पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सिद्धेश्वरी ने अपने बड़े बेटे रामचंद्र से मँझले बेटे मोहन
के बारे में झूठ क्यों बोला?
उत्तर
: सिद्धेश्वरी कुशल गृहिणी थी, वह नहीं चाहती थी कि परिवार के किसी भी व्यक्ति को दुःख
हो। रामचंद्र मोहन का हित चाहता था और हमेशा उसके लिए चिन्तित रहता था। वह मोहन के
सम्बन्ध में सही बात बताकर रामचन्द्र को दुखी नहीं करना चाहती थी। वह स्वयं नहीं जानती
थी कि काफी समय से मोहन कहाँ गया है। मोहन के लम्बे समय से घर से बाहर रहने के कारण
रामचंद्र को दुःख न हो, इसलिए सिद्धेश्वरी ने झूठ बोला।
प्रश्न 2. कहानी के सबसे जीवंत पात्र के चरित्र की दृढ़ता का उदाहरण
सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर
: 'दोपहर का भोजन' कहानी में चार पुरुष पात्र और एक स्त्री पात्र है। इनमें स्त्री
पात्र सिद्धेश्वरी का चरित्र सबसे अधिक सुदृढ़ है। वह परिवार को एक सूत्र में बाँधने
और विघटन से बचाने के लिए झूठ का सहारा लेती है। वह स्वयं कष्ट उठाती है पर किसी को
कष्ट नहीं देना चाहती। स्वयं भूखी रहती है। सभी को आग्रहपूर्वक पेट भरकर खाना खिलाती
है। अपनी गरीबी का दुखड़ा किसी के सामने नहीं रोती। मोहन रामचन्द्र की प्रशंसा करता
है और रामचन्द्र बाबूजी को देवता कहता है, ऐसा झूठ बोलकर दोनों को सन्तुष्ट करती है।
सिद्धेश्वरी का चरित्र सबसे अधिक सुदृढ़ है।
प्रश्न 3. कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे गरीबी की विवशता
झाँक रही हो।
उत्तर
: 'दोपहर का भोजन' गरीब परिवार का चित्रण करने वाली सशक्त कहानी है। परिवार का कोई
सदस्य काम नहीं कर रहा था। चन्द्रिका प्रसाद की नौकरी छूट गई थी, रामचंद्र नौकरी की
तलाश कर रहा था। गरीबी के कारण किसी को पेट भरकर भोजन नहीं मिल रहा था। सभी दो रोटी
ही खाकर उठ जाते हैं। सिद्धेश्वरी जली आधी रोटी खाती है। प्रमोद अध-टूटे खटोले पर सोता
है। प्रमोद की छाती और कलेजे की हड़ियाँ दिख रही हैं। हाथ-पैर सूखी ककड़ी हो रहे हैं।
पेट हँडिया की तरह फूला हुआ था। ये सारे प्रसंग गरीबी की विवशता को दर्शाते हैं।
प्रश्न 4. 'सिद्धेश्वरी का एक से दूसरे सदस्य के विषय में झूठ बोलना
परिवार को जोड़ने का अनथक प्रयास था' इस संबंध में आप अपने विचार लिखिए।
उत्तर
: कुशल गृहिणी वह है जो परिवार को टूटने से बचाए। सभी सदस्यों की मानसिक स्थिति को
समझे। सिद्धेश्वरी जानती थी कि यदि उसने रामचन्द्र से मोहन की सत्य बात कह दी तो उसे
दुख होगा। वह स्वयं नहीं जानती थी कि मोहन कहाँ गया है परन्तु रामचंद्र को सन्तुष्ट
करने के लिए उसने झूठ बोला। चन्द्रिका प्रसाद को प्रसन्न करने के लिए झूठ कहा कि बड़कू
आपको देवता मानता है। उसने झूठ बोलकर दोनों के मन को प्रसन्न कर दिया। रामचंद्र के
पूछने पर कि मोहन, प्रमोद और बाबूजी ने खाना खाया या नहीं वह सत्य कह देती तो रामचंद्र
खाना नहीं खाता। रामचंद्र मोहन की तारीफ करता है, यह भी झूठ था। इन झूठों के पीछे एक
ही कारण था अपने परिवार को टूटने से बचाना।
प्रश्न 5. 'अमरकान्त आम बोलचाल की ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जिससे
कहानी की संवेदना पूरी तरह उभरकर आ जाती है। कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: अमरकान्त ने 'दोपहर का भोजन' कहानी में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। चन्द्रिका
प्रसाद के परिवार की गरीबी का आम बोलचाल की भाषा में ऐसा वर्णन किया है, जिससे पाठक
की संवेदना उभरकर सामने आती है। प्रमोद अध-टूटे खटोले पर सोया है। उसके शरीर की दुर्बलता
का आम भाषा में वर्णन किया है "लड़का नंग-धड़ग पड़ा था। उसकी गले और छाती की हड्डियाँ
साफ दीख रही थीं। उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे।"
इन पंक्तियों को पढ़कर पूरी तरह संवेदना उभरकर आ जाती है। कहानी के अन्त में परिवार
की गरीबी का सजीव वर्णन किया है। 'सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा है। आँगन में अलगनी
पर गंदी साड़ी टॅगी थी।' 'शरीर का चमड़ा झूलने लगा था। गंजी खोपड़ी आईने की भाँति चमक
रही थी।' इस प्रकार के वर्णन मन में संवेदना को उभार देता है।
प्रश्न 6. रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए
बहाने करते हैं, उसमें कैसी विवशता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: तीनों ही घर की आर्थिक स्थिति से परिचित हैं। आमदनी का कोई साधन नहीं है। सिद्धेश्वरी
अपने पुत्रों और पति को खाना खिलाते समय दो रोटियों के अतिरिक्त एक रोटी और देना चाहती
है किन्तु तीनों ही अलग-अलग बहाना बनाकर सिद्धेश्वरी का आग्रह अस्वीकार कर देते हैं।
तीनों ही जानते हैं कि घर में आटा अधिक नहीं है। गिनती की रोटियाँ ही बन पाती हैं।
अगर एक भी रोटी अधिक खा ली तो दूसरे को कम मिलेगी और माँ भूखी रह जाएगी। इसलिए वे रोटी
नहीं लेते और पानी पीकर उठ जाते हैं। रामचंद्र पेट भरने का, मोहन रोटी खराब होने का
और मुंशी जी भी पेट भरा होने का बहाना बनाते हैं। उनकी विवशता उन्हें भूखा होने के
लिए बाध्य करती है।
प्रश्न 7. सिद्धेश्वरी की जगह आप होते तो क्या करते ?
उत्तर
: यदि सिद्धेश्वरी की जगह मैं होती तो परिवार के सभी सदस्यों को परिवार की वास्तविक
स्थिति से परिचित कराकर, उन्हें रोजी-रोजगार तलाश करने के लिए बोलती, जिससे परिवार
की स्थिति में थोड़ा सुधार होता। मँझले लड़के को पढ़ाई पर अधिक ध्यान देने के लिए कहती।
शेष जो सिद्धेश्वरी ने अपने परिवार की एकता और सदस्यों में आपसी स्नेह बनाए रखने के
लिए हल्का-फुल्का झूठ बोला, मैं भी बोलती।
प्रश्न 8. रसोई सँभालना बहुत जिम्मेदारी का काम है सिद्ध कीजिए।
उत्तर
: रसोई में जितना भी सामग्री हो गृहिणी को उतने में ही सभी सदस्यों की आवश्यकता को
ध्यान में रखकर पूरी स्थिति का समावेश करना पड़ता है। यदि सामग्री पर्याप्त है तब चिंता
की कोई बात नहीं होती। लेकिन सामग्री बहुत कम हो और सभी सदस्यों को पूरा न पड़े तो
गृहिणी की परीक्षा हो जाती है। ऐसे में कुशल गृहिणियाँ अपनी जिम्मेदारी की परीक्षा
बड़े लगन और मेहनत से देती हैं। वे कम सामग्री में भी सभी सदस्यों की पूर्ति करती हैं।
भले ही अंत में स्वयं भूखी क्यों न रह जाएँ।
प्रश्न 9. आपके अनुसार सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी कैसे हैं
? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए।
उत्तर
: सिद्धेश्वरी दूरदर्शी है। वह परिस्थितियों को पहचानती है। उसका प्रयास रहता है कि
परिवार के किसी सदस्य को दुःख न हो। गरीबी की चिन्ता न सताये। इसलिए झूठ बोलती है।
वह मुंशी चन्द्रिका प्रसाद से झूठ कहती है कि बड़कू आपको देवता के समान समझता है, छोटे
भाइयों से स्नेह करता है। रामचंद्र से मोहन के लिए झूठ बोलती है. 'वह किसी लड़के के
घर पढ़ने गया है, तुम्हारी बहुत इज्जत करता है। प्रमोद आज रोया नहीं।' वह नहीं चाहती
कि परिवार के सदस्यों का आपस में मन मैला हो। वह सभी के दुःख को और सघन करना नहीं चाहती।
सब को प्रसन्न करने के लिए वह झूठ बोलती है। स्पष्ट है उसकी झूठ सौ सत्यों से भी भारी
है।
प्रश्न 10. आशय स्पष्ट कीजिए -
(क) वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा
गई।'
उत्तर
: सिद्धेश्वरी खाना बनाने के बाद बैठ.गई और चींटे-चींटियों को देखने लगी। वह भूखी थी।
उसे प्यास का ध्यान भी नहीं रहा। जब उसे तीव्र प्यास सताई तो वह उन्मत होकर शीघ्रता
से उठी और पानी से लोटा भरकर उसे गट-गट चढ़ा गई। खाली पेट में पानी जाकर लगा।
(ख) 'यह कहकर उसने अपने मँझले लड़के की ओर इस तरह देखा जैसे उसने कोई
चोरी की हो।'
उत्तर
: मोहन लम्बे समय से घर से गायब था। सिद्धेश्वरी स्वयं नहीं जानती थी कि वह कहाँ है।
खाना खिलाते समय उसने मोहन से कहा बड़कू तुम्हारी प्रशंसा कर रहा था। कहता था, मोहन
बड़ा दिमागी होगा, उसकी तबीयत चौबीसों घंटे पढ़ने में ही लगी रहती है। इतना कहकर वह
चोर की तरह उसकी ओर देखने लगी। कारण यह था कि उसने झूठ बोला था और उसे डर था कि कहीं
मोहन उसकी बात को अन्यथा न समझे। वह यह न समझे कि मुझ पर व्यंग्य किया है।
योग्यता-विस्तार
प्रश्न 1. अपने आस-पास मौजूद समान परिस्थितियों वाले किसी विवश व्यक्ति
अथवा विवशतापूर्ण घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर
: हमारे घर के पास सरला नाम की एक स्त्री रहती थी। उसके दो बच्चे थे। एक दिन सड़क दुर्घटना
में उसके पति की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु के बाद परिवार के भरण-पोषण व बच्चों की
पढाई-लिखाई की परी जिम्मेदारी उस पर ही आ पड़ी। वह अधिक पढ़ी-लिखी तो नहीं थी, फिर
भी वह किसी प्रकार अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही थी। दो-तीन महीने तक तो सब ठीक रहा,
इसी बीच उसके छोटे बेटे की तबीयत अचानक बिगड़ गई। डॉक्टर ने इसका कारण भोजन की कमी
बताया।
बच्चे
की देखभाल और इलाज के चलते उसकी और बड़े बेटे की तबीयत बिगड़ने लगी। ऐसी स्थिति में
उसने गुरुद्वारे में चलने वाली लंगर सेवा का सहारा लिया। जिससे उसका और दोनों बच्चों
का पेट तो भरने लगा, लेकिन बाकी की जरूरतों की पूर्ति नहीं हो पाती थी। कुछ समय पश्चात्
उसकी परिस्थितियों का ज्ञान होने पर गुरुद्वारा समिति ने उसे गुरुद्वारे में सेवादारी
के काम पर रख लिया। अब वह अपने बच्चों के भोजन, वस्त्र के साथ-साथ पढ़ाई-लिखाई की भी
जिम्मेदारी पूरी कर पा रही है। उसके व बच्चों के लिए कपड़े व कभी-कभी जरूरत का अन्य
सामान भी लोग उसे दान में दे जाते हैं।
प्रश्न 2. 'भूख और गरीबी में प्रायः धैर्य और संयम नहीं टिक पाते हैं।'
इसके आलोक में सिद्धेश्वरी के चरित्र पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर
: ऐसा देखा गया है कि भूख और गरीबी में प्रायः धैर्य और संयम नहीं टिक पाते हैं। सिद्धेश्वरी
भी भयंकर गरीबी और अभाव का सामना कर रही थी। वह इसका सामना अकेली नहीं कर रही थी। उस
पर तीन बेटों और परिवार का दायित्व था। यदि वह अपना धैर्य और संयम खो देती है तो परिवार
का टूटना निश्चित था। इसलिए ऐसी विषम परिस्थितियों में भी वह दृढ़ता के साथ टिकी रहती
वह परिवार वालों की भूख का ध्यान अपनी भूख से अधिक रखती है। वह सभी में प्रेमभाव को
बनाए रखने का भरकस प्रयास करती है। उसका व्यक्तित्व बहुत विशाल है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. अमरकांत का मूल नाम क्या है ?
(क)
श्रीशाम वर्मा
(ख) श्रीराम वर्मा
(ग)
श्रीराम शर्मा
(घ)
श्रीश्याम वर्मा
प्रश्न 2. 'दोपहर का भोजन' कहानी ................... जीवन से जुड़ी
है।
(क)
उच्चवर्गीय
(ख) निम्नमध्यवर्गीय
(ग)
निम्नवर्गीय
(घ)
अतिनिम्न वर्गीय
प्रश्न 3. सिद्धेश्वरी के कितने बेटे हैं ?
(क) तीन
(ख)
चार
(ग)
दो
(घ)
पाँच
प्रश्न 4. रामचन्द्र दैनिक समाचार पत्र में क्या कार्य सीखता था ?
(क)
संपादक का
(ख)
प्रिंटिंग का
(ग) प्रूफ रीडिंग का
(घ)
पैकिंग का
प्रश्न 5. सिद्धेश्वरी के पति का नाम है ?
(अ)
प्रमोद
(ख) मुंशी चन्द्रिका प्रसाद
(ग)
मोहन
(घ)
रामचन्द्र
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. सिद्धेश्वरी के बड़े बेटे का क्या नाम है? वह क्या काम करता
है ?
उत्तर
: सिद्धेश्वरी के बड़े बेटे का नाम रामचन्द्र है। वह एक दैनिक समाचार पत्र में प्रूफ
रीडिंग सीखने का काम करता है।
प्रश्न 2. सिद्धेश्वरी ने रामचन्द्र से मोहन के विषय में क्या झूठ बोला
?
उत्तर
: सिद्धेश्वरी को पता भी नहीं था कि मोहन कब से घर से गायब है और कहाँ गया है। फिर
भी उसने बोला कि वो किसी लड़के के घर पढ़ने गया है। वह सारा दिन बस पढ़ाई ही करता रहता
है।
प्रश्न 3. सिद्धेश्वरी के परिवार की स्थिति इतनी खराब क्यों है ? कारण
लिखिए।
उत्तर
: सिद्धेश्वरी के पति मुंशी चन्द्रिका प्रसाद की नौकरी चली गई है, जिससे घर में आय
का कोई साधन नहीं है। यद्यपि सिद्धेश्वरी का बड़ा बेटा नौकरी की तलाश में है फिर भी
परिवार भरण-पोषण के लिए कोई निश्चित आमदनी न होने के कारण उसके परिवार की स्थिति इतनी
खराब है।
प्रश्न 4. प्रमोद की दशा का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर
: प्रमोद सिद्धेश्वरी का सबसे छोटा बेटा है समुचित आहार न मिलने के कारण उसके शरीर
की सारी हड्डियाँ दिखाई दे रही हैं। उसके हाथ-पैर बहुत दुबले हैं और उसका पेट फूला
हुआ है।
प्रश्न 5. सिद्धेश्वरी चंद्रिका प्रसाद से खुलकर बात क्यों नहीं कर
पाती हैं ?
उत्तर
: सिद्धेश्वरी चंद्रिका प्रसाद से प्रत्येक विषय पर खुलकर बात इसलिए नहीं कर पाती है
कि कहीं उसके बात करने से उन्हें यह न लगे कि वह उन्हें काम ढूँढ़ने के लिए विवश कर
रही है अथवा कोई काम न करने के कारण उन्हें ताना दे रही है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. खाना बनाने के पश्चात् सिद्धेश्वरी की जो मानसिक स्थिति हुई,
उसे अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर
: सिद्धेश्वरी उदास थी, उन्मत्त थी। गरीबी ने उसे चिन्तित कर दिया था इसलिए भूख-प्यास
दोनों भूल गई। अचानक प्यास की तीव्रता ने उसे बेचैन किया और उसने उन्माद की स्थिति
में पानी पिया और लेट गई। वह लेटी किन्तु चिन्ता ने उसे बेचैन कर दिया। वह उठ बैठी
और आँखें मलने लगी। अचानक उसकी दृष्टि छह वर्षीय पुत्र प्रमोद पर पड़ी जिसने उसे व्यथित
कर दिया।
प्रश्न 2. 'दोपहर का भोजन' कहानी में प्रमोद का वर्णन एक निर्धन परिवार
का यथार्थ चित्रण है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: निर्धन परिवार में आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी कठिन होता है। मुंशी चन्द्रिका
प्रसाद का परिवार गरीब है। आर्थिक कठिनाई के कारण भोजन की भी समस्या है। प्रमोद अध-टूटे
खटोले पर सोया है। साधारण भोजन के अभाव में हड्डियाँ निकल आई हैं। हाथ-पैर बासी ककड़ियों
की तरह सूखे तथा बेजान हो गए हैं। पेट हँडिया की तरह फूला है। छह वर्ष के बच्चे की
यह दशा निर्धनता का परिणाम है। यह वर्णन, निर्धन परिवार की दयनीय स्थिति का चित्रण
करता
प्रश्न 3. रामचंद्र को बेजान लेटा देखकर सिद्धेश्वरी ने क्या किया और
उसके मन में क्या विचार आया होगा ?
उत्तर
: सिद्धेश्वरी ने सोचा होगा कि इसे क्या हो गया। नौकरी ने मिलने के कारण शायद वह उदास
हो गया है। चिन्ता के कारण उसका शरीर कमजोर हो गया है। वह डरती हुई उसके पास गई। सिद्धेश्वरी
ने उसे आवाज दी, उत्तर न पाकर उसने नाक के पास हाथ रखकर देखा फिर सिर पर हाथ रख कर
देखा कहीं बुखार तो नहीं आ गया है। शायद इसी कारण यह बेजान-सा लेट गया है। वह इसी चिन्ता
में मन ही मन में बेचैन हो रही थी।
प्रश्न 4. सिद्धेश्वरी रामचंद्र से क्यों डरती थी ?
उत्तर
: रामचंद्र बेरोजगार था, यद्यपि वह कोशिश कर रहा था पर सफलता नहीं मिल रही थी। वह डरती
थी कि कहीं कुछ पूछने पर वह नाराज न हो जाए। वह यह न समझ लें कि उसे नौकरी न मिलने
के कारण मैं उलाहना दे रही हैं। वह रामचंद्र से खाने की बात पूछते समय भी डरती है।
वह जानती थी कि निराशा में क्रोध आ जाता है। क्रोध में रामचंद्र ने खाना नहीं खाया
तो उसे दुख होगा। वह रामचंद्र को दुखी नहीं करना चाहती थी। इसी कारण वह उससे डरते हुए
बात करती थी।
प्रश्न 5. सिद्धेश्वरी ने रामचंद्र से मोहन के सम्बन्ध में झूठ क्यों
बोला ?
उत्तर
: रामचंद्र मोहन से प्रेम करता था और भविष्य के सम्बन्ध में चिन्तित रहता था। गरीबी
के कारण मोहन प्राइवेट परीक्षा दे रहा था। वह प्रायः घर से गायब रहता। वह कहाँ जाता
था, इसका सिद्धेश्वरी को भी पता नहीं रहता था। यदि वह रामचंद्र से मोहन की सच्चाई कह
देती, उसके घर से गायब रहने की बात बता देती तो रामचंद्र को दुख होता, क्रोध भी आ सकता
था। वह नहीं चाहती थी कि दोनों भाइयों के बीच किसी प्रकार का तनाव हो। इसलिए उसने रामचंद्र
से झूठ कहा।
प्रश्न 6. रामचंद्र के हृदय में सबके प्रति स्नेह था। क्या आप इस मत
से सहमत हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: रामचंद्र सिद्धेश्वरी का बड़ा पुत्र था। वह नौकरी की तलाश में भटक रहा था। वह समझता
था कि घर की आर्थिक स्थिति सुधारने में उसका कोई सहयोग नहीं है। परन्त उसके हृदय में
सबके प्रति स्नेह था। स्वयं उसने माँ से बाबूजी, मोहन और प्रमोद के भोजन करने की बात
पूछी। वह नहीं चाहता था कि स्वयं भोजन कर ले और सब भूखे रहें। वह मोहन के भविष्य के
सम्बन्ध में भी सोचता था। स्पष्ट है कि उसके हृदय में सबके प्रति स्नेह था और बड़े
होने का उत्तरदायित्व निभा रहा था।
प्रश्न 7. 'रामचंद्र ने कुछ आश्चर्य के साथ अपनी माँ की ओर देखा।' रामचन्द्र
के आश्चर्य का कारण था ?
उत्तर
: सिद्धेश्वरी का छोटा पुत्र छह वर्ष का था। बाल स्वभाव और उम्र के कारण वह जिद्दी
था। एक दिन पूर्व उसने रेवड़ी खाने की जिद पकड़ ली और डेढ़ घंटे तक रोया। रामचंद्र
से उसने झूठ कह दिया कि आज वह नहीं रोया। प्रमोद के न रोने की बात सुनकर ही उसे आश्चर्य
हुआ जो रेवड़ी के लिए हठ कर सकता है। वह अकारण भी रो सकता है। दूसरा माँ की बात सुनकर
भी आश्चर्य हुआ कि यह शायद झूठ बोल रही है। इसी कारण उसने आश्चर्य से देखा।
प्रश्न 8. 'दोपहर का भोजन' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: प्रस्तुत कहानी एक ऐसे मध्यम परिवार की कहानी है जो गरीबी से जूझ रहा है। गरीबी की
मार कितनी भयंकर होती है, इसका वर्णन करना ही कहानी का मुख्य उद्देश्य है। परिवार में
कोई नौकर नहीं है, सभी गरीबी से परेशान हैं। किन्तु सुगृहिणी सिद्धेश्वरी किसी को भी
गरीबी का अहसास नहीं होने देती। वह प्रत्येक को प्रसन्न देखना चाहती है। उसके झूठ बोलने
का कारण यही है कि वह परिवार को बिखरते नहीं देखना चाहती। यह सब गरीबी का कारण है जिसे
दिखाना कहानीकार का उद्देश्य है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मुंशी जी तथा सिद्धेश्वरी की असम्बद्ध बातें कहानी से कैसे
संबद्ध हैं ? लिखिए।
उत्तर
: जब मन बोझिल होता है और वातावरण में गम्भीरता होती है तो असम्बद्ध बातें करके मन
के बोझ को हल्का कर लेते हैं। मुंशी जी और सिद्धेश्वरी गरीबी के कारण दुखी हैं। अतः
दोनों असम्बद्ध बातें करके गरीबी की बातें भूलना चाहते हैं। सिद्धेश्वरी किसी के दोष
नहीं गिनाती बल्कि अच्छाई बताती है। वह दूसरों की चर्चा करती है। वह पति के दुख को
कम करना चाहती है, इसलिए वह कहती है 'मालूम होता है अब बारिश नहीं होगी।' इसका परिणाम
अच्छा निकला और मुंशी जी बोल पड़े “मक्खियाँ बहुत हो गई हैं।" फिर तो सिद्धेश्वरी
ने फूफाजी की बीमारी और गंगाधर बाबू की लड़की की बात छेड़ दी। इन असम्बद्ध बातों से
सिद्धेश्वरी गरीबी का बोझ हल्का करना चाहती थी।
प्रश्न 2. अमरकांत ने अपनी कहानी 'दोपहर का भोजन' में यत्र-तत्र प्राकृतिक
वातावरण का भी वर्णन किया है। कहानी में आए उन स्थलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
: कहानी के प्रारम्भ में जब सिद्धेश्वरी प्रतीक्षातुर दरवाजे पर आकर खड़ी होती है तब
दोपहर का वर्णन किया है "बारह बज चुके थे। धूप अत्यंत तेज थी और कभी-कभी एक-दो
व्यक्ति सिर पर तौलिया या गमछा रखे हुए या मजबूती से छाता लिए हुए फुर्ती के साथ लपकते
हुए सामने से गुजर जाते।" दूसरा स्थल वह है जब रामचंद्र खाना खा रहा था। दोपहर
का ही वर्णन है - "धूप और तेज हो गई थी। छोटे आँगन के ऊपर आसमान में बादल के एक-दो
टुकड़े पाल की नावों की तरह तैर रहे थे। बाहर की गली से गुजरते हुए खड़खड़िया इक्के
की आवाज आ रही थी।" प्रकृति का सरल भाषा में यथार्थ चित्रण किया है।
प्रश्न 3. सिद्धेश्वरी के चरित्र की तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
: कहानी का मुख्य पात्र सिद्धेश्वरी है। लेखक का लक्ष्य आदर्श गृहणी के चरित्र को उभार
कर नारी जाति को प्रेरणा देना है। सिद्धेश्वरी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्न हैं -
(क)
सुगृहिणी - सिद्धेश्वरी सुगृहिणी है। परिवार को कैसे चलाना चाहिए,
सभी को एक सूत्र में कैसे बाँधा जा सकता है। इसे वह अच्छी तरह जानती है। उसने अपने
पति एवं पुत्रों की चिन्ता को समझा और उन्हें किसी प्रका दिया। उसने घर में शान्ति
बनाये रखने का प्रयत्न किया।
(ख)
त्याग की भावना - सिद्धेश्वरी ने परिवार की शान्ति के लिए अपनी
खुशी का त्याग कर दिया। घर में आटा कम होने पर भी उसने पुत्रों और पति को शान्ति से
खाना खिलाया किन्तु स्वयं आधी जली रोटी खाकर रह गई। उसने यह प्रकट नहीं होने दिया कि
वह भूखी है। उसने अपने चेहरे पर चिन्ता का भाव प्रकट नहीं होने दिया।
(ग)
माता का आदर्श - सिद्धेश्वरी सच्ची माँ है। प्रमोद को अध-टूटे
खटोले पर सोया हुआ देखकर उसे पीड़ा होती है। रामचंद्र और मोहन को आग्रह करके भोजन कराती
है। मोहन रोटी खाता रहा और वह पंखा झलती रही। भाइयों में एक-दूसरे ति सद्भाव बना रहे
इसलिए वह झूठ बोल कर एक-दूसरे को प्रसन्न करना चाहती है। उसने माँ के धर्म को अच्छी
तरह निभाया है।
प्रश्न 4. 'दोपहर का भोजन' कहानी का सार लिखिए।
उत्तर
: 'दोपहर का भोजन' अमरकांत द्वारा लिखित एक छोटी परन्तु महत्वपूर्ण कहानी है। यह कहानी
विडम्बना और करुणा की कहानी है। सिद्धेश्वरी नामक स्त्री अपने पति मुंशी चंद्रिका प्रसाद
और तीन लड़कों (रामचन्द्र, मोहन और प्रमोद) के साथ आर्थिक तंगी में जीवन व्यतीत कर
रही होती है। तंगी इतनी है कि कोई भी भरपेट खाना नहीं खा सकता है। पर इस विडंबना को
घर का हर सदस्य एक-दूसरे से छुपाता है।
दोपहर
के भोजन के समय जब माँ सिद्धेश्वरी बच्चों से अधिक रोटी खाने की कहती है तो वे बिगड़
उठते हैं क्योंकि वे भी जानते हैं कि यदि एक भी रोटी ज्यादा खाई तो दूसरे सदस्य को
कम मिलेगी और माँ तो भूखी ही रह जाएगी। इसलिए कोई भी भर-पेट नहीं खाता, पर भरपेट न
खाने का कारण सभी स्पष्ट भी नहीं करते हैं। इन सब के चलते अंत में सिद्धेश्वरी अपने
हिस्से की एक रोटी में से भी आधी रोटी अपने छोटे बेटे प्रमोद के लिए उठाकर रख देती
है और स्वयं रोटी खाते समय घर की स्थिति को देखकर रोने लगती है।
प्रश्न 5. उसने पहला ग्रास मुँह में रखा और तब न मालूम कहाँ से उसकी
आँखों से टपटप आँसू चूने लगे।' इस कथन के आधार पर सिद्धेश्वरी की मनःस्थिति का वर्णन
अपने शब्दों में करें।
उत्तर
: सिद्धेश्वरी एक भारतीय गृहिणी है। वह घर की सभी समस्याओं को अपने ऊपर लेती है तथा
परिवार के अन्य सदस्यों के बीच कटुता नहीं आने देती। घर की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय
है। वह कम साधनों में भी परिवार का पेट भरने की पूरी कोशिश करती है। इसके लिए उसे बहुत
झूठ बोलना पड़ता है। उसे इस बात का बहुत दुःख है कि घर का प्रत्येक सदस्य आधा पेट भोजन
करके पेट भरा होने का नाटक करता है। वह स्वयं भी भूखी रह जाती है किन्तु उसे स्वयं
के भूखे रहने से अधिक पति व बच्चों के भूखे रहने की चिन्ता है। वह घर की विषम स्थिति
देखकर व्याकुल हो उठती है। अपने दर्द को वह किसी के सामने प्रकट नहीं कर पाती और यही
दर्द उसकी आँखों में आँसुओं के रूप में बह निकलता है।
प्रश्न 6. 'दोपहर का भोजन' कहानी के कहानीकार का जीवनपरिचय व रचनाएँ
लिखिए।
उत्तर
: कहानीकार - अमरकांत।
जीवन-परिचय
- अमरकांत का जन्म जुलाई सन् 1925 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के भागलपुर, नामक
गाँव में हुआ था। इनका वास्तविक नाम श्रीराम था।
रचनाएँ
- कहानी संग्रह-जिन्दगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र-मिलन, उत्साह आदि।
उपन्यास
-
सूखा पत्ता, पराई डाली का पंछी, सुख-जीवी, बीच की दीवार, काले उजाले दिन, ग्राम सेविका,
इन्हीं हथियारोंआदि।
दोपहर का भोजन (सारांश)
लेखक
परिचय - अमरकान्त हिन्दी के सशक्त कहानीकार हैं। आपका जन्म सन्
1925 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में नगरा ग्राम में हुआ था। आपका वास्तविक नाम
श्रीराम वर्मा है, किन्तु आपने अमरकांत के नाम से साहित्य का सृजन किया है। आपने प्राथमिक
शिक्षा बलिया से और स्नातक की उपाधि इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। बचपन से
ही आपकी रुचि साहित्य सृजन की ओर थी।
अमरकांत
का साहित्यिक जीवन पत्रकारिता से आरम्भ हुआ। इन्होंने सर्वप्रथम आगरा से प्रकाशित होने
वाले 'सैनिक' के सम्पादकीय विभाग में कार्य किया। यहीं वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े।
तत्पश्चात् उन्होंने 'दैनिक अमृत पत्रिका' और 'दैनिक भारत' के सम्पादकीय विभाग में
कार्य किया। कुछ समय तक 'कहानी' पत्रिका का सम्पादन भी किया। अपनी कहानियों में इन्होंने
मध्यम वर्गीय परिवार की कठिनाइयों का वर्णन किया है।
रचनाएँ
- जिन्दगी और जौक, देश के लोग, मौत का नगर और कुहासा कहानी संग्रह हैं। सूखा पत्ता,
ग्राम सेविका, | काले उजाले दिन, बीच की दीवार इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं।
संक्षिप्त कथानक :
'दोपहर
का भोजन' गरीब परिवार की कहानी है। सिद्धेश्वरी खाना बनाकर घुटनों के बीच सिर रखकर
बैठ गई। फिर पानी पीकर लेट गई। उठने पर अपने प्रमोद की ओर देखा जो अध-टूटे खटोले पर
सो रहा था। दरवाजे पर खड़े होकर उसने बाहर देखा। बड़े बेटे रामचन्द्र को आता देखकर
वह अन्दर आ गई। रामचन्द और मैंझले बेटे मोहन को खाना खिलाया। रामचन्द्र से नौकरी के
बारे में पूछा। चन्द्रिका प्रसाद के आने पर उन्हें खाना खिलाया, रामचन्द्र की प्रशंसा
की। चन्द्रिका प्रसाद ने तीनों पुत्रों की तारीफ की। अन्त में सिद्धेश्वरी ने आधी रोटी
खाकर पानी पी लिया।
कहानी का सारांश :
सिद्धेश्वरी
की क्रियाएँ - खाना बनाने के बाद सिद्धेश्वरी ने चूल्हा
बुझाया और घुटनों के बीच सिर रखकर बैठ गई और चींटे-चींटियों को देखने लगी। बहुत देर
से लगी प्यास को बुझाने के लिए घड़े से पानी लेकर पिया और जमीन पर लेट गई। आधे घंटे
बाद उठी और आँखें मली। उसकी निगाह अध-टूटे खटोले पर सोये अपने छह वर्षीय बच्चे पर पड़ी।
उसके मुंह पर ब्लाउज डालकर उसे देखने लगी।
सोये
हुए प्रमोद का वर्णन - छह वर्षीय प्रमोद अध-टूटे खटोले पर नंग-धडंग
पड़ा सो रहा था। क्षीणकाय प्रमोद की गले और छाती पर हड्डियों दिख रही थीं। हाथ-पैर
बासी ककड़ियों की तरह सूखे-बेजान थे। पेट फूला हुआ था। मुँह खुला हुआ था, जिस पर अनगिनत
मक्खियाँ उड़ रही थीं।
प्रतीक्षातुर
सिद्धेश्वरी - सिद्धेश्वरी दरवाजे पर किवाड़ की आड़ में
खड़ी होकर गली में देखने लगी। गर्मी के कारण लोग सिर पर तौलिया या गमछा रखे तेजी से
जा रहे थे। कुछ देर खड़े रहने के बाद उसकी व्यग्रता बढ़ गई। उसने गली के छोर की ओर
झाँक कर देखा, उसका पुत्र रामचन्द्र धीरे-धीरे आ रहा था।
निढाल
रामचन्द्र - घर में आते ही रामचन्द्र धम से चौकी पर बैठा और वहीं बेजान
सा लेट गया। उसका मुँह लाल और चढ़ा था, बाल अस्त-व्यस्त थे और फटे जूतों पर धूल जमी
थी।
सिद्धेश्वरी
की उत्सुकता - रामचन्द्र को बेजान स्थिति में लेटा देखकर
सिद्धेश्वरी व्यग्रता से उसे देखती रही। जब वह नहीं उठा तो उसने बड़कू-बड़कू कह कर
पुकारा। रामचन्द्र ने कोई उत्तर नहीं दिया तो उसने नाक के पास हाथ रखकर साँस को देखा,
सिर पर हाथ रख कर बुखार देखा।
सिद्धेश्वरी
का त्याग - सिद्धेश्वरी माँ थी, उसे अपने तीनों पुत्रों का ध्यान
था। उन्हें पेट भरकर भोजन कराने की प्रबल . इच्छा थी। दोनों पुत्रों और पति को आग्रहपूर्वक
रोटी देने का प्रयास करती। उसने अपने लिए रोटी की चिन्ता नहीं की। पति को खिलाने के
बाद एक रोटी के दो टुकड़े करके आधी रोटी छोटे बेटे प्रमोद के लिए रख देती है और स्वयं
ने आधी रोटी खाकर पानी पी लिया। परिवार के लिए उसका यह त्याग था।
रामचन्द्र
की जिज्ञासा - खाना खाने से पूर्व रामचन्द्र के मन में विचार
आया कि मेरे अतिरिक्त और सभी ने खाना खाया या नहीं। इसलिए उसने मोहन, प्रमोद और बाबूजी
के लिए पूछा कि उन्होंने खाया या नहीं। वह खाना खा ले और कोई न खाये, यह उसे अच्छा
नहीं लगा होगा।
रामचन्द्र
की नौकरी के प्रति जिज्ञासा - सिद्धेश्वरी रामचन्द्र नौकरी के सम्बन्ध
में जानना चाहती थी, किन्तु पुत्र की स्थिति को देखकर वह डर रही थी। अंततः, डरते-डरते
उसने प्रश्न किया-“वहाँ कुछ हुआ क्या ?" पुत्र के रूखे उत्तर को सुनकर वह शान्त
हो गई।
मोहन
के आने पर-मोहन के आने पर माँ ने पूछा 'कहाँ रह गए थे ?' उसने-"यहीं
पर था" कहकर बात समाप्त कर दी। सिद्धेश्वरी ने झूठ का सहारा लेकर रामचन्द्र द्वारा
उसकी प्रशंसा की बात कही। रामचन्द्र तुम्हारे दिमाग और पढ़ाई की प्रशंसा कर रहा था,
ऐसा कहकर सिद्धेश्वरी ने उसकी ओर देखा।
चन्द्रिका
प्रसाद का आगमन-चन्द्रिका प्रसाद के आने पर सिद्धेश्वरी ने
खाना परोसा, रामचन्द्र की तारीफ की। उसने कहा वह आपको देवता समझता है। मोहन उसकी बहुत
तारीफ करता है। चन्द्रिका प्रसाद ने रामचन्द्र का दिमाग अच्छा बताया। तीनों लड़कों
को होशियार बताया।
सिद्धेश्वरी
की मनोदशा सबसे अंत में सिद्धेश्वरी अपने लिए भोजन परोसती है। किन्तु घर की स्थिति
देखकर उससे भोजन खाया नहीं जाता। उसकी आँखों में आँसू बहने लग जाते हैं, जबकि दूसरी
ओर उसका पति इस सबसे बेखबर निश्चित होकर सोया पड़ा है।
कठिन शब्दार्थ :
- मतवाला = नशे में चूर, मस्त और लापरवाह।
- जी में जी आना = होश में आना।
- ओसारे = बरामदे।
- व्यग्रता = बेचैनी, व्याकुलता, घबराया हुआ।
- फुर्ती = तेजी।
- अस्त-व्यस्त = बिखरे हुए।
- दार्शनिक = देखने वाला, दर्शक।
- पनियाई = पानी वाली।
- तबीयत नहीं होना = मन न होना, इच्छा न होना।
- भयं = डर।
- निहारना = देखना।
- उपक्रम = दिखावा, ढोंग।
- तरकारी = सब्जी।
- अब्बल = पहला।
- उन्माद-रोंगिण = बीमार।
- बरांक = याद रखना, चमकता हुआ।
- पंडूक = कबूतर की तरह का प्रसिद्ध पक्षी।
- निर्विकार = जिसमें कोई विकार या परिवर्तन
न होता हो।
- हठात = बलपूर्वक।
- कनखी = आँख के कौने से।
- जायका = स्वाद।
- दुरुस्त = ठीक।
- छिपुली = खाने का छोटा बर्तन।
- अलगनी = कपड़े टाँगने के लिए बाँधी गई रस्सी।
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्यारख्याएँ
1.
सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद चूल्हे को बुझा दिया और दोनों घुटनों के बीच सिर
रखकर शायद पैर की उँगलियों या जमीन पर चलते चींटे-चींटियों को देखने लगी। अचानक उसे
मालूम हुआ कि बहुत देर से उसे प्यास लगी है। वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर
पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई। खाली पानी उसके कलेजे में लग गया और वह हाय राम!' कहकर वहीं
ज़मीन पर लेट गई।
लगभग
आधे घंटे तक वहीं उसी तरह पड़ी रहने के बाद उसकेजी में जी आया। वह बैठ गई, आँखों को
मल-मलकर इधर-उधर देखा और फिर उसकी दृष्टि ओसारे में अध-टूटे खटोले पर सोये अपने छः
वर्षीय लड़के प्रमोद पर जम गई। लड़का नंग-धडंग पड़ा था उसके गले तथा छाती की हड्डियाँ
साफ़ दिखाई देती थीं। उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और
उसका पेट हँडिया की तरह फूला हुआ था। उसका मुँह खुला हुआ था और उस पर अनगिनत मक्खियाँ
उड़ रही थीं।
सन्दर्भ
एवं प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘दोपहर
का भोजन' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक अमरकांत हैं। उपर्युक्त गद्यांश में लेखक
ने गरीबी और बदहाली से परेशान स्त्री और भोजन के अभाव में बालक की शारीरिक स्थिति का
वर्णन किया है।
व्याख्या
: सिद्धेश्वरी खाना बनाने के बाद चूल्हे के पास बैठकर जमीन पर या अपने पैरों पर चलते
चींटी-चींटों को देख रही थी। तभी उसे याद आया कि उसे प्यास लगी थी।
उसने
उठकर घड़े से लोटे में भरकर पानी पिया। शायद खाली पेट पानी पीने के कारण वह जमीन पर
गिर पड़ी। लगभग आधे-घंटे बाद उसे होश आया। उसने अपने चारों ओर देखा। उसकी नजर बरामदे
में सोये अपने छोटे बेटे प्रमोद पर पड़ी। जो एक अध-टूटे खटोले पर नंगा सोया हुआ था।
भोजन के अभाव के कारण उसकी छाती की हड्डियाँ साफ दिखाई दे रही हैं। उसके हाथ-पैर बासी
ककड़ी के समान बहुत पतले हैं और उसका पेट फूल गया है। उसके मुँह पर अनगिनत मक्खियाँ
भिनभिना रही हैं।
विशेष
:
1.
भाषा सरल है, जिसमें कलेजे को लगना, जी में जी आना जैसे मुहावरों का सटीक प्रयोग किया
गया है।
2.
खाली पेट पानी पीने पर होने वाली दशा का सजीव वर्णन।
3.
भोजन के अभाव में बालक सूख गया है और उसके शरीर की सभी हड्डियाँ साफ दिखाई दे रही हैं।
2.
दस-पंद्रह मिनट तक वह उसी तरह खड़ी रही, फिर उसके चेहरे पर व्यग्रता फैल गई और उसने
आसमान तथा कड़ी धूप की ओर चिंता से देखा। एक-दो क्षण बाद जब उसने सिर को किवाड़ से
काफ़ी आगे बढ़ाकर गली के छोर की तरफ़ निहारा, तो उसका बड़ा लड़का रामचंद्र धीरे-धीरे
घर की ओर सरकता नजर आया।
उसने
फुर्ती से एक लोटा पानी ओसारे की चौकी के पास नीचे रख दिया और चौके में जाकर खाने के
स्थान को जल्दी-जल्दी पानी से लीपने-पोतने लगी। वहाँ पीढ़ा रखकर उसने सिर को दरवाजे
की ओर घुमाया ही था कि रामचंद्र ने अंदर कदम रखा।
संदर्भ
एवं प्रंसग - प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित
अमरकांत द्वारा रचित 'दोपहर का भोजन' नामक पाठ से ली गई हैं। उपर्युक्त गद्यांश में
सिद्धेश्वरी बड़ी व्याकुलता के साथ अपने बेटों और पति की राह देख रही है। वह बार-बार
दरवाजे के बाहर देखती है। अपने बड़े बेटे का आता देखकर वह जल्दी-जल्दी रसोई के काम
निपटाने लगती है।
व्याख्या
-
लेखक कहता है कि सिद्धेश्वरी बहुत देर तक सुनसान गली को ऐसे ही खड़ी देखती रही। जब
उसकी एकाग्रता भंग हुई तो वह बेचैनी से साथ आसमान और दोपहरी की कड़ी धूप को देखती है।
फिर कुछ समय बाद जब वह दरवाजे के बाहर सिर निकालकर देखती है तो उसे अपना बड़ा बेटा
रामचन्द्र आता हुआ दिखाई देता है। उसे देखकर वह तेजी से घर के अन्दर जाती है। वह लोटे
में पानी भरकर बरामदे में चौकी के पास रख देती है। और रसोई में जाकर चूल्हे में लीपने-पोतने
का काम करने लग जाती है। रसोई साफ करके वहाँ आसन रखकर जैसे ही वह मुड़कर पीछे देखती
है वैसे ही रामचन्द्र घर के अन्दर प्रवेश करता है।
विशेष
:
1.
गर्मी की दोपहर और कड़ी धूप का सजीव वर्णन है।
2.
गर्मी और कड़ी धूप को देखकर सिद्धेश्वरी की व्याकुलता निश्चित है।
3.
भाषा सरल एवं सहज है।
3.
सिद्धेश्वरी की पहले हिम्मत नहीं हुई कि उसके पास जाए और वह वहीं से भयभीत हिरनी की
भाँति सिर उचका-घुमाकर बेटे को व्यग्रता से निहारती रही। किंतु लगभग दस मिनट बीतने
के पश्चात् भी जब रामचंद्र नहीं उठा, तो वह घबरा गई। पास जाकर पुकारा, "बड़कू,
बड़कू!' लेकिन उसके कुछ उत्तर न देने पर डर गई और लड़के की नाक के पास हाथ रख दिया।
साँस ठीक से चल रही थी। फिर सिर पर हाथ रखकर देखा, बुखार नहीं था। हाथ के स्पर्श से
रामचंद्र ने आँखें खोलीं। पहले उसने माँ की ओर सुस्त नज़रों से देखा, फिर झट से उठ
बैठा। जूते निकालने और नीचे रखे लोटे के जल से हाथ-पैर धोने के बाद वह यंत्र की तरह
चौकी पर आकर बैठ गया।
सन्दर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित 'दोपहर
का भोजन' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक अमरकांत हैं। उपर्युक्त पंक्तियों के
अन्तर्गत रामचन्द्र की स्थिति को देखकर परेशान होती सिद्धेश्वरी का वर्णन है। वह उसे
छूकर देखती है। उसके स्पर्श से रामचन्द्र उठ जाता है और हाथ-पैर धोकर चौकी पर बैठ जाता
है।
व्याख्या
- कड़कती धूप में पैदल चलकर आने के कारण रामचन्द्र शिथिल होकर जमीन पर लेट गया। बहुत
देर तक जब वह नहीं उठा तो सिद्धेश्वरी किसी अनहोनी घटना के भय से भयभीत हो गयी। बहुत
देर तक तो वह चौके से ही सिर उचका-उचका कर रामचन्द्र को देखती रही। पहले रामचन्द्र
के पास जाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। लेकिन जब बहुत देर तक रामचन्द्र नहीं उठा
तो सिद्धेश्वरी से रुका नहीं गया।
रामचन्द्र
के पास पहुँचकर वह उसे पुकारती है। उसका उत्तर न पाकर डर जाती है और उसकी नाक पर हाथ
रखकर उसकी श्वास का निरीक्षण करती है। रामचन्द्र की साँस ठीक से चल रही थी। इसके बाद
उसने रामचन्द्र के सिर पर हाथ रखा। कहीं उसे बुखार तो नहीं है। बुखार तो नहीं था, लेकिन
अपने सिर पर माँ के हाथ का स्पर्श पाकर रामचन्द्र ने अपनी आँखें खोलकर सिद्धेश्वरी
को देखा। वह तेजी से उठा और अपने जूते उतारकर हाथ-पैर धोकर पास ही रखी चौकी पर बैठ
गया।
विशेष
:
1.
दोपहर की कड़कती धूप से रामचन्द्र के अचेत होने की घटना का सजीव वर्णन।
2.
अपने बेटे की चिंता में माँ की व्याकुलता का मर्मस्पर्शी वर्णन हुआ है।
3.
सरल व सहज भाषा है।
4.
उसकी उम्र लगभग इक्कीस वर्ष थी। लंबा, दुबला-पतला, गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आँखें तथा होंठों
पर झुर्रियाँ।
दैनिक
समाचार - पत्र के दफ्तर में अपनी तबीयत से प्रफ-रीडरी का काम सीखता था। पिछले साल ही
उसने इंटर पास किया था।
सन्दर्भ
एवं प्रसंग - उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित अमरकांत
लिखित 'दोपहर का भोजन' नामक पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत गद्यांश के अन्तर्गत सिद्धेश्वरी
के बड़े बेटे रामचन्द्र के रंग-रूप, उम्र व उसकी मानसिक क्षमता का वर्णन किया गया है।
व्याख्या
- रामचन्द्र सिद्धेश्वरी का सबसे बड़ा बेटा है। उसकी उम्र लगभग इक्कीस वर्ष थी। वह
लंबा तथा दुबली-पतली कद-काठी का लड़का है। उसका रंग गोरा है। आँखें बड़ी-बड़ी हैं और
होंठ पर झुर्रियाँ हैं। उसने पिछले साल इंटर पास किया था। और अब वह बहुत लगन के साथ
एक स्थानीय दैनिक समाचार-पत्र में प्रूफ-रीडिंग का काम सीख रहा है।
विशेष
:
1.
लेखक ने रामचन्द्र की कद-काठी का अच्छा वर्णन किया है।
2.
भाषा सरल व सहज एवं अंग्रेजी शब्द 'प्रूफ-रीडरी का भी प्रयोग किया है।
5.
मोहन सिद्धेश्वरी का यझेला लड़का था। उसकी उम्र अट्ठारह वर्ष थी और वह इस साल हाई स्कूल
का प्राइवेट इम्तिहान देने की तैयारी कर रहा था। वह न मालूम कब से घर से गायब था और
सिद्धेश्वरी को स्वयं पता नहीं था कि वह कहाँ गया है।
किंतु
सच बोलने की उसकी हिम्मत नहीं हुई और उसने झूठ-मूठ कहा, 'किसी लड़के के यहाँ पढ़ने
गया है, आता ही होगा। दिमाग उसका बडा तेज है और उसकी तबीयत चौबीसों घंटे पढने में ही
लगी रहती है। हमे ना घट पढ़न म हा लगी रहती है। हमेशा उसकी ही बात करता रहता है।'
सन्दर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अंतरा में संकलित
अमरकांत रचित 'दोपहर का भोजन' पाठ से लिया गया है। रामचन्द्र जब सिद्धेश्वरी से अपने
छोटे भाई मोहन के विषय में पूछता है तो वह उसके विषय में रामचन्द्र से झूठ बोल देती
है कि वह अपने किसी मित्र के घर पढ़ने गया है। वह हर समय पढ़ाई करता रहता है।
व्याख्या
- खाना खाते हुए रामचन्द्र सिद्धेश्वरी से मोहन के विषय में पूछता है। मोहन सिद्धेश्वरी
का मँझला बेटा है। वह अट्ठारह वर्ष का है और इस साल हाईस्कूल का प्राइवेट इम्तिहान
देगा। सिद्धेश्वरी भी नहीं जानती थी कि मोहन कहाँ गया है और कितने समय से घर पर नहीं
है। अतः जब रामचन्द्र ने पूछा कि मोहन कहाँ है, तो उसने डर से झूठ बोल दिया कि वह अपने
किसी मित्र के घर पढ़ने गया है। बस आता ही होगा। वह रामचन्द्र से कहती है कि मोहन पढ़ने
में बहुत तेज है। वह बहुत लगन के साथ हर समय पढ़ता ही रहता है और पढ़ाई की ही बात करता
है।
विशेष
:
1.
बच्चे को डाँट से बचाने की माँ की स्वाभाविक प्रवृत्ति का चित्रण।
2.
सिद्धेश्वरी रामचन्द्र के क्रोध से भयभीत रहती है।
3.
भाषा सहज-सरल यत्र-तत्र अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग।
6.
सिद्धेश्वरी चुप रही। धूप और तेज हो गई थी। छोटे आँगन के ऊपर आसमान में बादल के एक-दो
टुकड़े पाल. की नावों की तरह तैर रहे थे। बाहर की गली से गुजरते हुए खड़खड़िया इक्के
की आवाज़ आ रही थी और खटोले पर सोए बालक की साँस का खर-खर शब्द सुनाई दे रहा था।
सन्दर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित प्रसिद्ध
लेखक अमरकांत द्वारा लिखित 'दोपहर का भोजन' नामक पाठ से लिया गया है। यहाँ वर्णन है
कि शांत वातावरण के कारण आस-पास होती प्रत्येक आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही है।
व्याख्या
- रामचन्द्र का जवाब सुनकर सिद्धेश्वरी चुप हो जाती है। दोपहर की धूप और तेज हो गई
थी। चारों ओर शांत वातावरण था। आसमान में बादल के दो छोटे-छोटे टुकड़े दिखाई दे रहे
थे। जो आकाशरूपी समुद्र में पाल वाली दो छोटी नावों के समान दिखाई दे रहे थे। तभी बाहर
गली से गुजरते हुए खड़खड़ियाँ खटकने की आवाज सुनाई देती है। साथ ही बरामदे में खटोले
पर सोए हुए सिद्धेश्वरी के छोटे बेटे प्रमोद की साँसों की आवाज भी स्पष्ट सुनाई दे
रही है।
विशेष
:
1.
दोपहर के शांत वातावरण का सजीव चित्रण।
2.
शांत माहौल में प्रत्येक आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ती है।
3.
बादल के छोटे टुकड़े की पाल वाली छोटी नाव से तुलना।
7.
दो रोटियाँ, कटोरा-भर दाल तथा चने की तली तरकारी। मुंशी चंद्रिका प्रसाद पीढ़े पर पालथी
मारकर बैठे रोटी के एक-एक ग्रास को इस तरह चुभला-चबा रहे थे, जैसे बूढ़ी गाय जुगाली
करती है। उनकी उम्र पैंतालीस वर्ष के लगभग थी, किन्तु पचास-पचपन के लगते थे। शरीर की
चमड़ी झूलने लगी थी, गंजी खोपड़ी आईने की भाँति चमक रही थी। गंदी धोती के ऊपर अपेक्षाकृत
कुछ साफ़ बनियान तार-तार लटक रही थी।
सन्दर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘दोपहर
का भोजन' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक अमरकांत हैं। उपर्युक्त गद्यांश के अन्तर्गत
सिद्धेश्वरी के प्रति मुंशी चंद्रिका प्रसाद के भोजन करने के ढंग एवं रंग-रूप व आयु
का वर्णन है।
व्याख्या
- सिद्धेश्वरी मुंशी चंद्रिका प्रसाद के आने पर उनके लिए भी थाली में दो रोटी, कटोरा-भर
दाल और चने की तली हुई तरकारी परोसती है। मुंशी जी चौकी पर पालथी मारकर बैठे हुए हैं।
वे रोटी के एक-एक कौर को इस प्रकार चबाकर खा रहे हैं, जैसे कोई गाय जुगाली कर रही हो।
उनकी उम्र लगभग पैंतालीस वर्ष थी, लेकिन वह देखने में पचास-पचपन के लगते थे। उनके शरीर
की खाल लटक गई थी। सिर.पर बाल न होने के कारण उनका सिर शीशे की तरह चमक रहा था। वे
एक गंदी धोती और थोड़ा साफ किन्तु पूरी तरह से फटी हुई बनियान पहने हुए थे।
विशेष
:
1.मुंशी
जी की अवस्था का यथार्थ वर्णन किया गया है।
2.
मुंशी जी के खाना खाने के ढंग की तुलना गाय की जुगाली से की गई है।
3.
फटे और गंदे कपड़ों के माध्यम से गरीबी का यथार्थ चित्रण।
4.
भाषा का सहज एवं सरल।
8.
"सिद्धेश्वरी पर जैसे नशा चढ़ गया था। उन्माद की रोगिणी की भाँति बड़-बड़ाने लगी,
'पागल नहीं है, बड़ा होशियार है। उस ज़माने का कोई महात्मा है। मोहन तो उसकी बड़ी इज्जत
करता है। आज कह रहा था कि भैया की शहर में बड़ी इज्जत होती है, पढ़ने-लिखने वालों में
बड़ा आदर होता है।"
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक अंतरा में संकलित
है। अमरकांत की पारिवारिक कहानी 'दोपहर का भोजन' से उदधृत है। सिद्धेश्वरी सदैव परिवार
को एक सूत्र में बाँधने का प्रयत्न करती रहती है। सभी में स्नेह बना रहे, इसका प्रयत्न
करती है। वह मुंशी जी से बड़े बेटे की प्रशंसा करती है। वह कहती है, बड़कू आपको देवता
के समान समझता है। मुंशी जी यह सुनकर प्रसन्न होते हैं और प्यार से उसे पागल कहते हैं।
इसी का उत्तर देते हुए सिद्धेश्वरी का यह कथन है।
व्याख्या
- मुंशी का कथन सुनकर सिद्धेश्वरी प्रसन्न हो गई उस पर अच्छा प्रभाव पड़ा। उस पर नशा-सा
चढ़ गया। वह उन्मादग्रस्त रोगी की तरह बड़बड़ाने लगी। उसे यह पता ही नहीं कि वह क्या
कह रही है। पति ने रामचंद्र को प्यार से पागल कहा, उसने उनकी बात का समर्थन नहीं किया।
उसने कहा, वह पागल नहीं है बल्कि बहुत होशियार है। वह है है जिसे देखकर यह लगता है
वह कोई महात्मा है। उसमें महात्मा के से गुण विद्यमान हैं। वह सदैव अपने भाइयों के
हित के बारे में ही सोचता है। उसने झूठ बोलकर रामचंद्र की अच्छाई को दर्शाया और कहा
छोटा भाई मोहन उसकी बहुत इज्जत करता है। वह कह रहा था कि शहर में भैया का सभी सम्मान
करते हैं। पढ़े-लिखे लोग भी उन्हें बहुत सम्मान देते हैं।
विशेष
:
1.
सिद्धेश्वर ने रामचन्द्र के चरित्र को चमकाने का प्रयास किया है।
2.
सिद्धेश्वरी को कुशल गृहिणी के रूप में प्रस्तुत किया है।
3.
भाषा सरल है जिसमें होशियार, इज्जत जैसे उर्दू शब्दों का प्रयोग भी हुआ है।
9.
सिद्धेश्वरी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे। वह चाहती थी कि सभी चीजें ठीक से
पूछ ले। सभी चीजें ठीक से जान ले और दुनिया की हर चीज पर पहले की तरह धड़ल्ले से बात
करे। पर उसकी हिम्मत नहीं होती थी। उसके दिल में ना जाने कैसा भय समाया हुआ था।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यावतरण हिन्दी कहानी के सशक्त हस्ताक्षर अमरकांत
की पारिवारिक कहानी 'दोपहर का भोजन' से उद्धृत की गई है। यह कहानी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा
भाग-1' में संकलित है। मुंशी जी खाना खा रहे थे। सिद्धेश्वरी ने पुत्र रामचंद्र की
चर्चा उनसे की जिसे सुनकर उन्होंने छोटा-सा उत्तर दिया और फिर चुप्पी साध ली। सिद्धेश्वरी
को यह अच्छा नहीं लगा। वह उनसे कुछ पूछना चाहती थी पर किसी भय से पूछने की हिम्मत नहीं
हुई।
व्याख्या
- सिद्धेश्वरी यह नहीं समझ पाती कि चुप्पी को समाप्त करने के लिए वह क्या प्रयास करे।
पति की नौकरी छूटने बाद वह उनसे बात करने में भय का अनुभव करती थी। वह पहले की तरह
पति से हर विषय पर बात करना चाहती उनसे पहले की तरह सभी चीजों पर खुलकर बात करे, पर
उसमें इतना साहस नहीं था कि वह पति से निर्भीकता से बात कर सके। उसे भय था कि कहीं
पति ऐसा अनुभव न करें कि मैं उनकी नौकरी के सम्बन्ध में पूछ रही हूँ। मैं उन्हें नौकरी
करने के लिए विवश कर रही हूँ। इसी भय के कारण वह उनसे बहुत सँभलकर बात कर रही थी।
विशेष
:
1.
सिद्धेश्वरी की मनोदशा का चित्रण है।
2.
सिद्धेश्वरी के अन्तर्द्वन्द्व को भलीभाँति चित्रित किया है।
3.
भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहपूर्ण है।
10.
सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा था। आँगन की अलगनी पर एक गंदी साड़ी टॅगी थी, जिसमें
कई पैबंद लगे हुए थे। दोनों बड़े लड़कों का कहीं पता नहीं था। बाहर की कोठरी में मुंशी
जी औंधे मुँह होकर निश्चितता के साथ सो रहे थे, जैसे डेढ़ महीने पूर्व मकान किराया
नियंत्रण विभाग की क्लर्की से उनकी छंटनी न हुई हो और शाम को उनको काम की तलाश में
कहीं जाना न हो!
सन्दर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश अमरकांत कृत कहानी 'दोपहर को भोजन' से
अवतरित है। यह हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा-भाग-1' में संकलित है। उपर्युक्त गद्यांश
के अन्तर्गत सिद्धेश्वरी की आर्थिक तंगी एवं स्थिति से बेखबर होकर सोए उसके पति मुंशी
चंद्रिका प्रसाद का वर्णन है।
व्याख्या
-
चन्द्रिका प्रसाद के परिवार पर गरीबी की काली चादर पड़ी थी। भोजन के अभाव के कारण परिवार
के सभी सदस्य शक्तिहीन थे। सिद्धेश्वरी में काम करने के प्रति उत्साह नहीं था। वह दुखी
थी और घर की सफाई की ओर उसका यान नहीं था। मकान की सफाई न होने के कारण घर में चारों
ओर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं। गरीबी के कारण कपड़े फटे थे, जिनमें पैबंद लगे थे। ऐसी
ही पैबंद लगी साड़ी अलगनी पर लटक रही थी।
दोनों
बड़े लड़के घर पर नहीं थे। बड़ा लड़का नौकरी की तलाश में गया था और मँझले का अता-पता
नहीं था। बाहर की कोठरी में मुंशी जी मुँह नीचा करके निश्चित सोये थे। उनका निश्चित
होकर सोना यह प्रकट करता था जैसे उन्हें किराया नियंत्रण विभाग की क्लर्की से निकाला
नहीं गया है और अब उन्हें किसी काम को तलाश करने की आवश्यकता नहीं है। मुँह नीचा करके
सोने से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि मुंशी जी इतने शिथिल हो गए थे कि उनमें उठने
की शक्ति ही नहीं रही हो।
विशेष
:
1.
सिद्धेश्वरी के घर के वातावरण का वर्णन है।
2.
गरीब परिवार का यथार्थ वर्णन है।
3.
अंश को पढ़कर गरीब परिवार का चित्र स्वतः ही सामने उपस्थित हो जाता है।
4. भाषा सरल एवं प्रभावोत्पादक है।