आर्थिक विकास की माप (Measurement of Economic Development)

आर्थिक विकास की माप (Measurement of Economic Development)

आर्थिक विकास की माप ( Measurement of Economic Development)

प्रश्न : आर्थिक प्रगति और आर्थिक विकास के बीच अंतर स्पष्ट करें। किसी भी देश की आर्थिक विकास की माप कैसे की जा सकती है?

उत्तर - सामान्यतः आर्थिक प्रगति (वृद्धि) और आर्थिक विकास का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता है, किंतु शुम्पीटर, उर्सला हिक्स, अल्फ्रेड बोन, मेडिसन, डा० ब्राइट सिंह आदि अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्रीय विवेचना की सूक्ष्मता की दृष्टि से आर्थिक विकास तथा आर्थिक वृद्धि में निम्नलिखित अन्तर बतलाये है :-

(1) आर्थिक वृद्धि के अन्दर कोई सृजन नहीं होता, परन्तु आर्थिक विकास में सृजनात्मक शक्तियाँ का समावेश होता है :- प्रो शुम्पीटर ने अपनी पुस्तक "आर्थिक विकास का सिद्धांत (Theory of Economic Development) मे बताया है "वृद्धि क्रमिक तथा दीर्घकालीन होती है। इसका प्रादुर्भाव जनसंख्या तथा बचत जैसे साधनों में सामान्य वृद्धि के कारण होता है। किंतु विकास का जन्म अर्थतत्र के आन्तरिक स्तरों में क्रियाशील शक्तियों के कारण होता है। यह एक ऐसा स्वतः स्फूर्त एवं अनियमित परिवर्तन है जो विस्तार की प्रेरक भावना से गतिमान हुआ करता है"।

(2) आर्थिक वृद्धि का सम्बंध विकसित देशों से है जबकि आर्थिक विकास का सम्बंध अल्पविकसित देशों से है :- मेडिसन के अनुसार "आय के स्तरों को ऊँचा उठाने को धनी देशों में प्रायः आर्थिक वृद्धि कहा जाता है तथा निर्धन देशों में इसे आर्थिक विकास कहते है"।

(3) आर्थिक विकास में परिवर्तन स्वत: नहीं होता है, परन्तु आर्थिक वृद्धि में परिवर्तन स्वतः होता है :-  आर्थिक विकास के लिए निर्देशन एवं उचित विकास नीति की आवश्यकता होती है, लेकिन आर्थिक वृद्धि के लिए नीति या निर्देशन की आवश्यकता नहीं होती। डा. ब्राइट सिंह ने भी लिखा है, "उच्च आय वाले पूँजीवादी राष्ट्रों में आर्थिक विस्तार प्रायः प्राकृतिक तथा स्वचालित होता है। परन्तु पिछड़ी अर्थव्यवस्था में बाह्म प्रेरणा और सरकार के निर्देशन की आवश्यकता होती है।

(4) आर्थिक विकास एक अधिक विस्तृत अवधारणा है :- आर्थिक विकास शब्द का प्रयोग आर्थिक वृद्धि से अधिक व्यापक अर्थ में किया जाता है। आर्थिक विकास के अन्तर्गत आर्थिक वृद्धि तथा परिवर्तन दोनों आ जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विज्ञप्ति में कहा गया है "विकास का सम्बंध मानव की केवल भौतिक आवश्यकताओं से ही नहीं, वरन् उसके जीवन की सामाजिक दिशाओं में सुधार से होता है। अतः विकास केवल आर्थिक वृद्धि ही नही वरन् वृद्धि के साथ-साथ सामाजिक, सास्कृतिक, संस्थागत एवं आर्थिक परिवर्तन भी है।

यद्यपि आर्थिक विकास तथा आर्थिक वृद्धि में अन्तर होता है परन्तु व्यवहार में इन दोनों का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता है। प्रो. लिविस ने भी अपनी पुस्तक " The Theory of Economic Growth" में कहा है "अधिकांश हमलोग सिर्फ वृद्धि कहेंगे, लेकिन कभी-कभी विविधता के लिए प्रगति अथवा विकास भी कहेंगे। इस प्रकार वृद्धि तथा विकास में बहुत बारीक अन्तर करना संभव है, तथापि तत्त्वतः वे समानार्थक है।

आर्थिक विकास के अन्तर्गत उन शक्तियों की व्याख्या की जाती है जो आय में वृद्धि के परिणाम उत्पन्न करते हैं। अतः आर्थिक प्रगति आर्थिक विकास की लम्बी प्रक्रिया का परिणाम है।

We Can Say that

Y = f (Eg)

Eg = y (Ed)

`Ed=\alpha\left(\frac{dF}{dt}.\frac{dD}{dt}\right)`

Where, d = Demand , Y = income, F = Productive Opparates

आर्थिक विकास की माप कैसे करे ? इस मुद्दे पर अर्थशास्त्रियों में मतान्तर है। इस संबंध में विभिन्न अर्थशास्त्रियों के भिन्न भिन्न दृष्टिकोण है -

वाणिकवादियों की विचारधारा :- इनके अनुसार किसी देश का आर्थिक विकास का सूचक उस देश में उपलब्ध बहुमूल्य धातु‌ओं का भंडार तथा वाणिज्य एवं व्यापार का स्तर होता है।

एडम स्मिथ की विचारधारा :- एडम स्मिथ के विचार से वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि होनी से देश का आर्थिक विकास संभव होता है। एडम स्मिथ के अनुसार,'यदि व्यक्ति को कार्य करने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाय एवं उसको खुली प्रतियोगिता का सामना करना पड़े, तो वह अधिक क्षमता से कार्य करने लगता है। अतः देश का सकल उत्पादन वस्तु‌ओं एवं सेवाओं के रूप में बढ़ जाता है, जो आर्थिक विकास का मापदण्ड है।

जे. एस. मिल की विचारधारा :- मिल ने लोक कल्याण एवं आर्थिक विकास के लिए सहकारिता के सिद्धांत को महत्वपूर्ण माना । उनकी दृष्टि में जिस देश में जितना ही अधिक सहकारिता का प्रचलन होगा वहां लोक कल्याण में उतनी ही अधिक एवं देश में आर्थिक विकास की संभावना होगी।

कार्ल मार्क्स की विचारधारा :- कार्ल मार्क्स ने सहकारिता के सिद्धांत का समर्थन किया एवं पूंजीवाद को मिटाने की दृष्टि से साम्यवाद की स्थापना पर जोर दिया। उन्होंने समाजवाद को ही आर्थिक विकास का मापदण्ड माना।

आधुनिक विचारधारा:- आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने देश-काल की परिस्थितियों के अनु‌सार आर्थिक विकास के विभिन्न मापदण्डों का उल्लेख किया है। यथा-

(1) वास्तविक राष्ट्रीय आय :- वास्तविक राष्ट्रीय आय का तात्पर्य किसी देश में उत्पन्न अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं की कुम मात्रा से है जिसे मुद्रा के रूप में व्यक्त नहीं कर वास्तविक रूप में व्यक्त किया जाता है। प्रो. मेयर और वाल्डविन ने वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि को ही आर्थिक विकास का सूचक माना है। लेकिन वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि सतत् एवं निरंतर होना चाहिए।

Formula:

Real National income  =`\frac{National Income}{Price Level}`

किसी निश्चित समय में दो देशों की राष्ट्रीय आय की तुलना करके अथवा दो भिन्न-भिन्न समयों में एक ही देश की राष्ट्रीय आय की तुलना करके भी आर्थिक विकास की माप की जा सकती है।

आर्थिक विकास की माप ( Measurement of Economic Development)

OX = समय

OY = राष्ट्रीय आय

AA' = A देश का विकास पथ

BB' = B देश का विकास पथ

चित्र (1) से स्पष्ट है कि A देश की विकास B की विकास दर से काफी अधिक है। शुरु में A देश की राष्ट्रीय आय B देश की राष्ट्रीय आय से कम है। परन्तु T समय पर दोनों देशों की

राष्ट्रीय आय बराबर हो जाती है। इसके बाद समय में जिस तेजी से A देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है उतनी तेजी या दर से B देश की राष्ट्रीय आय नहीं बढ़ती । अतः A एक विकासशील अर्थव्यवस्था है और B तुलनात्मक रूप से कम विकसित अर्थव्यवस्था है।

कठिनाइ‌याँ

राष्ट्रीय आय को आर्थिक विकास का मापदण्ड मानने में निम्नलिखित कठिनाइ‌याँ है

(a) देश में जनसंख्या वृद्धि एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो रही है तो आर्थिक विकास में वृद्धि नहीं होगी। जिससे माप कठिन होगा

`\therefore\frac{dcpy}{dt}=\frac{\frac{dy}{dt}}{\frac{dN}{dt}}`

Economic Development if `\frac{dy}{dt}=\frac{dN}{dt}`

or, `\frac{dy}{dt}.0`

जहां,

dcpy = प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय

N = जनसंख्या

y = वास्तविक राष्ट्रीय आय

(b) राष्ट्रीय आय की गणना में कठिनाई होगी क्योंकि

- आंकडे संग्रह में कठिनाई

- वस्तु‌ओं एवं सेवाओं के चयन में कठिनाई

- दोहरी गणना की कठिनाई

- मूल्यों के चयन तथा दोहरी गणना की कठिनाई

(c) आय के वितरण तथा जनसंख्या पहलू पर विचार नहीं

(d) राष्ट्रीय आय के बढ़ने पर उपभोग स्तर में वृद्धि हो यह आवश्यक नही।

(2) प्रति व्यक्ति आय :- अर्थशास्त्रियों के बड़े वर्ग ने प्रति व्यक्ति आय को आर्थिक विकास का सूचक माना है। जिस देश मे प्रति व्यक्ति आय अधिक होता है उसका आर्थिक विकास उतना ही अधिक होता है। प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि के फलस्वरुप जीवन स्तर में वृद्धि होती है जो आर्थिक विकास का सूचक है।

प्रति व्यक्ति आय की गणना करने के लिए वास्तविक राष्ट्रीय आय में देश की जनसंख्या से भाग दिया जाता है -

प्रति व्यक्ति आय = `\frac{Y_r}P`

इसका अर्थ है National income greater than (>) है Population से।

or, `\frac{dD}{dt}=\frac{\frac{dy}{dt}}{\frac{dN}{dt}}`

if `\frac{dy}{dt}>\frac{dN}{dt}`

or, `\frac{dy}{dt}>1`

यह मापदण्ड सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि

(a) प्रति व्यक्ति वास्तविक की वृद्धि का अर्थ है वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि तथा यह कल्याण से संबंधित है।

(b) प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि का अर्थ है, उपभोग स्तर में वृद्धि

(c) जीवन स्तर का मापदण्ड भी प्रति व्यक्ति आय से होती है तथा यह देश की जनसंख्या के विभिन्न पहलुओं पर विचार करता है।

कठिनाइयाँ

प्रति व्यक्ति आय के विरुद्ध निम्नलिखित तर्क दिये जाते है -

(a) प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि उपभोग के स्तर की गारन्टी नहीं देता

(b) यदि जनसंख्या में भी वृद्धि राष्ट्रीय आय की वृद्धि के अनुपात में हो जाए तो प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि नहीं होगी, तो क्या इसे आर्थिक विकास नहीं माना जायेगा।

(c) यह मापदण्ड समाज की संरचना पर विचार नहीं करता था प्रति व्यक्ति आय का बढ़ना न्यायोचित वितरण का सूचक नहीं हो सकता

(d) इससे साधनों की सरंचना, संस्थाएँ तथा संस्कृति आदि विषयों की अवहेलना होती है।

(3) पूँजी निर्माण की दर:- कुछ अर्थशास्त्रियो के अनुसार पूँजी निर्माण की दर को ही आर्थिक विकास का सूचक माना गया है। जिस देश में जितना विनियोग होगा पूँजी निर्माण की दर भी उतना ही अधिक होगा जिसके कारण राष्ट्रीय उत्पादन, प्रति व्यक्ति उत्पादन, उपभोग एवं जीवन स्तर में वृद्धि होगी।

From Formula

`\frac{dD}{dt}=\frac{dK}{dt}.\frac{dy}{dt}.\frac{dN}{dt}`

अगर जनसंख्या वृद्धि दर 1.8% तथा पूँजी उत्पाद अनुपात 4:1 है तो विकास की वर्तमान स्थिति को बनाये रखने के लिए पूँजी निर्माण की दर 1.8 x 4 = 7.2% होना चाहिए।

where

C = Rate of capital formation

Y = production 

N = Population 

K = Capital

अगर भारत 5% र्थिक विकास का लक्ष्य रखता है तो पूँजी निर्माण की दर 1.8 x 4 x 5 = 36% होना चाहिए।

भारत में 1993-94 में पूँजी निर्माण की दर 22.4% थी जो बढ़कर 1997-98 में 25.8% हो गयी। लेकिन अभी इसमें और वृद्धि होने की जरूरत है।

कठिनाइ‌याँ

पूँजी निर्माण को आर्थिक विकास का मापदण्ड मानने में निम्नलिखित कठिनाइ‌याँ है

(a) पूँजी निर्माण की धारणा अस्पष्ट

(b) भौतिक रूप में माप कठिन

(c) पूँजी निर्माण की दर के बढ़ने पर आवश्य नहीं है जीवन स्तर में वृद्धि हो।

(d) न्यायोचित वितरण पर ध्यान नहीं तथा पूँजी निर्माण की दर केवल विनियोग वस्तुओं के स्टॉक पर विचार करता है।

(4) व्यवसायिक संरचना :- किसी देश की कार्यशील जनसंख्या वं राष्ट्रीय आय का विभिन्न व्यवसायों के बी विभाजन को व्यवसायिक संरचना कहा जाता है । इसके अन्तर्गत तीन क्षेत्र आते है-

() प्राथमिक क्षेत्र - कृषि कार्य, मत्यस पालन, लकड़ी काटना इत्यादि

() द्वितीयक क्षेत्र - निर्माण कार्य, बिजली एवं गैस इत्यादि

(iii) तृतीयक क्षेत्र - व्यवसाय, बैंकिंग, संचार, प्रशासन इत्यादि

आर्थिक विकास के प्रथम चरण में राष्ट्रीय आय का सर्वाधिक भाग प्राथमिक क्षेत्र से प्राप्त होता है। जैसे- जैसे देश विकसित होता जाता है। प्राथमिक क्षेत्र का भाग घटता जाता है एवं द्वितीयक क्षेत्र का भाग बढ़ता जाता है एवं पूर्ण विकसित होने पर आय का सर्वाधिक भा तृतीयक क्षेत्र से, उससे कम द्वितीयक क्षेत्र से एवं सबसे कम प्राथमिक क्षेत्र से प्राप्त होता है।

आर्थिक विकास की माप ( Measurement of Economic Development)

रेखाचित्र से AB प्राथमिक क्षेत्र, CD द्वितीयक क्षेत्र तथा EF तृतीयक क्षेत्र को प्रदर्शित करते हैं।

प्राथमिक क्षेत्र में

द्वितीयक क्षेत्र में

तृतीयक क्षेत्र में

`\frac{dyC}{dt}<0`

`\frac{dyC}{dt}>0`

`\frac{dyC}{dt}>0`

`\frac{d^2yC}{dt^2}>0`

`\frac{d^2yC}{dt^2}<0`

`\frac{d^2yC}{dt^2}=0`

भारत में व्यवसायिक सरंचना इस प्रकार है –

 

1950-51

1970-71

1980-81

1996-97

प्राथमिक क्षेत्र में

53.3%

44.5%

38.1%

26%

द्वितीयक क्षेत्र में

16.7%

23.6%

25.9%

37%

तृतीयक क्षेत्र में

11%

14.2%

16.7%

20.2%

इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की ओर अग्रसर है।

कठिनाइयाँ

इसमें संदेह नहीं कि जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण आर्थिक विकास की कसौटी हो सकता है किंतु यह एक संतोषजनक कसौटी नहीं है।

(5) आय का वितरण :- यदि कुल राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर भी वितरण की विषमता अधिक होगी तो लोगों का रहन-सहन का स्तर ऊँचा नहीं होगा। साइमन कुजनेट्स का मत है कि "विकास के प्रारम्भिक चरण में वितरण की विषमता बढ़ती है जबकि विकास के अंतिम चरण में वितरण की विषमता घटती है"

वितरण की विषमता को लोरज वक्र से दिखाया जा सकता

आर्थिक विकास की माप ( Measurement of Economic Development)

OB वितरण की समानता की रेखा है जो वक्र इससे जितनी अधिक दूरी पर होगा वितरण की उतनी ही विषमता को प्रदर्शित करेगा लेकिन जैसे देश विकास की ओर अग्रसर होगा देश का वक्र OB रेखा के निकट पहुंचता जायेगा।

कठिनाइ‌याँ

आय के न्यायोचित वितरण को सतोषजनक मापदण्ड नहीं माना जा सकता है, क्योंकि आर्थिक विकास के लिए राष्ट्रीय आय अथवा प्रति व्यक्ति वास्तविक में वृद्धि आवश्यक है।

(6) उपभोग का ढाँचा :- प्रो कोलिन क्लार्क का यह मत है कृषि तथा प्राथमिक वस्तुओं पर व्यय में कमी आर्थिक विकास तथा उन्नत होते हुए जीवन स्तर का सूचक है। इसी तथ्य को प्रो. सैम्युलसन ने उत्पादन सम्भावना वक्र द्वारा स्पष्ट किया है।

आर्थिक विकास की माप ( Measurement of Economic Development)

AB तथा CD उत्पादन सम्भावना की वक्र रेखाएँ है। इन पर स्थित कोई भी बिन्दु अनिवार्यताओं तथा विलासिताओं की वस्तुओं के उत्पादन संयोग को दर्शाता है। चित्र का T बिन्दु यह प्रकट करता है कि देश अपने साधनों के नियोजन से खाद्यान्नों का अधिक तथा विलासिताओं का अधिक उत्पादन करता है। परन्तु जैसे ही वह विकसित देश की अर्थव्यवस्था के निकट पहुंचता है उसकी T स्थिति चित्र में N स्थिति में चली जाती है। अर्थात् खाद्यान्नों का उत्पादन कम हो जाता है, विलासिताओं का उत्पादन ढ़ जाता है।

(7) आर्थिक कल्याण :- पीगू, डी. ब्राइट सिंह जैसे अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक कल्याण में वृद्धि को आर्थिक विकास का मापदण्ड माना है। डॉ. बी. के. आर. बी. राव का यह मानना है कि आर्थिक विकास तभी घटित माना जायेगा, जब राष्ट्रीय के वितरण में समाज के कमजोर वर्गों का हिस्सा ढ़े

कठिनाइ‌याँ

आर्थिक कल्याण को आर्थिक विकास का सही मापदण्ड नहीं माना जा सकता है क्योंकि

- कल्याण एक अमूर्त विचार है।

- माप कठिन है।

- राष्ट्रीय आय की वृद्धि के बिना ही आर्थिक कल्याण में वृद्धि हो सकती है।

- न्यायोचित वितरण की समस्या उत्पन्न होती है।

- मूल्य निर्णय की आवश्यकता पड़ती है।

(8) सामाजिक सूचक :- सामाजिक सूकों में भोजन एवं पोषक पदार्थ, वस्त्र, आवास, मूल आवश्यकताएं, शिक्षा एवं साक्षरता, रोजगार, कार्य की दशाएँ, परिवहन, मनोरंजन आदि आते हैं। इसकी अधिकाधिक उपलब्धि आर्थिक विकास की गति में तीव्रता आने का सूचक है।

कठिनाइ‌याँ

सामाजिक सूचको को आर्थिक विकास का संतोषजनक मापदण्ड नहीं माना जा सकता है, क्योंकि सामाजिक सूचको को प्राप्त करने में कई समस्याएँ उत्पन्न होती है। यथा-

- सूचको में किस प्रकार की तथा कितनी मदों को लिया जाय

- सूचको के भार की समस्या

- नैतिक निर्णय की समस्या

-'भविष्य' की अवहेलना

निष्कर्ष

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि आर्थिक विकास की माप किसी एक तत्त्व से नहीं की जा सकती है क्योंकि आर्थिक विकास की प्रक्रिया निष्कृष्ट है। वर्तमान समय में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय को ही आर्थिक विकास का सर्वश्रेष्ठ मापदण्ड माना जाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें आर्थिक विकास के प्रायः सभी प्रमुख मापदण्ड समाहित रहते है।

फिर भी आर्थिक विकास की सर्वोत्तम माप "जीवन स्तर में सुधार होता है"

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