21.PGT अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र (International Economics)

अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र (International Economics)

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र का सम्बन्ध उन समस्त आर्थिक सौदों से है जो देश की सीमा से बाहर किये जाते हैं।

♥️ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रभेदक लक्षण (Silent Features of International Trade) -

➡️ भुगतान की समस्या

➡️ साधनों की गतिशीलता

➡️ विभिन्न मौद्रिक इकाइयाँ

➡️ विभिन्न राजनैतिक सीमाएँ

➡️ अधिक दूरी

➡️ विभिन्न बाजार एवं वस्तुयें

➡️ विभिन्न वैधानिक प्रणालियाँ

➡️ विभिन्न लोग

♥️ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ

➡️ विशिष्टीकरण एवं श्रम विभाजन

➡️ एकाधिकारात्मक प्रवृत्ति पर रोक

➡️ अविभेदात्मक प्रकृति

➡️ समस्त देशों के हितों की रक्षा

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की बढ़ावा

➡️ प्राकृतिक साधनों का अनुकूलतम प्रयोग

➡️ उन्नत जीवन का माध्यम

➡️ श्रम एवं पूँजी के गुणात्मक परिवर्तन

➡️ राष्ट्रीय व्यापार देश की भौगोलिक सीमा के अन्तर्गत कियाजाता है, जबकि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भौगोलिक सीमा के बाहर किया जाता है।

➡️ प्रो0 ओहलिन के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अर्न्तक्षेत्रीय व्यापार की केवल एक विशिष्ट दशा है।

➡️ देशों के बीच साधनों की गतिहीनता केवल सापेक्षिक है।

➡️ वणिकवादी अत्यधिक राष्ट्रवादी अर्थशास्त्री थे।

➡️ एडम स्मिथ ने वणिकवादियों की व्यापार के संदर्भ में प्रतिबन्धित नीति का कड़ा विरोध किया।

➡️ एडम स्मिथ ने प्राकृतिकवादियों द्वारा प्रदत्त "रोको मत, जाने दो" (Laisserfaire Laisser Passer) के बारे में लिपटी हुई अहस्तक्षेप नीति को बिना शर्त समर्थन दिया।

➡️ यद्यपि प्रतिष्ठित सिद्धान्त के सारभूत उद्भव का सम्बन्ध डेविट ह्यूम और एडम स्मिथ से जोड़ा जाता है, तथापि इसका वैज्ञानिक रूप सर्वप्रथम डेविड रिकार्डों द्वारा प्रस्तुत किया गया।

➡️ स्वतंत्र व्यापार सिद्धान्त को ह्यूम का योगदान सर्वप्रथम सन् 1752 में प्रकाशित उनकी पुस्तक Political Discourses में मिलता है। निःसंदेह यह कृति स्मिथ की कृति से भी मौलिक है।

➡️ एडम स्मिथ ने 1776 में Wealth of Nations का प्रकाशन किया।

➡️ लागतों में निरपेक्ष अन्तर के सिद्धान्त का प्रतिपादन एडम स्मिथ ने किया।

➡️ Principal of Political Economy & Taxation नामक पुस्तक की रचना 1817 में डेविड रिकार्डो ने की।

➡️ लागतों में तुलनात्मक अन्तर के सिद्धान्त का प्रतिपादन डेविड रिकार्डों ने किया।

➡️ रिकार्डों का तुलनात्मक अन्तर के सिद्धान्त इनके मूल्य  के श्रम सिद्धान्त पर आधारित है।

➡️ जे. एस. गिल ने प्रतिपूरक मांग वक्रो (Reciprocal demand Curve) का प्रतिपादन किया।

➡️ "Essay ot the External Corn Trade " 1815 की रचना राबर्ट टारेन्स ने किया।

➡️ Studies in the theory of international Trade की रचना जैकब वाइनर ने किया।

➡️ Economics की रचना सैम्यूलसन ने की।

➡️ अवसर लागत (Opportunity Cost ) की रचना हैबरलर ने की है।

➡️ साधन समानुपात विश्लेषण (Facter Proportion analysis) की रचना हेक्चर ओहलिन ने किया है।

➡️ हेक्चर ओहलिन के अनुसार राष्ट्रीय कीमतों की सापेक्षिक भिन्नताओं को प्रमाणित करने वाले घटकों में साधनों की उपलब्धता (Factor endowments) एक महत्वपूर्ण घटक हैं।

➡️ हेक्चर ओहलिन व्यापार मॉडल की वैधता की परख हेतु किये गये अध्ययनों में सर्वाधिक चर्चित अध्ययन अमेरिकन अर्थशास्त्री लियोन्टिफ (Lenotief) का है।

➡️ लियोन्टिफ ने 1947 को आधार वर्ष मानकर अमेरिका के 192 उद्योगों के लिए Input-Output सारणी विकसित किया।

➡️ स्टोल्पर सैम्यूल्सन प्रेमय (Stolper Samulrson theoran) सन् 1941 ई0 में W.W. Stolper & Paul Samuelson के हेब्सर ओहलिन के प्रमेय के आधार पर व्यापार का राष्ट्रीय आय के क्रियात्मक वितरण से सम्बन्धित प्रभाव का सरल व स्पष्ट तर्क प्रस्तुत किया।

➡️ स्टोल्परर - सैम्यूलसन प्रमेय के अनुसार यदि व्यापार के बाद किसी एक वस्तु के उत्पादन में वृद्धि होती है तो उसमें गहनता से प्रयुक्त साधन की तुलनात्मक एवं निर्पेक्ष आय में वृद्धि होगी, अर्थात् स्वतंत्र व्यापार तुलनात्मक रूप से प्रचुर साधन को लाभ तथा दुर्लभ साधन को हानि पहुंचाता है। यही वास्तव में 'Stolper Samulson' प्रमेय है।

➡️ Box Diagram वाक्स डाईग्राम का प्रतिपादन एगवर्थ ने किया।

➡️ व्यापार अधिमान वक्र (Trade indifferince Carve) की व्याख्या प्रो0 मीड (Meade) ने की हैं।

➡️ प्रो० टाजिंग ने व्यापार शर्तों की विवेचना करते हुए अदल- बदल व्यापार शर्तों की धारणा का परिचय दिया।

Net Bartev terms of trade Ti`\frac{P_x}{P_m}`

➡️ सकल वस्तु विनिमय व्यापार शर्ते (Gross Bartev terms of Trade) T2`\frac{Q_m}{Q_x}`

➡️ आय व्यापार शर्तें (Income Terms of Trade) का प्रतिपादन जी. एस. डोरेन्स एवं एच. स्टेहल ने प्रस्तुत किया।

➡️ आय व्यापार शर्तें T3= Px `\frac{Q_x}{P_m}`

➡️ एक साधनात्मक व्यापार शर्ते (Single facteral Terms of Trade) का प्रतिपादन जैकब वाइनर ने किया।

➡️ एक साधनात्मक व्यापार शर्तें Tu`\frac{P_x}{P_m}` Zx

➡️ द्विसाधनात्मक व्यापार शर्ते (Double factoral Terms of Trade) Ts`\frac{P_x}{P_m}`.`\frac{Z_x}{Z_m}`

➡️ वास्तविक लागत व्यापार शर्ते (Real Cost Terms Trade) T= `\frac{P_x}{P_m}`.Zx. Px

➡️ उपयोगिता व्यापार शर्ते (Utility terms of trade) T7 =`\frac{P_x}{P_m}`.Zx. Rx. Um

 व्यापार की शर्तों को प्रभावित करने वाले तत्व-

♥️ आर्थिक विकास

♥️ निर्यातों तथा आयातों की माँग

♥️ प्रशुल्क

♥️ अवमूल्यन

➡️ अवमूल्यन के अन्तर्गत विदेश की मुद्रा के रूप में घरेलू मुद्रा के मूल्य में ह्रास होता है।

➡️ अवमूल्यन के कारण घरेलू मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है तो उस देश की व्यापार शर्तें विपक्ष में हो जायेंगी क्योंकि निर्यातों कें मूल्य विदेशी मुद्रा के रूप में गिर जाते हैं तथा आयातों के मूल्य में घरेलू मुद्रा के रूप में वृद्धि हो जाती है।

➡️ डी ग्राहम के अनुसार अवमूल्यन से व्यापार की शर्तें सम्भवतः अपरिवर्तनीय रहती है।

➡️ "Towards a new Trade Policy for development" की रचना रॉल प्रेविश ने की है।

➡️ प्रो० प्रेविस का तर्क है कि दीर्घकाल में निर्मित वस्तुओं के मूल्यों की अपेक्षा प्राथमिक उत्पादों के मूल्यों में ह्रास की दीर्घकालीन प्रवृत्ति होती है।

➡️ प्रो0 सिंगर का तर्क है कि प्राथमिक वस्तुओं को उत्पादित करने वाले देशों की व्यापार शर्तों के बिगड़ने की अपनी पृथक व्याख्या प्रस्तुत करते हैं।

➡️ जगदीश भगवती के अनुसार अर्द्ध विकसित देशों की व्यापार शर्तें के प्रतिकूल होने का प्रमुख कारण "दरिद्रता को विकसित करने वाला विकास (Immisering Growth) है।

➡️ अर्द्ध विकसित देशों की व्यापार की शर्तों के प्रतिकूल होने का कारण एंजल के नियम की क्रियाशीलता है।

➡️ लिंडर का तर्क है कि अर्द्ध विकसित देशों की व्यापार की शर्तें के प्रतिकूल होने में मध्यस्थ वस्तुओं (Intermediate goods) की अल्पता निर्णायक भूमिका निभाती है।

➡️ Money credit & Commerce की रचना प्रो० मार्शल ने की है।

➡️ हर्टले विर्देश के अनुसार- विदेशी विनियम अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा परिवर्तन की कला एवं विज्ञान है।

➡️ सेयर्स के अनुसार - करेन्सियों के एक दूसरे में प्रकट किये गये मूल्यों को ही विदेशी विनिमय दर कहा जाता है।

➡️ विनिमय विपत्र (Bills of Exchange) यह अन्तर्राष्ट्रीय भुगतान का सबसे पुराना तथा लोकप्रिय ढंग है।

➡️ तकसाली समता नियम (Mint Parity Theory) का निर्धारण स्वर्णमान देशों की मुद्रा इकाइयों के मध्य विनिमय दर के निर्धारण की व्याख्या प्रस्तुत करता है।

➡️ सन् 1920 ई0 के पश्चात् ब्रिटेन तथा अमरीका में स्वर्णमान विद्यमान था।

➡️ क्रय शक्ति समता सिद्धान्त की व्याख्या सर्वप्रथम रिचर्ड हीटले ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Remarks on Currncy & Comerce 1802 में की थी।

➡️ गस्टाव ने कौशल द्वारा इस सिद्धान्त का विकास प्रथम युद्ध के प्रारम्भ होने पर स्वर्णमान के खण्डन के पश्चात् किया गया।

➡️ भुगतान शेष सन्तुलन सिद्धान्तों के अनुसार विदेशी विनिमय दर उन स्वायत्त तत्वों द्वारा निर्धारित होती है जो आन्तरिक मूल्यों तथा मुद्रा पूर्ति से सम्बन्धित नहीं है।

➡️ रेंगती हुई विनिमय दर का निर्धारण विलियम फेलनर, जे. ब्लैक तथा जेम्रू मोड हैं।

➡️ अन्तर पड़ने (Arbitage) से तात्पर्य न्यूनतम लाभ पर एक बाजार में किसी मुद्रा के क्रय तथा दूसरे बाजार में उसके विक्रय से है।

➡️ भुगतान सन्तुलन उस समयावधि में सम्बन्धित देश के निवासियों के बीच समस्त आर्थिक लेन-देन का क्रमबद्ध विवरण है।

➡️ व्यापार शेष आयात एवं निर्यात मूल्यों का अन्तर मात्र है तथा व्यापार शेष किसी भी देश के भुगतान सन्तुलन का बड़ा हिस्सा है।

➡️ किसी देश का भुगतान सन्तुलन उस समय असन्तुलन की स्थिति में होता है जब विदेशी विनिमय की स्वयं स्फूर्ति पूर्ति एवं स्वयं स्फूर्ति मांग के बराबर हो।

➡️ डयूनजबरी तथा गुन्नार मिर्डल के अनुसार अर्द्ध विकसित देशों के सन्तुलन में असाम्यता का कारण प्रदर्शन प्रभाव है।

➡️ अवमूल्यन (Devaluation) में देश अपनी चलन इकाई के वाह्य मूल्य में कमी करता है।

➡️ भारत ने सर्वप्रथम 20 सितम्बर, 1949 को अपनी मुद्रा का अवमूल्यन सोने के संदर्भ में किया।

➡️ भारत ने पुनः 6 जून, 1966 को रुपये का 36.5 प्रतिशत अवमूल्यन सोने के संदर्भ में किया।

➡️ 1 तथा 3 जुलाई, 1991 को भारत में पुनः चार राष्ट्रों की मुद्राओं के परिप्रेक्ष्य में (डालर, फ्रैंक, येन तथा मार्क) 18.5 प्रतिशत अवमूल्यन किया।

➡️ कीन्स ने निवेष गुणक की विस्तृत विवेचना 1936 में किया।

➡️ रोजगार गुणाक की धारणा को आर.एफ. काहन ने विकसित किया।

➡️ राष्ट्रीय आय Y = C+I+X-M

➡️ विनिमय नियंत्रण का पूर्ण रूपेण उपयोग 1934 में जर्मनी के हालमर शाह ने किया।

➡️ प्रशुल्क संरक्षणात्मक विधि का एक रूप है जो एक ओर तो उपभोक्ता के उपभोग की उन वस्तुओं जिनको वह अधिक प्राथमिकता देता है, के उपयोग में कटौती करके उसके चयन की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लाता है तथा साधनों को एक उपयोग के स्थान पर दूसरे उपयोग में स्थानान्तरित करता है।

➡️ समंजीमान कर (Sliding scale duties) उन करों को जो वस्तुओं के मूल्यों के साथ-साथ परिवर्तित होते रहते हैं।

➡️ आय प्रशुल्क का उद्देश्य राजस्व प्राप्त करना होता है।

➡️ संरक्षणात्मक प्रशुल्क (Protective tarift) जब गलाकाट विदेशी प्रतिस्पर्धा से घरेलू उद्योगों के संरक्षण देनेके उद्देश्य से घरेलू उत्पाद से प्रतियोगिता करने वाली विदेशी वस्तुओं के आयात पर कर लगाया जाता है तो उसे संरक्षणात्मक प्रशुल्क कहते हैं।

➡️ दोहरे प्रशुल्क (Double column Tariff) प्रशुल्क की इस प्रणाली में समस्त अथवा कुछ ही वस्तुओं के लिए करों की दरों का निर्धारण किया जाता है।

➡️ सामान्य तथा परम्परागत तटकर, सामान्य प्रशुल्क राज्य के प्रशासन द्वारा निर्धारित होती है जब कि परम्परागत टैरिफ व्यापारिक संधियों का परिणाम है।

➡️ किण्डलवर्गर प्रशुल्क के 8 प्रभावों की चर्चा करते हैं-

♥️ संरक्षण प्रभाव

♥️  उपभोग प्रभाव

♥️ राजस्व प्रभाव

♥️ व्यापार शर्त

♥️ प्रतिस्पर्धात्मक प्रभाव

♥️ आय प्रभाव

♥️ भुगतान प्रभाव

 इष्टतम प्रशुल्क (Optimum Tariff)

➡️ जब अनुकूल व्यापार शर्त के कारण प्राप्त लाभ और व्यापार की मात्रा में हुई कमी के कारण हुई हानि का अन्तर धनात्मक तथा अधिकतम होता है तो वह इष्टतम प्रशुल्क की स्थिति होती है।

➡️ कोटा (Quota) किसी निश्चित समयावधि में देश में आयात होने वाली अथवा निर्यात होने वाली वस्तु की कुल मात्रा अथवा इसके कुल मूल्य की सीमित करती है।

➡️ राशिपातन किसी वस्तु को विदेश में ऐसे मूल्य पर बेचने से लिया जाता जो कि उसी समय पर तथा उन्हीं दशाओं के अन्तर्गत स्वदेश में बेचने के मूल्य से कम हो।

➡️ राशिपातन विदेश में वस्तु की उत्पादन लागत से कम दर बेचने की क्रिया है।

➡️ स्थायी राशिपातन में एक देश दूसरे देश में स्थायी रूप से कम कीमत पर वस्तुयें बेचता है।

➡️ कार्टेल्स (Curtails) यह एक व्यापारिक समझौता है जो बाजार मूल्य, व्यापार शर्त एवं अन्य दशाओं में प्रतियोगिता को प्रतिबंधित करने के लिए किया जाता हैं।

➡️ क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण - (European Monetary Aggriment) Europian Common Market (Ecm) 1970

♥️ EAGGE 14 जनवरी 1962

♥️ EFTA 1960

♥️ CMEA- 1949

♥️ LAFTA - 1960

♥️ ASEAN- 8 अगस्त 1967

♥️ SAARC - 1981

♥️ APEC - 1989

♥️ NAFTA 12 अगस्त, 1992

♥️ G-7 1975

♥️ G-15-1989

♥️ WTO - 1995

➡️ The Costum Union Issue नामक पुस्तक की रचना 1950 में जैकब वाइनर ने की।

➡️ The Theory of Custom Union की रचना 1955 में मीड ने की है।

➡️ व्यापार सृजन (Trade creation) के अन्तर्गत चुंगी संघ के सदस्य देशों के मध्य व्यापार में विस्तार होता है।

➡️ व्यापार दिशा परिवर्तन (Trade Diversion) में व्यापार की मात्रा में हुए दिशा परिवर्तन का उल्लेख किया जाता है।

➡️ चुंगी संघ के संदर्भ में उपभोग में प्रतिस्थापन प्रभाव के संदर्भ में महत्व की चर्चा प्रो0 मीड़ तथा लिप्से ने किया है।

➡️ 1949 में डा.पी. एस. देशमुख की अध्यक्षता में भारत में राजकीय व्यापार के संदर्भ में समिति गठित की गयी।

➡️ राज्य व्यापार निगम (STC) की स्थापना 1956

➡️ 1944 में Bretain Woods Committe के परिणाम स्वरूप I.M.F.& World Bank की स्थापना की निर्णय लिया गया।

➡️ GATT 1 जनवरी, 1948 से क्रियाशील हो गया।

➡️ 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गयी।

➡️ TRIPS (Trade Releted Intellectual Property Rights) यह डंकल समझौते का सबसे विवादास्पद पहलू हैं।

➡️ Most Favoured Nations (MFN) यह निर्देश देता है कि सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के संदर्भ में सभी देशों के साथ समान व्यवहार किया जायेगा।

➡️ विश्व व्यापार संगठन का प्रथम ऐतिहासिक सम्मेलन 9-13 दिसंबर, 1996 में सिंगापुर में सम्पन्न हुआ।

➡️ जुलाई, 1944 में न्यू हैम्पशायर नामक स्थान पर 44 राष्ट्रों का एक सम्मेलन हुआ।

➡️ 1 जुलाई से 22 जुलाई, 1944 तक ब्रेटवुड्स सम्मेलन के तहत 25 दिसंबर 1944 ई0 को विश्व बैंक का जन्म हुआ।

➡️ भारत विश्व बैंक का संस्थापक सदस्य था।

➡️ 1 अक्टूबर, 1959 ई० को अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ की स्थापना अमरीका राष्ट्रपति आइजन हॉवर ने किया।

➡️ एशियाई विकास संघ की स्थापना 19 दिसम्बर, 1966 को की गई।

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार उत्पन्न होने का प्रमुख कारण उत्पादित वस्तुओं की लागतों के मध्य मिलता है।

➡️ प्रस्ताव वक्र की सकल संकल्पना का विचार प्रो० मार्शल ने किया।

➡️ Reciprocal demond की रचना जे. एस. मिल ने की।

➡️ एडम स्मिथ स्वतंत्र व्यापार (Free trade) तथा अहस्तक्षेप नीति (Laisser Paire Patiey) का समर्थन किया।

➡️ अनुपातिक लागतों की स्थिति में दो देशों के मध्य व्यापार नहीं होगा, क्योंकि व्यापार से दोनों देशों को लाभ नहीं हो रहा है।

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अर्न्तक्षेत्रीय व्यापार की एक विशिष्ट दशा है। यह कथत ओहलिन के हैं।

➡️ तुलनात्मक लागतों में अन्तर का सिद्धान्त रिकार्डों ने प्रतिपादित किया।

➡️ प्रतिपूरक मांग का विचार जे.एस. मिल ने प्रस्तुत किया।

➡️ प्रो० मार्शल अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में विनिमय दर प्रस्तुत करने के लिए देय वक्र (Offer Carve) प्रस्तुत किया।

➡️ टाजिंग ने तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की मौद्रिक व्याख्या प्रस्तुत की।

➡️ रिकाडों का तुलनात्मक लागत सिद्धान्त स्थिर लागत दशाओं पर आधारित है।

➡️ हैवरलर के अनुसार बढ़ती हुई लागत की दशा में आशिंक विशिष्टीकरण संभव है।

➡️ Inter Regional & International Trade नामक पुस्तक की रचना ओहलिन ने किया।

➡️ यदि देश एक में वस्तु A और B की श्रम लागतें क्रमश: a1 तथा b2 है तथा दूसरे देश में यह लागते क्रमश: a2 तथा b2 है तो तुलनात्मक अन्तर = `\frac{a_1}{a_2}<\frac{b_1}{b_2}<1` 

➡️ मूल्य का श्रम सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रतिष्ठित सिद्धान्त का आधार है। इसका समर्थन जे. एस. गिल ने किया ।

➡️ शुद्ध वस्तु विनिमय शर्त =  निर्यात कीमत सूचकांक /आयात कीमत सूचकांक

➡️ जे.एस. मिल ने व्यापार की शर्तों के निर्धारण में माँग की लोच को सबसे महत्वपूर्ण घटक माना है।

➡️ सिंगर, प्रेविस, मिण्ट, लुइस, मिर्डल जैसे अर्थशास्त्रियों का विचार है कि UDCS की व्यापार की शर्तें दीर्घकाल में प्रतिकूल होने की होती है।

➡️ किण्डल वर्गर इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते।

➡️ व्यापार की शर्तों का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर दो देशों में प्रस्ताव वक्र एक दूसरे को काटते हैं।

➡️ प्रशुल्क का प्रभाव देश के देय वक्र की लोच पर निर्भर करता है।

➡️ राबर्टशन उपयोगिता व्यापार की शर्तों को वास्तविक व्यापार शर्त कहा है।

➡️ व्यापार शर्तों में सुधार के लिए प्रशुल्क तभी प्रभावी होता है जब प्रशुल्क लगाने वाले देश की वस्तु की माँग विदेशी बाजार में बोलेचदार है।

➡️ द्विपरकीय व्यापार शर्त दो देशों के आयातों तथा निर्यातों के उत्पादकता व कीमत सूचकांकों को शामिल करता है।

➡️ फ्रेडरिक लिस्ट, हैमिल्टन जैसे अर्थशास्त्रियों ने संरक्षण की नीति का समर्थन किया।

➡️ प्रेविस, सिंगर गुजार मिर्डल जैसे अर्थशास्त्री अर्द्ध विकसित राष्ट्रों के लिए संरक्षण की नीति उचित मानते हैं।

➡️ प्रो0 हर्शमैन ने भी संरक्षण का समर्थन किया।

➡️ डॉ. ग्राफ ने अनुकूलतम प्रशुल्क की श्रेष्ठता को प्रमाणित किया।

➡️ प्रशुल्क (Tariff) सरकार को आय प्रदान करती है। प्रशुल्क विदेशी प्रतियोगिता से घरेलू बाजार को संरक्षण देता है।

➡️ शिशु उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए संरक्षण की नीति आवश्यक है।

➡️ एलेक्जेण्डर हेमिल्टन ने संरक्षण की नीति का सुझाव सर्वप्रथम दिया।

➡️ आयातों को नियंत्रित करने के लिए कोटा का प्रयोग किया जाता है।

➡️ व्यापार शेष (Balance of Trade) के अन्तर्गत केवल दृश्य आयात निर्यात मदों का समावेश होता है जबकि भुगतान शेष के अन्तर्गत दृश्य तथा अदृश्य दोनों मदों का समावेश होता है।

➡️ भुगतान सन्तुलन की संरचना मे लेनदारी व देनदारी की मदों को सम्मिलित किया जाता है।

 भुगतान शेष के असन्तुलन को दूर करने के मौद्रिक उपाय

➡️ गैर मौद्रिक उपाय- आयातों पर प्रतिबन्ध

♥️ आयात अभ्यांश

♥️ प्रशुल्क

♥️ निर्यात प्रोत्साहन

♥️ मुद्रा का संकुचन

♥️ विनिमय नियंत्रण

♥️ अवमूल्यन

♥️ विनिमय मूल्य ह्रास

➡️ विनिमय नियंत्रण एक सरकारी नियमन है।

➡️ विनिमय नियंत्रण की प्रत्यक्ष विधियाँ-

♥️ सरकारी हस्तक्षेप विनिमय प्रतिबन्ध

♥️ विनिमय समाशोधन समझौते

♥️ भुगतान समझौते

♥️ स्वर्ण नीति

♥️  यथा स्थिर समझौते

♥️  विलम्ब काल हस्तान्तरण

♥️ विनिमय समानीकरण खाता

➡️ भुगतान सन्तुलन सदैव सन्तुलित रहता है।

➡️ The Balance of Payment नाम पुस्तक की रचना जे. एम. मीड ने की है।

➡️ वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण में अधिक सामान्जस्य भाव लाने में विश्व व्यापार संगठन मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक से सहयोग करेगा।

➡️ डंकल प्रस्ताव बौद्धिक सम्पदा अधिकार से सम्बन्धित पहलू है।

➡️ W.T.O. की परिधि में कृषिगत वस्तुओं का व्यापार सम्मिलित नहीं है।

➡️ GATT की समाप्ति 12 दिसंबर, 1995 को हुई।

➡️ 1 जनवरी, 1995 को W.T.O. उरुग्वे दौर में अस्तित्व में आया।

➡️ GATT जनवरी 1948 में लागू हुआ।

➡️ सबसे अधिक प्रय राष्ट्र (Most Faroured Nations) का विचार GATT. से सम्बन्धित है।

➡️ Watch Dog of International Trodi के नाम से GATT को जाता है।

➡️ Miga को विश्व बैंक समूह में विकासशील देशों में इक्यूटी विनियोग तथा दूसरे अन्य प्रत्यक्ष विनियोग प्रोत्साहित करने के लिए गठित किया गया।

➡️ IDA अपने प्रदत्त ऋणों से अपने सदस्य देशों से कोई ऋण नहीं लेता।

➡️ (Soft Loan Agevery) सुलभ ऋण देने वाली संस्था के नाम से IDA को जाना जाता है।

➡️ I.D.A., IBRD की पूरक संस्था है।

➡️ I.D.A. (अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ) की स्थापना 24 सितम्बर, 1960 को की गयी।

➡️ I.F.C. (अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम) की स्थापना 1956 में की गयी।

➡️ एक देश I.M.F. का सदस्य होने पर स्वतः ही विश्व बैंक का सदस्य हो जाता है।

➡️ विश्व बैंक जून 1946 से कार्य प्रारम्भ किया। यह दीर्घकालीन ऋण देता है।

➡️ विश्व बैंक अपने सदस्य राष्ट्रों को ढाँचागत सुविधाओं तथा आर्थिक विकास केलिए ऋण प्रदानकरता है।

➡️ बहुपक्षीय विनियोग गारण्टी अभिकरण (MIGA) विश्वबैंक समूह से जुड़ा है।

➡️ विश्व बैंक समूह में IFC, MIGA तथा IDA जुड़े हैं। +

➡️ Bretain woods canfrence का परिणाम L.M.E. तथा IBRD है।

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम का उद्देश्य पूजी तथा प्रबन्ध में समन्वय करना है।

➡️ SDR को कागजी स्वर्ण (Paper gold ) gold) के नाम से जाना जाता है।

➡️ IMF में अभ्यंस सदस्य देश 25 प्रतिशत डालर में तथा 75 प्रतिशत घरेलू में मुद्रा में जमा करते हैं।

➡️ IMF की स्थापना 27 दिसंबर 1945 को की गयी किन्तु संगठन ने 1 मार्च, 1947 से वास्तविक रूप से कार्य प्रारम्भ किया।

➡️ वर्तमान समय में IMF द्वारा प्रत्येक देश की मुद्रा की इकाई का मूल्य SDR में निर्धारित किया जाता है।

 IMF के कार्य-

➡️ सदस्य देशों के प्रतिकूल भुगतान असन्तुलन को सन्तुलित करना।

➡️ IMP द्वारा SDR के रूप में ऋण देना तथा अन्य देशों की मुद्राओं में ऋण देना।

➡️ दुर्लभ मुद्रा की राशनिंग

➡️ सदस्य देशों को पुर्नक्रय

➡️ सदस्य देशों को संरचनात्मक समायोजन सुविधा

➡️ विदेशी विनिमय नियंत्रण सम्बन्धी सलाह।

 अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के उद्देश्य

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को प्रोत्साहित करना

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सन्तुलित विकास करना

➡️ विनिमय दरों में स्थिरता बनाए रखना

➡️ बहु पक्षीय भुगतानों की व्यवस्था स्थापित करके विनिमय प्रतिबंधों को समाप्त करना या कम करना

➡️ सदस्य देशों के प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन को ठीक करने के लिए अस्थायी तौर पर आर्थिक सहायता प्रदान करना।

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय अदायगी के संकट के समय असन्तुलन की मात्रा एवं अवधि में कमी करना।

 विश्व बैंक के कार्य :

➡️ सदस्य राष्ट्रों, विशेषतः अल्प विकसित राष्ट्रों को विकास हेतु आवश्यकतानुसार ऋण उपलब्ध कराना। ऋण दीर्घ कालीन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए दिये जाते हैं।

➡️ पुनर्निर्माण एवं विकास हेतु ऋण प्रदान करने के अतिरिक्त विश्व बैंक द्वारा सदस्य राष्ट्रों को विभिन्न प्रकार की तकनीकी सेवाएं उपलब्ध करना।

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम : अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम की स्थापना विश्व बैंक ने जुलाई, 1956 में की थी। यह निगम विकाशील देशों में निजी उद्योगों के लिए बिना सरकारी गारण्टी के धन की व्यवस्था करता है तथा अतिरिक्त पूँजी विनियोग द्वारा उन्हें प्रोत्साहित करता है।

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम के उद्देश्य –

♥️ निजी क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराना

♥️ पूँजी तथा प्रबन्ध में समन्वय स्थापित करना

♥️ पूँजी प्रधान देशों को अभाव वाले देशों में पूँजी लगाने को प्रोत्साहित करना।

♥️ IMF के अन्तर्गत अभ्यंशों की राशि सदस्य देशों की मतक्षादित तथा उधार लेने की सीमा का निर्धारण करती है।

♥️ भारत का IMF में मताधिकार प्रतिशत = 2.05 प्रतिशत

♥️ प्रारम्भ में भारत IMF के सदस्य देशों में एक था लेकिन 1970 से इसका कोटा कम होने के कारण यह इससे वंचित हो गया।

♥️ IMF अपने सदस्यों राष्ट्रों को भुगतान संतुलन में असाम्य को दूर करने के लिए अल्पकालीन ऋण देता है।

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ (I.D.A.) को विश्व बैंक की "सुलभ खिड़की" (Soft Loan Windiow) कहा जाता है।

➡️ I.D.A. से विकासशील देशों की दुर्लभ मुद्रायें (Hard Carrencies) ऋण के रूप में प्राप्त होती है।

➡️ MIGA की स्थापना 1988 में की गयी।

➡️ यूरो करेन्सी 1999 खाते की मुद्रा के रूप में चलन में आयी है।

➡️ जून 1974 नीस की समिति ने तैरती विनिमय दरों को स्थायी, किन्तु समायोजन योग्य बनाने का प्रस्ताव किया।

➡️ S.D.R. का आवंटन सदस्य देशों को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष करता है।

➡️ S.D.R., कागजी स्वर्ण है (Paper Gold) तथा केवल लेखे और भुगतान की मुद्रा है।

➡️ अन्तर्राष्ट्रीय तरलता में विदेशी विनिमय कोष, विभिन्न देशों की उधार लेने की क्षमता तथा स्वर्ण भण्डार का समावेश है।

➡️ ब्रिटेन बुड्स सुधारों में अमेरिकी डालर को रिजर्व का आधार माना गया।

➡️ 1 जनवरी, 1976 में नयी अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की घोषणा की गयी।

➡️ हालैण्ड में आयोजित यूरोपीय समुदाय के देशों की बैठक में यूरोपियन समुदाय के लिए एक मुद्रा के प्रयोग का निर्णय लिया गया।

➡️ यूरो डालर का प्रचलन 12 सदस्य राष्ट्रों में होगा- जो निम्नलिखित है- 1. बेल्जिय, 2. डेनमार्क, 3. फ्रांस, 4. जर्मनी, 5. इटली, 6. आयरलैण्ड, 7. लक्जमबर्ग, 8. नीदरलैण्ड, 9. पुर्तगाल, 10. स्पेन, 11. ब्रिटेन, 12. यूनान

➡️ वे देश जहाँ यूरो लागू नहीं है- 1. ब्रिटेन, 2. स्वीडेन, 3. डेनमार्क,

➡️ यूरो करेन्सी जारी करने के लिए एक यूरोपियन केन्द्रीय बैंक की स्थापना फ्रैंकफर्ट (जर्मनी) 1998 में किया गया।

➡️ यूरो के साथ-साथ उन देशों की घरेलू मुद्रायें भी वर्ष 2012 तक चलन में रहेंगी।

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