पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
प्रश्न 1. संस्कृतीकरण पर एक आलोचनात्मक लेख लिखें।
> अथवा संस्कृतीकरण को परिभाषित कीजिए। विभिन्न स्तरों पर इसकी आलोचना
क्यों हुई ?
> अथवा एक संप्रत्यय के रूप में संस्कतीकरण की आलोचना कैसे हई?
उत्तर:
संस्कृतीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ-संस्कृतीकरण की अवधारणा एम.एन. श्रीनिवास ने दी।
संस्कृतीकरण का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसमें निम्न जाति, जनजाति या अन्य समूह
उच्च जातियों विशेषकर, द्विज जाति की जीवन पद्धति, अनुष्ठान, मूल्य, आदर्श, विचारधाराओं
का अनुकरण करते हैं और कालान्तर में अपनी प्रस्थिति को जातीय संस्तरण में ऊँचा उठाने
में सफल होते हैं।
संस्कृतीकरण
की आलोचना :
(1)
दलितों के ऊर्ध्वगामी परिवर्तन को बढ़ा - चढ़ा कर बताना-संस्कृतीकरण की अवधारणा में
सामाजिक गतिशीलता, दलितों के सामाजिक स्तरीकरण में ऊर्ध्वगामी परिवर्तन करती है, को
बढ़ा - चढ़ा कर बताया गया है। कुछ व्यक्ति असमानता पर आधारित सामाजिक संरचना में अपनी
स्थिति में तो सुधार कर लेते हैं लेकिन इससे समाज में व्याप्त असमानता व भेदभाव समाप्त
नहीं हो पाते।
(2)
संस्कृतीकरण केवल उच्च जाति की जीवन - शैली को उपयुक्त मानती है-संस्कृतीकरण की अवधारणा
में उच्च जाति के लोगों की जीवन-शैली का अनुकरण करने की इच्छा को वांछनीय और प्राकृतिक
मान लिया गया है।
(3)
संस्कृतीकरण उच्च जाति को दलितों के प्रति भेदभावं का विशेषाधिकार प्रदान करती हैसंस्कृतीकरण
की पवित्रता और अपवित्रता के जातिगत पक्षों को उपयुक्त मानती है जिससे ये लगता है कि
उच्च जाति द्वारा दलितों के प्रति भेदभाव एक प्रकार का विशेषाधिकार है।
(4)
महिलाओं को निम्न स्थान-संस्कृतीकरण के कारण उच्च जाति के अनुष्ठानों, रिवाजों और व्यवहार
को स्वीकृति मिलने से महिलाओं को निम्न स्थान दिया जाने लगा। इससे कन्या मूल्य के स्थान
पर दहेज प्रथा व अन्य समूहों के साथ जातिगत भेदभाव बढ़ गए हैं।
(5)
संस्कृतीकरण ने कुछ उपयोगी कार्यों को भी गैर - उपयोगी मान लिया है-संस्कृतीकरण ने
दलित संस्कृति एवं दलित समाज के मूलभूत पक्षों को भी पिछड़ापन मान लिया।
प्रश्न 2. पश्चिमीकरण का साधारणतः मतलब होता है पश्चिमी पोशाकों व जीवन
- शैली का अनुकरण। क्या पश्चिमीकरण के दूसरे पक्ष भी हैं ? क्या पश्चिमीकरण का मतलब
आधुनिकीकरण है ? चर्चा करें।
> अथवा : पश्चिमीकरण का क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न पहलुओं की
व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
पश्चिमीकरण का अर्थ-पश्चिमीकरण भारतीय समाज और संस्कृति में लगभग 150 सालों के ब्रिटिश
शासन के परिणामस्वरूप आए परिवर्तन हैं जिसमें विभिन्न पहलू आते हैं जैसे प्रौद्योगिकी,
संस्था, विचारधारा और मूल्य। यह काफी हद तक सही है कि पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक
व जीवन-शैली का अनुकरण ज्यादा किया जाता है। लेकिन यह पश्चिमीकरण का संकीर्ण अर्थ है
क्योंकि इसका सम्बन्ध केवल पोशाक एवं जीवन-शैली से नहीं है। यह प्रक्रिया एक नवीन दृष्टिकोण
पर बल देती है जो मानवतावाद, समानता, प्रजातंत्र और पंथनिरपेक्षता पर आधारित होता है।
पश्चिमीकरण
के विविध पक्ष-पश्चिमीकरण के अनेक पक्ष हैं
(1)
पश्चिमीकरण का तात्पर्य उस पश्चिमी उप सांस्कृतिक प्रतिमान से है जिसे भारतीय जनता
के उस लघु समूह द्वारा अपनाया गया जो प्रथम बार पश्चिमी संस्कृति के सम्पर्क में आए।
(2)
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में भारतीय बुद्धिजीवियों की उपसंस्कृति भी सम्मिलित थी। इनके
द्वारा न केवल पश्चिमी प्रतिमान, चिंतन के प्रकारों, स्वरूपों तथा जीवन शैली को स्वीकार
किया गया वरन् इनका समर्थन तथा विस्तार भी किया गया।
(3)
पश्चिमीकरण में पश्चिमी जीवन-शैली या पश्चिमी दृष्टिकोण के अलावा अन्य पश्चिमी सांस्कृतिक
तत्त्व जैसे नए उपकरणों का प्रयोग, पोशाक, खाद्य-पदार्थ तथा आम लोगों की आदतें और तौर-तरीके
इत्यादि भी सम्मिलित हैं।
(4)
भारतीय कला और साहित्य पर भी पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को पश्चिमीकरण कहा जाता है।
अनेक कलाकार जैसे-रवि वर्मा, अवनिंद्र नाथ टैगोर, चंदू मेनन और बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय
की कलाकृतियाँ व साहित्यिक कृतियों पर पश्चिमी संस्कृति का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता
है। रवि वर्मा की शैली, प्रविधि और कलात्मक विषय पश्चिमी संस्कृति तथा देशज परम्पराओं
से निर्मित हैं।
(5)
आज के युग में पीढ़ियों के बीच संघर्ष और मतभेद को एक प्रकार के सांस्कृतिक संघर्ष
और मतभेद के रूप में देखा जाता है जो कि पश्चिमीकरण का परिणाम है।
पश्चिमीकरण
और आधुनिकीकरण-पश्चिमीकरण अनिवार्य रूप से आधुनिकीकरण नहीं होता। आधुनिकीकरण से आशय
उन परिवर्तनों से होता है जो किसी समाज में प्रौद्योगिकी के बढ़ते हुए प्रयोग, नगरीकरण
साक्षरता में वृद्धि, संचार तथा यातायात के साधनों में वृद्धि, सामाजिक गतिशीलता में
वृद्धि आदि के रूप में दिखाई देती है।
आवश्यक
नहीं कि आधुनिकीकरण के अन्तर्गत आने वाले परिवर्तन पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से
ही उत्पन्न हों। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के बिना भी आधुनिकीकरण हो सकता है। उदाहरणतः
जापान में आधुनिकीकरण पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के बिना ही हुआ है। पश्चिमीकरण
एक तटस्थ प्रक्रिया है अर्थात् अच्छा-बुरे होने का आभास नहीं होता जबकि आधुनिकीकरण
साधारणतः अच्छा ही होता है। अतः आधुनिकीकरण के अनेक प्रतिमान हैं तथा यह सदैव पश्चिमीकरण
का समरूप नहीं होता।
प्रश्न 3. लघु निबन्ध लिखें
1. संस्कार और धर्मनिरपेक्षीकरण
2. जाति और धर्मनिरपेक्षीकरण
3. लिंग और संस्कृतीकरण।
उत्तर:
(1)
संस्कार और धर्मनिरपेक्षीकरण: संस्कार शब्द का अर्थ-विभिन्न कार्यों को पूरा करना संस्कार
कहलाता है। विभिन्न संस्कारों द्वारा सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति होती
है, जिनके करने से मानव सामाजिक प्राणी बनता है। संस्कार के माध्यम से ही व्यक्ति को
नैतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक उपलब्धि की प्राप्ति होती है। वास्तव में संस्कार व्यक्ति
के समग्र जीवन से सम्बन्धित होते हैं। संस्कारों के द्वारा ही पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ,
काम, मोक्ष; विभिन्न ऋण जैसे देव, ऋषि, पित, मातृ ऋण से उऋण की प्राप्ति होती है। हिन्दुओं
में तो विवाह भी एक संस्कार माना जाता है। इन संस्कारों की पूर्ति करके ही मानव एक
सामाजिक प्राणी बनता है।धर्मनिरपेक्षीकरण का अर्थ यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो धर्म के
प्रभाव को कम करती है। यह राज्य की धर्म के पृथक्करण से जुड़ी अवधारणा है।
संस्कार
और धर्मनिरपेक्षीकरण - अधिकांश संस्कार धर्म द्वारा अनुमोदित होते हैं। लेकिन, धर्मनिरपेक्षीकरण
के परिणामस्वरूप नगरीय क्षेत्रों में न केवल संस्कारों एवं अनुष्ठानों के महत्त्व में
कमी हुई है, अपितु इनका संक्षिप्तीकरण भी हुआ है। उदाहरण के लिए हम विवाह संस्कार को
देखें तो पहले दो दिनों में होने वाला संस्कार अब संजीव पास बुक्स दो - तीन घण्टों
में सम्पन्न हो जाता है।
दूसरे,
धर्मनिरपेक्षता के कारण विभिन्न प्रकार के संस्कारों, त्यौहारों, अनुष्ठानों से जुड़े
निषेध, मूल्यों में भी परिवर्तन आ रहा है। आज पारम्परिक त्यौहार जैसे दिवाली, दुर्गापूजा,
गणेश पूजा, दशहरा, करवा चौथ, क्रिसमस त्यौहार मनाए जाते हैं, लेकिन पारम्परिक विधि
- विधान से नहीं, अपनी - अपनी सुविधानुसार। इन त्यौहारों का मुख्य उद्देश्य भी पारम्परिक
नहीं वरन् आधुनिक है। तीसरे, पिछले कुछ दशकों में संस्कारों व धार्मिक अनुष्ठानों के
आर्थिक, राजनीतिक और प्रस्थिति सम्बन्धी आयाम अधिक उभरकर आए हैं । इन अनुष्ठानों के
समय पर पुरुष व महिलाओं को अवसर मिलता है कि वे अपने मित्र-रिश्तेदारों से घुलें -
मिलें और अपनी सम्पत्ति व कपड़े, जेवर पहनकर उनका प्रदर्शन करें। इसमें दिखावे की प्रवृत्ति
ज्यादा है। संस्कार या परम्परा का स्थान कम होता है। चौथे, धर्मनिरपेक्षीकरण के कारण
आज परम्परा व संस्कारों से जुड़ी कर्त्तव्यपरायणता की भावना लगभग खत्म हो चुकी है।
उसके स्थान पर पश्चिमी त्योहारों जैसे वेलेन्टाइन डे, मदर्स डे, फादर्स डे का चलन ज्यादा
हुआ है।
(2)
जाति और धर्मनिरपेक्षीकरण: जाति का अर्थ - जाति अंग्रेजी भाषा में 'कास्ट' का हिन्दी
रूपान्तर है जो पुर्तगाली भाषा के कास्टा से व्युत्पन्न माना जा सकता है, जहाँ इसे
विभेद या मत के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है। जाति में जन्म की सदस्यता पर बल दिया
गया है अर्थात् जाति जन्म से ही व्यक्ति को एक ऐसी सामाजिक स्थिति प्रदान करती है जिसमें
किसी प्रकार का परिवर्तन सम्भव नहीं है तथा इसमें विवाह, खान - पान, कर्मकाण्ड, अनुष्ठान
आदि पर भी कुछ नियंत्रण रहता है।
जाति
एवं धर्मनिरपेक्षीकरण-जाति के धर्मनिरपेक्षीकरण के कारण आज जाति का वह रूप नहीं है
जो इससे पहले पाया जाता था। पारम्परिक भारतीय समाज में जाति व्यवस्था धार्मिक चौखटे
के अन्दर क्रियाशील थी। पवित्रअपवित्र से सम्बन्धित विश्वास व्यवस्था इस क्रियाशीलता
का केन्द्र थी। धर्मनिरपेक्षीकरण के कारण पवित्रता-अपवित्रता सम्बन्धी विचारों का ह्रास
हुआ है तथा आज जाति एक राजनैतिक दबाव समूह के रूप में ज्यादा कार्य कर रही है। समसामयिक
भारत में जाति संगठनों और जातिगत राजनीतिक दलों का उद्भव हुआ है। ये जातिगत संगठन अपनी
मांगें मनवाने के लिए दबाव डालते हैं। जाति की इस बदली हुई भूमिका को जाति का धर्मनिरपेक्षीकरण
कहा गया है।
(3)
लिंग तथा संस्कृतीकरण:
(1)
संस्कृतीकरण की प्रक्रिया स्त्री के लिए परम्परागत जीवन - शैली का समर्थन करती है तथा
यह पुरुष के प्रति आधुनिकीकरण या पश्चिमीकरण हेतु अधिक उदार है। उदाहरण के लिए, उपनिवेशीय
काल में लड़कों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में प्रवेश लेने तथा पाश्चात्य भोजन
तथा भोजन करने की शैली तथा पोशाकों को अपनाने की स्वीकृति मिली हुई थी; लेकिन लड़कियों
को यह स्वीकृति नहीं थी।
(2)
संस्कृतीकरण के अधिकांश समर्थक स्त्री के जीवन को घर की चारदीवारी के अन्दर बिताने
का समर्थन करते हैं। वे स्त्री की माँ, बहिन और पुत्री की भूमिकाओं को बड़े आदर के
साथ प्राथमिकता देते हैं।
(3)
उच्च जाति के अनुष्ठानों, रिवाजों और व्यवहार को संस्कृतीकरण के कारण स्वीकृति मिलने
से लड़कियों और महिलाओं को असमानता की सीढ़ी में सबसे नीचे धकेल दिया गया है। इससे
कन्या मूल के स्थान पर दहेज प्रथा का प्रचलन हुआ।निष्कर्ष-अतः स्पष्ट है कि संस्कृतीकरण
की प्रक्रिया महिलाओं को पुरुषों से अलग दर्शाती है। इस प्रक्रिया में लिंग पर आधारित
सामाजिक भेदभाव के सबूत दिखते हैं । यह महिलाओं की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं लाती
है।