Class-XI Hindi Aroh 18. अक्कामहादेवी : हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

18. अक्कामहादेवी : हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
18. अक्कामहादेवी : हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर

कविता के साथ

प्रश्न 1. लक्ष्य-प्राप्ति' में इन्द्रियाँ बाधक होती हैं। इसके संदर्भ में तर्क दीजिए।

उत्तर : आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य का लक्ष्य है-ईश्वर की प्राप्ति। इन्द्रियाँ इस लक्ष्य को पाने में मनुष्य के लिए बाधक होती हैं। इन्द्रियाँ उसको विभिन्न सांसारिक सुखों की अनुभूति कराती हैं। ये इन्द्रियाँ सुस्वादु तथा सुन्दर पदार्थों के प्रति मनुष्य के मन को ले जाती हैं। भूख और प्यास उसको अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं। क्रोध, लोभ, मद, मोह आदि विकार मनुष्य को अपने जाल में फंसा लेते हैं। इनमें उलझा उसका मन ईश्वर की अनुभूति में केन्द्रित नहीं हो पाता। 'ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या' कहा गया है। परन्तु जगत् का यह मिथ्या स्वरूप परम मनोहर और आकर्षक है। जब तक मनुष्य को यह संसार सुन्दर, सत्य और सुखद लगता है, तब तक ईश्वर की ओर उसका ध्यान जाता नहीं है। दसों इन्द्रियाँ मन को वश में कर भटकाती रहती हैं।

प्रश्न 2. 'ओ चराचर ! मत चूक अवसर'-इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवयित्री अक्कमहादेवी शिव-भक्त थीं। वह संसार के समस्त स्थावर और जंगम जीवों को सावधान करती हैं कि उनको ईश्वर से मिलने का जो अवसर प्राप्त हुआ है, वह उनको अपने हाथ से जाने नहीं देना है। यह जीवन शिव की आराधना करने का अवसर उनको प्रदान कर रहा है, ऐसा न हो कि संसार के माया-मोह में पड़कर शिव की आराधना का यह अवसर हाथ से निकल जाय।

प्रश्न 3. ईश्वर के लिए किस दृष्टान्त का प्रयोग किया गया है? ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइये।

उत्तर : कवयित्री ने ईश्वर के लिए जूही के फूल का दृष्टान्त प्रयोग किया है। जूही का फूल सुन्दर, कोमल और सुगन्धित होता है। ईश्वर में भी भक्तों और ज्ञानियों ने ऐसी ही विशेषताओं की उपस्थिति मानी है। ईश्वर को अनंत सौन्दर्य का भंडार, कोमल हृदय और सारी सृष्टि में व्याप्त माना गया है।

प्रश्न 4. अपना घर से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?

उत्तर : अपना घर से तात्पर्य इस भौतिक संसार से है। जब तक मनुष्य को इस भौतिक संसार की वस्तुएँ सुन्दर और सुख दायक लगती हैं तब तक वह इन्हीं में उलझा रहता है। इस उलझन में पड़ा मनुष्य ईश्वर के कल्याणकारी स्वरूप का साक्षात्कार नहीं कर पाता। सांसारिक सुखों से विरक्त होकर ही वह ईश्वर को पा सकता है।

प्रश्न 5. दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है ? और क्यों?

उत्तर : दूसरे वचन में कवयित्री ने ईश्वर से कामना की है कि वह उसे संसार की चीजों से वंचित कर दे। वह अपना घर भूल जाय तथा अपनी आवश्यकता पूरी करने को उसे भीख भी माँगनी पड़े.तो उसे भीख न मिले। यदि कोई भीख देने को हाथ बढ़ाये तो वह वस्तु उसकी झोली में न आकर नीचे गिर जाय। जब उसे उठाने के लिए वह नीचे झुके तो कुत्ता उसे झपटकर छीन ले जाए। कवयित्री ने ईश्वर से यही कामना की है। इस कामना का उद्देश्य अपने मन को पवित्र और अहंकार-मुक्त करना है, क्योंकि स्वयं को मिटाकर ही ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है।

कविता के आस-पास

प्रश्न 1. क्या अक्कमहादेवी को कन्नड़ की मीरा कहा जा सकता है ? चर्चा करें।

उत्तर : प्रत्येक साहित्यकार का साहित्य में अपना एक अलग ही स्थान तथा महत्त्व होता है। वैचारिक, भावगत अथवा शैलीगत आधार पर, उनमें साम्य पाया जाता है। इस आधार पर उनकी समानता की परख भी की जाती है। परन्तु दोनों में पूर्ण समानता कभी नहीं होती। मीरा श्रीकृष्ण की परमभक्त थीं। वह श्रीकृष्ण को ही अपना पति मानती थी और उनकी भक्ति में मीरा ने राजसी सुख और ऐश्वर्य को भी त्याग दिया।

श्रीकृष्ण ही उनकी भक्ति के एकमात्र आधार थे-'मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। अक्कमहादेवी शिव की भक्त थीं। सांसारिक सुखों को त्यागकर वह शिव भक्ति में लीन रहना चाहती थीं। वह अपने जीवन को पूरी तरह शिव की आराधना और समर्पण में लगा देना चाहती थीं। वह कहती हैं-'ओ चराचर, चूक मत अवसर। आई हूँ संदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का।' इस प्रकार मीरा और अक्कमहादेवी की परिस्थितियों में और भाव-भूमि में पूर्णत: समानता पाई जाती है। इस आधार पर अक्कामहादेवी को कन्नड़ की मीरा कहना सर्वथा उचित ही है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. चन्नमल्लिकार्जुन की भक्ति के लिए किन चीजों को छोड़ना आवश्यक है?

उत्तर : चन्नमल्लिकार्जुन की भक्ति के लिए लोभ, मोह, क्रोध, ईर्ष्या, मद का त्याग करना आवश्यक है। भूख-प्यास पर भी नियन्त्रण जरूरी है।

प्रश्न 2. कवयित्री अपना समस्त सांसारिक वैभव छीन लेने की प्रार्थना ईश्वर से कर रही है, क्यों?

उत्तर : कवयित्री जानती है कि सांसारिक पदार्थ व्यक्ति के मन में घमण्ड, लालच, ईर्ष्या, लोभ, मोह इत्यादि दुर्गुण उत्पन्न करते हैं। वह चाहती हैं कि इनसे मुक्त होकर वह ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित हो जायेंगी।

प्रश्न 3. शैव आन्दोलन में अक्कमहादेवी का क्या योगदान है ?

उत्तर : अक्कमहादेवी के कारण बड़ी संख्या में शैव आन्दोलन से 'निचले तबकों की स्त्रियाँ जुड़ी और अपने संघर्ष और यातना को कविता के रूप में व्यक्त किया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 'हे भूख ! मत मचल' (प्रथम वचन) का केन्द्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवयित्री अक्कमहादेवी ने इस वचन में भगवान शिव की भक्ति करने का संदेश दिया है। भक्ति-मार्ग में अनेक बाधाएँ आती हैं। महादेवी ने इस बाधक-तत्त्वों का उल्लेख कर उनसे बचने को कहा है। इसके लिए कोई उपदेश न देते हुए कवयित्री ने उन मनोविकारों की मनुहार की है जो ईश्वराधना में बाधा पहुंचाते हैं। भूख-प्यास ईश्वर में ध्यान केन्द्रित नहीं होने देते। क्रोध, मोह, लोभ, मद और ईर्ष्या जब तक मन में रहते हैं, मनुष्य ईश्वर का ध्यान नहीं कर पाता। कवयित्री ने इन विकारों से निवेदन किया है कि वे अपना प्रभाव उस पर न डालें। कवयित्री ने कहा है कि मनोविकारों के प्रभाव से मुक्त होकर हम सच्चे मन से ईश्वर के प्रति समर्पित हो सकते हैं।

प्रश्न 2. द्वितीय वचन (हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर) का भाव लिखिए।

उत्तर : हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर में कवयित्री ने ईश्वर को उदार तथा दयालु बताया है। कवयित्री ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित होना चाहती हैं, किन्तु संसार के माया-मोह, लोभ और क्रोध उसके समर्पण में बाधक हो रहे हैं। यह मेरा घर है, यह मेरा भाई है, आदि मोह भरे विचार उसके मन को ईश्वर की भक्ति लगन से नहीं करने देते। मैं और मेरा अहंकार कवयित्री को ईश्वर के निकट पहुँचने नहीं दे रहा।

ईश्वर की निकटता, ईश्वर की प्राप्ति तभी संभव है जब साधक में अकिंचनता का भाव हो। सांसारिक पदार्थों का स्वामित्व उसे अहंकारी बनाता है। कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना कर रही है कि वह अपना घर पूरी तरह भूल जाएँ, उसे माँगने पर भीख न मिले तथा कोई कुछ दे तो वह भी उसके पास न पहुँचे। इस अकिंचनता की प्राप्ति के साथ ही चन्नमल्लिकार्जुन के प्रति उसका समर्पण पूर्ण हो जायेगा।

प्रश्न 3. पुरुष वर्चस्व के विरुद्ध अक्कमहादेवी ने अपने आक्रोश को किस प्रकार प्रकट किया?

उत्तर : अक्कमहादेवी अपूर्व सुन्दरी थीं। एक स्थानीय राजा ने उनके अद्भुत सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उनसे विवाह करना चाहा। अक्कमहादेवी ने विवाह के लिए राजा के सामने तीन शर्ते रखीं। शर्तों का पालन न होने पर अक्कमहादेवी ने उसी समय राजभवन छोड़ दिया। उन्होंने राजमहल छोड़ने के साथ ही वहाँ से निकलते ही अपने शरीर के समस्त वस्त्र उतारकर फेंक दिए।

वस्त्र उतारना वस्त्रों का परित्याग मात्र नहीं था, उसके पीछे अक्कमहादेवी का पुरुष वर्चस्व के विरुद्ध आक्रोश छिपा था। दिगम्बर होना पुरुषों के लिए तो मान्य है परन्तु स्त्रियों के लिए वह वर्जित है। अक्कमहादेवी ने इस वर्जना के विरुद्ध विद्रोह किया था और सिद्ध किया था कि जो कार्य पुरुष कर सकता है वह स्त्री भी कर सकती है। इसमें कुछ भी अनुचित और निंदनीय नहीं है। इस प्रकार अक्कमहादेवी ने महावीर जैसे महापुरुषों के समक्ष खड़े होने का प्रयास किया था।

प्रश्न 4. मीरा के काव्य में जो सरसता है, क्या वैसी ही सरसता अक्कमहादेवी की कविता में भी है?

उत्तर : मीरा का काव्य श्रीकृष्ण के प्रति उनके समर्पण का काव्य है। मीरा ने श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व माना है। 'जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई' कहकर मीरा ने उन्हें अपना पति बताया है। मीरा अपने पति की चिर-वियोगिनी है। उसमें तड़प और पीड़ा है। पीड़ा और दर्द की यह गहराई ही मीरा के काव्य की सरसता का रहस्य है। उसमें वियोग शृंगार रस का सजीव चित्रण हुआ है। अक्कमहादेवी भी अपने आराध्य चन्नमल्लिकार्जुन के प्रति समर्पित थीं। परन्तु उनकी कविता में मीरा जैसा विरह का दर्द और पीड़ा नहीं है। उनकी कविता ईश्वर के प्रति समर्पण की प्रेरणा भले ही देता हो परन्तु उसमें मीरा के काव्य जैसी सरसता नहीं है।

हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर (सारांश)

कवयित्री-परिचय - इतिहास में वीर शैव आन्दोलन से सम्बन्धित साहित्यकारों की सूची बहुत लम्बी है। अक्कमहादेवी इस आन्दोलन से जुड़ी हुई एक महत्त्वपूर्ण कवयित्री हैं।

जीवन-परिचय - अक्कमहादेवी का जन्म 12वीं सदी में कर्नाटक के शिवमोगा जिले के उडुतरी गाँव में हुआ था। अक्कमहादेवी चन्नमल्लिकार्जुन देव की उपासिका थीं। चन्नमल्लिकार्जुन देव शिव का ही नाम है। अक्कमहादेवी के समकालीन कन्नड़ सन्त कवियों में बसवन्ना तथा अल्लामा प्रभु का नाम उल्लेखनीय है। कन्नड़ भाषा में अक्क शब्द का अर्थ बहिन होता है। महादेवी अत्यन्त सुन्दर थीं। वहाँ के एक राजा ने इनकी सुन्दरता पर मुग्ध होकर इनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। अक्कमहादेवी ने शादी के लिए तीन शर्ते रखीं।

राजा ने उन शर्तों का उल्लंघन किया तो अक्कमहादेवी ने राज-परिवार छोड़ दिया। अक्कमहादेवी ने राजमहल से निकलते समय पुरुष के वर्चस्व के विरुद्ध अपने आक्रोश के फलस्वरूप अपने वस्त्रों को उतार कर फेंक दिया। इस प्रकार महादेवी ने बताया कि वह प्रतिबन्धों को नहीं मानती जो केवल स्त्रियों के ऊपर लगाये जाते हैं। स्त्री केवल एक शरीर नहीं है। इस गम्भीर बोध के साथ अक्कमहादेवी ने महावीर आदि महापुरुषों के समकक्ष स्वयं को खड़ा करने का प्रयास किया था।

साहित्यिक-परिचय - अक्कमहादेवी ने वीर शैव आन्दोलन से जुड़कर चन्नमल्लिकार्जुन देव की भक्ति सम्बन्धी रचनाएँ की। अक्कमहादेवी के कारण इस आन्दोलन से अनेक स्त्रियाँ, जो अधिकांश समाज के निचले तबकों से थीं, जुड़ी और अपने संघर्ष को कविता के रूप में व्यक्त किया। अक्कमहादेवी की कविता समस्त नारीवादी आन्दोलन के लिए प्रेरणा स्रोत थी। उनकी कविता सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में एक क्रान्तिकारी चेतना का प्रमाण है।

रचनायें - 'वचन सौरभ' (हिन्दी) तथा 'स्पीकिंग ऑफ शिवा' (अंग्रेजी) उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।

सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण तथा सौन्दर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. हे भूख ! मत मचल

लोभ, मत ललचा

प्यास, तड़प मत

हे मद ! मत कर मदहोश

हे नींद ! मत सता

ईर्ष्या, जला मत

क्रोध ! मचा मत उथल-पुथल

ओ चराचर ! मत चूक अवसर

हे मोह ! पाश अपने ढील

आई हूँ संदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का।

शब्दार्थ :

·         मचल = हठ कर।

·         तड़प = व्याकुल होना।

·         सता = कष्ट दे।

·         उथल-पुथल = हलचल।

·         पाश = बन्धन, जाला

·         ललचा = कुछ पाने को उकसाना।

·         मद = नशा।

·         मदहोश = नशे में डूबना, सोच-विचार के अयोग्य।

·         ईा = जलन, द्वेष।

·         चराचर = स्थावर और जंगम प्राणी।

·         चूक = छोड़ना।

·         चन्नमल्लिकार्जुन = शिव।

संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित अक्कमहादेवी की रचना 'भूख मत मचल' से लिया गया है। कवयित्री ने इस अंश में यह कामना व्यक्त की है कि भूख, प्यास, लोभ, मोह, क्रोध आदि विकार उनकी शिव-भक्ति में बाधक न बनें।

व्याख्या - कवयित्री अक्कमहादेवी वीर शैव संप्रदाय की. अनुयायिनी थीं। वह इस संप्रदाय के आराध्य चन्नमल्लिकार्जुन . (भगवान शिव) की उपासिका थी। उनकी काव्य रचना का उद्देश्य भी शिव भक्ति है। इस काव्यांश में वह चराचर विश्व को भगवान शिव की भक्ति का संदेश देना चाहती हैं। भूख, प्यास, नींद आदि शरीर की आवश्यकताएँ हैं, साधारण व्यक्ति इनकी पूर्ति के बिना स्वस्थ और सुखी नहीं रह सकता।

लेकिन अक्कमहादेवी शरीर के लिए अनिवार्य इन आवश्यकताओं को भी शिव-भक्ति में बाधक मानती हैं। अत: वह चाहती हैं कि उन्हें भूख, प्यास और नींद न सताएँ। वह निरंतर अपने आराध्य देव की आराधना में मग्न रहना चाहती हैं। वह नींद, भूख और प्यास से अनुरोध करती हैं कि वे उनकी भक्ति में बाधा न डालें।

इसी प्रकार क्रोध, मोह, लोभ, ईर्ष्या मन के विकार हैं। इनसे मुक्त हुए बिना कोई भी व्यक्ति ईश्वर भक्ति में लीन नहीं हो सकता। क्रोध मन में उथल-पुथल मचाता है। मोह उसे अपने जाल में फंसाकर अनुचित आचरण कराता है। लोभ अनैतिक आचरण के प्रति ललचाता है। अहंकार बुद्धि-विवेक को निष्क्रिय कर देता है और ईर्ष्या मन को जलाती रहती है।

इसी कारण अक्कमहादेवी जगत के चराचर जीवों को संबोधित करते हुए कहती हैं कि वह उन्हें भगवान चन्नमल्लिकार्जुन . (शिव) की भक्ति का संदेश देने संसार में आई हैं। ऐसे सुअवसर पर उन्हें चूकना नहीं चाहिए और सारे विकारों का परित्याग करके भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए।

अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवयित्री ने ईश्वर की आराधना में किसको बाधक माना है ?

उत्तर : मनुष्य के मन में अनेक भाव उठते रहते हैं। इनको मनोविकार कहा जाता है। भूख, प्यास, ईर्ष्या, क्रोध, लोभ, मद इत्यादि कुछ मनोविकार हैं। कवयित्री ने माना है कि ये मनोविकार ईश्वर की आराधना में बाधा पहुँचाते हैं। ईश्वर की उपासना के लिए इन पर विजय पाना आवश्यक है।

प्रश्न 2. कवयित्री ने मनोविकारों को सम्बोधित करके उनसे क्या कहा है?

उत्तर : कवयित्री ने मनोविकारों को सम्बोधित किया है। उसने कहा है कि वे उसको अपने प्रभाव से मुक्त रखें। भूख-प्यास उसे व्याकुल न करे, नींद सताये नहीं, क्रोध उत्तेजित होकर उथल-पुथल न मचाए, मोह पाश में बाँधे नहीं, लोभ ललचाये नहीं, ईर्ष्या जलाये नहीं। समस्त चराचर प्राणियों को इनसे मुक्ति मिले जिससे वे ईश्वर की आराधना कर सकें।

प्रश्न 3. कवयित्रीने चराचर प्राणियों से क्या कहा है ?

उत्तर : कवयित्री ने समस्त चराचर प्राणियों से कहा है कि ईश्वर की आराधना का उचित अवसर उनको मिला है। समस्त मनोविकारों से मुक्त होकर उनको इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

प्रश्न 4. कवयित्री विश्व को किसका संदेश देना चाहती है ?

उत्तर : कवयित्री चन्नमल्लिकार्जुन की भक्त है। चन्नमल्लिकार्जुन भगवान शिव को कहते हैं। कवयित्री चन्नमल्लिकार्जुन का संदेश समस्त विश्व को देना चाहती है। इस संदेश को ग्रहण करके उस पर आचरण करने से पूर्व समस्त मनोविकारों से चित्त को मुक्त करना आवश्यक है।

काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. प्रस्तुत पद्यांश की भाषा-शैलीगत विशेषता बताइए।

उत्तर : प्रस्तुत पद्यांश की रचना मूल रूप से अंग्रेज़ी भाषा में हुई है। यह इसका हिन्दी अनुवाद है। अनूदित पद्यांश की भाषा सरल खड़ी बोली है। इसमें संबोधन शैली को अपनाया गया है। इसमें प्रयुक्त शब्द सुबोध तथा भावानुकूल हैं।

प्रश्न 2. अलंकार प्रयोग की दृष्टि से इस पद्यांश पर विचार कीजिए।

उत्तर : यह पद्यांश अंग्रेजी भाषा से हिन्दी खड़ी बोली में अनूदित रचना है। इसमें मनोभावों को सम्बोधित किया गया है। अंग्रेजी साहित्य की परंपरा के अनुसार अमूर्त भावों को संबोधन करने से जो अलंकार बनता है, उसे अपोस्ट्राफी कहते हैं। हिन्दी में इस अलंकार को संबोधन अलंकार कहा जाता है। इसके अतिरिक्त हिन्दी के आधार पर इस अंश में मानवीकरण अलंकार भी है। क्योंकि अमूर्त भावों को मनुष्यों की भाँति आचरण करता दिखाया गया है। उनसे कुछ न करने का आग्रह किया गया है।

2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को

मंगवाओ मुझसे भीख

तो वह गिर जाए नीचे

और कुछ ऐसा करो

और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने

कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह

तो कोई कुत्ता आ जाए

झोली फैलाऊँ और न मिले भीख

और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

शब्दार्थ :

·         जूही = सुगन्धित फूलों वाला पौधा।

·         झोली = माँगने के लिए वस्त्र फैलाना।

संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह' में संकलित अक्कमहादेवी की रचना 'हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर' से लिया गया है। इस अंश में कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना कर रही है कि वह उसके मन में विद्यमान हर प्रकार के अहंकार को नष्ट कर दे।

व्याख्या - सन्त कवयित्री अक्कमहादेवी ईश्वर से निवेदन करती हैं कि हे जूही के सुगंधित पुष्प के समान यशस्वी ईश्वर! तुम मेरा सब कुछ छीनकर मुझको भीख माँगने को बाध्य करो। इस प्रकार मेरे मन के अहंकार को नष्ट करके उसे पवित्र कर दो। तुम ऐसी कृपा करो कि मैं अपना घर ही भूल जाऊँ। यदि मैं अपनी जरूरतों के लिए किसी से भीख माँगें तो कोई मुझे भीख भी न दे। यदि कोई हाथ बढ़ाकर मुझे कुछ देना भी चाहे तो वह वस्तु मेरे थैले में आने के बजाय जमीन पर गिर पड़े। अगर मैं उसे उठाने के इरादे से नीचे झुकूँ तो कोई कुत्ता आकर उसे मुझसे झपटकर छीन ले जाये। मुझे कुछ भी प्राप्त न हो। ऐसी दशा में मैं विवश हो जाऊँ। मैं अपनी सभी इच्छाएँ त्यागकर तुम्हारे प्रति पूरी तरह समर्पित हो जाऊँ।

अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवयित्री ने ईश्वर से भीख मँगवाने की प्रार्थना क्यों की है ?

उत्तर : कवयित्री ईश्वर की भक्ति सच्चे मन से करना चाहती है। ईश्वर की सच्ची भक्ति के लिए भक्त का अहंकाररहित होना आवश्यक है। उसे किसी सांसारिक वस्तु का स्वामी नहीं होना चाहिए। उसके पास अपना कुछ भी नहीं होना चाहिए। अपने मन के घमण्ड को मिटाने के लिए कवयित्री चाहती है कि ईश्वर उससे भीख मँगवाये।

प्रश्न 2. कवयित्री क्यों चाहती ही कि उसे भीख में कुछ भी न मिले ?

उत्तर : कवयित्री ने चाहा है कि ईश्वर उससे भीख मँगवाये। वह भीख माँगने जाये तो भीख में उसे कुछ भी प्राप्त न हो। भीख में कुछ भी प्राप्त न होने से उसके मन में अकिंचनता की वृद्धि होगी तथा उसको ईश्वर की आराधना में सुगमता होगी।

प्रश्न 3. तो कोई कुत्ता आ जाये और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।' इस पंक्ति में कवयित्री ने क्या संदेश दिया है ?

उत्तर : कवयित्री भीख माँगने जाये तो उसे कुछ न मिले। कोई कुछ दे भी तो वह उसकी झोली में न गिरकर नीचे गिर जाये। उसको उठाने को हाथ बढ़ाने पर कोई कुत्ता उसे झपटकर उठा ले। इस पंक्ति में कवयित्री ने संदेश दिया है कि सांसारिक वस्तुओं से पूरी तरह मोह भंग होने पर ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है और मोह भंग होने के लिए आवश्यक है कि सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के सभी रास्ते बन्द हो जायें।

प्रश्न 4. कवयित्री ने यहाँ किसको संबोधित किया है और उसको किसके समान बताया है ?

उत्तर : कवयित्री ने यहाँ अपने आराध्य ईश्वर को संबोधित किया है। कवयित्री ने ईश्वर को जूही के फूल के समान बताया है।

काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर में अलंकार बताइए।

उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति में ईश्वर को संबोधित किया गया है। किसी अमूर्त भाव आदि को संबोधन करने पर संबोधन अलंकार होता है। पद्यांश की इस पंक्ति में जूही के फूल जैसे ईश्वर कहा गया है। इसमें उपमेय और उपमान की समानता जैसे शब्द से व्यक्त होने के कारण उपमा अलंकार है।

प्रश्न 2. उपर्युक्त पद्यांश में किस छन्दका प्रयोग हुआ है?

उत्तर : उपर्युक्त पद्यांश अंग्रेजी भाषा से हिन्दी में अनूदित रचना है। इसमें तुकविहीन मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है। पद्यांश की पंक्तियाँ छोटी-बड़ी हैं, परन्तु उनमें काव्य की सरसता तथा प्रवाह है।

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