पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सिन्धु सभ्यता साधन-सम्पन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडम्बर
नहीं था। कैसे?
उत्तर
: पुरातत्त्वविदों के द्वारा मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा की खुदाई करवाने से जो साक्ष्य
मिले हैं, उनका उल्लेख करते हुए लेखक बताता है कि सिन्धु सभ्यता साधन-सम्पन्न थी। उसमें
नगर-नियोजन सुन्दर था, पानी की निकासी की सुव्यवस्था थी। वहाँ पर भवन निर्माण, स्नानागार
व कुओं के निर्माण तथा नालियों व भाण्डागार के निर्माण में विशेष आकार की पकी हुई ईंटों
का प्रयोग होता था। वहाँ की सड़कें सीधी, लम्बी, चौड़ी और आड़ी थीं।
सिन्धु
सभ्यता में सामाजिक प्रबन्ध अच्छा था। सिन्धु घाटी के लोग तांबे और कांसे के बर्तन
बनाते थे। साथ ही चाक से बने विशाल मृद् भाण्ड, उन पर बने चित्र, चौपड़ की गोटियाँ,
कंघी, पत्थर के मनकों के हार तथा पत्थर के औजार उनकी सम्पन्नता के सूचक थे। वहाँ खेती
होती थी और सामान का निर्यात भी होता था। यातायात के लिए बैलगाड़ी थी तो अनाज रखने
के लिए विशाल कोठार थे। वहाँ पर सभी वर्गों के लोगों की अलग-अलग बस्तियाँ थीं। लोगों
में कला के प्रति सुरुचि थी। साफ-सफाई, वास्तुशिल्प, भवन-निर्माण एवं सामाजिक व्यवस्थाओं
में एकरूपता थी।
इस
प्रकार सिन्धु घाटी की सभ्यता साधनों और व्यवस्थाओं से सम्पन्न तथा समृद्ध थी, परन्तु
उसमें भव्यता का आडम्बर नहीं था। इस कारण वहाँ पर भव्य प्रासाद और मन्दिर के अवशेष
नहीं मिलते हैं। राजाओं और महन्तों की समाधियाँ, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड
आदि भी नहीं मिलते हैं। राजा का मुकुट एकदम छोटे आकार का तथा नाव भी एकदम छोटी मिली
है। उनके औजार भी छोटे ही मिले हैं। इस
प्रकार
सिन्धु-सभ्यता साधन सम्पन्न थी। वहाँ पर दूसरी सभ्यताओं की तरह प्रभुत्व या दिखावे
का आडम्बर नहीं था।
प्रश्न 2. 'सिन्धु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्य-बोध है जो राजपोषित
या धर्मपोषित न होकर समाज-पोषित था।' ऐसा क्यों कहा गया?
उत्तर
: लेखक ने सिन्धु सभ्यता के विविध साक्ष्यों के आधार पर बताया कि वहाँ पर भव्यता के
स्थान पर कलात्मकता पर अधिक ध्यान रहता था। वहाँ के निवासी इसी कारण कलाप्रेमी और सुरुचिसम्पन्न
थे। वहाँ वास्तुकला, नगर नियोजन, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्-भाण्डों के ऊपर
चित्रित विविध छवियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, ताँबे का आइना, आभूषण और सुघड़ अक्षरों
की लिपि सिन्धु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध व्यक्त करती है।
वहाँ
पर भव्य राजप्रासाद, मन्दिर एवं विशाल उपासना-स्थल नहीं थे। वहाँ राजाओं की समाधियाँ
एवं मूर्तियाँ भी नहीं मिलीं। इससे पता चलता है कि वहाँ का समाज राजा द्वारा पालित-पोषित
तथा धर्म द्वारा प्रचालित नहीं था। वहाँ की सभ्यता पूर्णतया समाज-पोषित अर्थात् सामाजिक
व्यवस्था की एकरूपता से अनुशासित थी। अतः सिन्धु सभ्यता को लेकर कहा गया उक्त कथन उचित
ही है।
प्रश्न 3. पुरातत्त्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं
कि "सिन्धु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी?"
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो की खुदाई से मिली चीजों को वहाँ के अजायबघर में रखा गया है। वहाँ पर
प्रदर्शित चीजों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है। मुअनजो-दड़ो क्या, हड़प्पा
से लेकर हरियाणा तक समूची सिन्धु सभ्यता में हथियार उस तरह कहीं नहीं मिले हैं, जैसे
किसी राजतन्त्र में होते हैं। इस बात को लेकर पुरातत्त्वविदों का कहना है कि वहाँ पर
कोई राजमहल या मन्दिर नहीं हैं, राजाओं की समाधियाँ भी नहीं हैं।
यदि
वहाँ पर राजसत्ता का कोई केन्द्र होता अर्थात् शक्ति का शासन होता, तो ये सब चीजें
वहाँ पर होतीं। वहाँ पर नरेश के सिर का जो मुकुट मिला है, वह भी एकदम छोटा-सा है। इससे
यह अर्थ निकलता है कि सिन्धु सभ्यता में अनुशासन जरूर था, परन्तु ताकत के बल पर नहीं
था, अर्थात् वहाँ राजसत्ता का कोई केन्द्र नहीं था। सभी नागरिक स्वयं अनुशासित थे और
नगर-योजना, साफ-सफाई जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं में एकरूपता थी।
प्रश्न 4. "यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ
अब आपको कहीं नहीं ले जाती; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों
पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास
को नहीं उसके पार झाँक रहे हैं।" इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो में पाँच हजार वर्ष पूर्व की सिन्धु सभ्यता के अवशेष बिखरे हैं। अब वहाँ
पर केवल खण्डहर हैं, परन्तु उनका अतीत यह बताता है कि वहाँ कभी पूरी आबादी अपना जीवन
व्यतीत करती थी। उस समय अन्य सभ्यताओं का उदय भी नहीं हुआ था जबकि सिन्धु सभ्यता उन्नत
रहन-सहन आदि के रूप में प्रचलित थी। उसकी अपनी वास्तुकला, नगर-नियोजन तथा सामाजिक व्यवस्था
थी।
लेखक
वहाँ के खण्डहरों में मिली सीढ़ियों पर पैर रखकर अनुमान लगाने लगा कि ये सीढ़ियाँ कभी
ऊपरी मंजिलों तक जाने के लिए बनी होंगी, उन मंजिलों में लोग अपना पूरा जीवन खुशी से
बिताते होंगे तथा सुसम्पन्नं रहे होंगे। इस तरह उन खण्डित सीढ़ियों पर पैर रखकर लेखक
वहाँ के इतिहास के उस पार देखने का अनुमान करता है कि उस सभ्यता को विकसित होने में
उससे पहले कितना समय लगा होगा और कितने प्रयासों से ऐसी सम्पन्न सभ्यता का नियोजन हुआ
होगा।
प्रश्न 5. 'टूटे-फूटे खण्डहर सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ
धड़कती जिन्दगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।' इस कथन का भाव स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर
: मअनजो-दडो के खण्डहर आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व की सभ्यता एवं संस्कृति के इतिहास
को दर्शाते हैं कि उस समय वहाँ के निवासी कितने सम्पन्न थे और उनका रहन-सहन, सामाजिक
स्वरूप, व्यवसाय-व्यापार कैसा था। वस्तुतः वहाँ के टूटे-फूटे खण्डहरों को देखकर सहज
अनुमान लगाया जा सकता है कि उस सभ्यता का भी समृद्धिशाली वर्तमान था। अगर हम उन खण्डहरों
को इस तरह देखने का प्रयास करें तो हम अनुभव कर सकते हैं कि हजारों साल पहले वहाँ पर
जीवन की चहल-पहल थी।
घरों
में लोग रहते थे, उनके रसोई तथा स्नानागार थे, बड़े आँगन एवं भाण्डागार, पक्की नालियाँ
एवं कुण्ड थे, लम्बी-चौड़ी सड़कें थीं, बैलगाड़ियों की रुनझुन थी और नगर-नियोजन की
कला थी। इस तरह की अनुभूति होने से वहाँ के खण्डहरों में हम जीवन की धड़कनों को सुन
सकते हैं और उन खण्डहरों को सिन्धु सभ्यता और संस्कृति की प्राचीनता का प्रमाण मानकर
गौरवान्वित हो सकते हैं।
प्रश्न 6. इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है जिसे बहुत कम लोगों
ने देखा होगा, परन्तु इससे आपके मन में उस नगर की एक तस्वीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक
स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर
: इस पाठ में लेखक ने जिस सुन्दर क्रमबद्धता से मुअनजो-दड़ो के खण्डहरों तथा अजायबघर
में प्रदर्शित वस्तुओं का वर्णन किया है, वह इस तरह चित्रात्मक एवं अनुभूतिमय है कि
उस स्थान को देखे बिना भी उस खण्डित नगर के दृश्य हमारी आँखों में साकार हो जाते हैं।
इससे हमें अपनी प्राचीनतम सभ्यता एवं संस्कृति पर गर्व भी होता है। राजस्थान में ऐसे
कई ऐतिहासिक स्थान हैं, जो अत्यधिक प्राचीन हैं तथा आज एकदम सूने पड़े हुए हैं। जयपुर
के पास नाहरगढ़ और आमेर का पुराना किला इस प्रकार के स्थान हैं, जहाँ पर अब कोई निवास
नहीं करता है।
ये
स्थान दिन में पर्यटकों के कारण आबाद से लगते हैं, परन्तु रात्रि में एकदम वीरान हो
जाते हैं। जयपुर का नाहरगढ़ का किला ऊँची पहाड़ी पर बना हुआ तथा काफी बड़ा है। इसके
अन्दर के कक्ष, चौक एवं छतों पर जाने की सीढ़ियाँ चार सौ वर्ष पूर्व की वास्तुकला के
प्रमाण हैं। यहाँ पर सुन्दर मूर्तियाँ भी हैं तो उकेरे-तरासे गये स्तम्भ भी हैं, जो
कि अब धूल-पानी जम जाने और गँदले होने पर भी अच्छे लगते हैं और अपनी स्थापना-काल की
सम्पन्नता को सूचित करते हैं।
नाहरगढ़
के मुख्य द्वार के बाहर चरणजी के मन्दिर तक जगह-जगह पुराने खण्डहरों के अवशेष, दीवारें,
मकानों की मींवें तथा बिखरे हुए गढ़े गये पत्थरों के साथ ही पगडण्डी रूप में शेष रह
गई उखड़ी हुई सड़कें दिखाई देती हैं, जो कि वहाँ पर कभी आबादी रही होंगी, इसका स्पष्ट
संकेत देते हैं। राजाओं के उस काल के शासन में नाहरगढ़ और उसके आसपास का क्षेत्र चहल-पहल
वाला रहा होगा, वहाँ पर सब तरह के लोग रहते होंगे, यह सहज अनुमान का विषय है।
(नोट-यह
प्रश्न छात्रों के अपने अनुभव पर आधारित है। अतः वे स्वयं देखे गये ऐतिहासिक स्थान
का वर्णन करें।)
प्रश्न 7. नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते
हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिन्धु घाटी सभ्यता को 'जल-संस्कृति'
कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें।
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो के समीप बहती हुई सिन्धु नदी, नगर में स्थित कुएँ, महाकुण्ड, स्नानागार
तथा पानी निकासी की बेजोड व्यवस्था को देखकर लेखक ने सिन्धु घाटी सभ्यता को 'जल-संस्कृति'
कहा है। हम लेखक के कथन से सहमत हैं। इसके कारण निम्न हैं -
संसार
की सभी प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ, यह सर्वमान्य प्रमाण है। मुअनजो
दड़ो के समीप भी सिन्धु नदी बहती थी।
मुअनजो-दड़ो
में पानी निकासी के लिए पक्की ईंटों की नालियाँ बनी हुई थीं, जो कि उस समय की नगर व्यवस्था
की परिचायक थी।
वहाँ
पर पानी के लिए लगभग सात सौ कुएँ थे। एक महाकुण्ड था।
महाकुण्ड
के पास कुछ स्नानागार बने थे। वहाँ के खण्डहरों में बने स्नानागार स्पष्ट दिखाई देते
थे, जो कि प्रायः सभी छोटे-बड़े घरों में बने हुए थे।
नगर
के मकानों की बसावट ऊँचे टीलों पर थी, जो कि बाहर के पानी के असर को रोकने के लिए की
गई थी।
इन
विशेषताओं को देखकर हम कह सकते हैं कि सिन्धु घाटी सभ्यता जल-संस्कृति का श्रेष्ठ प्रमाण
है।
प्रश्न 8. सिन्धु-घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ
अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मुअनजो-दड़ो के बारे में जो धारणा
व्यक्त की गई है, क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन
सम्भावनाओं पर कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर
: इस सम्बन्ध में छात्र इन बातों को लेकर चर्चा कर सकते हैं
सिन्धु
घाटी सभ्यता को लेकर वहाँ की खुदाई से प्राप्त अवशेष यद्यपि स्पष्ट प्रमाण हैं, परन्तु
उन प्रमाणों के साथ अनुमान एवं कल्पना भी की गई है कि वहाँ पर भव्यता का आडम्बर नहीं
था, लोग सम्पन्न थे तथा राजतन्त्रात्मक शासन नहीं था।
मुअनजो-दड़ो
नगर जिन टीलों पर बसा बताया गया है, वे मानव-निर्मित भी हो सकते हैं और प्राकृतिक भी,
जो बाद में पक्की ईंटों से ढक दिये गये हों।
बीच
में बने बौद्ध-स्तूप का निर्माण समय आगे-पीछे भी हो सकता है और उसके आसपास के खण्डहरों
को ज्ञानशाला, सचिवालय आदि के रूप में मानना भी अनुमान पर आधारित है।
इसी
प्रकार वहाँ पर खेती, व्यापार, रंगरेजशाला, कामगार, पहनावा तथा अन्य कई बातों को भी
अनुमान के आधार पर ही माना गया है। इनका कोई लिखित प्रमाण वहाँ से नहीं मिला है।
अनुमान
तो अनुमान ही है, उसे पुष्ट प्रमाण नहीं मान सकते, केवल उससे धारणा बना सकते हैं या
ऐसी कल्पना कर सकते हैं।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में प्राचीन सभ्यता की खोज में
किन दो स्थानों पर खुदाई का काम किया गया था?
उत्तर
: बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में प्राचीन सभ्यता की खोज में मुअनजो-जोड़ो और हड़प्पा
में खुदाई का काम किया गया था।
प्रश्न 2. दुनिया के दो सबसे पुराने नियोजित शहर कौन-से माने जाते हैं?
उत्तर
:दुनिया के दो सबसे पुराने नियोजित शहर मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा माने जाते हैं। ये दोनों
सिंधु घाटी सभ्यता के परिपक्व दौर के शहर हैं।
प्रश्न 3. 'मुअनजो-दड़ो' का अर्थ बताते हुए इसके बारे में व्यक्त धारणा
को बताइए।
उत्तर
: 'मुअनजो-दड़ो' का अर्थ है - 'मुर्दो का टीला' इसके बारे में व्यक्त धारणा है कि यह
ताम्र काल का सबसे बड़ा नगर था। यह सिन्धु सभ्यता की राजधानी थी।
प्रश्न 4. 'मुअनजो-दड़ो' शहर का क्षेत्र तथा आबादी के संबंध में पुरातत्त्ववेत्ता
की क्या धारणा थी?
उत्तर
: 'मुअनजो-दड़ो' शहर के संबंध में पुरातत्त्ववेत्ता की यह धारणा थी कि यह शहर दो सौ
हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था और इसकी आबादी पचास हजार थी।
प्रश्न 5. 'ग्रिड-प्लान' किसे कहते हैं? आधुनिक शहर नियोजन में कौन-से
शहर ग्रिड शैली के शहर हैं?
उत्तर
: एकदम सीधी या आड़ी सड़कों की बनावट को वास्तुकार 'ग्रिड-प्लान' कहते हैं। वर्तमान
में चंडीगढ़, इस्लामाबाद और परकोटे के भीतर बना जयपुर शहर भी इसी शैली से बने शहर हैं।
प्रश्न 6. बौद्ध स्तूप कितने ऊँचे चबूतरे पर स्थित है? इसका निर्माण
काल कब का माना जाता है?
उत्तर
: बौद्ध स्तूप पच्चीस पुट ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। इसका निर्माण काल 2600 सदी का माना
जाता है।
प्रश्न 7. सिन्धु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति क्यों कहा जा सकता है?
उत्तर
: पूरे मुअनजो-दड़ो में लगभग सात सौ कुएँ हैं। सिंधु घाटी की यह सभ्यता नदी, कुएँ,
कुंड, स्नानागार और बेजोड पानी निकासी के कारण जल-संस्कति कही जा सकती है।
प्रश्न 8. मुअनजो-दड़ो के प्रसिद्ध जल कुण्ड की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो का प्रसिद्ध जल कुण्ड अद्वितीय वास्तु कला से स्थापित था। उसका तल व
दीवारें मजबूत थीं व पानी निकास की पक्की नालियाँ थीं।
प्रश्न 9. लेखक ने 'नीचा नगर' किसे कहा है?
उत्तर
: गढ़ की चाहरदीवारी के बाहर छोटे-छोटे टीले हैं जिन पर बनी बस्ती को ही लेखक ने 'नीचा
नगर' कहा है।
प्रश्न 10. बड़ी बस्ती में किसके नाम पर एक हलका 'डी के जी' कहलाता
है। उसकी प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर
: बड़ी बस्ती में पुरातत्त्वशास्त्री काशीनाथ दीक्षित के नाम से एक हलका 'डी के जी'
कहलाता है। उसकी प्रमुख विशेषता घरों की दीवारों का ऊँचा तथा मोटा होना है।
प्रश्न
11. मुखिया का घर कहाँ स्थित है? उसकी क्या विशेषता है?
उत्तर
: मुखिया का घर डीके हलका में स्थित है। इस बड़े आकार के घर की विशेषता यह है कि इसमें
दो आँगन और बीस कमरे हैं।
प्रश्न 12. खुदाई में मिली नर्तकी की मूर्ति के संबंध में पुरातत्वविद
मार्टिक्टर वीलर ने क्या कहा था?
उत्तर
: खुदाई में मिली नर्तकी की मूर्ति के संबंध में उन्होंने कहा था कि संसार में इसके
जोड़ की दूसरी चीज़ शायद ही होगी।
प्रश्न 13. खुदाई में मिली नर्तकी की मूर्ति अब कहाँ सुरक्षित रखी हुई
है?
उत्तर
: खुदाई में मिली नर्तकी की मूर्ति अब दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी हुई है।
वहाँ वह सुरक्षित है।
प्रश्न 14. सिन्धु घाटी की सभ्यता में कोठारों का क्या उपयोग होता था?
उत्तर
: सिन्धु घाटी की सभ्यता में कोठारों का उपयोग कर के रूप में प्राप्त अनाज को जमा किया
जाता था।
प्रश्न 15. मुअनजो-दड़ो को देखते-देखते लेखक को राजस्थान के कुलधरा
गाँव की याद क्यों आ गई थी?
उत्तर
: राजस्थान के कुलधरा गाँव की याद लेखक को इसलिए आ गयी थी क्योंकि यह गाँव भी काफी
समय से वीरान पड़ा था।
प्रश्न 16. "मुअनजो-दड़ो में चली आ रही परंपराएँ बहुत देर तक चलती
रहीं।" इस कथन के संबंध में सबसे बड़ा प्रमाण क्या है? लिखिए।
उत्तर
: उक्त कथन के संबंध में सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि वहाँ लकड़ी के ठोस पहियों वाली
जो बैलगाड़ी चलती थी, वह गाड़ी कुछ समय पहले तक चलती रही।
प्रश्न 17. मुअनजो-दड़ो की सभ्यता में हथियारों का न मिलना क्या सिद्ध
करता है?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो की सभ्यता में हथियारों का न मिलना सिद्ध करता है कि सिन्धु घाटी की
सभ्यता समाज अनुशासित थी।
प्रश्न 18. मुअनजो-दड़ो की सभ्यता कैसी थी?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो की सभ्यता उच्चता और भव्यता की बजाय 'लो-प्रोफाइल' सभ्यता थी जिसमें
लघुता में ही दिव्यता छिपी हुई थी।
प्रश्न 19. सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा और समृद्ध नगर कौन सा था?
उत्तर
: सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा और समृद्ध नगर मुअनजो-दड़ो था क्योंकि इसमें भव्यता का
आडंबर नहीं था।
प्रश्न 20. मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा किसलिए जाने जाते हैं?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा सिंधु घाटी की प्राचीन सभ्यता के स्मारक नगर होने के कारण
जाने जाते हैं। ये दोनों खुदाई में मिले थे।
प्रश्न 21. हड़प्पा नगर के साक्ष्य क्यों नष्ट हो गए हैं?
उत्तर
: हड़प्पा नगर के साक्ष्य पाकिस्तान सरकार की उपेक्षा और विकास कार्यों के कारण नष्ट
हो गए हैं।
प्रश्न 22. मुअनजो-दड़ो नगर ऊँचा-नीचा क्यों है?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो नगर टीलों पर बसा हुआ है। यही टीले प्राकृतिक नहीं थे ऐसा लगता है कि
उन्हें जानबूझकर बनाया गया था।
प्रश्न 23. राखालदास बनर्जी मुअनजो-दड़ो में क्या करने गए थे? .
उत्तर
: राखालदास बनर्जी पुरातत्ववेत्ता होने के कारण 1922 में बौद्ध स्तूप खोजने के उद्देश्य
से मुअनजो-दड़ो गए थे।
प्रश्न 24. महाकुण्ड के पास स्थित कुआँ के चारों ओर दोहरी दीवार क्यों
बनायी गयी होगी?.
उत्तर
: लेखक का अनुमान है कि महाकुण्ड में धार्मिक अनुष्ठान होते होंगे। कुएँ को पवित्र
रखने के लिए उसके चारों ओर दोहरी दीवार बनायी गई होगी।
प्रश्न 25. मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा में प्रयुक्त ईंटों में क्या अन्तर
है?
उत्तर
:मुअनजो-दड़ो में प्रयुक्त ईंटें पक्की हैं जबकि हड़प्पा में कच्ची और पक्की दोनों
तरह की ईंटें हैं।
प्रश्न 26. मुअनजो-दड़ो में किसका प्रयोग मामूली रूप में हुआ?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो में पत्थर का प्रयोग मामूली रूप में हुआ क्योंकि वहाँ कहीं-कहीं नालियाँ
ही अनगढ़ पत्थरों से ढकी दिखाई दीं।
प्रश्न 27. राजस्थान में कुलधरा गाँव कहाँ स्थित है?
उत्तर
: राजस्थान में कुलधरा गाँव जैसलमेर के मुहाने पर स्थित पीले पत्थर के घरों वाला एक
खुबसूरत गाँव है।
प्रश्न 28. राजस्थान की धूप और सिंध की धूप में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर
: राजस्थान की धूप और सिंध की धूप में मुख्य अन्तर है कि राजस्थान की धूप पारदर्शी
है जबकि सिंध की धूप चौंधियाने वाली है।
प्रश्न 29. 'सभ्यता के तट युग' से क्या आशय है?
उत्तर
: 'सभ्यता के तट युग' का आशय है, उस सभ्यता में जल का सुप्रबंधन होना। अर्थात् जल प्रबंधन
में अव्यवस्था न होना।
प्रश्न 30. मुअनजो-दड़ो के मकानों पर छज्जे क्यों नहीं रहे होंगे?
उत्तर
: अनुमान के अनुसार मुअनजो-दड़ो के मकानों पर छज्जे इसलिए नहीं रहे होंगे क्योंकि वहाँ
गर्मी के स्थान पर ठंड ही रहती होगी।
प्रश्न 31. मुअनजो-दड़ो की खुदाई किसके निर्देश पर प्रारम्भ हुई थी?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो की खुदाई भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश
पर प्रारम्भ हुई थी।
प्रश्न 32. मुअनजो-दड़ो की शैली पर किस नगर को बसाया गया है? इसके मकानों
की क्या विशेषता है?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो की शैली पर चंडीगढ़ को बसाया गया है। इसका कोई भी घर मुख्य सड़क पर नहीं
खुलता।
प्रश्न 33. पुरातत्त्व के विद्वान किसे 'गढ़' कहते हैं?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो में बने सबसे ऊँचे टीले पर बड़ा बौद्ध स्तूप है। इसे ही पुरातत्त्व के
विद्वान 'गढ़' कहते हैं।
प्रश्न 34. पुरातत्त्ववेत्ताओं ने किस भवन को देखकर उसे 'कॉलेज ऑफ प्रीस्टेस'
माना है?
उत्तर
: महाकुण्ड के उत्तर-पूर्व में एक बहुत लम्बी सी इमारत के अवशेष हैं। भवन के अवशेषों
को देखकर पुरातत्त्ववेत्ताओं ने उसे 'कॉलेज ऑफ प्रीस्टेस' माना है।
प्रश्न 35. मुअनजो-दड़ो में 'रंगरेज का कारखाना' कहाँ स्थित था?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो में स्तूप के पश्चिम में गढ़ी के ठीक पीछे 'रंगरेज का कारखाना' खण्डहर
के रूप में स्थित था।
प्रश्न 36. मुअनजो-दड़ो सभ्यता में कुण्ड का पानी रिस न सके और अशुद्ध
पानी कुण्ड में न आ सके, इसके लिए किसका प्रयोग किया गया था?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो में कुण्ड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के
गारे का प्रयोग किया गया था।
प्रश्न 37. मुअनजो-दड़ो की खुदाई में काशीनाथ दीक्षित को कौन-सी विशेष
चीजें मिलीं?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो की खुदाई में काशीनाथ दीक्षित को ताँबे, काँसे और हाथी-दाँत की सुइयाँ
और सुए आदि विशेष चीजें मिलीं।
प्रश्न 38. मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में किस सभ्यता को बताने वाली चीजें
मिलीं?
उत्तर
:मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में सिन्धु सभ्यता को बताने वाली दैनिक उपयोग की बहुत-सी चीजें
मिलीं।
प्रश्न 39. अब किस कारण मुअनजो-दड़ो की खुदाई बन्द कर दी गई है?
उत्तर : अब मुअनजो-दड़ो की खुदाई इस कारण बन्द कर दी गई कि सिंधु-नदी के पानी के रिसाव से क्षार और दलदल की समस्या पैदा हो गई है।
प्रश्न 40. मुअनजो-दड़ो की सभ्यता की संपन्नता की बात कम होने के मुख्य
कारण कौन-से रहे?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो की सभ्यता की संपन्नता की बात कम होने के मुख्य कारण इस संभ्यता में
भव्यता का आडम्बर न होना तथा लिपि का पढ़ा न जाना होना है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. 'मुअनजो-दड़ो' के प्रसिद्ध पुराने बौद्ध-स्तूप की विशेषताओं
का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
: 'मुअनजो-दड़ो' में सबसे ऊँचे टीले पर बड़ा बौद्ध स्तूप है। मगर यह मुअनजो-दड़ो की
सभ्यता के बिखरने के बाद जीर्ण-शीर्ण टीले पर बना हुआ है। यह स्तूप कोई पच्चीस फुट
ऊँचे चबूतरे पर छब्बीस सदी पहले बनी ईंटों के दम पर स्तूप को आकार दिया गया। इस चबूतरे
पर भिक्षुओं के कमरे भी थे। इसके आस-पास खुदाई करने पर पता चला कि यह बौद्ध स्तूप भारत
का सबसे पुराना लैंड स्कोप है।
इस
स्तूप को देखकर दर्शक रोमांचित हो उठता है। इतना प्राचीन स्तूप न जाने कितनी सभ्यताओं
का साक्षी है। यह स्तूप वाला चबूतरा मुअनजो-दड़ो के सबसे पास हिस्से के एक सिरे पर
स भाग को पुरातत्व के विद्वान 'गढ़' कहते हैं। यह सिन्धु घाटी सभ्यता की वास्तुकला
का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। मुअनजो-दड़ो में यह अकेला ऐसा स्तूप है जो अपने मूल
स्वरूप के बहुत नजदीक बचा रह सका है।
प्रश्न 2. सिन्धु घाटी सभ्यता की प्राचीनता का पता कैसे चला था?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो के सारे अवशेष जमीन के अन्दर दबे पड़े हैं। केवल एक बौद्ध स्तूप सबसे
ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है। यह चबूतरा पच्चीस फुट ऊँचा है। इस ऊँचे चबूतरे पर छब्बीस
सदी पहले बनी ईंटों के दम पर स्तूप को आकार दिया गया था। चबूतरे पर भिक्षुओं के कमरे
भी बने हुए हैं। सन् 1922 में जब राखालदास बनर्जी आए तब वे इसी स्तूप की खोजबीन करने
के संबंध में यहाँ आए थे। उन्होंने इस स्तूप के चारों ओर खुदाई करवायी। बाद में भारतीय
पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर खुदाई का व्यापक अभियान
हुआ है। धीमे-धीमे यह खोज विशेषज्ञों की सिंधु घाटी सभ्यता की देहरी पर ले आई। इसी
से ही मुअनजो-दड़ो और सिन्धु घाटी की प्राचीनता का पता चला।
प्रश्न 3. 'अतीत में दबे पाँव' पाठ के आधार पर मुअनजो-दड़ो के महाकुण्ड
का वर्णन कीजिए।
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो में बौद्ध स्तूप के समीप एक महाकुण्ड अवस्थित है। यह कुण्ड चालीस फुट
लम्बा और पच्चीस फुट चौड़ा है तथा इस कुण्ड की गहराई सात फुट है। कुण्ड के उत्तर और
दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। इसके तीन तरफ साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर में
दो पंक्तियों में स्नान घर बने हुए हैं। उन बने स्नानघरों की संख्या आठ है।
उन
स्नानघरों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि किसी का भी दरवाजा दूसरे के सामने नहीं खुलता
है। यह कुण्ड सिद्ध वास्तुकला का सुन्दर नमूना है। इस कुण्ड की खास बात यह है कि यहाँ
पक्की ईंटों का जमाव है। कुण्ड का पानी रिस न सके और बाहर का 'अशुद्ध। 'अशद्ध पानी'
इस कण्ड में न आ सके, इसके लिए कण्ड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और
चिरोड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ है। साथ ही पार्श्व की दीवारों के साथ दूसरी दीवार
खड़ी की गई है जिसमें सफेद डामर का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 4. कुलधरा कहाँ स्थित है और लेखक को मुअनजो-दड़ो के घरों के
खण्डहरों में टहलते हुए उसकी याद क्यों आ गई?
उत्तर
: कुलधरा राजस्थान के जैसलमेर जिले के मुहाने पर बसा हुआ एक खूबसूरत गाँव है। इस गाँव
के सभी मकान पीले पत्थरों से बने हुए हैं। इस खूबसूरती में हरदम एक गमी व्याप्त है।
गाँव में घर तो है, पर इन घरों में रहने वाले लोग नहीं हैं। इसका कारण यह है कि कोई
डेढ़ सौ साल पहले राजा से तकरार पर स्वाभिमानी गाँव का हर बाशिंदा अपना घर छोड़ चला
गया। दरवाजे-असबाब पीछे से लोग उठा कर ले गए। स्थिति यह बनी घर खण्डहर हो गए, पर वे
घर ढहे नहीं। घरों की दीवारें, प्रवेश द्वार और खिड़कियाँ ऐसी हैं, जैसे कल की बात
हो। वहाँ के लोग निकल गये, पर वक्त वहीं रह गया। खण्डहरों ने उसे थाम लिया। वे खण्डहर
अब भी गए लोगों के लौट आने। के इन्तजार में खड़े हैं।
प्रश्न 5. 'मुअनजो-दड़ो' नगर की नालियों एवं घरों के संबंध में वर्णन
कीजिए।
उत्तर
: 'मुअनजो-दड़ो' नगर की नालियों के संबंध में लेखक ने बताया है कि ढकी हुई नालियाँ
मुख्य सड़क के दोनों तरफ समांतर दिखाई देती हैं। बस्ती के भीतर भी इनका यही रूप है।
हर घर में एक स्नान घर है। घर के भीतर से पानी या मैल की नालियाँ बाहर हौदी तक आती
हैं और नालियों के जाल में जुड़ जाती हैं।
यह
नालियाँ खुले होने के बजाय ज्यादातर ढकी हुई है। स्वास्थ्य की दृष्टि से मुअनजो-दड़ो
के बाशिंदों के सरोकार का यह बेहतर उदाहरण है। जहाँ तक घरों का प्रश्न है-यहाँ के घर
छोटे और बड़े दोनों ही तरह के हैं लेकिन घर एक कलर है। ज्यादातर घरों का आकार तकरीबन
30 × 30 फुट का होगा? कुछ हिस्से दुगने और तिगुने आकार के भी हैं। इनकी वास्तु शैली
कमोबेश एक-सी प्रतीत होती है। नालियों एवं घरों की दृष्टि से यह नगर सुव्यवस्थित एवं
सुनियोजित था।
प्रश्न 6. सिंधु घाटी की सभ्यता मूलतः खेतिहर और पशपालक सभ्यता थी।
'अतीत के दबे पाँव' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: सिंधु घाटी की सभ्यता के संबंध में कुछ विद्वानों का मानना है कि वह मूलतः खेतिहर
और पशुपालक सभ्यता ही थी जबकि कुछ का भ्रम था कि यहाँ अनाज नहीं उपजाया जाता था, उसका
आयात ही होता था। यह सोच का ही अन्तर था। यहाँ लोहा शुरू में नहीं था, पर पत्थर और
ताँबे की बहुतायत थी। पत्थर सिंध में ही था, ताँबे की खाने राजस्थान में थीं। इनके
उपकरण खेती-बाड़ी में प्रयोग किए जाते थे।
कुछ
भी हो, विद्वानों का मानना है कि यहाँ ज्वार, बाजरा और रागी की उपज होती थी। लोग खजूर,
खरबूजे और अंगूर उगाते थे। झाड़ियों से बेर जमा करते थे। कपास की खेती भी होती थी।
कपास को छोडकर बाकी सबके बीज मिले हैं। इसके अलावा यहाँ के लोग पश भी पालते थे और दूध
का सही उपयोग करते थे। इन आधारों पर कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी की सभ्यता मूलतः
खेतिहर और पशुपालक सभ्यता थी।
प्रश्न 7. सिंधु घाटी सभ्यता की कला का वर्णन 'अतीत के दबे पाँव' पाठ
के आधार पर कीजिए।
उत्तर
: सिंधु घाटी सभ्यता की कला के संबंध में लेखक ने बताया है कि सिन्धु घाटी के लोगों
में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और
पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्भाण्ड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की
छवियाँ सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश विन्यास,
आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिन्धु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा
कला-सिद्ध जाहिर करता है।
शायद
इसीलिए यहाँ आकार की भव्यता की जगह इसमें कला की भव्यता दिखाई देती है। यहाँ के लोग
सुइयों से कशीदाकारी करते थे। यहाँ जो सुए मिले हैं इनसे अनुमान लगाया गया है कि इन
मिले सुए से दरियाँ बुनी जाती थीं। इनके अलावा 'नर्तकी' व दाढ़ी वाले 'नरेश' की मूर्ति
इनकी उत्कृष्ट कला के नमूने हैं।
प्रश्न 8. 'अतीत में दबे पाँव' के आधार पर शीर्षक की सार्थकता सिद्ध
कीजिए।
उत्तर
: 'अतीत में दबे पाँव' शीर्षक पाठ में लेखक के वे अनुभव हैं जो उसे सिंधु घाटी की सभ्यता
के अवशेषों को देखते समय हए थे। उस सभ्यता के अतीत में झाँककर वहाँ के निवासियों और
उनके दि जाता है कि वहाँ की सड़कें, नालियाँ, स्तूप, अन्नभण्डार, स्नानागार, कुएँ,
कुंड, अनुष्ठान-गृह आदि किस तरह से सुव्यवस्थित तरीके से बनाए गए थे।
इन
सबको सुव्यवस्थित देखकर लेखक को महसूस होता है कि जैसे अब भी वे लोग वहाँ हैं। किसी
खण्डहर में प्रवेश करते हुए उस अतीत में निवासियों की उपस्थिति महसूस होती है। यदि
उन लोगों की सभ्यता नष्ट नहीं हुई होती तो वे पाँव प्रगति के पथ पर निरंतर बढ़ते ही
रहे होते। परन्तु दुर्भाग्यवश ये प्रगति की ओर बढ़ रहे सुनियोजित पाँव अतीत में ही
दबकर रह गए। इन आधारों पर कहा जा सकता है कि 'अतीत में दबे पाँव' शीर्षक पूर्णतः सार्थक,
रोचक और सटीक हैं।
प्रश्न 9. सिंधु घाटी सभ्यता को दूसरी सभ्यताओं से अलग क्यों बताया
गया है?
उत्तर
: सिंधु घाटी सभ्यता को दूसरी सभ्यताओं से अलग सभ्यता इसलिए बताया गया है। दूसरी सभ्यताओं
में राजतंत्र या धर्मतन्त्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले भव्य महल, उपासना स्थल,
मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं, परन्तु मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा में न भव्य प्रासाद
मिलते हैं और न मन्दिर।
यहाँ
न अन्य प्रकार की भव्य, दिव्य और प्रभावी संरचना थी जिससे समाज अनुशासित होता था। यहाँ
की सभ्यता उच्चता और भव्यता की बजाय 'लो-प्रोफाइल' समें लघुता में ही दिव्यता छिपी
हुई थी। यहाँ पर जो नगर-योजना, वास्तु शिल्प, पानी की निकासी या साफ-सफाई की सुव्यवस्था
आदि में एकरूपता कायम थी और वह एकरूपता सामाजिक अनुशासन से ही स्थापित हुई थी। सिंधु
घाटी सभ्यता में आडम्बर एवं दिखावे की प्रवृत्ति भी नहीं थी। यहाँ के लोग सौन्दर्यप्रिय,
सुरुचि वाले और कला-प्रेमी थे।
प्रश्न 10. मुअनजो-दड़ो में 'रंगरेज का कारखाना' किस रूप में था? 'अतीत
में दबे पाँव' पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर
: 'अतीत में दबे पाँव' पाठ में लेखक बताता है कि मुअनजो-दड़ो में स्तूप से पश्चिम में
गढ़ी के ठीक पीछे माधोस्वरूप वत्स ने खुदाई करवायी थी। वहाँ एक ऐसा भवन मिला है जिसकी
जमीन में ईंटों के गोल गड्ढे उभरे हुए हैं। इस संबंध में पुरातत्त्ववेताओं का कहना
है कि इनमें रंगाई में काम आने वाले बर्तन रखे जाते होंगे। इस कारखाने में सोलह छोटे-छोटे
मकान बने हुए हैं। एक कतार मुख्य सड़क पर है। दूसरी कतार पीछे की सड़क पर है। सभी मकान
एक मंजिले हैं और छोटे-छोटे हैं तथा सब मकानों में दो-दो कमरे हैं। इसके साथ ही स्नान
घर भी सब घरों में हैं। ऐसा अनुमान है कि ये कारखाने के कर्मचारियों या कामगारों के
घर रहे होंगे। अवश्य ही वे रंगरेजों के मकान रहे होंगे।
प्रश्न 11. सिंधु-सभ्यता में प्राप्त वस्तुओं का वर्णन 'अतीत में दबे
पाँव' पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर
: अकेले मुअनजो-दड़ो की खुदाई में निकली पंजीकृत चीजों की संख्या पचास हजार से ज्यादा
है, जिनमें से प्रत्येक सिंधु सभ्यता की उत्कृष्टता की मिसाल है। यहाँ के मिले काले
भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल के पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी,
अन्य प्रकार के खिलौने, दो पाटों वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थर
के हार और पत्थर के औजार आदि यहाँ प्रमुख हैं, वहीं काले पड़ गए गेहूँ, ताँबे और काँसे
के बरतन, मुहरें, बाघ, चाक पर बने विशाल मदभांड, अनेक लिपि चिहन आदि साक्षर सभ्यता
के प्रमाण हैं।
कएँ,
कंड, चौपड, ठप्पेदार मोहरें, गोटियाँ, तौलने के बाट तथा सुई और सुए आदि भी मिले हैं।
यहाँ मिली सुइयाँ संभवतः काशीदाकारी के काम आती होगी, मिले सुए दरियाँ बनाने के काम
आते होंगे। इनके साथ ही नर्तकी की मूर्ति भी मिली है जो अपने आप में एक अद्वितीय रचना
है।
प्रश्न 12. मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में किन चीजों का संग्रह किया गया
है? 'अतीत में दबे पाँव' पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर
: 'अतीत में दबे पाँव' पाठ के लेखक ने बताया है कि मुअनजो-दड़ो की खुदाई में निकली
पंजीकृत वस्तुओं की संख्या पचास हजार से ज्यादा है। लेकिन अजायबघर में जो थोड़ी सी
चीजें प्रदर्शित की गई हैं, वे सिंधु सभ्यता की झलक दिखाने को काफी है। उनमें काला
पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, चाक पर बने विशाल मृद्भांड, उन पर
बने काले भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप तौल के पत्थर, ताँबे का आइना, मिट्टी
की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन की चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे
पत्थरों के मनके वाले हार, पत्थर के औजार, ताँबे व बहुत सारी सुइयाँ भी हैं। यहाँ नर्तकी
व दाढ़ी वाले नरेश की मूर्ति भी है। इसके साथ ही अजायबघर में तैनात अली नवाज ने बताया
कि कुछ सोने के गहने भी यहाँ हुआ करते थे जो चोरी हो गए हैं।
प्रश्न 13. 'डीके-जी' हलका के बने घरों की विशेषताएँ क्या हैं? 'अतीत
में दबे पाँव' पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर
: लेखक ने बताया है कि बड़ी बस्ती में पुरातत्वशास्त्री काशीनाथ दीक्षित के नाम पर
एक हलका 'डीके-जी' कहलाता है। इस हलके के घरों की विशेषताएँ हैं कि इसके घरों की दीवारें
ऊँची और मोटी हैं। मोटी दीवार का अर्थ यह लगाया जाता है कि उस पर दूसरी मंजिल भी रही
होगी। इसके साथ ही कुछ दीवारों में छेद भी हैं जो संकेत देते हैं कि दूसरी मंजिल उठाने
के लिए शायद यह शाहतीर की जगह हो।
यहाँ
के सभी घर ईंटों के हैं। उन घरों में एक ही आकार की ईंटें - 1 : 2 : 4 के अनुपात की
हैं। सभी ईंटें भट्टी में पकी हुई हैं। इन घरों में दिलचस्प बात यह है कि सामने की
दीवार में केवल प्रवेश द्वार बना है, कोई खिड़की नहीं है। खिड़कियाँ शायद ऊपर की दीवार
में रहती हो यानी दूसरी मंजिल पर। हालाँकि सभी घर खंडहर हैं और दिखाई देने वाली चीजों
से सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है।
प्रश्न 14. 'अतीत के दबे पाँव' पाठ में वर्णित महाकुण्ड को पवित्र रखने
के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए थे?
उत्तर
: मुअनजो-दड़ो में मिले तालाब को ही महाकुंड नाम दिया गया है। इस महाकुंड की लम्बाई
चालीस फुट और चौड़ाई पच्चीस फुट तथा गहराई सात फुट है। कुंड में उत्तर और दक्षिण से
सीढ़ियाँ उतरती हैं। उत्तर दिशा में दो पांत में आठ स्नान घर हैं। य है। यह कुड वास्तुकला
का अनुपम उदाहरण है।
इसको
पवित्र रखने के लिए उसके तल में पक्की ईंटों का जमाव किया गया था। दीवारों पर भी पक्की
ईंटों की चिनाई की गयी थी। ईंटों के बीच में चूने तथा चिरोड़ी के गारे का प्रयोग किया
गया था। कुंड की बगल की दीवारों के साथ एक दूसरी दीवार खड़ी की गई थी। जिसमें सफ़ेद
डामर का प्रयोग किया गया था। कुंड को भरने के लिए जो कुआँ था, वह दोहरे घेरे वाला था
तथा इसके पानी को बाहर निकालने के लिए भी पक्की नालियाँ थीं जो पत्थरों से ढकी हुई
थीं।
प्रश्न 15. 'अतीत में दबे पाँव' अध्याय में किसका वर्णन किया गया है
और इसका क्या उद्देश्य है?
उत्तर
: 'अतीत में दबे पाँव' अध्याय में सिंधु घाटी सभ्यता के ऐतिहासिक नगर मुअनजो-दड़ो के
अवशेषों का वर्णन यात्रा-वृत्त के रूप में किया गया है। इसके बारे में धारणा है कि
वह अपने दौर में घाटी की सभ्यता का केन्द्र रहा होगा। इसके संबंध में माना जाता है
कि यह नगर दो सौ हैक्टेयर में फैला था और इसकी आबादी कोई पचास हजार थी। इसके संबंध
में माना जाता है कि यह छोटे-छोटे टीले पर आबाद था।
वे
टीले प्राकृतिक नहीं थे। इन टीलों को कच्ची पक्की दोनों तरह की ईंटों से धरती की सतह
को ऊँचा उठाया गया था ताकि सिंधु का पानी बाहर आ जाये तो उससे बचा जा सके। इसका उद्देश्य
एक ओर सिंधु सभ्यता का महत्त्व बताना तथा ऐतिहासिक. नगर सभ्यता के सुनियोजित विकास
तथा प्राचीन सभ्यता का परिचय देना है तो दूसरी ओर उस समय की समाज-व्यवस्था का महत्त्व
बताना भी है।
अतीत में दबे पाँव (सारांश)
लेखक परिचय - पत्रकारिता क्षेत्र में विख्यात ओम थानवी का जन्म सन् 1957 ई. में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा बीकानेर नगर में हुई तथा राजस्थान विश्वविद्यालय से इन्होंने एम.कॉम. उपाधि प्राप्त की। सन् 1980 से 1989 पत्रिका' में कार्य किया और 'इतवारी पत्रिका' का सम्पादन कर इसे विशेष प्रतिष्ठा दिलाई। ये एडीटर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया के सचिव रहे। सन् 1999 से हिन्दी दैनिक 'जनसत्ता' समाचार-पत्र के सम्पादक का दायित्व निभाते हुए पत्रकारिता क्षेत्र में यशस्वी बने।
ओम
थानवी अपने सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों के लिए जाने जाते हैं। ये अभिनेता एवं निर्देशक
रूप में स्वयं रंगमंच पर सक्रिय रहे हैं तथा साहित्य, कला, सिनेमा, वास्तुकला, पुरातत्त्व
और पर्यावरण में गहन रुचि रखते हैं। राजस्थान के पारम्परिक जल-स्रोतों पर खोजबीन करने
हेतु इन्हें सेण्टर फॉर साइंस एनवायरमेंट (सीएसई) की फैलोशिप प्राप्त हुई तथा पत्रकारिता
के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित हुए।
पाठ-सार
- 'अतीत में दबे पाँव' शीर्षक पाठ यात्रा-वृत्तान्त और रिपोर्ताज का मिश्रित रूप है।
इसमें प्राचीन भारत के पुरातात्त्विक स्थानों का परिचय दिया गया है, जो कि अब पाकिस्तान
में स्थित हैं।
1.
अतीत के नियोजित नगर-मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा संसार के प्राचीनतम
नियोजित नगर माने जाते हैं। येो सभ्यता के उत्कर्ष काल के नगर हैं। मुअनजो-दड़ो ताम्रकाल
के शहरों में सबसे बड़ा था जो कि मानव निर्मित छोटे-मोटे टीलों पर आबाद था। खुदाई करने
से इसके जो अवशेष मिले हैं, उनके आधार पर कहा जाता है कि यह पाँच हजार वर्ष पूर्व सिन्धु
घाटी सभ्यता का केन्द्र रहा होगा।
2.
नगर-रचना-इस नगर को कच्ची-पक्की ईंटों से धरती की सतह को ऊँचा करके
बसाया गया था, ताकि सिन्धु का पानी इसके अन्दर न आ सके। यह नगर आज भले ही खण्डहर हो
गया है किन्तु इसके स्वरूप का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। इसकी गलियाँ, सड़कें,
कमरे, रसाई, खिड़की, चबूतरे, आँगन, सीढ़ियाँ आदि इस नगर के सुन्दर नियोजन की कहानी
स्वतः कह देते हैं।
यहाँ
की सभी सड़कें प्रायः सीधी या आड़ी हैं। सबसे ऊँचे चबूतरे पर बौद्ध-स्तूप है, उसके
पीछे गढ़ और ठीक सामने उच्च वर्ग की बस्ती है। दक्षिण में कामगारों की बस्ती तथा मध्य
में एक महाकुण्ड है। उस कुण्ड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। कुण्ड में
बाहर से अशद्ध जल न आवे, इसकी भी उचित व्यवस्था है। वहाँ पर नालियाँ पक्की ईंटों की
बनी हुई हैं। कुण्ड के दूसरी तरफ विशाल कोठार है, जिसमें नौ-नौ चौकियों की तीन हवादार
कतारें हैं। ऐसा ही एक कोठार हड़प्पा में भी मिला है।
3.
पुराना बौद्ध-स्तूप-मुअनजो-दड़ो की सभ्यता के बिखरने के बाद एक
जीर्ण-शीर्ण टीले पर बना बौद्ध-स्तूप है। यह स्तूप पच्चीस फुट ऊँचे चबूतरे पर और इसका
निर्माण काल ईसा पर्व का है और यह बौद्ध स्तूप भारत का सबसे पुराना लैंडस्कोप है। यह
अत्यधिक रोमांचक भी है। यह स्तूप वाला. चबूतरा मुअनजो-दड़ो के सबसे खास हिस्से के एक
सिरे पर स्थित है। इसे पुरातत्त्व के विद्वान 'गढ़' कहते हैं। स्तूप के समीप ही महाकुण्ड
है, जो सिन्धु वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है।
4.
सिन्धु घाटी सभ्यता में खेती व व्यापार-सिन्धु घाटी सभ्यता में व्यापार
के साथ ही उन्नत खेती होती थी। नई खोजों से पता चलता है कि यहाँ ज्वार, बाजरा और रागी
की उपज होती थी। खजूर, खरबूजे, अंगूर और बेर होते थे, कपास की खेती भी होती थी। मुअनजो-दड़ो
में सूत की कताई-बुनाई के साथ रंगाई भी होती थी। इन सबके अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए
हैं।
5.
महाकुण्ड के समीप का परिसर-महाकुण्ड के उत्तर : पूर्व में बहुत लम्बी-सी
इमारत के अवशेष हैं। इसके खुले बड़े दालान, तीन तरफ के बरामदे तथा कमरों को देखकर इसे
धार्मिक अनुष्ठानों का क्षेत्र, सचिवालय, सभा भवन और सामुदायिक केन्द्र का माना जाता
है। चहारदीवारी के भीतर छोटे टीलों पर 'नीचा नगर' है तो पूर्व की बस्ती रईसों की है।
काशीनाथ दीक्षित ने यहाँ खुदाई की थी, इसलिए यह 'डीके हलका' कहलाता है। यहाँ पर लम्बी-चौड़ी
सड़क के दोनों ओर बस्तियाँ हैं।
6.
डीके-जी हलका-इस नाम के क्षेत्र में घरों की दीवारें ऊँची
और मोटी हैं। शायद यहाँ दो मंजिले मकान रहे होंगे। यहाँ सम अनुपात में बनी पक्की ईंटों
का प्रयोग हुआ है तथा छोटे-बड़े घर सब एक पंक्ति में हैं। अधिकतर घरों का आकार तीस-गुणा-तीस
फुट का है। यहाँ दो आँगन और बीस कमरों का घर है जो शायद मुखिया का घर रहा होगा।
7.
डीके-बी, सी हलका-यह क्षेत्र पूर्व की तरफ है। इसी के पास 'एचआर'
हलका है। इसे सड़क दो भागों में बाँटती है। यहाँ पर एक 'नर्तकी' की मूर्ति भी खुदाई
में मिली थी। पश्चिम में गढ़ी के पीछे वीएस हिस्सा है। यहाँ पर रंगरेज का कारखाना दिखाई
देता है। मुअनजो-दड़ो में कई पुरातत्त्वविदों ने खुदाई करके वहाँ की नगर सभ्यता का
उद्घाटन किया है। वहाँ के खण्डहरों को लेकर जॉन मार्शल ने तीन खण्डों का एक विशद प्रबन्ध
(पुस्तक) प्रकाशित किया। उसमें खुदाई में मिली ठोस पहियों वाली मिट्टी की गाड़ी का
चित्र प्रकाशित है।
8.
मुअनजो-दड़ो का अजायबघर-वहाँ के खण्डहरों के पास साबुत इमारत में
अजायबघर है। उसमें मुअनजो दड़ो की खुदाई से निकली पचास हजार से अधिक चीजें रखी गई हैं।
उसमें काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य-यन्त्र, चाक पर
बने विशाल मृद्-भाण्ड, कंघी, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों के हार और पत्थर के औजार
आदि वस्तुएँ संगृहीत हैं। इन्हें देखकर सिन्धु घाटी सभ्यता की सामाजिक एवं सांस्कृतिक
स्थिति का पता चल जाता है।
9.मअनजो-दडो-हडप्पा
का महत्त्व-मअनजो-दडो सिन्ध सभ्यता का सबसे बडा एवं समद्ध नगर था। परन्त इसमें भव्यता
का आडम्बर नहीं था। वहाँ के लोगों में कला का महत्त्व ज्यादा था। वास्तुकला, मूर्तिकला,
मृद्-भाण्डों पर चित्रित छवियाँ, नियोजित स्थापत्य कला तथा सुघड़ अक्षरों का लिपि रूप
सिन्धु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध प्रमाणित करता है। वहाँ पर अजायबघर
में रखी गई चीजों में ताँबे और काँसे की बहुत-सी सूइयाँ हैं, जो शायद कशीदाकारी के
काम आती होंगी। सिन्धु नदी के कारण मुअनजो-दड़ो की खुदाई का काम बन्द कर दिया गया।
अब इन खण्डहरों की रक्षा करना अपने आप में एक चुनौती है।
कठिन-शब्दार्थ :
परिपक्व
= पूरी तरह से पका हुआ, समृद्ध।
भांडे
= मिट्टी के बड़े बर्तन।
टीला
= एक ऊँचा स्थान।
पायदान
= सीढ़ी, पैर रखने का स्थान।
आदिम
= अत्यन्त प्राचीन।
इलहाम
= अनुभूति।
लैण्डस्केप
= प्राकृतिक भू-दृश्य।
अपलक
= एकटक।
आलम
= संसार।
अनुष्ठानिक
= अनुष्ठान, पूजा आदि के निमित्त।
वास्तु
कौशल = भवन निर्माण की चतुराई।
नगर
नियोजन = शहर बसाने की व्यवस्थित विधि।
राजसत्ता
= राजा का शासन।
मिसाल
= उदाहरण।
प्रतिमान
= मानक।
कामगार
= मजदूर।
इतर
= भिन्न।
विहार
= बौद्ध-भिक्षुओं का आश्रम।
अनुष्ठान
= पवित्र आयोजन।
समरूप
= समान।
धूसर
= धूल के रंग के।
कोठार
= भण्डार-घर।
जग
जाहिर = प्रसिद्ध, सभी को ज्ञात।
हलका
= क्षेत्र।
अवचेतन
= मस्तिष्क का सुप्त भाग।
सरोकार
= प्रयोजन।
अवशेष
= बचा हुआ चिह्न।
याजक
= यज्ञ करने वाला।
विशद
प्रबन्ध = विशाल ग्रन्थ।
इजहार
= प्रकट।
मृाण्ड
= मिट्टी के बर्तन।
राजतन्त्र
= वह शासन-व्यवस्था जिसमें राजा सर्वोपरि होता है।
राजप्रासाद
= राजमहल।
उत्कीर्ण
= उकेरी गई।
केश
विन्यास = बालों की सजावट।
गुलकारी
= कपड़ों पर फूल या चित्र अंकित करने की कला।
क्षार = नमक-मिश्रित पानी का कुप्रभाव।