28.PGT कृषि वित्त और उसके स्रोत (Agricultural Finance and its Sources)

कृषि वित्त और उसके स्रोत (Agricultural Finance and its Sources)

🔥 कृषि एवं कृषि से संबंद्ध गतिविधियों के लिए आवश्यक धन की मात्रा कृषि वित्त कहलाता है। इसके अन्तर्गत न केवल कृषकों के लिए ऋण की व्यवस्था सम्मिलित होती है अपितु ऐसे व्यक्तियों एवं संगठनों के लिए ऋण की भी व्यवस्था करना सम्मिलित होता है।

🔥 खाद, बीज, उर्वरक एवं कीटनाक दवाइयों आदि वार्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दिये जाने वाले ऋण में परिपक्वता अवधि अधिकतम 15 माह होती है, को अल्पकालीन ऋण कहा जाता है।

🔥 कृषि ऋणों का वर्गीकरण-समय तथा उद्देश्य के आधार पर कृषि ऋणों का वर्गीकरण किया जाता है।

🔥 मध्यकालीन ऋण प्रदान करने के प्रमुख उद्देश्य कृषि क्षेत्र के विकास तथा कृषकों के जीवन स्तर में सुधार है।

🔥 मध्यकालीन ऋण परिसम्पत्तियों को क्रय करने हेतु स्थायी परिसंरचना तथा डेयरी पशु भार खींचने वाले बैलों, यंत्रावली एवं उपकरण आदि के क्रय करने के लिए प्रदान किया जाता है।

🔥 भारत में कृषि ऋण के प्रमुख स्रोत संस्थागत एवं गैर संस्थागत हैं।

🔥 कृषि ऋण के संस्थागत स्रोत सहकारी समितियाँ तथा सहकारी बैंक, व्यापारिक बैंक तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक है।

🔥 गैर संस्थागत स्रोत के प्रमुख घटक साहूकार, महाजन, तथा रिश्तेदार, जमींदार तथा अढ़तिये हैं।

🔥 कृषि साख के संस्थागत वित्त को दो भागों में विभक्त किया जाता है, प्रत्यक्ष वित्त तथा परोक्ष वित्त।

🔥 सहकारी समितियों, राज्य सरकारों, अनुसूचित व्यापारिक बैंक तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा कृषकों को उपलब्ध कराया गया। ऋण प्रत्यक्ष वित्त कहलाता है।

🔥 प्राथमिक सहकारी समितियां कृषकों को अल्पकालीन या मध्य कालीन ऋण उपलब्ध कराया है।

🔥 भूमि विकास बैंक द्वारा कृषकों को दीर्घकालिक ऋण उपलब्ध कराया जाता है।

🔥 राज्य सहकारें कृषकों को तकावी ऋण प्रदान करती है।

🔥 राज्य सरकारी बैंक, केन्द्रीय सहकारी बैंक, अनुसूचित व्यापारिक बैक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा ग्रामीण विद्युतीकरण निगम द्वारा प्रत्यक्ष ऋण प्राथमिक समितियों को उपलब्ध कराया जाता है। इसके बाद प्राथमिक सहकारी समितियों को उपलब्ध कराया जाता है। इसके बाद प्राथमिक सहकारी समितियाँ कृषकों को ऋण देती हैं।

🔥 भारत में सहकारी बैंकों की स्थापना राज्यों द्वारा बनाये गये सहकारी समिति अधिनियमों के द्वारा की जाती है।

🔥 भारत में सहकारी बैंकों का गठन तीन स्तरों वाला होता है। राज्य सरकारी बैंक सम्बन्धित राज्य में शीर्ष संस्था होती है। इसके बाद केन्द्रीय या जिला सहकारी बैंक जिला स्तर पर तथा ग्राम स्तर पर प्राथमिक ऋण समितियाँ होती हैं।

🔥 सहकारी बैंकों पर भारतीय रिजर्व बैंक का आंशिक नियन्त्रण होता है।

🔥 प्राथमिक साख समितियों की स्थापना का उद्देश्य कृषि क्षेत्र को अल्पकालीन ऋण की आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है।

🔥 कृषि सहकारी साख समितियां अल्पकालीन ऋण देती हैं जिसको असामान्य परिस्थितियों में तीन वर्ष की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है।

🔥 जिला सहकारी बैंकों (अथवा केन्द्रीय सहकारी बैंक) का कार्यक्षेत्र एक जिले तक होता है।

🔥 किसी राज्य में शीर्ष पर स्थिति सहकारी बैंक को राज्य सहकारी बैंक कहा जाता है।

🔥 राज्य सरकारी बैंक का प्रमुख कार्य जिला सहकारी बैंकों को ऋण प्रदान करना तथा उन पर नियन्त्रण करना है। परन्तु इसके साथ- साथ राज्य सहकारी बैंक भारतीय रिजर्व बैंक, जिला सहकारी बैंक तथा प्राथमिक सहकारी समितियों के मध्य वित्तीय कड़ी का भी कार्य करता है।

🔥 राज्य सरकारी बैंक अपना चालू अंश बेचकर तथा ऋण लेकर अपनी चालू पूंजी में वृद्धि करते हैं।

🔥 1975 में कृषि साख को नई दिशा देने एवं बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का गठन किया गया।

🔥 सिक्किम तथा गोवा राज्यों में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक नहीं हैं।

🔥 1907 में विजय समिति के रिपोर्ट के आधार पर नये क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना पर रोक लगा दी गयी।

🔥 देश में कृषि एवं कृषि ग्रामीण विकास हेतु वित्त उपलब्ध कराने वाली शीर्षस्थ संस्था राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक (नावार्ड) है।

🔥 नावार्ड की स्थापना 12 जुलाई, 1982 को शिव रमन समिति की अनुशंसा पर की गयी।

🔥 1 अप्रैल, 1995 को नावार्ड के अन्तर्गत शोषण आधारित संरचनात्मक विकास निधि की स्थापना का उद्देश्य कृषि क्षेत्र के लिए विशेष ऋण उपलब्ध कराना है।

🔥 कृषकों की दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि विकास बैंक की स्थापना की गयी।

🔥 भूमि विकास बैंक कृषकों को भूमि क्रय करने, ऋणों का भुगतान करने, भूमि पर स्थायी सुधार करने आदि के लिये, दीर्घकालीन ऋण भूमि उपलब्ध कराती है।

🔥 भूमि विकास बैंक कृषकों की अचल सम्पत्ति को बंधक बनाकर ऋण प्रदान करता है। साधारणतया प्रति भूमि का 50 प्रतिशत ॠण जाता है।

🔥 भारत में सर्वप्रथम मद्रास में 1929 में प्राथमिक बैंकों को समन्वित करने के लिए केन्द्रीय भूमि बंधक बैंक की स्थापना की गयी।

🔥 किसान क्रेडिट कार्ड योजना का मुख्य उद्देश्य कृषकों का अल्पविधि के लिये सुविधाजनक तरीके से ऋण उपलब्ध कराना

भूमि सुधार

🔥 स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व भारत में भू-स्वामित्व से सम्बन्धित तीन पद्धतियाँ रैयत वाड़ी, महालवाड़ी तथा जमींदारी थी।

🔥 भूमि सुधार से आशय भूमि के स्वामित्व, काश्तकारी एवं भूमि से सम्बन्धित व्यवस्था में नीतिगत परिवर्तन करने से है।

🔥 भारत में सुधार का मौलिक उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि करना तथा कृषकों के प्रति सामाजिक न्याय है।

🔥 स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में भूमि सुधार की दिशा में उठाये गये प्रमुख कदम मध्यस्थों एवं जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, जोतों की उच्चतम सीमा का निर्धारण, काश्तकारी व्यवस्ता में सुधार तथा कृषि का पुनर्गठन भूमि सुधार की दिशा में उठाया गया प्रमुख कदम है।

🔥 भारत में मध्यस्थों तथा जमींदारी तथा का मुख्य उद्देश्य शोषण रहित समाज की स्थापना करना है।

कृषि विपणन

🔥 कृषि विपणन से आशय उन क्रियाओं से है जिसके अन्तर्गत कृषि उपज के उत्पादक अपनी उपज को विभिन्न खरीददारों को बेंचकर उपज का मूल्य प्राप्त करते हैं।

🔥 कृषि विपणन में कृषि उपजों को एकत्रित करना, उपज को मण्डियों तथा बाजारों तक ले जाना, उनका श्रेणीकरण करना, प्रमापीकरण करना तथा उनकी बिक्री करना आदि क्रियायें सम्मिलित की जाती हैं।

🔥 किसी देश की अर्थव्यवस्था में कृषि विपणन को केन्द्रीय महत्त्व दिया जाता है। क्योंकि इसमें औद्योगिक विकास की गति में वृद्धि करने, गैर कृषि जनसंख्या के लिए खाद्यात्र की पूर्ति व्यवस्था निश्चित करना, आन्तरिक बाजार का विस्तार करना तथा कृषि वस्तुओं के मूल्यों में स्थिरता लाना सम्भव हो पाता है।

🔥 सहकारी विपणन का अभिप्राय पारस्परिक लाभ प्राप्त करना एवं विपणन समस्याओं को हल करने के लिए मिलकर कार्य करना है।

🔥 भारत में सहकारी विपणन का स्वरूप चार स्तरीय है-ग्राम स्तर पर, जिला स्तर पर, राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर है।

🔥 ग्राम स्तर पर कार्य करने वाली विपणन संस्थाओं को प्राथमिक सहकारी समिति कहा जाता है। ये समितियाँ अपने सदस्यों के लाभ के लिए कार्य करती हैं।

🔥 सहकारी विपणन के अन्तर्गत सदस्य कृषकों को उनके उपजों का उचित प्रतिफल दिलाना, संग्रह की सुविधायें प्रदान करना, पड़ने पर वित्तीय ऋण देना, सदस्य कृषकों को बाजार सम्बन्धी सूचनाओं की जानकारी देना, कृषि उपज मूल्यों में स्थायित्व लाना तथा सदस्य कृषकों को कच्चा माल बीज, खाद्य की पूर्ति सुनिश्चित करना है।

🔥 वर्तमान में 6556 सहकारी विपणन समितियाँ हैं।

🔥 प्राथमिक सहकारी विपणन समितियों का मुख्य कार्य कृषि उपजों का क्रय-विक्रय, एकीकरण, श्रेणीकरण करने के साथ-साथ इन समितियों द्वारा सामानों तथा बीज, खाद आदि खरीदने के लिए वित्तीय सुविधायें प्रदान करना है।

🔥 जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी विपणन समितियों का गठन प्राथमिक सहकारी विपणन समितियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना तथा अन्य सहकारी विपणन संस्थाओं के मध्य समन्वय बनायें रखना है।

🔥 केन्द्रीय सरकारी विपणन समितियों की संख्या 157 है।

🔥 प्रान्तीय विपणन समितियों का मुख्य कार्य प्राथमिक सहकारी विपणन समितियों एवं जिला स्तर को केन्द्रीय समितियों के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना है।

🔥 देश भर में 16 प्रान्तीय विपणन समितियां कार्य कर रही हैं।

🔥 भारत की सर्वोच्च सहकारी विपणन संस्था या राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सहकारी विपणन संस्था है। राष्ट्रीय सहकारी, कृषि विपणन संगठन (नेफेड) है। इसकी स्थापना 1958 में की गयी।

🔥 नेफेड के गठन का उद्देश्य विभिन्न सहकारी विपणन संस्थाओं के मध्य समन्वय स्थापित करना है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय कृषि व्यापार योजना को प्रोत्साहित किया जा सके।

🔥 जनजातियों लोगों को शोषण करने वाले, निजी व्यापारियों से छुटकारा दिलाने एवं उनके द्वारा तैयार की गयी वस्तुओं का अच्छा मूल्य दिलाने के उद्देश्य से सरकार ने अगस्त, 1987 में भारतीय जनजातीय परिसंघ की स्थापना की जिन्हें ट्राइफेड कहा जाता है। ट्राइफेड ने 1988 से कार्य करना शुरू किया है।

🔥 केन्द्रीय भण्डारण निगम की स्थापना 1958 में की गयी।

कृषि इनपुट, सिंचाई, शक्ति, उर्वरक, बीज एवं यंत्रीकरण

🔥 भारत में सिंचाई के प्रमुख साधन, तालाब, नहर, कुआँ हैं।

🔥  पपिंगसेट तथा भारत में सिंचाई साधनों का वर्गीकरण तीन भागों में लघु मध्य तथा वृहद् में किया जाता है।

🔥 त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम 96-97 शुरू किया गया है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सिंचाई परियोजनाओं के शीघ्र पूरा करना है।

🔥 त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के अन्तर्गत केन्द्रीय चयनित बड़ी सिंचाई तथा बहुप्रयोजनवी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए राज्यों को ऋण के माध्य से केन्द्रीय सहायता प्रदान करना है।

🔥 कृषकों के लिए सिंचाई सुविधाओं के विकास हेतु गंगा कल्याण योजना, 1997 में शुरू की गयी थी।

🔥 गंगा कल्याण योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों की सहायता करना जिससे वे आर्थिक सहायता, रख-रखाव सहायता तथा ऋण सम्बन्धी व्यवस्था के माध्यम से भूमिगत जल तथा भूतल जल के लिये योजना बनाना है।

🔥 गंगा कल्याण योजना के अन्तर्गत संसाधनों में केन्द्र की भूमिका 80 प्रतिशत तथा राज्य की 20 प्रतिशत होती है।

🔥 गंगा कल्याण योजना के अन्तर्गत अधिकतम सहायता पचास हजार की दी जाती है।

🔥 भारत के समस्त फसलों के क्षेत्रफल में सिंचाई क्षेत्रफल का योगदान पंजाब में (94.9 प्रतिशत) सर्वाधिक है। जबकि दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश जहाँ समस्त फसल में सिंचित क्षेत्रफल (64.1 प्रतिशत) है।

🔥 फास्फेटी तथा पोटाशी उर्वरकों को 25 अगस्त, 1992 से नियन्त्रण मुक्त किया गया।

🔥 बीज बैंक को स्थापना तथा अनुरक्षण की योजना 1999-2000 में शुरू की गयी।

🔥 बीज बैंक की स्थापना तथा अनुरक्षण का उद्देश्य किसी भी आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बीज उपलब्ध कराना तथा बीजों के उत्पादन एवं वितरण के लिए ढांचागत सुविधायें भी विकसित करना है।

🔥 उक्त योजना राष्ट्रीय बीज निगम, भारतीय कृषि निगम तथा विभिन्न राज्यों के निगमों के माध्यम से क्रियान्वयन की जा रही है।

🔥 राष्ट्रीय बीज अधिनियम, 2001 में राष्ट्रीय बीज बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया।

🔥  राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना 1963 में की गयी।

🔥 बीज फसल बीमा प्रायोगिक योजना 1999-2000 में शुरू की गयी।

🔥 उक्त योजना का उद्देश्य प्रजनकों/ उत्पादकों में विश्वास सुदृढ़ करने हेतु बीज तथा फसल की पैदावार न होने की स्थिति में बीज प्रजनकों/उत्पादकों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है।

कीमत एवं कीमत नीति

🔥 कृषि उत्पादों की कीमतों को कृषि कीमत कहा जाता है। ध्यातव्य कि कृषि कीमत विभिन्न वस्तुओं के विनिमय मूल्य का निर्धारण करती है एवं उनमें पारस्परिक सम्बन्ध प्रदर्शित करते हैं।

🔥 कृषि कीमतों के प्रमुख स्वरूप हैं- मण्डी कीमत, सामान्य कीमत, न्यूनतम समर्थित, वसूली कीमत, वायदा कीमत तथा निर्गम कीमत आदि।

🔥 किसी जिन्स की मण्डी में किसी समय जो कीमत प्रचलित होती है वह उस जिन्स की मण्डी कीमत कहलाती है। मण्डी कीमत अल्पकालीन कीमत भी कहलाती है।

🔥 वस्तुओं के माँग के अनुसार पूर्ति ने समन्वय के लिए पर्याप्त समय मिल जाने के उपरान्त जो कीमत किसी समय मण्डी में प्रचलित होती है वह उस वस्तु की सामान्य कीमत कहलाती है। सामान्य कीमत दीर्घकालीन कीमत होती है।

🔥 न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषि उत्पादकों के लिए एक प्रकार की बीमा कीमत है इसके अनुसार सरकार उत्पादक कृषकों को आश्वासन देती है कि खाद्यान्नों की कीमतें नियत कीमत से नीचे नहीं गिरने दे जायेगी। यदि कीमतें न्यूनतम समर्थन कीमत से नीचे गिरती हैं तो सरकार घोषित न्यूनतम समर्थित कीमतों पर खाद्यान्नों को क्रय क्रय कर लेगी।

🔥 न्यूनतम मूल्य घोषणा का उद्देश्य कृषकों को बाजार में कीमतों के उतार-चढ़ाव से होने वाली क्षति से बचाना तथा यह सुनिश्चित करना कि सरकार कीमतों में गिरावट होने पर को उपजों को स्वयं कर लेगी।

🔥 न्यूनतम समर्थित कीमतों का द्वितीयक उद्देश्य कृषकों को उत्पादन में वृद्धि के लिए प्रेरणा तथा उनकी आय स्तर में वृद्धि करना।

🔥 भारत में न्यूनतम समर्थित कीमतें केन्द्र सरकार द्वारा घोषित की। जाती है।

🔥 वसूली कीमत वह कीमत है जिस कीमत पर सरकार (उचित कीमत की दुकानों से खाद्यान्नों की सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को बनाये रखने के लिए) मण्डी में कृषकों तथा व्यापारियों से उनकी उपज क्रय करती है।

🔥 वसूली कीमतों की घोषणा का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को उचित कीमतों पर आवश्यक मात्रा में खाद्यान्न उपलब्ध कराना होता है।

🔥 वसूली कीमत सामान्यतया बाजार कीमत से कम कीमत पर निर्धारित की जाती है।

🔥 निर्गमन कीमत का आशय जिस कीमत पर सरकार खाद्यान्न आदि वस्तुयें उपभोक्ताओं को उचित कीमत की दुकानों से उपलब्ध कराती है वह, उस खाद्यान्न की निर्गमन या बिक्री कीमत कहलाती हैं।

🔥 निर्गमन कीमत समाज के कमजोर वर्गों के लिए साधारणतया निम्न स्तर पर नियत किये जाने से होने वाली क्षति की पूर्ति सरकार द्वारा विक्रेताओं को सब्सिडी देकर को जाती है।

🔥 किसी जीन्स की उचित कीमत वह है जो उस जिन्स के उत्पादकों को उचित लाभ प्रदान करती है साथ ही वह उपभोक्ताओं के लिए भी अधिक नहीं होती है।

🔥 भारत में न्यूनतम समर्थित कीमतें केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष भर में दो बार (एक बार मार्च-अप्रैल में रवी की फसलों के लिए तथा दूसरी बार अगस्त-सितम्बर में खरीफ फसलों के लिए) घोषित किया जाता है।

कृषि क्षेत्र की कुछ क्रान्तियाँ

🔥 नीली क्रान्ति - मत्स्य उत्पादन से सम्बन्धित है।

🔥 पीली क्रान्ति - तिलहन से सम्बन्धित है।

🔥 भूरी क्रान्ति - उर्वरक उत्पादन से सम्बन्धित है।

🔥 श्वेत क्रान्ति - दुग्ध उत्पादन से सम्बन्धित है।

🔥 हरित क्रान्ति - अनाज उत्पादन से सम्बन्धित है।

🔥 ऑपरेशन फ्लड - का सम्बन्ध दुग्ध उत्पादन से है।

🔥 सिल्वर क्रान्ति - का सम्बन्ध कपास उत्पादन से है।

🔥 रजत क्रान्ति - अण्डा एवं मुर्गी उत्पादन

🔥 गोल क्रान्ति - आलू उत्पादन

🔥 लाल क्रान्ति - मांस / टमाटर

🔥 सुनहरी क्रान्ति - बागवानी

🔥 गुलाबी क्रान्ति - झींगा उत्पादन

🔥 ब्लैक क्रान्ति - वैकल्पिक ऊर्जा

🔥 बादामी क्रान्ति - मसालों का उत्पादन

🔥 इन्द्रधनुषी क्रान्ति - दूसरी कृषि नीति 2000

कृषि विज्ञान की शाखाएं

1. कीट विज्ञान - फसलों पर लगने वाले कीटों एवं उनकी रोकथाम के उपायों का अध्ययन।

2. शस्य विज्ञान - कृषि फसलों तथा मृदा प्रबन्धों का अध्ययन।

3. मृदा संरक्षण - मृदा को अपरदन से तथा उसकी उर्वरा शक्ति को नष्ट होने से बचाने के बारे में अध्ययन।

4. पादप रोग विज्ञान - फसलों में लगने वाली बीमारियों एवं उनकी रोकथाम का अध्ययन।

5. हार्टी कल्चर - फलों तथा बागों के प्रबन्धन के बारे में अध्ययन, सब्जी तथा फूल वाली फसलों का अध्ययन।

6. कृषि अभियंत्रण - कृषि कार्यों में प्रयुक्त मशीनों तथा कल-पुर्जों के बारे में अध्ययन

7. मृदा विज्ञान - मृदा सम्बन्धी अध्ययन।

कृषि के विशेष प्रकार

1. आरबरी कल्चर - विशेष प्रकार के वृक्षों तथा झाड़ियों की कृषि, इनका संरक्षण एवं संवर्द्धन ।

2. फ्लोरी कल्चर - व्यापारिक स्तर पर की जाने वाली फूलों की कृषि |

3. एपी कल्चर - शहद उत्पादन हेतु किया जाने वाला मधुमक्खी पालना

4. मेरी कल्चर - समुद्री जीवों से उत्पादन की क्रिया ।

5. ओलेरी कल्चर - जमीन पर फैलने वाली विभिन्न प्रकार की सब्जियों की कृषि |

6. पीसी कल्चर - स्तर पर की जाने वाली मछली पालन की क्रिया ।

7. सिल्वी कल्चर - वनों के संरक्षण एवं संवर्द्धन से सम्बन्धित क्रिया।

8. सेरी कल्चर - रेशम पालन एवं शहतूत आदि की कृषि

9. विटी कल्चर - व्यापारिक स्तर पर अँगूर उत्पादन।

10. वर्मी कल्चर - व्यापारिक स्तर पर की जाने वाली चूहा पालन की क्रिया

🔥 ग्रीन कृषि (Green Agriculture)- यह ऐसी कृषि प्रणाली है। जिसमें संयोजित पेस्ट कंट्रोल प्रबंधन, फसल के पोषणीय तत्त्व की आपूर्ति तथा प्राकृतिक संसाधनों के एकीकृत प्रबंधन का मिश्रण है। हरित कृषि में खनिज उर्वरकों तथा रासायनिक कीटनाशकों के सुरक्षित तथा आवश्यक न्यूनतम प्रयोग होता है।

🔥 सार्वजनिक वितरण प्रणाली - यह गरीबों को सस्ते मूल्य पर खाद्यान्नों को वितरित करने की प्रणाली है, जिससे उन्हें खाद्यान्नों की बढ़ती हुई कीमतों के बोझ से बचाया जा सके।

🔥 लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली-(टी०पी०डी०सी०) यह योजना 1 जून, 1997 को शुरू की गयी। दिल्ली और लक्ष्यद्वीप को छोड़कर सभी राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों में यह लागू है।

🔥 इसके अन्तर्गत खाद्यान्नों की आपूर्ति दो स्तरीय प्रणाली के अन्तर्गत की जाती है।

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