12th अंतरा 1. जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत
12th अंतरा 1. जयशंकर प्रसाद (क) देवसेना का गीत (ख) कार्नेलिया का गीत देवसेना
का गीत प्रश्न 1. "मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई"-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। उत्तर
: देवसेना निराश और दुखी होकर जीवन के उस समय को याद करती है जब उसने स्कन्दगुप्त
से प्रेम किया था। उन्हीं क्षणों को याद करते हुए वह कहती है कि मैंने स्कन्दगुप्त
से प्रेम किया और उन्हें पाने की चाह मन में पाली, किन्तु यह मेरा भ्रम ही था।
मैंने आज जीवन की आकांक्षारूपी पूँजी को भीख की तरह लुटा दिया है। मैं इच्छा रखते
हुए भी स्कन्दगुप्त का प्रेम नहीं पा सकी। आज मुझे अपनी इस भूल पर पश्चात्ताप होता
है। प्रश्न 2. कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है ? उत्तर
: आशा व्यक्ति को भ्रमित कर देती है, उसे बावला बना देती है। प्रेम में प्रेमी
(स्त्री और पुरुष) विवेकहीन हो जाते हैं। प्रेम अन्धा होता है। देवसेना भी
स्कन्दगुप्त के प्रेम में बावली हो गई थी। उसने बिना सोचे-समझे स्कन्दगुप्त से
प्रेम किया और यह आशा मन में पाली-कि स्कन्दगुप्त उसे अपना लेगा। उसकी आशा उसके मन
का पागलपन ही था। वह स्कन्दगुप्त का प्रेम नहीं पा सकी। प्रश्न 3. "मैंने निज दुर्बल ... होड़
लगाई" इन पंक्तियों में '…