनों का लाभ उठा सके।
सट्टा
उद्देश्य के लिए रखी जाने वाली नकद मुद्रा की मात्रा ब्याज की दर पर निर्भर करती है।
बॉण्ड की कीमतों तथा ब्याज की दर में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। कम बॉण्ड कीमतें
ऊंची ब्याज दरों को तथा ऊंची बॉण्ड कीमतें कम ब्याज दरों को प्रकट करती हैं। बॉण्ड
कीमतों में वृद्धि (अर्थात् ब्याज दर में कमी) की सम्भावना दशा में लोग अधिक बॉण्ड
खरीदेंगे ताकि भविष्य में उनकी कीमतें बढ़ने पर उन्हें बेचकर लाभ कमाया जा सके। इस
स्थिति में सट्टा उद्देश्य के अन्तर्गत रखी गयी नकद मुद्रा की मात्रा में कमी हो जाती
है। इसके विपरीत, यदि भविष्य में बॉण्ड की कीमतें गिरने की
सम्भावना होती है (अर्थात् ब्याज की दर बढ़ने की सम्भावना होती है) तब ऐसी दशा में
सट्टा उद्देश्य के अन्तर्गत अधिक मुद्रा की मात्रा रखी जाएगी। इस प्रकार, ब्याज की
दर जितनी ऊंची होगी सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग उतनी ही कम होगी तथा ब्याज
की दर जितनी कम होगी सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग उतनी ही अधिक होगी।
यदि
सट्टा उद्देश्य के लिए नकद मुद्रा मांग को L2 द्वारा प्रदर्शित किया जाए,
तब
L2
=f(r)
अर्थात् सट्टा उद्देश्य के लिए नकद मुद्रा की मात्रा ब्याज की दर (r) पर निर्भर करती है। L2 तथा r में विपरीत सम्बन्ध होने के कारण सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग का वक्र बाएं से दाएं नीचे गिरता हुआ होता है।
इस
प्रकार मुद्रा की कुल मांग के अन्तर्गत सौदा, दूरदर्शिता तथा सट्टा उद्देश्यों के लिए
मांगी गई मुद्रा की मांगें सम्मिलित हैं।
कुल
मुद्रा की मांग (L) (अर्थात् तरलता पसन्दगी)
= L1 + L2
L
= f(Y)+f(r)
L = f(Y,r)
उपर्युक्त
विश्लेषण से स्पष्ट है कि आय स्थिर होने के कारण सौदा तथा दूरदर्शिता उद्देश्यों के
लिए मुद्रा की मांग का ब्याज की दर पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु सट्टा
उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग व्यक्ति की प्रत्याशा तथा मनोवैज्ञानिक स्थिति पर निर्भर
करती है। अतः कहा जा सकता है कि ब्याज की दर का परिवर्तन ही सट्टे के लिए मुद्रा की
मांग उत्पन्न करता है।
18. मुद्रा की पूर्ति से क्या तात्पर्य है? भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा
प्रकाशित मुद्रा की पूर्ति की वैकल्पिक मापों को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
किसी भी समय पर मुद्रा की आपूर्ति का अर्थ है अर्थव्यवस्था में
विद्यमान मुद्रा का कुल परिमाण
23
जून 1998 में डाॅ. वाई. वी. रेड्डी की अध्यक्षता में गठित कार्यदल ने मुद्रा आपूर्ति
के संकेतकों ( M1 , M2 , M3 , M4 ) की
सिफारिश की।
1.
M1 = जनता के पास ( करेन्सी,
नोट तथा सिक्के) + बैंको की मांग जमाऐ
( चालू और बचत खातों की ) + रिजर्व बैंक
के पास अन्य जमाये
2.
M2 = M1 + डाकघरों की बचत बैंक जमाये
3.
M3 = M1 + बैंकों की सावधि जमाये
4.
M4 = M3 + डाकघर की कुल जमाये
मुद्रा
की पूर्ति मुद्रा अधिकारियों द्वारा स्वतंत्र रूप से निर्धारित की जाती है। मुद्रा
की पूर्ति के दो निर्धारक तत्व हैं - व्यावसायिक बैंकों की जमा राशि तथा लोगों द्वारा
रखी जाने वाली मुद्रा की मात्रा
सूत्र से ,
M = D + C ------------------------(1)
जहां , M = मुद्रा की मात्रा
,
D = बैंको
की मांग जमा राशि,
C = लोगों
के पास मुद्रा की मात्रा।
शक्तिशाली मुद्रा तीन तत्त्वो
से निर्धारित होती है - लोगों द्वारा नकद मुद्रा की मांग
(C) बैंकों द्वारा रिजर्व अनुपात की मांग (RR), एवं बैंको द्वारा अतिरिक्त रिजर्व की मांग (ER)
सूत्र से,
H = C + RR + ER
--------------------(2)
`\frac MH=\frac{D+C}{C+RR+ER}`
`\frac MH=\frac{{\frac DD}+{\frac CD}}{{\frac CD}+{\frac{RR}D}+{\frac{ER}D}}`
`\frac MH=\frac{{\frac 1}+{\frac CD}}{{\frac CD}+{\frac{RR}D}+{\frac{ER}D}}`
यदि हम `\frac CD` को Cr ,`\frac{RR}D`को RRr तथा `\frac{ER}D`को ERr से प्रतिस्थापित कर दे तो सूत्र निम्न प्रकार होगा -
`M=\frac{1+C_r}{C_r+RR_r+ER_r}.H`
19. किसी रेखा में पैरामेट्रिक शिफ्ट की व्याख्या चित्र की सहायता से कीजिए।
उत्तर: एक सरल रेखा का समीकरण b = ma + e के रूप में दर्शाया जिसमें a और b दो परिवर्त/चर हैं। m > 0 को सरल रेखा की प्रवणता कहा जाता है और e > 0 उर्ध्वाधर अक्ष पर अन्त:खण्ड है। जब u में 1 इकाई से वृद्धि होती तो b के मूल्य में m इकाइयों से वृद्धि हो जाती है। इसे आलेख पर परिवर्तों का संचलन कहते हैं। परन्तु जब m या e में परिवर्तन होता है तो इसे आलेख का पैरामिट्रिक शिफ्ट कहते हैं, क्योंकि m और e को आलेख का पैरामीटर कहा जाता है। अन्य शब्दों में आलेख की प्रवणता अथवा अन्त:खण्ड में परिवर्तन के कारण जो परिवर्तन होते हैं उसे आलेख का पैरामिट्रिक शिफ्ट कहते हैं। इसे उपभोग फलन द्वारा समझा जा सकता है।
यदि y में परिवर्तन से C में परिवर्तन हों तो इसे आलेख पर परिवर्तनों का संकलन कहेंगे। परन्तु यदि C या है में परिवर्तन हों तो इसे आलेख का पेरामिट्रिक शिफ्ट कहा जायेगा। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है
(क) प्रवणता में परिवर्तन-प्रवणता में परिवर्तन होने पर वक्र इस प्रकार खिसकता है कि प्रवणता बढ़ने पर वक़ अधिक ढाल वाला हो जाता है और प्रवणता के घटने पर वक्र कम ढाल वाला हो जाता है।
(ख) अन्तखण्ड में परिवर्तन-अन्तखण्ड बढ़ने पर वक्र उतनी ही मात्रा से समान्तर रूप से (क्योंकि प्रवणता समान है) ऊपर की ओर खिसक जाता है और इसके विपरीत अन्त:खण्ड घटने पर उतनी ही मात्रा से समान्तर रूप से नीचे की ओर खिसक जाता है।
(i) जब रेखा की ढाल घटती है तो रेखा पहले से कम ढाल वाली हो जाती है। उदाहरण के लिए यदि C = C + by में C = 100 + 0.84 था b घटकर 0.6 हो गया तो नया C = 100 + 0.6y हो जायेगा। यह वक्र पिछले C वक्र से कम ढाल वाला होगा। क्योंकि पहले आय 100 बढ़ने पर उपभोग 80 बढ़ रहा था, परन्तु अब आय 100 बढ़ने पर उपभोग 60 बढ़ेगा।
(ii) जब रेखा के अन्त:खण्ड आय में वृद्धि होती है तो रेखा समान्तर रूप से ऊपर की ओर खिसक जाती है, क्योंकि दो समान्तर रेखाओं की प्रवणता समान होती है।