Class-XI Hindi Aroh 12. मीरा : मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची

Class-XI Hindi Aroh 12. मीरा : मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची

Class-XI Hindi Aroh 12. मीरा : मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची

पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर

पद के साथ

प्रश्न 1. मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती हैं ? वह रूप कैसा है ?

उत्तर : मीरा कृष्ण के सगुण रूप की उपासिका हैं। उनकी भक्ति माधुर्य-भाव की तथा दास्य-भाव की है। यह श्रीकृष्ण को अपना पति मानती हैं तथा पूरी तरह उनके प्रति समर्पित हैं। उनके इस अनन्य समर्पण से संसार की कोई बाधा उनको रोक नहीं सकती। वे स्वीकार करती हैं

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।

जाके सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई।

मीरा की उपासना का यह रूप दासी का स्वामी के प्रति समर्पण तथा पत्नी का पति के प्रति प्रेमभाव का है। एक समर्पित दासी के रूप में वह कहती हैं - 'दासि मीरा लाल गिरधर! तारो अब मोही।'

प्रश्न 2. भाव व शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -

(क) अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोयी।

अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी।

(ख) दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी।

दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी।

उत्तर : भाव-सौन्दर्य प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा की विरहावस्था का चित्रण है। विरह की पीड़ा में भी. माधुर्य होता है तभी तो उसका परिणाम आनन्द ही होता है। मीरा ने श्रीकृष्ण के प्रेम में अनेक बाधाएँ सही हैं। श्रीकृष्ण के विरह में अपने प्रेम की लता को आँसुओं के जल से सींचकर बड़ा किया है। इस पल्लवित-पुष्पित प्रेम-लता पर आनन्द का फल तो लगेगा ही।

शिल्प-सौन्दर्य -

1. भाषा सरल, कोमल, संगीतमय और मधुर है। राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।

2. 'अँसुवन-जल', 'प्रेम-बेलि' तथा 'आणंद-फल' में रूपक अलंकार है। प्रेम के उत्पन्न होने, विकसित होने और आनन्ददायी होने के वर्णन में सांगरूपक है।

3. 'सींचि-सींचि' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

4. 'बेलि-बोई' में अनुप्रास की छटा है।

5. वियोग शृंगार रस है। पद गेय है। शब्द-शक्ति लक्षणा, माधुर्य गुण है।

(ख) भाव-सौन्दर्य - मीरा ने इन पंक्तियों में इस असार संसार में ईश्वर-भक्ति को सार-तत्व बताया है। दही को मथने से नवनीत उससे अलग हो जाता है और छाछ बच जाती है। छाछ के समान संसार के बाहरी सुख तत्वहीन हैं, मृग-तृष्णा हैं। नवनीत के समान ईश्वर की सच्ची भक्ति ही सच्चा सुख और सारतत्व है। मीरा ने श्रीकृष्ण की भक्ति को ग्रहण करके सांसारिक सुखों को त्याग दिया है। सांसारिक जनों के लिए मीरा का संदेश है कि सांसारिक सुखों को त्यागकर भक्ति द्वारा अलौकिक-आनन्द की प्राप्ति करनी चाहिए।

शिल्प-सौन्दर्य -

(i) अन्योक्ति अलंकार है। नवनीत 'सारतत्व' तथा छाछ संसार के दिखावटी असार स्वरूप का प्रतीक है।

(ii) सरल मधुर ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।

(iii) मुक्त छंद में संगीतात्मक है। भक्ति रस, प्रतीकात्मक शैली, अन्योक्ति तथा उदाहरण अलंकार, प्रसाद तथा माधुर्य गुण, लक्षणा शब्द शक्ति है।

(iv) मथनियाँ के दो अर्थ हैं- (i) वह बर्तन जिसमें दूध जमाकर दही बनाया जाता है। (ii) दही को बिलोने के काम आने वाली रई या बिलोनी। 'दूध की ...... बिलोयी'-का तात्पर्य दूध को जमाकर बनाए गए दही से है। द्वितीय पंक्ति में 'दधि मथि' से स्पष्ट है कि मंथन दही का होता है।

प्रश्न 3. लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं ?

उत्तर : मीरा श्रीकृष्ण से अगाध प्रेम करती थीं। उनका प्रेम पवित्र था तथा उसमें सांसारिक वासना नहीं थी। अपने प्रियतम के लिए मीरा ने घर-द्वार, परिवार, राजसी-सुख और सब कुछ त्याग दिया। हँसकर विष पी लिया। साधु-संगति कर भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। मंदिर में श्रीकृष्ण के सामने सार्वजनिक रूप से नृत्य, गायन, भजन-कीर्तन करना अनुचित नहीं समझा। लोक-निन्दा तथा पारिवारिक बाधाओं की चिन्ता नहीं की। प्रेम का यह स्वरूप सामान्य नहीं था। उनके प्रेम की इस असामान्य उत्कृष्ट भावना के कारण लोग मीरा को बावरी और पागल कहने लगे। पागल व्यक्ति जिस प्रकार अपनी धुन का पक्का होता है, उसी प्रकार मीरा को कृष्ण-प्रेम की लगन लगी थी, जिसके सामने अन्य सभी बातें तुच्छ थीं।

प्रश्न 4. विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरां हाँसी-इसमें क्या व्यंग्य छिपा है?

उत्तर : इस पंक्ति में मीरा द्वारा परिजनों की अज्ञानता पर तीक्ष्ण व्यंग्य किया गया है। मीरा श्रीकृष्ण के प्रेम में डूबी थीं। उनके पवित्र तथा वासनाहीन प्रेम को उनके परिजन अपवित्र समझते थे। वे समझते थे कि मीरा अपने आचरण से राज-परिवार की मर्यादा को तार-तार कर रही है। राणाजी ने मीरा को मारने के लिए विष का प्याला भेजा। मीरा ने उसको प्रसन्नता से पी लिया। विष को पीते समयं मीरा को हँसी आना यह प्रकट करता है कि वह अपने परिजनों की मनोभावना को समझ रही थी, जो उसकी प्रेम-भक्ति में अपवित्र वासना की गंध सँघ रहे थे। वे अज्ञानी थे और श्रीकृष्ण की अलौकिक शक्ति से भी अपरिचित थे। वे नहीं जानते थे किन्तु मीरा जानती थी कि श्रीकृष्ण की कृपा से विष भी अमृत में बदल जायेगा। मीरा को कृष्ण पर अटूट भरोसा था। अत: इसी कारण व्यंग्यभाव से उसके होठों पर हँसी बिखर रही थी।

प्रश्न 5. मीरा जगत को देखकर रोती क्यों है ?

उत्तर : मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति होता है परन्तु संसारी जन माया-मोह से लिप्त हैं। वे संसार की सारहीन चीजों में सुख खोजते हैं। वे सारहीन झूठी मर्यादा को महत्व देकर भक्तों की साधना में बाधा डालते हैं। अत: सांसारिक सुखों में फंसना मीरा को स्वीकार नहीं है। ये सारे सुख और नाते उनके मन को कष्ट देते हैं।

पद के आस-पास

प्रश्न 1. कल्पना करें,प्रेम-प्राप्ति के लिए मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा?

उत्तर : मीरा कृष्ण से प्रेम करती थीं और उनके प्रेम को पाने के लिए सतत् प्रयत्नशील थीं। मीरा मानती थी कि सत्संग . (साधुओं का साथ) से आध्यात्मिक ज्ञान मिलता है। ईश्वर से निकटता का अनुभव होता है। मीरा कृष्ण को पति रूप में देखती थीं। अत: उनकी प्रसन्नता के लिए मंदिर में उनकी मूर्ति के सामने पद गाना और नृत्य करना उचित मानती थीं। निश्चय ही राजकुल के लोगों को उनका आचरण स्वीकार नहीं था।

इस कारण उनको अनेक कष्ट सहने पड़े होंगे। मीरा के समय में स्त्रियों को स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी। उनका पुरुषों के साथ उठना-बैठना अच्छा नहीं माना जाता था। नृत्य-गायन करना तो पाप ही समझा जाता था। ऐसी सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियाँ होते हुए उन पर अत्याचार होना ही था। उनको घर छोड़ना पड़ा। इसमें संदेह नहीं कि मीरा को अपने कृष्ण-प्रेम की कीमत अत्याचारों को सहन करके चुकानी पड़ी होगी।

प्रश्न 2. लोक-लाज खोने का अभिप्राय क्या है ?

उत्तर : समाज ने स्त्री-पुरुषों के लिए व्यवहार और आचरण के अलग-अलग मानदण्ड स्थापित किये हैं। मीरा के समय में तो स्त्रियों को कुछ करने और कहने-सुनने की स्वतन्त्रता ही नहीं थी। प्रथा और परम्परा के विरुद्ध उनका कोई भी कार्य परिवार और समाज की मर्यादा के विरुद्ध माना जाता था। ऐसा करने वाली महिला को निर्लज्ज समझा जाता था। पुरुषों से मिलना-जुलना, नृत्य-गायन करना पारिवारिक स्त्रियों के लिए वर्जित था। सामाजिक बंधनों को तोड़ना और स्वेच्छाचारी जीवन जीना ही लोक-लाज खोने का अभिप्राय है।

प्रश्न 3. मीरा ने 'सहज मिले अविनासी' क्यों कहा है?

उत्तर : मीरा का मानना है कि ईश्वर अविनाशी है। वह अमर है। उसको प्राप्त करने लिए भक्त-जन अनेक उपाय करते हैं। परन्तु मीरा ने तो उसको अपने स्वाभाविक सच्चे प्रेम से सरलता के साथ प्राप्त कर लिया है। ईश्वर को पाने के लिए सहज-साधना ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है।

प्रश्न 4. 'लोग कहैं, मीरा भई बावरी, न्यात कहै कुलनासी'-मीरा के बारे में लोग (समाज) और न्यात (कुटुंब) की ऐसी धारणाएँ क्यों हैं?

उत्तर : मीरा कृष्ण के प्रेम में इस प्रकार लीन हैं कि उनको उसके अतिरिक्त और कुछ न सुनाई देता है और न दिखाई देता है। वे राजकुल की विधवा नारी की मर्यादा लाँघकर श्रीकृष्ण के प्रेम में मस्त होकर सार्वजनिक रूप से पद गाती हैं और नृत्य करती हैं तथा साधुओं की संगति करती हैं। मीरा का यह अतिरंजित आचरण समाज के लोगों की दृष्टि में उनको पगली बना देता है। वे कहते हैं-मीरा तो श्रीकृष्ण के पीछे पागल हो गई है।

इस धारणा में कहीं-न-कहीं मीरा की कृष्ण-भक्ति और प्रेम को मान्यता प्राप्त होती है। किन्तु परिवार के लोग इसको कुल की मर्यादा का हनन मानते हैं और उनको कुल का विनाश करने वाली कहकर उनकी निन्दा करते हैं, क्योंकि कोई भी परिवार विशेषकर राजपरिवार की कुलवधू जब परिवार की मर्यादा का उल्लंघन करती है तो यह कृत्य परिवार के अन्य सदस्यों के लिए असह्य होता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 'अंसुवन-जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोयी' का तात्पर्य क्या हैं ?

उत्तर : मीरा श्रीकृष्ण से प्रेम करती हैं और उनसे मिलने को आतुर हैं। उनके मिलन-मार्ग में अनेक बाधाएँ हैं। श्रीकृष्ण के विरह में उनके नेत्रों से आँसू बहते रहते हैं। अपने कृष्ण-प्रेम की सुरक्षा और पुष्टि के लिए मीरा को निरंतर आँसू बहाने पड़े।

प्रश्न 2. 'दधि मथि घृत काढ़ि लियो'-में घृत किसका प्रतीक है?

उत्तर : दही मथने से मक्खन ही निकलता है। दधि मथकर मक्खन निकालने से मीरा का तात्पर्य है-संसार को भली-भाँति समझते हुए उसके सार-तत्व को अपना लेना। 'घृत' इन्हीं सार-तत्वों का प्रतीक है।

प्रश्न 3. 'मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची'-का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण के समक्ष पैरों में घुघरू बाँधकर नाच रही हैं। इसमें उन्होंने लोक-मर्यादा की भी चिन्ता

नहीं की है। मीरा कहती हैं कि उनके इस कार्य से यह स्वतः ही सिद्ध हो गया है कि वह अपने श्रीकृष्ण की सच्ची सेविका हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. पग घुघरू बाँधि मीरांनाची'-पद का भावार्थ लिखिए।

उत्तर : मीरा श्रीकृष्ण के प्रति तन-मन से समर्पित हैं। उनका प्रेम पवित्र है और वासना से परे है। श्रीकृष्ण के प्रति अपने अलौकिक-प्रेम में मीरा इस प्रकार मस्त हैं कि वह अपने पैरों में धुंघरू बाँधकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने नृत्य किया करती हैं। उनका नृत्य यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि वह अपने आराध्य श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कुछ भी करने को प्रस्तुत हैं। उनके इस गहन प्रेम को देखकर लोग उनको दीवानी और पगली कहते हैं। उनके परिवार के लोग मानते हैं कि वह कुटुम्ब का नाश करने वाली है। परिवार की मर्यादा उनके कारण नष्ट हो गई है। राणा जी ने मीरा को जान से मारने के लिए जहर से भरा प्याला ही भेज 'दिया है। मीरा उनकी इस मूर्खता पर हँसती हैं और विष को पी जाती हैं। मीरा के प्रभु तो गिरधर श्रीकृष्ण हैं। उनको मीरा ने अपने सहज प्रेम से पा लिया है।

प्रश्न 2. श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की प्रेम-भक्ति को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : मीरा श्रीकृष्ण की परम भक्त थीं। वह श्रीकृष्ण से गहरा प्रेम करती थीं। मीरा ने श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया था। श्रीकृष्ण के अतिरिक्त किसी अन्य के प्रति उनके मन में भक्ति-भाव नहीं था। इस प्रेम का मीरा पर इतना गहरा प्रभाव था कि उन्होंने राजसी घराने की सभी मर्यादाएँ तोड़ दी थीं। वह साधुओं के साथ बैठती थीं और श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने मंदिर में सार्वजनिक नृत्य करती थीं।

वे लोगों की निन्दा-स्तुति से परे हो चुकी थीं। अपने प्रेम में श्रीकृष्ण के प्रति विरह के क्षण भी मीरा ने भोगे थे। उस समय उनके नेत्रों से बहने वाले आँसुओं से सिंचित होकर उनकी प्रेमलता खूब पल्लवित-पुष्पित हुई थी। अब तो इस प्रेम में मीरा को आनन्द आने लगा था। जिस प्रकार दही को बिलोकर मक्खन प्राप्त किया जाता है, उसी प्रकार अपनी लगन द्वारा मीरा ने संसार के सारतत्व (श्रीकृष्ण की भक्ति) को पा लिया था। मीरा को विश्वास था कि श्रीकृष्ण ही भवसागर से उनका उद्धार करेंगे।

प्रश्न 3. मीरा ने श्रीकृष्ण को अपना पति क्यों मान लिया था?

उत्तर : मीरा का श्रीकृष्ण की भक्ति में आकर्षण बचपन से ही था। जब वह चार वर्ष की थीं तभी उनकी माता चल बसी थीं। पिता युद्धों में फंसे रहते थे। मीरा को बचपन में माता-पिता का प्यार नहीं मिला। अठारह वर्ष की अवस्था में मीस का विवाह हुआ, किन्तु एक वर्ष पश्चात् ही उनके पति भोजराज भी चल बसे। माता-पिता और पति के प्रेम के अभाव को मीरा ने श्रीकृष्ण के आध्यात्मिक प्रेम से भरा।

बचपन का श्रीकृष्ण के प्रति आकर्षण अब प्रेम में बदल चुका था। मीरा ने मान लिया था कि मोर मुकुट धारण करने वाले श्रीकृष्ण ही उसके पति हैं। सांसारिक प्रेम की कमी को मीरा ने श्रीकृष्ण के अलौकिक-आध्यात्मिक प्रेम से पूरा करने का प्रयास किया। वह पूरी तरह उनके प्रति समर्पित हो गईं। लोकलाज छोड़कर संसार की निन्दा की परवाह न करके वह कृष्ण की ही हो गईं। श्रीकृष्ण के अतिरिक्त किसी अन्य के साथ मीरा अपना प्रेम बाँट नहीं सकती थीं।

प्रश्न 4. पीवत मीरा हाँसी'-मीरा ने प्याले में भरे विष को हँसकर पी लिया। इसका क्या कारण आप समझते हैं ?

उत्तर : मीरा ने श्रीकृष्ण के प्रेम की गहनता में राजकुल की मर्यादाएँ तार-तार कर दी थीं। वह साधुओं के साथ उठती-बैठती थीं। मंदिर में श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने नाचती और पद गाती थीं। परिवार के लोग उनको कुल-कलंकिनी कहकर उनकी निन्दा करते थे। राणा जी तो इतने कुपित थे कि वह मीरा को जीवित देखना ही नहीं चाहते थे। मीरा को मारने के इरादे से राणा जी ने विष से भरा प्याला मीरा के पास भेजा।

मीरा संसार के राग-द्वेष से ऊपर उठ चुकी थीं। श्रीकृष्ण से मीरा को अलग करने के राणा के मूर्खतापूर्ण प्रयास पर मीरा को हँसी आ गई। मीरा श्रीकृष्ण की अपूर्व अलौकिक शक्ति पर विश्वास करती थीं। वह निर्भीक थीं। राणा भला इस शक्ति को कैसे समझ पाते? मीरा ने हँसकरा ग होठों से लगा लिया, विष पी लिया। लोगों ने देखा-मीरा तब भी पद गा रही थीं और मंदिर में नृत्य कर रही थीं।

प्रश्न 5. 'मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई। पद का भावार्थ लिखिए।

उत्तर : मोर-मुकुटधारी श्रीकृष्ण को मीरा ने अपना पति मान लिया था। वह उनके अतिरिक्त किसी अन्य को प्रेम नहीं करती थीं। अपने इस गम्भीर प्रेम के लिए वह सब कुछ सहन करने को तैयार थीं। राज-परिवार की मर्यादा जाए या रहे परन्तु मीरा का अलौकिक प्रेम अटल था। उनको किसी की निन्दा की परवाह भी नहीं थी। साधु संग मीरा को प्रिय था। लोकलाज इसमें बाधक नहीं थी।

श्रीकृष्ण के प्रेम में मीरा की आँखों से बहने वाले आँसू उनके प्रेम को और मजबूत बनाते थे। इस अलौकिक प्रेम से मीरा आनन्दित हो उठी थीं। मीरा ने श्रीकृष्ण के प्रेम को उसी प्रकार बहुमूल्य मान लिया था, जिस प्रकार दही मथकर निकाला गया मक्खन मूल्यवान होता है। संसार के दिखावटी सुख मीरा के लिए छाछ के समान सारहीन थे। मीरा को श्रीकृष्ण की भक्ति से प्रसन्नता मिलती थी। सांसारिक प्रपंच उनको कष्ट देते थे। मीरः स्वयं को अपने गिरधर की दासी मानते हुए उनसे अपने उद्धार की प्रार्थना करती थीं।

प्रश्न 6. कल की कानि' और 'लोक-लाज से मीरा का क्या आशय है ?

उत्तर : समाज और परिवार में कुछ मर्यादाएँ होती हैं, कुछ निषेध होते हैं और परिवार के लोगों से आशा की जाती है कि वे उनका पालन करेंगे। परिवार की मर्यादा कभी-कभी व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित भी करती है। इसके लिए सामाजिक दण्ड भी निर्धारित होते हैं। यह आवश्यक नहीं कि ये मर्यादाएँ और निषेध उचित ही हों। श्रीकृष्ण से उनका प्रेम शारीरिक आकर्षण नहीं था। उसमें अध्यात्म की पवित्रता और गहराई है। परन्तु उनके परिजनों को वह स्वीकार नहीं था।

राज-घराने की एक स्त्री साधुओं के साथ बातचीत करे, मंदिर में सार्वजनिक रूप से नाचे और पद गाये-यह बात उनको सहन नहीं थी। इसमें वे अपना अपमान और बदनामी देखते थे। मीरा को रोकते थे, उसे जान से मार डालना चाहते थे। मीरा ने कुल की इस मर्यादा (कानि) की चिन्ता नहीं की। श्रीकृष्ण तो ब्रह्मस्वरूप हैं, उनके सामने नाचने में भला लज्जा कैसी ? संसार मीरा के इस काम को लज्जाजनक बता भी कैसे सकता है ? किसी कार्य को सार्वजनिक रूप से करने में शर्म आना ही लोकलाज है। साधारण स्त्री-पुरुषों का शर्म आती भी है, परन्तु मीरा तो साधारण नहीं हैं और न उनका कृष्ण-प्रेम ही ऐसा कार्य है कि वह लज्जित हों।

प्रश्न 7. अब तो बेलि फैलि गयी'-मीरा किस बेल के फैलने की बात कह रही हैं ?

उत्तर : मीरा ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम को एक सांगरूपक के द्वारा प्रस्तुत किया है। मीरा का कृष्ण-प्रेम उनके मन में बचपन में ही फूटा था और समय तथा परिस्थितियों के साथ धीरे-धीरे विकसित होता गया। उनका प्रेम एक लता के समान है। मीरा ने प्रेम की इस लता को अपने आँसुओं के जल से सींचा है। प्रेम की यह लता अब पल्लवित और पुष्पित हो गई है। मीरा को विश्वास है कि अब इस लता पर आनन्द रूपी फल लगेगा। मीरा का आशय यह है कि उसका श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम अब पूर्णतः विकसित हो गया है और इस अलौकिक प्रेम से प्राप्त होने वाला आनन्द अब उसको अवश्य ही प्राप्त होगा।

प्रश्न 8. पठित अंश के आधार पर बताइये कि मीरा संसार में किसका परित्याग करने को कहती हैं ?

उत्तर : मीरा श्रीकृष्ण को प्रेम करती थीं। मोर मुकुट वाले के अतिरिक्त कोई अन्य उनका प्रेम-पात्र नहीं था। मीरा की दृष्टि में श्रीकृष्ण का प्रेम तथा भक्ति ही सार तत्व है, मीरा इन्हीं को ग्रहण करने के लिए कहती हैं। संसार के सुख दिखावटी हैं, मृगतृष्णा के समान उनमें कोई सच्चाई नहीं है। दही को मथने से उसमें से लाभप्रद मक्खन निकलता है तथा लोग मक्खन लेकर शेष बची छाछ को बेकार मानकर छोड़ देते हैं।

मीरा का मानना है कि श्रीकृष्ण की भक्ति और प्रेम ही हितकर है, यही जीवन का सार है। संसारी-जन इस बात को समझते ही नहीं हैं। उनको तो दुनियादारी ही सुख देती है। संसार के सुख बनावटी और अस्थायी हैं। संसार की वस्तुएँ सच्चा सुख नहीं दे सकतीं। मीरा इस प्रकार की, छाछ के समान सारहीन वस्तुओं को त्यागने का उपदेश देती हैं, क्योंकि उनसे सच्चा सुख नहीं मिला करता।

प्रश्न 9. आपकी दृष्टि में मीरा का व्यक्तित्व कैसा था?

उत्तर : मीरा का समय निषेधों और प्रतिबन्धों का था। उस समय लोगों को सामाजिक-मर्यादा की रक्षा के नाम पर अनेक प्रतिबन्ध सहने पड़ते थे। नारियों के लिए तो ये निषेध और अधिक कठोर होते थे। यद्यपि मीरा का कृष्ण-प्रेम पवित्र था परन्तु समाज और परिवार के लोग उनको ऐसा करने देना नहीं चाहते थे। मीरा का व्यक्तित्व दृढ़ता और आत्मविश्वास से युक्त था। मीरा ने लोकलाज तथा कुल की मर्यादा के नाम पर लगाये गये प्रतिबन्धों का दृढ़ता से विरोध किया। मंदिर में नाचने, पद गाने तथा साधु-संग करने से उन्हें रोकना मीरा को स्वीकार नहीं हुआ।

वे निर्भीक होकर अपने विश्वास के अनुसार चलती रहीं। उस समय पर्दा-प्रथा प्रचलित थी परन्तु मीरा ने इसका पालन कभी नहीं किया। वह साधुओं के साथ रहती थीं। महापुरुषों का साथ, सत्संग, व्यक्ति को ज्ञान-सम्पन्न बनाता है और ज्ञान से ही मुक्ति प्राप्त होती है। इस कारण मीरा साधु-संगति करती रहीं। मीरा अपनी मान्यताओं पर दृढ़ रहती थीं। कोई निन्दा या स्तुति उनको डिगा नहीं सकती थी। वह अपने विश्वास के अनुरूप दृढ़ता के साथ आचरण करती थीं। इस त उस रूढ़िग्रस्त समाज में मीरा का अवतरण नारी-मुक्ति की दिशा में पहला कदम था।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. मीरा की कविता की विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर : मीरा की कविता में प्रेम और विरह की हृदयस्पर्शी व्यंजना है। उसमें सादगी है तथा वह बनावट से दूर है। मीरा की कविता पर सूफियों का प्रभाव भी दिखाई देता है। उनकी कविता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

1. माधुर्यभाव की भक्ति-मीरा श्रीकृष्ण के प्रति माधुर्यभाव की भक्ति रखती हैं। मीरा ने माना है कि श्रीकृष्ण ही उसके पति हैं। वह श्रीकृष्ण से मधुर मिलन के आनन्द तथा उनके विरह-पीड़ा को गहराई से अनुभव करती हैं। वह कहती हैं

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।

जाके सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई।

2. प्रेम की तन्मयता-श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम में मीरा तन्मय हैं। वह उनके प्रेम में बावरी हैं। लोक-लाज छोड़कर वह कृष्ण के प्रति समर्पित हो चुकी हैं। श्रीकृष्ण के प्रेम में दीवानापन मीरा की कविता की प्रमुख विशेषता है। मीरा कहती हैं

लोग कहैं मीरा भई बावरी, न्यात कहै कुल-नासी।

3. पीड़ा की गहनता-विरह की गहन वेदना मीरा की कविता में सर्वत्र व्याप्त है। उनके गीतों में जो तड़प, छटपटाहट और टीस है, उसका एक ही उपचार है - श्रीकृष्ण से मिलन।

मीरा की प्रभु पीर मिटै जब वैद सँवरिया होया

प्रश्न 2. मीरा के पद हिन्दी साहित्य में अत्यन्त लोकप्रिय हैं। उनकी लोकप्रियता का कारण उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कृष्ण भक्त कवियों में मीरा का महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी कविता अत्यन्त लोकप्रिय हैं। मीरा के पदों की लोकप्रियता । के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं -

1. श्रीकृष्ण का लोकरंजक रूप-मीरा ने श्रीकृष्ण के जिस लोकरंजक रूप का वर्णन किया है, वह पहले से ही लोगों के अन्तःकरण में बसा हुआ है।

बसौ मेरे नैनन में नंदलाला

मोर मुकुट मकराकृति कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल।

2. माधुर्यभाव की भक्ति-मीरा की भक्ति रति तथा माधुर्यभाव की है। मीरा ने श्रीकृष्ण को अपना पति माना है तथा स्वयं . को उनकी दासी कहा है -

जाके सिर मोर-मुकुट मेरो पति सोई।।

3. विरह-वेदना-मीरा श्रीकृष्ण की चिर-विरहिणी हैं। उनके विरह में गहन पीड़ा, वेदना तथा टीस है। विरह के दर्द से व्याकुल मीरा वन-वन भटकती हैं, परन्तु कोई वैद्य उनका उपचार नहीं कर पाता। यह पीर तो तभी मिटेगी

4. भावों की सम्प्रेषणीयता-मीरा की भाषा में ब्रज और राजस्थानी का मधुर मिश्रण है। शब्दों का चयन भावों के अनुरूप

5. गीतिकाव्य-मीरा ने मुक्तक गेय पदों में काव्य-रचना की है। उनके पदों में ध्वन्यात्मकता तथा संगीतात्मकता है। उनके पद लोक-संगीत तथा शास्त्रीय-संगीत दोनों में लोकप्रिय हैं।

दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोयी।

दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी।

आज भी मीरा के पद भक्ति-संगीत में अपना विशेष स्थान रखते हैं।

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची (सारांश)

कवयित्री - परिचय सगुण धारा के भक्त कवियों में 'मीरा' का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति, सम्पूर्ण समर्पण और विरह-वेदना के कारण उनकी कविता को भक्तिकालीन साहित्य में एक अलग ही स्थान प्राप्त है।

जीवन-परिचय - मीरा का जन्म मारवाड़ रियासत के कुड़की गाँव में सन् 1498 ई. को हुआ था। राजा रत्नसिंह मीरा के पिता थे। पिता युद्धों में रत रहते थे। अत: मीरा का बचपन अपने पितामह के सान्निध्य में बीता था। सन्त रैदास मीरा के गुरु माने जाते हैं। वह बचपन से ही श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। जब मीरा चार साल की थीं, तभी उनकी माता का देहान्त हो गया था। अठारह वर्ष की अवस्था में मीरा का विवाह राणा साँगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हो गया था। दुर्भाग्यवश एक वर्ष पश्चात् ही भोजराज का देहावसान हो गया।

अब मीरा ने अपना नाता लौकिक संसार से तोड़कर अपना ध्यान श्रीकृष्ण की भक्ति में लगा लिया। वह श्रीकृष्ण को अपना पति मानती थीं। साधु-संगति करना और श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने नृत्य करना और भजन गाना उनको अच्छा लगता था। परिवार के विरोध का भी मीरा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह श्रीकृष्ण की भक्ति और अलौकिक प्रेम में इस तरह डूबी थीं कि राजसी सुख और वैभव उनको आकर्षित न कर सके। वे श्रीकृष्ण की लीला-भूमि वृंदावन चली गई। सन् 1543 में वह द्वारका जा पहुँची। सन् 1546 में श्रीकृष्ण-भक्ति के पद गाते-गाते मीरा श्रीकृष्ण में लीन हो गईं।

मीरा को सामाजिक बन्धनों और लोक-लाज की चिन्ता नहीं थी। वह व्यक्ति के विचारों पर सामाजिक नियंत्रण के विरुद्ध थीं। 'छडि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई-कहकर मीरा ने ऐसे लोगों को चुनौती हो तो दी है। मीरा परदा नहीं करती थीं। सबके सामने मंदिर में नाचती-गाती थीं। साधुओं के साथ रहती थीं। उनका मानना था कि सत्संग से ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान से मुक्ति मिलती है। वह जो ठीक समझती थीं उस पर दृढ़ रहती थीं। किसी की निन्दा या स्तुति से विचलित नहीं होती थीं। वह अपने विश्वास के अनुरूप आचरण भी करती थीं। इस प्रकार उस युग में जब रूढ़ि-ग्रस्त समाज का दबदबा था, मीरा नारी-मुक्ति की मजबूत आवाज बनकर प्रतिध्वनित हुई।

साहित्यिक-परिचय - मीरा सगुणोपासक थीं तथा श्रीकृष्ण की भक्त थीं। वह श्रीकृष्ण को अपना पति मानती थीं। वह श्रीकृष्ण की चिरविरहिणी थीं। मीरा के काव्य में श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्तिभाव, समर्पण तथा प्रेम की भावपूर्ण व्यंजना हुई है। विरह की पीड़ा ने उनके काव्य में अपूर्व आकर्षण पैदा कर दिया है। मीरा के काव्य में शान्त और श्रृंगार रसों का सफल वर्णन हुआ है। श्रृंगार के वियोग पक्ष का चित्रण तो अदभुत है। मीरा की कविता में विरह की वेदना के साथ-साथ मिलन का हर्षोल्लास भी व्यंजित हुआ है। श्रीकृष्ण-प्रेम के साथ ही मीरा पर सूफियों का प्रभाव भी दिखाई देता है।

मीरा की भाषा मूलत: राजस्थानी है, परन्तु उस पर ब्रजभाषा का स्पष्ट प्रभाव है। श्रीकृष्ण-लीलाओं के चित्रण तथा वृंदावन वास के कारण राजस्थानी शब्दों के साथ ब्रजभाषा के शब्दों प्रयोग से उनकी भाषा में हृदय को छू लेने की विशेषता आ गई है। मीरा ने मुक्तक गेय पदों की रचना की है। उनके पद लोक-संगीत तथा शास्त्रीय संगीत दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं। मीरा ने कविता में अलंकारों का प्रयोग जानबूझ कर नहीं किया है। अलंकार तो उनकी कविता में अनायास ही आ गये हैं। वास्तव में तो सादगी और सरलता उनकी कविता का मुख्य गुण है। उनके कथन की स्वाभाविकता ही उसका आकर्षण है।

रचनायें - मीरा की प्रमुख रचनाओं में 'मीरा पदावली' तथा 'नरसीजी-रो-माहेरो' का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त गीत गोविन्द की टीका', 'राग गोविन्द', 'राग-सोरठे' इत्यादि भी उनकी रचनाएँ मानी जाती हैं।

'सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण तथा सौन्दर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई

जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई

छोड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?

संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी

अंसुवन जल सींचि-सीचि, प्रेम-बेलि बोयी

अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी

दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी

दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी

भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी

दासि मीरां लाल गिरधर! तारो अब मोही।

शब्दार्थ :

·         गिरधर = पर्वत (गोवर्द्धन) को धारण करने वाला, श्रीकृष्ण।

·         गोपाल = गायों का पालन या रक्षा करने वाला, ग्वाला (श्रीकृष्ण)।

·         मोर-मुकुट = मोर के पंखों से बना हुआ मुकुटा जा के = जिसके।

·         सोई = वही।

·         छांड़ि दई = छोड़ दी।

·         कुल = कुटुम्ब, परिवार।

·         कानि = मर्यादा।

·         कहा = क्या।

·         करिहै = करेगा।

·         ढिंग = निकट, पास।

·         लोक = संसार, समाज।

·         लाज = लज्जा।

·         अंसुवन = आँसुओं का।

·         सींचि-सींचि = पानी से भिगोकर।

·         बेलि = बेल, लता।

·         त = तो।

·         फैलि गयी = बढ़ गई है।

·         आणंद = प्रसन्नता, आनन्द।

·         मथनियाँ = रई, विलोनी, मथानी।

·         विलोयी = मथी है, चलायी है।

·         दधि = दही।

·         मथि = मथकर।

·         घृत = घी, मक्खन।

·         काढ़ि लियो = निकाल लिया है।

·         डारि दयी = छोड़ दी।

·         छोयी = छाछ, सारहीन पदार्थ।

·         राजी = प्रसन्न।

·         जगत = संसार (संसार की सारहीन बातें)।

·         तारो = उद्धार करो।

·         मोही = मुझे।

संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत पद मीरा बाई की रचना है। यह पद हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित मीरा के पदों से लिया गया है। मीरा कह रही हैं कि गिरधर गोपाल श्रीकृष्ण ही उनके सर्वस्व हैं। सासांरिक नातों और सुख-सुविधाओं में उनकी कोई रुचि नहीं है।

व्याख्या - मीरा कहती हैं-गोवर्द्धन पर्वत को धारण करने वाले तथा गायों का पालन-पोषण करने वाले श्रीकृष्ण ही मेरे सर्वस्व हैं। किसी अन्य व्यक्ति से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है। जिसके सिर पर मोर पंखों से बना मुकुट सुशोभित है। वही श्रीकृष्ण मेरे पति हैं। मैंने परिवार की मर्यादा को त्याग दिया है, पारिवारिक मर्यादा के भंग होने से मैं डरती नहीं हूँ। अब कोई मेरा क्या बिगाड़ लेगा? मैंने साधुओं के पास बैठकर, उनसे धर्म-चर्चा करके, भजन-कीर्तन, नृत्य करके, संसार से लजाना छोड़ दिया है। मैंने श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम की बेल बोई है और अपने आँसुओं के पानी से उसको सींचा है। वह प्रेम की लता अब बड़ी होकर फैल गयी है।

अब तो उस पर आनन्द के फल लगना निश्चित है। मैंने दूध जमाने के पात्र को प्रेमपूर्वक रई की सहायता से मथ डाला है। इस प्रकार दही को मथकर उससे मक्खन निकाल लिया है और शेष बची छाछ या मट्ठा उसी में छोड़ दिया है। मीरा कहती हैं कि उन्होंने सांसारिक व्यवहार पर गहराई से विचार किया है और जीवन के सार (कृष्ण भक्ति), को ग्रहण करके सारहीन सुखों को त्याग दिया है। मीरा को श्रीकृष्ण की भक्ति अथवा उनके भक्तों को देखकर आनन्द आता है। संसार की अन्य निरर्थक बातें उनको दुःखदायी लगती हैं। मीरा निवेदन करती हैंहे गिरधर लाल! मीरा तो आपकी दासी है। अब आप सांसारिक बंधनों से मुक्त करके मुझे अपनी शरण में ले लीजिए।

विशेष :

1.    पद में अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण के प्रति मीरा का समर्पण भाव हृदय को छू लेने वाला है।

2.    प्रभु प्रेम में बाधक सांसारिक नातों और सुखों को मीरा ने ठुकरा दिया है।

अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मीरा की श्रीकृष्ण भक्ति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर : मीरा श्रीकृष्ण की परम भक्त थीं। मीरा की भक्ति माधुर्य भाव की थी। उसमें दाम्पत्य, दास्य और सखाभाव का समन्वय था। मीरा ने मोरमुकुट धारण करने वाले श्रीकृष्ण को अपना पति माना है, वहीं उन्होंने 'दासी मीरा लाल गिरधर' कहकर स्वयं को श्रीकृष्ण की दासी भी स्वीकार किया है। वह अपने प्रियतम श्रीकृष्ण की चिर-विरहणी है। विरह की गहरी टीस उनके मन में विद्यमान है।

प्रश्न 2. दूसरोगकोई'कहने से मीरा काक्या तात्पर्य है?

उत्तर : मीरा ने श्रीकृष्ण को अपना पति स्वीकार किया था। वह उनकी भक्त थीं। राजपरिवार की महिला का यह रूप उनके परिवार को स्वीकार नहीं था। मीरा उन लोगों को कृष्ण की भक्ति में बाधक समझती थीं। अतः मीरा ने श्रीकृष्ण के अतिरिक्त अन्य सभी से अपना सम्बन्ध तोड़ लिया था। मीरा ने स्पष्ट स्वीकार किया है कि मोरमुकुट धारण करने वाले श्रीकृष्ण उनके पति हैं। दूसरे किसी अन्य व्यक्ति से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है।

प्रश्न 3. मीरा जगत को देखकर क्यों रोती है?

उत्तर : मीरा श्रीकृष्ण की भक्त थीं। श्रीकृष्ण के भक्तों का संग ही उन्हें प्रिय लगता था। मीरा मानती थी कि जगत अर्थात् संसार के सुख-दुःख और नाते कृष्ण प्रेम में बाधक हैं। अत: उनसे दूर रहना ही उचित है। मीरा को सांसारिक सुख अच्छे नहीं लगते।

प्रश्न 4. मीरा ने कौन-सी बेलि बोई है ? उस पर किस प्रकार का फल लगने वाला है?

उत्तर : मीरा ने श्रीकृष्ण के प्रति पवित्र प्रेम की बेल बोई है। मीरा ने श्रीकृष्ण-प्रेम की इस बेल को अपने आँसुओं के जल से सींचा है और पल्लवित-पुष्पित किया है। यह बेल अब पूरी तरह विकसित हो चुकी है। उस पर फल आने वाले हैं। ये फल आनन्द के होंगे। मीरा को श्रीकृष्ण के साथ पवित्र प्रेम करने का फल आनन्द के रूप में मिलने वाला है।

काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरोन कोई-पद के काव्य-सौन्दर्य पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।

उत्तर : 'मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई'-पद में श्रीकृष्ण के प्रति मीरा का अनन्य प्रेम व्यंजित हुआ है। वह अपने प्रियतम के प्रति पूर्णत: समर्पित हैं। इसमें वियोग शृंगार रस है। कोमलकान्त पदावली युक्त सरस ब्रज भाषा है, जिसमें राजस्थानी पुट उसे और आकर्षक बना रहा है। पद गीतिकाव्य शैली का है तथा उसमें काव्य-सौन्दर्य का ध्यान रखा गया है। अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 2. अंसुवन-जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई-में आलंकारिक सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : 'अंसुवन-जल' तथा 'प्रेम-बेलि' में रूपक अलंकार है। यहाँ आँसुओं को जल तथा प्रेम को बेल स्वीकार किया गया है। उपमेय और उपमान (आँसू और जल, प्रेम और बेल) में एकरूपता है। दोनों का अन्तर समाप्त हो गया है। बेलि बोई' में 'ब' वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है। 'सीचि-सींचि' में सींचने की क्रिया पर बल देने के लिए सींचि शब्द को दोहराने से पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. पग धुंघरू बांधि मीरां नाची,

मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची

लोग कहै, मीरां भइ बावरी; न्यात कहै कुल-नासी

विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरां हाँसी

मीरां के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी।

शब्दार्थ :

·         पग = पैर, पद।

·         नारायण = ईश्वर, श्रीकृष्ण।

·         सू = सामने।

·         आपहि = अपने आप ही, स्वयं ही।

·         साची = सच्ची।

·         बावरी = पगली, दीवानी।

·         न्यात = कुटुम्बी, परिवार के लोग।

·         कुल-नासी = परिवार की मान-मर्यादा को नष्ट करने वाली

·         विस = विष, जहर।

·         राणा मेवाड़ के शासका पीवत = पीते हुए।

·         हाँसी = हँस पड़ी।

·         नागर = चतुर।

·         सहज = सरल, स्वाभाविका अविनासी

·         अमर, कभी नष्ट न होने वाला।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह' में संकलित मीराबाई के पदों में से लिया गया है। पद में मीरा की भक्ति विभोरता के दर्शन हो रहे हैं।

व्याख्या - मीरा कहती हैं - मैंने अपने पैरों में धुंघरू बाँध लिये हैं। अब मैं श्रीकृष्ण के सामने नाचकर आनन्दित हो रही हूँ। इस प्रकार मैंने अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति अपने सच्चे समर्पण को सिद्ध कर दिया है। श्रीकृष्ण के सामने मेरे नृत्य-गायन को देखकर लोग मुझे पागल बताते हैं। मेरे परिवार के लोग भी इसे अच्छा नहीं समझते तथा कहते हैं कि इस मीरा ने तो परिवार की मान-मर्यादा को मिट्टी में मिला दिया है।

मेवाड़-नरेश राणा जी तो इससे इतने कुपित हैं कि उन्होंने मुझे मारने के लिए प्याले में विष भरकर भिजवा दिया था। परन्तु मैं उससे भयभीत नहीं हुई और हँसकर उस विष को पी गई। भगवान् श्रीकृष्ण की दया से वह विष भी मेरा कुछ न बिगाड़ सका। मीरा के स्वामी तो चतुर गिरधारी श्रीकृष्ण हैं। कोई उसका क्या बिगाड़ सकता है ? वह अजर-अमर-ईश्वर मीरा को बड़ी सहजता से प्राप्त हो गए हैं।

विशेष-

1.    मीरा का अपने प्रियतम के प्रति संपूर्ण समर्पण भाव उनके शब्द-शब्द में ध्वनित हो रहा है।

2.    मीरा को सांसारिक नातों की कोई चिंता नहीं।

3.    विष का प्याला भी मीरा हँसते-हँसते पी जाती है और वह विष भी उनके लिए अमृत बन जाता है।

अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. लोग मीरा को बावरी क्यों कहते थे?

उत्तर : मीरा श्रीकृष्ण की परम भक्त थीं। वह श्रीकृष्ण को अपना पति मानती थीं। श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति में मीरा इस कदर तन्मय हो चुकी थी कि उनको अपने परिवार तथा संसार की मर्यादाओं तथा निषेधों की भी कोई परवाह नहीं थी। वह साधुओं के साथ रहती थीं तथा श्रीकृष्ण की मूर्ति के समक्ष सार्वजनिक रूप से नाचती-गाती थीं। मीरा के इस अमर्यादित तथा राजकुल विरोधी आचरण को देखकर लोग मीरा को बावरी कहते थे।

प्रश्न 2. 'आपहि हो गई साची' से मीरा का क्या तात्पर्य है?

उत्तर : मीरा श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित थीं, उनको अपना पति मानती थीं तथा उनकी भक्ति में आकंठ डूबी हुई थीं। श्रीकृष्ण के प्रति अपनी इस.अनन्य भक्ति को मीरा ने अपने आचरण से स्वयं ही सत्य सिद्ध कर दिया था। अपनी कृष्ण-भक्ति को सच्चा सिद्ध करने के लिए उनको किसी बाह्य प्रमाण की कोई आवश्यकता नहीं थी। उन्होंने सार्वजनिक रूप से श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने नाच-गाकर तथा राणा जी द्वारा भेजे गये विष के प्याले को बेहिचक पीकर अपनी भक्ति की सच्चाई प्रमाणित कर दी थी।

प्रश्न 3. मीरा विष का प्याला पीते समय क्यों हँसी थी?

उत्तर : राणा जी नहीं चाहते थे कि मीरा राजकुल की मर्यादा को तोड़े। मीरा को मारने के इरादे से उन्होंने विष का प्याला मीरा के पास भेजा। उन्होंने सोचा था कि विष के प्रभाव से मीरा मर जायेगी और राज परिवार की मर्यादा बची रहेगी। विष के प्याले को पीते हुए मीरा को राणा की झूठी कुल मर्यादा की चिन्ता पर हँसी आ रही थी। उन्हें अपने परमप्रिय श्रीकृष्ण पर अटल विश्वास था। विष उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था।

प्रश्न 4. मीरा की श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति पर लोगों की जो प्रतिक्रिया थी, उसको अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : मीरा श्रीकृष्ण की भक्त थीं। वह श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने नाचती-गाती थीं तथा साधु-संग करती थीं। मीरा के इस राजकुल विरोधी आचरण को देखकर लोग उनको कुल का नाश करने वाली अथवा कुल-कलंकिनी कहकर उनकी निन्दा करते थे। राणा तो मीरा के इस आचरण से इतने क्रुद्ध थे कि उसको मार डालना चाहते थे। मीरा को मारने के लिए ही उन्होंने विष से भरा हुआ प्याला मीरा के पास भेजा था।

काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. उपर्युक्त पद पर रसात्मकता की दृष्टि से विचार कीजिए।

उत्तर : पग घुघरू बाँधि मीरा नाची' - में शान्त तथा भक्ति रस है। इसका स्थायी भाव निर्वेद है। आश्रय मीरा है। आलम्बन श्रीकृष्ण है। लोगों का मीरा को बावरी कहना, सास द्वारा कुल-नाशनी कहना तथा राणा द्वारा विष का प्याला भेजना आदि उद्दीपन हैं। इसमें श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की निश्छल-भक्ति का वर्णन है। मीरा की भाव विभोरता, तन्मयता और अपने प्रिय को संपूर्ण समर्पण इस पद में साकार हो रहे हैं।

प्रश्न 2. 'पग घुघरू बाँधि मीरानाची'-की भाषा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।'

उत्तर : 'पग धुंघरू बाँधि मीरा नाची'-पद की रचना ब्रजभाषा में हुई है। इसमें 'सूं' 'न्यात' आदि राजस्थानी भाषा के शब्दों के आने से भाषा के सौन्दर्य में वृद्धि हुई है। पद की भाषा प्रवाहपूर्ण है तथा उसमें गीतिकाव्य के अनुरूप ध्वन्यात्मकता है। भाषा मीरा के मन में श्रीकृष्ण से मिलन की प्रबल भावना को प्रकट करने में सक्षम है। 

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