6.PGT उपभोक्ता संतुलन (Consumer Equilibrium)

उपभोक्ता संतुलन (Consumer Equilibrium)

 उपभोक्ता का संतुलन

प्रो० मार्शल के अनुसार उपभोक्ता का संतुलन उसी बिन्दु पर होगा जहाँ

MUx = Px

अगर एक से अधिक वस्तुयें हैं तब ऐसी स्थिति में

उपभोक्ता का संतुलन =`\frac{MU_x}{P_x}=\frac{MU_y}{P_y}=\frac{MU_n}{P_n}`

मार्शल के उपयोगिता विश्लेषण में निहित मान्यताओ को 'अस्वीकार करते हुए हिक्स एवं ऐलन ने एक वैकल्पिक विचारधारा प्रस्तुत की जिसे उदासीनता वक्र विश्लेषण कहा जाता है।

हिक्स का मत है कि उपयोगिता को मापा नही जा सकता और इसी कारण से उन्होंने उपयोगिता विश्लेषण के स्थान पर तटस्थता वक्र विश्लेषण की रीति को जन्म दिया, जिसमे उपयोगिता को मापने की आवश्यकता नही होती है।

तटस्थता वक्र (उदासीनता विश्लेषण)

हिक्स द्वारा प्रतिपादित उदासीनता वक्र विश्लेषण क्रमवाचक दृष्टिकोण तथा दुर्बल क्रमबद्धता पर आधारित है।

उदासीनता वक्र को समान उपयोगिता वक्र भी कहा जाता है ।

हिक्स के अनुसार उपयोगिता की मौद्रिक माप संभव नही है,क्योकि उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक रूप है, जिसकी हम केवल तुलना करते हैं।

तटस्थता वक्र विश्लेषण मे अनुराग या प्राथमिक क्रम का निर्धारण किया जाता है।

तटस्थता वक्र विश्लेषण की धारणा घटते सीमांत प्रतिस्थापन, `\left(MRS_{xy}=-\frac{\Delta Y}{\Delta X}\right)` नियम पर आधारित है। इस नियम को 'लर्नर, हिक्स और ऐलेन ने दिया है।

 ऐतिहासिक विकास

तटस्थता वक्र विश्लेषण का प्रारम्भ 1881 मे अंग्रेज अर्थशास्त्री एजवर्थ ने किया था।

1906 में इटैलियन अर्थशास्त्री पेरेटो ने एजवर्थ की रीति को अपनाया।

1915 मे रूसी अर्थशास्त्री  स्लट्स्की ने व्याख्या की थी।

1939 मे प्रो. जे.आर.हिक्स ने अपनी पुस्तक 'Value and Capital ने तटस्थता विश्लेषण की विस्तार से व्याख्या की थी।

1956 में हिक्स ने अपनी दूसरी पुस्तक " A Revision of Demand Theory" में इस सिद्धांत का संशोधन प्रस्तुत किया।

 उदासीन वक्र

यह दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न संयोगों का बिंदुपथ होता है जो उपभोक्ता को समान संतुष्टि देते हैं।

इस प्रकार तटस्थता वक्र रेखा का प्रत्येक बिंदु दो वस्तुओं के विभिन्न संयोगो के साथ-साथ संतुष्टि के समान स्तर को बताता हैं

एक उदासीन वक्र संतुष्टि के एक निश्चित स्तर को बताता है।

भिन्न भिन्न संतुष्टि स्तरों को बताने वाले विभिन्न उदासीन वक्रों का समूह उदासीन मानचित्र कहलाता है।

वह रेखाचित्र जो एक से अधिक तथा तटस्थता वक्रो को प्रदर्शित करता है तटस्थता मानचित्र कहलाता है।

→ जो तटस्थता वक्र मूल बिन्दु से जितनी दूर होगा उससे प्राप्त संतुष्टि भी अधिक होगा।

→ उदासीनता वक्र को समान उयोगिता वक्र भी कहते है।

मान्यताएँ

• उपभोक्ता केवल 2 वस्तुओं के उपभोग में ही रुचि रखता है।

• उपभोक्ता विवेकशील होता है।

• वस्तुएं एकरुप एवं विभाज्य होती हैं।

• उपभोक्ता प्राथमिकताओं के आधार पर यह बता सकता है कि वस्तुओं के किस संयोग से उसे अन्य वस्तुओं की अपेक्षा कम या अधिक संतुष्टि मिलती है

• एक उपभोक्ता किसी वस्तु की अधिक मात्रा उस वस्तु की कम मात्रा की अपेक्षा अधिक पसंद करता है।

• उपभोक्ता को बाजार के संबंध में पूर्ण जानकारी है।

• सीमांत प्रतिस्थापन दर घटती जाती है।

तटस्थता की विशेषताएँ

(1) तटस्थता वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है यह बाँए से दाएँ नीचे की ओर गिरता है

(क) तटस्थता वक्र ऊपर उठती हुई रेखा या घनात्मक ढाल वाली नही हो सकती है।

(ख) तटस्थता वक्र लम्बवत नही हो सकता है।

(2) तटस्थता वक्र एक दूसरे को नहीं काटते।

(3) विभिन्न तटस्थता वक्रों का समानांतर होना आवश्यक नहीं।

(4) उँचा तटस्थता वक्र संतुष्टि के अधिक स्तर को प्रकट करता है

(5) तटस्थता वक्र सामान्यतया न तो OX-अक्ष को और न ही OY-अक्ष को छूता है।

(6) पूर्ण स्थानापन्न वस्तुओं के लिए तटस्थता वक्र सीधी रेखा के रूप में होता है क्योंकि सीमांत प्रतिस्थापन दर स्थिर रहती है।

(7) तटस्थता वक्र क्षैतिज नही हो सकता।

(8) तटस्थता वक्र मूल बिन्दु "O" की ओर उन्नतोदर (Convex) है। तटस्थता वक्र की यह विशेषता घटती सीमांत प्रतिस्थापन की दर के नियम पर आधारित है।

a. तटस्थता वक्र सीधी रेखा नहीं हो सकती।

b. तटस्थता वक्र मूल बिंदु की ओर नतोदर (Concave) नहीं हो सकता।

c. यदि दो वस्तुएं एक दूसरे की पूर्ण पूरक हो तो तटस्था वक्र समकोणीय अथवा L-आकार का होता है।

(9) यदि किसी वस्तु के बहुत अधिक प्रयोग से करु ऋणात्मक उपयोगिता प्राप्त होने लगे तो ऐसी स्थिति में उपभोक्ता दूसरी वस्तु का उपभोग कम करने के स्थान पर बढ़ाता है जाता है क्योकि वह तभी पहली वस्तु की ऋणात्मक उपयोगिता की क्षतिपूर्ति कर सकता है। ऐसी स्थिति मे उदासीनता वक्र का रूप गोलाकार भी हो सकता हैं

→ यदि X की Y के लिए सीमांत प्रतिस्थापन दर बढ़ रही हो तो उदासीनता वक्र मूल बिन्दु के नतोदर (Concave) हो जाएगा जो कि सम्भव नहीं है।

 ह्मसमान या घटती सीमांत प्रतिस्थापन दर का नियम

सीमांत प्रतिस्थापन दर (Manginal Rate of substitution)

→ किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता दूसरी वस्तु की जितनी इकाइयों को छोड़ता है, उसे सीमांत प्रतिस्थापन दर कहा जाता है।

→ संतुष्टि के समान स्तर को बनाये रखने के लिए वस्तु-Y की वह मात्रा जो उपभोक्ता वस्तु-X की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए,त्यागने को तत्पर रहता है, X की Y लिए सीमांत प्रतिस्थापन दर कहलायेगी

→ इसे ह्मसमान सीमांत प्रतिस्थापन दर भी कहा जाता है।

→ सीमांत प्रतिस्थापन दर तटस्थता वक्र रेखा के ढाल (Slope) को बताती है।

`MRS=-\frac{\Delta Y}{\Delta X}`

→ MRSxy सदैव क्रम ऋणात्मक होती है।

रेखाचित्र में अनधिमान वक्र IC मूल बिन्दु के प्रति उन्नतोदर है जो सीमान्त प्रतिस्थापन की घटती हई दर को बताता है। रेखाचित्र को देखने से स्पष्ट है कि A से C संयोग पर आने पर उपभोक्ता x वस्तु की 1 इकाई (BC) के लिए वस्तु y की 'AB' इकाई त्यागता है। लेकिन C से E संयोग पर वह वस्तु x की 1 इकाई (DE) के लिए वस्तु y की CD इकाई त्यागेगा जो कि AB से कम है अर्थात् वस्तु x की एक अतिरिक्त इकाई के लिए वस्तु y की पहले से कम इकाइयों का त्याग करेगा।

→ जब उपभोक्ता उदासीनता वक्र पर बायें से दाये नीचे की ओर चलता है तब MRSxy घटती हुई होती है तथा इसी के कारण उदासीनता वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है

 बजट रेखा/कीमत रेखा/ व्यय रेखा/ मूल्य रेखा

→ कीमत रेखा को कीमत अवसर रेखा, कीमत आय रेखा, लागत रेखा, बजट सीमा, व्यय रेखा, उपभोग सम्भावना वक्र भी कहा जाता है।

→ कीमत रेखा दो वस्तुओ के ऐसी विभिन्न संयोगो का बिन्दुपथ है जो एक उपभोक्ता द्वारा दी गई वस्तु कीमतो एंव उपभोग के लिए उपलब्ध आय के साथ खरीद सकता है।

→ बजट रेखा का समीकरण :- Px.X+Py.y =M

→ कीमत रेखा का ढाल = `-\frac{p_x}{p_y}`

→ एक उपभोक्ता दो वस्तुओं को उपभोग करता है, जिनमें वस्तु 1 की कीमत 8 रुपये तथा वस्तु 2 की कीमत 10 रुपये है, उपभोक्ता की कुल आय 80 रुपये है, तो निम्न ज्ञात कीजिए।

(i) बजट रेखा का समीकरण।

(ii) यदि उपभोक्ता अपनी सम्पूर्ण आय वस्तु 1 पर व्यय करे तो वस्तु 1 की कितनी इकाइयों का उपभोग करेगा?

(iii) यदि उपभोक्ता अपनी सम्पूर्ण आय वस्तु 2 पर व्यय करे तो वस्तु 2 की कितनी इकाइयों का उपभोग करेगा?

उत्तर:

(i) माना वस्तु 1 = X1 तथा वस्तु 2 = X2 है तो बजट रेखा का समीकरण निम्न प्रकार होगा।

P1X1 + P2X2 = M

8X1 + 10X2 =80

(ii) उपभोक्ता की कुल आय = 80 रुपये

वस्तु 1 की कीमत = 8 रुपये यदि उपभोक्ता अपनी सम्पूर्ण आय वस्तु 1 पर व्यय करे तो वस्तु 1 की निम्न मात्रा का उपभोग करेगा।

`=\frac{80}8` = 10 इकाइयाँ

(iii) उपभोक्ता की कुल आय = 80 रुपये

वस्तु 2 की कीमत = 10 रुपये यदि उपभोक्ता अपनी सम्पूर्ण आय वस्तु 2 पर व्यय करे तो वस्तु 2 की निम्न मात्रा का उपभोग करेगा।

`=\frac{80}10` = 8 इकाइयाँ

→ बजट रेखा: बजट रेखा या कीमत रेखा किन्हीं दो वस्तुओं के उन सभी संयोगों को दर्शाती है जो एक उपभोक्ता अपनी आय की सीमा के अन्तर्गत एक निश्चित मूल्य पर क्रय कर सकता है।  जब तक वस्तु की कीमतों में परिवर्तन नहीं होगा, Px/Py एक स्थिर राशि होगी जो कीमत रेखा के ढलान को अपरिवर्तित रखेगी।

बजट रेखा का समीकरण निम्न प्रकार है।

P1X1 + P2X2 < M

इसे निम्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता

कीमत रेखा का खिसकना

1. आय में परिवर्तन :-

यदि उपभोक्ता की आय में कमी होती है तो बजट रेखा बदल जाती है। यह बायीं तरफ शिफ्ट हो जाती है क्योंकि अब उपभोक्ता दोनों वस्तुओं की पहले से कम मात्रा ही क्रय कर पाएगा। इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

यदि उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है तो वह दोनों वस्तुओं को पहले से अधिक इकाइयाँ क्रय कर पाएगा। इससे उपभोक्ता की बजट रेखा दायीं तरफ विवर्तित हो जाएगी, जिसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

2. एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन:-

 उदासीन वक्र विश्लेषण में उपभोक्ता संतुलन

→ एक उपभोक्ता संतुलन की अवस्था मे तब होता है जब अपनी सीमित आय की सहायता से वस्तुओं को उनकी दी गयी कीमतो पर खरीदकर अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने मे सफल हो जाता है।

→ उपभोक्ता के संतुलन के लिए निम्न शर्तो का पूरा होना आवश्यक है।

(1) मूल्य रेखा उदासीनता वक्र को स्पर्श करती है

(2) मूल्य रेखा का ढाल उदासीनता वक्र के ढाल के बराबर हो

(3) प्रतिस्थापन की सीमांत दर-मूल्य अनुपात के बराबर हो 

(4) सीमांत प्रतिस्थापन की दर घटती हुई होती है ( MRSxy =`\frac{p_x}{p_y}`)

(5) संतुलन की अवस्था में कीमत रेखा तटस्था वक्र को उन्नतोदर स्थिति में ही स्पष्ट करनी चाहिए

(6) किसी मूल्य रेखा पर दो उदासीनता वक्र स्पर्श नही करते।

(7) यदि MRSxy बढ़ती है तो उदासीनता वक्र नतोदर (Concave) अर्थात् अवतल होती है।

कीमत रेखा को मूल्य रेखा अथवा बजट रेखा के नाम से भी जाना जाता है।

कीमत रेखा दो वस्तुओं के उन संयोगों को व्यक्त करती हैं जो उपभोक्ता अपनी दी हुई आय एवं वस्तुओं की वर्तमान कीमत के आधार पर खरीदता है।

कीमत रेखा में परिवर्तन, आय में परिवर्तन अथवा एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप होता है।

सामान्य वस्तुओं के सन्दर्भ में माँग रेखा का ढाल सदैव ऋणात्मक होता है।

घटिया वस्तुऐ (Giffen goods) वे वस्तुयें होती हैं जिन्हें उपभोक्ता पहले प्रयोग में लाता था लेकिन उसकी आय बढ़ जाने के कारण उसके द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की किस्मों में परिवर्तन हुआ। इस प्रकार बढ़ी हुई आय के पहले उपभोग की जाने वाली वस्तुयें वर्तमान में उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की तुलना में घटिया होती है।

तटस्थता वक्र और कीमत रेखा द्वारा स्थापित किसी भी साम्य में तीन प्रकार के परिवर्तन हो सकते हैं

1. आय प्रभाव (Income effect )

2. कीमत प्रभाव (Price effect)

3. प्रतिस्थापन प्रभाव (Substitution effect)

आय प्रभाव

उभोक्ता की आय में परिवर्तन होने के कारण जबकि,दोनों वस्तुओं की कीमतें तथा उपभोक्ता की रुचि स्थित है,उसकी माँग में जो परिवर्तन होता है उसे आय प्रभाव कहते हैं।

उपभोक्ता के विभिन्न साम्य बिन्दुओं को मिलाने के बाद हमें आय उपभोग रेखा (Income Consumption Curve) प्राप्त होती है जिसे ICC के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। यह रेखा सन्तुलन बिन्दुओं का बिन्दु पथ है। इस प्रकार आय उपभोग रेखा आय प्रभाव को मापती है।

सामान्य प्रकृति में आय उपभोग रेखा बायें से दायें ऊपर उठती हुई होती है जिसके अन्तर्गत आय प्रभाव धनात्मक होता है। ये वस्तुएँ सामान्य वस्तुयें कहलाती हैं।

कुछ परिस्थितियों में आय प्रभाव ऋणात्मक भी होता है। ऋणात्मक आय प्रभाव यह प्रदर्शित करता है कि आय में वृद्धि होने पर उपभोग की जा रही वस्तुओं की माँग घटती है जबकि उन वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होता।

ऋणात्मक आय प्रभाव वाली वस्तुयें निम्न वस्तुयें (Inferior goods) घटिया वस्तुयें (Giffen goods) कहलाती हैं।

आय प्रभाव के सम्बन्ध में दो स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं - जब वस्तु X श्रेष्ठ हो तथा Y वस्तु निम्न हो अथवा जब वस्तु X घटिया हो तथा Y वसतु श्रेष्ठ है।

ऋणात्मक आय प्रभाव की दोनों ही स्थितियों में एक बात ध्यान देने योग्य है, दोनों ही परिस्थितियों में बिन्दु Q के बाद ही वस्तु निम्न बन जाती है, अर्थात् एक निश्चित आय स्तर के बाद ही कोई वस्तु निम्न बनती है।

तटस्थ आय प्रभाव के अन्तर्गत उपभोक्ता किसी एक वस्तु के उपभोग के लिए अविचलित रहता है।

आय में वृद्धि या कमी तटस्थ वस्तु की माँग में वृद्धि या कमी नहीं करती।

सभी प्रकार के आय उपभोग वक्रो को एक ही चित्र की सहायता से प्रदर्शित किया जा सकता है-

चित्र में -

IccI श्रेष्ठ वस्तुओं का आय उपभोग वक्र (धनात्मक) ।

IccII आय उपभोग वक्र जबकि Y वस्तु (तटस्थ है)।

IccIII आय उपभोग वक्र जबकि वस्तु X (तटस्थ है)।

IccIv आय उपभोग वक्र जबकि वस्तु X (ऋणात्मक) ।

Iccv आय उपभोग वक्र जबकि वस्तु X (ऋणात्मक) है।

तटस्थता वक्र विश्लेषण में माँग का नियम स्थापित (ज्ञात) किया जाता है उसे स्लस्की थ्यैरम (Slutsky Therem) के नाम से जानते हैं। जो थ्यैरम इस बात की व्याख्या करता है कि मूल्य परिवर्तन का प्रतिस्थापन प्रभाव सैदव ऋणात्मक होता है।

 प्रतिस्थापन प्रभाव

स्टोनियर और हेग के शब्दों में प्रतिस्थापन प्रभाव तब घटित होता है जबकि वस्तुओं की सापेक्षिक कीमतों में परिवर्तन इस प्रकार होता है कि उपभोक्ता विशेष की स्थिति पहले से न तो अच्छी होती है और न ही बुरी होती है बल्कि उसे अपनी खरीद को नयी कीमतों के अनुसार व्यवस्थित करना पड़ता है।

वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों में अंतर आने पर उपभोक्ता अपने व्यय को सापेक्षिक रूप से सस्ती वस्तु के पक्ष में पुनआवंटित करता है और इन वस्तुओं को महंगी वस्तुओं में प्रतिस्थापित करता है।

प्रो० हिक्स के अनुसार प्रतिस्थापन प्रभाव में उपभोक्ता एक ही उदासीनता वक्र पर एक संयोग बिन्दु से दूसरे संयोग बिन्दु पर स्थानान्तरित हो जाता है।

a. इस चित्र में A बिन्दु से B बिन्दु तक का परिवर्तन प्रतिस्थान प्रभाव है।

b. B से C तक का परिवर्तन आय प्रभाव होगा।

सामान्य वस्तुओं के सन्दर्भ में मूल्य परिवर्तन का आय प्रभाव ऋणात्मक होता है तथा यह ऋणात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव की ओर ले जाता है।

अगर वस्तु घटिया है तो मूल्य परिवर्तन का आय प्रभाव धनात्मक होगा।

जब आय प्रभाव धनात्मक होता है तब ऐसी स्थिति में माँग का नियम क्रियाशील नहीं होता।

स्लस्टकी ने प्रतिस्थापन प्रभाव का एक आशिक परिवर्तन रूप प्रस्तुत किया है।

स्लस्टकी ने प्रतिस्थापन प्रभाव में मौद्रिक आय के परिवर्तन लागत-अन्तर के आधार पर किया जाता है।

स्लस्टकी का प्रतिस्थापन प्रभाव उपभोक्ता की सन्तुष्टि में वृद्धि करता है।

स्लस्टकी प्रतिस्थापन प्रभाव में उपभोक्ता की सन्तुष्टि में परिवर्तन होता है जबकि हिक्स दृष्टिकोण में सन्तुष्टि स्तर एक समान रहता है।

 कीमत प्रभाव (Price Effect)

उपभोक्ता की आय एवं रूचि की स्थिर दशा में उपभोग की किसी एक वस्तु का मूल्य परिवर्तन उसकी माँग में परिवर्तन उत्पन्न करता है जिसे मूल्य प्रभाव या कीमत प्रभाव कहा जाता है।

कीमत प्रभाव में प्रतिस्थापन प्रभाव की भाँति वास्तविक आय को स्थिर नहीं रखा जाता।

कीमत प्रभाव, आय प्रभाव तथा प्रतिस्थापन प्रभाव का योग होता है।

 कीमत प्रभाव, आय प्रभाव तथा प्रतिस्थापन प्रभाव

प्रो० हिक्स के अनुसार एक वस्तु के मूल्य में कमी उस वस्तु की माँग को दो प्रकार से प्रभावित करती है-

a. उपभोक्ता का वास्तविक आय में वृद्धि करके तथा

b. सापेक्षिक मूल्यों में परिवर्तन करके ।

कीमत प्रभाव = आय प्रभाव + प्रतिस्थापन प्रभाव।

प्रतिस्थापन का चिन्ह सदैव ऋणात्मक होता है जिसके अनुसार वस्तु की कीमत एवं मांग में प्रतिस्थापन प्रभाव विपरीत सम्बन्ध स्थापित करता है।

निम्न वस्तुओं के सन्दर्भ में आय प्रभाव तथा प्रतिस्थापन प्रभाव एक ही दिशा में कार्य नहीं करते।

निम्न वस्तुओं के सन्दर्भ में माँग का नियम क्रियाशील होता है क्योंकि आय प्रभाव, प्रतिस्थापन से निर्बल होता है।

उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटेन के सर राबर्ट गिफिन ने माँग के नियम के अपवाद के रूप में विरोधाभास नियम को प्रस्तुत किया था, जिन्हें उन्हीं के नाम पर गिफिन का विरोधाभास कहा जाता है।

ऋणात्मक आय प्रभाव प्रतिस्थापन प्रभाव से बलवान होता है।

निम्न वस्तुओं में -

 ऋणात्मक आय प्रभाव < प्रतिस्थापन प्रभाव

ऋणात्मक आय प्रभाव > प्रतिस्थापन प्रभाव।

प्रो० हिक्स ने गिफिन वस्तुओं के सन्दर्भ में तीन शर्तों का उल्लेख अपनी पुस्तक 'A revision of Demand theory' में किया है निम्न वस्तुओं का ऋणात्मक आय प्रभाव शक्तिशाली हो, उस वस्तु का प्रतिस्थापन प्रभाव कम हो तथा उस वस्तु पर व्यय का एक बड़ा भाग व्यय किया जा रहा हो।

कीमत उपभोग वक्र की सहायता से मांग वक्र की रचना की जाती है।

उदासीनता वक्रों का उपयोग-

A. उपभोग के क्षेत्र में

B. विनिमय के क्षेत्र में

C. उत्पादन के क्षेत्र में

D. राजस्व क्षेत्र में

E. भौतिक नियंत्रण के प्रभाव के मूल्यांकन के क्षेत्र में

F. उत्पादन तथा नगद भुगतान की व्याख्या करने में मजदूरी शर्तें वक्र की व्याख्या करने में

G. निर्देशांक प्रदर्शित करने में

H. बचत योजना प्रदर्शन में।

रूलटस्की प्रतिस्थापन प्रभाव में उपभोक्ता एक ऊँचे उदासीनता वक्र पर पहुँच जाता है और उपभोक्ता की सन्तुष्टि में वृद्धि हो जाती है।

उपभोक्ता की आय और दूसरी वस्तु Y की कीमत स्थिर रहने पर x वस्तु की कीमत का परिवर्तन उसकी मांग में परिवर्तन उत्पन्न करता है, जिसे कीमत प्रभाव कहते हैं।

प्रो० मार्शल द्वारा प्रतिपादित गणनावाचक उपयोगिता (Cardinal appsoach) तथा प्रो० हिक्स द्वारा प्रतिपादित क्रमवाचक (Ordinal opproach) उपयोगिता सिद्धान्त में कुछ समानतायें तथा कुछ असमानताएँ पायी जाती हैं।

दोनों विचारधारायें उपभोक्ता को विवेकशील प्राणी मानते हैं।

दोनों विचाराधाराओं में उपभोक्ताओं के सन्तुलन एक समान शर्तों पर होते हैं

प्रो० तपस मजूमदार ने दोनों विचारधाराओं के अन्तर्विश्लेषणात्मक बताया है।

प्रो० राबर्टसन के अनुसार प्रो० मार्शल तथा प्रो० हिक्स की विचारधाराओं में कोई अन्तर नहीं है, अन्तर केवल पुरानी बात को नये रूप में कहने का है।

राबर्टसन ने उदासीनता वक्र विश्लेषण को 'नई बोतल में पुरानी शराब' (Old wine in a new bottle) कहा है।

उदासीनता वक्र विश्लेषण दुर्बल क्रमबद्धता (week Ordering) पर आधारित है।

उदासीनता वक्र संक्रमकता तथा निरन्तरता की मान्यता पर आधारित है।

अन्तर-

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