श्रम बाजार (Labour Market)

श्रम बाजार (Labour Market)

श्रम बाजार (Labour Market)

मोटे तौर पर श्रम बाजार का अर्थ उस स्थान या क्षेत्र से लगाया जाता है जहाँ विभिन्न प्रकार के कारखानों, उद्योगों, व्यवसायों आदि के लिए सापेक्षिक मजदूरी स्तर निर्धारित होती है।

संयुक्त राज्य के रोजगार सेवा संगठन ने "Method of Area Labour Market Analysis मे जो United State Employment Serivices में प्रकाशित हुआ, में कहा, "श्रम का बाजार वह स्थान है जिसके अंदर रोजगार की क्रियाओं को प्रभावित करने वाली शक्तियां कार्य करती है। इस स्थान से उद्योगपति अपने कर्मचारियों को भर्ती करते हैं और कर्मचारी काम तलाशते हैं। यह एक सामान्य क्षेत्र है जिसमे श्रम की मांग, पूर्ति, मजदूरी के अंतर, काम के घंटों के परिवर्तन, भर्ती और कार्य की दशा, उद्योगपति और श्रमिक के संबंधों का निर्माण होता है।"

'श्रम के बाजार' शब्द का कुछ लोग विरोध करते हैं, क्योंकि इस शब्द में यह ध्वनि निकलती है कि श्रम भी एक वस्तु है। योडर ने इन आपत्तियों का उत्तर दिया है, "इस प्रकार की आपत्तियां बौद्धिक क्षमता की अपेक्षा भावुकता और राजनैतिक पक्षपात को ही प्रभावित करती है। सच बात तो यह है कि श्रम का क्रय-विक्रय होता है। अतः उसका एक बाजार होता है। उसके क्रय-विक्रय की विधियो का अध्ययन श्रम की समस्याओं के सुलझाने में मूल्यवान सहायता दे सकता है"

श्रम के कार्य इनके उद्देश्यों एवं विकास की अवस्थाओं पर निर्भर करते है। वर्तमान में श्रम बहुत विकसित अवस्था में है तथा शक्तिशाली भी है अतः इनका कार्यक्षेत्र भी बहुत विस्तृत है। श्रम अपने सदस्यों के हितों की रक्षा एवं उनका संवर्द्धन करते हैं।

जॉन प्राइस ने अपनी पुस्तक 'British Trade Unions' में कहा है कि, "आज के श्रम के अपने कार्यकलाप श्रमिकों को उचित मजदूरी दिलाने तथा कार्य की दशाओं में सुधार करवाने तक ही सीमित नहीं है वरन् वे उन सभी कार्यों से संबंधित है जिनसे श्रमिक प्रभावित होते है।"

श्रम के अल्पविकसित देशों में कार्यों को निम्नलिखित भागा में बाँट सकते है-

(1) आंतरिक अथवा लडाकू कार्य :- इस प्रकार के कार्यों के अन्तर्गत श्रमिक अपने अधिकार के लिए लड़ते है। इस लड़ाई का लक्ष्य होता है -(a) उचित मजदूरी (b) कार्य और सेवा की अच्छी शर्ते (c) मालिको के अच्छे व्यवहार (d) काम के कम घंटे व उद्योग के प्रबंध में हिस्सा। इस लड़ाई में वे अनेक शस्त्रो का प्रयोग करते हैं जैसे - हड़ताल, बहिस्कार, सामूहिक सौदेबाजी, समझौता वार्ताएं आदि।

(2) बाह्य कार्य अथवा मित्रवत कार्य :- इसके अन्तर्गत वे कार्य आते है जो श्रमिक परस्पर एक दूसरे के जीवन को सुधारने के उद्देश्य से करते हैं। जे. आई. रोर का एक सुंदर वाक्य है, "एक श्रमिक संघ एक नगरपालि‌का के सदृश है जिसका उद्देश्य नागरिकों का जीवन सुधारना है"। अर्थात् जिस प्रकार नगरपालिका शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन इत्यादि की सेवाओं की व्यवस्था करती है, श्रमिक भी करता है। इन कार्यों को निम्नलिखित कुछ वर्गों में बांटा जा सकता है-

(a) शिक्षा संबंधी कार्य:- महिला शिक्षा, प्रौढ शिक्षा, पुस्तकालय व वाचनालय आदि की व्यवस्था करना

(b) र्थिक कार्य :- सहकारी समितियों का निर्माण करना जो सस्ते अनाज, मकान वण दिलाने से संबंधित कार्य करती है। अनाथ गरीबो की सहायता का प्रबंध करना।

(c) स्वास्थ्य संबंधी कार्य :- दवा, इलाज, सफाई की व्यवस्था करना व शिशु एवं मातृ कल्याण करना

(d) मनोरंजन :- खेलकुद, व्यायाम, टूर्नामेंट आदि का प्रबंध करना व क्लब इत्यादि का संगठन करना

(e) सांस्कृतिक कार्य:- लोक नृत्य, संगीत, कला, नाटक इत्यादि

भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो ने 1979 में एक सर्वेक्षण श्रम द्वारा किये जा रहे कल्याणकारी कार्यों के संबंध में संपादित किया। इस ब्यूरो ने 102 श्रम संगठनों पर शो किया

(3) राजनीतिक कार्य :- देश के शासन प्रबंध में भाग लेने के उद्देश्य से निर्वाचन आदि में श्रमिको के प्रतिनिधियों को खडा करना राजनीतिक कार्यों की श्रेणी में आता है। आर्थर गोल्ड वर्ग के अनुसार, "श्रम संघ सदस्यों का यह कर्तव्य है कि वे देश के राजनीतिक अधिकारो के निश्चित राष्ट्रीय कार्यक्रम को श्रय प्रदान करे तथा अपने संघ को देश के राष्ट्रीय जनसंघो के सदस्य वर्गो के साथ चलाने के लिए दृढ़ता से कहें।"

श्रमिकों के राजनीतिक कार्य निम्नलिखित प्रकार के हो सकते है।

(a) विधान सभाओं में अपने प्रतिनिधि भेजना, नगरपालिकाओं में पना प्रभाव उत्पन्न करना

(b) चुनाव के द्वारा स्वयं अपनी सरकार बनाने का प्र‌याकरना ताकि सत्ता में आ कर कुछ और अधिक अच्छा कार्य किया जा सके जैसा कि ब्रिटेन में लेबर पार्टी सत्ता में है। ऐसा केवल औधोगिक देशों में संभव है। भारत में भविष्य में ऐसा होना संभव नहीं है।

(c) श्रमिकों के हित के अधिनियम को बनवाना भारत में अनेक अधिनियम श्रमिक आंदोलन के फलस्वरूप बने है।

श्रम संघ किसी राजनीतिक व्यवस्था में पनप सकते है-चाहे वह पूंजीवाद हो अथवा साम्यवाद । पूँजीवाद के अंतर्गत जहाँ श्रम संघों का प्रमुख कार्य है मजदूरी, कार्य की शर्तों एवं कर्मचारी वर्ग की मांग और पूर्ति से संबंधित विषयों के लिए सेवायोजको के समक्ष मांग रखना, साम्यवादी देश में श्रमिक संघ उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहित करने में, अनुशासन बनाये रखने में बल देते है और समाज कल्याण एजेंसी के रूप में कार्य करते है। साम्यवादी देशो में मजदूरी की मांगों के समर्थन में हड़तालों का सहारा श्रमिक संघ नहीं लेते।

(4) प्रतिनिधित्वात्मक कार्य:- सेवायोजको के साथ सौदा करने तथा अन्य विविध कार्यों के लिए श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करने का कार्य श्रम संघों को करना पड़ता है। इसी प्रकार न्यायालय में चलने वाले विवादों, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले सम्मेलनों में भी श्रमिको का प्रतिनिधित्व श्रम संघ द्वारा किया जाता है। श्रम संघ सरकार अथवा सेवायोजको द्वारा बनायी जाने वाली समितियों  में भी अपने प्रतिनिधि भेज कर श्रमिकों का प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं।

(5) विकासात्मक कार्य:- आधुनिक युग मे श्रम संघ श्रमिकों के हितो में ही नहीं बल्कि संपूर्ण समाज एवं देश के हितों में कुछ विकासात्मक कार्यों में भी योगदान दे सकते हैं। श्रम संघ संकटकालीन स्थिति में अत्यधिक उत्पादन के लिए श्रमिकों को प्रेरित करके देश की रक्षा एवं विकास में महान योगदान दे सकते है। श्रम संघ श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करके उनको अपने कार्यों में लगाये रखते है जिससे देश में अत्याधिक उत्पादन संभव है। इसी प्रकार श्रम संघ अनेक कार्य करके देश के विकास में योगदान देते हैं।

निष्कर्ष

भारतीय श्रम संघ अधिनियम 1926 के अनुसार संघो को श्रमिक के हितों की रक्षा, रोजगार एवं कार्य की दशाओं में सुधार तथा उनके हितों में वृद्धि करनी चाहिए। यह कार्य उनका मूल उद्देश्य है किंतु इसके अतिरिक्त श्रम संघ के कुछ गौण कार्य भी है लेकिन ये गौण कार्य मूल उद्देश्य के नीति विरुद्ध नहीं होने चाहिए।

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