12th अंतरा 7. तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद

12th अंतरा 7. तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद
12th अंतरा 7. तुलसीदास (क) भरत-राम का प्रेम (ख) पद
भरत-राम का प्रेम प्रश्न 1. 'हारेहु खेल जितावहिं मोही' भरत के इस कथन का क्या आशय है? उत्तर : भरत राम के स्वभाव की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि प्रभु श्रीराम मेरे ऊपर इतना स्नेह करते हैं कि बचपन में जब मैं खेल में हार जाता था तो भी वे मुझे ही जिता देते थे जिससे मुझे दुःख न हो। इस प्रकार कवि ने बड़े भाई राम के अपने अनुज भरत के प्रति गहरे स्नेहभाव का वर्णन किया है। प्रश्न 2. 'मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ।' में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है? अथवा भरत-राम प्रेम कविता में तुलसी ने सम के किस स्वभाव की विशेषताओं का वर्णन किया है? उत्तर : भरत जी कहने लगे मैं अपने स्वामी श्रीराम के स्वभाव को जानता हूँ। भरत के इस कथन से पता चलता है कि भगवान राम अत्यन्त उदार हैं तथा भरत और अन्य परिवारीजनों पर उनका अपार स्नेह है। वह अपराध करने वाले पर क्रोध नहीं करते। वह अत्यन्त दयालु हैं। बचपन से अब तक उन्होंने भरत को कोई दुःख नहीं पहुँचाया है। प्रश्न 3. राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए। उत्तर : अपने अग्रज राम के प्रति भरत श्रद्धा भाव रखते …