History MODEL (Mock) TEST 2022-23

History MODEL (Mock) TEST 2022-23

Sub- History MODEL (Mock) TEST 2022

विषय - इतिहास

वर्ग    - 12 वीं

दिनांक - 28.11.2022

पूर्णांक - 30 अंक

उत्तीर्णांक - 10 अंक

समय - 01 घंटे

निर्देश :- सभी प्रश्न अनिवार्य है। (All question are important)

(INSTUCTION) :-

प्रश्न संख्या 1 से 8 तक प्रत्येक के लिए 2 अंक है।

Question no. 1 to 5 each question cassies 2 marks.

प्रश्न संख्या 6 से 10 तक प्रत्येक के लिए 4 अंक है।

Question no. 6 to 10 each question cassies 4 marics.

1. अल बिरूनी ने किताब उल हिंद की रचना किस भाषा में की? In which language kitab-ul-hind was written by Al-beruni?

(A) फारसी में (Persian)

(B) अरबी में (Arbic)

(C) उर्दू में (Urdu)

(D) संस्कृत में ( Sanskrit)

2. सिंधु घाटी सभ्यता की जुड़वों राजधानी थी।  Twin Capital of Indus Valley Civilization was?

(A) हड़प्पा लोथल (Harappa Lothal)

(B) हड़प्पा मोहनजोदड़ो (Harappa Mohenjodaro)

(C) मोहन जोदडो चान्हुदड़ो (Mohenjodaro Chanhudara)

(D) लोथल कालीबंगा (Lothal Kalibanga)

3. किस मुगल सम्राट ने तम्बाकू पर प्रतिबंध लगाया? Which Mugal emperor prohibited to bacco?

(A) अकबर ( Akbar)

(B) बाबर (Babar)

(C) जहाँगीर (Jahangir)

(D) शाहजहाँ (Shahjahan)

4. स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था कहाँ लागू की गयी थी? Where was the permanent Setilement system implemented?

(A) बंगाल (Bengal)

(B) मद्रास (Madras)

(C) हैदराबाद (Hyderabad)

(D) महाराष्ट्र (Maharastra)

5. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई? When was british East India Company established?

(A) 1610 ई0 (1610 A.O.)

(B) 1650 ई0 (1650 A.O.)

(C) 1600 ई0 (1600 A.O.)

(D) 1615 ई0 (1615 A.O.)

6. हड़प्पा सभ्यता एक शहरी सभ्यता थी कैसे? Harappa Civilization was on uban civilization How?

उत्तर : हड़प्पा के लोगों का जीवन बहुत ही सुखद और शांतिपूर्ण था। हड़प्पा समुदाय ग्रामीण इलाके में रहता था। वे लोग बहुत ही अच्छे विचारों के और मददगार लोग थे, वे बिलकुल भी खतरनाक नहीं थे।

जिन बड़े शहरों के घरों में लोग रहते थे, वे घर पांच फुट की लंबाई और 97 फुट की चौड़ाई के हुआ करते थे। उनके भवनों में दो कमरे वाले घर होते थे।

हड़प्पा सभ्यता के शहरों को बहुत अच्छी योजना और बड़ी खूबसूरती से बनाया गया था। सड़क के दोनों किनारों पर पंक्तियों में घर बनाए गए थे।

भवन का निर्माण करने के लिए उन्होंने धूप में सूखी हुई ईंटों का प्रयोग किया था। कुछ घर गलियों में भी बनाये गये थे। अमीर लोग बड़े घरों में रहते थे, उनके पास कई कमरे वाले घर होते थे। मुख्य रूप से, गरीब लोग छोटे घरों और झोपड़ियों में रहते थे।

अनाज रखने का कोठार, जो 45.71 मीटर लंबा और 15.23 मीटर चौड़ा हुआ करता था। हड़प्पा के दुर्ग में छः कोठार मिले हैं, जो ईंटों के चबूतरे पर दो पांतों में खड़े  हैं।

जनता के लिए मोहन जोदड़ो द्वारा स्नानागार की खोज की गई। यह सिंधु सभ्यता की मुख्य सुविधा में से एक थी। हड़प्पा सभ्यता के शहरों में मकान बनाने के लिए भी धूप में सूखी हुई ईंटों का इस्तेमाल किया जाता था।

शहर में मंदिर बनाने के लिए कई ईंटें और मिट्टी का इस्तेमाल होता था। जल निकासी से बचने के लिए उन्होंने जलाशय बनाये और उसमें मिट्टी का उपयोग किया।

बौद्ध धर्म के लोगों के लिए स्नानागार का निर्माण किया गया था, पूजा करने वाले कपड़े बदलने के लिए छोटे कमरे इस्तेमाल करते थे तथा इसके बाद देवी की पूजा करते थे।

सिंधु घाटी सभ्यता में, जल निकासी प्रणाली बहुत व्यवस्थित क्रम में थी, हर घर में सबसे अच्छी सुविधा के लिए नाली व्यवस्था का प्रयोग किया गया था। प्रत्येक घर से पानी की निकासी का स्थान ईंटों से बनाया गया था।

घरों में पानी का उपयोग करने के बाद पानी बहकर नाली में जाता था। पानी की निकासी के लिये नालियां बनाई गई थी।

नाले को बंद करने के लिए उन्होंने बड़े पत्थर का इस्तेमाल किया, जिससे हानिकारक रोगों बचा जा सके। नालियों को सड़क के भूमिगत मैदान के किनारे पर बनाया गया था। नालियों की जल निकासी सड़क के साथ जुड़ी हुई थी।

7. अकबर को राष्ट्रीय सम्राट क्यों कहा जाता है? Why is Akbar called National Monarch?

उत्तर :  भारतीय शासकों में अशोक के बाद मुगल बादशाह अकबर एक मात्र ऐसा शासक था जिसे भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करने के संदर्भ में उसे राष्ट्रीय शासक कहा जाता है।

अकबर ने फारसी को राष्ट्रीय भाषा बनाकर, हिन्दी, संस्कृत, अरबी, तुर्की, यूनानी आदि भाषाओं के प्रमुख ग्रंथों का फारसी में अनुवाद कराकर, मुसलमानों के मदरसों में हिन्दू बच्चों की शिक्षा का प्रबन्ध करके तथा हिन्दू पाठशालाओं को भी राजकीय सहायता प्रदान करके इस देश में सांस्कृतिक एकता पैदा करने की दिशा में विशेष कार्य किया। इसके अतिरिक्त उसने ललित कलाओं, भवन-निर्माण-कला, चित्रकला और संगीत के क्षेत्र में हिन्दू तथा मुसलमानों की परम्पराओं तथा शैलियों के मिलाप में बड़ा सहयोग दिया और इस प्रकार अकबर ने भारतीय संस्कृति के विकसित होने की ओर महत्वपूर्ण कदम उठाए। अकबर द्वारा बनाए गए भिन्न-भिन्न कलाओं के नमूने हिन्दू-मुसलमानों की साझी प्रवृत्ति बन गए और अकबर द्वारा संस्कृत तथा हिन्दी साहित्य को प्रोत्साहन देने से सांस्कृतिक एकता के उत्पन्न होने में काफी सहयोग मिला।

8. कबीरदास के मुख्य उपदेशों का वर्णन करें। Describe the main teaching of Kabirdas.

उत्तर : कबीर के मुख्य उपदेश निम्नलिखित है

(i) वह परमसत्य को अल्लाह, खुदा, हजरत और पीर कहते थे।

(ii) उनपर वेदांत दर्शन का प्रभाव था अतः वह सत्य को अलख या अदृश्य, निराकार, ब्रह्म और आत्मन् कहकर संबोधित करते थे।

(iii) कबीर एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे।

(iv) कबीर मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे। मूर्त्ति पूजा की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि यदि "पाथर पूर्ज हरि मिले तो मैं पूजूँ पहाड़।

(v) कबीर 'नाम सिमरन' की हिंदू परंपरा में विश्वास करते थे।

(vi) कबीर ने धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त पाखण्डों एवं बाह्य आडम्बरों का घोर विरोध किया, हिन्दू-मुस्लिम दोनों के धर्म ग्रंथों के अंधभक्ति, तीर्थयात्रा तथा अन्य आडम्बरों की उन्होंने कटु आलोचना की।

9. हड़प्पा सभ्यता के पाँच प्रमुख स्थलों का वर्णन करें। Describe five main plales of Harappa Civitization.

उत्तर : हड़प्पा संस्कृति के लगभग 1000 स्थलों की जानकारी है। परन्तु परिपक्व हड़प्पा संस्कृति के स्थल लगभग एक दर्जन हैं जो निम्नलिखित हैं-

(i) हड़प्पा- यह स्थल पश्चिमी बंगाल में मिंटगुमरी जिले में स्थित है। इसके उत्तर से विशाल और समृद्ध नगर का अवशेष प्राप्त हुआ है।

(ii) मोहनजोदड़ो- यह सिन्धु के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है। यहाँ से समृद्ध नगर के साथ-साथ एक विशाल सार्वजनिक स्नानागार भी प्राप्त हुआ है।

(iii) चन्हुदड़ो- यह मोहनजोदड़ो से दक्षिण-पूर्व दिशा में 130 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ से भी नगर का अवशेष मिला है।

(iv) लोथल- यह स्थल काठियावाड़ में स्थित है। विद्वानों के अनुसार यह हड़प्पा संस्कृति का एक बन्दरगाह था। सम्भवतः यहाँ सती-प्रथा भी थी।

(v) कालीबंगन- यह राजस्थान के गंगानगर जिले की घागर नदी के किनारे स्थित है। यहाँ से भी पूर्ण नगर का अवशेष मिला है।

(vi) बनावली- यह हरियाणा के हिसार जिले में है। यहाँ से हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा कालीन संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।

(vii) सुतकाग़डोर और सुरकोतड़ा- इन समुद्रतटीय नगरों में परिपक्व हड़प्पा संस्कृति के अवशेष मिले हैं।

(viii) रंगपुर और रोजड़ी- ये काठियावाड़ प्रायद्वीप में है। यहाँ उत्तर- हड़प्पा के अंश मिले हैं।

10. स्थायी बंदोबस्त के गुण-दोषों की विवेचना करें। Discuss the meaits and demerits of the Parmanent Selliement.

उत्तर :

1. भारत में भूमि का स्थायी प्रबन्ध करने का श्रेय लॉर्ड कॉर्नवालिस को है। भूराजस्व के क्षेत्र में व्याप्त अराजकता की स्थिति को दूर करने का स्पष्ट आदेश लंदन स्थित कम्पनी के निर्देशकों द्वारा दिया गया था।

2. कॉर्नवालिस ने भूमि प्रबन्ध निश्चित करने के पूर्व इसका गहन अध्ययन किया और उच्चाधिकारियों के साथ भूमि-प्रबन्ध के सम्बन्ध में काफी विचार-विमर्श किया।

3. अत: कॉर्नवालिस ने 1790 ई. में एक योजना प्रस्तुत की जिसके अनुसार जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करते हुए एक निश्चित लगान के बदले उनके साथ 10 वर्षों के लिए भूमि प्रबन्ध किया गया। परन्तु इसके लिए भूमि की कोई माप नहीं करवायी गयी न ही उसकी उर्वरता निश्चित की गयी।

4. किन्तु कॉर्नवालिस जमींदारों के साथ भूमि का स्थायी प्रबन्ध करना चाहता था। क्योंकि उसके विचार में मात्र 10 वर्षों के लिए कोई भी जमींदार भूमि में सुधार कार्यक्रम अथवा पूँजी निवेश नहीं करना चाहेगा।

5. कम्पनी के उच्चाधिकारी एवं इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री मि. पीट (Mr. W. Pitt) ने भी कॉर्नवालिस के विचारों का समर्थन किया।

6. इस प्रकार 1790 ई. में जमींदारों के साथ 10 वर्षों के लिए किये गये प्रबन्ध के 1793 ई. में स्थायी घोषित किया गया और इसे 22 मार्च 1793 से लागू कर दिया गया। यह प्रबन्ध भारत में ब्रिटिश शासन के अन्त तक बना रहा।

7. इसके अनुसार जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार किया गया और उन्हें लगान का 10/11 भाग कम्पनी को देना था और 1/11 भाग अपने व्यय के लिए रखना था।

मॉक टेस्ट पेपर - 2

वर्ग: XII     विषय: History (इतिहास)

कुल अंक : 30 समय: 1 घंटा

दिनांक - 18.01.2023

निर्देश :- सभी प्रश्न अनिवार्य है।

प्रश्न संख्या 1 से 5 तक प्रत्येक के लिए 2 अंक

प्रश्न संख्या 6 से 10 तक प्रत्येक के लिए 4 अंक

1. सिंधु सभ्यता का कौन सा स्थल "मृतकों का टीला ' के रूप में विख्यात है ।

(क) मोहनजोदड़ो

(ख) हड़प्पा

(ग) लोयल

(घ) कालीबंगा

2. शुंग वंश का अंतिम शासक कौन था ।

(क) अग्निमित्र शुंग

(ख) वसुमित्र शुंग

(ग) देवभूमि शुंग (देवभूति)

(घ) भगभद्र शुंग

3. "आमुक्तमाल्यद' नामक ग्रंथ के लेखक थे ।

(क) देवराय-I

(ख) कृष्णदेवराय

(ग) देवराय - II

(घ) अच्युदेव राय

4. अकबर ने दास प्रथा का अंत कब किया।

(क) 1662

(ख) 1562

(ग) 1564

(घ) 1563

5. 1857 के विद्रोह के समय भारत गर्वनर जनरल कौन था ।

(क) वेलेस्ली

(ख) वेंटिक

(ग) डलहौजी

(घ) कैनिंग

6. मगध के उत्कर्ष के कारणों की विवेचना करें।

उत्तर : छठी शताब्दी ई. पू. से चौथी शताब्दी ई. पू. तक एक साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में मगध के विकास के निम्नलिखित प्रमुख कारण थे :

(i) मगध के इस राजनीतिक उत्कर्ष के पीछे इसकी भौगोलिक स्थिति थी। इसकी राजधानी राजगृह या गिरिब्रज सामरिक दृष्टि से अत्यन्त सुरक्षित थी। मगध का क्षेत्र कृषि की दृष्टि से काफी उर्वर था। व्यापार एव उद्योग धन्धे विकसित अवस्था में थे।

(ii) मगध के दक्षिणी क्षेत्र (आधुनिक झारखंड) में खनिज सम्पदा लोहा आदि प्रचर मात्रा में था लाल से उपकरण एवं हथियार बनाये जाते थे।

(iii) इस क्षेत्र में घने जंगलों में हाथी काफी संख्या में उपलब्ध थे, जिनका युद्ध में काफी महत्त्व था। इन पर दलदल भूमि या दुर्लभ स्थानों में भी सवारी की जा सकती थी। किलों या दुर्गों को धवस्त करने में भी हाथी काफी उपयोगी थे।

(iv) गंगा तथा उसकी सहायक नदियों से निकटता के कारण आवागमन सस्ता एवं सुलभ था।

(v) लेकिन आरम्भिक जैन एवं बौद्ध लेखकों ने मगध की महत्ता का कारण विभिन्न शासकों की नीतियों को बतलाया है। इन लेखकों के अनुसार बिंबिसार, अजातशत्रु और महापद्म जैसे मगध के प्रसिद्ध शासक अत्यन्त महत्वाकांक्षी थे और इनके योग्य मंत्रियों ने इनकी महत्वाकांक्षी नीतियों को सफलतापूर्वक लागू किया।

7. 1857 के विद्रोह की विफलता का कारण क्या था?

उत्तर : 1857 ई. की क्रान्ति पूर्णतया असफल रही। यद्यपि विद्रोहियों ने अदम्य साहस, उत्साह, वीरता एवं त्याग का परिचय दिया, किन्तु उन्हें अपने उद्देश्य में सफलता न मिल सकी और अंग्रेज विद्रोह का दमन करने में सफल हुए। इस विद्रोह की असफलता के निम्नलिखित कारण थे

(1) क्रान्ति का सीमित क्षेत्र - क्रान्ति का क्षेत्र अत्यन्त सीमित था, अतः देश के अनेक भागों में क्रान्ति का प्रभाव नहीं पहुँच सका। यह क्रान्ति दिल्ली से लेकर कलकत्ता तक सीमित रही और शेष भारत के लोग क्रान्ति से अप्रभावित रहे, जिसके कारण उन्होंने क्रान्ति में भाग नहीं लिया। पंजाब, सिन्ध, राजस्थान, दक्षिण भारत, पूर्वी बंगाल ने अंग्रेजी सत्ता का अन्त करने का तनिक भी प्रयत्न नहीं किया। गोरखों और सिक्खों ने क्रान्ति के दमन में अंग्रेजों का साथ दिया।

(2) विद्रोह का सामन्तवादी चरित्र - 1857 ई. के विद्रोह का स्वरूप मुख्यतः सामन्तवादी था, जिसमें कुछ राष्ट्रवाद के तथ्य विद्यमान थे। अवध और रुहेलखण्ड के तथा उत्तरी भारत के अन्य सामन्तवादी तत्त्वों ने विद्रोह का नेतृत्व किया और दूसरी ओर अन्य सामन्तवादी तत्त्वों ने जैसे कि पटियाला, जींद, ग्वालियर और हैदराबाद के राजाओं ने इस विद्रोह के दमन में सहायता की। लॉर्ड कैनिंग ने कहा था, "यदि सिन्धिया भी विद्रोह में सम्मिलित हो जाए, तो मुझे कल ही बिस्तर बाँधना होगा।" यह विद्रोह जन-क्रान्ति का रूप न ले सका।

(3) केन्द्रीय योजना का अभाव - क्रान्तिकारियों में केन्द्रीय योजना का अभाव था तथा उनकी नीति स्पष्ट नहीं थी। नीति के अस्पष्ट तथा केन्द्रीय न होने के कारण क्रान्तिकारी नेताओं में एकता का सर्वथा अभाव था। प्रत्येक की नीति अलग थी और प्रत्येक के समर्थक अपने ही नेता के अन्तर्गत कार्य करना चाहते थे। सब नेताओं के अपने-अपने स्वार्थ थे, जिनकी पूर्ति के लिए वे प्रयत्नशील थे। इसके विपरीत अंग्रेजों की योजना बिल्कुल स्पष्ट थी और उनके पास कर्मठ नेता थे, जिन्होंने क्रान्ति को असफल करने में किसी भी बात की कसर नहीं छोड़ी और उन्होंने हरसम्भव साधन का प्रयोग किया।

(4) साधनों व हथियारों का अभाव - क्रान्तिकारियों के पास धन, अस्त्रशस्त्र, आधुनिक साधन; जैसे-रेल, डाक-तार व कर्मठ सेनापतियों का पूर्ण अभाव था। इसके विपरीत अंग्रेजों को सभी साधन उपलब्ध थे।

(5) योग्य नेता का अभाव - यद्यपि क्रान्ति में अनेक ऐसे नेता थे जिन्होंने क्रान्ति को संगठित करने तथा उसको सफल बनाने के लिए अकथनीय प्रयत्न किए, किन्तु इनमें कोई भी ऐसा योग्य नेता नहीं था जो समस्त देश के लिए सर्वमान्य होता।

(6) अंग्रेजों की सन्तोषजनक अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति - इस समय अंग्रेजों की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति सन्तोषजनक थी, जिसके कारण वे क्रान्ति का कठोरतापूर्वक दमन करने में सफल हो गए। दोस्त मुहम्मद ने सन्धियों का पूर्ण रूप से पालन करते हुए अफगानिस्तान से भारत पर आक्रमण नहीं किया।

(7) अराजकता का उत्पन्न होना - क्रान्तिकारियों ने धन के अभाव में साधारण जनता को लूटना प्रारम्भ कर दिया, जिसके कारण क्रान्ति के क्षेत्रों में अराजकता उत्पन्न हो गई और जिसने शीघ्र ही जनता को क्रान्ति से उदासीन कर दिया। जेलों आदि को तोड़ने से गुण्डे तथा बदमाश व्यक्ति आजाद हो गए और उन्हें अपने निन्दनीय कार्य करने का खुला अवसर प्राप्त हुआ। इस अराजकता के उत्पन्न होने से अंग्रेजों को जनता का सहयोग प्राप्त हुआ, क्योंकि जनता अराजकता से ऊब गई थी और शान्ति चाहती थी। अंग्रेजों ने क्रान्तिकारियों का दमन अत्यन्त क्रूरता, नृशंसता तथा पशुता से किया, जिससे जनता में आतंक छा गया और वह भयभीत हो गई।

(8) क्रान्ति का समय से पूर्व प्रारम्भ होना- क्रान्ति के लिए 31 मई, 1857 का दिन निश्चित था, परन्तु बैरकपुर व मेरठ की घटनाओं के कारण यह पहले ही 10 मई को प्रारम्भ हो गई। अंग्रेज इस छिटपुट क्रान्ति को दबाने में सफल हो गए।

(9) अंग्रेजों द्वारा कूटनीतिक उपायों का प्रयोग - इसके अतिरिक्त क्रान्ति का दमन करने के लिए अंग्रेजों ने सफल कूटनीतिक उपाय भी किए। हिन्दू-मुसलमान और सिक्खों के बीच मतभेद भड़काने के लिए बहादुरशाह के नाम से झूठे फरमान जारी किए गए, जिनमें कहा जाता था कि युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद सिक्खों का वध कर दिया जाएगा।

उपर्युक्त सभी कारणों से 1857 ई. की क्रान्ति असफल रही। अंग्रेजों ने पुनः भारत पर अपनी सत्ता स्थापित कर ली। फिर भी इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की अमिट छाप कालान्तर में ब्रिटिश शासकों को प्रभावित करती रही।

8. असहयोग आंदोलन की व्याख्या करें?

उत्तर : असहयोग आंदोलन 5 सितंबर 1920 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) द्वारा शुरू किया गया था। सितंबर 1920 में, कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन में, पार्टी ने असहयोग कार्यक्रम की शुरुआत की। असहयोग आंदोलन की अवधि सितंबर 1920 से फरवरी 1922 तक मानी जाती है। इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक नए अध्याय का संकेत दिया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड सहित कई घटनाओं के मद्देनजर असहयोग आंदोलन शुरू किया गया था और 1922 की चौरी चौरा घटना के कारण इसे बंद कर दिया गया था।

असहयोग आंदोलन की विशेषताएं

• यह आंदोलन अनिवार्य रूप से भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक शांतिपूर्ण और अहिंसक विरोध था।

• विरोध के तौर पर भारतीयों को अपनी उपाधियाँ त्यागने और स्थानीय निकायों में मनोनीत सीटों से इस्तीफा देने के लिए कहा गया।

• लोगों को अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने के लिए कहा गया था।

• लोगों को अपने बच्चों को सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों और कॉलेजों से वापस लेने के लिए कहा गया।

• लोगों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने और केवल भारतीय निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने के लिए कहा गया।

• लोगों से विधान परिषदों के चुनाव का बहिष्कार करने को कहा गया।

• लोगों को ब्रिटिश सेना में सेवा न करने के लिए कहा गया था।

• यह भी योजना बनाई गई थी कि यदि उपरोक्त कदमों का परिणाम नहीं निकला, तो लोग अपने करों का भुगतान करने से मना कर देंगे।

• कांग्रेस ने स्वराज्य या स्वशासन की भी मांग की।

• मांगों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से अहिंसक साधनों का ही प्रयोग किया जाएगा।

• असहयोग आंदोलन स्वतंत्रता आंदोलन में एक निर्णायक कदम था, क्योंकि पहली बार, कांग्रेस स्व-शासन प्राप्त करने के लिए संवैधानिक साधनों को त्यागने के लिए तैयार थी।

• गांधीजी ने आश्वासन दिया था कि अगर यह आंदोलन पूरा होता रहा तो एक साल में स्वराज हासिल हो जाएगा।

9. मुगलकाल में शाही महिलाओं की भूमिका का मूल्यांकन करें ।

उत्तर : मुग़ल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका का मूल्यांकन इस प्रकार हैं:

1. मुग़ल साम्राज्य में शाही परिवार की महिलाओं के द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती थी । इतिहास साक्षी है कि मुगल सम्राट जहाँगीर की बेगम नूरजहाँ की शासन सत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका थी। मलिका नूरजहाँ ने मुग़ल सम्राट पर अपना पूर्ण प्रभाव स्थापित करके शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी। उसने जहाँगीर के साथ 'झरोखा दर्शन' में भाग लेना प्रारंभ कर दिया तथा बहुत से सिक्कों पर भी उसका नाम आने लगा। शाही आदेश-पत्रों पर बादशाह के हस्ताक्षरों के अतिरिक्त बेगम नूरजहाँ का नाम भी आने लगा। इस प्रकार शासन सत्ता नूरजहाँ के हाथों में केंद्रित होने लगी। राज्य संबंधी कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय नुरजहाँ की स्वीकृति के बिना नहीं लिया जा सकता था।

2. नूरजहाँ के पश्चात् मुगल रानियाँ और राजकुमारियाँ महत्त्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने लगीं। शाहजहाँ की पुत्रियों जहाँनारा और रोशनआरा की वार्षिक आय ऊँचे शाही मनसबदारों की वार्षिक आय से कम नहीं थी । जहाँनारा को विदेशी व्यापार के एक अत्यधिक लाभप्रद केंद्र सूरत के बंदरगाह नगर से भी राजस्व प्राप्त होता था।

3. आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण होने के परिणामस्वरूप मुगल परिवार की महत्त्वपूर्ण महिलाओं को इमारतों एवं बागों का निर्माण करवाने की प्रेरणा मिली। जहाँनारा ने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहाँनाबाद में स्थापत्य की अनेक महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं में योगदान दिया। इनमें से आँगन तथा बाग के साथ एक दोमंजिला भव्य कारवाँ सराय विशेष रूप से उल्लेखनीय है । शाहजहाँनाबाद के हृदयस्थल चाँदनी चौक की रूपरेखा को भी जहाँनारा द्वारा ही तैयार किया गया था।

4. शाही परिवार की महिलाओं में से अनेक उच्च कोटि की प्रतिभावान तथा विदुषी महिलाएँ थीं। गुलबदन बेगम, जो प्रथम मुगल सम्राट बाबर की पुत्री, हुमायूँ की बहन और महा मुगल सम्राट अकबर की फूफी (बुआ) थी, इसी प्रकार की एक महिला थी। उसे तुर्की और फ़ारसी का अच्छा ज्ञान था और वह इन दोनों भाषाओं में कुशलतापूर्वक लिख सकती थी । अकबर ने जब दरबारी इतिहासकार अबुल फज़ल को अपने शासन का इतिहास लिखने के लिए नियुक्त किया, तो उसने गुलबदन बेगम से आग्रह किया कि वह बाबर और हुमायूँ के समय के अपने संस्मरणों को लिपिबद्ध करे ताकि सकें। अबुल फजले उनसे लाभ उठाकर अपने ग्रंथ को पूरा कर

10. महात्मा बुद्ध के प्रमुख उपदेशों का वर्णन करें।

उत्तर : महात्मा बुद्ध के नैतिक एवं दार्शनिक उपदेश

1. गौतम बुद्ध के नैतिक मार्ग क्या थे-

गौतम बुद्ध के नैतिक उपदेशों 'चार आर्य सर्त्य' का बड़ा महत्व है। ये चार आर्य सत्य इस प्रकार हैं

(क) दुःख- यह संसार दुःखमय है।

जीवन दुःखमय है क्योंकि इसमें वृद्धावस्था, रोग और मृत्यु है, क्योंकि अपने प्रिय का वियोग तथा अप्रिय का संयोग है, अपनी इच्छाओं और वासनाओं का अपूर्ण रह जाना दुःख का कारण है। सभी इस दुःख से ग्रसित हैं।

(ख) दुःख- समुदाय-

गौतम बुद्ध ने इसे दुःख का समुदाय अर्थात् कारण भी बतलाया। उन्होंने बताया कि दुःख का मूल कारण तृष्णा है। तृष्णा का तात्पर्य है लौकिक वस्तुओं और भौतिक सुखों के प्रति स्पृहा तृष्णा की वृद्धि से अहंकार, कलह, द्वेष, दुःख आदि उत्पन्न होता है।

(ग) दु:ख-निरोध -

उन्होंने यह भी बताया कि निरोध संभव है। तृष्णा के नाश से जन्म, मरण तथा उससे सम्बन्धित सभी दुःखों का अन्त हो जाता है। सम्पूर्ण तृष्णा का अन्त हो जाने पर मनुष्य दुःखरहित हो जाता है और निर्वाण प्राप्त हो जाता है।

(घ) दुःख निरोध का इसी संसार में है-

मार्ग- जी ने -बुद्ध दुःख के निरोध या निर्वाण का मार्ग भी बतलाया । दुःख को समाप्त करने के लिए उन्होंने आचरण के आठ नियम बताये जिन्हें 'अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है। वे इस प्रकार हैं-

(1) सम्यक दृष्टि,

(2) सम्यक् संकल्प,

(3) सम्यक् वाक्,

(4) सम्पकर्म,

(5) सम्यक जीविका,

(6) सम्यक उद्योग,

(7) सम्यक् स्मृति,

(8) सम्यक् समाधि ।

यह मध्यम मार्ग है। इस मार्ग में न तो सांसारिक भोग-विलास में लिप्त हो जाने का आदेश है और न कठोर तप करने का ही आदेश है।

2. शील तथा आचरण की प्रधानता-

बुद्ध ने शील के दस आचरणों का पालन के लिए तथा गृहस्थों के लिए प्रथम पाँच आचरणों का पालन जरूरी बतलाया। ये दस आचरण निम्नलिखित हैं-

(1) अहिंसा,

(2) सत्य,

(3) अस्तेय (चोरी न करना),

(4) अपरिग्रह ( वस्तओं का संगह न करना),

(5) ब्रह्मचर्य,

(6) नृत्य-गान का त्याग,

(7) सुगन्ध, मालादि का त्याग

( 8 ) असमय में भोजन का त्याग,

(9) कोमल शैया का त्याग

( 10 ) कापिली कंचन का त्याग

दार्शनिक उपदेश

गौतम बुद्ध दार्शनिक नहीं थे। वे केवल धर्म-सुधारक थे। उन्होंने कुछ सरल नैतिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जिससे मनुष्य जाति का कल्याण हो। वे ईश्वर तथा आत्मा के विषय में मौन रहे । परन्तु कुछ विद्वानों ने बुद्ध के अन्तिम शब्दों में दार्शनिक सिद्धान्तों की कल्पना की है।

(3) अनीश्वरवाद एवं अनात्मवाद-

ईश्वर में बुद्ध जी का विश्वास नहीं था। महात्मा बुद्ध आत्मा में भी विश्वास नहीं करते थे। उनका विश्वास था कि शरीर अनेक तत्वों से बना है और मृत्यु के बाद वे तत्व अलग-अलग हो जाते हैं और आत्मा नाम की कोई चीज स्थायी नहीं रह जाती।

(4) वेदों का बहिष्कार एवं जाति प्रथा का खण्डन-

महात्मा बुद्ध वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं करते। वैदिक देवताओं में न तो उनका कोई विश्वास था और न कोई श्रद्धा थी। उन्होंने यज्ञों तथा पशु बलि का घोर विरोध किया । जाति व्यवस्था का भी उन्होंने विरोध किया और कहा कि यह समाज का अप्राकृतिक विभाजन है। वे ऊँच-नीच के भेदभाव को नहीं मानते थे।

(5) कर्म तथा पुनर्जन्म में विश्वास-

उनका विश्वास था कि इस जीवन में अच्छे कर्म करने से ही दूसरी बार अधिक श्रेष्ठ जीवन मिलता है। इस प्रकार प्रत्येक जीवन में व्यक्ति का जीवन श्रेष्ठतम होता जायगा और अन्त में वह पुनर्जन्म के चक्कर से छूट जायेगा । बुरे कर्मों से मनुष्य का जीवन दुःखमय हो जाता है और उसका पतन होता है और अन्त में उसको निर्वाण नहीं प्राप्त होता है।

(6) निर्वाण अन्तिम लक्ष्य-

मनुष्य का सर्वोच्च लक्ष्य निर्वाण प्राप्त करना है, ऐसा बुद्ध ने बतलाया है। यह निर्वाण सभी जातियों के मनुष्यों को अच्छे आचरण तथा सत्कर्मों द्वारा प्राप्त हो सकता है। इसके लिए कर्मकाण्ड आदि की आवश्यकता नहीं है। वे सब व्यर्थ हैं।

निर्वाण का अर्थ है “स्वयं का शून्य हो जाना' । जब मनुष्य मरता है तो वह निर्वाण या शून्य अवस्था को प्राप्त होता है और मनुष्य सभी प्रकार के दुःखों से मुक्त हो जाता है। बौद्ध धर्म के अनुसार यही व्यक्ति का अन्तिम लक्ष्य होना चाहिए और इसकी प्राप्ति के लिए उसे पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।


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