मांग की लोच (Elasticity of Demand)

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

प्रश्न- माँग की लोच का क्या अर्थ है। इसे कैसे मापा जाता है? कीमत, आय एवं प्रतिस्थापन की माँग की लोच के बीच संबंध की व्याख्या करे?

उत्तर :- माँग का नियम यह बतलाता है कि किसी वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने से उसकी माँग कम हो जाती है तथा उसके मूल्य में कमी होने से माँग बढ़ जाती है। अतः मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग में कितना परिवर्तन होता है, इसे स्पष्ट करने के लिए माँग की लोच का सहारा लिया जाता है। दूसरे शब्दों में, माँग की लोच की धारणा हमे यह बतलाती है कि मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग में किस गति अथवा दर से परिवर्तन होगा।

माँग की लोच की परिभाषा विभिन्न अर्थशास्त्रियो द्वारा प्रस्तुत किये गये है -

कैयर्नक्रास के शब्दो में, "किसी वस्तु की माँग की लोच वह गति या दर है जिस पर मूल्य में परिवर्तन होने से खरीद की मात्रा में परिवर्तन होता है।"

प्रो. बोल्डिंग के अनुसार, "किसी वस्तु के मूल्य में एक प्रतिशत परिवर्तन के फलस्वरूप, उसकी माँग की मात्रा मे जो प्रतिशत परिवर्तन होता है, उसे मांग की लोच कहते है।"

प्रो. मार्शल के शब्दों में, "बाजार में मांग की लोच अधिक या कम तब होती है जब मूल्य में एक निश्चित कमी से मांग की मात्रा में अधिक या कम वृद्धि होती है तथा मूल्य में एक निश्चित वृद्धि होने से मांग की मात्रा में अधिक या कमी होती है"

विभिन्न अर्थशास्त्रियो ने मूल्य में परिवर्तन से सम्बन्धित मांग की लोच की ही व्याख्या की है लेकिन मांग की मात्रा मुख्यतः तीन बातो पर निर्भर करती है (i) मूल्य (ii) आ तथा (iii) सम्बन्धित वस्तुओं के मूल्य। अतः इन तीनो से सम्बन्धित क्रमशः तीन प्रकार की मांग की लोच होती है:- (1) मूल्य लोच (2) आ लो तथा (3) आड़ी लोच । इन तीनों के अतिरिक्त एक अन्य लोच भी है, जिसे प्रतिस्थापन लोच कहा जाता है।

माँग की मूल्य लोच

माँग की मूल्य लोच किसी वस्तु की कीमत में सापेक्षित परिवर्तन के परिणामस्वरूप उसकी माँग मात्रा में सापेक्ष परिवर्तन है। जबकि उपभोक्ता की आ, उसकी रुचि व अधिमान स्थिर रहते है। कीमत वस्तु की माँग मात्रा में सापेक्ष परिवर्तन का अर्थ उनमें आनुपाति अथवा प्रतिशत परिवर्तन से है। अतएव

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

Ep `=(-)\frac{\Delta Q}{\Delta P}\times\frac PQ`

जहाँ

Ep = माँग की मूल्य लोच

Q = माँग-मात्रा में परिवर्तन

P = वस्तु की कीमत में परिवर्तन

Q = आरम्भिक माँग मात्रा

P = वस्तु की आरम्भिक कीमत

गणित की दृष्टि से मूल्य लोच (Ep) ऋणात्मक होती है क्योंकि कीमत और माँग मात्रा में परिवर्तन विपरीत दिशा में होता है। अर्थात् कीमत घटती है तो मांग बढ़ती है तथा कीमत बढ़ती है तो माँग घटती है।

माँग की लोच के प्रकार

चूंकि मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरूप विभिन्न वस्तुओं की माँग में अलग-अलग परिवर्तन होता है, अतः अर्थशास्त्रिया ने माँग की लोच के विभिन्न प्रकार बतलायें है। जो निम्नलिखित है -

1. पूर्णतया लोचदार माँग या अनन्त लोंच :- जब मूल्य में कमी होने पर माँग में अनन्त () वृद्धि हो जाए तथा मूल्य में अल्प वृद्धि होने पर माँग घट कर शून्य हो जाए तो मांग पूर्णतया लोचदार होती है

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

चित्र में पूर्ण लोचदार के माँग वक्र DD में कीमत OP पर वस्तु की अनन्त मात्रा की माँग की जाती है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि वस्तु की कीमत OP से थोडी से अधिक बढ़ने पर उसकी माँग की मात्रा शून्य हो जायेगी। अत: मूल्य लोच Ep = ∞ होती है।

2. सम लोचदार मांग या इकाई लोचदार मांग :- जिस अनुपात में मूल्य में परिवर्तन हो उसी अनुपात में मांग में परिवर्तन हो तो इसे समलोचदार मांग कते हैं

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

मान लिया जाये कि किसी वस्तु की कीमत P से घटकर P1 हो जाती है और परिणामस्वरूप माँग की मात्रा Q से बढ़कर Q1 हो जाती है। P वस्तु की कीमत में कमी तथा Q माँग की मात्रा में वृद्धि को दर्शाते है अतः

कीमत में कमी से पूर्व = PQ

कीमत में कमी के पश्चात = (P - P) (Q + Q)

कुल परिवर्तन = (P - P) (Q +Q) - PQ

= PQ + Q. P - ∆P.Q - PQ - PQ

- P. Q तथा -PQ की बहुत तुच्छ मात्रा होने के कारण उपेक्षा की जा सकती है। अतः

QP = P.Q

या, `\frac{\Delta QP}{\Delta PQ}=1`

सूत्र से,`\frac{\Delta QP}{\Delta PQ}`= ep

3. सापेक्षिक लोचदार मांग या इकाई से अधिक लोचदार मांग :- जिस अनुपात में मूल्य में परिवर्तन हो रहा हो उससे अधिक अनुपात में मांग में परिवर्तन हो तो इसे इकाई से अधिक लोचदार मांग कते हैं

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

चित्र में QP > PQ

या, `\frac{\Delta QP}{\Delta PQ}>1`

चूंकि  या, `\frac{\Delta QP}{\Delta PQ}`

माँग की लोच (ep) को मापता है

ep > 1

अत: स्पष्ट है कि कीमत के घटने पर वस्तु की मांग की मात्रा में वृद्धि होती है तो मूल्य लोच इकाई से अधिक होती है।

4. सापेक्षिक बेलोचदार माँग या माँग की लोच इकाई से कम :- जिस अनुपात में मूल्य में परिवर्तन हो रहा है उससे कम अनुपात में मांग में परिवर्तन हो तो इसे इकाई से कम लोचदार मांग कते हैं

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

चित्र में QP < PQ

या, `\frac{\Delta QP}{\Delta PQ}<1`

या, ep < 1

5. पूर्णतया बेलोचदार मांग :- जब मूल्य में कमी अथवा वृद्धि का मांग पर कुछ भी प्रभाव न पड़े तो इसे पूर्णतया बेलोचदार मांग कते हैं

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

चित्र में, प्रत्येक कीमत P, P1, P2 मे माँग की मात्रा OQ स्थिर रहती है। अतः इस वक्र पर मूल्य लोच शून्य है

माँग की मूल्य लोच का माप

प्रो स्टिग्लर ने अपनी पुस्तक 'The Theory of Price ' में मांग की मूल्य लोच को ज्ञाकरने के लिए निम्न सूत्र बताए। जिससे माँग की मूल्य लोच को हम आसानी से माप सकते है :-

`E_p=\frac{\Delta Q}Q\div\frac{\Delta P}P`

`E_p=\frac{\Delta Q}Q\times\frac P{\Delta P}`

जहां,

∆Q = माँग-मात्रा में परिवर्तन

∆P = वस्तु की कीमत में परिवर्तन

Q = आरम्भिक माँग मात्रा

P = वस्तु की आरम्भिक कीमत

इसे उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लिया सेबों की कीमत 5 रुपये प्रति kg हो तो उस पर 400 kg सेबों की माँग की जाती है। अब यदि सेबो की कीमत घट कर 4.75 रुपये प्रति kg हो जाने पर सेबो की माँग बढ़कर 450 kg हो जाती है तो

मूल्य लोच `=\frac{\Delta Q}Q\times\frac P{\Delta P}`

∆Q =  450  - 400= 50kg

∆P = 5 - 4.75 = 25 पैसे

आरम्भिक माँग Q = 400 kg

मूल्य लोच `=\frac{\Delta Q}Q\times\frac P{\Delta P}`

`E_p=\frac{50}{25}\times\frac{500}{400}`

`E_p=2\times\frac{5}4=\frac{5}2=2.5`

अतः मूल्य लोच ep= 2.5 होगा

इसी तरह माँग की लोच की माप निम्नलिखित प्रकार से भी कर सकते हैं -

1. कुल व्यय प्रणाली :- माँग की लोच को मापने के लिए कुल व्यय विधि का प्रयोग प्रो. मार्शल ने किया था। इस विधि द्वारा यह पता लगाया जाता है कि मांग की लोच इकाई से ज्यादा है, इकाई के बराबर है अथवा  इकाई से कम है।

मूल्य लोच तथा कुल व्यय में परिवर्तन को एक चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते है-

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

चित्र में वस्तु का माँग वक्र DD है। जब वस्तु की कीमत OP है, तो उपभोक्ताओं द्वारा उसकी OQ मात्रा मांगी जाती है। चूंकि वस्तु पर किया गया कुल व्यय उसकी कीमत तथा खरीदी जाने वाली मात्रा के गुणा के बराबर होता है

चित्र से,  कुल व्यय = मूल्य × मात्रा  

इसलिए वस्तु पर किया गया कुल व्यय = OP × OQ = OQRP

यदि वस्तु की कीमत OP से गिर कर OP1 हो जाती है तो माँग की मात्रा बढ़ कर OQ1 हो जाएगी

नई कीमत पर कुल व्यय = OP1 × OQ1 = OQ1R1P1

अब क्या कीमत बदलने पर कुल व्यय बढ़ेगा या घटेगा यह माँग की मूल्य लोच पर निर्भर करता है। जिसे एक तालिका द्वारा दर्शो सकते है:-

मूल्य लोच

कीमत घटने पर

कीमत बढ़ने पर

ep >1

कुल व्यय बढ़ता है

कुल व्यय घटता है

ep < 1

कुल व्यय घटता है

कुल व्यय बढ़ता है

ep  =1

कुल व्यय स्थिर रहता है

कुल व्यय स्थिर रहता है

2. प्रतिशत प्रणाली :- प्रो. फ्लक्स ने इस रीति का प्रयोग सर्वप्रम किया था। इस प्रणाली में मांग की लोच को मापने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है:-

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

Ep `=(-)\frac{\Delta Q}{\Delta P}\times\frac PQ`

यदि भागफल एक आता है तो माँग की लोच इकाई के बराबर होती है ; यदि भागफल एक से अधिक आता है तो माँग की लोच इकाई से अधिक होती है तथा यदि भागफल एक से कम आता है तो माँग की लोच इकाई से कम होती है।

प्रो मार्शल ने बतलाया है कि यदि मूल्य एवं मांग में होने वाले परिवर्तन अत्यन्त ही कम हो तभी हम प्रतिशत प्रणाली द्वारा माँग की लोच की सही-सही माप कर सकते है। लेकिन यदि मूल्य एवं मांग में होने वाले परिवर्तन बहुत अधिक हो तो हम प्रतिशत प्रणाली द्वारा मांग की लोच की सही-सही माप नहीं कर सकते। इसलिये प्रो मार्शल ने माँग की लोच मापने के लिए कुल व्यय प्रणाली को अधिक श्रेष्ठ बतलाया है

3. बिन्दु प्रणाली या ज्यामितिक विधि :- माँग की लोच की माप के लिए इस विधि का प्रयोग प्रो. के. ई. बोल्डिंग ने किया था। यह एक रेखागणितीय रीति है। इसके अन्तर्गत माँग की लोच की माप माँग की रेखा के किसी भी बिन्दु पर की जा सकती है। इसके लिए सूत्र का प्रयोग किया जाता है जो रेखाचित्र से प्राप्त होता है।

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

1. मांग की इकाई लोच :- यदि P बिन्दु रेखा के मध्य में स्थित है तो PN = PM इसलिए P बिन्दु पर मांग की लोच = `\frac{PN}{PM}`होगी।

2. इकाई से अधिक या लोचदार मांग :- यदि A बिन्दु मध्य बिन्दु P से ऊपर है तो निचला हिस्सा AN ऊपर के हिस्से AM से अधिक होगा। इसलिए A बिन्दु पर मांग की लोंच =`\frac{AN}{AM}`> 1 होगी।

3. इकाई से कम या बेलोचदार मांग :- यदि B बिन्दु P से नीचे है तो निचला हिस्सा BN ऊपर के हिस्से BM से कम होगा। इसलिए B बिन्दु पर मांग की लोंच =`\frac{BN}{BM}`< 1 होगी।

4. ep= 0 :- N बिन्दु पर मांग की लोंच `\frac0{NM}` = 0

5. ep= `\infty`  :- M बिन्दु पर मांग की लोंच = `\frac{NM}0=\infty`

4. चाप प्रणाली :- प्रोस्टिगलर ने अपनी पुस्तक ' The Theory of Price' में बिन्दु प्रणाली को गणितीय फलनो तक सीमित ज्ञान कर मांग की लोंच की माप के लिए चाप प्रणाली का प्रयोग किया । इसमें नए एवं पुराने मूल्यों के औसत के आधार पर मांग की मूल्य लोंच की माप की जाती है।

`E_p=(-)\frac{\Delta Q}{\frac{Q_1+Q_2}2}\div\frac{\Delta P}{\frac{P_1+P_2}2}`

`=(-)\frac{\Delta Q}{\Delta P}\div\frac{P_1+P_2}{\Q_1+Q_2}`

इसे गणितीय रुप में स्पष्ट कर सकते हैं

माना, प्रारम्भिक मूल्य (P1) = 15

परिवर्तन के बाद मूल्य (P2) = 10

प्रारम्भिक माँग (Q1) = 100

परिवर्तन के बाद मांग (Q2) = 200

माँग में परिवर्तन (∆Q) = 100

मूल्य में परिवर्तन (∆P) = 5

`E_p=\frac{100}5\times\frac{15+10}{100+200}`

`E_p=\frac{100}5\times\frac{25}{300}=\frac{5}3`

ep = 1.66 होगी

इस प्रकार मांग की लोच को मापने के लिए उपरोक्त चार प्रणालियों का व्यवहार किया जाता है। परन्तु मार्शल ने कुल व्यय प्रणाली को सबसे अच्छा समझा है। वैसे चाप प्रणाली भी विश्वसनीय प्रतीत होता है।

माँग की आय लोच

वस्तु की माँग केवल कीमत पर ही निर्भर नहीं करती, यह आय पर भी निर्भर करती है। माँग की आय लोच हमे बताती है कि किसी की आय में प्रतिशत परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी माँग में कितना प्रतिशत परिवर्तन होगा। इसे निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते है

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

यदि

M = आरम्भिक आय

Q = आरम्भिक माँग मात्रा

M = आय में परिवर्तन

∆Q = माँग-मात्रा में परिवर्तन

ei = आय लोच

`e_i=\frac{{\frac{\Delta Q}Q}\times100}{{\frac{\Delta M}M}\times100}`

`e_i=\frac{\Delta Q}Q\times\frac M{\Delta M}`

`e_i=\frac{40}5\times\frac{100}{400}`

मान लिया, यदि उपभोक्ता की आय 100 रुपये से बढ़कर 105 रुपये हो जाती है तो वस्तु की माँग 400 इकाइयों से बढ़कर 440 इकाईयां हो जाती है तो आय लोच निम्न प्रकार होगी

M = 100 ; ∆M =5 ; Q = 400  ; Q = 40 ; ei = ?

`e_i=\frac{\Delta Q}Q\times\frac M{\Delta M}`

`e_i=\frac{40}5\times\frac{100}{400}` = 2 होगी

माँग की आड़ी या प्रति लोच

माँग की आड़ी लोच का विचार सर्वप्रथम मूर ने दिया, लेकिन इस विचार को रॉबर्ट गिफेन ने विकसीत किया।

एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन का प्रभाव जब दूसरी वस्तु की माँग पर पड़ता है तो उसे माँग की आड़ी लोच कहते है।

इस प्रकार माँग की आड़ी लोच के अन्तर्गत Y वस्तु के मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरूप X वस्तु की माँग में परिवर्तन होता है। इसे मापने के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है:-

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

या`e_i=\frac{\frac{\Delta Q_x}{Q_x}}{\frac{\Delta P_y}{P_y}}`

`e_i=\frac{\Delta Q_x}{Q_x}\times\frac{P_y}{\Delta P_y}`

जहाँ, ei = वस्तु X की वस्तु Y के लिए माँग की आड़ी लोच

Qx = X वस्तु की आरम्भिक मांग-मात्रा

Qx = X वस्तु की मांग-मात्रा में परिवर्तन

Py = वस्तु Y की आरम्भिक कीमत

Py = वस्तु Y की कीमत में परिवर्तन

प्रतिस्थापन लोच

दो वस्तुओं में प्रतिस्थापन लोच इस बात का निर्देश करती है कि एक वस्तु की स्थानापत्ति दूसरी वस्तु के द्वारा किस सीमा तक हो सकती है जबकि उपभोक्ता की कुल संतुष्टि में कोई परिवर्तन न हो।

प्रतिस्थापन लोच को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है।

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

`e_\Delta=\frac{\left(\Delta{\frac{Q_x}{Q_y}}\right)}{\frac{Q_x}{Q_y}}\div\frac{\Delta\left({\frac{\Delta Y}{\Delta X}}\right)}{\frac{\Delta Y}{\Delta X}}`

जहाँ

e = प्रतिस्थापन लोच

`\frac{Q_x}{Q_y}`= वस्तु X और Y का अनुपात

`\Delta\left(\frac{Q_x}{Q_y}\right)`= वस्तु X और Y के अनुपात में परिवर्तन

`\frac{\Delta Y}{\Delta X}`= वस्तु X की वस्तु के साथ आरम्भिक प्रतिस्थापन की सीमांत दर

`\Delta\left(\frac{\Delta Y}{\Delta X}\right)`= प्रतिस्थापन की सीमांत दर में परिवर्तन

मूल्य लोच, आय लोच तथा प्रतिस्थापन लोच में परस्पर सम्बन्ध

माँग की मूल्य लोच आय लोच और प्रतिस्थापन लोचो पर निर्भर करती है। स्टोनियर तथा हेग ने अपनी पुस्तक "A Textbook of Economic Theory" में इन तीनो लोचों के परस्पर सम्बन्ध को एक गणितीय सूत्र के रूप में व्यक्त किया है। उपभोक्ता की वस्तु X के लिए माँग की मूल्य लोच को निम्न सूत्र के रूप में प्रकट कर सकते हैं

ep = Kx ei +(1- Kx) es

जहाँ,

ep= माँग की मूल्य- लोच

Kx = आय का अनुपात जो वस्तु X पर व्यय किया गया

ei = माँग की आय-लोच

es = X की अन्य वस्तुओं से प्रतिस्थापन लोच

उपर्युक्त समीकरण का प्रथम भाग Kxei मूल्यलोच पर आप्रभाव के परिणाम का सूचक है। आय प्रभाका परिणाम दो तत्वों पर निर्भर करता है,

1. उपभोक्ता अपनी आय का कितना भाग वस्तु X पर व्यकर रहा है।

2. उपभोक्ता की वस्तु X के लिए आय लोच कितना है।

उपभोक्ता आय का जितना अधिक भाग वस्तु X पर व्यय करेगा (Kx अधिक होगा) और उपभोक्ता की वस्तु X के लिए जितनी ही अधिक आय लोच होगी उतना ही अधिक आप्रभाव का परिणाम होगा।

समीकरण का दूसरा भाग (1-Kx) es माँग की मूल्य लोच पर प्रतिस्थापन लोच के परिणाम का सूचक है। प्रतिस्थापन लोच का परिणाम दो तत्त्वों पर निर्भर करता है -

1. आय का कितना भाग अन्य वस्तुओं पर व्यय हो रहा है अर्थात् (1-Kx) कितना है।

2. वस्तु X की अन्य वस्तुओं के साथ प्रतिस्थापन लोच (es) कितनी है।

आय का जितना अधिक भाग अन्य वस्तुओं पर व्यहोगा और जितनी अधिक वस्तु X की अन्य वस्तुओं से प्रतिस्थापन लोच होगी उतना ही अधिक प्रतिस्थापन प्रभाव का परिमाण होगा।

इसे उदाहरण के रुप में समझा जा सकता है:-

माना एक उपभोक्ता अपनी आय का 1/5 भाग वस्तु X पर व्यय कर रहा है। यदि उपभोक्ता की वस्तु X के लिए आय लोच 2 हो और वस्तु X और अन्य वस्तुओं के बीच प्रतिस्थापन लोच 3 हो तो मूल्य लोच निम्न प्रकार से ज्ञात की जा सकती है:-

ep = Kx ei +(1- Kx) es

`e_p=\frac{1}5\times2+\left(1-\frac{1}5\right)\times3`

`e_p=\frac{2}5+\frac{4}5\times3`

`e_p=\frac{2}5+\frac{12}5=\frac{14}5=2.8`

अतः वस्तु की मूल्य लो 2.8 है।

यदि किसी वस्तु पर आका चाहे कितना ही भाव्यय क्यों न किया जाता हो यदि आलोच और प्रतिस्थापन लोच दोनों इकाई के बराबर हो तो मूल्य लोच भी इकाई के बराबर होगी।

दि आका 1/5 भाग वस्तु पर व्यय हो रहा है और आय लोच तथा प्रतिस्थापन लोच इकाई के बराबर है तो मूल्य लोच होगी

ep = Kx ei +(1- Kx) es

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

मांग की लोच (Elasticity of Demand)

ep = 1

अतः मूल्य लोच इकाई के बराबर है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त विवेचनाओं के आधार पर निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि मांग की लोच अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।

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