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Class XII Economics (Arts) Term-2 Answer Key 2022

Class XII Economics (Arts) Term-2 Answer Key 2022

 

Section - A

खण्ड-क

(अति लघु उत्तरीय प्रश्न) 2x5=1

किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दें।

1. अंतिम वस्तु क्या है ?

उत्तर: अंतिम वस्तु वे वस्तुएँ होती हैं जो उपभोक्ता द्वारा अंतिम वस्तु के रूप में प्रयोग होती है। उदाहरण-बाइसिकल जो उपभोक्ता को बेचे जाते हैं, एक अन्तिम वस्तु अथवा उपभोक्ता वस्तु है

2. हस्तांतरण आय क्या है ?

उत्तर: ऐसा कोई भुगतान जो किसी उत्पादन सेवा के लिए नहीं किया गया हो, हस्तांतरण कहलाता है। जैसे – गिफ्ट, बुढ़ापा पेंशन.

3. मुद्रा के प्राथमिक कार्य क्या हैं ?

उत्तर: विनिमय का माध्यमः मुद्रा का प्राथमिक कार्य यह है कि यह विनिमय के माध्यम का कार्य करती है। इसका तात्पर्य यह है कि लोग मुद्रा की सहायता से वस्तुएं और सेवाओं का क्रय-विक्रय कर सकते हैं। वस्तु के विक्रेता द्वारा मुद्रा प्राप्त की जाती है तथा वस्तु के क्रेता द्वारा मुद्रा का भुगतान किया जाता है ।

4. अधिविकर्ष से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: अधिविकर्ष या ओवरड्राफ्ट तब होता है जब बैंक खाते से उपलब्ध शेष राशि से अधिक निकासी हो जाती है। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को "ओवरड्रॉन " (अधिक निकासी किया हुआ) कहा जाता है।

5. स्वायत्त / स्वतंत्र निवेश क्या है ?

उत्तर: जो आय के स्तर, ब्याज दर और लाभ की दर में परिवर्तन पर निर्भर नहीं है ।जिसका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता।

6. कर क्या है?

उत्तर: प्रो० टेलर के शब्दों में, "वे अनिवार्य भुगतान जो सरकार को बिना किसी प्रत्यक्ष लाभ की आशा में करदाता द्वारा दिये जाते हैं, कर हैं।'

7. भुगतान संतुलन को परिभाषित करें।

उत्तर: प्रो. बेनहेम के अनुसार," किसी देश के भुगतान संतुलन उसके शेष विश्व के साथ एक समय की अवधि मे किये जाने वाले मौद्रिक लेन-देन का विवरण है, जबकि एक देश का व्यापार संतुलन एक निश्चित अवधि मे उसके आयातों एवं निर्यातों के बीच संभव है।"

Section - B

खण्ड-ख

( लघु उत्तरीय प्रश्न) 3x5= 15

किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दें।

8. सीमांत उपभोग की प्रवृत्ति को परिभाषित करें।

उत्तर :- आमें होने वाले परिवर्तन के फलस्वरुप उपभोग में होने वाले परिवर्तन के अनुपात को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कते हैं।

MPC=CY

C = उपभोग में परिवर्तन , ΔY = आय में परिवर्तन

9. कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) के आकलन में किन पदों को अपवर्जित माना गया है ?

उत्तर :- सकल राष्ट्रीय उत्पाद एक देश की घरेलू सीमा में सामान्य निवासियों द्वारा एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार मूल्य के अतिरिक्त विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय तथा स्थाई पूंजी के उपभोग का जोड़ है। इसमें निम्न कार्यों को अपवर्जित माना गया है -

1. गैर कानूनी क्रियाओं से प्राप्त आय जैसे - जुआ

2. काला धन या वह आय जो उत्पादकों के खातो मे दिखाई नहीं जाती

3. हस्तांतरण भुगतान जैसे - वृद्धावस्था पेंशन

4. मौद्रिक लेन-देनो से आय जैसे शेयरों तथा डिबेंचरो से

5. पुरानी किताबों का मूल्य

6. स्व उपभोग सेवाएं, जैसे डाॅक्टर द्वारा अपनी पत्नी का इलाज

चूंकि ये सभी अनार्थिक क्रिया है अतः यह राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं होगा।

10. व्यावसायिक बैंक तथा केन्द्रीय बैंक में क्या अन्तर हैं ?

उत्तर: केन्द्रीय बैंक और व्यावसायिक बैंक में निम्नलिखित अन्तर है

1. किसी भी देश का केन्द्रीय बैंक पर पूर्ण रूप से उस देश के सरकार का स्वामित्व होता है एवं केंद्रीय बैंक सरकार के दिशानिर्देश पर कार्य करता है । जबकी व्यापारिक बैंक निजी स्वामित्व वाला प्राइवेट बैंक या सरकार की हिस्सेदारी वाला बैंक होता है जैसे की भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बरौदा बैंक, यूनाइटेड बैंक इत्यादि ।

2. किसी भी देश का केंद्रीय बैंक का मुख्य उद्देश्य देश की अर्थ-व्यवस्था को बनाये रखना और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना होता है । जबकि दूसरी ओर व्यापारिक बैंक का मुख्य उद्देश्य केवल मुनाफा बनाना होता है।

3. केंद्रीय बैंक किसी भी देश का सर्वोच्च बैंक होता है जिसे अपने देश का नोट छापने का अधिकार प्राप्त होता है जबकी यह अधिकार किसी भी व्यापारिक बैंक को नही होता है।

4. किसी भी व्यापारिक बैंक में आम जनता आसानी से अपना अकाउंट ओपेन करा सकता है । जबकी केन्द्रीय बैंक में केवल बैंको का खाता होता है आम जनताओ का अकाउंट केन्द्रीय बैंक में नही खोला जाता है ।

5. जनता को ॠण की आवश्यकता परने पर व्यापारिक बैंक ऋण उपलब्ध कराता है और यदि किसी व्यापारिक बैंक को कर्ज की आवश्यकता पर जाये तो केंद्रीय बैंक देता है ।

6. बैंको का लाइसेंस जारी या रद्द या बैंकों को ऋण उपलब्ध कराने के साथ साथ विभिन्न प्रकार के काम केंद्रीय बैंक अपनी निगरानी में करता है । जबकी केन्द्रीय बैंक का संचालन सरकार करता है।

11. उपभोग तथा आय में क्या संबंध है?

उत्तर: उपभोग तथा आय के स्तर में संबंध उपयोग फलन कहलाता है। उपभोग फलन बताता है कि उपभोग आय का फलन है अथवा अन्य शब्दों में उपभोग आय के स्तर पर निर्भर करता है। लिए उपलब्ध होती है। इसे आगे बढ़ाते हुए ध्यान दो कि जब एक व्यक्ति को अपनी साधन सेवाओं के लिए आय प्राप्त होती है तो वह समस्त आय को केवल उपभोग पर खर्च नहीं कर सकता।

यहां, उपभोग (C), आय (Y) का फलन (f) है। ब्रुमैन के अनुसार, “उपभोग फलन यह बताता है कि उपभोक्ता आय के प्रत्येक सम्भव स्तर पर उपभोग पदार्थों पर कितना खर्च करना चाहेंगे।” उपभोग फलन कुल उपभोग व्यय तथा राष्ट्रीय आय के सम्बन्ध को प्रकट करता है।

C = f (Y)

यहां, उपभोग (C), आय (Y) का फलन (f) है।

12. निवेश गुणक को परिभाषित करें।

उत्तर :- 1936 में केन्स ने ," The General Theory of Employment Interest and Money" में गुणक सिद्धांत की विस्तृत व्याख्या की।

केन्स के अनुसार," गुणक, विनियोग में हुए परिवर्तन के फलस्वरुप आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है"

गुणक K=ΔYΔI

गुणक सीमांत उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता हैसीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC ) या सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) का ज्ञान होने पर गुणक का अनुमान लगाया जा सकता है MPC और गुक में प्रत्यक्ष तथा MPS और गुणक में विपरीत संबंध होता हैजब MPC शुन्य होता है तो गुणक एक  होगाइसी प्रकार यदि MPC एक हो गुणक अनन्त होगा। यदि MPC = 0, तो

K=11-MPC=11-0=11=1

MPC=1 ; K=11-1=10=

13. प्रत्यक्ष कर के क्या गुण हैं ?

उत्तर: जब किसी कर का करापात (Impact of Tax) और करों का भार (Tax Incidence) एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो वह करे प्रत्यक्ष कर कहलाता है।

प्रत्यक्ष करों के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं

1. न्यायपूर्ण- प्रत्यक्ष कर न्यायपूर्ण होते हैं, क्योंकि ये कर व्यक्तियों की करदान क्षमता के आधार पर लगाये जाते हैं। इन करों का भार धनी वर्ग पर अधिक तथा निर्धनों पर कम पड़ती है। प्रत्यक्ष कर की दरें बहुधा प्रगतिशील होती हैं।

2. मितव्ययिता - प्रत्यक्ष करों में मितव्ययिता पायी जाती है, क्योंकि इन करों को वसूल करने में राज्य को अधिक व्यय नहीं करना पड़ता है।

3. निश्चितता - प्रत्यक्ष करों में निश्चितता का गुण भी पाया जाता है, क्योंकि इन करों के सम्बन्ध में करदाता को पूर्ण जानकारी रहती है।

4. लोचता - प्रत्यक्ष कर लोचदार होते हैं। सरकार इन करों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सकती है।

5. नागरिक चेतना - प्रत्यक्ष कर नागरिक स्वयं जमा करता है तथा स्वयं ही उसका भार वहन करता है। इस कारण वह यह जानने का प्रयास करता है कि दिये गये कर का उपयोग सार्वजनिक हित के कार्यों में हो रहा है अथवा नहीं। इस प्रकार कर का भुगतान करने के पश्चात् व्यक्ति में आदर्श नागरिकता एवं कर्तव्यपरायणता की भावना जागृत होती है।

6. उत्पादकता - प्रत्यक्ष कर उत्पादक होते हैं। करों की मात्रा में थोड़ी-सी वृद्धि से ही अधिक आय प्राप्त हो जाती है जिसका उपयोग देश के आर्थिक विकास में किया जा सकता है।

7. समानता- प्रत्यक्ष कर प्रगतिशील होते हैं। ये कर धनी व्यक्तियों पर अधिक मात्रा में तथा निर्धन वर्ग पर कम मात्रा में लगाये जाते हैं। इस प्रकार प्रत्यक्ष कर आर्थिक असमानता समाप्त कर समाज में समानता लाने का प्रयास करते हैं।

14. अंतिम वस्तु तथा मध्यवर्ती वस्तु में क्या अंतर ?

उत्तर: अंतिम वस्तु तथा मध्यवर्ती वस्तु में अन्तर निम्नलिखित हैं

अन्तिम वस्तुएं

मध्यवर्ती वस्तुएं

1.अन्तिम वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिन्होंने उत्पादन की सीमा रेखा को पार कर लिया है।

मध्यवर्ती वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो अभी उत्पादन की सीमा रेखा में ही है।

2. इनमें कोई मूल्य जोड़ना शेष नहीं है।

मध्यवर्ती वस्तुओ में मूल्य जोड़ना शेष रहता है।

3. अंतिम उपभोग करने वालों (जिनमें उपभोक्ता तथा उत्पादक सम्मिलित होते हैं) के लिए तैयार होती है।

अंतिम उपभोग करने के लिए तैयार नहीं रहती।

4. राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए अंतिम वस्तुओं को सम्मिलित किया जाता है।

राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए सम्मिलित नहीं किया जाता है।

Section-C

खण्ड-ग

(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न) 5x3-15

किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दें।

15. केन्द्रीय बैंक द्वारा साख नियंत्रण की विधियों की व्याख्या करें।

उत्तर :- साख नियंत्रण की प्रमुख विधियां निम्नलिखित हैं -

(1) आरक्षित जमा कोष में परिवर्तन :-  सभी अनुसूचित व्यवसायिक बैंको को अपनी कुल जमा की एक निश्चित नियंत्रण राशी आरक्षित कोष के रूप मकेंद्रीय बैंक के पास जमा करनी पड़ती हैयह आरक्षित कोजितना अधिक होता है, व्यवसायिक बैंकों के पास नकदी जमा उतनी ही कम हो जाती है और उसी अनुपात में साख का सृजन कम होता है। इसके विपरीत आरक्षित कोष में कमी से साख का सृजन अधिक होता है।

(2) बैंक दर में परिवर्तन :- बैंक दर में परिवर्तन करके भी साख पर नियंत्रण किया जा सकता है। बैंक दर वह दर है जिस पर केन्द्रिय बैंक व्यवसायिक बैंको को ऋण देता है। बैंक दर से ब्याज दर प्रभावित होता है। बैंक दर में वृद्धि करके साख की मात्रा को कम किया जा सकता है और बैंक दर में कमी करके साख की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है।

(3) खुले बाजार की क्रियाएं :- खुले बाजार की क्रियाओ से अभिप्राय केन्द्रीय बैंक के द्वारा बाजार में प्रतिभूतियों का क्रय - विक्रय करना है। प्रतिभूतियों का क्रय कर साख की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है और विक्रय करके साकी मात्रा को घटाया जा सकता है

(4) सीमांत कटौती में परिवर्तन :- व्यापारी लोग अपनी वस्तुओं को व्यापारिक बैंकों के पास प्रतिभूतियों के रूप में रखते हैं और उसके बदले ऋण लेते हैंबैंक पूरी प्रतिभूति अथवा जमानत मूल्य के बराबर ऋण नहीं देते हैंउसमें कुछ कटौती करते हैंइसे सीमांत कटौती कते हैं। सीमांत कटौती में परिवर्तन करके साख पर नियंत्रण करने का प्रयास किया जाता है

(5) नैतिक दबाव :- नैतिक दबाव के अंतर्गत केंद्रीय बैंक साख संस्थाओं पर नैतिक दबाव डालकर उन्हें संबंधित नीति अपनाने के लिए बाध्य कर सकता है।

16. राष्ट्रीय आय गणना की मूल्य जोड़ वृद्धि विधि की व्याख्या करें।

उत्तर: इस विधि से उत्पादन स्तर पर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है। उत्पादन स्तर पर किसी देश की राष्ट्रीय आय घरेलू सीमा में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य और विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय का योग होती है। इस विधि में निम्नलिखित चरण हैं-

प्रथम : अर्थव्यवस्था के सभी उत्पादक उपक्रमों को उनकी गतिविधियों के अनुरूप निम्न तीन वर्गों में विभाजित कर दिया जाता है। ये हैं-

प्राथमिक क्षेत्रक : इस क्षेत्रक में वे उत्पादक इकाइयां आती हैं जो मुख्यतः प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन-प्रसंस्करण के कार्य करती हैं। इनमें कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन, खनन आदि उत्पादक गतिविधियां सम्मिलित हैं।

द्वितीयक क्षेत्रक : इस क्षेत्रक में उन उत्पादक इकाइयों को शामिल किया जाता है, जो आगतों को निर्गत में परिवर्तित करती है। उदाहरणत: लकड़ी का कुर्सी के रूप में परिवर्तन। इसमें विनिर्माण, निर्माण, विद्युत, गैस और जल आपूर्ति जैसे उपक्षेत्रक आते हैं।

तृतीयक क्षेत्रक : इस क्षेत्रक की उत्पादक इकाइयों में सभी प्रकार की सेवाओं का उत्पादन होता है, जैसे कि व्यापार-वाणिज्य, बैंकिंग, परिवहन आदि। इसे सेवा क्षेत्रक के नाम से भी जाना जाता है। परिवहन, संचार, बैंकिंग सेवा आदि सभी इस क्षेत्रक के घटक हैं।

दूसरे : अर्थव्यवस्था की प्रत्येक उत्पादक इकाई में सकल उत्पादन का मूल्य को गणना उसके उत्पादन की इकाइयों को कीमत से गुणा करके ज्ञात किया जाता है। इस सकल उत्पादन मूल्य में से (i) मध्यवर्ती उपभोग (ii) मूल्यह्रास (Dep) और (iii) निवल अप्रत्यक्ष करों (NIT) की राशियां घटाकर हमें उन उत्पादक इकाइयों द्वारा की गई साधन लागत (FC) पर निवल मूल्य वृद्धि (NVA) का अनुमान प्राप्त होता है-

या-

साधन लागत पर निवल मूल्य वृद्धि = उत्पादन का सकल मूल्य मध्यवर्ती उपभोग - मूल्यह्रास - शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

एक क्षेत्रक की सभी उत्पादक इकाइयों द्वारा की गई निवल मूल्य वृद्धियों का योगफल उस क्षेत्रक द्वारा साधन लागत पर निवल मूल्य वृद्धि का अनुमान प्रदान करता है। अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्रकों के इस प्रकार के अनुमानों का योग साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद के बराबर होता है।

तीसरे : साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद में विदेशों से निवल साधन आय जोड़कर हमें साधन लागत या निवल राष्ट्रीय उत्पाद प्राप्त होता है।

यदि विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय ऋणात्मक हो तो साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद साधन लागत पर राष्ट्रीय उत्पाद से अधिक होगी और यदि ये धनात्मक है तो राष्ट्रीय उत्पाद घरेलू उत्पाद से अधिक होगा।

सावधानियां

उत्पादन विधि से राष्ट्रीय आय की गणना में निम्न सावधानियां आवश्यक हैं-

(i) स्वउपभोग के लिए उत्पादन : उत्पादन का जो अंश उत्पादक स्वयं उपभोग कर लेते हैं और जिसका मूल्यांकन हो सकता है। वह भी चालू वर्ष के उत्पादन का हिस्सा है। उसे उत्पाद में शामिल करना चाहिए।

(ii) पुरानी वस्तुओं की बिक्री : पहले इस्तेमाल में आई पुरानी चीजों की बिक्री वर्तमान राष्ट्रीय में शामिल नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि वे पूर्व वर्ष के उत्पादन में जोड़ी जा चुकी हैं।

(iii) दलालों को पुरानी चीजों की खरीद-बिक्री पर दिया गया कमीशन राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि उनकी सेवा के बदले चालू वर्ष में भुगतान किया जा रहा

(iv) मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को नहीं जोड़ना चाहिए, क्योंकि इससे दोहरी गणना हो जाएगी।

(v) गृहणियों की सेवाओं को शामिल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उनका मूल्यांकन कर पाना बहुत ही कठिन है।

17. प्रतिकूल भुगतान संतुलन को ठीक करने के उपायों को व्याख्या करें।

उत्तर :- भुगतान संतुलन से आशय देश के समस्त आयातो एवं निर्यात एवं अन्य सेवाओं के मूल्य के सम्पूर्ण विवरण से होता है। इसके अंतर्गत लेन-देन के दो पक्ष होते हैं। एक ओर तो देश की विदेशी मुद्रा की लेनदारियो का विवरण रहता है जिसे धनात्मक पक्ष कहते हैं तथा दूसरी ओर उस देश की समस्त देनदारियों का विवरण रहता है जिसे ऋणात्मक पक्ष कहते हैं

 प्रतिकूल भुगतान संतुलन को ठीक करने के निम्न तरीके हैं -

1. मुद्रा संकुचन :- मुद्रा संकुचन के फलस्वरूप देश में वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में कमी आ जाती हैजिससे निर्यात में वृद्धि हो जाती हैआय के कम होने के कारण लोगों की आयात करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है

2. विनिमय ह्रास :- किसी देश के विनिमय ह्रास से विदेशियों के लिए घरेलू वस्तुएं सस्ती हो जाती है और आयात महंगे हो जाते हैं अतः निर्यात में वृद्धि तथा आयातो मे कमी आ जाती है

3. विनिमय नियंत्रण :- विनिमय नियंत्रण पूंजी के निर्यात एवं बहिर्गमन को रोक कर भुगतान संतुलन को ठीक करने में सहायता देता है

4. अवमूल्यन :- अवमूल्यन के अंतर्गत सरकारी घोषणा के अनुसार देश के मुद्रा के बाह्य  मूल्य को कम कर दिया जाता हैजिससे देश के निर्यात विदेशों में सस्ते पड़ते हैं जबकि आयात महंगे हो जाते हैं

5. मौद्रिक उपाय :- (a) आयात में कमी करना (b) निर्यात को प्रोत्साहन (c) विदेशी निवेश को प्रोत्साहन (d) सरकार की आर्थिक नीतियों में परिवर्तन (e) विदेशी ऋण (f) विदेशी पर्यटकों को प्रोत्साहन।

18. सार्वजनिक आय के विभिन्न साधनों की व्याख्या करें।

उत्तर: सार्वजनिक आय के स्रोतों को मोटे रूप मे दो भागों मे विभाजित किया जा सकता है--

(अ) कर आय :- कर सार्वजनिक आय का सबसे प्राचीनतम स्त्रोत है। आज भी सार्वजनिक आय का अधिकांश भाग करों के रूप मे ही प्राप्त किया जाता है। कर राज्य की अनिर्वाय रूप से चुकायी जाने वाली राशि है। सरकार करों से प्राप्त इस राशि को जन कल्याण संबंधी कार्यों पर व्यय कर देती है।

सामान्यतया कर दो प्रकार के होते है--

1. प्रत्यक्ष कर :- प्रत्यक्ष कर वह होता है, जिसका भार वही व्यक्ति वहन करता है जिस पर वह लगाया जाता है, अर्थात् कराघात व करापात एक ही व्यक्ति पर होता है। ऐसे करों मे आय कर मूल्य कर, संपत्ति कर, उपहार कर, व्यय कर आदि शामिल है।

2. अप्रत्यक्ष कर :- अप्रत्यक्ष या परोक्ष कर वह होता है जिसका भुगतान एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है, पर भार किसी अन्य व्यक्ति द्वारा वहन किया जाता है। इस तरह के करों मे बिक्री कर तथा उत्पादन कर शामिल है। इस कर को विक्रेता तथा उत्पादक से वसूल किया जाता है, पर वे इसे ग्राहक तथा उपभोक्ता से वसूल कर लेते है।

(ब) गैर-कर आय :- वे समस्त आय के स्रोत जो कर की श्रेणी मे नही आते उन्हे गैर-कर आय मे शामिल किया जाता है। राज्य के कार्य क्षेत्र मे विस्तार के साथ-साथ आय के गैर-कर स्त्रोतों मे भी वृद्धि हुई है। सरकार के गैर-कर आय के स्रोतों का वर्मन इस प्रकार है--

1. शुल्क अथवा फीस :- राज्य समाज को कुछ सेवाएं प्रदान करता है, जिसके बदले वह पूर्ण अथवा आंशिक लागत प्राप्त करता है। इसे शुल्क कहा जाता है। इस प्रकार के भुगतान अनिर्वाय होते है। जैसे काॅलेजों मे ली जाने वाली फीस, कोर्ट फीस, रजिस्टेशन फीस आदि।

कर और शुल्क मे अंतर है। कर व्यक्तियों से बिना सुविधा के भी वसूल किये जाते है, जबकि शुल्क सुविधाओं का पारिश्रमिक होता है।

2. लाइसेन्स शुल्क:- शुल्क का भुगतान उस समय किया जाता है जबकि व्यक्ति शासकीय सेवाओं का उपयोग करता है, परन्तु लाइसेन्स शुल्क तब देना होता है, जब किसी कार्य को सरकार स्वयं न करके अपने कार्य का संपादन किसी व्यक्ति अथवा संस्था को सौंप देती है। ऐसी दशा मे कार्य करने वाले व्यक्ति से लाइसेंस शुल्क वसूल किया जाता है।

3. जुर्माना एवं संपत्ति जप्त करना:- यह सरकार की आय का प्रमुख स्त्रोत नही है। इस स्त्रोत से सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त नही होती है। इस प्रकार की क्रियाओं से सरकार को उसी दशा मे आय प्राप्त होती है, जब कोई व्यक्ति सरकारी नियमों एवं कानूनों का उल्लंघन करता है। व्यक्ति बार-बार इस प्रकार की वारदातों को न करे, इसलिए उस पर जुर्माना लगा दिया जाता है अथवा उस व्यक्ति की संपत्ति जप्त कर ली जाती है।

4. विशेष निर्धारण :- विशेष निर्धारणों से सरकार को प्रत्यक्ष आय प्राप्त होती है। ये निर्धारण किसी विशेष व्यक्ति की सुविधा पर नही बल्कि जब परिस्थितियों मे सुधार करना होता है, उस दशा मे विशेष निर्धारणों से आय प्राप्त की जाती है।

5. सार्वजनिक उपक्रम:- सरकार द्वारा जनहित की दृष्टि से ऐसे उद्योगों का संचालन किया जाता है जो जोखिमपूर्ण तथा लाभप्रद नही होते। जोखिमपूर्ण उद्योगों के अलावा सरकार ऐसे उद्योगों का संचालन भी करती है जिनसे सरकार को लाभ भी प्राप्त होता है। इस तरह सार्वजनिक उपक्रम भी सरकार की आय प्राप्ति के मूख्य स्त्रोत है।

6. उपहार एवं अनुदान :- उपहार से अभिप्राय ऐसे भुगतान से है, जो कि स्वेच्छा से किया जाता है। कुछ व्यक्ति दानशील प्रवृत्ति के होते है जो कि अस्पताल बनवाने, स्कूल खोलने धर्मशाला बनवाने, गरीबों को सहायता प्रदान आदि कार्यों के लिये सरकार को उपहार या दान देते है। उदाहरण के लिए कोरोना महामारी से निपटने मे,  रतन टाटा, मुकेश अंबानी, अक्षय कुमार इत्यादि द्वारा दिया गया अनुदान।

इसके साथ-साथ केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को अनुदान दिया जाता है। वर्तमान मे ऐसा अनुदान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रचलन मे है। विकसित राष्ट्र अविकसित राष्ट्रों को तकनीकी शिक्षा, उद्योगों, सामाजिक कार्यों आदि के क्षेत्रों को विकसित करने के लिये अनुदान प्रदान करते है।

7. महसूल:- सरकार द्वारा महसूल का इस्तेमाल उन वस्तुओं के उपभोग पर किया जाता है जिनके उपभोग से सामाजिक बुराइयों को बल मिलता है, अनैतिकता बढ़ती है, स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है एवं कुशलता मे कमी आती है। महसूल लगाने से ऐसी वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती है जिसके कारण उपभोग मे कमी आती है। ऐसी वस्तुओं मे मादक वस्तुएं शामिल है।

8. सरकारी संपत्ति:- सार्वजनिक संपत्ति पर सरकार का अधिकार होता है। इन संपत्ति मे प्राकृतिक संपदा (भूमि, वन, खान) शामिल है। सरकार अपनी इस संपत्ति को ठेकों आदि पर देकर लगान या राॅयल्टी प्राप्त करती है। इसके अलावा सरकार संपत्ति को विक्रय कर के भी धन प्राप्त कर सकती है।

10. पत्र मुद्रा छापकर :- किसी भी देश मे नोट निर्गमन का अधिकार सरकार को प्राप्त होता है। हमारे देश मे नोट निर्गमन का यह कार्य रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है। जब सरकार के व्यय प्राप्त आय से पूरे नही हो पाते तो सरकार नये नोट छापकर इन व्ययों को पूरा करती है। नये नोटों के निर्गमन से सरकार की आय बढ़ती है।

उपरोक्त आय के स्रोतों से यह स्पष्ट होता है कि कर ही सरकारी आय प्राप्ति के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। कुछ अर्थशास्त्र ऋण तथा नोट निर्गमन को सरकारी आय का स्त्रोत नही मानते, क्योंकि ऋणों को मय ब्याज सरकार को लौटाना पड़ता है एवं नोट निर्गमन अप्रत्यक्ष कर का ही दूसरा रूप है।

19. आधिक्य बजट तथा घाटे का बजट की व्याख्या करें।

उत्तर: आधिक्य का बजट :- जब सरकार प्रत्याशित आगम की तुलना में कम व्यय का आयोजन कर सकती है अर्थात् सार्वजनिक आगम की तुलना में सार्वजनिक व्यय कम होता है, इसे आधिक्य बजट (Surplus Budget) कहते हैं।

आधिक्य बजट के कारण अर्थव्यवस्था में मुद्रा की कुल पूर्ति का एक भाग चलन से बाहर हो जाता है।

इसका अर्थव्यवस्था पर संकुचनात्मक प्रभाव होता है।

आधिक्य के बजट उस दशा में बनाए जाते हैं जब सरकार का उद्देश्य आर्थिक क्रियाओं के स्तर को गिराना हो, जैसे मुद्रा-स्फीति के काल में। करारोपण में परिवर्तन किये वगैर ही राजकीय व्यय में कमी करके कुल व्यय में प्रत्यक्ष रूप में कमी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त राजकीय व्यय को बढ़ाये बिना करारोपण में वृद्धि करके भी आधिक्य का बजट बनाया जा सकता है। पर व्यय घटाने की अपेक्षा कर बढ़ाने से अधिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती है।

घाटे का बजट:- घाटे का बजट वह बजट है जिसमें किसी सरकार की अनुमानित आय उसके अनुमानित व्यय से कम होती है।

घाटे का बजट : सरकार की अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय

केन्ज तथा अन्य कई आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने घाटे के बजट पर बल दिया है और इसके निम्नलिखित लाभ बताए:

घाटे के बजट के लाभ तथा हानियाँ

लाभ:

केन्ज ने मंदी की स्थिति को ठीक करने के लिए घाटे के बजट को एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बताया है। इसके अनुसार मंदी की स्थिति में AD का स्तर नीचा होने के कारण निवेश का स्तर बहुत नीचा हो जाता है। फलस्वरूप नियोजित उत्पादन का स्तर पूर्ण रोजगार स्तर पर होने वाले उत्पादन से बहुत नीचा हो जाता है। बेरोजगारी एक राष्ट्रीय समस्या बन जाती है। घाटे का बजट तरह से AD के स्तर को ऊपर उठाता है:

(a) प्रत्यक्ष रूप से सरकार अधिक व्यय के लिए प्रेरित करके तथा

(b) अप्रत्यक्ष तौर पर लोगों को अधिक व्यय (निवेश और उपभोग) के लिए प्रेरित करके।

हानियाँ :

मुद्रास्फीति की अवधि में घाटे का बजट वांछनीय नहीं है। इस अवधि में कुल माँग (AD) पूर्ण रोजगार के लिए आवश्यक कुल पूर्ति के स्तर से अधिक होती है। ऐसी स्थिति में घाटे का बजट कुल माँग तथा कुल पूर्ति के बीच के अंतर को और भी अधिक बढ़ा देगा। फलस्वरूप स्फीति अंतराल बढ़ेगा तथा मजदूरी दर-कीमत स्तर में अधिक से अधिक वृद्धि होने लगेगी।

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