Economics
Model Set-1
(समय:
3 घंटे 15 मिनट) पुर्णांक : 80
परीक्षार्थियों
के लिए निर्देश :
1. यह प्रश्न-पत्र दो खण्डों
में है - खण्ड-अ एवं खण्ड-ब
2. खण्ड-अ में कुल 40 बहुविकल्पीय
प्रश्न हैं। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। प्रत्येक प्रश्न की अधिमानता 1 अंक की है। प्रत्येक
प्रश्न में चार विकल्प दिए गये हैं। इनमें से सबसे उपयुक्त उत्तर को आप अपने OMR उत्तर
पत्रक पर ठीक-ठीक गहरा काला करें। नीला या काला बॉल-प्वाइंट कलम का ही प्रयोग करें।
पेंसिल का प्रयोग वर्जित है। आप अपना पूरा हस्ताक्षर OMR उत्तर पत्रक में दी गयी जगह
पर करें।
3. खण्ड-ब में तीन खण्ड- क,
ख एवं ग है और कुल प्रश्नों की संख्या 19 है। प्रश्न- संख्या 1-7 अतिलघु उत्तरीय प्रकार
के हैं। इनमें से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक
प्रश्न की अधिमानता 2 अंक निर्धारित हैं।
प्रश्न-
संख्या 8-14 लघु उत्तरीय प्रकार के हैं। इनमें से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर
अधिकतम 50 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न की अधिमानता 3 अंक निर्धारित हैं।
प्रश्न-
संख्या 15-19 दीर्घ उत्तरीय प्रकार के हैं। इनमें से किन्हीं तीन प्रश्नों के
उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न की अधिमानता 5 अंक निर्धारित
हैं।
4. OMR उत्तर पत्रक के पृष्ठ
2 पर प्रदत्त सभी निर्देशों को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा उसके अनुसार कार्य करें। कृपया
परीक्षा भवन छोड़ने से पहले OMR उत्तर पत्रक वीक्षक को लौटा दीजिए। प्रश्न पुस्तिका
आप अपने साथ ले जा सकते हैं।
खण्ड-अ (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
प्रश्न- संख्या 1 से 40 तक के प्रत्येक प्रश्न के साथ चार विकल्प दिये
गये हैं, जिनमें से एक सही है। अपने द्वारा चुने गये सही विकल्प को OMR शीट पर
चिह्नित करें। 40 x 1 = 40
1. अवसर लागत
क्या है?
(1) वह विकल्प जिसका परित्याग
कर दिया गया
(2) खोया हुआ अवसर
(3) हस्तांतरण
(4) इनमें से
सभी
2. किसी वस्तु
की मानवीय आवश्यकता को संतुष्ट करने की क्षमता है
(1) उपभोग
(2) उपयोगिता
(3) गुण
(4) रुचि
3. उपभोक्ता
की सर्वाधिक संतुष्टि के लिए
(1) वस्तु की
सीमांत उपयोगिता उसके मूल्य के समान होनी चाहिए
(2) वस्तु की सीमांत उपयोगिता
उसके मूल्य से अधिक होनी चाहिए
(3) सीमांत उपयोगिता और मूल्य
का कोई संबंध नहीं है
(4) इनमें से कोई नहीं
4. निम्नलिखित
में से किसके परिवर्तन से माँग में परिवर्तन नहीं होता ?
(1) मूल्य में परिवर्तन
(2) आय में परिवर्तन
(3) रुचि तथा फैशन में परिवर्तन
(4) इनमें से
कोई नहीं
5. मूल्य वृद्धि
से 'गिफिन' वस्तुओं की माँग
(1) बढ़ जाती
है
(2) घट जाती है
(3) स्थिर रहती हैं
(4) अस्थिर हो जाती है
6. अक्षों के
केन्द्र से निकलने वाली सीधी पूर्ति रेखा की लोच
(1) इकाई से कम होती है
(2) इकाई से अधिक होती है
(3) इकाई के
बराबर होती है
(4) शून्य के बराबर होती है
7. उत्पादन का
सक्रिय साधन है
(1) पूँजी
(2) श्रम
(3) भूमि
(4) इनमें से कोई नहीं
8. औसत लागत
वक्र का आकार होता है
(1) U-अक्षर
जैसा
(2) समकोणीय अतिपरवलय जैसा
(3) X- अक्ष की समांतर रेखा
(4) इनमें से कोई नहीं
9. निम्नलिखित
में से कौन पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषता नहीं है?
(1) क्रेताओं तथा विक्रेताओं
की अत्यधिक संख्या
(2) वस्तु की एकरूपता
(3) विज्ञापन
तथा विक्रय लागत
(4) बाजार का पूर्ण ज्ञान
10. किस बाजार
में औसत आय सीमांत आय के बराबर होती हैं?
(1) पूर्ण प्रतियोगिता
(2) अल्पाधिकार
(3) अपूर्ण प्रतियोगिता
(4) एकाधिकार
11. जब सीमांत
उपयोगिता ऋणात्मक होती है, तब कुल उपयोगिता
(1) अधिकतम होती है
(2) घटने लगती
है
(3) घटती दर से बढ़ती है
(4) इनमें से कोई नहीं
12. यदि किसी
वस्तु के मूल्य में 40% परिवर्तन के कारण माँग में 60% परिवर्तन हो तो माँग की लोच
है।
(1) 0.5
(2) -1.5
(3) 1
(4) 0
13. विलासिता
वस्तुओं की माँग
(1) बेलोचदार होती है
(2) लोचदार होती है
(3) अत्यधिक
लोचदार होती है
(4) पूर्णतया बेलोचदार होती
है
14. स्थायी पूँजी
के उपभोग को क्या कहते हैं
(1) पूँजी निर्माण
(2) मूल्य ह्रास
(3) निवेश
(4) इनमें से सभी
15. निम्नलिखित
में से कौन सही है ?
(1) प्रयोज्य
आय = व्यक्तिगत आय - प्रत्यक्ष कर
(2) प्रयोज्य आय = निजी आय
- प्रत्यक्ष कर
(3) प्रयोज्य आय = निजी आय
- अप्रत्यक्ष कर
(4) प्रयोज्य आय = निजी आय
- अप्रत्यक्ष कर
16. मुद्रा वह
वस्तु है
(1) जो मूल्य का मापक हो
(2) जो सामान्यतः विनिमय के
लिए स्वीकार किया जाए
(3) जिसके रूप में धन-सम्पत्ति
का संग्रह किया जाए
(4) इनमें से
सभी
17. मुद्रा की
पूर्ति से हमारा आशय है।
(1) बैंक में जमा राशि
(2) जनता के पास उपलब्ध रुपये
(3) डाकघर में जमा बचत खाते
की राशि
(4) इनमें से
सभी
18. मुद्रास्फीति
वह स्थिति है जब
(1) मूल्य स्तर स्थिर रहता
है
(2) मूल्य में ह्रास की प्रवृत्ति
होती है
(3) मूल्य स्तर
में निरंतर तीव्र वृद्धि हो
(4) इनमें से कोई नहीं
19. व्यावसायिक
बैंक
(1) नोट निर्गमन करते हैं
(2) ग्राहकों से जमा स्वीकार
करते हैं
(3) ग्राहकों को ऋण देते हैं
(4) केवल
(2) एवं (3)
20. भारतीय रिजर्व
बैंक की स्थापना किस वर्ष हुई थी?
(1) 1947 में
(2) 1951 में
(3) 1935 में
(4) 1955 में
21. भारत में
बैंकिंग क्षेत्र के सुधार से जुड़ा हुआ है
(1) वर्ष 1991
(2) नरसिंहम
कमेटी
(3) वाई.वी. रेड्डी
(4) केवल (1) एवं (2)
22. बजट
(1) सरकार के आय-व्यय का ब्योरा
है
(2) सरकार की आर्थिक नीति का
दस्तावेज है।
(3) सरकार के नये कार्यक्रमों
का विवरण है
(4) इनमें से
सभी
23. असंतुलित
बजट में
(1) आय व्यय से अधिक होता है।
(2) आय की अपेक्षा व्यय अधिक
होता है
(3) घाटा ऋण या नोट छापकर पूरा
किया जाता है।
(4) केवल
(2) एवं (3)
24. विनिमय दर
का अर्थ है
(1) एक विदेशी मुद्रा के लिए
कितनी देशी मुद्रा देनी होगी
(2) एक विदेशी मुद्रा के लिए
कितनी दूसरी विदेशी मुद्रा देनी होगी
(3) विदेशी मुद्रा की खरीद-बिक्री
दर
(4) इनमें से
सभी
25. रोजगार गुणक
सिद्धांत के जन्मदाता हैं
(1) केन्स
(2) काह्न
(3) हेन्सेन
(4) मार्शल
26. व्यष्टि
अर्थशास्त्र अध्ययन करता है।
(1) व्यक्तिगत
इकाई का
(2) आर्थिक समग्र का
(3) राष्ट्रीय आय का
(4) इनमें से कोई नहीं
27. किसी सामान्य
वस्तु के माँग वक्र की ढाल होती है।
(1) ऋणात्मक
(2) धनात्मक
(3) शून्य
(4) अपरिभाषित
28. समसीमांत
उपयोगिता नियम के अनुसार उपभोक्ता के संतुलन की शर्त है
(2)
(3) (1) एवं
(2) दोनों
(4) अपरिभाषित है
29. एक चतुः
क्षेत्रीय या खुली अर्थव्यवस्था में संतुलन की शर्त है
(1) बचत + कर + आयात = निवेश
+ सरकारी व्यय + निर्यात
(2) कुल रिसाव = कुल अन्तः
क्षेपण
(3) समग्र उत्पादन = समग्र
व्यय
(4) इनमें से
सभी
30. यदि किसी
देश की विदेशों से प्राप्त निवल आय ऋणात्मक है, तो
(1) सकल घरेलू उत्पाद <
सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(2) सकल घरेलू
उत्पाद > सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(3) सकल घरेलू उत्पाद सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(4) सकल घरेलू उत्पाद = सकल
राष्ट्रीय उत्पाद
31. मार्शल के
अनुसार किसी 'वस्तु की उपयोगिता को
(1) मुद्रा में
मापा जा सकता है
(2) मुद्रा में नहीं मापा जा
सकता है
(3) संख्यात्मक रूप में मापा
जा सकता है
(4) (1) एवं (3) दोनों
32. निम्न में
से कौन सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम का अपवाद नहीं है ?
(1) नशीली वस्तु का उपभोग
(2) मुद्रा का संचय
(3) दुर्लभ वस्तु का संग्रह
(4) रोटी तथा
दूध
33. एक ऋजुरेखी
माँग वक्र के मध्य विन्दु पर माँग की लोच
(1) शून्य होगी
(2) इकाई होगी
(3) अनंत होगी
(4) इनमें से कोई नहीं
34. एक पूर्णतया
वेलोचदार माँग वक्र
(1) Y-अक्ष के
समांतर होगी
(2) X-अक्ष के समांतर होगी
(3) समकोणीय हाइपरबोली होगी
(4) समतल होगी
35. उत्पादन
के सभी संसाधनों में एक ही अनुपात में वृद्धि के परिणाम स्वरूप उत्पादन में अधिक अनुपात
में वृद्धि हो तो इसे कहते हैं।
(1) स्थिर पैमाने का प्रतिफल
(2) ह्रासमान पैमाने का प्रतिफल
(3) वर्द्धमान
पैमाने का प्रतिफल
(4) इनमें से कोई नहीं
36. आय बढ़ने
पर उपभोक्ता किन वस्तुओं की माँग घटा देता है ?
(1) निम्न कोटि की वस्तुएँ
(2) सामान्य वस्तुएँ
(3) गिफिन वस्तुएँ
(4) (1) और (2) दोनों
37. किसी अर्थव्यवस्था
में एक वर्ष के अंतर्गत उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के वाजार मूल्य को कहते
हैं
(1) कुल राष्ट्रीय उत्पादन
(2) राष्ट्रीय आय
(3) कुल घरेलू
उत्पादन
(4) विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन
38. निम्न में
से कौन साख नियंत्रण की गुणात्मक विधि है ?
(1) बैंकों के नकद कोष अनुपात
में परिवर्तन
(2) उपभोक्ता साख पर नियंत्रण
(3) खुले बाजार का कार्यक्रम
(4) बैंक दर
में परिवर्तन
39. एकाधिकार
फर्म के संतुलन की शर्त नहीं है
(1) औसत आय
= सीमांत लागत
(2) सीमांत आय = सीमांत लागत
(3) सीमांत लागत वक्र सीमांत
आय वक्र को नीचे से काटे
(4) (1) और (2) दोनों
40. मौद्रिक
नीति के प्रमुख उद्देश्य हैं
(1) उत्पादन एवं रोजगार में
वृद्धि
(2) विदेशी विनिमय दर की स्थिरता
(3) मूल्य स्थिरता
(4) इनमें सभी
खण्ड-ब (विषयनिष्ठ प्रश्न)
खण्ड-क (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं पाँच प्रश्नों
के उत्तर दीजिए। 2x5=10
1. व्यष्टि अर्थशास्त्र
क्या है?
उत्तर- व्यष्टि अर्थशास्त्र
आर्थिक सिद्धांत की यह शाखा है जिसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था की व्यक्तिगत इकाइयों का
अध्ययन किया जाता है। इसका संबंध किसी उत्पादक या उपभोक्ता जैसी आर्थिक इकाई के समक्ष
उत्पन्न दुर्लभता और चयन की समस्याओं के विश्लेषण से होता है जैसे व्यक्तिगत उत्पादक,
व्यक्तिगत उपभोक्ता, एक फर्म या उद्योग, किसी वस्तु विशेष की कीमत इत्यादि।
2. सीमांत उपयोगिता
क्या है ?
उत्तर- मनुष्य प्रायः अपनी
आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी वस्तु की एक-से-अधिक इकाइयों का प्रयोग करता है।
एक दिए हुए समय में उपभोग की जानेवाली वस्तु की अंतिम इकाई को सीमांत इकाई तथा उससे
प्राप्त उपयोगिता को सीमांत उपयोगिता कहते हैं।
3. कुल उत्पाद
क्या है?
उत्तर- अन्य सभी आगतों को स्थिर
रखते हुए एक परिवर्तनशील आगत की मात्रा में परिवर्तन से जो कुल निर्गत प्राप्त होता
है उसे कुल उत्पाद (TP) कहते हैं। इसे परिवर्तनशील आगत के कुल भौतिक उत्पाद के रूप
में भी जाना जाता है।
4. संतुलन बिंदु
क्या है ?
उत्तर - संतुलन बिंदु वह बिंदु
है जहाँ माँग और पूर्ति-वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। इस बिंदु पर किसी वस्तु की माँग
तथा पूर्ति की मात्रा एक-दूसरे के बराबर होती हैं। एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में
यह बिंदु ही संतुलन कीमत को निर्धारित करता है।
5. राष्ट्रीय
आय लेखांकन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर- प्रत्येक देश अपनी राष्ट्रीय
आय एवं उससे संबंधित आँकड़ों अथवा सांख्यिकी का विवरण रखता है। इन्हें राष्ट्रीय आय
लेखा या राष्ट्रीय लेखा कहा जाता है। राष्ट्रीय लेखा प्रणाली वह विधि है जिसके द्वारा
कुल घरेलू उत्पाद तथा अन्य आर्थिक समुच्चयों को मापा जाता है।
6. औसत बचत प्रवृत्ति
क्या है ?
उत्तर - कुल बचत और कुल आय
के अनुपात को औसत बचत प्रवृत्ति (APS) कहते हैं। यह कुल आय का वह भाग या अनुपात है
जो बचाया जाता है।
7. घाटे का बजट
क्या है?
उत्तर- जिस बजट में सरकार का
अनुमानित व्यय उसकी प्राप्तियों से अधिक होता है उसे घाटे का बजट कहते है। दूसरे शब्दों
में, एक घाटे के बजट में सरकार का व्यय, सरकार की आय से अधिक होता है।
खण्ड ख (लघु उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं पाँच प्रश्नों
के उत्तर दीजिए।
8. उत्पादन संभावना
वक्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- उत्पादन संभावना वक्र
वह वक्र है जो विभिन्न वैकल्पिक उत्पादन संभावनाओं को दर्शाती है जो कि उपलब्ध साधनों
एवं उत्पादन की तकनीक के द्वारा उत्पन्न किये जा सकते हैं।
उत्पादन संभावना वक्र से यह प्रतीत होता है कि OFA से घिरे हिस्से के अंदर वाले बिंदु साधनों के अपूर्ण उपयोग अथवा अकुशल उपयोग को प्रदर्शित करता है। भीतरी स्थान से AF वक्र के किसी बिंदु पर खिसकाव उपलब्ध साधनों का संपूर्ण उपयोग दर्शाता है। यह वक्र एक सीमा रेखा है जिसको उपलब्ध साधन पार नहीं कर सकते। यदि समाज विकास के कारण साधनों में वृद्धि करने में सफल होगा तब ही कोई नया वक्र बनेगा। वक्र का दायीं ओर प्रतिस्थापन्न (नया वक्र) साधनों का विकास दर्शाता है। इसलिए, यह आर्थिक समस्याओं का प्रथम प्रयास स्पष्ट करता है-जैसे क्या उत्पादन किया जाए।
9. सामान्य वस्तुओं
और घटिया वस्तुओं में क्या अंतर है?
उत्तर- सामान्य वस्तु : सामान्य
वस्तुओं में आय माँग वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है अर्थात् बाएँ से दाएँ ऊपर चढ़ता
हुआ होता है। श्रेष्ठ वस्तुओं का धनात्मक ढाल वाला आय माँग वक्र यह बताता है कि उपभोक्ता
की आय में प्रत्येक वृद्धि उसकी माँग में भी वृद्धि करती है तथा इसके विपरीत आय की
प्रत्येक कमी सामान्य दशाओं में माँग में भी कमी उत्पन्न करती है।
घटिया
वस्तु :
घटिया वस्तुएँ से वस्तुएँ होती हैं जिन्हें उपभोक्ता नीच दृष्टि
से देखते हैं और आय स्तर के पर्याप्त न होने पर उपभोग करता है; जैसे- मोटा अनाज,
वनस्पति घी, मोटा कपड़ा आदि। ऐसी दशा में जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय में वृद्धि
होती है, वैसे-वैसे उपभोक्ता इन घटिया वस्तुओं का उपभोग
घटाकर श्रेष्ठ वस्तुओं के उपभोग में वृद्धि करने लगता है अर्थात् घटिया वस्तुओं के
लिए आय माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला बाएँ से दाएँ नीचे गिरता हुआ होता है।
10. एक तीन क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय एवं उत्पादन के चक्रीय
प्रवाह को समझाइए ।
उत्तर-
प्राचीन काल में प्रत्येक अर्थव्यवस्था बंद अर्थव्यवस्था ही होती थी । उस समय कोई
भी देश आयात-निर्यात नहीं करता था, क्योंकि प्रत्येक देश में अपनी आवश्यकताओं के
अनुसार ही वस्तुओं का उत्पादन किया जाता था। इस प्रकार की प्रणाली में तीन
क्षेत्रों (परिवार, व्यावसायिक क्षेत्र तथा
सरकार) के बीच ही आय का प्रवाह होता था। उस समय विदेशों का देश की अर्थव्यवस्था
में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं था। तीन क्षेत्रों में आय के चक्रीय प्रवाह को
निम्नलिखित चित्र द्वारा दर्शाया गया है-
11. सीमांत उपभोग
प्रवृत्ति को परिभाषित करें। इसका मान शून्य से अधिक किन्तु एक से कम क्यों होता है?
उत्तर- आय में वृद्धि का वह भाग जिसे उपभोग पर व्यय किया जाता है, सीमांत उपभोग प्रवृत्ति प्रदर्शित करता है। दूसरे शब्दों में सीमांत उपभोग की प्रवृत्ति कुल उपभोग में परिवर्तन और कुल आय में परिवर्तन के अनुपात को व्यक्त करती है।
इसे सूत्र के रूप में इस प्रकार स्पष्ट किया जाता है-
MPC =
यहाँ
MPC =
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
∆C
= उपभोग में परिवर्तन
∆Y
= आय में परिवर्तन
उदाहरण के लिए यदि कुल आय में वृद्धि 10 करोड़ रुपये है तथा उपभोग में वृद्धि 7 करोड़ रुपये है, तो = 0.7 होगा। MPC का मूल्य हमेशा धनात्मक तथा इकाई (1) से कम होता है अर्थात् आय में होनेवाली संपूर्ण वृद्धि उपभोग पर खर्च नहीं की जाती है।
12. "केन्द्रीय
बैंक अंतिम ऋणदाता है।" कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर -अंतिम ऋणदाता के रूप
में, केन्द्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों की प्रमाणित प्रतिभूतियों पर पुनः बट्टे की
सुविधा प्रदान करके इन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इसका अर्थ है कि केन्द्रीय
बैंक, व्यावसायिक बैंकों को निम्न प्रकार के ऋण देकर वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
इसका अर्थ है कि केन्द्रीय बैंक, व्यावसायिक बैंकों को निम्न दो प्रकार के ऋण देकर
वित्तीय संकटों से बचाता है।
(a) व्यावसायिक बैंकों की प्रमाणित
प्रतिभूतियों तथा विनिमय पत्रों को पुनः बट्टा लगा कर
(b) उनको प्रतिभूतियों के प्रति
ऋण देकर।
13. विदेशी मुद्रा
की माँग एवं पूर्ति के तीन-तीन स्रोत बताइए।
उत्तर- एक देश निम्नलिखित कार्यों
के लिए विदेशी मुद्रा की माँग करता है-
(1) आयात का भुगतान करने के
लिए दृश्य एवं अदृश्य सभी मदे शामिल की जाती है।
(2) विदेशी अल्पकालीन ऋणों
का भुगतान करने के लिए।
(3) विदेशी दीर्घकालीन ऋणों
का भुगतान करने के लिए एक लेखा वर्ष की अवधि में एक देश को समस्त लेनदारियों के बदले
जितनी मुद्रा प्राप्त होती है उसे विदेशी मुद्रा को पूर्ति कहते हैं।
एक
देश निम्नलिखित कार्यों के लिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति करता है-
(i)
निर्यात में दृश्य एवं अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती है।
(ii) विदेशों द्वारा देश में
निवेश ।
(iii) विदेशों से प्राप्त भुगतान।
14. साधन के
घटते प्रतिफल के नियम को समझाइए ।
उत्तर- जिस पैमाने में उत्पादन के साधन बढ़ाया जाता है
यदि उससे कम अनुपात में उत्पादन बढ़े तो उसे पैमाने का ह्रासमान या घटते हुए
प्रतिफल की संज्ञा ये जाती है। जैसे यदि साधन को 10% बढ़ाया जाता है तथा उत्पादन
जब 7% से बढ़ता है तो ऐसी स्थिति को पैमाने के घटते प्रतिफल की संज्ञा दी जाती है।
जब सभी साधनों को एक ही अनुपात में बढ़ाया जाता है लेकिन उत्पादन में कम अनुपात
में वृद्धि होती है तो उत्पादन की प्रक्रिया में घटता हुआ प्रतिफल लागू होता है।
खण्ड-ग (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 5 × 3 =
15
15. माँग की
लोच के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
- सभी वस्तुओं की माँग की लोच एकसमान नहीं होती है। कुछ वस्तुओं की माँग की कीमत
लोच (price elasticity) अधिक होती है और कुछ वस्तुओं की कम माँग की लोच अथवा माँग
की कीमत लोच के निम्नांकित पाँच प्रकार है।
(i) पूर्णतया लोचदार माँग
(Perfectly elastic demand ) - जिन वस्तुओं
की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होने अथवा बहुत सूक्ष्म परिवर्तन होने पर भी उनकी
माँग में असीम या अनंत परिवर्तन हो जाता है उन वस्तुओं की माँग पूर्णतया लोचदार
कही जाती है।
(ii) सापेक्षिक लोचदार माँग
(Relatively elastic demand) - जब कीमत- परिवर्तन के अनुपात
में किसी वस्तु की माँग में अधिक परिवर्तन होता है तब इस प्रकार की माँग सापेक्षिक
लोचदार माँग कही जाती है।
(iii) समलोचदार माँग (Unit
elastic demand) - जब किसी वस्तु की माँग में उसी अनुपात में परिवर्तन
होता है जिस अनुपात में उसकी कीमत में परिवर्तन हुआ है तो उस वस्तु की माँग को समलोचदार
माँग कहते हैं।
(iv) सापेक्षिक बेलोचदार माँग
(Relatively inelastic demand ) - जब कीमत- परिवर्तन की अपेक्षा
माँग में होनेवाले परिवर्तन का अनुपात कम होता है, तब इस प्रकार की माँग को सापेक्षिक
बेलोचदार माँग कहते हैं।
(v) पूर्णतया बेलोचदार मांग
(Perfectly inelastic demand ) - जब किसी वस्तु की कीमत में
परिवर्तन होने पर भी उसकी माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता है,
तब इसे पूर्णतया बेलोचदार माँग कहा जाता है।
16. पूर्ण प्रतिस्पर्धा
तथा एकाधिकार में अंतर बताइए।
उत्तर-पूर्ण प्रतिस्पर्धा तथा
एकाधिकार दोनों बाजार की दो चरम सीमाएँ है जो वास्तविक जीवन में बहुत कम देखने को मिलती
हैं। इन दोनों में मुख्य अंतर निम्नांकित हैं।
(i) पूर्ण प्रतिस्पर्धा में
किसी वस्तु के विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक रहती है। लेकिन, एकाधिकार के अंतर्गत
उस वस्तु का केवल एक ही उत्पादक या विक्रेता होता है।
(ii) पूर्ण प्रतिस्पर्धा में
प्रतिस्पर्धा पूर्ण होती है, जबकि एकाधिकार में प्रतिस्पर्धा
अथवा प्रतियोगिता शून्य होती है। इस प्रकार, पूर्ण प्रतिस्पर्धा एक सिरे की स्थिति
है तथा एकाधिकार दूसरे सिरे की स्थिति है।
(iii)
पूर्ण प्रतिस्पर्धा की अवस्था में किसी वस्तु की स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध रहती
हैं। लेकिन, एकाधिकारी की वस्तु का स्थानापन्न नहीं होता।
(iv) पूर्ण प्रतिस्पर्धा के
अंतर्गत किसी उद्योग में उत्पादकों को प्रवेश एवं बहिर्गमन की
स्वतंत्रतां होती है। लेकिन, एकाधिकार की स्थिति में नए उत्पादकों के प्रवेश पर
प्रभावपूर्ण प्रतिबंध होते हैं।
(v) पूर्ण प्रतिस्पर्धा के
बाजार में कोई भी विक्रेता वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। लेकिन, एकाधिकारी
को वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण रहता है। इसके फलस्वरूप वह कीमत को प्रभावित
कर सकता है और क्रेताओं से अधिक कीमत वसूल कर सकता है।
(vi) पूर्ण प्रतिस्पर्धा में
उत्पादन के साधन अथवा कारक एक प्रयोग से दूसरे प्रयोग में या एक
उद्योग से दूसरे उद्योग में जाने के लिए पूर्णतया स्वतंत्र होते हैं। इनकी
गतिशीलता पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं रहता है। लेकिन, एकाधिकार के अंतर्गत
इनकी गतिशीलता समाप्त हो जाती है।
(vii)
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में संपूर्ण बाजार में किसी वस्तु की एक ही कीमत होती है ।
लेकिन, एकाधिकारी बाजार के विभिन्न भागों में मूल्य-विभेद कर सकता है।
(viii) पूर्ण प्रतिस्पर्धा
में कीमत सीमांत लागत के बराबर निश्चित होती है, किंतु एकाधिकारी
कीमत सीमांत लागत से अधिक रहती है।
उपर्युक्त
विवेचन से यह स्पष्ट है कि पूर्ण प्रतिस्पर्धा एवं एकाधिकार दोनों में मौलिक अंतर
है। एकाधिकार की अवस्था पूर्ण प्रतिस्पर्धा के बिलकुल विपरीत होती है।
17. पूर्ण प्रतियोगी
बाजार की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करें।
उत्तर-
वह बाजार जिसमें क्रेताओं तथा विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है तथा सभी
विक्रेताओं द्वारा समान वस्तुओं का विक्रय किया जाता है, उसे पूर्ण प्रतियोगिता
बाजार कहा जाता है।
पूर्ण
प्रतियोगिता बाजार की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ या पूर्ण प्रतियोगिता की शर्तें
हैं-
(1)
क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बड़ी संख्या
(Large number of buyers and sellers): पूर्णं प्रतियोगिता बाजार
में क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है। फलतः व्यक्तिगत रूप से कोई
भी क्रेता अथवा विक्रेता इस स्थिति में नहीं होता कि वह वस्तु की कीमत को प्रभावित
कर सके। इसी प्रकार के बाजार में सभी फर्म भी मूल्य स्वीकारव होता है, मूल्य निर्धारत
नहीं।
(2) समरूप वस्तुएँ
(Homogeneous goods) : इसमें सभी विक्रेताओं की वस्तुएँ समरूप, यानी एक समान रूप-रंग
एवं आकार की होती है। यहाँ तक कि उनके नाम, गुण, रंग, पैकिंग आदि में भी किसी प्रकार
का अंतर नहीं होता।
(3) प्रवेश एवं निष्कासन की
स्वतंत्रता (Freedom of entry and exit) : इस बाजार में कोई भी नयी
फर्म उद्योग में प्रवेश कर सकती है और कोई भी पुरानी फर्म उद्योग से बाहर जा सकती है।
(4) बाजार की स्थिति का पूर्ण
ज्ञान (Perfect knowledge of the market) : क्रेताओं तथा विक्रेताओं
को बाजार की स्थिति का पूर्ण ज्ञान होता है। इसलिए प्रत्येक
विक्रेता माँग के अनुसार ही अपनी वस्तु की पूर्ति को नियमित करता है।
(5) अहस्तक्षेप नीति
: क्रेताओं और विक्रेताओं पर वस्तु के क्रय तथा विक्रय के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं
होता अर्थात् बाजार में अहस्तक्षेत्र नीति अपनायी जाती है।
(6) विक्रय लागत की अनुपस्थिति
(Absence of Selling Costs) इस बाजार में यातायात लागत तथा अन्य प्रकार की लागतें जैसे
विज्ञापन व्यय आदि विक्रय लागतों का अभाव होता है।
(7) समान कीमत
(Uniform Price) संपूर्ण बाजार में वस्तु की एक ही कीमत प्रचलित होती है। इसी कारण
फर्म की औसत आय (AR), सीमांत आय (MR) और कीमत समान होती है।
18. व्यावसायिक
बैंक से आप क्या समझते हैं? व्यावसायिक बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
साधारणतः बैंक से हमारा अभिप्राय व्यावसायिक बैंकों से ही होता है। किसी भी देश
में उद्योग तथा व्यापार की उन्नति के लिए इन बैंकों का बहुत अधिक महत्त्व है।
व्यावसायिक अथवा व्यापारिक बैंक लाभ कमानेवाली संस्था है। इनका मुख्य कार्य जनता
की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना, व्यापारियों को अल्पकालीन ऋण देना तथा साख
का निर्माण करना है। व्यावसायिक बैंक अपने जमाकर्ताओं से जो रकम जमा के रूप में प्राप्त
करते हैं, वे प्रायः अल्पकाल के लिए होती है। यही कारण है कि ये केवल अल्पकालीन ऋण
प्रदान करते हैं। सामान्यतः, इनके द्वारा दी जानेवाली ऋण की अवधि 3 से 6 माह तक की
होती है। ये बैंक मुद्रा जमा करनेवालों को उनके माँगने पर चेक आदि के द्वारा
मुद्रा का भुगतान करते हैं। जमा स्वीकार करने तथा ऋण देने के अतिरिक्त ये अपने
ग्राहकों की अन्य प्रकार की सेवाएँ भी करते हैं।
सामान्यतः
एक व्यावसायिक बैंक के निम्नलिखित कार्य है।
(क)
जमा स्वीकार करना (Acceptance of deposits) - लोगों की
बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना व्यावसायिक बैंकों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य
है। समाज के अधिकांश व्यक्ति अपनी वर्तमान आय का कुछ भाग भविष्य के लिए बचाकर रखते
हैं। वे इस अतिरिक्त धन को सुरक्षा की दृष्टि से बैंक के पास जमा कर देते हैं,
जिनपर उन्हें ब्याज भी मिलता है। व्यावसायिक बैंक प्रायः तीन प्रकार के खातों में
रकम जमा करते हैं— स्थायी या सावधि जमा (fixed or time deposits), चालू जमा
(current deposits) तथा संचयी या बचत जमा (saving deposits) | चालू जमा को 'भाँग
जमा' (demand deposit) भी कहते हैं, क्योंकि इसमें से जमाकर्ता इच्छानुसार किसी
समय भी रुपया निकाल सकता है।
(ख) ऋण या कर्ज देना
(Advancing of loans) – यह व्यावसायिक बैंकों का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य है। अपने
ग्राहकों की रकम बैंक जमा करता है और उसे उन लोगों को कर्ज के रूप में देता है, जिन्हें
धन की आवश्यकता है। व्यावसायिक बैंक प्रायः उत्पादक कार्यों के लिए ही ऋण देते हैं।
ऋण लेनेवालों से ये ब्याज भी वसूल करते हैं। बैंक अपने ग्राहकों के जमा पर जो ब्याज
देता है, उससे यह ब्याज की दर अधिक होती है। इन दोनों का अंतर ही बैंकों का लाभ या
मुनाफा होता है। बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने के कई तरीके हैं जिनमें अधिविकर्ष
(overdraft), नकद साख (cash credit) तथा ऋण एवं अग्रिम (loans and advances) आदि प्रमुख
हैं।
(ग) एजेंसी संबंधी कार्य
(Agency functions) — व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए उनके एजेंट का कार्य करता
है। बैंक के इन कार्यों को एजेंसी-संबंधी कार्य कहते हैं। इनमें निम्नलिखित प्रमुख
हैं।
(i) ग्राहकों के लिए भुगतान
प्राप्त करना - बैंक अपने ग्राहकों की ओर से ब्याज, लाभांश,
किराया आदि का भुगतान प्राप्त करते हैं। वे उनके चेक तथा अन्य बिलों को भी एकत्र कर
उनके खाते में जमा कर देते हैं। इस कार्य के लिए वे ग्राहकों से कमीशन लेते हैं।
(ii) ग्राहकों की ओर से भुगतान
करना
- बैंक ग्राहकों की ओर से बीमा की कर, ऋण तथा ब्याज इत्यादि का
भुगतान भी करते हैं।
(iii)
प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय - व्यावसायिक बैंक
ग्राहकों के आदेशानुसार प्रतिभूतियों, अंशपत्रों आदि का क्रय-विक्रय करते हैं।
(iv)
प्रतिनिधि का कार्य - बैंक अपने ग्राहकों के
प्रतिनिधि होते हैं। वे उनकी संपत्ति की देखभाल, प्रबंध आदिका कार्य भी करते हैं।
(घ) सामान्य उपयोगिता संबंधी
कार्य (General utility Punctions)- उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त
व्यावसायिक बैंकों द्वारा कई अन्य कार्य भी संपन्न किए जाते हैं,
जिन्हें सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य कहा जाता है। इसके अंतर्गत बैंकों के
निम्नलिखित कार्य आते हैं-
(i) मुद्रा का स्थानांतरण
- बैंक ग्राहकों की सुविधा के लिए मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने का कार्य
करते हैं। बैंक यह कार्य अधिक सुगमतापूर्वक तथा कम खर्च में पूरा करते हैं।
(ii) साख पत्र तथा यात्री चेक
जारी करना- व्यावसायिक बैंक ग्राहकों के लिए चेक, ड्राफ्ट, हुंडी इत्यादि
विभिन्न प्रकार के साखपत्र जारी करते हैं जिससे लेन-देन में बहुत सुविधा होती है। कुछ
बैंक ग्राहकों के नाम से 'यात्री चेक' (traveller's cheques) भी जारी करते हैं। इससे
यात्रियों को नकद मुद्रा ले जाने की जोखिम नहीं उठानी पड़ती।
(iii) बहुमूल्य वस्तुओं की
सुरक्षा - बैंक ग्राहकों की मूल्यवान वस्तुओं, आभूषणों आदि को अपने
यहाँ तिजोरी में रखने की सुविधा प्रदान करते है।
(iv) व्यापारिक सूचना तथा आँकड़े
एकत्र करना- कुछ आधुनिक बैंक व्यापारिक सूचना तथा आँकड़ों को एकत्र
करने का भी कार्य करते हैं।
(v) वित्त संबंधी सलाह
- बैंक अपने ग्राहकों को वित्तीय मामलों में परामर्श भी देते
हैं।
इस
प्रकार, आधुनिक बैंक अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों का संपादन करते हैं।
19. सरकारी बजट क्या है ? इसके उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर-
बजट भविष्य के लिए सरकार की वित्तीय योजनाओं के अनुमान होते हैं। प्रारंभ में बजट
को सरकार की आय और व्यय का विवरणमात्र माना जाता था। लेकिन, एक कल्याणकारी राज्य
की धारणा के विकास के साथ ही सरकार का कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है।
आधुनिक सरकारें करों आदि के माध्यम से बहुत अधिक धन एकत्र करती हैं जिन्हें विकास
एवं लोक योजनाओं पर व्यय किया जाता है। इसका हमारी अर्थव्यवस्था एवं आर्थिक
क्रियाकलापों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप अब बजट सरकार की आर्थिक
नीतियों को लागू करने का एक शक्तिशाली उपकरण बन गया है। प्रायः एक बजट के वही
उद्देश्य होते हैं जो सरकार की आर्थिक नीतियों के उद्देश्य हैं। सरकारी बजट के
मुख्य उद्देश्य निम्नांकित हैं-
(i) आर्थिक विकास
(Economic growth) - आज सभी देशों का मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास की दर को अधिक तीव्र
बनाना है। किसी देश की विकास दर अंततः बचत एवं निवेश पर निर्भर करती है। बजट नीति का
उद्देश्य एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना होता है जो बचत तथा निवेश को बढ़ाने में सहायक
हो।
(ii) संसाधनों का उचित आवंटन
(Proper allocation of resources) - एक राज्य में संसाधनों का आबंटन बाजार की शक्तियों
पर नहीं छोड़ा जा सकता। अतएव, सरकार बजट नीति द्वारा अपनी सामाजिक एवं आर्थिक प्राथमिकताओं
के अनुसार इनका आवंटन करती है।
(iii) रोजगार सृजन
(Generation of employment ) —— रोजगार सृजन सरकार की बजट नीति का एक अन्य प्रमुख उद्देश्य
है। इसके लिए वह सड़क, नहर, पुल तथा अन्य सार्वजनिक निर्माण कार्यों पर अपने व्यय में
यथासंभव वृद्धि करती है।
(iv) आर्थिक समानता
(Economic equality) - आज विश्व के प्रायः सभी देशों, विशेषतया पूँजीवादी देशों में
आय और धन की विषमताएँ बहुत अधिक हैं। सरकार अपने बजट के माध्यमं से इसे यथासंभव कम
करने का प्रयास करती है।
(v) सार्वजनिक उपक्रमों का
प्रबंध (Management of public enterprises) - सरकार ने सामूहिक
हित में कई प्रकार के सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना की है। बजट नीति का उद्देश्य इनके
प्रबंध एवं संचालन पर नियंत्रण रखना भी है जिससे साधनों का अपव्यय नहीं हो और वे सार्वजनिक
हित में कार्य करें।
(vi) आर्थिक स्थायित्व (Economic Mability)- आर्थिक स्थिरता तथा कीमतों के नियंत्रित रहने पर ही अर्थव्यवस्था का सुनियोजित विकास संभव है। अतः आर्थिक स्थायित्व प्रदान करना बजट नीति का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
Economics+ app Google News Class IX & X Class 11th &12th Economics Google Sites Telegram Quora Teacher's