प्रश्नः अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कौन-कौन से लाभ है? व्यापार
में भाग लेने वाले देशों के बीच लाभ का
विभाजन किस प्रकार होता है? इसे कैसे मापा जाता है?
→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभों का विवरण दीजिये ?
उत्तर
:- आज का युग अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का युग माना जाता है। आज हम अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार के कारण दुनिया के किसी भी वस्तु का उपभोग करते है।
प्रो. एल्सवर्थ के शब्दों
में," अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अधिक लोगों के जीवन बसर करने, अधिक विविध
आवश्यकताओं
की पूर्ति करने एवं उच्च जीवन स्तर का उपभोग करने की अनुमति देता है जो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
के अभाव में संभव नहीं होता"।
20वी
शताब्दी में अधिकांश देशों का आर्थिक विकास अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण ही हुआ
है। यदि यूरोप में कच्चा माल तथा खाधान्न का आयात नहीं हुआ होता तो वहाँ औद्योगिक क्रांति
नहीं हुई होती।
प्रो
एल्सवर्थ ने भी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के महत्त्व तथा लाभों के संदर्भ में कहा
" मलाया के रबर तथा मध्यपूर्व के पेट्रोल के बिना पश्चिमी यूरोप के देशों की कारे
तथा यात्री
बसे गतिहीन हो जाती है।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ
अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार से अनेक लाभ प्राप्त होता है जिनमें निम्नलिखित प्रमुख है
(1)
विशिष्टीकरण एवं श्रम विभाजन के लाभ :- कोई भी राष्ट्र आत्मनिर्भर नहीं है। जैसे
कोई व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता है।
उसी तरह कोई राष्ट्र
अकेला सुखी नहीं रह सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे
समृद्धिशाली देश को भी अनेक वस्तुओं के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
इसका कारण यह है कि आत्मनिर्भरता से संसार के सभी देशों को हानि होती है और
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ। इस लाभ का मुख्य कारण अधिकाधिक अन्तर्राष्ट्रीय
विशेषीकरण और श्रम विभाजन की क्रियाएँ है। प्रत्येक देश उन्ही वस्तुओं का उत्पादन
करता है जिसके लिए उसके प्राकृतिक साधन उपलब्ध है ऐसा करने से उस देश में सस्ती
तथा अच्छी वस्तु उत्पन्न की जा सकती है।
(2)
प्राकृतिक साधनों का समुचित उपयोग :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अन्तर्गत देश
में ऐसे उद्योग विकसित किये जाते है जिनके लिए दशाएँ सर्वाधिक अनुकूल रहती है। देश
में जो प्राकृतिक
साधन विपुल मात्रा में होते है, उनसे ही सम्बन्धित उद्योग स्थापित किये जाते है। इससे उन उपलब्ध प्राकृतिक
साधनों का समुचित उपयोग किया जा सकता है।
(3) प्रतियोगिता के लाभ :- जहाँ व्यापार स्वतंत्र होता है, वहाँ देशी-विदेशी
विक्रेताओं में परस्पर भारी प्रतियोगिता प्रारम्भ हो जाती है। इस स्वस्थ
प्रतियोगिता के कारण उत्पादको को अपने उत्पादन का स्तर ऊँचा करने और मूल्य
न्यूनतम करने की प्रेरणा मिलती है इससे उपभोक्ता को भारी लाभ होता है।
(4) उपभोक्ताओ को लाभ :- विशिष्टीकरण के फलस्वरूप उत्पादन के तरीको एवं
प्रणालियों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए है तथा वस्तुओं का उत्पादन व्यय बहुत कम
हो गया है। देश में जिन वस्तुओं के मूल्य अधिक है, उनका आयात विशिष्टता प्राप्त
देशों से किया जा सकता है। इनके उपभोक्ताओं को कम मूल्य पर ही उत्तम कोटि की
वस्तुएँ प्राप्त होती है और उनका जीवन स्तर ऊँचा होता है। इसके साथ ही उन्हें ऐसी
वस्तुओं के उपभोग का भी अवसर मिलता है जिनका निर्माण देश में नहीं हो सकता है।
(5) अधिकतम वास्तविक आय :- माल्थस , रिकार्डो, मिल एवं मार्शल सभी ने
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों में राष्ट्रों की अधिकतम वास्तविक आय प्राप्ति
कर विशेष बल दिया। माल्थस एवं रिकार्डो का कथन है की विदेश से सस्ती एवं अच्छी
वस्तुएँ ली जाती है जो निश्चित आय से अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में प्राप्त हो सकती
है।
(6) अकाल एवं खाद्य संकट के समय सहायक :- देश में अकाल एवं खाधान्न के अभाव की स्थिति में विदेशी
व्यापार द्वारा खाद्यान्न का आयात विदेशों से किया जा सकता है जिससे न केवल लोगों
के जीवन की रक्षा की जा सकती है वरन् उनके जीवन स्तर को भी कायम रखा जा सकता है।
(7) उच्चतर जीवन स्तर :- उपभोक्ता को अपनी पंसद की वस्तु के उपभोग का अवसर
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण मिल सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, व्यापार
को विस्तृत बना देता है। बाजार में जाकर हम इंग्लैण्ड, अमेरिका, जापान की बनी
वस्तुएँ खरीद सकते है। रोजगार में वृद्धि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण श्रम
विभाजन तथा विशिष्टीकरण का उपभोग होता है। बाजार का आकार का विस्तार होता है। अतः
वस्तु की माँग अधिक हो जाती है। माँग के बढ़ने के कारण उत्पादन बड़े पैमाने पर
होने लगते है अतः रोजगार के स्तर में वृद्धि होती है।
(8) एकाधिकार पर नियंत्रण :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण एकाधिकारी शक्तियों का
नियंत्रण अपने आप हो जाता है क्योंकि विभिन्न देशों की बनी वस्तुओं के बीच
प्रतियोगिता होते रहती है। अतः एकाधिकारी के अवगुणों से अर्थव्यवस्था बची रहती है।
(9) मूल्यों में समता :- जब एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वस्तुएं आसानी से
आती-जाती रहती है तो उस वस्तु की कीमत विभिन्न क्षेत्रों में समान हो जाती है। इस
तरह की स्थिति आयात- निर्यात के कारण विभिन्न देशों में उत्पन्न हो सकती है।
(10) पुनर्निर्माण एवं विकास में सहायक :- देश के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार देश के विकास में बहुत
अधिक सहयोग करता है। आर्थिक इतिहास बताता है कि ब्रिटेन का विकास सुती एवं ऊनी
वस्त्र के निर्यात से, स्वीडेन का लकड़ी के निर्यात से, डेनमार्क का दुग्ध
पदार्थों के निर्यात से स्विट्जरलैण्ड का घड़ियों एवं फीतों के निर्यात से,
कनाडा का गेहूँ के निर्यात से हुआ।
(11) कच्चे माल की उपलब्धता में सहायक :- बहुत से देश इस प्रकार के है जिसके पास उर्जा का साधन
है। श्रम व्यवस्थापक है पर कच्चा माल का अभाव है। इस प्रकार के देशों के विदेशी
व्यापार के कारण कच्चा माल उपलब्ध हो जाता है। भारत, कनाडा एवं स्वीडन से लुग्दी
मंगाता है और अपना कागज उद्योग चलाता है। अभी भी भारत अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी
आदि देशों से कृत्रिम रेशे मांगकर कृत्रिम रेशम का काररवाना चला रहा है। ब्रिटेन
में सूती वस्त्र उद्योग तथा ऊँनी कारखान तथा ऊन के बलबूते ही चलते हैं ।
(12) सम्यता का विकास :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण विभिन्न देशों के बीच
वस्तुओं का आयात निर्यात होता ही है साथ - साथ एक देश का सम्पर्क दूसरे देशो से
बढ़ता है इसके फलस्वरूप सभ्यता का आदान प्रदान होता है।
(13) औद्योगिक
विकास में सहायक :- अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार के कारण औद्योगिक विकास हुआ है। भारत में औद्योगिककरण में विदेशी मशीने
एवं विदेशी तकनीको का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है जो विदेशी व्यापार के कारण ही
संभव हो सका।
(14) गरीबी निवारण में सहायक :- विदेशी व्यापार आय प्राप्ति का एक बहुत अच्छा स्त्रोत
है। विदेशी व्यापार पर बहुत से देशों की आय निर्भर करती है। विदेशी मांग के आधार
पर ही सयुक्त राज्य अमेरिका लोहा एवं इस्पात का तैयार माल बहुत अधिक मात्रा में
बनाता है। भारत जूट, चाय, लाख आदि उद्योग भी विदेशी माँग के बल पर ही इतने विकसित
हो सके
(15)
मैत्री एवं सहयोग :-
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग तथा मैत्री की भावना में
वृद्धि होती है। किडंलबर्गर ने कहा था, " बढ़ते हुए राष्ट्रवाद, बढ़ते हुए
अन्तर्राष्ट्रीयवाद अथवा दोनों की बढ़ती हुई दुनिया में अन्तर्राष्ट्रीय
अर्थशास्त्र ज्ञान और समझौतो का महत्त्वपूर्ण साधन है"।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ को प्रो. हैबरलर ने निम्न रेखाचित्र में प्रकट किया है।
चित्र -1 में AA' देश की उत्पादन सम्भावना वक्र है।
व्यापार के पूर्व की स्थिति में H उत्पादन उपभोग का सन्तुलन बिन्दु है तथा PH का
ढाल व्यापार के पूर्व X तथा Y दोनों
वस्तुओं के कीमत अनुपात को दर्शाता है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार होने के बाद
अन्तर्राष्ट्रीय कीमत अनुपात P'P' रेखा द्वारा दिखाया गया है। नयी कीमत रेखा पर
उत्पादन संतुलन बिन्दु T है तथा उपभोग बिन्दु H' है। H' बिन्दु पर देश X की H'L मात्रा का
निर्यात करता है और Y की LT मात्रा का आयात करता है।
अब तटस्थता वक्र द्वारा यह सिद्ध किया जा सकता है कि बिन्दु
H' बिन्दु H की तुलना में श्रेष्ठ है। चूंकि H' को स्पर्श करती
हुई तटस्थता वक्र H की तुलना में ऊँची होगी अतः कहा जा सकता है कि
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ होता है।
देशों के बीच होने वाला अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सम्पूर्ण विश्व स्तर पर कल्याण में वृद्धि के लिए सहायक है। चित्र- 2 में विश्व के दो प्रतिनिधि देशों के रूप में देश A तथा B के बीच व्यापार से उत्पन्न कल्याण वृद्धि दर्शाई गई है। दोनों देश गेहूँ एवं कपड़े का उत्पादन करते हैं। चित्त में OX अक्ष पर गेहूँ तथा OY अक्ष पर कपड़े को प्रदर्शित किया गया है।
चित्र में AA1 देश
A का उत्पादन सम्भावना वक्र तथा BB1 देश
B का उत्पादन सम्भावना वक्र है। बिन्दु P पर देश A उत्पादन
तथा उपभोग करता है- इस बिन्दु पर देश गेहूँ की OW मात्रा
तथा कपड़े की OC मात्रा का उत्पादन तथा उपभोग कर रहा है। एजवर्थ बाक्स का प्रयोग
करते हुए देश B के उत्पादन सम्भावना वक्र एवं अक्षों को उलट कर रखा गया है। देश B के
लिए बिन्दु P पर गेहूं के उत्पादन एव उपभोग की मात्रा O'W1 तथा कपड़े के उत्पादन एवं उपभोग की मात्रा O'C1 है।
इस पर दोनों देशों में गेहूं का समग्र उत्पादन OX = OW + WX तथा
कपड़े का समग्र उत्पादन OY = OC + CY है। इस समग्र उत्पादन के साथ दोनो देशों का समग्र कल्याण
स्तर समुदाय उदासीनता वक्र CIC0
द्वारा प्रदर्शित है।
बिन्दु पर दोनों देशों के लिए स्थायी सन्तुलन का बिन्दु नहीं
है क्योंकि बिन्दु P पर दोनों देशों के रुपान्तरण की सीमांत दर समान नहीं है जिसके
कारण दोनों देशों में संसाधनों का आवण्टन अनुकूलतम नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार होने की दशा में दोनों देश संसाधनों का अनुकूलतम आवण्टन करने में सफल हो
जाते हैं जिससे दोनों देशों का समग्र उत्पादन गेहूँ एवं कपड़े के लिए क्रमशः OX'
तथा OY' हो जाता है- इस उत्पादन स्तर पर दोनों देशों के उत्पादन
सम्भावना वक्र एक दूसरे को बिन्दु P1 पर
स्पर्श करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण वस्तुओं के समग्र उत्पादन में
वृद्धि हो जाती है और समुदाय उदासीनता वक्र दाई ओर खिसक कर CIC1 हो
जाता है। यह ऊँचा समुदाय उदासीनता वक्र कल्याण के ऊँचे स्तर का सूचक है।
इस प्रकार, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विश्व कल्याण में वृद्धि
करने में सहायक है।
लाभ का विभाजन
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भाग लेने वाले देशों में से
किस देश को अधिक लाभ एवं किस देश को कम लाभ प्राप्त होता है। यह निम्नलिखित बातों
पर निर्भर करता है।
(1) वस्तु की प्रकृति :- कच्चे माल, कृषि पदार्थों, खनिजो आदि में निर्यातक
देशों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से कम लाभ प्राप्त होता है। जबकी उद्योगों में
निर्मित वस्तुओं के निर्यातक देशों को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
(2) माँग की लोच :- अगर किसी देश के वस्तु की मांग विदेशों में बेलोचदार हो तो वह देश अपनी
वस्तु का मूल्य बढ़ाकर व्यापार से अधिक लाभ प्राप्त करेगा। अगर वस्तु की माँग
विदेशों में लोचदार हो तो देश को वस्तु का मूल्य घटाना पड़ेगा एवं उसे
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से कम लाभ प्राप्त होगा
(3) व्यापार की शर्तें :- व्यापार के शर्त का मतलब किसी देश की वस्तु के अनुपात
से जिसके बदले दूसरे देश की दूसरी वस्तु का विनिमय किया जाता है। जिस देश के लिए
व्यापार की शर्त अनुकूल होगी, उसे अधिक लाभ एवं जिसके प्रतिकूल होगी, उसे कम लाभ
प्राप्त होगा। व्यापार की शर्त वस्तु की प्रकृति एवं मांग की लोच पर निर्भर करता
है।
(4) परिवहन व्यय :- जिस देश को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में कम परिवहन व्यय एवं अधिक विपणण की
सुविधाएँ उपलब्ध होती है उसे अधिक लाभ एवं जिसे परिवहन व्यय अधिक लगता है उसे कम
लाभ प्राप्त होता है।
(5) देश का आकार :- छोटे देशो को बड़े देशों की अपेक्षा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से अधिक लाभ
होता है क्योंकि कम जनसंख्या के कारण कम आयात करना पड़ता है लेकिन वह निर्यात
विस्तृत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के कारण किसी हद तक बढ़ा सकता है इसलिए इसका
निर्यात अधिक होता है।
(6) व्यापार का ढांचा :- T. S. Mill के अनुसार उस देश को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सबसे
अधिक लाभ प्राप्त होगा जो एक ही वस्तु का निर्यात कर अपने सभी आयातो को पूरा कर लेता
है।
(7) विदेशी व्यापार की मात्रा :- अन्य बातें समान रहने पर जिस देश के विदेशी व्यापार का परिमाण अधिक होगा उसे अधिक लाभ एवं जिसका कम होगा, उसे कम लाभ प्राप्त होगा।
OA देश A का एवं OB देश B का
प्रस्तावना वक्र है। (ऑफर कर) OP देश A एवं OQ देश B का घरेलू स्थिर लागत अनुपात है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
का संतुलन बिन्दु E है जहाँ दोनो प्रस्तावना एक दूसरे को काटते है।
देश A में X के OR के बदले Y का NR प्राप्त होता है लेकिन
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मे X के OR के बदले Y का ER प्राप्त होता है। इस प्रकार
ES देश A का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ है। देश में Y के RK ईकाई के बदले X का OK
प्राप्त होता है लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में Y का सिर्फ EK देकर ही X का OK प्राप्त हो जाता
है। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से देश B को RE लाभ
प्राप्त होता है। किसी देश को अधिक एवं किस देश को कम लाभ प्राप्त होगा यह E बिन्दु
की स्थिति पर निर्भर करता है। E अगर नीचे होगा तो देश B को
अधिक लाभ तथा E अगर ऊपर होगा तो देश A को
अधिक लाभ प्राप्त होगा।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ की माप
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभों की गणना हेतु प्रतिष्ठित
अर्थशास्त्रियों ने तीन विधियों का प्रयोग किया, जो निम्नलिखित है।
(1) तुलनात्मक लागत विधि :- इस विधि के अन्तर्गत कुल वास्तविक लागत घटाना ही लाभ का आधार माना गया है।
उपर्युक्त चित्र में AB भारत की सीमा रेखा है तथा AC वर्मा
की उत्पादन सीमा रेखा है जो इस आधार पर खींची गयी है कि भारत में जूट और चावल का
विनिमय अनुपात 1:1 है तथा वर्मा में यही विनिमय अनुपात 1:2 है। इन दोनों देशों में
व्यापार होने से अतिरेक लाभ (BC) प्राप्त होगा तथा विनिमय दर B व C के
बीच कही भी निर्धारित होगी।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में तुलनात्मक लागत का
सिद्धांत बताता है कि एक देश आवश्यक रूप से उन सब वस्तुओं का उत्पादत नहीं करता
जिन्हें वह अन्य देशों की तुलना में सस्ते में पैदा कर सकता है वरन् उन वस्तुओं का
उत्पादन करता है जिन्हें वह अधिकतम सापेक्षिक लाभ पर अर्थात् न्यूनतम तुलनात्मक
लागत पर तैयार कर सकता है।
रिकार्डो के अनुसार, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अन्तर्गत
प्रत्येक देश उन वस्तुओं का निर्यात करता है, जिनकी घरेलू लागत कम होती है तथा उन
वस्तुओं का आयात करता है, जिनकी घरेलू लागत अधिक होती है।
तुलनात्मक लागत विधि की आलोचना करते हुए वाइनर ने लिखा है
कि 'वस्तुओं में समूह' की गणना हेतु वास्तविक राष्ट्रीय आय के सूचकांक का प्रयोग
आवश्यक है, जिससे पर्याप्त जटिलताये उत्पन्न हो सकती है। दूसरे, ' आनन्द के योग'
की प्रत्यक्ष गणना भी संभव नहीं है।
(2) व्यापार की शर्तें :- पारस्परिक 'माँग सिद्धांत' के माध्यम से लाभ के स्वरूप
का निर्धारण जॉन स्टुअर्ट मिल की सबसे बड़ी उपलब्धि थीं। मिल ने बताया कि
तुलनात्मक लागतों के साथ व्यापार की शर्ते (जिन्हें पारस्परिक मांग निर्धारित करती
है) उस आधार को प्रस्तुत करती है, जिसके अनुसार विभिन्न देशों
के बीच अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों का वितरण होता है'। जेवन्स ने मिल
के विचारों से अहसमति व्यक्त करते हुए बताया कि 'लाभ की कुल मात्रा' कुल उपयोगिता
पर निर्भर करती है, जबकि व्यापार की शर्तों का संबंध उपयोगिता के अन्तिम अंश से
होता है। अतः लाभ की गणना इस आधार पर की जानी चाहिये कि निर्यात- वस्तुओं में
परित्याग की गई उपयोगिता की तुलना में आयातित वस्तुओं से कुल कितनी अधिक उपयोगिता
प्राप्त हुई है।
(3) वास्तविक आय में वृद्धि :- टीजिंग के अनुसार, किसी देश को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
से लाभ उस समय होता है, जब उसकी वास्तविक आय बढ़ जाती है। व्यापार से
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में समानता स्थापित हो जाती है। अतः
जिन देशों में मौद्रिक आय का स्तर ऊँचा होता है, वहाँ के उपभोक्ताओं को व्यापार की
वस्तुओ से कम मौद्रिक आय वाले देश के उपभोक्ताओं की तुलना में अधिक लाभ होता है।
आय के सन्दर्भ में लाभ की गणना इस आधार पर भी की जा सकती है कि व्यापार न होने की
स्थिति में किसी देश को सापेक्षिक रूप से वास्तविक आय में कमी तथा लागत वृद्धि के
रूप में कितनी हानि होगी।
निष्कर्ष
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता है की अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से व्यापारी देशो मे आर्थिक जीवन के मूल तत्त्व बदल जाते है। इसके बारे में परोक्ष प्रभाव बहुत अधिक दीर्घकालीन होते है। यदि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार न होता तो आज विश्व के लोगों की क्या दशा होती; पूँजी उपकरणों का क्या होता तथा वह अपनी वर्तमान स्थिति से कितने भिन्न होते।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)