Q. उपभोक्ता बचत सिद्धांत की आलोचनात्मक
व्याख्या करे। क्या इसमें सुधार करने में
हिक्स सफल हुए
→उपभोक्ता की बचत की धारणा की विवेचना कीजिए इसको मापने में क्या कठिनाइयाँ
है?
→मार्शल की उपभोक्ता की बचत धारणा की व्याख्या करे। क्या यह कहना सत्य
है कि हिक्स की उपभोक्ता की बचत धारणा मार्शल की धारणा का सुधार है?
उत्तर
:- उपभोक्ता की बचत की धारणा का वैज्ञानिक प्रतिपादन प्रो० मार्शल ने सन् 1890
ई० में अपनी पुस्तकं Principle of Economics में किया
लेकिन इस धारणा को सर्वप्रथम फ्रांस के इंजीनियर अर्थशास्त्री ड्यूपिट ने 1844 ई० में Relative Utility ( सापेक्षिक उपयोगिता) के नाम से
किया। प्रो० बोर्डिंग ने इसकी व्याख्या Buyers Surplus के नाम से
किया। इस सिद्धांत कि आधुनिक व्याख्या Pro. J.R Hicks ने
उदासीन वक्रो के माध्यम से किया।
प्रो० मार्शल के शब्दों में "किसी वस्तु के उपभोग से वंचित रहने के बजाय उपभोक्ता जो
मूल्य देने को तैयार रहता है तथा वास्तव में जो मूल्य वह देता है उसका अंतर ही
संतोष की आर्थिक माफ है। इसे उपभोक्ता बचत कहा जा सकता है।" इसलिए
उपभोक्ता की बचत= संभाज्य मूल्य
- वास्तविक मूल्य
CS = TU - (Pxn)
या, ΣMU - P.D (जब वस्तु अविभाज्य हो)
या, ΣMU - P.D (जब वस्तु विभाज्य हो)
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि मार्शल ने सीमांत उपयोगिता को मापनीय माना
है। जिसे मुद्रा के रूप में मापा जा सकता है।
यदि किसी वस्तु
का मुल्य (PO) है तथा उस वस्तु की खरीदी गई मात्रा (XO) है। तथा ƒ(P) मांग फलन है तो उपभोक्ता बचत-
उपर्युक्त समीकरण की सार्थकता निम्नलिखित व्यावहारिक
उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं P = 35 – 2x – x2 है तथा
मांग x0 = 3 ईकाई एवं मूल्य
P0 = 20 है तो उपभोक्ता बचत -
C.S
= 105 – 78
C.S
= 27 Units
इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
उपर्युक्त रेखा चित्र में वस्तु का मूल्य 20 इकाई है तथा उपभोक्ता वस्तुओं की 3 इकाइयों को
खरीदता है। OXo मात्रा (3
units) से मिलने वाली
उपयोगिता क्षेत्रफल OPoCxo
है। जबकि वह कीमत क्षेत्रफल OMCXo
के बराबर देता है ।
मान्यताएं
मार्शल के उपभोक्ता की बचत का सिद्धांत निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है
1. उपयोगिता
की संख्यात्मक माप संभव है ।
2. मुद्रा की सीमांत उपयोगिता स्थिर रहती है।
3. उपभोग
में सीमांत उपयोगिता ह्मस नियम लागू होता है।
4. बाजार
पूर्ण प्रतियोगी होती है।
5. वस्तुएं
स्वतंत्र होती है ।
6. वस्तु
की कोई स्थानापन्न वस्तु नहीं है।
7. उपभोक्ता की आय, रुचि,
फैशन आदि अपरिवर्तित रहते हैं।
सिद्धांत की व्याख्या
उपभोक्ता की बचत की धारणा का विश्लेषण वस्तुओं को निम्नलिखित भागों में बताकर
किया जा सकता है
1. एकल
इकाई क्रय- कुछ वस्तुएं ऐसी होती है जिनका उपभोक्ता एक ही इकाई का उपभोग करता है जैसे घड़ी, टीवी सेट इत्यादि। टीवी सेट
के बदले उपभोक्ता ₹6000 देने को
तैयार रहता है, जो उसे ₹5000 में ही मिल जाता है तो उपभोक्ता की बचत = 6000 - 5000 = ₹1000 होगी।
2. बहुल
इकाई क्रय- कुछ वस्तुएं ऐसी होती है उपभोक्ता जिनका एक से अधिक इकाई क्रय करता है
ऐसी वस्तुओं को दो भागों में बांटा जा सकता है
a. जब
वस्तु अविभाज्य हो- कुछ वस्तुओं को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करना संभव नहीं
होता ऐसी वस्तुओं की उपभोक्ता की बचत को निम्नलिखित काल्पनिक उदाहरण द्वारा स्पष्ट
किया जा सकता है।
ईकाई |
सीमांत
उपयोगिता |
वस्तु का
वास्तविक मूल्य |
उपभोक्ता की
बचत |
1 |
10 |
33 |
7 |
2 |
8 |
3 |
5 |
3 |
6 |
3 |
3 |
4 |
4 |
3 |
1 |
5 |
3 |
3 |
0 |
मान लिया कि किसी वस्तु की पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी एवं पांचवी
इकाइयों से सीमांत उपयोगिता क्रमशः 10,8,6,4 एवं 3 प्राप्त होती है
जबकि वस्तु का वास्तविक मूल्य 3 है इसलिए उपभोक्ता की बचत क्रमशः 7,5,3,1 एवं 0 है।
उपभोक्ता की बचत = ΣMU -
P.D
= 31 - 3 . 5
= 31 - 15 = 16
अतः उपभोक्ता की बचत 16 होगी।
इसे एक दंड लेख से प्रदर्शित कर सकते हैं
b. जब वस्तु विभाज्य हो- कुछ वस्तुओं को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जा सकता है।
ग्राफ में DD वस्तु की सीमांत उपयोगिता की रेखा है जो उपयोगिता ह्मस नियम के
करण ऊपर से नीचे दाहिनी और झुकती है।P1K1 वास्तविक मूल्य की
रेखा क्षैतिज रेखा है। क्योंकि बाजार में OP1 मूल्य
स्थिर है। संतुलन बिन्दु E1 होगा तथा वस्तु
की OQ इकाइयों का क्रय किया जाएगा।
Consumer's Surplus = ΣMU - P.D
= ODE1Q -OP1.OQ
= ODE1Q - OP1E1Q
= P1DE1
3. बाजार
में उपभोक्ता की बचत - किसी वस्तु के बाजार में प्रत्येक उपभोक्ता की बचत का योगफल
को बाजार की उपभोक्ता की बचत कहा जाता है।
बाजार में उपभोक्ता की बचत
जहां
S =उपभोक्ता की बचत , n = उपभोक्ता की संख्या
हिक्स द्वारा किया गया सुधार
Pro. J.R Hicks ने उदासीन वक्रो के माध्यम से उपभोक्ता के बचत की आधुनिक व्याख्या प्रस्तुत किया इसलिए यह सिद्धांत में मार्शल के सिद्धांत से अधिकांश दोष दूर हो जाते हैं।
मान लिया कि उपर्युक्त रेखा चित्र में OA उपभोक्ता
की आय है तथा उपभोक्ता X का ON मात्रा खरीदना चाहता है। मूल्य नहीं जानने के कारण वह IC1 का E1 बिंदु चुन लेता है जिससे यह पता लगता है कि उसे E1E2 अथवा AP मुद्रा खर्च करनी होगी। उपभोक्ता को कीमत की जानकारी हो
जाती है और वह AB रेखा पर ON मात्रा के लिए EE2 अथवा AP1 खर्च
करता है। इस बात की जानकारी E बिंदु से होती है जहां उदासीन रेखा IC2 कीमत रेखा AB को स्पर्श करती है।
पहले उपभोक्ता ON मात्रा के लिए PE1E2A मुद्रा खर्च करने को तैयार था लेकिन अब उससे AE2EP1
खर्च करना पड़ता है। अतः PE1E2A - AE2EP1
= PE1EP1 उपभोक्ता
की बचत होगी।
आलोचनाएं
इस सिद्धांत की आलोचना निम्नलिखित है
1. उपयोगिता की माप कठिन है- प्रो०
हिक्स ने कहा है की वस्तु की उपयोगिता मुद्रा के रूप में मापी नहीं जाती क्योंकि
उपयोगिता एक अमूर्त एवं भावात्मक धारणा है।
2.
मुद्रा की सीमांत
उपयोगिता समान नहीं रहती- जैसे-जैसे हम वस्तु की अधिक इकाइयां क्रय करते हैं
वैसे-वैसे हमारे पास मुद्रा की मात्रा घटती जाती है जिसके कारण मुद्रा की सीमांत
उपयोगिता बढ़ती जाती है।
3. वस्तु स्वतंत्र नहीं होती है - पूरक वस्तु के संबंध में उपभोक्ता बचत की गणना करना कठिन
होता है।
4. उपभोक्ता
की आय, रुचि, फैशन आदि में अंतर होता है- मार्शल
के अनुसार उपभोग करते समय आय, रुचि, फैशन में कोई परिवर्तन नहीं होता परंतु
व्यवहार में ऐसा नहीं होता है, जिन बातों को मार्शल स्थिर मानते आये हैं उनमें न
चाहते हुए भी परिवर्तन हो जाते हैं। अतः उपभोक्ता बचत की सही-सही माप नहीं हो
सकती।
5. संपूर्ण
बाजार के लिए किसी वस्तु की उपभोक्ता बचत आमपनीय है- किसी बाजार में
विभिन्न उपभोक्ता की आय ,रुचि, फैशन आदि अलग-अलग होते हैं जिनके कारण वे एक ही वस्तु के
लिए विभिन्न मूल्य देने को तैयार होंगे। अतः यदि किसी एक व्यक्ति की उपभोक्ता की
बचत की माप कर भी ली जाए तो संपूर्ण बाजार के लिए किसी वस्तु की उपभोक्ता बचत की
माप करना बहुत ही कठिन है।
6. उपभोक्ता बचत की अवधारणा काल्पनिक एवं भ्रामक है- प्रोफेसर निकोल्सन ने उपभोक्ता बचत की अवधारणा की आलोचना करते हुए यहां तक कहा है कि यह काल्पनिक एवं भ्रामक है।
प्रो. हिक्स द्वारा उपभोक्ता की बचत की धारणा का पुनर्निर्माण
यद्यपि
हिक्स ने उपभोक्ता की बचत की माप करते समय आय प्रभाव पर ध्यान दिया परन्तु
प्रारम्भ में उन्होंने उपभोक्ता की बचत का अर्थ मार्शल की भाँति ही लिया। परन्तु
बाद में हिक्स ने अपने लेख 'The
Four consumer Surpluses' में जो कि Review of Economic
Studies 1943 में प्रकाशित हुआ उपभोक्ता की बचत को भिन्न प्रकार से परिभाषित किया
"उपभोक्ता
की बचत द्रव्य की
वह मात्रा है जोकि उपभोक्ता की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन के बाद, उपभोक्ता को इस
प्रकार दी जाती है या उससे इस प्रकार से ली जाती है, ताकि उपभोक्ता पहले की तुलना में
न तो अच्छी स्थिति में रहता है और न बुरी स्थिति में। इसका अभिप्राय है कि आर्थिक स्थिति में परिवर्तन
के बाद, उपभोक्ता एक ही तटस्थता वक्र रेखा पर रहता है"।
कीमत
में परिवर्तन के परिणामस्वरूप आय प्रभाव को ध्यान में रखते हुए हिक्स उपभोक्ता की
बचत को अधिक निश्चित अर्थ प्रदान करते है और वह कीमत में वृद्धि या कमी के समतुल्य
परिवर्तन (EV) तथा क्षतिपूर्ति परिवर्तन (CV) के बीच अन्तर करते हैं।
समतुल्य
परिवर्तन (EV)
:- समतुल्य परिवर्तन वह द्राव्यिक आय है जोकि उपभोक्ता
से ली जाती है (कर के रुप में) या उपभोक्ता को दी जाती है (अनुदान) ताकि उपभोक्ता
उस वास्तविक आय के स्तर को प्राप्त कर सके जोकि उसको मिलता, यदि कीमत में परिवर्तन
होता, परन्तु कीमत में वास्तव में परिवर्तन नहीं होता है।
क्षतिपूर्ति परिवर्तन (CV) :- क्षतिपूर्ति
परिवर्तन वह द्राव्यिक आय है जोकि उपभोक्ता के लिए कीमत में क्षतिपूर्ति करती है ।
इस प्रकार EV तथा CV को
ध्यान में रखकर हिक्स ने उपभोक्ता की बचत की निम्नलिखित चार धारणो को प्रस्तुत
किया -
(1) कीमत क्षतिपूरक परिवर्तन :- हिक्स द्वारा कीमत क्षतिपूरक परिवर्तन को मुद्रा की उस अधिकतम मात्रा के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका अपेक्षाकृत कम कीमत पर वस्तु को खरीदने की सुविधा के लिए उपभोक्ता भुगतान करेगा ताकि वह कल्याण के प्रारम्भिक स्तर को प्राप्त कर ले। इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते है।
उपर्युक्त रेखाचित्र में, प्रारम्भिक कीमत रेखा PL1 है
तथा उपभोक्ता अनधिमान वक्र IC1 के
Q बिन्दु पर सन्तुलन में है। अब यदि X
वस्तु की कीमत गिरती है तो नयी कीमत
PL2 हो
जाएंगी । परिणामस्वरूप उपभोक्ता अनधिमान
वक्र IC2 पर
नवीन संतुलन स्थिति R को
प्राप्त करता है और इस चलन में उसके संतोष में वृद्धि हुई है। अब उपभोक्ता मुद्रा की कितनी
मात्रा भुगतान
करने के लिए तैयार होगा जिससे वह IC1 के
बिन्दु Q के ठीक बराबर संतोष के प्रारम्भिक स्तर को प्राप्त करेगा।
इसे ज्ञात
करने के लिए PL2 के
समानांतर GH रेखा खींचेंगे। GH कीमत
रेखा PL₂ द्वारा व्यक्त X की कीमत किंतु उससे मौद्रिक आय की अपेक्षाकृत कम मात्रा प्रदर्शित
करती है, क्योंकि मौद्रिक आय के एक भाग को उपभोक्ता से वापस ले लिया गया है। इस प्रकार उपभोक्ता मुद्रा की PG मात्रा भुगतान
करने के लिए तैयार होगा क्योंकि वह Q तथा S संयोगों
के मध्य तटस्थ है। वह S संयोग
को X की अपेक्षाकृत कम कीमत किंतु आय की अपेक्षाकृत कम मात्रा
में खरीदता है तथा Q संयोग की अपेक्षाकृत अधिक कीमत किंतु अपेक्षाकृत अधिक मौद्रिक
आय से खरीदता है। इस प्रकार PG कीमत क्षतिपूरक परिवर्तन है।
(2) कीमत सममूल्य परिवर्तन
:- कीमत सममूल्य परिवर्तन को हिक्स द्वारा उस न्यूनतम धनराशि के रूप में परिभाषित किया
गया है जिसको उपभोक्ता अपेक्षाकृत कम कीमत पर खरीदने के अवसर का त्याग करने के लिए
प्राप्त करने के लिए स्वीकार करेगा ताकि वह कल्याण के उस अनुवर्ती स्तर को प्राप्त
कर ले जिसे अपेक्षाकृत कम कीमत से प्राप्त करता है।
इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते है
चित्र में X वस्तु
की कीमत में दी हुई कमी के बजाय उपभोक्ता की मौद्रिक आय PE से बढ़ गयी है। PE क्षतिपूर्ति
तथा प्रारम्भिक कीमत होने से वह EF के साथ चलेगा तथा Ic₂ वक्र पर S बिन्दु
पर संतुलन में होगा
जिस पर वह उसी कल्याण के स्तर को प्राप्त करेगा जिसको कि
वह R बिन्दु पर अपेक्षाकृत कम कीमत पर प्राप्त करता है। PE कीमत सममूल्य परिवर्तन है। उपभोक्ता कीमत में दी हुई कमी
तथा मौद्रिक आय में PE के समान वृद्धि के मध्य तटस्थ होगा क्योंकि X की
अपेक्षाकृत कम कीमत से वह IC2 अनधिमान
वक्र के R बिन्दु पर पहुंचता है
और मुद्रा की अतिरिक्त मात्रा से वह
उसी अनधिमान वक्र के S बिन्दु पर पहुंचता है जिस पर R स्थित है। अतः PL₂ कीमत रेखा
द्वारा प्रदर्शित घटी हुई कीमत पर X वस्तु
को खरीदने की सुविधा से वंचित करने के लिए उपभोक्ता को मुद्रा
की PE मात्रा से क्षतिपूर्ति करने की आवश्यकता है।
(3) परिमाण क्षतिपूरक परिवर्तन :- परिमाण क्षतिपूरक परिवर्तन हिक्स द्बारा मुद्रा की उस अधिकतम मात्रा के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका एक उपभोक्ता अपेक्षाकृत कम कीमत पर एक वस्तु खरीदने की सुविधा के लिए भुगतान करने को इच्छुक होगा जिससे वह संतुष्टि के प्रारम्भिक स्तर को प्राप्त कर सकें यदि इस सुविधा के साथ उसे वस्तु की वह मात्रा खरीदने को प्रतिबन्धित किया जाए जिसको वह क्षतिपूरक भुगतान की अनुपस्थिति में अपेक्षाकृत कम कीमत पर खरीदता ।
उपर्युक्त रेखाचित्र मे PL1 प्रारम्भिक कीमत है
जिसमे उपभोक्ता IC1 के Q बिन्दु पर संतुलन में है। यदि कीमत गिरती है तो उपभोक्ता IC2 के R
बिन्दु पर संतुलन में होगा जिस पर वह X वस्तु का OB
मात्रा खरीद रहा है। अब यदि उपभोक्ता से मुद्रा की RK मात्रा वापस ले ली जाती है
और उसे OB मात्रा खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है, तो वह अनधिमान
वक्र IC1 के K बिन्दु अर्थात् अपने प्रारम्भिक कल्याण के स्तर पर होगा।
इस प्रकार X वस्तु की कीमत में कमी के परिणामस्वरूप कल्याण मे लाभ का
अन्य माप परिमाण क्षतिपूरक परिवर्तन RK है।
(4) परिमाण सममूल्य परिवर्तत :- परिमाण सममूल्य परिवर्तन मुद्रा की उस न्यूनतम धनराशि के रूप में परिभाषित किया गया है जिसको उपभोक्ता अपेक्षाकृत कम कीमत पर वस्तु को खरीदने की सुविधा का त्याग करने के लिए स्वीकार करेगा जिससे वह संतुष्टि के अनुवर्ती स्तर को प्राप्त करेगा यदि उसे वस्तु की उस मात्रा को खरीदने पर बाध्य किया जाता है जिसको वह पहले की अपेक्षाकृत अधिक कीमत पर वास्तव में खरीदता है।
रेखाचित्र में उपभोक्ता IC1
के Q बिन्दु पर संतुलन में है। अब यदि कीमत गिरती है तो वह IC₂
के R बिन्दु पर संतुलन में होगा । किंतु R बिन्दु पर वह X वस्तु
की OA की अपेक्षा अधिक मात्रा खरीदेगा परन्तु OA
मात्रा खरीदने के लिए उपभोक्ता प्रतिबन्धित है तो वह अपेक्षाकृत कम कीमत पर वस्तु
को खरीदने के अवसर का त्याग करने के लिए मुद्रा की QT मात्रा
स्वीकार करेगा। इस प्रकार QT सममूल्य परिवर्तन है।
उपभोक्ता की बचत की धारणा का महत्त्व
उपभोक्ता की बचत की धारणा न तो काल्पनिक
है और न अव्यावहारिक ही। वस्तुतः यह सिद्धांत सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दृष्टि से
उपयोगी है।
(a) सैद्धान्तिक महत्त्व :- उपभोक्ता बचत की अवधारणा उपभोग-मूल्य तथा विनियोग मूल्य के अन्तर
को स्पष्ट करती है। जैसे - दियासलाई, समाचार पत्र, आदि जिनका उपयोगिता मूल्य बहुत अधिक
होता है। इनकी विनिमय मूल्य बहुत ही कम होता है। इन वस्तुओं के प्रयोग से उपभोक्ता
को बहुत अधिक उपभोक्ता बचत मिलती है।
(b) व्यावहारिक महत्त्व :- उपभोक्ता की बचत के सिद्धांत के व्यावहारिक महत्त्व बहुत अधिक
है। जो निम्नलिखित है-
(1) एकाधिकारी कीमत के निर्धारण में :- यदि एकाधिकारी की वस्तु ऐसी है जिससे उपभोक्ताओं को बहुत अधिक
उपभोक्ता की बचत होती है तो एकाधिकारी अपनी वस्तु का मूल्य ऊँचा करके लाभ बढ़ा सकता
है। परन्तु मूल्य ऊँचा करते समय वह इस बात का ध्यान रखता है कि मूल्य इतना ऊँचा न हो
कि वह सारी उपभोक्ता की बचत को समाप्त कर दे नहीं तो उपभोक्ताओं में असन्तुष्टि फैलगी
और उसका अधिकार खतरे में पड़ सकता है। वह मूल्य ऊँचा करते समय कुछ उपभोक्ता की बचत
अवश्य छोड़ देता है।
(2) दो स्थानों तथा दो समयो के बीच
जीवन स्तर की तुलना करने में :- उन्नतशील देशों में उपभोक्ता बचत बहुत अधिक होती है। इस दृष्टि से किसी समय दो देशों की आर्थिक
स्थितियों की तुलना की जा सकती है। यदि एक ही रकम खर्च करने से एक जगह पर उपभोक्ता बचत अधिक है तथा दूसरी जगह कम तो निश्चय ही पहली जगह के निवासियों
का जीवन स्तर दूसरी जगह के निवासियों की तुलना में बेहतर होगा।
(3) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में लाभ की मात्रा का पता लगाने में उपभोक्ता बचत की अवधारणा
सहायक होती है। उन्ही वस्तुओं का आयात किया जाता है जिनकी कीमत अपने देश के
प्रचलित मूल्य से कम होती है। इस प्रकार आयात से बचत प्राप्त होती है।
(4) राजस्व के क्षेत्र में महत्त्व :- किसी वस्तु पर कर लगाने से एक ओर तो उसकी कीमत बढ़ जाती है और इसलिए उससे प्राप्त उपभोक्ता बचत घट जाती है। दूसरी ओर सरकार को कर द्वारा अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। कर का औचित्य केवल उसी दशा में सिद्ध होता है जब सरकार की आय में होने वाला लाभ उपभोक्ता की बचत में होने वाली क्षति से अधिक हो। यदि ऐसा कर है जिससे उपभोक्ता बचत में कमी अधिक होती है तो ऐसा कर बुरा होगा। इसे सरकार को नहीं लगाना चाहिए। यह एक रेखा चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते है-
चित्र से स्पष्ट है
OM =
माँग, PM = वस्तु की कीमत
उपभोक्ता की बचत = DPN
अब यदि P'T (LN) कर लगायी जाती है तो कीमत बढ़कर P'M' (LO) हो
जायेगी। माँग OM' की होगी। उपभोक्ता की बचत = DLP' होगी। बचत में कमी
= DPN-DP'L = LP'PN है। इसमे से सरकार LP'TN कर के रूप में
ले लेती है। अतः शुद्ध हानि P'PT की होती है।
इस प्रकार कर लगाना न्यायपूर्ण नहीं होगा।
निष्कर्ष
प्रो० सेम्युलसन ने इसकी आलोचना करते हुए कहा "उपभोक्ता की बचत का केवल
ऐतिहासिक एवं सैद्धांतिक महत्व रह गया है तथा गणितीय पहेली के रूप में इसका आकर्षण
सीमित है।"
हिक्स ने उपभोक्ता बचत को पुनः प्रतिपादित किया परन्तु इनके अथक प्रयास भी
इंग्लैंड तथा अमेरिका के अर्थशास्त्रियो के विचारों को नहीं बदल सके, लेकिन प्रो.
रॉबर्टसन अभी भी इस सिद्धांत को महत्त्वपूर्ण मानते है
"Both
intellectually respectable and use ful as a guide to
practical action"
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)