Class XI Economics Answer Key 2009 (A)

Class XI Economics Answer Key 2009 (A)

 

Section - A खण्ड- अ
(सांख्यिकी का परिचय)

1. अर्थशास्त्र के पिता कौन माने जाते हैं ?

उत्तर: एडम स्मिथ

2. निम्नलिखित श्रृंखला को अवरोही क्रम में क्रमबद्ध करें:

5, 16, 18, 2, 13, 15, 3, 19, 17, 20

उत्तर: 20, 19, 18, 17, 16, 15, 13, 5, 3, 2

3. संगणना विधि से आप क्या समझते है?

उत्तर: अनुसंधान के क्षेत्र में समूह की प्रत्येक इकाईयों के बारे में समंक एकत्रित करना ही संगणना विधि कहलाती है।

4. विस्तार क्या है?

उत्तर: विस्तार अपकिरण का सबसे सरलतम माप है। विस्तार किसी श्रृंखला में अधिकतम (L) एवं न्यूनतम (S) मानों के बीच का अंतर है। इसकी गणना निम्नलिखित सूत्र द्वारा की जा सकती है। सूत्र :

                                        R = L – S

5. 'केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप' का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: सांख्यिकी माध्य

6. सांख्यिकी के किन्हीं तीन कार्यों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: 1. तथ्यों की तुलना करना

2. व्यक्तिगत अनुभव व ज्ञान मे वृद्धि

3. नीतियों के निर्धारण मे सहायता

4. सांख्यिकी दूसरे विज्ञानों के नियमों की जाँच करती है

7. उपभोक्ता जागरूकता योजना के उद्देश्य क्या है?

उत्तर: 1. उपभोक्ताओं में उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूकता पैदा करना।

2. उपभोक्ताआं को टेलीफोन और व्यक्तिगत रूप से परामर्श प्रदान करना।

3. उपाभोक्ता विवादों को कोर्ट से बाहर निपटाने के लिए सहायता प्रदान करना।

8. बहुगुणी दण्डचित्र का अर्थ बताइए।

उत्तर: बहुगुणी दंड चित्र में दो या दो से अधिक परस्पर संबंधित तत्वों को दिखाने के लिए एक से अधिक दंडों का प्रयोग किया जाता है इसलिए इन्हें बहुगुणी दंड चित्र कहते हैं। चूँकि इनमें एक ही वर्ग के परस्पर संबंधित आंकड़ों की तुलना की जाती है, इसलिए इन्हें तुलनात्मक दंड आरेख भी कहते हैं।

9. निम्नलिखित समंकों से मध्यका ज्ञात कीजिए :

20, 16, 18, 12, 15, 22, 17, 14, 21

उत्तर:

S.N

1

2

3

4

5

6

7

8

9

X

12

14

15

16

17

18

20

21

22

Median = Value of  `\frac{n+1}2` items

  =`\frac{9+1}2=\frac{10}2=5`

        Median = 17

10. आँकड़ों के संकलन के समय ध्यान में रखने वाले कारकों को बताइए।

उत्तर: a. आँकड़े संग्रहण की जो रीति अपनायी है। वह समंकों के वर्तमान प्रयोग के लिए कहाँ तक उपयोगी है। यह जान लेना आवश्यक है।

b. यदि एक ही विषय पर अनेको स्रोतों से द्वितीयक समंक प्राप्त होते हैं तो इनकी सत्यता की जाँच करने के लिए। उनकी तुलना कर लेनी चाहिए।

11. निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से उपरी (तृतीय) चतुर्थक एवं निम्न (प्रथम) चतुर्थक की गणना कीजिए।:

x: 100, 110, 130, 150, 170, 200, 180, 120, 190

उत्तर:

S.N

1

2

3

4

5

6

7

8

9

X

100

110

120

130

150

170

180

190

200


Q1 = Value of `\frac{n+1}4`items

Q1 = Value of `\frac{9+1}4`items

Q1 = Value of `\frac{10}4`items

Q1 = 2.5

Q1 = Value of `\frac{2nd+3rd}2`items

Q1 = Value of `\frac{110+120}2`items

Q1 = Value of `\frac{230}2`items

Q1 = 115 Ans.

Q3 = Value of `\frac{3\left(n+1\right)}4`items

Q3 = Value of `\frac{3\left(9+1\right)}4`items

Q3 = Value of `\frac{3\left(10\right)}4`items

Q3 = 7.5

Q3 = Value of `\frac{7th+8th}2`items

Q3 = Value of `\frac{180+190}2`items

Q3 = Value of `\frac{370}2`items

Q3 = 185 Ans.

12. धनात्मक तथा ऋणात्मक सहसंबंध में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- धनात्मक व ऋणात्मक सह संबन्ध का वर्णन अग्रलिखित है -

1. धनात्मक सह-संबंध  - धनात्मक सहसंबंध से आशय है कि दो चर श्रेणियों में परिवर्तन की दिशा का एक समान होना। जैसे, यदि किसी श्रेणी में वृद्धि हो तो संबंधित श्रेणी में भी वृद्धि हो एवं कमी की दशा में कमी हो । उदाहरण - पूर्ति व कीमत आदि।

2. ऋणात्मक सहसंबंध - ऋणात्मक सह संबंध से तात्पर्य होता है कि किसी चार श्रेणीयों में परिवर्तन की दिशा का विपरीत होना अर्थात यदि एक चर में वृद्धि हो तो अन्य संबंधित चर में कमी हो एवं कमी होने पर वृद्धि हो।

13. निम्न आँकड़ों से प्रमाप विचलन की गणना करें

x :

10

12

14

16

18

ƒ :

4

5

7

5

4

उत्तर-

X

ƒ

ƒx

dev=14(dx)

ƒdx

ƒdx2

10

4

40

-4

-16

64

12

5

60

-2

-10

20

14

7

98

0

0

0

16

5

80

2

10

20

18

4

72

4

16

64

 

Σƒ=25

Σƒx=350

 

 

Σƒdx2 =168


Mean (X̅ ) `\frac{\Sigma fx}{\Sigma f}` = `\frac{350}25` = 14

σ=`\sqrt{\frac{\Sigma fdx^2}{\Sigma f}}`=`\sqrt{\frac{168}{25}}=\sqrt{6.72}=2.59`

अथवा

निर्देशांक क्या है ? इसके लाभ क्या है ?

उत्तर: समाज में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन होने के कारण मुद्रा का मूल्य भी परिवर्तित होता रहता है, जिससे समाज का प्रत्येक वर्ग प्रभावित होता है, फलस्वरूप कीमत-स्तर, उपभोग, जनसंख्या, बचत, निवेश, राष्ट्रीय आय, आयात-निर्यात, मजदूरी, ब्याज, किराया व लगान आदि चरों में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। अत: मुद्रा-मूल्य में हुए परिवर्तनों का माप करना व्यावहारिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण व उपयोगी है। इन परिवर्तनों को निरपेक्ष रूप से मापने का कोई साधन नहीं है; अतः इनको सापेक्ष माप लिया जाता है। सूचकांक विशिष्ट प्रकार के सापेक्ष माप होते हैं, जिनके आधार पर समंकों की उचित एवं स्पष्ट तुलना की जा सकती है।

चैण्डलर के अनुसार-“कीमत का सूचकांक आधार-वर्ष की तुलना में किसी अन्य समय में कीमतों की औसत ऊँचाई को प्रकट करने वाली संख्या है।”

सूचकांकों की सार्वभौमिक उपयोगिता है। ये व्यापारी, अर्थशास्त्री व राजनीतिज्ञों का पथ-प्रदर्शन करते हैं। और उन्हें भावी प्रवृत्तियों का अनुमान लगाने में सहायता करते हैं। कीमत, जीवन-निर्वाह, औद्योगिक उत्पादन, खाद्यान्न उत्पादन, निर्यात, आयात, लाभ, मुद्रा-पूर्ति, जनसंख्या, राष्ट्रीय आय, बजट घाटा अथवा आधिक्य आदि से संबंधित सूचकांक विभिन्न घटनाओं का सापेक्षिक माप प्रस्तुत करते हैं, इसीलिए सूचकांक ‘आर्थिक वायुमापक यंत्र’ (Economic Barometers) कहलाते हैं। प्रो. चैण्डलर के अनुसार," मूल्यों का निर्देशांक आधार वर्ष के औसत मूल्यों की ऊंचाई की तुलना में किसी अन्य समय पर उनकी ऊंचाई को व्यक्त करने वाली संख्या है।"

व्यावहारिक रूप में सूचकांकों से निम्नलिखित लाभ या उपयोगिता प्राप्त होते हैं

1. मुद्रा के मूल्य की माप :- सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है। सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तन से मुद्रा की क्रय-शक्ति में होने वाले परिवर्तनों का अनुमान लगाया जा सकता है।

2. आर्थिक स्थिति की तुलना :- रहन-सहन संबंधी सूचकांकों की तुलना करके समाज के किसी वर्ग के रहन-सहने में होने वाले परिवर्तनों का अनुमान लगाया जा सकता है।

3. मजदूरी निर्धारण में उपयोगिता :-  सूचकांक वास्तविक आय में होने वाले परिवर्तन का सूचक होता है। अतः मजदूरी व वेतन के निर्धारण में इनसे बहुत अधिक सहायता मिलती है।

4. ऋणों के न्यायपूर्ण भुगतान का आधार :-  सूचकांकों की सहायता से मूल्य-स्तर में परिवर्तन का अनुमान लगाया जा सकता है और इसी आधार पर ऋणों की मात्रा में परिवर्तन करके उनका न्यायपूर्ण भुगतान किया जा सकता है। इससे किसी भी पक्ष को असंगत लाभ या हानि नहीं होती।

5. अंतर्राष्ट्रीय तुलना करने में सहायक :- सूचकांकों की सहायता से विभिन्न प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय तुलनाएँ करना संभव है। विभिन्न देशों की मुद्राओं की क्रय-शक्ति में क्या परिवर्तन जहुए हैं, इसकी जानकारी व तुलना सूचकांकों की सहायता से की जा सकती है।

6. देश के आर्थिक विकास का अनुमान :- उत्पादन सुचकांक देश में उत्पादन संबंधी जानकारी देते हैं, जिनके आधार पर सरकार अपनी औद्योगिक नीति का निर्माण करती हैं । सूचकांकों की सहायता से ही विदेशी व्यापार की स्थिति व देश में पूँजी व विनियोग की मात्रा को ज्ञान होता है।

7. भावी प्रवृत्तियों का अनुमान :- सूचकॉक न केवल वर्तमान परिवर्तनों को बताते हैं बल्कि इनकी सहायता से भविष्य के संबंध में भी महत्त्वपूर्ण अनुमान लगाए जा सकते हैं।

8. जटिल तथ्यों को सरल बनाना :- सूचकांकों की सहायता से ऐसे जटिल तथ्यों में होने वाले परिवर्तनों की माप भी की जा सकती है, जिनकी माप किसी अन्य साधन से संभव नहीं है।

9. नियंत्रण एवं नीतियाँ :- सूचकांकों के आधार पर ही सरकार आर्थिक नियोजन व नियंत्रण संबंधी नीतियाँ बनाती है।

14. निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर समांतर माध्य ज्ञात कीजिए

प्राप्तांक

0-10

10-20

20-30

30-40

40-50

50-60

विद्यार्थियों की संख्या

5

7

15

10

8

5

उत्तर-

C.I

ƒ

MV (x)

A = 5 (dx)

i=10(dxI)

ƒdxI

0-10

5

5

0

0

0

10-20

7

15

10

1

7

20-30

15

25

20

2

30

30-40

10

35

30

3

30

40-50

8

45

40

4

32

50-60

5

55

50

5

25

 

Σƒ = 50

 

 

 

ΣƒdxI = 124


`Mean `\overline X ` `A=\frac{\Sigma ƒdx^I}{\Sigma ƒ}\times i`

`=5+\frac124{50}\times10=5+24.8=29.8`

15. निम्न आवृत्ति वितरण से बहुलक ज्ञात कीजिए:

x :

0-10

10-20

20-30

30-40

40-50

50-60

60-70

ƒ :

5

12

18

28

15

9

7

उत्तर-

⸫ Mode lise between ( 30-40 ) in class interval

l= 30, l2 = 40, ƒ1 = 28, ƒ2 = 15, ƒ0 = 18, Mode = ?

Mode = `l_1+\frac{f_1-f_0}{2f_1-f_0-f_2}(l_2-l_1)`

  = 30+`\frac{28-18}{2(28)-18-15}(40-30)`

= `30+\frac{10}{56-33}(10)=30+\frac{100}{23}`

= 30+4.34 = 34.34

16. निम्न समंकों से कार्ल पियरसन का सहसंबंध गुणांक ज्ञात कीजिए :

x :

6

8

12

15

18

20

24

28

31

y :

10

12

15

15

18

25

22

26

28

उत्तर-

X

Y

A=6

dx

A=15

dy

dx2

dy2

dxdy

6

10

0

-5

0

25

0

8

12

2

-3

4

9

-6

12

15

6

0

36

0

0

15

15

9

0

81

0

0

18

18

12

3

144

9

36

20

25

14

10

196

100

140

24

22

18

7

324

49

126

28

26

22

11

484

121

242

31

28

25

13

625

169

325

 

 

Σdx=108

Σdy=44-8=36

Σdx2=1894

Σdy2=482

Σdxdy=869-6=863





r = `\frac{863-432}{9\sqrt{210.4-(12)^2}\sqrt{53.5-(4)^2}}`

`r=\frac{431}{9\sqrt{210.4-144}\sqrt{53.5-16}}`

`r=\frac{431}{9\sqrt{66.4}\sqrt{37.5}}=\frac{431}{9\(8.14)\(6.12)}`

`r=\frac{431}{448.35}=0.96`

(यह  उच्च  सहसंबंध है)

अथवा

प्राथमिक और द्वितीयक आँकड़ों में अंतर करें। द्वितीयक आँकड़ों के तीन स्रोत बताएँ।

उत्तर-

 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में अंतर

प्राथमिक आंकड़े

द्वितीयक या गौण आंकड़ा

ये मौलिक होते हैं, अनुसंधानकर्ता इनका स्वयं संकलन है।

ये मौलिक नहीं होते वरन् अन्य संस्था या व्यक्ति के द्वारा संकलित होते हैं।

प्राथमिक आंकड़े वास्तविक होते हैं क्योंकि वे प्रथम दृष्टया सूचनाएं देते हैं।

द्वितीयक आंकड़े प्राय: वास्तविक नहीं होते।

प्राथमिक आंकड़े अधिक सही सूचनाएं देते हैं।

द्वितीयक आंकड़ों की सूचनाएं प्राय: पूर्णत: सत्य नहीं होती।

ये समंक कच्चे माल की भांति होते हैं।

ये समंक निर्मित माल की भांति होते हैं।

ये उद्देश्य के अनुकूल होते हैं। इसमें संशोधन की आवश्यकता नहीं होती

ये किसी अन्य उद्देश्य से संकलित किये जाते हैं। इनमें संशोधन एवं समायोजन की अधिक आवश्यकता होती है।

इनके में धन, समय,परिश्रम,योजना और बुद्धि का प्रयोग होता है।

इनको केवल अन्य स्थानों से उद्धत करना होता है।धन,समय और परिश्रम का विशेष उपयोग नहीं होता।

इनके प्रयोग में सतर्कता की आवश्यकता नही होती है।

इनके प्रयोग में अत्यन्त सतर्कता की आवश्यकता होती है।

द्वितीयक आँकड़ों के तीन स्रोत

(A) प्रकाशित स्रोत से :-

1. सरकारी स्रोत

2. अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन

3. पत्र - पत्रिकाएं

4. व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ताओं के प्रकाशन से

5. अनुसंधान संस्थाओं के प्रकाशन से

6. आयोग एवं समितियों के रिपोर्टों से

7. व्यापारिक संघों के प्रकाशन से

(B) अप्रकाशित स्रोत से :-

 आंकड़ों के वे सभी स्रोत जो किसी अन्य अनुसंधानकर्ता द्वारा संकलित किए गए हैं, और जिन्हें प्रकाशित नहीं किया गया है अप्रकाशित स्रोत के आंकड़े कहलाते हैं

 आंकड़े सरकार, विश्वविद्यालय ,निजी संस्थाएं तथा व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ता आदि से प्राप्त किए जा सकते हैं जो विभिन्न उद्देश्यों के लिए आंकड़े संकलित करते रहते हैंे वे आंकड़े होते हैं जिन्हें प्रकाशित नहीं कराया जाता

Section - B खण्ड - ब

17. आर्थिक वृद्धि किसे कहते हैं ?

उत्तर: किसी देश की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि आर्थिक वृद्धि (Economic growth) कहलाती है। आर्थिक वृद्धि केवल उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का परिमाण बताती है।

18. गतिहीन अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: गतिहीन अर्थव्यवस्था एक वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें आर्थिक संवृद्धि दर स्थिर रहती है।

19. चीन के 'ग्रेट लीप फारवर्ड अभियान' का मुख्य उद्देश्य क्या था ?

उत्तर: इसका उद्देश्य तेजी से औद्योगिकीकरण और सामूहिक कृषि के माध्यम से देश की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था को उत्पादन की समाजवादी विधा में तेज़ी से तब्दील करना था।

20. ऊर्जा के सृजन के तीन मूलभूत स्रोतों के नाम बताइए।

उत्तर: 1. जीवाश्म ऊर्जा: कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस

2. जलीय ऊर्जा  : जल के वेग को नियन्त्रित करके उसकी शक्ति का उपयोग विद्युत ऊर्जा रूपान्तरण के लिए किया जाता है

3. पवन ऊर्जा  : पवनचक्कियों से वृहद् पैमाने पर सिंचाई का कार्य किया जा रहा है. इनका उपयोग वृहद् क्षेत्रों में पानी पम्प करने तथा विद्युत उत्पादन में किया जा सकता है

21. भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का प्रारंभ कब हुआ था ?

उत्तर: 1951

22. आधारभूत ढाँचे से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख अंगों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: आधारित ढाँचे से अभिप्राय उन सुविधाओं, क्रियाओं तथा सेवाओं से है जो अन्य क्षेत्रों के संचालन तथा विकास में सहायक होती हैं। ये समाज के दैनिक जीवन में भी सहायक होती हैं। इन सेवाओं में सड़क, रेल, बन्दरगाह, हवाई अड्डे, बाँध, बिजली-घर, तेल व गैस पाइप लाइन, दूरसंचार सुविधाएँ, शिक्षण संस्थान, अस्पताल के स्वास्थ्य व्यवस्था, सफाई, पेयजल और बैंक व अन्य वित्तीय संस्थाएँ तथा मुद्रा प्रणाली सम्मिलित हैं।

आधारित ढाँचे के निम्न दो अंग है

1. सामाजिक आधारित ढाँचे :- सामाजिक आधारित ढाँचे से अभिप्राय सामाजिक परिवर्तन जैसे स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, नर्सिंग होम; के मूल तत्त्वों से है जो किसी देश के सामाजिक विकास की प्रक्रिया के लिए आधारशिला का कार्य करते हैं। इस प्रकार की संरचना आदमी की कुशलता एवं उत्पादकता को बढ़ाती है। शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास मुख्य रूप से सामाजिक आधारित ढाँचे के भाग हैं। ये अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक क्रियाओं में सहयोग करते हैं।

2. आर्थिक आधारित ढाँचे :- आर्थिक आधारित ढाँचे से अभिप्राय आर्थिक परिवर्तन के उन सभी तत्त्वों (जैसे शक्ति, परिवहन तथा संचार) से है जो आर्थिक संवृद्धि की प्रक्रिया के लिए एक आधारशिला का कार्य करते हैं। इस प्रकार की ढाँचे उत्पादन पर सीधा प्रभाव डालती है। शक्ति, ऊर्जा, परिवहन एवं दूरसंचार आदि को आर्थिक आधारिक ढाँचे में सम्मिलित किया जाता है। आर्थिक आधारिक ढाँचे संवृद्धि की प्रक्रिया में वृद्धि लाती है जबकि सामाजिक आधारिक ढाँचे मानव विकास की प्रक्रिया में वृद्धि लाती है इसीलिए आर्थिक तथा सामाजिक आधारिक ढाँचे एक-दूसरे की पूरक हैं। दोनों एक-दूसरे के प्रभाव को प्रबल बनाती हैं एवं सहायता प्रदान करती हैं।

23. भारत में आर्थिक नियोजन के पक्ष में तीन तर्क प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: आर्थिक विकास – यह भारत में आर्थिक नियोजन (Economic Planning in India in Hindi) का पहला और सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है। देश में वास्तविक राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करके किसी देश का आर्थिक विकास प्राप्त किया जा सकता है। अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि जब प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय दोनों वास्तविक रूप से बढ़ती हैं, तो प्रत्येक व्यक्ति के साथ-साथ पूरे समाज का उच्च जीवन स्तर प्राप्त किया जा सकता है।

गरीबी में कमी – स्वतंत्रता के समय भारत की पचास प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गरीब थी। रोजगार की कमी गरीबी का एक प्रमुख कारण है। देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें एक दिन का खाना भी नहीं मिल रहा है। इस प्रकार योजना आयोग ने देश से गरीबी को पूरी तरह से हटाने के लिए एक उपयुक्त योजना तैयार करने का निर्णय लिया।

रोजगार में वृद्धि – रोजगार वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया में शामिल प्रमुख कारकों में से एक है। बेरोजगारी विभिन्न सामाजिक समस्याओं जैसे गरीबी, अपराध आदि का कारण है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था के योजनाकारों ने रोजगार के सृजन को आर्थिक नियोजन के प्रमुख उद्देश्यों में से एक के रूप में रखा।

24. वैश्वीकरण के कोई तीन कारण बताइए।

उत्तर: वैश्वीकरण का अर्थ है- अंतर्राष्ट्रीय एकीकरण, विश्व व्यापार का खुलना, उन्नत संचार साधनों का विकास, वित्तीय बाजारों का अंतर्राष्ट्रीयकरण, बहुराष्ट्रीय कम्पनी का महत्व बढ़ना, जनसंख्या का देशांतर गमन, व्यक्तियों, वस्तुओं, पूंजी आकड़ों व विचारों की गतिशीलता का बढ़ना। यह ऐसी प्रक्रिया है जिसने वैविध्यपूर्ण दुनियां को एकल समाज में एकीकृत किया।

वैश्वीकरण के कारण

1. उन्नत प्रौद्योगिकी वैश्वीकरण का सबसे मुख्य कारण माना जाता है।

2. टेलीग्राफ, टेलीफ़ोन, माइक्रोचिप, इंटरनेट आदि के अविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागो के बीच संचार की क्रांति कर दिखाई है ।

3. विचारो, पूंजी , वस्तुओ और व्यक्तियों का प्रवाह प्रौद्योगिकी के कारण बढ़ा है ।

4. विश्व के लोगो में पारस्परिक जुड़ाव की भावना के कारण भी वैश्वीकरण को बढ़ावा मिला है ।

5. पर्यावरण की वैश्विक समस्याओ जैसे सुनामी , जलवायु परिवर्तन आदि में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के कारण भी वैश्वीकरण को बढ़ावा मिला है ।

6. विश्व के विभिन्न देशो में होने वाली आर्थिक घटनाओ का प्रभाव भी अन्य देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है ।

25. राष्ट्रीय आय किस प्रकार आर्थिक कल्याण से संबंधित है ?

उत्तर: राष्ट्रीय आय एक अर्थव्यवस्था में आर्थिक प्रगति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है। राष्ट्रीयआय एवं आर्थिक विकास में धनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। उच्च प्रति व्यक्ति आय वाला देश निम्न प्रति व्यक्ति आय वाला देश की अपेक्ष अधिक विकासित माना जाता है। राष्ट्रीय आय में वृद्वि से किसी भी देश के आर्थिक कल्याण में वृद्वि होती है। जिससे उपभोग के लिए अधिक मात्रा में वस्तुएं व सेवाएं उपलब्ध हो जाती है इससे अधिक आर्थिक कल्याण में वृद्वि होती है। इसके विपरित राष्ट्रीय आय में कमी से किसी भी देश के आर्थिक कल्याण में कमी होती है जिससे उपभोग के लिए कम मात्रा में वस्तुएं व सेवाएं उपलब्ध हो जाती है जिसका देश की अर्थव्यवस्था तथा आर्थिक विकास में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और देश की विकास दर धीमी हो जाती है जिससे देश के उधोग, रोजगार, कीमतों, व्यापार आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

26. मानव साधन विकास से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: मानव संसाधन विकास एक संरचना है जो संगठन के, या राष्ट्र के लक्ष्यों को संतोषजनक ढंग से पूरा करने के साथ व्यक्ति विशेष के विकास की अनुमति देता है। व्यक्ति के विकास से व्यक्ति विशेष तथा संगठन दोनों, या राष्ट्र और उसके नागरिकों को लाभ होगा।

27. आर्थिक सुधारों के मुख्य उद्देश्यों को संक्षेप में बताइए।

उत्तर: आर्थिक सुधार का अर्थ :- आर्थिक सुधारों से अभिप्राय उन सभी उपायों से है जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था को अधिक कुशल एवं प्रतियोगी बनाना है।

आर्थिक सुधारों के उद्देश्य :-  भारत में आर्थिक सुधारों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित रहे हैं।

1. अवसंरचना के विकास द्वारा अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना।

2. आर्थिक विकास एवं आर्थिक स्वामित्व के मध्य उचित समन्वय स्थापित करना।

3. औद्योगिक उत्पादकता एवं कार्यकुशलता में वृद्धि करना।

4. वित्तीय क्षेत्र में सुधार करना एवं साख व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना।

5. सार्वजनिक उपक्रमों के कार्य निष्पादन में सुधार लाना।

6. विदेशी विनियोग, विदेशी तकनीकी एवं विदेशी पूँजी में अन्तर्रवाह को प्रोत्साहित करना।

7. राजकोषीय अनुशासन को लागू करना।

28. स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की एक पिछड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में मुख्य विशेषताएँ कौन -कौन से थी ?

उत्तर: स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की एक पिछड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

1. औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था : अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बृटिश उपनिवेश के रूप में बदल दिया था। इस उपनिवेश का प्रयोग वे मुख्यतः कच्चे पदार्थों एवं अतिरेक खाद्यान्नों के आपूर्तिकर्ता तथा बृटिश उद्योगों की उत्पादित वस्तुओं के बाजार के रूप में करते थे। अंग्रेजों ने विदेशी पूँजी के निवेश के लिये भी भारतीय उपनिवेश का प्रयोग किया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान विदेशी पूँजी के प्रभुत्व में कुछ कमी आई लेकिन इसकी महत्ता स्वतंत्रता के समय तक कायम रही।

2. निर्धन एवं पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था : स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक निर्धन एवं पिछड़ी हुई अथवा अर्द्ध- विकसित अर्थव्यवस्था थी । एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति आय एवं लोगों के रहन-सहन का स्तर बहुत ही नीचा होता है। 1947-48 में भारत में प्रति व्यक्ति आय करीब 230 रुपये थी जबकि अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 6900रुपये तथा इंगलैंड में 2700 रुपये थी। यही कारण है कि लोग दयनीय जीवन व्यतीत करते थे, उन्हें भरपेट भोजन नहीं मिलता था, उन्हें ढंग के वस्त्र नहीं मिलते थे तथा उनके पास उचित आवास की कमी थी।

3. स्थिर अथवा प्रवाहहीन अर्थव्यवस्था : स्वतंत्रता की पूर्वसंध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था एक प्रवाहहीन अर्थव्यवस्था थी। एक प्रवावहहीन अर्थव्यवस्था वह है जिसकी विकास-दर बहुत ही नीची है। ऐसी अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति आय भी बहुत नीची होती है। जे० आर० हिक्स, एम० मुखर्जी तथा एस० के० घोष ने 1970-71 के मूल्यों पर 1860-1945 की अवधि के लिये भारत में प्रति व्यक्ति आय के विकास-दर  का अनुमान लगाया है। इसे निम्नांकित तालिका में दिखलाया गया है-

प्रति व्यक्ति आय का विकास दर

अवधि

विकास दर

1860-1885

1.1

1885-1905

-0.3

1905-1925

1.3

1925-1950

- 0.1

1860-1945

0.5 

इस तालिका से पता चलता है कि स्वतंत्रता से पहले करीब 85 वर्षों के दौरान बृटिश शासन काल में भारतीय अर्थव्यवस्था प्रायः स्थिर (Near stagnant) अर्थव्यवस्था थी क्योंकि इस अवधि में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि केवल 0.5 प्रतिशत प्रति वर्ष थी। लेकिन इस अवधि के दौरान भी कभी-कभी लम्बे अरसे तक अर्थव्यवस्था का विकास स्थिर रहा था अथवा उसमें गिरावट भी आई थी। वास्तव में इस अवधि में वृटिश शासकों ने भारतीय अर्थवयव्स्था के दमन की नीति अपनायी थी जिससे राष्ट्रीय आय में बहुत ही कम वृद्धि हुई और राष्ट्रीय आय में जो भी थोड़ी वृद्धि हुई उससे प्रति व्यक्ति आय में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई। क्योंकि इस अवधि में जनसंख्या तेजी से बढ़ी। इससे भारत में लोगों का जीवन स्तर बहुत ही निम्न कोटि का था।

4. विघटित अथवा खंडित अर्थव्यवस्था : बृटिश शासकों ने 'विभाजित करो और शासन करो' (Divide and rule) की नीति भारत में अपनायी थी जिससे देश का विभाजन हुआ। हमारी अर्थव्यवस्था पर विभाजन के कई विपरित प्रभाव पड़े जिनकी चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं। विभाजन ने हमारी अर्थव्यवस्था के प्रमुख अंगों को गानो काटकर रख दिया (ampulated) | अतः स्वतंत्रता की पूर्वसंध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था एक खंडित अथवा विघटित अर्थव्यवस्था थी।

5. निर्भर अर्थव्यवस्था : यूटिश शासन से पूर्व भारत एक आत्मनिर्भर देश था। यहाँ के गाँव अलग-अलग स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर इकाई थे और उन्हें बाहरी दुनिया पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था। लेकिन बृटिश शासन की गलत नीतियों के कारण भारत में हस्तशिल्प उद्योग का विनाश हो गया जिससे भूमि पर जनसंख्या का बोझ बढ़ गया। इससे की उत्पादकता कम हो गई और खाद्यान्नों के लिए भी हम दूसरे देशों पर निर्भर रहने लगे। साथ ही भारत उन वस्तुओं के आयात के लिए बाध्य हो गया जिन्हें वह पहले निर्यात करता था। इस प्रकार स्वतंत्रता की पूर्वसंध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था एक निर्भर अर्थव्यवस्था थी।

6. रिक्त अर्थव्यवस्था: स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक रिक्त अर्थव्यवस्था थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारतीय उद्योगों में उनकी क्षमता से भी अधिक काम लिया गया ताकि युद्ध की आवश्यकताएँ पूरी को जा सकें। इससे भारी मिसावट (wear and tear) के कारण मशीनें बेकार हो गईं लेकिन उनके प्रतिस्थापन (Replacement) का प्रयास नहीं किया गया। इससे देश की भौतिक सम्पत्ति (Physical Assets) का क्षय हुआ। इस प्रकार स्वतंत्रता की पूर्वसंध्या पर भारतीय अर्थव्यववस्था एक रिक्त अर्थव्यवस्था थी।

7. अर्द्ध-सामंती अर्थव्यवस्था : ब्रिटिश शासन ने भूमि का स्वामित्व जमींदारों को दे रखा था। ये जमीन्दार काश्तकारों (Tenanis) से ऊँची दरों पर लगान एवं भू-राजस्व वसूलते थे और उनका शोषण करते थे। इसप्रकार जमीन्दार-काश्तकार सम्बन्ध (Landiord-Tenant relations) के रूप में सामंती सम्बन्ध (Feudal relations) का जन्म हुआ। दूसरी ओर उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में पूँजीपतियों ने विभिन्न उद्योगों में निवेश करना प्रारंभ कर दिया। इससे पूँजीपति एवं श्रमिक दो वर्गों का सृजन हुआ। इस प्रकार स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था में सामंती एवं पूँजीवादी दोनों प्रथाओं की विशेषताएँ देखने को मिलीं। इसी कारण से इसे अर्द्ध-सामंती अर्थव्यवस्था कहा गया।

8. कृषि का पिछड़ापन : स्वतंत्रता के समय हमारी कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में थी। जनसंख्या की वृद्धि एवं हस्तशिल्प के ह्रास ने भूमि पर जनसंख्या का बोझ बढ़ा दिया था। इससे कृषि की उत्पादकता एवं विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ा। करीब 72% श्रम शक्ति कृषि में लगी हुई थी जिसका राष्ट्रीय आय में योगदान 51% था। कृषि में उन्नत बीज, रसायनिक खाद एवं आधुनिक यंत्रों (inplements) का प्रयोग नहीं किया जाता था और खेती पुराने ढंग से की जाती थी। सिंचाई की सुविधाओं का नितान्त अभाव था । इसप्रकार यद्यपि कृषि देश की मुख्य पेशा थी फिर भी यह पिछड़ी हुई अवस्था में थी।

9. उद्योगों का पिछड़ापन : स्वतंत्रता के समय हमारे उद्योग भी पिछड़े हुए थे। यद्यपि देश में उद्योगों के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चे पदार्थ एवं सस्ता श्रम उपलब्ध था, फिर भी बृटिश सरकार की शोषण की नीति ने भारतीय उद्योगों को पनपने नहीं दिया। उसका मुख्य उद्देश्य सस्ता दरों पर कच्चे पदार्थ खरीदकर इंगलैंड भेजना तथा बृटिश उद्योगों की तैयार वस्तुओं को मँहगी दरों पर भारत में बेचना था। इसके परिणाम स्वरूप हमारे हस्तशिल्प एवं लघु उद्योग तथा उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योग पनप नहीं सके और हमारी औद्योगिक अर्थव्यवस्था पिछड़ी रह गई ।

10. अविकसित अवसंरचना : अर्थव्यवस्था के विकास के लिए शक्ति, जल, परिवहन एवं संचार, बैंकिंग, बीमा आदि अवसंरचनाओं का विकसित होना आवश्यक है। लेकिन स्वतंत्रता के समय भारत में ये अवसंरचनात्मक सुविधाएँ अल्प विकसित अवस्था में थीं।

29. सड़क परिवहन के तीन लाभों को बताएँ।

उत्तर: सड़क परिवहन के तीन लाभ निम्नलिखित हैं-

(i) सड़क ऊबड़-खाबड़ धरातल और पर्वतों पर बनाई जा सकती है।

(ii) सड़क परिवहन अपेक्षाकृत कम व्यक्तियों, कम दूरी व कम वस्तुओं के परिवहन में कम-खर्चीला है।

(iii) सड़क परिवहन के माध्यम से घर-घर सेवाएँ आसानी से उपलब्ध होती है तथा सामान उतारने-चढ़ाने की लागत भी अपेक्षाकृत कम है।

30. पर्यावरण से क्या अभिप्राय है ? भारत में प्रदूषण की समस्या पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर: "परि" जो हमारे चारों ओर है"आवरण" जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है,अर्थात पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ होता है चारों ओर से घेरे हुए। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत एक इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं।

वायु प्रदूषण: वायु प्रदूषण के अंतर्गत प्राकृतिक व मानवीय क्रियाओं द्वारा उत्पन्न विभिन्न प्रदूषण वायु में इस सीमा तक मिश्रित कर दिये जाते हैं कि उस वायु से मानव व अन्य जीव जन्तु ओ पर हानिकारक प्रभाव पड़ने लगता है। वायु की गुणवत्ता में गिरावट से ही मानव अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो गया है।

जल प्रदूषण :- जल प्रदूषण को पानी में पाए जाने वाले उन सब अजैव, जैव, जैविकीय, रेडियोधर्मी अथवा स्थूल बाह्य पदार्थो के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो इसकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं। इस प्रकार यह पानी में इस प्रकार के अवांछनीय परिवर्तन कर देता है जिससे यह इसके स्वाभाविक प्रयोग कर्ताओ के लिए अनुपयुक्त हो जाता है,

ध्वनि प्रदूषण:- उच्च तीव्रता वाली ध्वनि अर्थात् अवांछनीय शोर के कारण मानव वर्ग में उत्पन्न अशान्ति एवं बेचैनी की दशा को ध्वनि प्रदूषणक

31. बेरोजगारी कैसे एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है ? समझाइए।

उत्तर: (1) आर्थिक समस्या :

(a) मानव शक्ति का व्यर्थ जाना :- इसके कारण मानव शक्ति का उचित उपयोग नही हो पाता है और यह शक्ति व्यर्थ ही चली जाती है

(b) आर्थिक सम्पन्नता में कमी :-बेरोजगारी से प्रति व्यक्ति आय मे गिरावट आती है जिससे जीवन स्तर गिरता है; लोगों की ऋणग्रस्तता एवं निर्भरता में वृद्धि होती है; आर्थिक समस्या बढ़ती है।

(c) औद्योगिक संघर्ष:-मालिको द्वारा बेरोजगारी का लाभ उठाकर कम मजदूरी दी जाती है। पेट भर भोजन न मिलने से मृत्युदर बढ जाती है। फलत: औद्योगिक संघर्ष बढ़ता है ।

(d) निर्धनता मे वृद्धि :- बेरोजगारी मनुष्य को आय के सभी साधनों से वंचित रखती है परिणामस्वरूप वह गरीब हो जाता है

(2) सामाजिक समस्या:

(a) सामाजिक समस्याओं का विस्तार :- जिस देश में बेरोजगारी होती है, उस देश मे नयी-नयी सामाजिक समस्याएँ जैसे-चोरी,डकैती, बेईमानी, अनैतिकता, आदि पैदा हो जाती है जिससे सामाजिक सुरक्षा को खतरा पैदा हो जाता है।

(b) श्रम का शोषण :- मालिक श्रमिकों को कम मजदूरी देकर तथा उनसे अधिक घण्टे काम लेकर उनका शोषण करने में सफल जाते है।

(c) असमानता मे वृद्धि :- बेरोजगारी की मात्रा जितनी अधिक होगी, आय तथा सम्पत्ति के वितरण मे असमानता की मात्रा भी अधिक होगी।

(ब) राजनीतिक अस्थिरता :- व्यक्ति प्रजातान्त्रिक मुल्यो एवं शान्तिपूर्वक साधनों में विश्वास खो बैठते हैं।

32. भारत, पाकिस्तान और चीन में अपनाए गए आर्थिक विकास की  रणनीतियों पर संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें।

उत्तर: भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ तथा 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारंभ किया गया। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के सिद्धांत को अपनाया गया है।

1991 से आर्थिक विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ गई। आर्थिक विकास में सहयोग देने के लिए विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग को भी बढ़ावा दिया गया।

पाकिस्तान 1947 में स्वतंत्र हुआ,इसकी प्रथम पंचवर्षीय योजना 1956 में प्रारंभ की गई। पाकिस्तान में आर्थिक सुधारों का प्रारंभ 1988 में ही किया गया लेकिन उसके अच्छे परिणाम देखने को नहीं मिले क्योंकि देश में जीडीपी की विकास दर में कमी आ गई।

चीन गणराज्य की स्थापना 1949 में की गई तथा उसकी प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारंभ 1953 में किया गया। देश में 1958 में द ग्रेट लीप फॉरवर्ड (GLP) का प्रारंभ किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य वृहत पैमाने पर देश को औद्योगीकरण करना था। चीन में आर्थिक सुधारों का प्रारंभ 1978 में किया गया, जिसके फलस्वरूप देश का तेजी से विकास हुआ।

अथवा

जैविक खेती के लाभों और सीमाओं को बतलायें। क्या यह भारतीय परिस्थितिओं के लिए उपयुक्त है ?

उत्तर: जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है, तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। सन् 1990 के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार आज काफी बढ़ा है।

जैविक खेती से होने वाले लाभ

कृषकों की दृष्टि से लाभ

1. भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है।

2. सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है।

3. रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है।

4. फसलों की उत्पादकता में वृद्धि।

मिट्टी की दृष्टि से लाभ

1. जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।

2. भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती हैं।

3. भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा।

पर्यावरण की दृष्टि से लाभ

1. भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है।

2. मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण मे कमी आती है।

3. कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है ।

4. फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि ।

5. अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का खरा उतरना।

जैविक खेती की सीमाएं-

1. इसमें खाद्य पदार्थों की उत्पादकता बहुत कम होती है।

2. पारंपरिक खेती की तुलना में जैविक खेती से फसलों की उपज काफी कम होती है।

3. जैविक खेती में आधुनिक मशीनों के इस्तेमाल के बजाय मानवीय श्रम की आवश्यकता ज्यादा होती है।

4. इसमें किसानों को कुशलता के साथ ही जैविक खेती के सभी घटकों का ज्ञान भी रखना पड़ता है।

5. पारंपरिक खेती के मुकाबले ऑर्गेनिक खेती करने में ज्यादा समय लगता है।

भारत में जैविक खेती

2003 A Food and Agriculture organisation (FAO) के एक अनुमान के अनुसार भारत में 1426 प्रमाणित जैविक फार्म है जो प्रति वर्ष 14000 टन खाद्य एवं अन्य पदार्थ उत्पादित करते हैं। इसका मतलब यह है कि भारत में जैविक खेती का विकास अभी बहुत ही कम हुआ है। लेकिन भारत में जैविक खेती के विकास की विशाल संभावनाएं है।

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