पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
प्र०1. ‘अदृश्य हाथ’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
एडम स्मिथ के अनुसार, “प्रत्येक व्यक्ति अपने लाभ को बढ़ाने की सोचता है और ऐसा
करते हुए वह जो भी करता है, स्वतः ही समाज के या सभी के हित में होता है। इस
प्रकार, ऐसा प्रतीत होता है कि कोई एक अदृश्य बल यहाँ काम करता है, जो इन
व्यक्तियों के लाभ की प्रवृत्ति को समाज के लाभ में बदल देता है।” इस अदृश्य शक्ति
को एडम स्मिथ ने ‘अदृश्य हाथ’ का नाम दिया।
प्र० 2. बाजार पर समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण, आर्थिक दृष्टिकोण से
किस तरह अलग है?
उत्तर-
एडम स्मिथ तथा अन्य चिंतकों ने आधुनिक अर्थशास्त्र की विचारधारा को विकसित किया।
यह विचार इस बात पर आधारित है कि अर्थव्यवस्था को एक पृथक् हिस्से के रूप में पढ़ा
जा सकता है, जो बड़े सामाजिक एवं राजनीतिक संदर्भ से अलग | है, जिसमें बाज़ार अपने
स्वयं के नियमों के अनुसार कार्य करता है।
दूसरी
तरफ, समाजशास्त्रियों ने बड़े सामाजिक ढाँचे । के अंदर आर्थिक संस्थाओं और
प्रक्रियाओं को समझने के लिए एक वैकल्पिक तरीके का विकास करने का प्रयास किया है।
समाजशास्त्रियों का मानना है कि बाज़ार सामाजिक संस्थाएँ हैं, जो विशेष सांस्कृतिक
तरीकों द्वारा निर्मित हैं। इनका मानना है। कि अर्थशास्त्र समाजशास्त्र में रच-बस
गया है।
प्र० 3. किस तरह से एक बाज़ार जैसे कि एक साप्ताहिक ग्रामीण
बाज़ार, एक सामाजिक संस्था है?
उत्तर-
यद्यपि बाजार आर्थिक अंत:क्रिया का स्थल है तथापि ये सामाजिक संदर्भ और सामाजिक
वातावरण पर आधारित है। इसे हम एक ऐसा सामाजिक संगठन भी कह सकते हैं, जहाँ कि विशेष
प्रकार की सामाजिक अंत:क्रियाएँ संपन्न होती हैं।
अनियतकालीन
बाजार (या साप्ताहिक बाज़ार) सामाजिक तथा आर्थिक संगठन की प्रमुख विशेषता है। यह
आसपास के गाँवों को अवसर प्रदान करता है कि जो अपनी वस्तुओं की खरीद-बिक्री के
साथ-साथ एक-दूसरे के साथ अंत:क्रिया करें। गाँवों में, जनजातीय क्षेत्रों में
नियमित बाजारों के अलावा विशेष बाजारों का भी आयोजन किया जाता है। यहाँ विशेष
प्रकार के उत्पादों की बिक्री की जाती है। उदाहरणस्वरूप, राजस्थान में पुस्कर।
यहाँ बाहर के व्यापारी, साहूकार, प्रदर्शक, ज्योतिषी इत्यादि अपनी सेवाओं तथा
उत्पादों के विक्रय के लिए आते हैं।
अतएव,
इस प्रकार के अनियतकालीन बाजार केवल स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं की ही पूर्ति
नहीं करते वरन् वे गाँवों को क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था एवं राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था
से भी जोड़ते हैं। इस प्रकार | से, जनजातीय क्षेत्रों में लोग एक-दूसरे से जुड़ते
हैं, जिससे इस प्रकार के बाजार एक सामाजिक संस्था के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
प्र० 4. व्यापार की सफलता में जाति एवं नातेदारी संपर्क कैसे
योगदान कर सकते हैं?
उत्तर-
पूर्व उपनिवेशकाल तथा उसके बाद, भारत के न केवल भारत बल्कि विश्व के अन्य देशों के
साथ भी विस्तृत व्यापारिक संबंध थे। इस तरह के व्यापारिक संबंध उन व्यापारिक
समूहों के द्वारा बनाए गए, जिन्होंने आंतरिक तथा बाह्य व्यापार किए। इस तरह के
व्यापार समुदाय आधारित रिश्तेदारों तथा जातियों के द्वारा किए जाते थे। इनमें
परस्पर विश्वास, वफादारी तथा आपसी समझ की भावना होती थी। विस्तृत संयुक्त परिवार
की संरचना तथा नातेदारी व जाति के माध्यम से व्यवसाय के निर्माण का उदाहरण हम
तमिलनाडु के चेट्टीयारों के बैंकिंग तथा व्यापारिक क्रियाकलाप के रूप में ले सकते
हैं। वे उन्नीसवीं शताब्दी में बैंकिंग और व्यापार का नियंत्रण पूरी पूर्वी एशिया
तथा सीलोन (नए। श्रीलंका) में करते थे तथा संयुक्त परिवार के व्यवसाय का संचालन
करते थे। यह एक विशेष प्रकार की पितृप्रधान संयुक्त परिवार की संरचना है, लेकिन वे
अपने संबंधों में विश्वास, मातृभाव तथा रिश्तेदारी बनाए रखते हैं।
इसका
तात्पर्य यह हुआ कि भारत में एक देशी पूँजीवादी व्यवस्था थी। जब व्यापार तथा उससे
लाभ अर्जित किया जाता था, तब इसके केंद्र में जाति तथा नातेदारी होती थी।
प्र० 5. उपनिवेशवाद के आने के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था किन
अर्थों में बदली?
उत्तर-
उपनिवेशवाद के आगमन के साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था में गहरे बदलाव आए। उत्पादन,
व्यापार और कृषि का विघटन हुआ। ब्रिटेन के बने सस्ते कपड़ों ने भारतीय हथकरघा
उद्योग को समाप्त कर दिया तथा बुनकर बेकार हो गए।
उपनिवेशकाल
में भारत विश्व की पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से और अधिक जुड़ गया। अंग्रेजों के
द्वारा उपनिवेश बनाए जाने के पूर्व भारत बने-बनाए सामानों के निर्यात का एक प्रमुख
केंद्र था। उपनिवेशवाद के बाद भारत कच्चे माल और कृषक उत्पादों का स्रोत और
उत्पादिक सामानों का उपभोक्ता बना दिया गया। यह दोनों कार्य ब्रिटेन के उद्योगों
को लाभ पहुँचाने के लिए किए गए। पंरतु पहले से विद्यमान आर्थिक संस्थाओं को पूरी
तरह से नष्ट करने के बजाय भारत में बाजार अर्थव्यवस्था के विस्तार में कुछ
व्यापारिक समुदायों के लिए नए अवसर प्रदान किए गए, जिन्होंने बदली हुई आर्थिक
परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको पुनर्गठित किया और अपनी स्थिति को सुधारा। कुछ
मामलों में, उपनिवेश द्वारा प्रदान किए गए आर्थिक सुअवसरों का लाभ उठाने के लिए नए
समुदायों का जन्म हुआ।
इस
प्रकार का सबसे अच्छा उदाहरण मारवाड़ी हैं, जो संभवतः भारत के हर हिस्से में हैं
तथा जाना-माना व्यापारिक समुदाय हैं।
प्र० 6. उदाहरणों की सहायता से ‘पण्यीकरण’ के अर्थ की विवेचना
कीजिए।
उत्तर-
पण्यीकरण तब होता है जब कोई वस्तु बाजार में पूर्व में खरीदी-बेची नहीं जा सकती
हो, किंतु बाद में इसके योग्य हो।
(i)
श्रम और कौशल अब ऐसी चीजें हैं, जो खरीदी और बेची जा सकती हैं।
(ii)
मानव अंगों की बिक्री। उदाहरण के तौर पर, पैसे के लिए गरीब लोगों द्वारा अमीर लोगों
को अपनी किडनी को बेचना।
(iii)
पारंपरिक रूप से पहले विवाह परिवार के लोगों के द्वारा तय किए जाते थे, पर अब सामाजिक
विवाह ब्यूरो की भरमार है, जो वेबसाइट या किसी अन्य माध्यम से लोगों का विवाह तय करते
हैं। पूर्व में पारंपरिक रीति-रिवाज घर के बड़ों के द्वारा किए जाते थे, पर अब यह ठेकेदारों
के माध्यम से कराए जाते हैं।
(iv)
पहले कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि पीने के पानी के भी पैसे लगेंगे। लेकिन इसे हम
आज सामान्य वस्तु की तरह बोतलों में खरीद रहे हैं। अर्थात् वस्तुओं को हम खरीद और बेच
सकते हैं।
प्र० 7.‘प्रतिष्ठा का प्रतीक’ क्या है?
उत्तर-
मैक्स वेबर ने ‘प्रतिष्ठा का प्रतीक’ शब्द का प्रतिपादन किया। यह लोगों की सामाजिक
अवस्था के अनुसार खरीदी जाने वाली वस्तुओं के बीच के संबंध को दर्शाता है अर्थात्
वे वस्तुएँ जिन्हें वे खरीदते तथा प्रयोग में लाते हैं। वे उनकी सामाजिक अवस्था से
निकटतम संबंध रखती हैं। उदाहरण के तौर पर, मोबाइल फोन के ब्रांड अथवा कारों के
मॉडल सामाजिक-आर्थिक अवस्था के महत्त्वपूर्ण चिह्न हैं।
प्र० 8. ‘भूमंडलीकरण’ के तहत कौन-कौन सी प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं?
उत्तर-
भूमंडलीकरण के युग में विश्व के अंतर्संबंध का तेज़ी से विस्तार हुआ है। यह
अंतर्संबंध केवल आर्थिक ही नहीं है बल्कि सांस्कृतिक तथा राजनीतिक भी है।
भूमंडलीकरण के कई रुझान होते हैं, विशेष तौर पर, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं,
पूँजी, समाचार, लोगों एवं तकनीक का विकास। भूमंडलीकरण की एक केंद्रीय विशेषता
दुनिया के चारों कोनों में बाजारों का विस्तार और एकीकरण को बढ़ाना है। इस एकीकरण
का अर्थ है कि दुनिया के किसी एक कोने में किसी बाज़ार में परिवर्तन होता है, तो
दूसरे कोने में उसका अनुकूल-प्रतिकूल असर हो सकता है। उदाहरण के तौर पर, यदि
अमेरिकी बाजार में गिरावट आती है, तो भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग में भी गिरावट आएगी,
जैसा कि हमने न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 के हमले के समय देखा था।
इससे लोगों के व्यापार तथा रोजगार को क्षति पहुँची थी।
प्र० 9. ‘उदारीकरण’ से क्यो तात्पर्य है?
उत्तर-
उदारीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जहाँ आर्थिक गतिविधियों पर सरकारी नियंत्रण को कम
कर दिया जाता है तथा बाजार की शक्तियों को इसका निर्धारण करने के लिए छोड़ दिया
जाता है। सामान्य अर्थों में यह एक प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत सरकारी नियमों तथा
कानूनों को पूँजी, श्रम तथा व्यापार में शिथिल कर देना, सरकारी उपक्रमों का
निजीकरण (सार्वजनिक कंपनियों के निजी कंपनियों के हाथों बेच देना), आयात शुल्क में
कमी करना, ताकि विदेशी वस्तुएँ सुगमतापूर्वक आयात की जा सके, शामिल होती हैं।
1.
इसमें सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण शामिल होता है।
2.
इससे विदेशी कंपनियों को भारत आने में सुविधा होती है।
3.
इसे बाजारीकरण अर्थात् बाजार आधारित प्रक्रिया की सहायता से
आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं का समाधान भी कहा जाता है।
प्र० 10. आपकी राय में, क्या उदारीकरण के दूरगामी लाभ उसकी लागत की
तुलना में अधिक हो जाएँगे? कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
उदारवाद के कार्यक्रम के तहत जो परिवर्तन हुए, उन्होंने आर्थिक संवृद्धि को बढ़ाया
और इसके साथ ही भारतीय बाजारों को विदेशी कंपनियों के लिए खोला। माना जाता है कि
विदेशी पूँजी के निवेश से आर्थिक विकास होता है और रोजगार बढ़ते हैं। सरकारी
कंपनियों के निजीकरण से कुशलता बढ़ती है और सरकार पर दबाव कम होता है। हालाँकि
उदारीकरण का असर मिश्रित रहा है, कई लोगों का यह भी मत है कि उदारीकरण का भारतीय
परिवेश पर प्रतिकूल असर ही हुआ है और आगे के दिनों में भी ऐसा ही होगा। जहाँ तक
मेरा मानना है, लागत और हानि, लाभ से कहीं अधिक ही होगी। सॉफ्टवेयर या सूचना तकनीक
अथवा कृषि, जैसे मछली या फल उत्पादन के क्षेत्र में शायद विश्व बाज़ार में लाभ हो
सकता है, लेकिन अन्य क्षेत्र; जैसे-ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, तैलीय अनाज आदि
विदेशी कंपनियों के उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएँगे।