
सिन्धु घाटी सभ्यता
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इस सभ्यता के लिए तीन नामों–1. सिन्धु सभ्यता, 2. सिन्धु घाटी
की सभ्यता तथा 3. हड़प्पा सभ्यता का प्रयोग किया गया है, किन्तु इन तीनों नामों में
से सर्वाधिक उपयुक्त नाम हड़प्पा सभ्यता है। यह नाम देते समय पुरातात्त्विक साहित्य
के गैर-भौगोलिक पक्ष को ध्यान में रखा गया है, क्योंकि किसी अज्ञात संस्कृति का नामकरण
उस स्थल के नाम पर ही किया जाता है जहाँ उसे सर्वप्रथम पहचाना जाता है।
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इस सभ्यता की सीमा रेखा उत्तर में जम्मू-कश्मीर के मांदा से लेकर दक्षिण में नर्मदा
के मुहाने तक (भगतराव) तथा पूर्व में उत्तरप्रदेश के आलमगीरपुर से पश्चिम में सुतकागेंडोर
तक विस्तृत है।
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इस सभ्यता का क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किमी. था। इसकी पूर्व से प्श्चिम तक की लम्बाई
1600 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक लम्बाई 1100 किमी. थी।
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इस सभ्यता का आकार त्रिभुजाकार था।
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इस सभ्यता की खोज का श्रेय रायबहादुर दयाराम साहनी को दिया जाता है।
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इस सभ्यता को प्राक्-ऐतिहासिक (Proto-Historic) अथवा कांस्य (Bronze) युग में रखा
जा सकता है।
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इस सभ्यता के निवासियों को द्रविड़ एवं भूमध्य-सागरीय प्रजाति के अन्तर्गत रखा गया है।
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रेडियो कार्बन 'C-14' जैसी नवीन वैज्ञानिक विश्लेषण पद्धति के द्वारा इस सभ्यता का
सर्वमान्य काल 2350 ई.पू.-1750 ई.पू. माना गया है।
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इस सभ्यता का सर्वाधिक पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर (जिला मेरठ, उत्तरप्रदेश) , पश्चिमी
पुरास्थल सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान) , उत्तरी पुरास्थल मांदा (जिला अखनूर, जम्मू-कश्मीर)
एवं दक्षिणी पुरास्थल दाइमाबाद (जिला अहमदनगर, महाराष्ट्र) है।
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अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1000 स्थानों का पता चला है जिनमें
से कुछ ही परिपक्व अवस्था में प्राप्त हुए हैं। इन स्थानों में से केवल छह को ही नगर
की संज्ञा दी जाती है। ये हैं- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चान्हूदड़ो, लोथल, कालीबंगा (कालीबंगन)
एवं बनवाली।
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स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत में हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में
खोजे गये हैं।
हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्रीय विस्तार
1.
सिन्ध क्षेत्र: मोहनजोदड़ो, चान्हूदड़ो, अमरी, कोटदीजी, रहमानढ़ेरी, सुकुर, अल्हादीनों,
अलीमुराद, झूकर, झांगर, गाजीशाह, तराई किला आदि।
2. बलूचिस्तान: मेहरगढ़, किलीगुल मुहम्मद, राणाघुंडई, गोमलघाटी, डॉबरकोट, बालाकोट, अंजीरा आदि।
3.
अफगानिस्तान: मुंडीगक, शोर्तुगाई आदि।
4.
पश्चिम पंजाब: हड़प्पा, जलीलपुर, संधानवाला, देरावर, गंवेरीवाला आदि।
5.
गुजरात: धौलावीरा, लोथल, सुरकोतदा, भगतराव, रंगपुर, रोजदि, देसलपुर, प्रभाषपट्टनम
आदि।
6.
राजस्थान: कालीबंगा, शीशवल, बाड़ा, हनुमानगढ़, छुपास आदि।
7.
उत्तरप्रदेश: आलमगीरपुर, मानपुर, बड़गाँव, हुलास आदि।
8.
हरियाणा: बनवाली, राखीगढ़ी, भगवानपुरा आदि।
9.
पंजाब: रोपड़, संघोल, सरायखोल, कोटलानिहंग खान आदि।
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हड़प्पा सभ्यता को उद्गम एवं विकास के दृष्टिकोण से चार चरणों– प्रथम चरण (पूर्व हड़प्पा)
-मेहरगढ़, द्वितीय चरण (आरम्भिक हड़प्पा) -अमरी, तृतीय चरण (परिपक्व हड़प्पा) - कालीबंगा
एवं चतुर्थ चरण (उत्तर हड़प्पा) - लोथल में बाँटा गया है।
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रोपड़, कालीबंगा, बनवाली और कोटदीजी में पूर्व हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन- संस्कृति के
अवशेष मिले हैं।
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सर्वाधिक पूर्वी स्थल आलमगीरपुर हड़प्पा सभ्यता की अंतिम अवस्था (Last Phase) को सूचित
करता है।
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सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल- मोहनजोदड़ो, गंवेरीवाला/गनेरीवाला, हड़प्पा, धौलावीरा, राखीगढ़ी।
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भारत में सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल- धौलावीरा, राखीगढ़ी।
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हड़प्पा सभ्यता की राजधानियाँ- मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धौलावीरा, लोथल, कालीबंगा।
सैंधव
सभ्यता के प्रमुख स्थल : नदी, उत्खननकर्ता एवं वर्तमान स्थिति
प्रमुख
स्थल |
नदी |
उत्खननकर्ता |
वर्ष |
स्थिति |
हड़प्पा |
रावी |
दयाराम
साहनी एवं माधोस्वरूप वत्स |
1921 |
पाकिस्तान
का मांटगोमरी जिला |
मोहनजोदड़ो |
सिन्धु |
राखालदास
बनर्जी |
1922 |
पाकिस्तान
के सिन्ध प्रान्त का लरकाना जिला |
चान्हूदड़ो |
सिन्धु |
गोपाल
मजुमदार |
1931 |
सिन्ध
प्रान्त (पाकिस्तान) |
कालीबंगन |
घग्घर |
बी.बी.
लाल एवं बी.के थापर |
1953 |
राजस्थान
का हनुमानगढ़ जिला |
कोटदीजी |
सिन्धु |
फजल
अहमद |
1953 |
सिन्ध
प्रान्त का खैरपुर स्थान |
रंगपुर |
मादर |
रंगनाथ
राव |
1953-54 |
गुजरात
का काठियावाड़ जिला |
रोपड़ |
सतलज |
यज्ञदत्त
शर्मा |
1953-54 |
पंजाब का रोपड़ जिला |
लोथल |
भोगवा |
रंगनाथ
राव |
1957-58
|
गुजरात
का अहमदाबाद जिला |
आलमगीरपुर |
हिन्डन |
यज्ञदत्त
शर्मा |
1958 |
उत्तरप्रदेश
का मेरठ जिला |
बनवाली |
रंगोई |
रवीन्द्र
सिंह विष्ट |
1974 |
हरियाणा
का हिसार जिला |
धौलावीरा |
|
रवीन्द्र
सिंह विष्ट |
1990-91 |
गुजरात
का कच्छ जिला |
सुत
कांगेडोर |
दाश्क |
आरेज
स्टाइल, जार्ज डेल्स |
1927-62 |
पाकिस्तान
के मकरान में समुद्र तट के किनारे |
नगर योजना
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हड़प्पा संस्कृति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी- इसकी नगर योजना प्रणाली।
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नगरों में सड़कें व मकान विधिवत् बनाये गये थे। मकान पक्की इंटों से निर्मित होते थे
तथा सड़कें सीधी थी।
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प्रत्येक सड़क और गली के दोनों ओर पक्की नालियाँ बनायी गयी थी। नालियाँ पक्की व ढ़की
हुई थी।
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यहाँ प्राप्त नगरों के अवशेषों से पूर्व और पश्चिम दिशा में दो टीले मिले हैं। पूर्व
दिशा में स्थित टीले पर नगर या फिर आवास क्षेत्र के साक्ष्य मिले हैं, जबकि पश्चिमी
टीले पर गढ़ी अथवा दुर्ग (Citadel) के साक्ष्य मिले हैं।
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सिन्धु सभ्यता में सड़कों का जाल नगर को कई भागों में विभाजित करता था। सड़कें पूर्व
से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण की ओर जाती हुई एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
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यहाँ के मकानों में स्नानागार प्राय: उस भाग में बनाये जाते थे जो सड़क अथवा गली के
निकटतम होते थे।
सामाजिक जीवन
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इस सभ्यता के लोग युद्धप्रिय कम, शान्तिप्रिय अधिक थे।
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स्त्री मृण्मूर्तियाँ अधिक प्राप्त होने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इस सभ्यता
में मातृसत्तात्मक परिवार प्रचलित प्रथा थी।
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समाज व्यवसाय के आधार पर विभाजित था-विद्वान, व्यापारी, योद्धा, शिल्पकार और श्रमिक।
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भोजन के रूप में इस सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, खजूर एवं भेड़, सुअर, मछली का सेवन करते
थे। इस प्रकार इस सभ्यता के लोग शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन करते
थे। घर में बर्तन के रूप में मिट्टी एवं धातु के बने बर्तन प्रयोग में लाये जाते थे।
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पुरुष वर्ग दाढ़ी एवं मुछें रखते थे। आभूषण में कंठाहार, भुजबंद, कर्णफूल, छल्ले, चूड़ियाँ,
करधनी, पाजेब आदि प्राप्त हुए हैं जिन्हें स्त्री-पुरुष दोनों पहनते थे।
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मनोरंजन के साधनों में मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु-पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़
एवं पासा खेलना प्रमुख था।
राजनीतिक जीवन
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ऐसा माना जाता है कि हड़प्पा सभ्यता किसी केन्द्रीय शक्ति से संचालित होती थी। यद्यपि
अभी तक यह विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी हड़प्पा सभ्यता के लोगों का वाणिज्य की
ओर अधिक झुकाव था, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सम्भवत: इस सभ्यता का शासन वणिक वर्ग
के हाथों में ही था।
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हड़प्पा सभ्यता के शासन के सम्बद्ध में विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न मत दिये हैं।
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ह्वीलर ने सिन्धु प्रदेश के लोगों के शासन को मध्यम वर्गीय जनतन्त्रात्मक शासन कहा
और उसमें धर्म की महत्ता को स्वीकार किया है।
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स्टुअर्ट पिग्गॉट के अनुसार सिन्धु प्रदेश के शासन पर पुरोहित वर्ग का प्रभाव था।
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हंटर के अनुसार मोहनजोदड़ो का शासन राजतन्त्रात्मक न होकर जनतन्त्रात्मक था।
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मैक के अनुसार मोहनजोदड़ो का शासन एक प्रतिनिध शासक के हाथों में था।
आर्थिक जीवन
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कृषि तथा पशुपालन के साथ-साथ उद्योग व्यापार इस सभ्यता की अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार
थे।
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यहाँ के प्रमुख खाद्यान्न गेहूँ तथा जौ थे। खुदाई में गेहूँ तथा जौ के दाने मिले हैं।
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इस सभ्यता के कृषक अपनी आवश्यकता से अधिक अनाज उत्पन्न करते थे तथा अतिरिक्त उत्पादन
को नगरों में भेजते थे। नगरों में अनाज भंडारण के लिए अन्नागार (Grainary) बने होते
थे।
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अनाजों के अतिरिक्त यहाँ के लोग फलों का भी उत्पादन करते थे। फलों में केला, नारियल,
खजूर, अनार, नींबू, तरबूज आदि का उत्पादन होता था।
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कृषि के साथ-साथ पशुपालन का भी इस काल में विकास हुआ। यहाँ से प्राप्त मुहरों पर कूबड़दार
वृषभ का अंकन बहुतायत में मिलता है। अन्य पालतू पशुओं में बैल, गाय, भैंस, कुत्ते,
सुअर, भेड़, बकरी, हिरन, खरगोश आदि प्रमुख थे।
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सुरकोटड़ा (कच्छ, गुजरात) से प्राप्त अश्व-अस्थि तथा लोथल और रंगपुर से प्राप्त अश्व
की मृण्मूर्तियों के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि सैंधव सभ्यता के लोग अश्व से
परिचित थे।
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वस्त्र निर्माण इस काल का प्रमुख उद्योग था। सूती वस्त्र के अवशेषों से ज्ञात होता
है कि यहाँ के निवासी कपास उगाना भी जानते थे। विश्व में सर्वप्रथम सैंधव सभ्यता के
लोगों ने ही कपास की खेती प्रारम्भ की थी। इसलिए यूनान के लोग कपास को सिन्डन
(Sindon) कहने लगे जो सिंन्धु शब्द से उद्भूत है।
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इस सभ्यता की मुहरें एवं अन्य वस्तुएँ पश्चिम एशिया तथा मिस्र से प्राप्त हुई हैं।
इससे यह पता चलता है कि इन देशों के साथ इनका व्यापारिक सम्बन्ध था।
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यहाँ के निवासी वस्तु विनिमय द्वारा व्यापार किया करते थे।
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हड़प्पा सभ्यता में तौल के बाट 16 अथवा इसके गुणज भार के थे, यथा 16, 64, 160, 320 आदि।
हड़प्पा सभ्यता में विभिन्न क्षेत्रों से आयात
किये जाने वाले कच्चे माल
कच्चा
माल |
क्षेत्र |
टिन |
अफगानिस्तान,
ईरान |
ताँबा |
खेतड़ी
(राजस्थान) , बलूचिस्तान |
चाँदी |
ईरान,
अफगानिस्तान |
सोना |
अफगानिस्तान,
फारस, दक्षिणी भारत |
लाजवर्द |
मेसोपोटामिया |
सेलखड़ी |
बलूचिस्तान,
राजस्थान, गुजरात |
नीलरत्न |
बदख्शाँ |
नीलमणि |
महाराष्ट्र |
हरितमणि |
दक्षिण
एशिया |
शंख
तथा कौड़ियाँ |
सौराष्ट्र,
दक्षिणी भारत |
सीसा |
ईरान,
अफगानिस्तान, राजस्थान |
शिलाजीत |
हिमालय
क्षेत्र |
यहाँ
के निवासी धातु निर्माण उद्योग, आभूषण निर्माण उद्योग, बर्तन निर्माण उद्योग, हथियार-औजार
निर्माण उद्योग व परिवहन उद्योग से परिचित थे।
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उत्खनन से प्राप्त कताई-बुनाई के उपकरणों (तकली, सुई आदि) से निष्कर्ष निकलता है कि
कपड़े बुनना एक प्रमुख उद्योग था।
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चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाना, खिलौना बनाना, मुद्राओं का निर्माण करना आदि इस काल
के कुछ प्रमुख उद्योग-धन्धे थे।
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लकड़ी की वस्तुओं से पता चलता है कि बढ़ईगिरी भी इस काल में प्रचलित थी।
धार्मिक जीवन
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हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन के बारे में जानकारी के मुख्य आधार पुरातात्विक स्रोत
है, यथा-मूर्तियाँ, मुहरें, मृदभांड, पत्थर तथा अन्य पदार्थों से निर्मित लिंग तथा
चक्र की आकृति, ताम्र फलक, कब्रिस्तान आदि।
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इस सभ्यता में कहीं से किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं।
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पशुओं में कुबड़वाल साँड़ इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूज्नीय था।
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हड़प्पा संस्कृति में मातृ देवी सम्प्रदाय का मुख्य स्थान (स्त्री मृण्मूर्तियों के
अधिकता के कारण) था। मातृ देवी की ही भाँति देवता की उपासना में भी बलि का विधान था।
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इस सभ्यता के लोग पशुपतिनाथ, महादेव, लिंग, योनि, वृक्षों व पशुओं की पूजा करते थे।
भूत-प्रेत, अन्धविश्वास व जादू-टोना पर भी इस काल के लोगों का विश्वास था।
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लोथल (गुजरात) एवं कालीबंगा (राजस्थान) के उत्खननों के परिणामस्वरूप अनेक अग्निकुंड
तथा अग्निवेदिकाएँ मिली हैं।
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बैल को पशुपतिनाथ का वाहन माना जाता था। फाख्ता एक पवित्र पक्षी माना जाता था।
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भारतीय सभ्यता- संस्कृति में स्वास्तिक चिह्न सम्भवत: हड़प्पा सभ्यता की देन है।
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इस सभ्यता में शवों की अन्त्येष्टि संस्कार की तीन विधियाँ प्रचलित थी- पूर्ण समाधिकरण,
आंशिक समाधिकरण और दाह संस्कार।
लेखन कला
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हड़प्पाई लिपि का सर्वाधिक पुराना नमूना 1853 में प्राप्त हुआ था। पर स्पष्टत: यह लिपि
1923 तक प्रकाश में आयी।
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सिन्धु लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न एवं 250 से 400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार
मुहरों, ताँबे की गुटिकाओ आदि पर मिले हैं।
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यह लिपि चित्रात्मक थी जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
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इस लिपि में प्राप्त बड़े लेख में लगभग 17 चिह्न हैं।
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इस लिपि की प्रथम लाइन दायें से बायें तथा द्वितीय लाइन बायें से दायें लिखी गयी है।
यह तरीका ‘बाउस्ट्रोफिडन’ (Boustrophedon) कहलाता है।
सभ्यता के अन्त पर विभिन्न मत
1.
जॉर्न मार्शल- प्रशासनिक शिथिलता के कारण इस सभ्यता का विनाश हुआ।
2.
ऑरेल स्टाइन- जलवायु में हुए परिवर्तन के कारण यह सभ्यता नष्ट हो गयी।
3.
अर्नेस्ट मैंक एवं जॉन मार्शल- सिन्धु सभ्यता बाढ़ के कारण नष्ट हुई।
4.
एम.आर. साहनी, राइक्स एवं डेल्स- भू-तात्विक परिवर्तन के कारण यह सभ्यता नष्ट हुई।
5.
डी.डी. कौशाम्बी- मोहनजोदड़ो के लोगों की आग लगाकर हत्या कर दी गयी।
6.
गार्डन चाइल्ड एवं ह्वीलर- सैन्धव सभ्यता विदेशी आक्रमण व आर्यों के आक्रमण से नष्ट
हुई।
हड़प्पा
सभ्यता के महत्त्वपूर्ण प्रमाण और सम्बद्ध स्थल
महत्त्वपूर्ण
प्रमाण |
सम्बद्ध
स्थल |
डॉक
यार्ड (बन्दरगाह) का साक्ष्य |
लोथल
(गुजरात) (भोगवा नदी के किनारे) |
काँसे
की नर्तकी (देवदासी) की मूर्ति |
मोहनजोदड़ो |
सूती
कपड़े का साक्ष्य |
मोहनजोदड़ो |
आर्यों
के आक्रमण का साक्ष्य |
मोहनजोदड़ो |
विशाल
स्नानागार |
मोहनजोदड़ो |
जहाज
के निशान वाली मुहर |
मोहनजोदड़ो |
काँसे
का पैमाना |
मोहनजोदड़ो |
पशुपति
शिव की प्रतिमा |
मोहनजोदड़ो |
R-37
कब्रिस्तान |
हड़प्पा
(3 कक्षों का कब्रिस्तान) |
मातृ
देवी प्रतिमा |
हड़प्पा |
मनके
बनाने का कारखाना |
चन्हूदड़ो
(सिन्ध) |
लकड़ी
की नाली |
कालीबंगा |
काली
मिट्टी की चूड़ियाँ |
कालीबंगा |
जुते
हुए खेत का साक्ष्य |
कालीबंगा |
घोड़े
का कंकाल |
सुरकोटड़ा |
अग्नि
वेदियाँ |
लोथल
व कालीबंगा |
चावल
की खेती |
लोथल |
गेहूँ
की खेती |
रंगपुर |
जौ
की खेती |
बनबाली |